दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚,
पिछली पोसà¥à¤Ÿ में आपने पà¥à¤¾ की आगरा में मैं, रितेश गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी à¤à¤µà¤‚ जाट देवता à¤à¤µà¤‚ हम सबके परिवार इकटà¥à¤ ा हो गठथे तथा हम सब साथ में ताज महल तथा आगरा का लाल किला देखने गठथे। लाल किला देखने तथा वहां सबके साथ में बड़ा अचà¥à¤›à¤¾ समय वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ करने के बाद सब अलग अलग हो गà¤à¥¤ जाट देवता को मथà¥à¤°à¤¾ घà¥à¤®à¤¨à¥‡ जाना था अतः वे अपने परिवार के साथ मथà¥à¤°à¤¾ चले गठऔर हम लोग रितेश जी के घर से अपना सामान लेकर तथा रात का खाना खा कर आगरा फोरà¥à¤Ÿ रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पहà¥à¤à¤š गठजहाठसे हमें रात नौ बजे वाराणसी के लिठमरà¥à¤§à¤° à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ पकडनी थी। कहानी को आगे बढाने से पहले आइये हम सब à¤à¤• साथ करते हैं काशी के à¤à¤—वान विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ के दरà¥à¤¶à¤¨ ………… जय à¤à¥‹à¤²à¥‡à¥¤
अपनी आदत के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मैं अपने परिजनों के साथ आगरा फोरà¥à¤Ÿ रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ टà¥à¤°à¥‡à¤¨ के समय से करीब à¤à¤• घंटा पहले पहà¥à¤à¤š गया था। आम तौर पर मेरी ये कोशिश रहती है की टà¥à¤°à¥‡à¤¨ के समय से कम से कम à¤à¤• घंटा पहले पहà¥à¤à¤š जाया जाठतो किसी पà¥à¤°à¤•ार का जोखिम तथा हड़बड़ी नहीं रहती है। रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर आने के थोड़ी ही देर बाद मैं थोडा उदास हो गया और मेरे चेहरे पर à¤à¤• अजीब सा डर वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो गया था, यह उदासी तथा चिंता मेरे चेहरे पर सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ रूप से दिखाई दे रही थी जिसे कविता ने बड़ी आसानी से à¤à¤¾à¤‚प लिया और मà¥à¤à¤¸à¥‡ पूछने लगी की कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤† आप इतने उदास कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ दिखाई दे रहे हैं?
मैंने कहा की à¤à¤—वान की दया से यहाठतक का सफ़र तो बड़े मजे तथा आराम से बीत गया लेकिन आगे वाराणसी के बारे में सोचकर परेशान हो रहा हूà¤à¥¤ दरअसल हमेशा की तरह इस टूर पर निकलने से पहले à¤à¥€ मैंने हर à¤à¤• जगह की पà¥à¤–à¥à¤¤à¤¾ जानकारी लेने के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से खूब नेट को खंगाला था और दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ से à¤à¥€ बात की थी, इस सारी खोजबीन का नतीजा यह निकला की वाराणसी के बारे में मेरे दिल में à¤à¤• अनजाना सा à¤à¤¯ बैठगया था। वाराणसी के बारे में हर जगह यह पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¤ किया गया है की यहाठलूट खसोट, पॉकेट मारी, ठगी, चोरी, महंगाई, महिलाओं के साथ छेड़खानी तथा बदसलूकी आदि बहà¥à¤¤ आम बात है, अतः मैं बà¥à¤°à¥€ तरह से डर गया था।
मà¥à¤à¥‡ परेशान देखकर कविता ने मà¥à¤à¥‡ समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ की हम लोग बाबा विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ की नगरी में उनके पावन दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठजा रहे हैं अतः वे ही हमारा धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखेंगे, आप सिरà¥à¤« à¤à¥‹à¤²à¥‡ बाबा पर à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ रखो और सारी चिंता छोड़ दो, हमारे साथ कà¥à¤› à¤à¥€ बà¥à¤°à¤¾ नहीं होगा मà¥à¤à¥‡ पूरा विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ हैं।
कविता की इस समà¤à¤¾à¤‡à¤¶ का मà¥à¤ पर असर हà¥à¤† और मेरी चिंता काफी हद तक कम हो गई, लेकिन फिर à¤à¥€ मैं सà¤à¥€ को बार बार हिदायतें दिठजा रहा था की सब लोग सामान संà¤à¤¾à¤² कर रखना, पैसे, जà¥à¤µà¥‡à¤²à¤°à¥€ आदि का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखना तथा बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की ऊà¤à¤—ली पकड़ कर ही चलना।
लेकिन आपलोग यकीन मानिठहम लोग वाराणसी में ढाई दिन रहे लेकिन हमारे साथ à¤à¤¸à¥€ कोई à¤à¥€ अपà¥à¤°à¤¿à¤¯ घटना नहीं घटी जिससे हमें थोड़ी सी à¤à¥€ परेशानी उठानी पड़ी हो, बलà¥à¤•ि सोमनाथ / दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के बाद यह हमारा अब तक का सबसे अचà¥à¤›à¤¾ तथा यादगार टूर रहा। आज à¤à¥€ हम वाराणसी में बिताये à¤à¤• à¤à¤• पल को याद करते हैं तथा खà¥à¤¶ होते हैं। अगर मैं मथà¥à¤°à¤¾ तथा वाराणसी की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ करूठतो मà¥à¤à¥‡ मथà¥à¤°à¤¾ से हर मायने में हर कसौटी पर वाराणसी बेहतर लगा। मथà¥à¤°à¤¾ में खाने के लिठअचà¥à¤›à¥‡ होटल की परेशानी, बेतहाशा महंगाई, वेन वाले से पंगा, वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ के कà¥à¤› महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ मंदिर न देख पाने का दà¥à¤ƒà¤–, गाइड की बेरà¥à¤–ी तथा उसके बीच में छोड़ कर चले जाना जैसी कà¥à¤› घटनाओं से मन कसैला हो गया था।
लेकिन वाराणसी में चालीस रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में अचà¥à¤›à¥€ कà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤Ÿà¥€ का खाना, दो रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में चाय, तीन रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ का समोसा, दस रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में साईकिल रिकà¥à¤¶à¤¾ से तीन से चार किलोमीटर का सफ़र, चार सौ से पांच सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥€ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं से यà¥à¤•à¥à¤¤ आवास, पांच सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में चार-पांच घंटे की नाव से सवारी तथा सारे घाटों के दरà¥à¤¶à¤¨ तथा नाव से ही गंगा आरती दरà¥à¤¶à¤¨, साà¥à¥‡ तीन सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में ऑटो रिकà¥à¤¶à¤¾ से वाराणसी के सारे मà¥à¤–à¥à¤¯ मंदिरों के दरà¥à¤¶à¤¨ ………….और कà¥à¤¯à¤¾ चाहिठ?
खैर, आगरा रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर हमारी टà¥à¤°à¥‡à¤¨ नियत समय पर आ गई तथा हम सब अपनी अपनी बरà¥à¤¥ पर पहà¥à¤à¤š कर आराम करने लगे। चूà¤à¤•ि थके हà¥à¤ थे अतः जलà¥à¤¦ ही नींद ने हम सबको अपनी आगोश में ले लिया, सà¥à¤¬à¤¹ जब 6 बजे नींद खà¥à¤²à¥€ तो हम वाराणसी पहà¥à¤à¤š चà¥à¤•े थे।
जैसे ही हम सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर उतरे à¤à¤• टैकà¥à¤¸à¥€ वाले ने हमें लपक लिया, जिसकी हमें à¤à¥€ दरकार थी अतः बिना कà¥à¤› कहे सà¥à¤¨à¥‡ हम सब टैकà¥à¤¸à¥€ में सवार हो गà¤à¥¤ मैंने चूà¤à¤•ि इनà¥à¤Ÿà¤°à¤¨à¥‡à¤Ÿ से à¤à¤• होटल गदौलिया कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में ढूंà¥à¤•र फ़ोन से दो कमरे बà¥à¤• कर लिठथे लेकिन मथà¥à¤°à¤¾ की ही तरह उसका पेमेंट नहीं किया था अतः मेरे पास ये आपà¥à¤¶à¤¨ था की अगर ये होटल पसंद नहीं आया तो दूसरा ढूंॠलेंगे। मैंने टैकà¥à¤¸à¥€ वाले से उस होटल का पता बता दिया तथा उसे सबसे पहले वहीठले चलने का आदेश दिया।
लेकिन यहाठà¤à¥€ वही मथà¥à¤°à¤¾ वाला किसà¥à¤¸à¤¾ ही हà¥à¤†, मà¥à¤à¥‡ यह होटल बिलकà¥à¤² à¤à¥€ पसंद नहीं आया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह गोदौलिया की बहà¥à¤¤ संकरी गलियों में था, अगर à¤à¤• बार इंसान किसी काम से बाहर जाठतो दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ अपने होटल तक पहà¥à¤‚चना बहà¥à¤¤ मà¥à¤¶à¥à¤•िल हो। अतः मैंने इस होटल का ख़याल छोड़ दिया तथा टैकà¥à¤¸à¥€ वाले को किसी और होटल में ले चलने को कहा।
कà¥à¤› देर की मशकà¥à¤•त के बाद हमें अपनी पसंद का à¤à¤• गेसà¥à¤Ÿ हाउस शिवाला à¤à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ में मिल गया होटल का नाम था à¤à¤® के पी गेसà¥à¤Ÿ हाउस और ये असà¥à¤¸à¥€ घाट शिवाला घाट तथा जैन घाट के नजदीक सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ था तथा काशी विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ से करीब चार किलोमीटर की दà¥à¤°à¥€ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ था। यहाठहमने चार सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की दर से दो कमरे लिये, à¤à¤• में हमलोग तथा दà¥à¤¸à¤°à¥‡ में सास ससà¥à¤° जी ठहर गये। कमरों में आधारà¤à¥‚त सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ उपलबà¥à¤§ थीं जैसे अटैचà¥à¤¡ लेट बाथ, गरम पानी, हवादार तथा बड़े कमरे।
वाराणसी में हमें लगà¤à¤— ढाई दिन रà¥à¤•ना था 24, 25 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर तथा 26 को दोपहर को हमारी टà¥à¤°à¥‡à¤¨ थी इंदौर के लिठ(पटना इंदौर à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸) अतः हमारे पास वाराणसी के बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥‡ से दरà¥à¤¶à¤¨ करने के लिठपरà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ समय था। नहाने धोने, तथा थोडा आराम करने के बाद अब हमारा पà¥à¤²à¤¾à¤¨ था सबसे पहले बाबा विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ के दरà¥à¤¶à¤¨ करने का, सो हम करीब बारह बजे तैयार होकर होटल से बाहर आ गठतथा दो साइकिल रिकà¥à¤¶à¤¾ करके à¤à¤—वान विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठनिकल पड़े।
यहाठà¤à¤• बात मैंने देखी की वाराणसी में मानव चालित साइकिल रिकà¥à¤¶à¥‡ बहà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¤¤ में चलते हैं। पूरा शहर इन साइकिल रिकà¥à¤¶à¥‹à¤‚ से अटा पड़ा दिखाई देता है। मà¥à¤à¥‡ इन साइकिल रिकà¥à¤¶à¥‹à¤‚ में सवारी करना बिलकà¥à¤² à¤à¥€ पसंद नहीं है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि मैं जब à¤à¥€ इन रिकà¥à¤¶à¤¾ चालकों का पसीने से तरबतर कंकाल की तरह शरीर, धौंकनी की तरह चलती साà¤à¤¸à¥‡ तथा अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• शà¥à¤°à¤® से बदहवास सा चेहरा देखता हूठतो मà¥à¤à¥‡ इनसे सहानà¥à¤à¥‚ति हो जाती है तथा मैं अपराध बोध से गà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¤ हो जाता हूà¤à¥¤ मà¥à¤à¥‡ लगता है की इन पर जà¥à¤²à¥à¤® करने के पाप का à¤à¤¾à¤—ीदारी मैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ बनूà¤? अतः मैंने यहाठà¤à¥€ इस साइकिल रिकà¥à¤¶à¤¾ में बैठने से पहले मना कर दिया था, लेकिन जब कविता ने कहा की यही इनकी रोजी रोटी है तथा रोज़गार का à¤à¤•मातà¥à¤° सहारा है, इसी से इनका घर परिवार चलता है, अगर हम इनके साथ न बैठकर ऑटो रिकà¥à¤¶à¤¾ की सवारी करते हैं तो ये इन गरीब मेहनतकश लोगों के साथ नाइंसाफी होगी, तो हम इनके रिकà¥à¤¶à¤¾ में सवारी करके इन पर जà¥à¤²à¥à¤® नहीं कर रहे बलà¥à¤•ि इनको रोज़गार का अवसर दे रहे हैं, इनकी आजीविका में सहायता कर रहे हैं। कविता का तरà¥à¤• à¤à¥€ अपनी जगह सही था, अतः मैं साइकिल रिकà¥à¤¶à¤¾ में बैठगया। लेकिन फिर à¤à¥€ मैं संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ नहीं था, बलà¥à¤•ि आजतक मैं यह निरà¥à¤£à¤¯ नहीं ले पाया हूठकी मेरा सोचना सही है या कविता का? कà¥à¤¯à¤¾ आप बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤œà¥€à¤µà¥€ पाठक वरà¥à¤— मेरे इस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ का उतà¥à¤¤à¤° दे सकते हैं? तथा मेरे मन में चल रही इस गà¥à¤¤à¥à¤¥à¥€ को सà¥à¤²à¤à¤¾à¤¨à¥‡ में मेरी मदद कर सकते हैं यदि हाठतो मà¥à¤à¥‡ आपलोगों की टिपà¥à¤ªà¤£à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ का इंतज़ार रहेगा।
मैं साइकिल रिकशा में बैठतो गया था लेकिन जहाठà¤à¥€ थोड़ी सी चà¥à¤¾à¤ˆ आती मैं चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª निचे उतर जाता और पैदल चलने लगता, फोटोगà¥à¤°à¤¾à¤«à¥€ के बहाने से ही सही …………………..मà¥à¤à¥‡ तसलà¥à¤²à¥€ होती की रिकà¥à¤¶à¤¾à¤µà¤¾à¤²à¤¾ को कà¥à¤› देर के लिठही सही मेरे बोठसे निजात तो मिली।
कà¥à¤› बीस मिनट के सफ़र के बाद अब हम काशी विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ à¤à¤—वान के मंदिर के सिंहदà¥à¤µà¤¾à¤° के नजदीक पहà¥à¤à¤š गठथे। जैसे ही हम दà¥à¤µà¤¾à¤° के अनà¥à¤¦à¤° घà¥à¤¸à¥‡ वैसे ही à¤à¤• कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤¶à¤² तथा वाकॠपटॠपंडित जी ने हमें अपनी गिरफà¥à¤¤ में ले लिया और शीघà¥à¤° तथा बà¥à¤¿à¤¯à¤¾ दरà¥à¤¶à¤¨ तथा पूजा करवाने के लिठआशà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ किया, वैसे हम à¤à¥€ इस अवसर की तलाश में ही थे की कोई आये और हमें पकड़े, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हमें हर जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग मंदिर पर अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• जो करना होता है। आननॠफानन में पंडित जी ने हमारे जूते चपà¥à¤ªà¤² तथा अनà¥à¤¯ सामान पास ही की à¤à¤• फूल हार की दूकान पर रखवा दिया तथा पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ खरीदवा कर हमें अपना अनà¥à¤¸à¤°à¤£ करने का कहकर मंदिर की और बॠगà¤à¥¤
पंडित जी ने अपना वादा पूरा किया तथा कà¥à¤› ही मिनटों में हम à¤à¤—वान विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ के दरबार में उनके सामने खड़े थे। बड़ा ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° कà¥à¤·à¤£ था वह जब हमने पहली बार बाबा विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ के दरà¥à¤¶à¤¨ किये, मन आतà¥à¤®à¤µà¤¿à¤à¥‹à¤° हो गया à¤à¤¸à¤¾ लगा सदियों से मांगी कोई मà¥à¤°à¤¾à¤¦ पूरी हो गई हो। इस तरह हमारे नौ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों के दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥€ पà¥à¤°à¥‡ हà¥à¤à¥¤ और à¤à¤• विशेष बात यह थी की आज दशहरा à¤à¥€ था।
मूल काशी विशà¥â€à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ मंदिर बहà¥à¤¤ छोटा था। 18वीं शताबà¥â€à¤¦à¥€ में इंदौर की रानी अहिलà¥â€à¤¯à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ होलà¥â€à¤•र ने इसे à¤à¤µà¥â€à¤¯ रूप पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया। सिख राजा रंजीत सिंह ने 1835 ई. में इस मंदिर के शिखर को सोने से मढ़वाया था। इस कारण इस मंदिर का à¤à¤• अनà¥â€à¤¯ नाम गोलà¥â€à¤¡à¥‡à¤¨ टेमà¥â€à¤ªà¤² à¤à¥€ पड़ा। यह मंदिर कई बार धà¥â€à¤µà¤¸à¥â€à¤¤ हà¥à¤†à¥¤ वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में जो मंदिर है उसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ चौथी बार में हà¥à¤† है। 1585 ई. में बनारस के à¤à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ वà¥â€à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¥€ टोडरमल ने इस मंदिर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करवाया। 1669 ई. में इस मंदिर को औरंगजेब ने पà¥à¤¨: तोड़वा दिया। औरंगजेब ने à¤à¥€ इस मंदिर के धà¥â€à¤µà¤‚सावशेष पर à¤à¤• मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करवाया था जिसका नाम जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वापी मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ है तथा यह मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ आज à¤à¥€ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है तथा विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ मंदिर से à¤à¤•दम सटी हà¥à¤ˆ है ।
मूल मंदिर में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ नंदी बैल की मूरà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ का à¤à¤• टà¥à¤•ड़ा अà¤à¥€ à¤à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वापी मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ में दिखता है। इसी मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ के समीप à¤à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वापी कà¥à¤‚आ à¤à¥€ है। विशà¥â€à¤µà¤¾à¤¸ किया जाता है कि पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में इसे कà¥à¤à¤‚ से अà¤à¤¿à¤®à¥à¤•à¥â€à¤¤à¥‡à¤¶à¥â€à¤µà¤° मंदिर में पानी की आपूरà¥à¤¤à¤¿ होती थी। 1669 ई. में जब काशी विशà¥â€à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ के मंदिर को औरंगजेब दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ तोड़ा जा रहा था तब इस मंदिर में सà¥â€à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ विशà¥â€à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ की मूरà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ को इसी कà¥à¤à¤‚ में छिपा दिया गया था। जब वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ काशी विशà¥â€à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हà¥à¤† तब इस कà¥à¤‚ठसे मूरà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ को निकाल कर पà¥à¤¨: मंदिर में सà¥â€à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया गया। दशà¥â€à¤µà¤®à¥‡à¤¦à¥à¤¯ घाट से यह मंदिर आधे किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर चौबीस घणà¥â€à¤Ÿà¥‡ खà¥à¤²à¤¾ रहता है। (जानकारी साà¤à¤¾à¤°-http://bharatdiscovery.org/india/)
काशी विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ मंदिर दरà¥à¤¶à¤¨ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ हम सब मंदिर परिसर से बाहर आ गà¤à¥¤ बाहर आकर à¤à¤• घोड़ागाड़ी में बैठकर हम काल à¤à¥ˆà¤°à¤µ मंदिर की और चल पड़े। काशी में इन à¤à¤—वान काल à¤à¥ˆà¤°à¤µ के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ की बड़ी महिमा है, कहा जाता है की इनके दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के बिना काशी यातà¥à¤°à¤¾ अधूरी है। चूà¤à¤•ि अब शाम हो चà¥à¤•ी थी और हमने अगले दिन और काशी में रà¥à¤•ना था अतः समय की कोई कमी नहीं थी सो हमने आज के लिठबस इतना ही घà¥à¤®à¤¨à¥‡ का निशà¥à¤šà¤¯ किया और अब हमने थोड़ी थोड़ी à¤à¥‚ख à¤à¥€ लग रही थी अतः à¤à¤• अचà¥à¤›à¤¾ सा सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ देखकर हम सबने नाशà¥à¤¤à¤¾ किया और होटल के कमरे पर पहà¥à¤à¤š कर आराम करने लगे।
कविता के मन में à¤à¤• बार और à¤à¤—वान विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ के दरà¥à¤¶à¤¨ अचà¥à¤›à¥‡ से करने की उतà¥à¤•ंठा हो रही थी, à¤à¤¸à¥‡ मामले में मैं à¤à¥€ पीछे नहीं हटता सो हम दोनों ने निरà¥à¤£à¤¯ किया की हम दोनों ही à¤à¤• बार फिर से मंदिर जायेंगे, और बचà¥à¤šà¥‡ नाना नानी के साथ होटल में ही रà¥à¤•ेंगे. हम लोग खाली हाथ ही बस पूजा की माला आदि सामान लेकर मंदिर की और चल पड़े। इस समय रात के करीब आठबजे थे। वैसे कविता के पापा ने हमने हिदायत दी थी की आज दशहरे का दिन है और मारà¥à¤•ेट में à¤à¥€à¥œ à¤à¤¾à¥œ हो सकती है लेकिन हम बिना किसी परवाह के बस निकल पड़े। रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¤• जगह माता रानी का à¤à¤‚डार चल रहा था तथा वहाठआयोजक हमसे à¤à¥‹à¤œà¤¨ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करने की जिद कर रहे थे लेकिन हमने सोचा की खाना खाकर मंदिर नहीं जाना चाहिठलेकिन दूसरी तरफ माता के पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ का निरादर करने का à¤à¥€ मन नहीं हो रहा था अतः हम लोगों ने वहाठà¤à¥‹à¤œà¤¨ गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर ही लिया और चल पड़े मंदिर की और, à¤à¤• बार फिर हम पहà¥à¤à¤š गठथे à¤à¤—वानॠके सामने लेकिन इस समय à¤à¥€à¥œ बहà¥à¤¤ कम थी और कविता तथा मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥‡ से दरà¥à¤¶à¤¨ तथा माला जाप करने का अवसर मिल गया।
कà¥à¤› देर मंदिर में बिताने के बाद अब हम बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ तथा ममà¥à¤®à¥€ पापा के लिठखाना पैक करवा कर होटल की और चल दिà¤à¥¤ रात को बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ नींद आई और फिर सà¥à¤¬à¤¹ उठकर तैयार होकर गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ के लिठअसà¥à¤¸à¥€ घाट की और चल दिà¤, यह हमारा गंगा मैया के दरà¥à¤¶à¤¨ तथा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ का पहला मौका था अतः हमारे लिठबहà¥à¤¤ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ था। सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ आदि के बाद हम होटल के कमरे में वापस पहà¥à¤à¤š गठतथा कà¥à¤› देर में तैयार होकर वापस सड़क पर आ गठअब हमारा अगला कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® था काशी के अनà¥à¤¯ मंदिरों तथा रामनगर फोरà¥à¤Ÿ के दरà¥à¤¶à¤¨ का।
सड़क पर हमने à¤à¤• ऑटोवाले को 350 रॠमें सारे महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ मंदिर तथा रामनगर फोरà¥à¤Ÿ दिखाने के लिठतय कर लिया तथा सवार हो गठऑटो में। सबसे पहले ऑटो वाला हमें लेकर गया शà¥à¤°à¥€ दà¥à¤°à¥à¤—ा मंदिर, यह सचमà¥à¤š à¤à¤• बहà¥à¤¤ ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° मंदिर था, इसके बाद तà¥à¤²à¤¸à¥€ मानस मंदिर तथा अनà¥à¤¯ मंदिर घà¥à¤®à¤¤à¥‡ हà¥à¤ हम पहà¥à¤à¤š गठबनारस हिनà¥à¤¦à¥‚ यूनिवरà¥à¤¸à¤¿à¤Ÿà¥€ (BHU) सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ नया काशी विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ मंदिर। यह मंदिर à¤à¥€ हमारी उमीदों से कहीं बà¥à¤•र निकला, बड़ा विशाल तथा ख़ूबसूरत मंदिर, इसे विशà¥à¤µ का सबसे बड़ा (à¤à¤µà¤¨ की उंचाई के मामले में) शिव मंदिर à¤à¥€ माना जाता है।

BHU सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ काशी विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ मंदिर का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤°

पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¨à¥à¤§ के बावजूद खींचा गया BHU काशी विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ शिवलिंग का चितà¥à¤°
यहाठकà¥à¤› देर ठहरने तथा दरà¥à¤¶à¤¨ के बाद यहीं केमà¥à¤ªà¤¸ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ रेसà¥à¤¤à¥Œà¤°à¥‡à¤‚ट पर साउथ इंडियन à¤à¥‹à¤œà¤¨ का लà¥à¤¤à¥à¥ž उठाने के बाद अब हम अगà¥à¤°à¤¸à¤° हà¥à¤ रामनगर फोरà¥à¤Ÿ की ओर। रामनगर फोरà¥à¤Ÿ काशी नरेश का निवास सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है जो गंगा नदी के दà¥à¤¸à¤°à¥‡ किनारे पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। यहाठके मà¥à¤¯à¥‚जियम में विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•ार के शसà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का विशाल संगà¥à¤°à¤¹ देखने के बाद इसी किले में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ शिव मंदिर की ओर चल पड़े। यह मंदिर किले की उस दिवार के नजदीक है जहाठसे गंगा मैया के बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥‡ दरà¥à¤¶à¤¨ होते हैं तथा उस पार सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ घाट à¤à¥€ दिखाई देते हैं।

रामनगर फोरà¥à¤Ÿ से दिखाई देता गंगा का सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª
कà¥à¤› देर इस किले में बिताने के बाद अब हम वापस वाराणसी की ओर बढे तथा दोपहर करीब दो बजे अपने होटल पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤ अब हमारा अगला पà¥à¤²à¤¾à¤¨ था कà¥à¤› देर आराम करने के बाद शाम करीब चार बजे से नाव में सवार होकर काशी के सारे घाटों के दरà¥à¤¶à¤¨ तथा माà¤Â गंगा की पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦ आरती में शामिल होने का।
आज के लिठबस इतना ही अगली पोसà¥à¤Ÿ में मेरे साथ देखिये काशी के घाट तथा आनंद लीजिये गंगा आरती का …………………….तब तक के लिठबाय।
मुकेश भाई ,
बहुत सुंदर वर्णन और फोटो . यात्रा विर्तांत से भोले बाबा के दर्शन की इच्छा होती है। मैं ज़ब इंडिया में था तो कभी रिक्शा का सफ़र नहीं करता था, पर पिछले साल भारत यात्रा के दोरान मैंने रिक्शा सवारी का भरपूर आनंद लिया . यह वातावर्ण अनुकुल सवारी है.
धन्यवाद
सुरेन्द्र जी,
पोस्ट को पसंद करने तथा कमेन्ट के लिए धन्यवाद। यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात है की यह वृत्तान्त पढ़कर आपको भोले बाबा के दर्शन की इच्छा हुई।
मुकेश जी , वाराणसी, काशी, बनारस, का बहुत अच्छा वर्णन, चित्रण किया हैं आपने, जय गंगा मैय्या , जय बाबा विश्वनाथ….
प्रवीण जी बहुत बहुत धन्यवाद। जय भोले …………….जय गंगा मैया ……………..
प्रिय मुकेश,
लेख और फोटो तो आपके अच्छे हैं ही पर जो सबसे अच्छा मुद्दा आपने उठाया है वह मेरी दृष्टि मे रिक्शे पर बैठने या न बैठने का है। मेरी तुच्छ बुद्धि के अनुसार कविता जी का तर्क सही है तो आपकी संवेदनशीलता भी बिल्कुल उचित है। मैं भी चढ़ाई आते ही रिक्शे से उतर जाता हूं। यदि मुझे लगता है कि रिक्शा जायज़ पैसे मांग रहा है तो मैं कभी भी उससे सौदेबाजी नहीं करता। हम मॉल में बिना कोई सौदेबाजी किये 150 रुपये में पिज़ा और 75 रुपये में कॉफी खरीदने में संकोच नहीं करते तो फिर रिक्शे वाले से ही सौदेबाजी की कलाकारी का इतना प्रदर्शन किस लिये? :D
मुकेश भाई सबसे पहले तो बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के शानदार लेख की शुभ कामना,
अब बात रिक्शे वाले की तो यहाँ सिंघल जी की बात से मैं भी शत-प्रतिशत सहमत हूँ। आपने बहुत अच्छा किया जो इन रिक्शा पर बैठकर घूमते रहे। मैंने कही पढा था कि आमिर खान भेष बदल कर कई दिन काशी के रिक्शा पर घूमता रहा था। इन मेहनती लोगों की मेहनत को सलाम, कम से कम ये उन ठग, भिखारी, जैसे अन्य लोगों से तो बहुत बढिया है जो हमसे चालाकी से पैसा निकालते है।
जाट देवता की जय हो ………..
आपकी इस प्यारी सी कमेंट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। “कम से कम ये उन ठग, भिखारी, जैसे अन्य लोगों से तो बहुत बढिया है जो हमसे चालाकी से पैसा निकालते है” – बहुत ही अच्छे विचार ……………..
वाह सुशांत जी,
आपकी इस टिप्पणी ने हमारा मन मोह लिया। बहुत सुन्दर, नपा तुला एवं संपूर्ण बुद्धि एवं विवेक से दिया गया एक प्रभावी जवाब। आपकी इस कमेन्ट के बाद आपके प्रति हमारे दिल में जो आदर एवं प्रतिष्ठा थी वह द्विगुणित हो गई है। ..
३५० रू में रिक्क्षा में कशी दर्शन बहुत बढ़िया रहा . सुन्दर पोस्ट वर्णन भगवान विश्वनाथ की नगरी की. अच्छा हुआ आपके साथ कोई भी ठग बाज़ी नहीं हुई . मेरी यात्रा में तो मेरी हालत ठगों से परेशान हो गयी थी .
विशाल,
प्रतिक्रया के लिए हार्दिक धन्यवाद। हाँ आपने बताया था आपके साथ वाराणसी के अनुभव कुछ खट्टे ही रहे, खैर ये सब तो घुमक्कड़ी में चलता ही रहता है। आपके आगामी जयपुर अजमेर पुष्कर टूर के लिए शुभकामनाएं।
Dear MukesBhai… After reading Vishal’s Varanasi yatra, I thought there is no need to read another log on Varanasi, as his log was perfect.
But you made your log so interesting with a little different photos that it made an interesting read from beginning to end.
One thing is proved that Kavita ji is more logical, more wise and more practical (than u) !! :)
Dear SS ji,
Thank you very much for this encouraging comment. Special thanks for these appreciating words for Kavita, it gives me immense pleasure.
Thanks.
Thank you, Mukesh for the darshan of the Lord of Kashi. In spite of the narrow lanes and poor sanitation, Kashi has a very sacred place in every Hindu’s consciousness. Looking forward to the guided tour of the ghats of Varanasi.
I cannot say that you are wrong in feeling guilty about the plight of the rickshawalas; however, making use of their services is not exploitation if you pay them well. It is even better if you give them a tip at the end of the ride. After all, we tip waiters even if they give us very poor service. Why not tip these needy unfortunate brothers of ours? I once gave a tip of just Rs.10 and when I saw the happiness in the face of the rickshawalla, I felt that I was in his debt. I gave him just a ten rupee note but he repaid me with a thousand rupee smile. I still owe him Rs.990!
Finally, I think that Kavitaji complements your idealism with her pragmatism. Whenever you have a difference of opinion, you should blindly follow her. Going by what you have said so far, I think that she has the knack of making the right choice.
DL Sir,
Thank you very much for such a detailed and intelligent comment. Idea of giving a tip to poor rikshawala’s is great. Yes I accept that Kavita’s thought is more practical and realistic than me. I am a very emotional and sentimental person, many a times she suggest me the right path and truly speaking I follow her and ultimately it happens a real right choice.
Thanks.
good post.pics are very nice.
Thank you very much Sharma Sir.
Good post, your’s along with Vishal’s post make it a total guide for Varanasi.
Both posts have different spices.
Praveen Ji,
Thank you very much for your lovely words.
मुकेश जी अपने काशी नगरी का बहुत ही अच्हा वर्णन किया है। गंगा के फोटो तो बहुत ही सुंदर आये हैं, रामनगर के किले के बारे मे जानकार अछा लगा।
देसी ट्रेवलर जी,
पोस्ट को पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
मुकेश जी….
आपके लेख से वाराणसी के बारे में विस्तृत वर्णन पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा….आपका वर्णन हमेशा की तरह काबिले तारीफ़ हैं…..और वाराणसी की कहानी कहते आपके फोटो उससे भी अच्छे और जानदार |
भोले नाथ की नगरी वाराणसी वास्तव में शिव भक्तो और मोक्ष पाने के लिए अद्भुत नगरी हैं…..| अच्छा लगा जानकर की वाराणसी और शहरो की तुलना में काफी सस्ता हैं…..अगर बात रिक्शे वाले की करे तो सब के अपने अपने कर्म हैं…..और हम लोगो को उनके कर्म में किसी प्रकार का दखल नही करना चाहिये…..वो तो उसकी आजीविका हैं…….दुनिया में हर तरह का इंसान हैं…और हम लोगो को सबका सहयोग करना चाहिये….| मथुरा में आपका अनुभव अच्छा नहीं रहा, यह तो उस नगरी के रहने वालो के लिए शर्म की बात हैं …… वाराणसी में ठगने की कहानी में कई बार मैं अपने मित्रों के मुख से सुन चुका हैं…अच्छा लगा जानकर आप इस प्रकार के घटनाओं से विरक्त रहे |
धन्यवाद
रितेश जी,
जिस तरह आपको हमारी पोस्ट काबिले तारीफ़ लगती है उसी तरह हमें भी आपके लेख एवं खासकर कमेंट्स हमेशा ही लुभाती हैं। ठीक ही कहा आपने की यह रिक्शा वालों का रोज़गार है, और हमें उस बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहिए। एक बार फिर सुन्दर कमेन्ट के लिए धन्यवाद।
नीचे से चौथे फोटो ने शिवम ने अपना सर मेज पर क्यों रखा हुआ हैं….क्या कोई नई जिद थी उस समय उसकी…..
बिलकुल सही पहचाना रितेश आपने, इस समय वह गुस्से में मुंह फुलाए बैठा था, दरअसल हम एक साउथ इंडियन रेस्टोरेन्ट में बैठे थे और सांभर वडा खा रहे थे और शिवम वहां चाइनीज़ नूडल्स मांग रहा था जो की संभव नहीं था। वह अक्सर इसी तरह मुंह फुला कर सर झुका कर बैठ जाता है जब तक उसकी मांग पूरी न कर दी जाए। वैसे आपकी पैनी नज़र की दाद देनी पड़ेगी।
मुकेश जी , मेरा वोट भी कविता जी के साथ है । कोलकाता में भी हाथ से चलने वाले रिक्शों का चलन है । जैसा की पहले सुशांत जी और फिर डी एल ने कहा , की हो सके तो थोड़ी बहुत टिप भी दें । आज सुबह ही सर्दियों के तैयारी के दौरान , बाज़ार से एक बड़ा बोरा कोयला ले कर आया हूँ । सड़क निर्माण के कारण गाडी थोड़ी दूर थी तो टाल से एक भाई चले हमारे साथ बोरा उठा कर, पहुँचने पर जब 20 रुपैय उन्हें दिए तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। वो आदमी टाल पर मजदूरी कर रहा था, और मेरे इस छोटे से भाव से बिलकुल अभिभूत हो गया था । खैर ।
9 ज्योतिर्लिंग पूरे होने पर बधाई । कौन कौन से बचे हैं ?
बढ़िया सरपट लेख ।
नंदन जी,
आपकी इस सुन्दर सी टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद। मेहनतकश तथा जरूरतमंद लोगों के लिए आपके भाव जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई। बधाई के लिए शुक्रिया, अब तीन ज्योतिर्लिंग बाकि रहे हैं दर्शन के लिए- भीमाशंकर, रामेश्वरम एवं केदारनाथ। भीमाशंकर के लिए मार्च 14 का आरक्षण है, नवम्बर में रामेश्वर के बारे में सोच रहे हैं और अगले वर्ष बाबा केदारनाथ के द्वार जाने की योजना है।
बहुत सुंदर यात्रा विवरण . अगर बात रिक्शे वाले की करे तो मेरा मत भी अन्य पाठकों की तरह कविताजी के साथ ही है . यह लोग मेहनत से पैसा कमाते हैं और हमें उन्हें उनके इस अधिकार से वंचित नहीं करना चाहिए .
धन्यवाद एवं जय भोले की ….
नरेश जी,
प्रतिक्रिया प्रेषित करने के लिए धन्यवाद। जानकर प्रसन्नता हुई की आपका मत भी कविता जी को ही है। चलिए इस सर्वे से मुझे बहुत फायदा हुआ, अब मैं निश्चिन्त होकर साइकिल रिक्शा में सवारी का आनंद लूँगा और साथ ही इस बात का भी ध्यान रखूँगा की मेरे द्वारा दिए गए पारिश्रमिक से मेहनतकश रिक्शावाले के चेहरे पर प्रसन्नत के भाव आ जाएँ।
जो मनुष्य श्री काशी विश्वनाथ की प्रसन्नता के लिए इस क्षेत्र में दान देता है, वह धर्मात्मा भी अपने जीवन को धन्य बना लेता है। पंचक्रोशी (पाँच कोस की) अविमुक्त क्षेत्र विश्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध एक ज्योतिर्लिंग का स्वरूप ही जानना और मानना चाहिए। भगवान विश्वनाथ काशी में स्थित होते हुए भी सर्वव्यापी होने के कारण सूर्य की तरह सर्वत्र उपस्थित रहते हैं। जो कोई उस क्षेत्र की महिमा से अनजान है अथवा उसमें श्रद्धा नहीं है, फिर भी वह जब काशीक्षेत्र में प्रवेश करता है या उसकी मृत्यु हो जाती है, तो वह निष्पाप होकर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। यदि कोई मनुष्य काशी में रहते हुए पापकर्म करता है, तो मरने के बाद वह पहले ‘रुद्र पिशाच’ बनता है, ‘उसके बाद उसकी मुक्ति होती है’ वैदिक दीपक शास्त्री