1 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर 2011, वो शà¥à¤ दिन था जब पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° के लिये पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ किया। इसके बारे में अपने बà¥à¤²à¥‰à¤— पर सूचना काफी पहले ही दे दी थी, जिसका नतीजा यह हà¥à¤† कि जाने वालों में सोनीपत के अतà¥à¤² और बाराबंकी के नीरज सिंह à¤à¥€ तैयार हो गये। वैसे तो मथà¥à¤°à¤¾ के ‘फकीरा’ à¤à¥€ तैयार थे लेकिन जैसे ही उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पता चला कि कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® à¤à¤•-दो दिन का नहीं बलà¥à¤•ि आठदिन का है तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मना कर दिया। अतà¥à¤² को 30 सितमà¥à¤¬à¤° की रात को मेरे पास ही आना था और बाराबंकी वाले नीरज को बाघ à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ (13019) से हलà¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤¨à¥€ पहà¥à¤‚चना था।
मैं हमेशा नाइट डà¥à¤¯à¥‚टी करके निकलता हूं। इसलिये तीस सितमà¥à¤¬à¤° की रात को दस बजे से लेकर à¤à¤• अकà¥à¤Ÿà¥‚बर की सà¥à¤¬à¤¹ छह बजे तक डà¥à¤¯à¥‚टी थी। यह डà¥à¤¯à¥‚टी अपने यहां à¤à¤• अकà¥à¤Ÿà¥‚बर की मानी जाती है, इसलिये à¤à¤• तारीख को छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ नहीं लेनी पडी। अतà¥à¤² को शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ पारà¥à¤• सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ अपने कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ ही बà¥à¤²à¤¾ लिया। अतà¥à¤² पहले à¤à¥€ à¤à¤• बार साथ जा चà¥à¤•ा था, तब à¤à¥€ हमने à¤à¤¸à¤¾ ही किया था। अचà¥à¤›à¤¾ हां, à¤à¤• बात और बता दूं कि रात की डà¥à¤¯à¥‚टी में मà¥à¤à¥‡ à¤à¤• मैणà¥à¤Ÿà¥‡à¤¨à¥‡à¤‚स गाडी ‘धरतीधकेल’ चलानी पडती है। इस गाडी को तकनीकी à¤à¤¾à¤·à¤¾ में CTMC कहते हैं। रेलवे वाले इसे अचà¥à¤›à¥€ तरह जानते होंगे। यह गाडी रात को डिपो से निकलकर मेन लाइन पर चलती है। इसे चलाने का लाइसेंस हमारे यहां जूनियर इंजीनियर (JE) को मिलता है तो मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ मिला हà¥à¤† है।
पिछली बार जब अतà¥à¤² यहां आया था तो मैं तो धरतीधकेल लेकर चला गया जबकि अतà¥à¤² को डिपो में ही सà¥à¤²à¤¾ दिया। जब हम सफर करने लगे तो मà¥à¤à¥‡ आने लगी नींद। अतà¥à¤² को नींद कहां? उसने मà¥à¤à¥‡ सोने नहीं दिया। लेकिन अब सोचा कि इस बार à¤à¤¸à¤¾ नहीं होने दूंगा। ना खà¥à¤¦ सोऊंगा, ना अतà¥à¤² को सोने दूंगा। चल à¤à¤¾à¤ˆ अतà¥à¤², तू à¤à¥€ हमारे साथ ही मेन लाइन पर चल।
जब साढे छह बजे शाहदरा से बरेली à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ (14556) पकडी तो मà¥à¤à¥‡ तो नींद आ ही रही थी, आंख अतà¥à¤² की à¤à¥€ नहीं खà¥à¤² रही थीं। हम डिपो से निकलने में ही लेट हो गये थे तो शाहदरा से टिकट à¤à¥€ नहीं ले पाये, मà¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦ तक बेटिकट ही गये। यह वही गाडी है जो रात को दिलà¥à¤²à¥€ से ऊना हिमाचल तक हिमाचल à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ बनकर चलती है और दिन में दिलà¥à¤²à¥€ से बरेली तक। हिमाचल à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ में इसमें सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤° डिबà¥à¤¬à¥‡ लगे होते हैं जबकि बरेली à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ बनने पर इसके सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤° डिबà¥à¤¬à¥‹à¤‚ का दरà¥à¤œà¤¾ खतà¥à¤® करके जनरल बना दिया जाता है। इसीलिये अतà¥à¤² मà¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦ तक हैरान-परेशान होता हà¥à¤† गया कि जाट महाराज ने बेटिकट सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤° डिबà¥à¤¬à¥‡ में सफर करवा दिया। वैसे ढाई-ढाई सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ दोनों के जà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¨à¥‡ के लगाकर पांच सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ मैंने अलग जेब में रख लिये थे कि टीटी आयेगा और जà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¨à¥‡ को कहेगा तो तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ दे देंगे। हालांकि à¤à¤¸à¥€ नौबत नहीं आई।
मà¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦ में लंच करके हलà¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤¨à¥€ की बस पकडी। पहले तो खà¥à¤¦ मà¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦, फिर रामपà¥à¤°, बिलासपà¥à¤°, रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤° के जामों को à¤à¥‡à¤²à¤¤à¥‡ हà¥à¤ दोपहर बाद तीन बजे हलà¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤¨à¥€ पहà¥à¤‚चे। यहां पिछले छह घणà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ से बाराबंकी वाले नीरज सिंह हमारी बाट देख रहे थे। नीरज सिंह जो कि मिरà¥à¤šà¥€ नमक के नाम से लिखते हैं, हमने उसे हलà¥à¤¦à¥€ नमक कर दिया और नीरज à¤à¤¾à¤ˆ हो गये हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤®à¥¤ आगे से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® ही कहा जायेगा।
हलà¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤¨à¥€ पहà¥à¤‚चकर तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¾ की आलà¥à¤Ÿà¥‹ पकडी। यहां यातायात के तीन साधन हैं- बस, जीप और आलà¥à¤Ÿà¥‹à¥¤ आमतौर पर जीप का किराया बस से बीस पचà¥à¤šà¥€à¤¸ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ होता है और आलà¥à¤Ÿà¥‹ का जीप से पचास रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¥¤ लेकिन हम चूंकि जामों में फंसकर काफी लेट हो चà¥à¤•े थे और आज का पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बागेशà¥à¤µà¤° पहà¥à¤‚चने का था। इसलिये हमें आलà¥à¤Ÿà¥‹ से चलना पडा। दो सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ सवारी तय हà¥à¤†à¥¤ हमने डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° से यह à¤à¥€ बता दिया कि हमें बागेशà¥à¤µà¤° जाना है इसलिये उसने अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¾ में अपने किसी परिचित जानकार डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° को फोन करके बता दिया कि अà¤à¥€ रà¥à¤• जा, तीन सवारियां बागेशà¥à¤µà¤° की लेकर आ रहा हूं।
सात बजे के करीब अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¾ पहà¥à¤‚चे। हमें दूसरी आलà¥à¤Ÿà¥‹ में शिफà¥à¤Ÿ कर दिया गया। सात बजे हालांकि अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¤¾ हो जाता है, इसलिये काफी अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¤¾ हो गया था। अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¾ से बागेशà¥à¤µà¤° वाली सडक बहà¥à¤¤ बढिया बनी हà¥à¤ˆ है। शायद ही कहीं गडà¥à¤¢à¤¾ हो। चीड का जंगल है पूरे रासà¥à¤¤à¥‡ à¤à¤°à¥¤ हमें उस दिन तो पता नहीं चला था, इस बात का पता हमें वापस आते हà¥à¤ चला। रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¤• जगह तेंदà¥à¤† à¤à¥€ दिखा। हालांकि डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने बाघ-बाघ चिलà¥à¤²à¤¾à¤•र गाडी रोक दी थी कि इसे देखना हमारे यहां शà¥à¤ माना जाता है।
दस बजे के करीब बागेशà¥à¤µà¤° पहà¥à¤‚चे। लेट हो जाने के कारण तीन सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ का à¤à¤• कमरा मिला। तीनों जने पडकर सो गये।
2 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर 2011 की सà¥à¤¬à¤¹ हम बागेशà¥à¤µà¤° में थे। बागेशà¥à¤µà¤° उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ इलाके में अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¾ से लगà¤à¤— 70 किलोमीटर आगे है। आज हमें पहले तो गाडी से सौंग तक जाना था, फिर 11 किलोमीटर की पैदल यातà¥à¤°à¤¾ करके धाकà¥à¤¡à¥€ में रातà¥à¤°à¤¿ विशà¥à¤°à¤¾à¤® करना था। हमारा कल का पूरा दिन टà¥à¤°à¥‡à¤¨, बस और कार के सफर में बीता था, इसलिये थकान के कारण à¤à¤°à¤ªà¥‚र नींद आई।
आज सà¥à¤¬à¤¹ उठते ही à¤à¤• चमतà¥à¤•ार देखने को मिला। जब तक अतà¥à¤² और हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® की आंख खà¥à¤²à¥€, तब तक जाट महाराज नहा चà¥à¤•े थे। हालांकि वे दोनों यह बात मानने को बिलà¥à¤•à¥à¤² à¤à¥€ तैयार नहीं थे। ढेर सारे सबूत देने पर à¤à¥€ जब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मेरे नहाने का यकीन नहीं हà¥à¤† तो मà¥à¤à¥‡ कहना पडा कि ठीक है, मत मानों, लेकिन मà¥à¤à¥‡ पता है कि मैं नहा लिया हूं।
जब यहां से निकलने लगे तो तीनों ने à¤à¤• नियम पर अपनी सहमति वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ की। नियम था कि इस यातà¥à¤°à¤¾ में हम तीनों में से कोई à¤à¥€ लीडर नहीं होगा, बलà¥à¤•ि सà¤à¥€ अपने अपने लीडर खà¥à¤¦ होंगे। अगर किसी à¤à¤• की वजह से दूसरा लेट हो रहा हो या दूसरे को परेशानी हो रही हो तो सà¤à¥€ को अपने अपने फैसले खà¥à¤¦ लेने का अधिकार होगा। किसी से आगे जाना है, किसी को पीछे ही छोड देना है, यह सबकी वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त इचà¥à¤›à¤¾ पर निरà¥à¤à¤° होगा। साथ ही यह à¤à¥€ तय हà¥à¤† कि कोई किसी को ताने-उलाहने, वचन-पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ नहीं देगा। यह योजना जाट के दिमाग की ही उपज थी। मà¥à¤à¥‡ शà¥à¤°à¥€à¤–णà¥à¤¡ यातà¥à¤°à¤¾ याद आ गई, जब मेरे देर से उठने और धीरे धीरे चलने की वजह से बाकी साथियों को à¤à¥€ धीरे धीरे चलना पड रहा था और उनका बहà¥à¤¤ सारा कीमती टाइम बरà¥à¤¬à¤¾à¤¦ हà¥à¤† था।
बैजनाथ से आने वाली गोमती नदी के पà¥à¤² को पार करके थोडा सा आगे जाने पर à¤à¤°à¤¾à¤¡à¥€ सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤£à¥à¤¡ आता है। यहां से à¤à¤°à¤¾à¤¡à¥€ के लिये जीपें मिलती हैं। à¤à¤°à¤¾à¤¡à¥€ सौंग जाने वाली सडक पर कपकोट से करीब दो किलोमीटर आगे à¤à¤• कसà¥à¤¬à¤¾ है। à¤à¤°à¤¾à¤¡à¥€ में फिर दोबारा जीपों की बदली करके सौंग वाली जीप में जा बैठते हैं। जहां बागेशà¥à¤µà¤° से à¤à¤°à¤¾à¤¡à¥€ तक बढिया सडक बनी हà¥à¤ˆ है, वही à¤à¤°à¤¾à¤¡à¥€ से आगे सौंग तक महाबेकार सडक है। वैसे बागेशà¥à¤µà¤° से सीधे सौंग तक और उससे à¤à¥€ आगे लोहारखेत तक के लिये जीपें मिल जाती हैं लेकिन इस सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ के लिये जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पैसे देने पडेंगे।
साढे दस बजे सौंग पहà¥à¤‚चे। इसी जीप में à¤à¤• बंगाली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड बनरà¥à¤œà¥€ और उसका सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ गाइड देवा à¤à¥€ था। बंगाली à¤à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤°à¤•म तैयारी के साथ आया था, सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग और टेंट के अलावा कम से कम 15 किलो वजन का à¤à¤• बैग (रकसैक) और à¤à¥€ था। हां, वजन से याद आया कि हमारे बाराबंकी वाले साथी नीरज सिंह (हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤®) à¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤°à¤•म तैयारी के साथ आये थे। हलà¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤¨à¥€ में जब हम मिले थे तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखकर मेरी आंखें फटी रह गईं। à¤à¤• बडा टà¥à¤°à¥‡à¤•िंग रकसैक फà¥à¤² à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† सिर से लेकर कमर के नीचे तक लटका था और à¤à¤• उससे छोटा बैग आगे छाती पर लटका रखा था। मैं हैरत में रह गया। सोचने लगा कि बेटा जाट, अगला तो घà¥à¤®à¤•à¥à¤•डी में तेरा à¤à¥€ उसà¥à¤¤à¤¾à¤¦ है। तू तो à¤à¤• सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग लेकर ही उछलता फिर रहा है, यह तो सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग के साथ-साथ टेणà¥à¤Ÿ à¤à¥€ लिये घूम रहा है। बाद में पता चला कि उसके पास ना तो सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग है, ना ही टेणà¥à¤Ÿà¥¤ पीछे वाले में केवल कपडे हैं और आगे वाले में केवल खाने की चीजें।
कम से कम महीने à¤à¤° पहले ही मैंने हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® को बता दिया था कि à¤à¤¾à¤ˆ, कà¥à¤› मत लेना लेकिन à¤à¤• रेनकोट ले लेना। अगले ने रेनकोट के साथ साथ बाकी सबकà¥à¤› थोक के à¤à¤¾à¤µ में साथ ले लिया था। जबकि अतà¥à¤² ने à¤à¥€ à¤à¤• गडबड कर दी। वो रेनकोट नहीं लाया। इसलिये हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® ने अपनी दà¥à¤•ान में से à¤à¤• विणà¥à¤¡à¤šà¥€à¤Ÿà¤° अतà¥à¤² को दे दिया। हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® का बोठकम करने के लिये मैंने खाने की जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° चीजें अपने बैग में रख लीं- कई पैकेट नमकीन, बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ, पेडे, à¤à¤•ाध चीज और।
ठीक गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ बजे सौंग से चढाई शà¥à¤°à¥‚ कर दी। असल में सौंग गांव से करीब आधा किलोमीटर पहले ही ऊपर लोहारखेत के लिये रासà¥à¤¤à¤¾ गया है, बंगाली के गाइड देवा की देखा-देखी हम à¤à¥€ गाडी से यही उतर गये थे। सौंग समà¥à¤¦à¥à¤° तल से करीब 1300 मीटर की ऊंचाई पर है। यह सरयू नदी के किनारे बसा है। यह सरयू वो अयोधà¥à¤¯à¤¾ वाली सरयू नहीं है। बागेशà¥à¤µà¤° में इस सरयू में गोमती नदी आकर मिल जाती है और दोनों फिर बहती रहती हैं, बहती रहती हैं, और कहीं पहाडों से निकलकर उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में रामगंगा में मिल जाती हैं। हमें इस सरयू घाटी को छोडकर पिणà¥à¤¡à¤° घाटी में जाना था। à¤à¤• बार अगर पिणà¥à¤¡à¤° घाटी में चले गये तो पिणà¥à¤¡à¤° नदी के साथ-साथ चलते चलते पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° पहà¥à¤‚चना उतना मà¥à¤¶à¥à¤•िल नहीं होता। सरयू नदी और पिणà¥à¤¡à¤° नदी के बीच में à¤à¤• परà¥à¤µà¤¤ शà¥à¤°à¤‚खला (डाणà¥à¤¡à¤¾) है जिसकी ऊंचाई धाकà¥à¤¡à¥€ में 2900 मीटर से लेकर आगे बढती चली जाती है, इसलिये इस शà¥à¤°à¤‚खला को धाकà¥à¤¡à¥€ में ही पार किया जाता है।
सौंग से तीन किलोमीटर पैदल चलने पर लोहारखेत आता है। हम सौ मीटर à¤à¥€ नहीं चले होंगे कि जिस बात का डर था, वही होने लगी। हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® चलने में असमरà¥à¤¥ हो गये। दो-तीन कदम चलते ही उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ चकà¥à¤•र आने लगते। तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ नीचे बैठजाते। हालांकि मैं जानता था कि वे पहली बार आये हैं, और फिर वजन à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ है। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ कि à¤à¤¾à¤ˆ, तà¥à¤® तीन-चार कदम चलते ही थक जाते हो, लेकिन आराम करने के लिये बैठो मत। खडे खडे ही आराम करो। à¤à¤²à¥‡ ही चाहे जितना टाइम लगा लो लेकिन बैठो मत। बैठने से और जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ थकान महसूस होती है लेकिन उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बैठने से जितना रोकते, महाराज उतना ही जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ देर तक बैठते।
हमसे आगे जो à¤à¤• बंगाली और उसका गाइड जा रहा था, ऊपर से गाइड देवा ने हमें देख लिया और सोचा कि वे तो गये काम से, तो उसने अपने à¤à¤• चेले पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª सिंह को हमारे पास à¤à¥‡à¤œ दिया। हमारे पास आकर जब पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª ने हमारा सामान लेने की बात कही तो हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® ने मना कर दिया। फिर पांच-चार कदम चला और लडखडाकर बैठगया तो मैंने पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª से कहा कि हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® का सामान उठा ले, धाकà¥à¤¡à¥€ तक चल, जो पैसे बनेंगे ले लेना। आगे की आगे देखी जायेगी। पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª से हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® से दोनों बैग ले लिये। इसके बाद हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® ठीक चलने लगा।
बारह बजे लोहारखेत पहà¥à¤‚चे। यह समà¥à¤¦à¥à¤° तल से 1780 मीटर की ऊंचाई पर है। अब हमें आठकिलोमीटर और जाना था तथा 2900 मीटर की ऊंचाई वाले धाकà¥à¤¡à¥€ टॉप को पार करना था यानी हर किलोमीटर चलने के साथ-साथ डेढ सौ मीटर ऊपर à¤à¥€ चढना था। और वाकई यही रासà¥à¤¤à¤¾ यानी धाकà¥à¤¡à¥€ तक, इस यातà¥à¤°à¤¾ का सबसे मà¥à¤¶à¥à¤•िल à¤à¤¾à¤— माना जाता है। घने जंगलों से होकर है यह रासà¥à¤¤à¤¾ और बीच में कहीं कहीं हरे-à¤à¤°à¥‡ बà¥à¤—à¥à¤¯à¤¾à¤² à¤à¥€ मिल जाते हैं।
लोहारखेत से धाकà¥à¤¡à¥€
à¤à¤• बजे खलीधार पहà¥à¤‚चे। यहां वन विà¤à¤¾à¤— का इको जोन के नाम से à¤à¤• कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ है। यहां से आगे जाने वालों को साठरà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ के हिसाब से à¤à¥à¤—तान करना होता है। बताया गया कि इस रसीद को समà¥à¤à¤¾à¤² कर रखना, रासà¥à¤¤à¥‡ में कोई अधिकारी à¤à¥€ देख सकता है। ना होने पर वापस लौटना पडेगा। सवा दो बजे à¤à¤£à¥à¤¡à¥€à¤§à¤¾à¤° पहà¥à¤‚चे। यहां चाय-पानी का इंतजाम है। à¤à¤• छोटा सा मनà¥à¤¦à¤¿à¤° à¤à¥€ है।
à¤à¤• बात और बता दूं कि सौंग से आगे कहीं à¤à¥€ बिजली की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ नहीं है। हमें कल à¤à¥€ पूरे दिन चलकर परसों दोपहर तक पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° के सामने पहà¥à¤‚चना था। यानी अगर हम अà¤à¥€ उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ होकर फोटो खींचते रहेंगे तो गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° तक पहà¥à¤‚चते पहà¥à¤‚चते कैमरे की बैटरी खतà¥à¤® हो जायेगी। इसलिये तय हà¥à¤† कि इधर के फोटो वापसी में खींचेंगे- अगर बैटरी बची रहेगी तो।
शाम को पौने छह बजे हम धाकà¥à¤¡à¥€ टॉप पर जा पहà¥à¤‚चे। इसकी ऊंचाई 2873 मीटर है। यहां से आगे ढलान शà¥à¤°à¥‚ हो जाता है और सामने नीचे दिखाई देती है पिणà¥à¤¡à¤° नदी। टॉप से कà¥à¤› नीचे 2680 मीटर की ऊंचाई पर धाकà¥à¤¡à¥€ कैमà¥à¤ª है जहां रहने-खाने का इंतजाम होता है। लोहारखेत से यहां तक छह घणà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ में हम बंगाली और देवा से इतने घà¥à¤²-मिल घये थे कि लग रहा था कि हम सà¤à¥€ à¤à¤• साथ ही आये हैं। यहीं पर हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® ने à¤à¥€ अपने ‘पॉरà¥à¤Ÿà¤°â€™ पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª से मोलà¤à¤¾à¤µ करके तय कर लिया कि रोजाना के ढाई सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ और खाना अलग से। हालांकि पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª तीन सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ मांग रहा था। इधर मैंने और अतà¥à¤² ने à¤à¥€ हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® से तय किया कि पॉरà¥à¤Ÿà¤° का खरà¥à¤šà¤¾ केवल हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® ही उठायेगा, बाद में तीन-तिहाई नहीं होगा।
यहां हमें मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ से आई दो महिलाà¤à¤‚ मिलीं। दोनों की उमà¥à¤° चालीस साल से ऊपर थीं और वे पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° से वापस आई थीं। वे पिछले साल रूपकà¥à¤£à¥à¤¡ की यातà¥à¤°à¤¾ पर à¤à¥€ गई थीं। उनके इस जजà¥à¤¬à¥‡ को जाट का सलाम!
यही हमने और बंगाली ने मिलकर à¤à¤• बडा सा कमरा ले लिया- पचास रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¥¤ दोनों गाइड à¤à¥€ इसमें ही सोये, अतिरिकà¥à¤¤ पलंग ना होने के कारण हालांकि वे नीचे जमीन पर ही सोये। पास में ही à¤à¤• ‘होटल’ था जहां चूलà¥à¤¹à¥‡ के सामने बैठकर रोटी, सबà¥à¤œà¥€ और आमलेट खाने में मजा आ गया। à¤à¤• बात और बता दूं कि जैसे जैसे आगे बढते जाते हैं तो सोने के दाम घटते हैं और खाने के बढते हैं।
अतà¥à¤² और नीरज सिंह (हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤®)
नीरज और नीरज (à¤à¤• जाट, दूसरा हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤®)
अतà¥à¤², बंगाली और गाइड देवा
शेष अगले à¤à¤¾à¤— में

नीरज भाई आपका पहला लेख यहाँ प्रकाशित हो गया है, आपको बधाई,
अब आप भी हमारे इस समूह में शामिल हो गये हो, शुभकामनाएँ,
यहाँ घुमक्कड.कॉम पर एक समस्या है कि यह प्रोफ़ाइल हिन्दी में स्वीकार नहीं करता है,
अत: इसे आंग्ल भाषा में ही करना होगा।
जिस तूफ़ानी गति से आपके लेख अपने ब्लॉग पर आते रहे है
आपसे आशा है कि यहाँ भी आपकी गति पर कोई फ़र्क नहीं पडने वाला है।
सन्दीप जी, बहुत बहुत धन्यवाद।
अब घुमक्कड.काम पर भी जाट एक्सप्रेस घुमक्कडी जिन्दाबाद करती रहेगी।
Hi Neeraj. I am agree with Sandeep, I have read your blog before and undoubtedly you travel more frequently than anyone else I know. Do you know the ‘Ravish Kumar’ from NDTV, he once wrote about your blog. If I’ll get chance to make travel show for my news channel I’ll definitely take you in one episode :-)
Amit
अमित जी, रवीश जी ने मेरे ब्लॉग के बारे में हिन्दुस्तान में दो बार लिखा है। एक बार आउटलुक में भी लिखा जा चुका है।
और मुझे बडी खुशी होगी, जब आपसे मिलना होगा और टीवी पर किसी एपीसोड में अपनी शक्ल दिखेगी। हा हा हा
नीरज जी,
आपका स्वागत है घुमक्कड़ पर. मुझे कई दिनों से आपके घुमक्कड़ पर आने का इंतज़ार था. मैं आपके ब्लॉग को नियमित रूप से पढता हुं तथा यह ब्लॉग मुझे बहुत पसंद भी है. आपने यहाँ आने से घुमक्कड़ में चार चाँद लग जायेंगे ऐसा मेरा विश्वास है. बस अब जल्दी से अपनी प्रोफाइल इंग्लिश में ट्रांसलेट करके डाल दीजिये. दूसरा मुझे यह बताएं की ये बुग्याल क्या होता है ?
आपकी यह पोस्ट भी बड़ी मनोरंजक थी तथा छायाचित्र भी मनमोहक थे. आशा है आप ऐसी ही एक से बढ़कर एक यात्रा विवरण यहाँ लेकर आयेंगे.
धन्यवाद.
मुकेश साहब,
बुग्याल जो है ना, वो एक गढवाली शब्द है जो कुमाऊं में भी बहुत बोला जाता है और हम जैसे तो हिमाचल तक जाकर बुग्याल बोल देते हैं। यह असल में घास का मैदान होता है। पहाड पर जब जाते हैं ना तो कभी कभी छोटे मैदान से लेकर बडे बडे मैदान तक मिल जाते हैं। इनमें अक्सर पेड नहीं होते और पहाडी ढलानों पर दूर दूर तक हरियाली की चादर बिछी होती है। बडा खूबसूरत सीन लगता है।
उत्तराखण्ड के कुछ बुग्याल हैं- पंवाली कांठा, दयारा बुग्याल, बेदिनी बुग्याल, चोपता आदि।
और अब तो मैं आ गया हूं। घुमक्कडी जिन्दाबाद होती ही रहेगी।
आपने जब मेरी सिक्किम यात्रा पर कमेंट दिया था तब मैने आपका ब्लॉग देखा था और आपकी अमरनाथ यात्रा का पूरा व्रित्त्न्त एक साथ पढ़ा था. तब सोचा था जब जवाब दूँगी तो आपसे घुमक्कर पर प्रकाशित करने का निवेदन करूँगी. विचार को कर्म मे बदलने मे विलंब हुआ. आज आपकी पोस्ट प्रकाशित देखकर प्रसन्नता हुई. स्वागत है आपका.
जयश्री जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आपको घुमक्कड . काम के बारे में पहले ही बता देना चाहिये था।
नीरज जी, घुमक्कड़.कॉम पर आपका स्वागत है. पिंडारी ग्लेशियर हमारी लिस्ट पर भी काफी समय से है, पर कभी हिम्मत नहीं दिखा पाए. आपके इस रोमांचक लेख को पढ़ के प्रेरित हो जाएँ शायद. बहुत ही बढ़िया लिखा है, वो तो है ही; और आने वाले भागों में होने वाले कारनामो का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा.
स्मिता जी,
पिण्डारी नाम सुनने में बडा भयानक सा लगता है। यह तो एक बेहद आसान ट्रेकिंग है। यह रूट टी हाउस ट्रेकिंग रूट है। टी हाउस का मतलब है कि रास्ते भर आपको खाने और लोटने में कोई परेशानी नहीं होती। जाना इस बार मौका मिलते ही।
और आपकी केदारनाथ यात्रा…….क्या कहूँ मीरा की दीवानगी या बुल्लेशह का जुनून.
नीरज जी,
घुमक्कड़ . कॉम पर आपका स्वागत है !
Nice Post & Pic….
अरे रितेश भाई, आप भी यहां पहले से विराजमान हैं।
हां जी नीरज भाई.. और चार लेख भी पोस्ट कर चूका हू..
Welcome to the Ghumakkar!
Very well written post. Give my Regards to Haldi Ram :)
Waiting for futher parts.
धन्यवाद विनय साहब,
हल्दीराम तक आपकी बात जरूर पहुंचा देंगे।
Waiting anxiously for next part
नीरज भाई हल्दीराम भी आ रहा है साँपला ब्लॉगर मीट में मिलने।
पवाँली काँठा के दर्शन करने हो तो मेरी गौमुख से केदारनाथ वाली पोस्ट देख ले भाग 3 में मिल जायेगा।
सबसे जरुरी बात छोड कर कमैन्ट का जवाब देना शुरु कर दिया अरे भाई पहले अपनी प्रोफ़ाइल से ????????? हटाने का प्रबन्ध करो।
हटा दिया भाई हटा दिया।
और हल्दीराम कतई पक्का बेशर्म इंसान है। जितनी ‘तारीफ’ मैंने उसकी करी है, उस हिसाब से तो उसे डूब कर मर जाना चाहिये था। कौन सा मुंह लेकर वो सांपला आ रहा है?
नीरज जी,
एक बात समझ में नहीं आई. अगर आप रेलवे इम्प्लाई हैं तो आपको तो टिकिट लगना नहीं चाहिए फिर आप किस टिकिट तथा जुर्माने की बात कर रहे हैं.
धन्यवाद.
मुकेश जी,
मैं रेलवे में एम्प्लाई नहीं हूं। मैं दिल्ली मेट्रो में कार्यरत हूं और मेट्रो वालों को भारतीय रेल में यात्रा करने पर कोई लाभ नहीं मिलता। इसलिये मुझे टिकट लेना होता है।
नीरज, घुमक्कड़ पर शानदार स्वागत | आपकी शुरुआत एक अत्यंत प्रेरणादायक लेख से हो रही है | हम लोग उत्तराखंड काफी जाते है, भीमताल / सातताल की ओर अक्सर, और पिंडारी के बारे में बहुत सुनने को मिलता है. आपके साथ कम से कम एक आधी-अधूरी यात्रा तो हमारी भी हो जायेगी |
अगले क्रम के इंतज़ार में
नंदन जी,
आप कभी भीमताल से आगे निकलने की सोचिये। एक ना एक दिन आप पिण्डारी भी पहुंच जायेंगे।
बुग्याल के बारे में कुछ शब्द – हालांकि इसे बुग्याल घास कहते हैं परन्तु ये घास नहीं बल्कि एक छोटा पौधा होता है, जिसके पत्ते घने होते है. इसकी उचाइ2-3 इच ही अधिकतम होती है तथा चलने पर यह पैरों को कारपेट जैसा लगता है. यह पौधा केवल 3000 से 4500 मी. की उचाइ पर मिलता है. यह काफी नाजुक होता है तथा अधिक चलने पर नष्ट हो जाता है. इसमें कुछ छोटे-2 फूल भी लगते है.
संसार में केवल उत्तराखंड , स्विटजरलैंड तथा कुछ एलपाईन पहाड़ों पर पाया जाता है.
हिमाचल तथा कशमीर में हांलाकि काफी ऊची चोटियां है, पर वहां यह नहीं देखा गया
मौन आत्मा जी,
आपने बहुत ही अच्छे तरीके से बुग्याल के बारे में जानकारी दी. आपका आभार.
धन्यवाद.
वाह नीरज भाई आप घुमक्कड पर भी हैं . खुशी हुई की ब्लॉग जगत में तहलका मचाने के बाद आप यहाँ भी तहलका मचाने वाले हैं. भाई एक बात तो कहूँगा अब तक की जिंदगी में मैंने आपसे बड़ा घुमक्कड़ नहीं देखा, अगर आप राहुल सांस्कृत्यायन के समय के होते तो वो आपके ऊपर एक किताब जरुर लिखते :)
आपका ब्लॉग पढ़े हुए कई दिन हो गए , आज चलकर देखता हूँ की क्या नया है वहाँ पर .
मैं तो आपका और आदरणीय भालसे जी का फैन हो गया हूँ घुमक्कडी के मामले में. क्योकि आप लोगों के माध्यम से ही मै घर बैठे पूरा भारत घूम लेता हूँ .
सतत लेखन के लिए शुभकामनाएँ
आशीष मिश्रा
http://mishrasarovar.blogspot.com/
Bahut badhiya neeraj bhai.
Aapke jazbe ko salaam
हम आप और संदीप जी के अभारी रहेंगे जीनोने हमारे देवेभुमि की सुंदरता पर चार चाँद लगा दिए. आप के ब्लॉग में मेने चंद्रबादानी मंदिर के बारे में पढ़ा , मेरा विलेज इस के पास ही है | बुग्याल के बारे में शांत आत्मा जी ने सई फरमाया| स्थानीय लोगों चारे के रूप में भी प्रायौग करते हैं| सबसे अधिक प्रसिद्द हैं उनमें बेदनी बुग्याल , चोपता, औली, और हर की दून |
Rashtra bhasha pathne mein asamarth hone ki vaje se chithr dekhkar santusht hona pada mujhe.
Wish you would write in English on such wonderful treks.
Wonderful Trek. Pictures are indeed worth a thousand words.
ek baat beri anokhi lagi yaar tum ne itni choti si umer m itna jayada kse ghum leta h time kese lagta h tumra m to choch ki ckker aagaya jab mujhe net surfing kerte kerte tera bog mila maja aagya koi to h jo gumked h i like yaar tumri yaatra mangal mai ho aage bhi ese hi gumo yaar god bless u m abhi naya hoo yaar net ke baare m koi gayan bhi nhi h lakin ab m her roj tery yatra hi padhta rehta hoon
maja aareha h m coments deta rehoonga abhi m naya hoo pata nhi ye comment aap tak phoonch bhi payaga ki nhi m nhi jaanta hoo ager koi galti ho to im realy soory yaar gumkedd tumra : chaane wala joginder attri
ilove u aall blog nice ur blog kaffi sikhsha mil rehi h mr neeraj ji waaooooooooooooooooo. joginder2747@gmail.com