मित्रों, पिछली पोस्ट में मैने प्रयास किया था कि आपको आपके कैमरे के बारे में कुछ उपयोगी जानकारी दे सकूं। कैमरे में शटर व एपरचर कंट्रोल के बारे में आपको बताया था कि विभिन्न सेटिंग्स के द्वारा हम exposure को तो नियंत्रित कर ही सकते हैं साथ ही, अपने चित्रों में अलग अलग इफेक्ट्स भी पैदा कर सकते हैं। जैसे शटर के समय को बहुत कम करके हम movement को freeze कर सकते हैं, वहीं शटर का समय बढ़ा कर हम रात्रि में नयनाभिराम चित्र ले सकते हैं या movement को graphically दिखा सकते हैं। इसी प्रकार एपरचर को कम या ज्यादा करके भी हम यह निर्धारित कर सकते हैं कि हमारे चित्र में क्या और कितना शार्प फोकस में आयेगा। इस बार के लिये आपसे वायदा था कि आपको यह बताऊंगा कि एक फोटो आर्टिस्ट के लिये प्रकाश की क्या महत्ता है। तो, शुरु करें?
यह तो आपने सुना ही होगा कि Photography दो शब्दों से मिल कर बना है – Photo = प्रकाश और graphy = recording / अंकन । मतलब ये कि प्रकाश के अंकन को ही फोटोग्राफी कहते हैं। हम मनुष्यों के लिये प्रकाश electromagnetic spectrum का वह छोटा सा भाग है जिसे हम अपनी आंखों से देख पाते हैं। electromagnetic spectrum परिवार की सदस्य अन्य किरणें ये हैं – Alpha rays, gamma rays, X-rays, ultra-violet rays, infra-red rays, radar rays और radio rays । X-Rays का उपयोग करके हमारे चिकित्सक हमारे शरीर के आन्तरिक कल-पुर्ज़ों का (I mean, internal organs का) चित्र लेते हैं क्योंकि x-rays हमारी त्वचा के आर-पार निकल जाती हैं। Ultra-violet rays काम-बिगाड़ू किरणें हैं जो हमारे चित्रों की स्पष्टता को (clarity) को कम करने के काम आती हैं! ये किरणें सर्दियों में और पहाड़ों पर अधिक पाई जाती हैं और atmospheric haze के लिये जिम्मेदार मानी जाती हैं। हमारी आंखें इन किरणों को नहीं देख पातीं पर हमारा कैमरा देख लेता है। इन किरणों से अपनी फोटो की रक्षा के लिये हम अपने कैमरे की लेंस पर अल्ट्रा वायलेट फिल्टर ठीक वैसे ही लगा लेते हैं जैसे मि. इंडिया फिल्म में अनिल कपूर एक स्पेशल चश्मा लगाया करता था।
इंफ्रा रेड (infra-red rays) किरणों का जहां तक संबंध है, ये heat waves हैं जो लाल रंग के प्रकाश में काफी अधिक पायी जाती हैं। अक्सर डॉक्टर लोग हमारे शरीर की सिकाई के लिये जिस लाल रंग के infra-red lamp का उपयोग करते देखे जाते हैं, वह इन किरणों को ही concentrated form में हमारे शरीर पर फेंकता है। आजकल पता नहीं आती हैं या नहीं, पर पहले infra-red films बाज़ार में मिलती थीं जिन पर हम अंधेरे में भी चित्र अंकित कर सकते थे। ये फिल्में गर्म वातावरण में मौजूद infra-red rays से प्रभावित होती थीं यानि expose हो जाती थीं। इन फिल्मों को प्रयोग करना होता था तो कैमरे की लेंस पर भी गहरे लाल रंग का कांच का फिल्टर फिट कर लिया जाता था ताकि सामान्य प्रकाश फिल्म तक न पहुंच सके। धरती के गर्भ में कहां – क्या खनिज आदि छिपे हुए हैं, यह जांच – पड़ताल करने के लिये वैज्ञानिक इन किरणों का प्रयोग करते हैं। राडार और रेडियो वेव्ज़ का फोटोग्राफी में संभवतः कोई उपयोग नहीं होता है। फिल्हाल आम घुमक्कड़ के रूप में हमारा मुख्यतः प्रकाश किरणों से ही लेना देना है, अतः उन तक ही हम सीमित रहें तो ठीक है।
प्रकाश का सबसे सस्ता, सुन्दर और टिकाऊ स्रोत हमारे सूर्य देवता ही हैं। चंदा मामा जो खुद भी सूर्य देवता से उधार लिये हुए प्रकाश से काम चलाते हैं, फोटोग्राफर के लिये ज्यादा उपयोगी नहीं हैं क्योंकि वह भरोसेमंद इंसान नहीं हैं – कभी हैं, कभी गायब हो जाते हैं। जिस दिन होते हैं, उस दिन भी इतना प्रकाश हमें नहीं दे पाते कि ढंग की फोटो खींच सकें, अतः उनके भरोसे न रहना ही ठीक है। उनको धरती को प्रकाश देने से कहीं अधिक अपनी खुद की फोटो खिंचवाना, अपने बारे में कवितायें और गीत लिखवाना ज्यादा भाता है। हमने सुना तो यहां तक है कि चंदा मामा बहुत सारे लोगों के पागलपन का भी कारण बन जाते हैं अतः हम फोटोग्राफर लोग उनकी फोटो खींचते रहें तो ही ठीक है। आपको पता ही होगा कि Luna से Lunar और Lunatic शब्द बने हैं।
अगला नंबर आता है अग्नि देवता का। कोई जमाना था जब आराधना फिल्म में ’रूप तेरा मस्ताना’ गीत में अग्नि के प्रकाश को रोमांटिक मूड के लिये उपयोग किया गया था, आजकल एकता कपूर अपने धारावाहिकों में भयंकर रोमांटिक दृश्य देने के लिये खूब सारी मोमबत्तियां लगाया करती है। कैंडिल लाइट डिनर का भी लोगों में बड़ा क्रेज़ है। ’मेरा गांव – मेरा देश’ और उस जैसी अनेकानेक हिन्दी फिल्मों में फिल्म में डाकू लोग बीहड़ में, गुफाओं में मशाल जला कर रहते थे क्योंकि मध्य प्रदेश सरकार ने उनको बिजली के कनेक्शन देने से मना कर दिया था। कैंप-फायर और श्मशान आदि के दृश्यों में भी अग्नि के प्रकाश में फोटोग्राफी की जाती है। लब्बो-लुबाब ये कि आप मोमबत्ती के प्रकाश में कुछ रोमांटिक फोटो ले सकते हैं परन्तु इससे आगे जाकर प्रकाश के इस स्रोत का भी कुछ विशेष उपयोग नहीं है। हां, इतना अवश्य है कि जो लोग अग्नि से मिलने वाले प्रकाश का कलात्मक उपयोग करना जानते हैं, उनके लिये इस स्वर्णिम आभा युक्त प्रकाश से बढ़कर और कुछ नहीं है। पर छोड़िये, और भी ग़म हैं जमाने में मुहब्बत के सिवा!
फोटोग्राफी को अपने जीविका का माध्यम बनाने वाले सभी फोटोग्राफर प्रकाश के जिस स्रोत पर सर्वाधिक निर्भर करते हैं – वह है – फ्लैशलाइट । उनका तो कहना है – “फ्लैशलाइट में गुण बहुत हैं, सदा राखिये संग”। बात सही भी है, प्रकाश की output का जहां तक संबंध है, फ्लैशलाइट गागर में सागर भर देती है। कैमरे पर फिट की गई नन्हीं सी फ्लैशलाइट सैकेंड के दस हज़ारवें हिस्से में ही कमरे में इतना प्रकाश भर देती है जितना प्रकाश आप १००-१०० वाट के पचास बल्ब जला कर भी प्राप्त नहीं कर सकते। लगभग दो दशकों से फोटोग्राफी स्टूडियो में भी फोटो फ्लड लैंप का स्थान फ्लैश लाइट ले चुकी है। स्टैंड पर लगी हुई बड़ी बड़ी लाइटें और सफेद छतरियां आपने देखी ही होंगी।
रंगीन चित्र लेने के लिये प्रकाश का रंग बहुत महत्वपूर्ण तत्व है जिसकी श्वेतश्याम फोटोग्राफी के दिनों में कोई महत्ता नहीं थी। दोपहर में सूर्य का प्रकाश और हमारे कैमरे के साथ इस्तेमाल होने वाली फ्लैश लाइट से मिलने वाला प्रकाश लगभग एक जैसे रंग का होता है – यानि सफेद ! फोटोग्राफी की दुनिया में प्रकाश के रंग को जांचने के लिये एक यंत्र इस्तेमाल होता है – colour temperture meter! Colour temperature से पता चलता है कि प्रकाश का रंग क्या है। सूर्य को ही लें – सूर्योदय के समय स्वर्णिम आभा लिये हुए सूर्य देवता जब हमें दर्शन देते हैं तो मीटर शायद बतायेगा – 1900o केल्विन! लगभग यही रंग हमें मोमबत्ती के प्रकाश में भी मिलता है। जैसे – जैसे सूर्य देवता आकाश में ऊपर की ओर जाते हैं, colour temperature भी बढ़ता चला जाता है और दोपहर में लगभग 5500o केल्विन colour temperature पाया जाता है। सूर्यास्त के समय पुनः रंग स्वर्णिम होने लगता है और 1900० kelvin तक पहुंच जाता है।
इस प्रक्रिया को समझना हो तो एक उदाहरण दिया जा सकता है। आप लोहे का एक सरिया लेकर उसका एक सिरा हलवाई की भट्टी या अपने घर में गैस के चूल्हे पर रखें। जो हिस्सा आग में है, उसका रंग बदलता हुआ दिखाई देगा! है न? पहले लाल होना शुरु होगा, फिर तापमान बढ़ेगा तो पीलापन आयेगा, और गर्म किया जायेगा तो white hot हो जायेगा। बस, केल्विन यूनिट का यही सिद्धान्त है।
हमारा डिजिटल कैमरा इस अर्थ में हमारे लिये एक वरदान है कि इसमें auto white balance की व्यवस्था की गई है, यानि प्रकाश का स्रोत कितने भी केल्विन डिग्री का प्रकाश दे, कैमरा उसे ठीक करने का प्रयास करता है। auto white balance के अतिरिक्त Shade, Fluorescent, Cloud, bulb आदि मोड भी कैमरे में पाये जाते हैं । जो फोटोग्राफर इस मामले में बहुत अधिक सचेत हैं, वह pre-set मोड का इस्तेमाल करके प्रकाश के अनुरूप सैटिंग कर लेते हैं। इस बारे में विस्तार से बताया जा सकता है, यदि आप चाहेंगे तो !
इससे अगले अंक में आपको प्रकाश के कुछ ऐसे गुणों के बारे में भी थोड़ी जानकारी देने का प्रयास करूंगा – जैसे – direction, intensity, contrast आदि जो हमारी फोटो को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं। तब तक के लिये प्रणाम !
technical details presented in a simple and humorous way.
tks SS sahib
Good information Sushant Ji.
Useful for everyone.
Good Informaiton, thanks.
Good information for novices like me.
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Sushant ji.. tell me if we change the shutter time, the aperture changes automatically, and vice-versa. Is there a way that we can control both shutter speed and aperture ? this is required to shoot snow fall fotos, which become all white if I increase the shutter timing ?
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Dear SS,
As I explained earlier, a good modern digital camera is often equipped with these 4 modes:
P – (Program Mode). Here, if you change the shutter, aperture changes automatically, so the amount of light reaching the sensor remains the same.
A – (Aperture Mode) Here, you have the liberty to choose an aperture of your liking and the camera selects suitable shutter speed automatically, if possible. However, if the camera is choosing a shutter speed less than 1/30 seconds, there is the fear of camera shake and resultant blurred pictures. This would happen if the light is very low / aperture chosen by you is very small.
S – (Shutter Mode) Here, predictably, you have the freedom to choose the shutter speed of your choice and the camera will make necessary adjustments in the aperture to maintain correct exposure.
All the above three modes are AUTO EXPOSURE MODES because correct exposure is being maintained by the camera. But there is the 4th mode also :
M – (Manual Mode) : Here, the camera doesn’t make any adjustments in exposure. You are fully at liberty to decide both – aperture as well as shutter speed. However, modern cameras will indicate for your benefit if your selections are appropriate or not. The electronic meter tells you if the picture will be over-exposed or under-exposed. In my camera, the meter tells me how far I am from the correct exposure and to which side – over / under.
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These 4 things you just repeated… my Q is still unanswered… CAN WE adjust the shutter speed and aperture to our wish ? I tired with M mode but it does not work.. and I have quite latest camera… so something wrong with me ? or camera ?
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Hello Sushant ji,
Very nice information.
Itne technical details padhte padhte bhi chehre pe smile aa rahi hai.Matlab lihne wale ne kya badhiya likha hai.
Thanks for sharing details with us.
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Thanks Sushant ji for such a nice reply. :)
I was waiting for this for a long time and this will help a lot to all those aspiring photographers.
Controlling light is one of the key for any good photographs, if not the best…you require these tips every time.
‘ll wait for the next.
Thank you Amitava for the appreciation. Next episode is going to be more important and you won’t have to wait much for that.
Hi Sushant Ji!
Very informative and useful post. Not only for ghumakkars but in general for all the folks who carry cameras.
Will be very helpful for my Leh & Laddak trip.
Thank you Sodha Ji for the appreciation. I feel happy to be of some service to the ghumakkar friends.
Hi Sushantji,
Paan Singh Tomar says Bihad Mein Baaghi Hote Hain, Daku hote hain Parliament Mein! Yes, they refused to pay the electricity bills so the authorities disconnected their electricity.
I have really been harassed by these UV rays. The problem is I cannot plan my visit to a monument depending on the sun’s direction. Once I had gone to Purana Qila and tried to photograph the Qila-i-Kuhna with the sun unfortunately shining directly into the lens. The Scene mode Backlight Correction mode was of no help. That really bothered me and then one fine morning on an office day I took off for Purana Qila again. I had calculated the sun angle. This time the sun was behind me. And I got some awesome photos that morning. The problem, with Purana Qila is that all structures are placed in different directions. So either you spend entire day photographing the different gates according to the sun direction or hope for the best.
I plan to go again there in the evening to shoot Humayun Gate and as per Nandan’s recommendation watch the Sound and Light Show!
But I am still struggling with light problem in my current tour in North Karnataka. Maybe if you can help with the settings in the manual mode of my camera. I normally use the auto mode and the Backlight Correction mode in scenes.
It was great fun reading the post. Welcome Back!
Dear Nirdesh,
I had read your comment on my mobile and wanted to reply while on my PC but then it slipped out of my mind. Hope you don’t mind much.
There are different issues which you have discussed.
Against light shots : When the sun is directly in front of you and is shining into your camera’s lens. Professional photographers use deeply recessed lens hoods to avoid unnecessary rays from striking the lens. If you don’t have the lens hood, you can ‘hide’ your camera behind someone – a person, a tree or any other opaque thing so that you can see your scene but the sun cannot see your camera.
Back light compensation : In against light shots, the front of the subject which is being illuminated from back, often comes out dark. Back light compensation button in the camera tries to solve this problem by increasing the exposure so that face of the person / building won’t be rendered dark. But obviously, this increase in exposure also affects back lit portion of the scene but it is rarely much of a problem.
Supplemental illumination : Professional photographers while shooting backlighted scene arrange for frontal illumination through flash light or some large reflector which throws back sunlight into the scene. Backlight is still stronger than the frontal illumination but the faces come out with very pleasing skin tones.
Large buildings / structures : Large buildings like those in Purana Qila cannot get sufficient frontal supplementary illumination from flash because of their size and distance from the source of light. If you are getting dark fronts, you have to either increase the exposure or have to wait for the more suitable sun light.
:)
everyone who buys new camera thinks, now they become a photographer, but becoming a good photographer one should learn these technical tips, great article thanks