पà¥à¤°à¤¿à¤¯ मितà¥à¤°à¥‹à¤‚,
à¤à¤• शाम उदयपà¥à¤° में बिता कर अगले दो दिनों के लिये हम माउंट आबू के लिये उदयपà¥à¤° से अपनी टैकà¥à¤¸à¥€ लेकर निकले तो शहर छोड़ने से पहले अंबा जी माता मंदिर और जगदीश मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ किये।  इसके बाद राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ राजमारà¥à¤— à¥à¥¬ पकड़ कर पिंडवाड़ा होते हà¥à¤ आबू रोड पहà¥à¤‚चे जिसे तलहटी à¤à¥€ कहते हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह आबू परà¥à¤µà¤¤ की जड़ में बसा हà¥à¤† नगर है। यहां रोड-साइड ढाबे “अपà¥à¤¸à¤°à¤¾ होटल” में खाना खाकर जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर, माउंट आबू पहà¥à¤‚च गये थे। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ का अदà¥â€Œà¤à¥à¤¤ परिसर है और हम सहारनपà¥à¤° से चलते समय अपने बारे में à¤à¤• परिचय पतà¥à¤° लिखवा कर लाये थे जिसमें हमें इस परिसर में रà¥à¤•ने हेतॠवà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करने का अनà¥à¤°à¥‹à¤§ किया गया था।
दो कमरे हम दोनों परिवारों के लिये और à¤à¤• कमरा हमारे डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° हसीन के लिये à¤à¥€ आबंटित हो गये तो हम बेफिकà¥à¤° होकर शाम को सनसैट पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤‚ट देखने निकले। सच तो यह है कि घर से चलते समय हमारे परिवार के तीनों सदसà¥à¤¯Â बड़े अनमने ढंग से जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर में रà¥à¤•ने के लिये राजी हà¥à¤ थे पर जब यहां आकर परिसर देखा, अपने कमरे देखे और उससे à¤à¥€ बॠकर अपना à¤à¤¾à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ सà¥à¤µà¤¾à¤—त होता देखा तो तीनों की तबीयत गारà¥à¤¡à¤¨ – गारà¥à¤¡à¤¨ हो गई थी।
शाम को sunset point से लौट कर हम नकà¥à¤•ी लेक पर आये और बोटिंग की। अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर में नाशà¥à¤¤à¤¾ किया, और रसोई आदि की आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ देखते-à¤à¤¾à¤²à¤¤à¥‡ वापिस अपने कमरों की ओर आये तो देखा कि à¤à¤• बिलà¥à¤•à¥à¤² नयी इंडिका टैकà¥à¤¸à¥€ और सांवला सा à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ हमारी पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ कर रहे हैं। अपनी सास की तबीयत खराब होने के कारण हसीन को तो पिछली शाम को ही उदयपà¥à¤° लौटना पड़ा था पर हमारे लिये वह बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करके ही गया लगता था।  नये डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने बताया कि उसका नाम बाबू है और अब आने वाले तीन दिनों तक वह ही हमारे साथ रहेगा।
कमरे बनà¥à¤¦ करके हमने बाबूराम से कहा कि माउंट आबू में जो कà¥à¤› à¤à¥€ देखने लायक है, वह सब आज देखेंगे और बीच में १ बजे मधà¥à¤¬à¤¨ à¤à¥€ पहà¥à¤‚चना है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हमें दोपहर का खाना वहीं पर खाना है। शाम को नकà¥à¤•ी à¤à¥€à¤² पर चलेंगे, बाज़ार घूमेंगे और रात को जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर में ही रà¥à¤•ेंगे और सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे यहां से उदयपà¥à¤° के लिये वापसी करेंगे।  यह आरà¥à¤¡à¤° थमा कर हम सब टैकà¥à¤¸à¥€ में लद लिये और चल पड़े माउंट आबू दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये।
जैसा कि मैने पहले बताया था, टैकà¥à¤¸à¥€ में बैठकर नया शहर घूमो तो à¤à¥‚गोल तो सारा गडà¥à¤¡-मडà¥à¤¡ हो जाता है। हम पहले कहां गये, फिर उसके बाद कहां गये यह कà¥à¤°à¤®à¤µà¤¾à¤° बयान करना अब संà¤à¤µ नहीं लग रहा है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह वरà¥à¤· 2007 मारà¥à¤š का किसà¥à¤¸à¤¾ चल रहा है।
मंदिर के फोटो देख कर à¤à¥€ यह निशà¥à¤šà¤¯ पूà¥à¤°à¥à¤µà¤• नहीं कह पा रहा हूं कि इस मंदिर का नाम कà¥à¤¯à¤¾ था। वैसे हम अचलगà¥, अनादरा पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤‚ट, अरà¥à¤¬à¥à¤¦à¤¾ मंदिर, गà¥à¤°à¥ शिखर, दिलवाड़ा मंदिर के अलावा बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ परिसर (पांडव à¤à¤µà¤¨, पीस पारà¥à¤• आदि ) देखने गये थे।
पीस पारà¥à¤• के मेरे पास कà¥à¤› पिछली यातà¥à¤°à¤¾ के चितà¥à¤° à¤à¥€ मौजूद हैं जो बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ केनà¥à¤¦à¥à¤° पर आयोजित तà¥à¤°à¤¿-दिवसीय शिविर के दौरान मैने लिये थे। वह à¤à¥€ आपके मनोरंजनारà¥à¤¥ लगाये दे रहा हूं! दिलवाड़ा मंदिर के तो चितà¥à¤° खींचने की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ ही नहीं है अतः वहां के चितà¥à¤°à¥‹à¤‚ के लिये तो à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ – बहनों से सॉरी ही बोलना पड़ेगा !  इतना अवशà¥à¤¯ है कि अब चूंकि मैं अपने परमपà¥à¤°à¤¿à¤¯ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ – बहिनों – à¤à¤¾à¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये यातà¥à¤°à¤¾ संसà¥à¤®à¤°à¤£ लिखने लगा हूं तो आगे से à¤à¤¸à¥€ गलती नहीं होगी । बाकायदा फरà¥à¤°à¥‡ यानि नोटà¥à¤¸ बना कर रखे जायेंगे ताकि इमà¥à¤¤à¤¹à¤¾à¤¨ के दिन यानि लेखन के दिन, फरà¥à¤°à¥‡ निकाल निकाल कर नकल की जा सके।  Â
वैसे अरावली परà¥à¤µà¤¤ शà¥à¤°à¤‚खला में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ माउंट आबू का पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ नाम अरà¥à¤¬à¥à¤¦à¤¾à¤°à¤£à¥à¤¯ या अरà¥à¤¬à¥à¤¦à¤¾à¤‚चल बताया जाता है और जैसा कि हम में से अधिकांश लोग जानते ही हैं कि ये राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के सिरोही जनपद में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ 22 किमी लंबा और 9 किमी चौड़ा राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ का इकलौता परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤² है जो राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ और राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से à¤à¥€ अधिक गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ के लोगों को गà¥à¤°à¥€à¤·à¥à¤® ऋतॠमें सांतà¥à¤µà¤¨à¤¾ देने के काम आता है। कà¥à¤› लोग यह à¤à¥€ कहते हैं कि माउंट आबू गà¥à¤œà¥à¤œà¤°à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ है जो यहां के मूल निवासी हà¥à¤† करते थे। गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ का नाम à¤à¥€ गà¥à¤°à¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ से बदल कर धीरे धीरे गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ हो गया बताया जाता है।
यहां का सरà¥à¤µà¥‹à¤šà¥à¤š शिखर गà¥à¤°à¥ शिखर है जिसकी ऊंचाई समà¥à¤¦à¥à¤°à¤¤à¤² से 5,600 फीट है। सनà¥â€Œ 1937 में बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ हà¥à¤ˆ थी मगर वह कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° 1947 के à¤à¤¾à¤°à¤¤ विà¤à¤¾à¤œà¤¨ के बाद पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ में चला गया अतः बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ का वैशà¥à¤µà¤¿à¤• पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ बनाने के लिये माउंट आबू का चयन किया गया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह परà¥à¤µà¤¤ लगà¤à¤— उपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ à¤à¥‚मि थी और पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ बनाने के लिये जितना सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ संसà¥à¤¥à¤¾ को चाहिये था, वह यहां बहà¥à¤¤ सरलता से मिल गया।  यहां पर मधà¥à¤¬à¤¨, पीस पारà¥à¤•, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर, गà¥à¤²à¥‹à¤¬à¤² हासà¥à¤ªà¤¿à¤Ÿà¤² à¤à¤µà¤‚ रिसरà¥à¤š सैंटर आदि की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ / विकास किया गया। जब उनका काम इतने सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से à¤à¥€ नहीं चला और माउंट आबू परà¥à¤µà¤¤ पर और सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ उपलबà¥à¤§ होना कठिन हो गया तो परà¥à¤µà¤¤ की तलहटी में आबू रोड पर शानà¥à¤¤à¤¿à¤µà¤¨ के नाम से à¤à¤• नगर बसाया गया जिसमें 15,000 लोग à¤à¤• साथ रह सकते हैं, खाना खा सकते हैं, पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ सà¥à¤¨ सकते हैं और विशà¥à¤°à¤¾à¤® कर सकते हैं।

आबू रोड (तलहटी) में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ शांतिवन परिसर में 15000 कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ वाला डायमंड हॉल

डायमंड हॉल का लमà¥à¤®à¥à¤®à¥à¤®à¥à¤®à¥à¤®à¥à¤¬à¤¾ कॉरिडोर
माउंट आबू में अनेक मंदिर à¤à¥€ हैं जिनमें आधार देवी (अरà¥à¤¬à¥à¤¦à¤¾à¤¦à¥‡à¤µà¥€ का मंदिर), दिलवाड़ा मंदिर आदि अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हैं।  बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€à¥› का अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ होने के कारण यहां विशà¥à¤µ à¤à¤° से उनके अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ आते रहते हैं। माउंट आबू के अनेकानेक दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤² बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनाये गये परिसर ही हैं जिनका विकास व पà¥à¤°à¤¬à¤‚ध इस संसà¥à¤¥à¤¾ के ही हाथ में है।  यहां पर इस संसà¥à¤¥à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ चलाया जा रहा à¤à¤• गà¥à¤²à¥‹à¤¬à¤² हासà¥à¤ªà¤¿à¤Ÿà¤² है जिसमें मरीज़ों को आधà¥à¤¨à¤¿à¤• चिकितà¥à¤¸à¤¾ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ के अलावा योग का लाठà¤à¥€ मिलता है। विशेष रूप से हृदय रोग के मरीज़ों को, जिनको बाईपास सरà¥à¤œà¤°à¥€ की जरूरत होती है, उनको यहां पर सरà¥à¤œà¤°à¥€ के अलावा योग से हृदय रोग चिकितà¥à¤¸à¤¾ के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किये जाते हैं जो बहà¥à¤¤ सफल हà¥à¤ हैं।
हमारे पूरà¥à¤µ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¤à¤¿ à¤.पी.जे. अबà¥à¤¦à¥à¤² कलाम इस गà¥à¤²à¥‹à¤¬à¤² हासà¥à¤ªà¤¿à¤Ÿà¤² में à¤à¤•ाधिक बार आये हैं और यहां चल रहे पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤—ों से बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करते रहे हैं। AIIMS के à¤à¤• हृदय रोग विशेषजà¥à¤ž डा. सतीश गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ ने, जो AIIMS छोड़ कर गà¥à¤²à¥‹à¤¬à¤² हासà¥à¤ªà¤¿à¤Ÿà¤² में आ गये, हमें बताया कि वह AIIMS में अनेक वरà¥à¤· तक सरà¥à¤œà¤¨ रहते हà¥à¤, अनेकानेक बाईपास सरà¥à¤œà¤°à¥€ करते रहे परनà¥à¤¤à¥ जब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने देखा कि छः महीने के à¤à¥€à¤¤à¤° ही मरीज़ वापिस उतनी ही blockage लेकर लौट आते हैं तो उनको सोचने पर विवश होना पड़ा कि कà¥à¤¯à¤¾ वे सही मायने में मरीज़ों की बाईपास सरà¥à¤œà¤°à¥€ करके उनका रोग दूर कर पा रहे हैं? यहां अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ और पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करते करते उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जो निषà¥à¤•रà¥à¤· निकाले वे यही थे कि बाईपास सरà¥à¤œà¤°à¥€ करके वह blockage को जितना कम करते चले आरहे हैं, उतना काम तो योग à¤à¥€ कर देता है। असà¥à¤¤à¥ !
- पीस पारà¥à¤• का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤°
- Musical Chair Game during picnic
- A bird in flight !
- पीस पारà¥à¤• में पिकनिक
- मधà¥à¤¬à¤¨ परिसर में पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¥€
- जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर में विशà¥à¤°à¤¾à¤®
- इस मंदिर में लोग सिकà¥à¤•े चिपका कर मनà¥à¤¨à¤¤ मांगते हैं।
- यह छोटा का बचà¥à¤šà¤¾ इतने पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ ढंग से गाइड का काम कर रहा था कि बस….
- पेट पूजा !
- पीस पारà¥à¤•
- रॉक गारà¥à¤¡à¤¨ – पीस पारà¥à¤•
- Om Shanti !
- Peace Park, Mt. Abu
- पांडव à¤à¤µà¤¨, मधà¥à¤¬à¤¨ में à¤à¥‹à¤œà¤¨ ककà¥à¤·
- मधà¥à¤¬à¤¨ यानि, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ का सबसे पहला परिसर – Universal Peace Hall
- ये गà¥à¤°à¥ शिखर ही है ना?
हम माउंट आबू में जिन – जिन सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर गये थे, वहां के चितà¥à¤° देख-देख कर मैं याद करने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ कर रहा हूं कि ये कौन सा मंदिर था, ये कौन सा पहाड़ था।  कà¥à¤› चितà¥à¤° गà¥à¤°à¥ शिखर के पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होते हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यहां पर पहाड़ के अंतिम छोर पर टेलिसà¥à¤•ोप लगा कर à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ आबू रोड तलहटी के दृशà¥à¤¯ दिखा रहा था। वहां पर अनादरा पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤‚ट à¤à¥€ लिखा हà¥à¤† दिखाई दे रहा है। à¤à¤• मंदिर जो शायद दतà¥à¤¤à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥‡à¤¯ का था, वह à¤à¥€ हमने देखा था। वहां की वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿, विशेषकर लाल रंग के फूलों ने हमें बहà¥à¤¤ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ किया था।
बहà¥à¤¤ सारा समय हमने पीस पारà¥à¤• में à¤à¥€ बिताया था। पहले हमें बीस मिनट का à¤à¤• वीडियो दिखाया गया जिसका सार ये था कि ज़िनà¥à¤¦à¤—ी मिलेगी दोबारा – दोबारा अगर तà¥à¤® नहीं करोगे अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से किनारा ! अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का अरà¥à¤¥ है – खà¥à¤¦ को और इस शरीर को à¤à¤•ाकार समठलेना। इस वीडियो के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° हम सब आतà¥à¤®à¤¾à¤à¤‚ हैं जो इस शरीर के अनà¥à¤¦à¤°, दोनों नेतà¥à¤°à¥‹à¤‚ के मधà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤— में, यानि à¤à¥ƒà¤•à¥à¤Ÿà¤¿ में रहते हैं। हम यानि आतà¥à¤®à¤¾, इस शरीर रूपी गाड़ी के डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° हैं। हम सब आतà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿ सà¥à¤µà¤°à¥‚प परमपिता परमातà¥à¤®à¤¾ के पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ बचà¥à¤šà¥‡ हैं, उनके अंश हैं।
हम सब के साथ दिकà¥à¤•त यह है कि हम इस धरती पर जनà¥à¤® लेने के बाद अपना वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• रूप à¤à¥à¤²à¤¾ बैठते हैं और इस पà¥à¤°à¤•ार परमपिता परमातà¥à¤®à¤¾ के बचà¥à¤šà¥‡ होकर à¤à¥€Â जीवन à¤à¤° आवारा समान à¤à¤Ÿà¤•ते रहते हैं। लोग कहते हैं कि हम मंदिर में à¤à¤—वान के सामने बैठकर à¤à¤—वान का चिनà¥à¤¤à¤¨ करना तो बहà¥à¤¤ चाहते हैं पर कà¥à¤¯à¤¾ करें मन इधर – उà¥à¤§à¤° à¤à¤Ÿà¤•ता रहता है। इसके उतà¥à¤¤à¤° में बहनों ने हमें बताया कि यदि हम सब निरंतर यह सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ बनाये रखें कि हमारा और हमारे परमपिता परमातà¥à¤®à¤¾ का बाप-बेटे का नाता है तो हमें उनसे à¤à¤¸à¥‡ ही सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ à¤à¤¾à¤µ उपजेगा जैसे किसी यà¥à¤µà¤• को किसी अनजानी यà¥à¤µà¤¤à¥€ से सगाई हो जाने के बाद उससे सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ उपजने लगता है।
उसे कहना नहीं पड़ता कि à¤à¤¾à¤ˆ, कà¤à¥€ टाइम निकाल कर अपनी मंगेतर को à¤à¥€ याद कर लिया कर! वह खाते-पीते, सोते-जागते, उठते-बैठते हर समय अपनी मंगेतर को ही याद करता रहता है, उससे मिलने के खà¥à¤µà¤¾à¤¬ देखा करता है। आजकल के लड़के तो मोबाइल में couple plan ले लेते हैं ताकि चौबीसों घंटे हॉटलाइन से जà¥à¥œà¥‡ रहें। ठीक वैसे ही हमें यदि परमपिता परमातà¥à¤®à¤¾ से अपने संबंध का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हो जाये तो हम हर समय उनकी सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ में ही रहेंगे। इसी को योग कहते हैं । योग का शाबà¥à¤¦à¤¿à¤• अरà¥à¤¥ है – “जोड़ना”।
जब हम योग की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में होते हैं तो हम आतà¥à¤®à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ रहते हà¥à¤ परमातà¥à¤®à¤¾ से संवाद करने लगते हैं।  यह अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ तब होगा जब हम सदैव यह याद रखें कि हम यह शरीर नहीं हैं बलà¥à¤•ि इस शरीर के अनà¥à¤¦à¤° सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ और इसे संचालित करने वाली आतà¥à¤®à¤¾ हैं। हम सब विसà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ की शिकार आतà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं जो यहां – वहां सà¥à¤– की लालसा में à¤à¤Ÿà¤•ती रहती हैं जबकि वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• सà¥à¤– परमपिता परमातà¥à¤®à¤¾ से मिलन में है जो हम योग लगा कर किसी à¤à¥€ समय अनà¥à¤à¤µ कर सकते हैं । उसके लिये मरना कतई जरूरी नहीं है।  (कितने à¤à¤¾à¤ˆ लोग इस à¤à¤¾à¤·à¤£ को पà¥à¤¤à¥‡ – पढ़ते à¤à¤• à¤à¤ªà¤•ी ले चà¥à¤•े हैं? अपने – अपने हाथ खड़े करें !!! :D )
गà¥à¤°à¥ शिखर और अचलगॠनाम की दो परà¥à¤µà¤¤ चोटियों के मधà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ विशाल परिसर में विकसित इस पीस पारà¥à¤• में न केवल अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ हैं, रोज़ गारà¥à¤¡à¤¨ हैं, à¤à¥‚ले हैं, रॉक गारà¥à¤¡à¤¨ है, पिकनिक के लिये और खेल कूद के लिये मैदान हैं बलà¥à¤•ि सबसे आननà¥à¤¦ दायक बात ये है कि इस पीस पारà¥à¤• का पà¥à¤°à¤¬à¤‚ध अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ कà¥à¤¶à¤² और सेवाà¤à¤¾à¤µà¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के हाथों में है।  बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ केनà¥à¤¦à¥à¤° यानि मधà¥à¤¬à¤¨, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर और शानà¥à¤¤à¤¿à¤µà¤¨ में तीन या अधिक दिनों के लिये नियमित रूप से शिविर लगते रहते हैं और à¤à¤• दिन पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¥à¤“ं को घà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥‡ के लिये à¤à¥€ नियत रहता है। पीस पारà¥à¤• में à¤à¥€ वे कà¥à¤› घंटे बिताते हैं, यहां उनके लिये खेल-कूद व खाने-पीने की à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की जाती है। à¤à¤¸à¥‡ ही à¤à¤• अवसर के चितà¥à¤° यहां लगा रहा हूं।
दिलवाड़ा मंदिर परिसर में जब हम पहà¥à¤‚चे तो वहां पर कà¥à¤› बसें पहले से ही पहà¥à¤‚ची हà¥à¤ˆ थीं। ये बसें गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ की थीं और कà¥à¤› महिलायें वहां मंदिर के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर हलà¥à¤²à¤¾-गà¥à¤²à¥à¤²à¤¾ à¤à¥€ कर रही थीं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इस दिलवाड़ा मंदिर में महिलाओं के लिये पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ के नियम बहà¥à¤¤ सखà¥à¤¤ हैं। रजसà¥à¤µà¤²à¤¾ महिलाओं का वहां पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ बिलà¥à¤•à¥à¤² वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है। मोबाइल, चमड़े के बैग, बैलà¥à¤Ÿ आदि तो वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ हैं ही,  आम परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• के लिये कैमरा अनà¥à¤¦à¤° लेकर जाना बिलà¥à¤•à¥à¤² वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है। हां, अगर आप मà¥à¤‚बई से किसी फिलà¥à¤® की शूटिंग के लिये आये हà¥à¤ हैं और मंदिर के पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤•ों को लाखों रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ दान में देने वाले हैं तो आप पलक पांवड़ों पर रखे जा सकते हैं। पिकà¥à¤šà¤° पोसà¥à¤Ÿà¤•ारà¥à¤¡ वहां पर उपलबà¥à¤§ हैं जिनमें सà¤à¥€ मंदिरों के à¤à¥€à¤¤à¤° के चितà¥à¤° हैं। सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• है कि इन मंदिरों का पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¨ वरà¥à¤— धारà¥à¤®à¤¿à¤• कारणों से नहीं, बलà¥à¤•ि वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¤¿à¤• कारणों से फोटो की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ नहीं देता है।
दिलवाड़ा मंदिर में संगमरमर पर जो कलाकारी की गई है, उसे पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ पर लिखी हà¥à¤ˆ कवितायें ही कहा जा सकता है। मंदिर की छतों से लटकते हà¥à¤ संगमरमर के à¤à¥‚मर, अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥â€Œ à¤à¤¾à¥œ – फानूस à¤à¤¸à¥‡ हैं कि आजकल के कांच वाले à¤à¥‚मर (chandeliars) उनके सामने पानी à¤à¤°à¤¤à¥‡ दिखाई दें। संगमरमर के हज़ारों पà¥à¤·à¥à¤ª बनाये गये हैं और हर पà¥à¤·à¥à¤ª की पंखà¥à¥œà¥€ तक आते आते पतà¥à¤¥à¤° इतना पतला कर दिया गया है कि पà¥à¤°à¤•ाश उसके आरपार à¤à¤¾à¤‚कने लगता है।  यदि à¤à¤• à¤à¥‚मर लगà¤à¤— पूरा तैयार हो और आखिरी पà¥à¤·à¥à¤ª बनाते समय पतà¥à¤¥à¤° टूट जाये तो कà¥à¤¯à¤¾ होता होगा? :(
दिलवाड़ा मंदिर देख कर हम लोग मधà¥à¤¬à¤¨ आगये यानि बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ का अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯à¥¤Â सà¥à¤¬à¤¹ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर परिसर से चलते समय यहां मधà¥à¤¬à¤¨ में हमें दोपहर का à¤à¥‹à¤œà¤¨ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करने का सà¥à¤à¤¾à¤µ दिया गया था जिसे जिसे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ à¤à¥‹à¤œà¤¨ कहा जाता है और हर कोई इस à¤à¥‹à¤œà¤¨ को पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से गà¥à¤°à¤¹à¤£ करता है। हम सब की पहचान के लिये हमें सà¥à¤à¤¾à¤µ दिया गया था कि हम अपने वकà¥à¤· पर ’अतिथि’ वाला कागज़ का बैज लगाये रखें ताकि आप जहां कहीं à¤à¥€ जायें, कहीं बी.के. à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ और बहनों को आपको पहचानने में तà¥à¤°à¥à¤Ÿà¤¿ न हो और आपका यथोचित समà¥à¤®à¤¾à¤¨ हो।  कागज़ के इस बैज का चमतà¥à¤•ारिक पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ हमने पीस पारà¥à¤• में à¤à¥€ देखा था।
यहां मधà¥à¤¬à¤¨ में à¤à¥€ हमें à¤à¥‹à¤œà¤¨ ककà¥à¤· में à¤à¥€à¥œ के बावजूद सबसे पहले à¤à¤• मेज़ दे दी गई। à¤à¥‹à¤œà¤¨ के बाद  वाशबेसिन पर जाकर बी.के. à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ – बहिनों की तरह हम à¤à¥€ अपने बरà¥à¤¤à¤¨ खà¥à¤¦ साफ करना चाहते थे, पर उसके लिये à¤à¥€ मना कर दिया गया।  हमें कहीं à¤à¥€ आने-जाने की मनाही नहीं थी। हमसे अपेकà¥à¤·à¤¾ थी तो केवल यह कि हम जोर-जोर से न बोलें और वहां के सामानà¥à¤¯ नियमों का पालन करें। हम जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर में जिन कमरों में ठहरे हà¥à¤ थे, उनके बाहर à¤à¤• मेज़ पर सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे à¤à¥€ थरà¥à¤®à¤¸ टाइप के सà¥à¤Ÿà¥€à¤² के बड़े कंटेनर में लगà¤à¤— उबलता हà¥à¤ पानी, चाय, दूध, कॉफी, ओटमिलà¥à¤•, चीनी, कप-पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ आदि रखे थे ताकि हम जो à¤à¥€ चाहें, जैसा à¤à¥€ चाहें, बना कर पी सकें।
à¤à¤• अनà¥à¤¯ मेज पर कपड़े पà¥à¤°à¥‡à¤¸ करने के लिये à¤à¥€ automatic, steam press का पूरा पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§ किया हà¥à¤† था। बी.के. परिवार के सà¤à¥€ सदसà¥à¤¯ à¤à¤• दूसरे को अà¤à¤¿à¤µà¤¾à¤¦à¤¨ करने के लिये हाथ जोड़ कर “ओमà¥â€Œ शांति†कहते हैं सो हमने à¤à¥€ यही अपना लिया था और उदयपà¥à¤° पहà¥à¤‚च कर à¤à¥€ हम आपस में à¤à¤• दूसरे को “ओमà¥â€Œ शांति†कह कर अà¤à¤¿à¤µà¤¾à¤¦à¤¨ करने लगे थे!
सà¤à¥€ बी.के. परिसरों में à¤à¥‹à¤œà¤¨ ककà¥à¤· की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ कà¥à¤› कà¥à¤› सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर के लंगर जैसी ही है। चाहे पनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¹ हज़ार लोग ही à¤à¥‹à¤œà¤¨ करने के लिये कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न आ जायें – पनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¹ मिनट में सबको à¤à¥‹à¤œà¤¨ परोस दिया जाता है। मैं बार – बार बी.के. लिख रहा हूं शायद आप समठही चà¥à¤•े होंगे कि बी.के. का अरà¥à¤¥ है – बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° या बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ !
à¤à¥‹à¤œà¤¨ करने के बाद हम आधा घंटा बाबा के कमरे में आकर बैठगये। “बाबा का कमरा†यानि धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ ककà¥à¤· ! इस ककà¥à¤· में आपस में बातचीत करना बिलà¥à¤•à¥à¤² निषिदà¥à¤§ है। इस कमरे में जाते ही तब हैं जब आप कà¥à¤› देर शांति से बैठकर आतà¥à¤®à¤¾à¤µà¤²à¥‹à¤•न करना चाहते हैं। यहां सामने दीवार पर शिव बाबा यानि, परमपिता परमातà¥à¤®à¤¾ के पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• के रूप में night bulb जैसा à¤à¤• पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• जलता रहता है जिस में से सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤¿à¤® रंग की किरणें फूटती दिखाई देती हैं। उसी दीवार पर नीचे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ बाबा का à¤à¥€ à¤à¤• विशाल चितà¥à¤° लगा होता है।
बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ बाबा यानि इस संसà¥à¤¥à¤¾ के संसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤• जिनको 1937 में दिवà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ मिला और उसके बाद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इस दिवà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को आगे बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ के लिये इस संसà¥à¤¥à¤¾ को जनà¥à¤® दिया। पांच छोटी – छोटी बालिकाओं को साथ लेकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¿à¤¤à¤¾ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की। ये पांचों बालिकायें आज दादी के रूप में जानी जाती हैं और इस संसà¥à¤¥à¤¾ की मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¿à¤•ा मानी जा सकती हैं। इन सà¤à¥€ की आयॠ80 वरà¥à¤· से अधिक है। कà¥à¤› वरà¥à¤· पहले इनमें से à¤à¤• सबसे बड़ी दादी की आयॠपूरà¥à¤£ हो चà¥à¤•ी है।
ये सब दादियां और अनà¥à¤¯ टीचर बहनें और बी.के. à¤à¤¾à¤ˆ लोग बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ का वà¥à¤°à¤¤ लेकर आजीवन अविवाहित रहते हैं। दादियां इस अंतरà¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ संसà¥à¤¥à¤¾ की पà¥à¤°à¤®à¥à¤– हैं जिसके लगà¤à¤— आठलाख सदसà¥à¤¯ हैं पर इतनी सरल और मधà¥à¤° सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ की हैं कि जब देखो बी.के. à¤à¤¾à¤ˆ और बहनें उनको परिसर में कहीं पर à¤à¥€ घेर कर खड़े हो जाते हैं और “गप-शप†करने लगते हैं।  यह बात अलग है कि इस “गप-शप†में à¤à¥€ ये बड़े महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ ततà¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ की बातें बता जाती हैं!
हमसे तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बस यही पूछा कि हम आननà¥à¤¦ से हैं या नहीं, à¤à¥‹à¤œà¤¨ किया या नहीं, कोई असà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ तो नहीं है, बाबा के कमरे में बैठे या नहीं, अपने शहर में हम अपने सेवा केनà¥à¤¦à¥à¤° पर नियमित रूप से जाते हैं या नहीं आदि आदि !  यहां चरण-सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ करने की कोई परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ नहीं है।  मैने आज तक à¤à¤• à¤à¥€ बी.के. सदसà¥à¤¯ को किसी à¤à¥€ दादी या टीचर बहिन के चरण-सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ करते नहीं देखा।
सà¤à¥€ टीचर बहनें à¤à¤¾à¤·à¤£ à¤à¥€ देती हैं तो इतने मधà¥à¤° सà¥à¤µà¤° में कि लगता है कानों में रसवरà¥à¤·à¤¾ हो रही हो।  “Speak less, Speak slowly, Speak sweetly†यह इन सà¤à¥€ का गà¥à¤°à¥à¤®à¤‚तà¥à¤° है। मà¥à¤à¥‡ वरà¥à¤· 2005 की à¤à¤• सेमिनार का सà¥à¤®à¤°à¤£ है। तीन-चार साल का à¤à¤• छोटा सा बचà¥à¤šà¤¾ हॉल में टहलते-टहलते सà¥à¤Ÿà¥‡à¤œ पर चॠगया था और घूमते – घूमते दादी के पास पहà¥à¤‚च गया जो उस समय मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¿à¤•ा थीं। नाराज़ होने के बजाय उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उस बचà¥à¤šà¥‡ को उठा कर पà¥à¤¯à¤¾à¤° से अपनी गोदी में बैठा लिया था जो कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® संपनà¥à¤¨ होने तक आराम से उनकी गोद में ही बैठा रहा।
धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ ककà¥à¤· से बाहर आये तो सामने वाले परिसर की ओर बॠचले जिसे यूनिवरà¥à¤¸à¤² पीस हॉल कहा जाता है। ये सà¤à¥€ हॉल à¤à¤• जैसे डिज़ाइन के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ही बनाये गये हैं, अनà¥à¤¤à¤° है तो बस इतना कि इनमें शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾à¤“ं के बैठने की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ अलग – अलग है।
यह पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤¤à¤® हॉल है। हर किसी हॉल यानि शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥ƒà¤¶à¤¾à¤²à¤¾ यानि auditorium में backdrop के रूप में बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤¬à¤¾à¤¬à¤¾ का चितà¥à¤° होता है और ऊपर शिव बाबा का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• चिहà¥à¤¨ होता है जिससे धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ केनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¤ करने में सहायता मिलती है। हॉल में साइड की दोनों दीवारों पर लगà¤à¤— 15-20 फीट की ऊंचाई पर कांच की खिड़कियां दिखाई देती हैं जिनमें विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के अनà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤• बैठते हैं। कà¥à¤› सीटों पर हैडफोन लटके हà¥à¤ रहते हैं जिन पर à¤à¤¾à¤·à¤¾ लिखी होती है। आप अपनी à¤à¤¾à¤·à¤¾ का हैडफोन कानों पर लगा सकते हैं। पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ का अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ आपको आपकी à¤à¤¾à¤·à¤¾ में सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾ जाता रहेगा।

पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ के अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ के लिये खिड़कियों में अनà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤• मौजूद हैं।
यहां से विदा लेकर हमने सोचा कि अब दो घंटे आराम करें और शाम को पà¥à¤¨à¤ƒ नकà¥à¤•ी लेक पर पहà¥à¤‚च जायें। अतः बाबू को जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर के लिये कह कर हम गाड़ी में बैठगये। शाम को पà¥à¤¨à¤ƒ नकà¥à¤•ी लेक पर गये। पà¥à¤¨à¤ƒ बोटिंग की, बाज़ार में घूमे – फिरे और वहीं खाना à¤à¥€ खाया और रात को नौ बजे पà¥à¤¨à¤ƒ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर में आ गये और दो-à¤à¤• घंटे मकà¥à¤–न जैसी घास पर लॉन में ही लेटे रहे और दूर-दूर तक फैले जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर परिसर के सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ को निहारते रहे।  हमारा जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर में रà¥à¤•ने का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ पैसे बचाना कतई नहीं था। वासà¥à¤¤à¤µ में मेरी इचà¥à¤›à¤¾ ये थी कि मैं अपने परिवार वालों को इस संसà¥à¤¥à¤¾ की जानकारी पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· अनà¥à¤à¤µ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने में सहायता करूं। आपस में सोच विचार कर सरà¥à¤µà¤¸à¤®à¥à¤®à¤¤à¤¿ से यह पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ पास हà¥à¤† कि यहां पर कà¥à¤› न कà¥à¤› आरà¥à¤¥à¤¿à¤• सहयोग अवशà¥à¤¯ किया जाना चाहिये। अतः लगà¤à¤— दस बजे हम बाबा के कमरे में गये और वहां रखी हà¥à¤ˆ गà¥à¤²à¥à¤²à¤• में अंदाज़े से इतनी राशि छोड़ आये जो हम दो दिन किसी होटल में ठहरते तो शायद खरà¥à¤š करते। गीता बहिन जी के लिये उनके कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में संदेश छोड़ आये कि हम सà¥à¤¬à¤¹ वापिस जा रहे हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे हमारा जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर से पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ करने का इरादा था।
- शायद यही है गांधी जी का चबूतरा
- शाम को नकà¥à¤•ी à¤à¥€à¤²
- नकà¥à¤•ी à¤à¥€à¤² के आसपास बाज़ार
- वापस टैकà¥à¤¸à¥€ सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड की ओर
- नकà¥à¤•ी à¤à¥€à¤² पर à¤à¤• रेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤‚ट
- वज़न करवा लो जी !
दिन à¤à¤° के आनंद दायक अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚ को याद करते हà¥à¤ हम सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे का अलारà¥à¤® लगा कर सो गये और सà¥à¤¬à¤¹ जब उठकर बाहर तब आये जब हमें बाबूराम डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने सà¥à¤¬à¤¹ फोन किया और कहा कि वह बाहर हमारी पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ कर रहा है। हम सब ने अपनी अपनी इचà¥à¤›à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° चाय-काफी-ओटमिलà¥à¤• बना कर पिया (मैने कà¤à¥€ à¤à¥€ ओट मिलà¥à¤• का सà¥à¤µà¤¾à¤¦ नहीं लिया था अतः मैने तो वही लिया) और गाड़ी में बैठकर वापिस उदयपà¥à¤° की ओर चल पड़े। पहाड़ी रासà¥à¤¤à¥‡ पर कार की हैडलाइट के पà¥à¤°à¤•ाश में आधा – पौना घंटा चलते-चलते जब हम आबू रोड यानि तलहटी तक पहà¥à¤‚चे, सूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯ हो गया था और मेरे तीनों परिवार वाले अपनी अपनी सीटों पर लà¥à¥à¤•े पड़े सो रहे थे। मैने अपने बैग में से आबिदा परवीन की à¤à¤• सी.डी. Kabir by Abida बाबूराम को दी और बेगम आबिदा के सूफी कलाम का मज़ा लेते – लेते दस बजे तक वापिस उदयपà¥à¤° आ पहà¥à¤‚चे। रासà¥à¤¤à¥‡ में बाबूराम के साथ,  उदयपà¥à¤° में कहां – कहां, कब – कब जायेंगे, कà¥à¤¯à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ देखेंगे यह सब पà¥à¤²à¤¾à¤¨ बना डाले।  मà¥à¤à¥‡ लगा कि बाबूराम को हमारी रà¥à¤šà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ – अà¤à¤¿à¤°à¥à¤šà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के बारे में कà¥à¤› जानकारी हसीन ने पहले से ही दे रखी थी। बाबूराम बहà¥à¤¤ सीमित बोलने वाला वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ था जो सिरà¥à¤« आदेशों का पालन करना जानता था।















































बढ़िया विवरण….और ये पोस्ट तो मानो ब्रह्म-कुमारी स्पैशल थी… आपकी पोस्ट पढ़ कर लगा कि आपको भी लगता है ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हो गई है ।
आपकी पोस्ट पढ़ कर मैने भी सोचा कि वहां जाकर कुछ आत्म-ज्ञान प्राप्त करूं पर अचानक मेरा कुंडली जागरण हो गया और मैने जाना कि दादी तो मेरे घर में ही मौजूद है (दादी हिंदी वाली नहीं मुंबई वाली)…मेरी धरमपत्नी मुझे यदा कदा प्रवचन देती रहती है कि मै कितना अज्ञानी हूं तथा अपने गधे मित्रों से बेकार ही attachment रखता हूं… मुझे धन दौलत से इतना प्रेम नही होना चाहिये व सब उनके चरणो मे अर्पित कर देना चाहिये ताकि वो अपनी किटीस में व शापिग में इस नश्वर माया को नष्ट कर के मुझे उनके चंगुल से बचा सकें.
इतनी महान दादी घर में होते हुये मै बेकार ही इधर उधर भटकता रहा.
खैर मजाक अलग…आपकी पोस्ट बेहतरीन थी पर कुछ व्यंग मिसिंग था
“” गुल्लक में अंदाज़े से इतनी राशि छोड़ आये जो हम दो दिन किसी होटल में ठहरते तो शायद खर्च करते। “” यानि केवल जो खरचा वो दे दिया… दान कुछ नही ??
सर जी,
मुंबई वाली ’दादी’ के श्रीचरणों में उनके इस देवर का दंडवत् प्रणाम स्वीकार हो ! बकौल दादी, आपने अपने ’गधे मित्रों’ की लिस्ट में किस – किस को शामिल कर रखा है? हम तो न तीन में ना तेरह में ? हा हा हा !
मैं सच बताऊं तो मुझे अपनी इस पोस्ट में खुद भी मज़ा नहीं आया ! फोटो लगा रहा हूं पर यही नहीं बता पा रहा हूं कि ये है कहां की! पर आप कह रहे हैं कि पोस्ट अच्छी है तो मज़बूरी है, मान लेता हूं। आपकी बात सिर माथे ! धन्यवाद भी ! वैसे आप से विनम्र आग्रह है कि आप मेरी पोस्ट का ठीक से पोस्टमार्टम किया करें ! मैं ईमानदारी का बहुत कायल हूं !
गुल्लक वाली बात आपकी सही है, पर जो किया सो लिख दिया। फालतू में महान बनने में क्या रखा है!
सुशांत जी बहुत अच्छी पोस्ट, धन्यवाद …वन्देमातरम…
धन्यवाद प्रवीन गुप्ता जी ! आप अपना नाम हिन्दी में कैसे लिखते हैं ? प्रवीन या प्रवीण ? मुझे आशा है कि प्रवीण ही लिखते होंगे जो कि शुद्ध भी है। वैसे मैने मुस्लिम महिलाओं में परवीन नाम भी प्रचलित देखा है। पता नहीं उसका स्रोत प्रवीण ही है या कहीं और से लिया गया है?
In Persian, Parveen refers to a cluster of stars known in our astronomy as Krittika. Our Praveen (प्रवीण) means proficient. However, the Sanskrit word Praveen becomes Parveen in Punjabi just like Indra becomes Inder. When it is for a male it is a स्रोत; for a female it isn’t, like Parveen Sultana, Parveen Babi or your favourite Sufi singer, Begum Abida Parveen.
A great post, I visited Mount Abu, some years ago, but didn’t’ go inside the ashram.
Thanks.
Thank you Praveen Wadhwa Ji,
Did you have several posts already written somewhere, say, in your diary? I envy your speed, accuracy and efficiency. All of your posts are superb! I keep staring at the photographs of nature! Nilgiri photo is really unbelievable.
SS Ji
I never wrote about my journey or never had a diary. Even I read any book and disposed it upon reading or rather I always tear some pages from a book each day that I am reading on my walks, so not to carry the bulk.
Photographs are not always mine so pl. never compliment me for the photos.
प्रवीण वाधवा जी,
आपका पत्र पढ़ कर मुझे एक मजेदार किस्सा याद आ रहा है। आप की ही तरह एक और सज्जन को आदत थी कि वह जब भी यात्रा करते थे, एक नॉवल खरीद लेते थे और अगर यात्रा के दौरान ही नॉवल पूरा जो जाता था तो उसे रद्दी की टोकरी में डाल कर चल देते थे और अगर बीस-तीस पेज पढ़ने के लिये बच गये तो उनको फाड़ कर जेब में रख लेते थे और बाकी नॉवल रद्दी की टोकरी में । दूसरी आदत उनको ये थी कि किताब खरीदते ही उस पर अपना नाम और फोन नंबर भी लिख देते थे।
एक बार रात को एयरपोर्ट से लौट कर घर आये तो आधी रात को फोन की घंटी बजी । फोन पर कोई सज्जन बहुत परेशान थे और पूछ रहे थे, “भाई, भगवान के लिये ये तो बता दे कि मर्डर किया किसने था ? “
Sushantji, that is funny man!
I liked the presentation of the post!
As always very enjoyable read.
Very informative post and everything is in details. Thanks a lot share wonderful journey.
Dear Surinder Sharma Ji,
Did you really enjoy this post? I didn’t ! I had to write it because it was necessary to maintain the continuity.
Really good post, lot of information about Brahmkumar, otherwise press has always issues with Hindu Dharmguru, but I never read any thing against Brahmkumar. Nice to see group dance. Otherwise these days we saw lot of tension….
Thanks
No post by Sushant Singhal cannot be anything but good. However, you say that you did not really enjoy writing this particular post and it shows – for example, Vitamin H (humour) was missing. By your high standards, it was not an exceptional post, but we enjoyed it nevertheless and found it very informative about the Brahmakumaris.
As you say, not allowing photography in temples (not the sanctum) is a recent trend and the reasons are anything but spiritual. Sad that you could not present to us the magnificent architecture of Dilwara.
Thank u DL for this moral booster dose.
Sushant jee yeh bahut hee badiya series hai… kaafee kuch naya seekha maine is main, khas tor pay Brahmkumari sanstha ke bare main. Yahan hyderabad main bhee unka bahut bada kendra hai .
thanks.
Thank you DT (I hope you don’t mind using your initials only. After all, it is not DDT. :D
Brahmakumaris may not be having all elusive answers to our questions, but they are definitely a great organisation.
Nice Description AS USUAL
Small photos don’t make post attractive . : -)
Point noted Vishal Ji. You won’t find thumbnails in future posts. I also concur with your views. If we could see full-screen slide show of all images, that could have been a great alternative but in its present avtar, clicking every picture to see it enlarged is no fun.
yatra vivran sundar ha.
mount aabu jana padega, baccho ko kahta hu.
badhai.
डा. तिवारी जी,
आपने पोस्ट पसन्द की, इसके लिये आपका आभार ! आपको वास्तव में ही माउंट आबू जाकर बहुत अच्छा लगेगा। बच्चों को लेकर अवश्य ही जाइये। आप पता नहीं, देश के किस हिस्से में रहते हैं पर रेल से जाना हो तो आबू रोड स्टेशन पर देश की सभी प्रमुख गाड़ियां रुकती हैं। आबू रोड वहां से सिर्फ २५ किमी है। यदि आपके शहर में ब्रह्माकुमारी सेवा केन्द्र है तो उनसे संपर्क बनायें। वह आपकी सहायता कर सकेंगे।
प्रिय सुशांत जी….
बहुत बढ़िया लेख वो भी ब्रहाम्कुमारी आश्रम में जुड़ी जानकारी युक्त विवरण के साथ ….| पढ़कर कर अपने यहाँ पर बिताए पुराने दिनों को याद किया….|
फोटो बहुत लगे खासकर जो बड़े आकार के लगाए हैं….पर माफ करना ! छोटे आकार के फोटोओ को देखना मुझे रास नहीं आया ..फोटोओं को बड़े आकार में देखने के लिए उन पर क्लीक करना पड़ता हैं फिर वापिस आने में पूरी पोस्ट दुबारा से लोड होती हैं जो धीमी गति वाले नेट में परेशानी का सबब हैं …….. खैर यह मेरा नजरिया हैं….| आपने जो आधार देवी का नाम लिखा हैं…असल में उनका नाम अधर (होठ ) देवी हैं….|अचलगढ़ में भगवान भोले नाथ जी का मंदिर हैं ….|
लेख के लिए धन्यवाद….
प्रिय सुशांत जी….
बहुत बढ़िया लेख वो भी ब्रहाम्कुमारी आश्रम में जुड़ी जानकारी युक्त विवरण के साथ ….| पढ़कर कर अपने यहाँ पर बिताए पुराने दिनों को याद किया….|
फोटो बहुत अच्छे लगे खासकर जो बड़े आकार के लगाए हैं…. माफ करना पर कहना पड़ रहा है ! छोटे आकार के फोटोओ को देखना मुझे रास नहीं आया ..फोटोओं को बड़े आकार में देखने के लिए उन पर क्लीक करना पड़ता हैं फिर वापिस आने में पूरी पोस्ट दुबारा से लोड होती हैं जो धीमी गति वाले नेट में परेशानी का सबब हैं …….. खैर यह मेरा नजरिया हैं….| आपने जो आधार देवी का नाम लिखा हैं…असल में उनका नाम अधर (होठ ) देवी हैं….|अचलगढ़ में भगवान भोले नाथ जी का मंदिर हैं ….|
लेख के लिए धन्यवाद….
प्रिय रितेश,
धन्यवाद ! मुझे भी ये thumbnails में मजा नहीं आ रहा है। मैने तो ये सोचा था कि जिनको विवरण पढ़ना है, उनको सुविधा रहेगी पर एक – एक फोटो देखने के लिये क्लिक करना – वास्तव में ही कष्टकारक है। आगे से ऐसा नहीं होगा। अधर देवी की त्रुटि शुद्धि के लिये शुक्रिया।
Apki post acchi lagi. Muhe mere us samay ko yaad dila diya jab maine aur mere family member ne kuch samay BK ke saath bitaya tha kyunki inka centre delhi me humare ghar ke samne hi tha. Mere family to unke saath mount abu ka inka main centre dekh aaye the unfortunately office ke kaaran mai nahi ja payi thi…
Accha laga post padh ke. Unki sabki yaad aa gayi.
Waise Murder kisne kiya wali conversation padh ke bahut accha laga.
Apko aur apki family ko humari taraf se very happy new year..
प्रिय सुशांत , इस सीरीज में शुरुआत में एक रिक्वेस्ट की थी की ब्रह्मा-कुमारी के बारे में बताएं और आपने इस लेख के द्वारा इस तरह पूरी करी की लगता है जैसे कोई वर्षों पुराना माँगा हुआ वरदान मिल गया हो । 15000 लोगों वाला हाल तो कमाल का है । इसके अलावा बी . क . के बारे में तमाम जानकारी मिली, नए साल में अच्छा ज्ञान वर्धन । थैंक यू ।
आबिदा परवीन के हम भी आशिक हैं :-) । और प्रवीण , परवीन और प्रवीन का भेद तो डी एल सर ने समझा ही दिया है । जय हिन्द ।
Dear Ghumakkars, I need your suggestion…..I am planning to drive from Jaipur to Mount Abu at midnight. I have travelled in this route during daytime, but is it a safe highway to drive during night?