मेरी चारधाम यातà¥à¤°à¤¾ – यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€
मेरी बहà¥à¤¤ समय से उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡-यातà¥à¤°à¤¾ की इचà¥à¤›à¤¾ थी और बीतते समय के साथ आशंका बलवती होती गई कि इस अतृपà¥à¤¤ इचà¥à¤›à¤¾ के साथ ही, इस संसार से कहीं विदाई ना हो जाये। 11 फरवरी 2011 को मेरे जीवन के 60 वरà¥à¤· पूरे हो जायेंगे। सन 2004 में डॉकà¥à¤Ÿà¤° ने मेरे हृदय-दौरà¥à¤¬à¤²à¥à¤¯ की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ करते हà¥à¤ बी.पी. नियमन आदि के लिठकà¥à¤› दवाà¤à¤ रोज लेने की हिदायत की थी। ऋषिकेश, यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€, उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी, गंगनानी, हरà¥à¤·à¤¿à¤², गंगोतà¥à¤°à¥€, गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤•ाशी, गौरीकà¥à¤£à¥à¤¡, केदारनाथ, तà¥à¤°à¤¿à¤œà¥à¤—ीनारायण, बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥, देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— आदि सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• विशेषता व पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ के विवरण ‘इंटरनेट’ के साथ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤‚चल सरकार दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उपलबà¥à¤§ ‘बà¥à¤°à¥‹à¤¶à¤°à¥à¤¸â€™ व अकà¥à¤¸à¤° दैनिक à¤à¤¾à¤·à¥à¤•र मे पà¥à¤°à¤•ाशित खà¥à¤¶à¤µà¤‚तसिंह के लेखों के पठन-मनन से ‘देव-à¤à¥‚मी’  उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤‚चल के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ मेरा आकरà¥à¤·à¤£ बढता ही गया। यह निरà¥à¤µà¤¿à¤µà¤¾à¤¦ सतà¥à¤¯ है कि आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से देव-à¤à¥‚मि उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ पृथà¥à¤µà¥€ का शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ तम सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है। यहाठशà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤®à¤œà¥€ ने बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¹à¤¤à¥à¤¯à¤¾ दोष निवारण के लिठदेवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— को चà¥à¤¨à¤¾à¥¤ तप-साधना के लिठविषà¥à¤£à¥ जी का पà¥à¤°à¤¿à¤¯ सà¥à¤¥à¤² बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ है। शंकरजी पूरे उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड मे विचर रहें हैं। हमारे करीबन सà¤à¥€ ऋषि-मनीषियों ने सातà¥à¤µà¤¿à¤• साधना के लिठइस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° को विशेष उपयà¥à¤•à¥à¤¤ पाया और आज à¤à¥€ अनेक वहां साधना-रत हैं।
इस वरà¥à¤· 2010 की बरसात में उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में काफी नà¥à¤•à¥à¤¸à¤¾à¤¨ हà¥à¤† विशेषकर सड़कों की हालत बहà¥à¤¤ खराब हो गई, जगह-जगह दूर तक पहाड़ ही सड़कों पर गिर पड़े जैसे गरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में रेत के टीले सड़कों/रेल-पटरियों पर सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤¾à¤‚तरित हो जाते हैं। परंतॠदोनों की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में विनाश और उसके दà¥à¤°à¥à¤¸à¥à¤¤ होने की दà¥à¤°à¥‚हता में कोई सामà¥à¤¯ नहीं है, उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में महीनों लग जायेंगें सà¥à¤—म आवागमन वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ बहाल करने में। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ तीरà¥à¤¥-यातà¥à¤°à¤¾ को पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ जमाने से ही कठिन जोखिमà¤à¤°à¥‡ रासà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के कारण अंतिम यातà¥à¤°à¤¾ के रूप मे जाना जाता रहा है।
पà¥à¤°à¤•ृति जनित विनाश के इस कठिन दौर में किसी और के जीवन को जोखिम में शामिल नहीं करने की इचà¥à¤›à¤¾ के कारण, मैं अकेला ही अपनी ‘अलà¥à¤Ÿà¥‹â€™ पर जयपà¥à¤° से 14-अकà¥à¤Ÿà¥‚बर-2010 को रवाना हो गया। सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ के समय हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° पहूंचकर ‘शांतीनिकेतन’ में रातà¥à¤°à¥€ विशà¥à¤°à¤¾à¤® के लिठवहाठके समनà¥à¤§à¤¿à¤¤ सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« से मà¥à¤à¥‡ पूरा सहयोग मिला। साधकों व यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की आहार-पूरà¥à¤¤à¤¿ के लिये यहाठपर दो विशाल कैणà¥à¤Ÿà¥€à¤¨ हैं। खाना, नाशà¥à¤¤à¤¾, चाय, दूध इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ की शà¥à¤¦à¥à¤§ व उचित मूलà¥à¤¯ पर उपलबà¥à¤§à¤¤à¤¾ यहाठकी विशेषता है। 15-अकà¥à¤Ÿà¥‚बर-2010 की सà¥à¤¬à¤¹ जलà¥à¤¦à¥€ ही तैयार होकर मैं शांतीनिकेतन के अवलोकन तथा अलà¥à¤ªà¤¾à¤¹à¤¾à¤° के लिठकमरे से बाहर आया। बडा ही आलà¥à¤¹à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ करने वाला सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° वातावरण था, यजà¥à¤ž-वेदी की धूम से वातावरण आचà¥à¤›à¤¦à¤¿à¤¤ था। चारों तरफ गेरà¥à¤ वसà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ से सà¥à¤¶à¥‹à¤à¤¿à¤¤ जीवातà¥à¤®à¤¾à¤à¤‚ कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ को अंजाम दे रहीं थी, पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ चल रहा था, योग साधना कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो चà¥à¤•ा था, बडा ही जीवंत शांतीमय वातावरण था। कैणà¥à¤Ÿà¥€à¤¨ खà¥à¤²à¤¨à¥‡ पर मैंने गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ ढोकले, गà¥à¤²à¤¾à¤¬à¤œà¤¾à¤®à¥à¤¨, गरà¥à¤® जलेबी व दूध का नाशà¥à¤¤à¤¾ किया। à¤à¥€à¤—े चने-मोठ-मूंगफली दाने के दोने, पà¥à¤°à¤œà¥à¤žà¤¾-पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के लडà¥à¤¡à¥‚, तली मूंगफली के पैकेट रासà¥à¤¤à¥‡ के लिठगाड़ी में रख लिये जो बाद में बहà¥à¤¤ ही उपयोगी साबित हà¥à¤à¥¤ यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ के लिठमैनें खड़ी चढाई वाले देहरादून-मसूरी की बजाय चमà¥à¤¬à¤¾ का रासà¥à¤¤à¤¾ चà¥à¤¨à¤¾ जो जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ कठिन साबित हà¥à¤†à¥¤ ऋषिकेश में पेटà¥à¤°à¥‹à¤² लेकर मà¥à¤¨à¥€ की रेती, नरेनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤—र का अवलोकन करते हà¥à¤ धीरे-धीरे चलता जा रहा था। मलबे से अटे पड़े रसà¥à¤¤à¥‡ को दà¥à¤°à¥à¤¸à¥à¤¤ करने में संलगà¥à¤¨ किसी ऑफिसर ने चमà¥à¤¬à¤¾ तक जाने के लिठलिफà¥à¤Ÿ मांगी, रासà¥à¤¤à¥‡ में उनसे जानकारी मिली कि पिछले विनाश के दिनों में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने रात-दिन à¤à¤• करके रासà¥à¤¤à¤¾ बहाल किया था, केदारनाथ के रासà¥à¤¤à¥‡ शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र के पास पहाड़ से अà¤à¥€ à¤à¥€ पतà¥à¤¥à¤° गिर रहे हैं, समà¥à¤à¤µà¤¤à¤¯à¤¾ रासà¥à¤¤à¤¾ चालू हो गया होगा अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ इसी रासà¥à¤¤à¥‡ से वापिस लौटना पड़ेगा। चमà¥à¤¬à¤¾ के पास सà¥à¤°à¤•णà¥à¤¡à¤¾ देवी के मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की काफी मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है। यह चमà¥à¤¬à¤¾ से 20 कि.मी.दूर है। धरासू होते हà¥à¤ बड़कोट में मैने रातà¥à¤°à¥€ विशà¥à¤°à¤¾à¤® लिया। बाजार मे जानकारी लेकर खाने के लिठहोटल को चà¥à¤¨à¤¾ परंतॠखाना पेट à¤à¤°à¤¨à¥‡ जैसा ही था। 16-अकà¥à¤Ÿà¥‚बर-2010 की सà¥à¤¬à¤¹ शीघà¥à¤° ही तैयार होकर नीचे आया तो होटल के कमरे की चाà¤à¥€ मà¥à¤à¥‡ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को जगाकर देनी पड़ी। सयानाचटà¥à¤Ÿà¥€, हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤šà¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ होते हà¥à¤ मैं 11 बजे के आस-पास जानकीचटà¥à¤Ÿà¥€ पहà¥à¤‚च गया। हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤šà¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ से कà¥à¤› आगे à¤à¤• लड़का मेरे साथ हो लिया था जो जानकीचटà¥à¤Ÿà¥€ में किसी होटल में नौकर था। होटल के सामने गाड़ी पारà¥à¤• कर जब मैं जाने लगा तो होटलवाले ने पà¥à¤•ारकर गाड़ी हटाने के लिठकहा अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ 50 रà¥.पारà¥à¤•िंग चारà¥à¤œ लगेगा। होटल में ठहरने पर à¤à¤¸à¤¾ कोई चारà¥à¤œ नहीं होगा जानकर मैंने कहा कि आते वकà¥à¤¤ रातà¥à¤°à¥€ मैं यहीं गà¥à¤œà¤¾à¤°à¤•र जाऊंगा, अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ जो चारà¥à¤œ होगा मà¥à¤à¥‡ देना है। यहां से पैदल 5 कि.मी.चढाई का रासà¥à¤¤à¤¾ है। खचà¥à¤šà¤° उपलबà¥à¤§ थे परंतॠमन में पैदल चलने की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ थी कि मेरी गाड़ी जब इतने दà¥à¤°à¥à¤—म रासà¥à¤¤à¥‡ से आई है तो मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ 5 कि.मी.का परिशà¥à¤°à¤® तो करना ही चाहिà¤à¥¤ बैग में à¤à¤• चदà¥à¤¦à¤° बिछाने की व à¤à¤• ओढने की, गीता का छोटा संसà¥à¤•रण, तौलिया-बनियान-अणà¥à¤¡à¤°à¤µà¤¿à¤¯à¤°-गमछा तथा à¤à¤• जोड़ी पैणà¥à¤Ÿ-शरà¥à¤Ÿ लेकर मैं चल पड़ा। उस दिन दशहरा था और साथ आये लडके ने à¤à¥€ नौकरी पर जाने से पहले यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ जाने की इचà¥à¤›à¤¾ कर मेरे बैग को ले मेरा पथ पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤• बन साथ हो लिया। मेरी सांस फूलने से आधे कि.मी.में ही दो तीन बार विशà¥à¤°à¤¾à¤® के लिठरà¥à¤•ने पर, मेरा साथ छोड़ते हà¥à¤ जाने के लिठअनेक बार कहने पर अंतत: उसने मान लिया। अपनी शारीरिक सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मैं धीरे-धीरे चलता रहा, थकावट बढती रही व रà¥à¤•ने की बारमà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¤à¤¾ तथा विशà¥à¤°à¤¾à¤® का समय à¤à¥€ बढता रहा। चार कि.मी. के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ उपर जाने वाला समà¥à¤à¤µà¤¤: मैं आखिरी यातà¥à¤°à¥€ रह गया था। वापिस लौटने वाले कई यातà¥à¤°à¥€ मिले जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने चढते समय मà¥à¤à¤¸à¥‡ वारà¥à¤¤à¤¾à¤²à¤¾à¤ª किया था। अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¤¾ होता जा रहा था। किसी जगह विशà¥à¤°à¤¾à¤® में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ समय रà¥à¤•ने पर कोई à¤à¤• कà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ आगे रासà¥à¤¤à¥‡ से वापिस आया और मेरे पास आकर मेरे पैर से अपने शरीर को रगड़ने लगा। मैं उससे “बातें करते हà¥à¤â€ उठकर चल पड़ा। बाकी का रासà¥à¤¤à¤¾ मैने इसी पà¥à¤°à¤•ार तय किया, मेरे रà¥à¤•ने पर वह वापिस आकर बैठजाता और चलने पर चल पड़ता। यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ के पास à¤à¤• पà¥à¤² को पार करने के बाद ही मनà¥à¤¦à¤¿à¤°Â हैं। पà¥à¤² पर पहà¥à¤‚च कर लकà¥à¤·à¥à¤¯-पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ की संतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ के साथ यमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ व पà¥à¤°à¤•ृति का कà¥à¤› कà¥à¤·à¤£ अवलोकन बड़ा ही शांतीदायक था। अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¤¾ हो चà¥à¤•ा था। किसी ने बताया कि अब तो कà¥à¤£à¥à¤¡ à¤à¥€ खोला जा चà¥à¤•ा है, जिसमें नहाकर ही यमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ की पूजा करने की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾- परिपाटी है। यमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ सूरà¥à¤¯-पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ हैं और किंनà¥à¤µà¤¿à¤‚दिति है कि सूरà¥à¤¯ à¤à¤—वान ने अपनी पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ यमà¥à¤¨à¤¾ को दहेज में अपनी à¤à¤• रशà¥à¤®à¥€ दी जिससे यमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ की à¤à¤• धारा गरà¥à¤® पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ होकर जिस कà¥à¤£à¥à¤¡ में गिरती है उसे “सूरà¥à¤¯à¤•à¥à¤£à¥à¤¡â€ कहते हैं। पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ सामगà¥à¤°à¥€ में चावलों की à¤à¤• पोटली à¤à¥€ होती है जिसे इसमें डालते हैं। वे शीघà¥à¤° ही पक जाते हैं और यही यमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ का पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ है। पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ ने बताया कि पोटली में पके चावलों को सà¥à¤–ाकर ले जाना चाहिये, अधपके चावल शीघà¥à¤° सूख जाते हैं, इसकारण वे पोटली के चावलों को पूरा नहीं पकाते हैं। घर पर खीर बनाते वकà¥à¤¤ उसमें इसके à¤à¤•-दो दाने डालने से ही उसमें यमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ की कृपा का समावेश हो जाता है। कहते है कि जय मà¥à¤¨à¥€ ने जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से à¤à¤°à¥‡ à¤à¤• हजार शà¥à¤²à¥‹à¤•ों की रचना की परंतॠनीरस जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का, बिना आसà¥à¤¥à¤¾ कोई à¤à¥€ मनन नहीं करेगा, यह विचारकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आसà¥à¤¥à¤¾ व सà¥à¤¨à¥‡à¤¹-पà¥à¤°à¥‡à¤® की देवी यमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ का आहà¥à¤µà¤¾à¤¨ किया। यमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ का पानी पी कर वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ की गोपियाठजीवनपरà¥à¤¯à¤‚त शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ इतनी आसà¥à¤¥à¤¾à¤µà¤¾à¤¨ व पà¥à¤°à¥‡à¤® से पगीं रहीं कि उनके मथà¥à¤°à¤¾ से नही लौटने के उपरांत à¤à¥€ शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ उनकी आसà¥à¤¥à¤¾ में तनिक à¤à¥€ कमी नहीं आई और शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£, वे तो जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ तम माने जाते हैं।
सूरà¥à¤¯à¤•à¥à¤£à¥à¤¡ का पानी à¤à¤• बड़े कà¥à¤£à¥à¤¡ मे आता है जहां ठणà¥à¤¡à¥‡ पानी की à¤à¤• धारा को मिलाकर सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¯à¥‹à¤—à¥à¤¯ तापमान पर कर लिया जाता है। यह कà¥à¤£à¥à¤¡ ऊपर से खà¥à¤²à¤¾ हà¥à¤† नहीं है। अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¤¾ होने पर कà¥à¤£à¥à¤¡ को खाली कर पà¥à¤¨: à¤à¤°à¤¨à¥‡ के लिठडाट लगादी जाती है। सीढीयों में कà¥à¤£à¥à¤¡ के खाली होने का पानी बह रहा था। मैं उपर जाकर सूरà¥à¤¯à¤•à¥à¤£à¥à¤¡ के पास सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ यमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ की पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤° शिला के पास बैठगया। नीचे पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ गरà¥à¤® पानी के कारण आसन गरà¥à¤® था। पास ही à¤à¤• पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¦à¤¨ कर रहे थे। पाà¤à¤š-पाà¤à¤š पà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के तीन गà¥à¤°à¥à¤ª में वहां करीबन पनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¹ पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ थे। à¤à¤• बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤— पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ ने पास आकर वारà¥à¤¤à¤¾à¤²à¤¾à¤ª पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ किया – कहाठसे आये हैं, अकेले ही हैं, अब तो रात आपको यहीं रà¥à¤•ना पड़ेगा, हमें कैसी तकलीफ-परेशानी, रात का खाना-परसाद हमारे साथ ही लीजियेगा, आप हमारे मेहमान हैं, सà¥à¤¬à¤¹ आपके पास जो बैठे हैं वे ही पूजा करवा देंगें आदि आदि। कà¥à¤› फिट दूरी पर यमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ के नव-निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में आरती शà¥à¤°à¥ हो गई थी और हमसब वहाठआरती में शामिल हो गये। आरती के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ मनà¥à¤¦à¤¿à¤°-पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में à¤à¤• जगह की ओर इशारा कर उनहोंने कहा कि आप यहां पर सो जाईयेगा, पास पड़े बिसà¥à¤¤à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤¦ में से à¤à¤• रजाई निकाल कर दे देंगें। हम सब यहीं पर सोते हैं। परंतॠकà¥à¤› ही देर में अनà¥à¤¯ पà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की गढवाली à¤à¤¾à¤·à¤¾ में कà¥à¤› पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ सà¥à¤¨à¥€ जिनके लहजे से महसूस हà¥à¤† कि वे मेरे विषय में बातें कर रहे हैं और मेरे वहाठपर सोने में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤¤à¤°à¤¾à¤œ है। खाने में उनका मà¥à¤–à¥à¤¯ खादà¥à¤¯ चावल-दाल तथा पतले फà¥à¤²à¥à¤•े थे। रसोई में चà¥à¤²à¥à¤¹à¥‡ के सामने बैठकर पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ पाकर बड़ी तृपà¥à¤¤à¤¿ मिली, यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ कà¥à¤› पà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के विरोध से उदà¥à¤µà¥‡à¤²à¤¿à¤¤ मन संकà¥à¤šà¤¿à¤¤ हो वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° कर रहा था। विरोध मेरे हितारà¥à¤¥ ही हो रहा था, यह मैने दूसरे दिन जाना। खाने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ वही बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤— आये और कहने लगे आपके लिठनीचे कमरे की चाà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करली है चलिठआपको दिखा देता हूà¤à¥¤ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° से कà¥à¤› सीढीयाठउतर à¤à¤• बड़ा कमरा था जिसमें पूरे फरà¥à¤¶ पर दरी बिछी थी और à¤à¤• बिसà¥à¤¤à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤¦ पड़ा था। सेंटर-टेबल और कà¥à¤°à¥à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¤• तरफ करने पर पांच-छ: वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के सोने लायक जगह निकल आई। पूरी बिजली वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ ठपà¥à¤ª होने के कारण टॉरà¥à¤š व मोबाईल की रोशनी ही सहायक थी। मैं शीघà¥à¤° ही नींद के आगोश मे चला गया। 17-अकà¥à¤Ÿà¥‚बर-2010 । अचानक दरवाजे की “सांकल†को तेज आवाज में खटखटाना सà¥à¤¨, अरà¥à¤§à¤šà¥‡à¤¤à¤¨à¤¾ में मैनें पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤‰à¤¤à¥à¤¤à¤° दिया कि ‘हाà¤-à¤à¤ˆ मैं आ रहा हूà¤â€™ परंतॠमोबाईल तलाश कर उसकी रोशनी में दरवाजा खोलने पर पाया कि वहां कोई नहीं है। मोबाईल सà¥à¤•à¥à¤°à¥€à¤¨ पर देखा तीन बजकर कà¥à¤› मिनट हà¥à¤ हैं। सोचा कि सà¥à¤¬à¤¹ जगाने वाले दरवाजा खà¥à¤¡à¤¼à¤–à¥à¤¡à¤¼à¤¾à¤¤à¥‡ होंगे। परंतॠअà¤à¥€ चार à¤à¥€ नहीं बजे यह विचारकर मैं दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ लेट गया। फिर मन में विचार आया कि घर पर तो हमेशा देर तक सोना चलता ही रहता है यहाठदरà¥à¤¶à¤¨ करने आया हूठतो बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®-मà¥à¤¹à¥‚रà¥à¤¤ में चेतना पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर आलसà¥à¤¯à¤µà¤¶ पà¥à¤¨: सोने की चेषà¥à¤Ÿà¤¾ नहीं करनी चाहिये और मैं मोबाईल-रोशनी मे कमरे के पास ही रकà¥à¤–े शौचालय-केबिन में निवृत हो, पेसà¥à¤Ÿ कर, कमरे से कपड़े à¤à¤•तà¥à¤°à¤¿à¤¤ कर कà¥à¤£à¥à¤¡ की तरफ चल पड़ा। कà¥à¤£à¥à¤¡ कितना गहरा है मà¥à¤à¥‡ पता नही था इसकारण सीढीयों पर छाती जितने पानी में रà¥à¤•कर मैने आराम व तसलà¥à¤²à¥€ से देवसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में जिन तीन (सà¥à¤µà¤¯à¤‚, माता व पतà¥à¤¨à¤¿) कà¥à¤²à¥‹à¤‚ का सà¥à¤®à¤°à¤£ करते हà¥à¤ डà¥à¤¬à¤•ीयाठली जातीं हैं और देव सà¥à¤®à¤°à¤£ करते हà¥à¤ जो à¤à¥€ सà¥à¤¤à¥à¤¤à¥€à¤¯à¤¾à¤-शà¥à¤²à¥‹à¤• मà¥à¤à¥‡ याद थे मैनें शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ व आननà¥à¤¦ के साथ लिये और बनियान तौलिया आदि वसà¥à¤¤à¥à¤° वहीं सूखने के लिये डाल, कमरे में आ अपनी कà¥à¤› अनà¥à¤¯ शà¥à¤µà¤¾à¤¸-पà¥à¤°à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ व योगासन कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ कीं और शवासन में लेट गया। अचानक वैदिक ऋचाओं को सà¥à¤¨ तनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ टूटी कि अरे मै यमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ की आरती में शामिल होने से वंचित हो गया। देवी की आरती के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ संसà¥à¤•ृत शà¥à¤²à¥‹à¤•ों का समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ रूप से ससà¥à¤µà¤° दीरà¥à¤˜ पाठकिया जाता है। इसी का अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ कर मैं तà¥à¤µà¤°à¤¿à¤¤ गति से मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की ओर दौड़ा परंतॠदेखा कि मनà¥à¤¦à¤¿à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में सà¤à¥€ पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ सोये हà¥à¤¯à¥‡ हैं। मैं यह सोचकर कि यह तपोसà¥à¤¥à¤²à¥€ है पास किसी आशà¥à¤°à¤® में पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤à¤œà¤¨ पाठकर रहे होंगे, सूरà¥à¤¯à¤•à¥à¤£à¥à¤¡ के पास पिछले दिन वाले आसन पर बैठगया। कà¥à¤› देर पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€à¤œà¥€ à¤à¥€ आ गये और सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¦à¤¨ करने लगे तो मैनें इजाजत ली कि आप सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ कर लें तबतक मैं कà¥à¤› घूम आता हूà¤, फिर आप मà¥à¤ से पूजा समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करा दीजीयेगा। दà¥à¤•ानवाले अपनी दà¥à¤•ान सजा रहे थे, होटलवाले चà¥à¤²à¥à¤¹à¥‡ जला अनà¥à¤¯ तैयारी कर रहे थे। मैनें कईयों से सà¥à¤¬à¤¹ किसी जगानेवाले का जिकà¥à¤° किया परंतॠà¤à¤¸à¤¾ किसी की à¤à¥€ जानकारी मे होने से सबने इनकार किया। नजदीक में काली-कमलीवाले का आशà¥à¤°à¤® था जिसमें कोई à¤à¥€ रà¥à¤•ा हà¥à¤† नही था कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि सीजन जा चà¥à¤•ा था और गà¥à¤œà¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक आपदा के कारण जो कà¥à¤› यातà¥à¤°à¥€ अपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ होते थे वे à¤à¥€ अब नगणà¥à¤¯ हो चà¥à¤•े थे। जà¥à¤¯à¥‹à¤‚-जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नकारातà¥à¤®à¤• उतà¥à¤¤à¤° मिलता  गया मेरी उतà¥à¤•णà¥à¤ ा और बढती गई। अंतत: पूजा के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ के बताने पर कि यहाठसà¥à¤¬à¤¹ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤®à¤¹à¥‚रà¥à¤¤ में देवगण माठयमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ की आरती-सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करते हैं मà¥à¤à¥‡ à¤à¤Ÿà¤•ा सा लगा कि यह तो मैं उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ टà¥à¤¯à¥‚रिजà¥à¤® की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¿à¤•ा/बà¥à¤°à¥‰à¤¶à¤° में पढ चà¥à¤•ा हूठऔर मà¥à¤à¥‡ अपनेपर गà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥€ मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ कोफà¥à¤¤ हà¥à¤ˆ कि à¤à¤¾à¤—-दौड़ करने की बजाय मैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नही आतà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤¤ करते हà¥à¤ उनकी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤¨à¤¤à¤¾ रहा। विचारों के à¤à¤‚à¤à¤¾à¤µà¤¤ के समय अनà¥à¤¯ यà¥à¤µà¤¾-पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ ने पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ (खाना) पाकर ही जाने की बात कही और मैं रà¥à¤• गया। पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ तैयार होने में कà¥à¤› समय की देरी थी। मैं कà¥à¤£à¥à¤¡ में पà¥à¤¨: उतर गया। वहाठरहने वाले सà¤à¥€ पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€, दà¥à¤•ानदार, खचà¥à¤šà¤° वाले जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ही समय मिलता है कà¥à¤£à¥à¤¡ की ऊपरी सीढीयों पर पानी में आ खडे होते हैं। चारों तरफ हिमाचà¥à¤›à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ पहाड़ों व यमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ के हिमशीतल जल की ठणà¥à¤¡ में इसमें खड़े होने से बड़ा आराम मिलता है। मैं काफी देर तक कà¥à¤£à¥à¤¡ में रहा। इन पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक गरà¥à¤® धाराओं का बड़ा ही चिकितà¥à¤¸à¤•ीय महतà¥à¤µ है। शरीर की कई वà¥à¤¯à¤¾à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤ नषà¥à¤Ÿ हो जाती हैं। गंगनानी के पाराशर कà¥à¤£à¥à¤¡ में मà¥à¤à¥‡ à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ मिला जो हरियाणा से अपनी पतà¥à¤¨à¥€ के किसी रोग को दूर करने के लिठतीन दिन से वहीं पर रà¥à¤•ा हà¥à¤† था, दिन में कई बार कई घणà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ तक वे कà¥à¤£à¥à¤¡ के गरà¥à¤® पानी में ही रहते थे। दिलà¥à¤²à¥€ के पास सोहना तावडू के गरà¥à¤® कà¥à¤£à¥à¤¡ के पास तो सà¥à¤¨à¤¾ है कि रिहायसी कमरों से ‘अटैच’ उस गरà¥à¤® पानी की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ के साथ बाथरूम तक उपलबà¥à¤§ करा दिये गये हैं। मैं दांई ओर के जबड़े से चबा नहीं पाता था, मà¥à¤à¥‡ पता ही नहीं चला कि कब और कहाठमà¥à¤à¥‡ इसके दरà¥à¤¦ से मà¥à¤•à¥à¤¤à¥€ मिली, 10 दिन की यातà¥à¤°à¤¾ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ जयपà¥à¤° वापिस पहूà¤à¤šà¤¨à¥‡ पर जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हà¥à¤† कि अब मैं दोनों जबड़े काम में ले रहा हूà¤à¥¤ दोपहर के खाने में मोटे चावल और दाल थी, रोटी वे रात के खाने में ही बनाते हैं। यमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ को बड़ी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ से पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® कर जीवन परà¥à¤¯à¤‚त ना à¤à¥‚लने वाली याद के साथ मैं धीरे-धीरे नीचे की ओर अगà¥à¤°à¤¸à¤° हà¥à¤†à¥¤ जानकीचटà¥à¤Ÿà¥€ से करीब डेढ कि.मी.पहले दिलà¥à¤²à¥€ के à¤à¤• पहà¥à¤‚चे हà¥à¤ गदà¥à¤¦à¥€à¤¨à¤¶à¥€à¤¨ बाबा, जिनके अधिकार कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में दिलà¥à¤²à¥€ का रामलीला गà¥à¤°à¤¾à¤‰à¤£à¥à¤¡ à¤à¥€ है, दिलà¥à¤²à¥€ में रामलीला का आयोजन à¤à¥€ जिनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ही किया जाता है, उनके à¤à¤• चेले ने राममनà¥à¤¦à¤¿à¤° बनाने के संकलà¥à¤ª के साथ डेरा डाला हà¥à¤† था। कà¥à¤› सà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‡ के लिये मैं वहां रà¥à¤•ा। वे वहां “राममनà¥à¤¦à¤¿à¤° वाले बाबा†के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हैं, इसी नाम से जाने जाते हैं। जाते समय à¤à¥€ मैं वहाठकà¥à¤› कà¥à¤·à¤£ रà¥à¤•ा था। तब अखणà¥à¤¡ रामायण का पाठचल रहा था। आज बाबाजी पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ बांट रहे थे। दिलà¥à¤²à¥€ की नामी व मà¤à¤¹à¤—ी दà¥à¤•ान के पैकिंग डबà¥à¤¬à¥‡, उनकी/उनके चेलों की समृदà¥à¤§à¤¤à¤¾ को दरà¥à¤¶à¤¾ रहे थे। ऑलमà¥à¤ªà¤¿à¤• गेमà¥à¤¸ में सौंपी गई कà¥à¤› जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के निरà¥à¤µà¤¹à¤¨ के लिये अपने गà¥à¤°à¥‚जी के बà¥à¤²à¤¾à¤µà¥‡ पर दिलà¥à¤²à¥€ गये हà¥à¤ वे उस दिन सà¥à¤¬à¤¹ ही लौटे थे। उनसे जानकारी मिली कि किस पà¥à¤°à¤•ार उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जरूरतमनà¥à¤¦ विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का चयन कर संसà¥à¤•ृत विदà¥à¤¯à¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¯à¤¨ के लिठबाहर à¤à¥‡à¤œà¤¾ और उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ में से कà¥à¤› को अखणà¥à¤¡ रामायण पाठके लिये बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ था। पाठ-समापन के समय उनके दिलà¥à¤²à¥€ में होने से उनकी विदाई-दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ नहीं हो पाई थी जिसे उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मेरे दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ यह कहते हà¥à¤ समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ कराई कि उनका पंथ तिलक इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ की इजाजत नही देता और मेरा बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ होना इस कारà¥à¤¯ का सà¥à¤¯à¥‹à¤— है। सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ करीब-करीब सà¤à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से उनका समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• था। बहà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के परिवारों तक उनकी जानकारी थी और इसकारण यातà¥à¤°à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ के कम होने के उपरांत à¤à¥€ उनके पास लोगों का आना-जाना अनवरत जारी था। मà¥à¤à¥‡ उनहोंने रात वहीं पर रà¥à¤•ने के लिठकहा। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ था कि राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ नमà¥à¤¬à¤° की à¤à¤• अलà¥à¤Ÿà¥‹ नीचे होटल के सामने खड़ी है और आशà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ किया कि होटल-मालिक पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ हैं, विधानसà¤à¤¾ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ à¤à¥€ लड़ चà¥à¤•े हैं यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ के वकà¥à¤¤ उनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शराब-वितरण के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ विरोध के कारण वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° में उनसे कटà¥à¤¤à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो गई थी। मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के पास बने à¤à¤• बड़े कमरे मे चà¥à¤²à¥à¤¹à¥‡ के पास तापते हà¥à¤ उनसे बाबाओं के à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤°à¥‡-आयोजन, पà¥à¤°à¤¥à¤¾ आदि के बारे में काफी जानकारी मिली जो मेरे लिठसरà¥à¤µà¤¥à¤¾ नईं थी, उनका à¤à¥€ à¤à¤• अलग ही संसार-समाज है। उनका सपना कि वहां à¤à¤• à¤à¤µà¥à¤¯ राम मनà¥à¤¦à¤¿à¤° बने की, लकà¥à¤·à¥à¤¯-पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिये ही उनका सारा धà¥à¤¯à¤¾à¤¨-पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ केनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¤ था। रातà¥à¤°à¥€ में पास ही à¤à¤• अनà¥à¤¯ कमरे में विशà¥à¤°à¤¾à¤® कर 18-अकà¥à¤Ÿà¥‚बर-2010 की सà¥à¤¬à¤¹ चलने के लिये तैयार हà¥à¤† तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि मैं कà¥à¤› देर रà¥à¤• जाऊठजब तक कि वे à¤à¥€ तैयार हो जाते हैं। वे à¤à¥€ साथ चलने का पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बना रहे हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनका गैस-सिलेणà¥à¤¡à¤° खाली हो गया है और बड़कोट से आगे से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उसे à¤à¤°à¤µà¤¾à¤•र लाना पड़ेगा। जयपà¥à¤° से चलने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ मैंने कोई à¤à¥€ नियमित दवा नहीं ली थी और अब मैं कà¥à¤› à¤à¤¾à¤°à¥€à¤ªà¤¨ महसूस कर रहा था। दवा कार मे होने से मैने कहा कि मैं होटल पहूà¤à¤šà¤•र इंतजार करता हूं। आप आज आये तो ठीक अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ रात मैं होटल में रà¥à¤• जाऊà¤à¤—ा और कल साथ चल चलेंग़ें। करीबन पौन कि.मी.चलने पर याद आया कि रात कमरे में यमà¥à¤¨à¤¾à¤œà¥€ का चावल-पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ जो सूखने के लिठडाला था वह मै à¤à¥‚ल आया हूं। चढाई चढने की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ कर ईचà¥à¤›à¤¾ की कि जाने दूठपरंतॠमन नहीं माना और मैं वापिस जाकर पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ को लेकर आया। फिर à¤à¥€ बाहर सूखने डाले दोनों बनियान, अणà¥à¤¡à¤°à¤µà¥€à¤¯à¤° व दोनों गमछे वहीं पर à¤à¥‚ल आया। कार से मैने दवा ली। होटल-मालिक के बेटे की सहायता से टायरों में हवा चेक की। टà¥à¤¯à¥‚बलेस टायर फिट करवाने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ मैनें गाड़ी में à¤à¤• फà¥à¤Ÿ-पमà¥à¤ª रख लिया था जिससे कि इमरà¥à¤œà¥‡à¤‚सी में गाड़ी को रिपेयर-सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ तक तो ले जाया जा सके। बाबाजी का जिकà¥à¤° करने पर बहà¥à¤—à¥à¤£à¤¾à¤œà¥€ का वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° अनमना सा हो गया। मैनें उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सौ रà¥. का नोट दिया कि वे पारà¥à¤•िंग के 50 काट लें तो उनहोंने 50 वापिस देने की बजाय कहा कि तीन दिन के 150 होते हैं, 50 उनहोंने छोड़ दिये। इसी समय बाबाजी आ गये और मैं बिना किसी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤‰à¤¤à¥à¤¤à¤° के उनको साथ ले रवाना हो गया। बड़कोट से देहरादून के रासà¥à¤¤à¥‡ नौगाà¤à¤µ से सिलेणà¥à¤¡à¤° ले उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बड़कोट छोड़ते हà¥à¤ मैं उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी के रासà¥à¤¤à¥‡ चला। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤–ाल-धरासू मोड़ के बीच बहà¥à¤¤ ही खराब रासà¥à¤¤à¤¾ है जिसे आते समय मैं अनà¥à¤à¤µ कर चà¥à¤•ा था इसकारण रातà¥à¤°à¥€-विशà¥à¤°à¤¾à¤® मैने बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤–ाल में लिया। 19-अकà¥à¤Ÿà¥‚बर-2010 की सà¥à¤¬à¤¹ होटल मालिक के छोटे à¤à¤¾à¤ˆ को धरासू छोड़ते हà¥à¤ डूणà¥à¤¡à¤¾ में खरीदारी के लिये रà¥à¤•ा। यहां गरà¥à¤® कपड़ों की अचà¥à¤›à¥€ दà¥à¤•ानें हैं। परंतॠकà¥à¤°à¥‡à¤¡à¤¿à¤Ÿ-कारà¥à¤¡ यहां चलते नहीं, à¤.टी.à¤à¤®.मशीनें यहाठकाम कर नहीं रही थी इसकारण मैं केवल à¤à¤• शॉल, à¤à¤• लेडीज-कोट व कà¥à¤› टोपियां ही ले पाया। मà¥à¤à¥‡ यातà¥à¤°à¤¾-अंत तक मलाल रहा कि मैं लेडीज-कोट सब के लिये नहीं ले पाया यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ दà¥à¤•ानदार चेक à¤à¤•à¥à¤¸à¥‡à¤ªà¥à¤Ÿ करने के लिये राजी था परंतॠवह मेरे पास नहीं था। उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी में साईन-बोरà¥à¤¡à¥‹à¤‚ से चमचमाते बाजार व टेकà¥à¤¸à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ की रेलमपेल से लग रहा था कि मैं किसी महानगर से गà¥à¤œà¤° रहा हूं। à¤à¤Ÿà¤µà¤¾à¤¡à¤¼à¥€, गंगनानी व उसके बाद हरà¥à¤·à¤¿à¤², धाराली, लंका, à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤‚ घाटी का रासà¥à¤¤à¤¾ बड़ा ही दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ व सà¥à¤•ूनà¤à¤°à¤¾ था। गंगा के विशाल पाट के बगल से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥€ सड़क बरबस रà¥à¤•ने के लिये बाधà¥à¤¯ करती थी। à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤‚ घाटी में à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤‚जी के दरà¥à¤¶à¤¨ कर चाय पी तब तक अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¤¾ हो चà¥à¤•ा था। काली-कमली आशà¥à¤°à¤® में रà¥à¤•ने के लिये इनकार किये जाने पर मैं गंगोतà¥à¤°à¥€ के लिये चल पड़ा। गंगोतà¥à¤°à¥€ में बाजार में गाड़ी पारà¥à¤• करने के पास ही कमरा मिल गया। खाना यहाठठीक था। 20-अकà¥à¤Ÿà¥‚बर-2010 की सà¥à¤¬à¤¹ गंगोतà¥à¤°à¥€-सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ के लिये मनà¥à¤¦à¤¿à¤°, à¤à¤¾à¤—ीरथी शिला होते हà¥à¤ घाट पर पहà¥à¤‚चा। घाट पर नहाते कोई नहीं मिला। किनारे पर पानी छिछला था जिसमें डà¥à¤¬à¤•ियाठनहीं ली जा सकती और बहाव बहà¥à¤¤ तेज था। किनारे से जरा à¤à¥€ आगे जाना खतरनाक था। दूर किसी घाट पर मà¥à¤à¥‡ दीवार दिखाई दी, कà¥à¤› गहरे तथा कम बहाव की आशा में मैं वहां गया और सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ की तैयारी की। अपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ गहराई वहां à¤à¥€ नही मिली, बहाव à¤à¥€ तेज ही था। कमर से नीचे तक पानी में किसी पà¥à¤°à¤•ार पैर जमाकर à¤à¤• डà¥à¤¬à¤•ी ली, हिम-शीतल पानी के कारण मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤• में अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¤¾ सा छा गया, दूसरी में बेहोशी सी महसूस होने लगी। कà¥à¤› दूरी पर गेरà¥à¤à¤µà¤¸à¥à¤¤à¥à¤°à¤§à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤• बाबा के साथ आठ-दस विदेशी आते हà¥à¤ नजर आये, बाबा से नजर मिलने पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हाथ हिला मेरा उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤µà¤°à¥à¤§à¤¨ किया। विदेशियों को à¤à¥€ जैसे वे बता रहे हों कि देखो आम à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¤œà¤¨ की गंगाजी में इतनी आसà¥à¤¥à¤¾ है कि सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ के लिये पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•ूल सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में à¤à¥€ वे यहाठडà¥à¤¬à¤•ी लेना अपना परम करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ समà¤à¤¤à¥‡ हैÂ, अपना अहोà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ समà¤à¤¤à¥‡ हैं कि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यहाठयह करने का मौका मिला। आतà¥à¤®à¤¿à¤• बल पर मैने तीसरी डà¥à¤¬à¤•ी ली, गिरने से समà¥à¤¹à¤²à¤¤à¥‡ हà¥à¤ कपड़े बदलने लगा तब तक वे विदेशी à¤à¥€ वहां आ गंगाजी मे उतरने लगे परंतॠकोई à¤à¤• à¤à¥€ डà¥à¤¬à¤•ी नहीं लगा सका। मेरे सà¥à¤à¤¾à¤µ कि ‘सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤‚कल सम वाटर ऑन योर हेड à¤à¤£à¥à¤¡ बॉडी’ को मानकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमारी आसà¥à¤¥à¤¾ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अपना आदरà¤à¤¾à¤µ पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¿à¤¤ किया। मà¥à¤à¥‡ अब उतनी ठणà¥à¤¡ महसूस नहीं हो रही थी। गंगा किनारे करीबन आधे घणà¥à¤Ÿà¥‡ बैठकर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करके मन को अतीव शानà¥à¤¤à¥€ मिली। मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में गंगाजी के दरà¥à¤¶à¤¨ किये। à¤à¤—ीरथ शिला पर बैठकर पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की। बोतलों में गंगाजी का पावन जल लिया और कà¥à¤› नाशà¥à¤¤à¤¾ कर रवाना हà¥à¤†à¥¤ à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤‚घाटी में चाय पी, हरà¥à¤·à¤¿à¤² में सेव खरीदे जो कि बहà¥à¤¤ ही रसीले थे और गंगनानी में आकर महरà¥à¤·à¤¿ पाराशर कà¥à¤£à¥à¤¡ में काफी देर तक सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कर ऋषि के मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में मानसिक धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ की चेषà¥à¤Ÿà¤¾ की। मेरा ऋषि-गोतà¥à¤° पाराशर है और मà¥à¤à¥‡ यहाठअपने पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करने में बड़ी शांती व पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ का आà¤à¤¾à¤¸ हà¥à¤†à¥¤ उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी से करीबन आठकि.मी.पहले शिवाननà¥à¤¦ आशà¥à¤°à¤® का बोरà¥à¤¡ देखकर मैं आशà¥à¤°à¤® में गया और सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ के सानिधà¥à¤¯ में कà¥à¤› दिन बिताने की समà¥à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ के लिये उनसे पूछा जिसे उनहोंने सहृदयता पूरà¥à¤µà¤• सà¥à¤µà¥€à¤•ार कर मेरे लिये à¤à¤• तीन बेडरूम का अपारà¥à¤Ÿà¤®à¥‡à¤£à¥à¤Ÿ खà¥à¤²à¤µà¤¾ दिया, उस वकà¥à¤¤ शायद यही खाली होगा। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€à¤œà¥€ बड़े ही जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ व सरलमना महातà¥à¤®à¤¾ हैं। आशà¥à¤°à¤® की दिनचरà¥à¤¯à¤¾ में सà¥à¤¬à¤¹ विषà¥à¤£à¥ सहसà¥à¤°à¤¨à¤¾à¤® का पाठ, नौ बजे नाशà¥à¤¤à¤¾à¥¤ फिर किसी गà¥à¤°à¤‚थ का विसà¥à¤¤à¤¾à¤°à¤¸à¤¹à¤¿à¤¤ वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾-विवेचन- परिचरà¥à¤šà¤¾ के साथ पठन। गà¥à¤°à¤‚थ के पूरे पठन में वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ लग जाते हैं। इस समय शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤·à¥à¤£à¥à¤¸à¤¹à¤¸à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤® गà¥à¤°à¤‚थ का पठन हो रहा था। 12 बजे दिन का खाना। शाम को चाय। छ: बजे रातà¥à¤°à¥€-खाने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ हारमोनियम के साथ शिव-सहसà¥à¤°à¤¨à¤¾à¤® पाठव सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿, धारावाहिक रामचरितमानस के कà¥à¤› अंश का पठन, हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤šà¤¾à¤²à¤¿à¤¸à¤¾ का पाठ, शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦à¥à¤°à¤œà¥€ की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ आदि के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किसी के à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ का निवारण। फिर रातà¥à¤°à¥€ विशà¥à¤°à¤¾à¤®à¥¤ नाशà¥à¤¤à¥‡ व दिन के खाने के मधà¥à¤¯ समय में जो परिचरà¥à¤šà¤¾ सहित वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾ होती है उसमे अनà¥à¤¯ जगह रहने वाले अनेक साधनारत जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤ªà¤¿à¤ªà¤¾à¤¸à¥ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ शामिल होने आते हैं। यह ईंगित करता है जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤µà¤¾à¤¨ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ से कà¥à¤› जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने व अपने पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के उतà¥à¤¤à¤° पाने में उन सरलहृदय महातà¥à¤®à¤¾ के सहयोग का। तीसरे दिन सà¥à¤¬à¤¹ शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤·à¥à¤£à¥à¤¸à¤¹à¤¸à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤® पाठके पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ मैनें गृहसà¥à¤¥ के लिये गà¥à¤°à¥ की महतà¥à¤¤à¤¾ व उनके पà¥à¤°à¤¤à¤¿ करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯-करà¥à¤® के विषय मे चरà¥à¤šà¤¾ के साथ उनसे गà¥à¤°à¥ बनने की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की तो उनहोंने कहा कि à¤à¤¸à¥‡ रसà¥à¤¤à¥‡ चलते किसी को गà¥à¤°à¥ नहीं बनाया करते, पहले सोच-विचार के साथ योगà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥ की खोज की जाती है। गà¥à¤°à¥ बनाने के बाद गà¥à¤°à¥ में कमियाठनही देखी जाती, वे जो à¤à¥€ आदेश दें पूरी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ के साथ उसे पूरा करना पड़ता है, चाहे वह कितना à¤à¥€ दोषपूरà¥à¤£ लगे। खोज के विषय में मैने पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•ार किया कि वेदांती-जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ किसी चीज का गà¥à¤¹à¥à¤¯à¤¤à¤® से अति-गà¥à¤¹à¥à¤¯à¤¤à¤® अरà¥à¤¥ विचारते रहते हैं परंतॠकिसी के लिये कà¥à¤¯à¤¾ उसे सरल रूप में सà¥à¤µà¥€à¤•ारना ही यथेषà¥à¤ नहीं होता ! जैसे जल की अति-गà¥à¤¹à¥à¤¯à¤¤à¤® विवेचना कà¥à¤°à¤® में ऑकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨-हाइडà¥à¤°à¥‹à¤œà¤¨-गैस, हाइडà¥à¤°à¥‹à¤œà¤¨-बम, विसà¥à¤«à¥‹à¤Ÿ के साथ विनाश अंतिम कà¥à¤°à¤® निचोड़ होगा और इसे सरल à¤à¤¾à¤µ में लें तो जल जीवन-सà¥à¤§à¤¾ है, इसके बिना पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ जीवित नहीं रह सकता। उनसे फिर à¤à¥€ नकारातà¥à¤®à¤• à¤à¤¾à¤µ ही मिला। फिर मैनें विचार किया कि महातà¥à¤®à¤¾à¤“ं से कà¤à¥€ बहस नहीं करनी चाहिये, तपसà¥à¤¯à¤¾ से उनकी वाणी पवितà¥à¤° हो जाती है, वे वचन-सिदà¥à¤§ हो जाते हैं। गृहसà¥à¤¥ के लिये उनके कथन का पालन ही करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है। उनसे बहस करना या मीन-मेख निकालना सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है। आशà¥à¤°à¤® में शà¥à¤°à¥€ गौरहरी मिशà¥à¤°à¤¾ जी (Retd.Principal Chief Conservator of Forest, Orissa) से मà¥à¤²à¤¾à¤•त हà¥à¤ˆà¥¤ वे सपतà¥à¤¨à¥€ 15 दिन शिवाननà¥à¤¦ आशà¥à¤°à¤® ऋषिकेश बिताकर कà¥à¤› समय यहां सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€à¤œà¥€ के सानिधà¥à¤¯ में रहने के लिये आये हà¥à¤ थे। 22-अकà¥à¤Ÿà¥‚बर-2010 को उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी में दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ ने कहा कि वहाठतो केवल विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥à¤œà¥€ हैं और गाइड के रूप में अपने à¤à¤• अनà¥à¤šà¤° को साथ à¤à¥‡à¤œ दिया। जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शà¥à¤°à¥€à¤—ौरहरीजी, उनकी पतà¥à¤¨à¥€ तथा मà¥à¤à¥‡ बड़ी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ के साथ शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥à¤œà¥€ व अनà¥à¤¯ निकटसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ मनà¥à¤¦à¤¿à¤°à¥‹à¤‚ में दरà¥à¤¶à¤¨ कराया। शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥-मनà¥à¤¦à¤¿à¤° परिसर में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ शकà¥à¤¤à¤¿à¤¸à¥à¤¤à¤®à¥à¤ के विषय में बताया कि इसके जमीन में गड़े छोर का कोई à¤à¥€ पता नहीं लगा पाया है। ऑफ-सीजन के कारण हमें दरà¥à¤¶à¤¨-सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿-धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में बड़ी सà¥à¤—मता रही। यहाठà¤à¥€ ICICI-Bank-ATM-Card  से पैसे निकालने की कोशिश निषà¥à¤«à¤² रही। ICICI-Bank  का ATM-Card किसी अनà¥à¤¯ बैंक की ATM मशीन पर ‘डिकà¥à¤²à¤¾à¤‡à¤¨â€™ हो जाता है और मà¥à¤à¥‡ ‘दणà¥à¤¡à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प’ 28 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ कोशिश के लिये और बरà¥à¤¦à¤¾à¤¸à¥à¤¤ करने पड़ते हैं। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ से अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ ले 23-अकà¥à¤Ÿà¥‚बर-2010 की सà¥à¤¬à¤¹ मैं वहां से केदारनाथ के लिये रवाना हà¥à¤†à¥¤ हलकी बूनà¥à¤¦à¤¾à¤¬à¤¾à¤¨à¥à¤¦à¥€ हो रही थी, सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ ने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ गेट खोलते हà¥à¤ आशिरà¥à¤µà¤šà¤¨ कहे और शà¥à¤°à¥€à¤—ौरहरीजी मà¥à¤à¥‡ ‘विश’ करने नंगे पाà¤à¤µ ही आ गये। उनकी सहृदयता व सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ ने मà¥à¤à¥‡ अनà¥à¤¦à¤° तक à¤à¤¿à¤—ो दिया जिसे मैं अब à¤à¥€ महसूस करता हूà¤à¥¤
शर्मा जी आप के साहस की दात देनी पड़ेगी, चार धाम की यात्रा में अकेले वो भी खुद ड्राइव कर के. में पिछले साल दो धाम की यात्रा में गया था , अपनी गाड़ी देहरादून छोड कर टॅक्सी से यात्रा पूरी की. मेरे लेख का लिंक नीचे दिया है :-
https://www.ghumakkar.com/2010/06/22/an-introduction-to-dev-bhoomi-%E2%80%93-uttrakhand/
आपाप का लेख पढ़ कर अपनी पिछले साल की यात्रा याद आ गई, आप से निवेदन है की यदि हो सके तो कुछ तस्वीरे डाल दें.
शेष दो धाम यात्रा पे आप के लेख का इंतज़ार
आध्यात्मिक भ्रमण के लिये पैदल यात्रा श्रेष्ठ मानी गई है। पैदल चलते हुए आप स्थान विशेष, वहाँ के जीवन व वातावरण से जुड़ते हैं। पैदल चलने की शारीरिक क्षमता ना होने के कारण मैने वाहन से यात्रा की। स्वयं ड्राइव करते हुए जाना चलने की अशक्तता की पूर्ति मात्र ही था और इससे आनन्द में वृद्धी ही हुई। यात्रा स्वान्तःसुखाय थी इसकारण फोटो के लिये कैमरे को लेना याद नही रहा। मोबाइल फोन वाले कैमरे से भी मैने कोई स्नैप नहीं ली थी। यात्रा का शेष विवरण पूर्ण होते ही घुमक्कड़.कॉम पर डाल दूंगा। आपके कमेण्ट के लिये धन्यवाद।
नमस्कार,
जाट देवता की राम राम
आप को इस उम्र में इतनी हिम्मत करते देख
जी चाहता है कि आपके साथ एक यात्रा करु।
परन्तु आप एक ही जगह ज्यादा दिनों तक रुक जाते है
jatdevta.blogspot.com
मेरी यात्रा क उद्येश्य केवल उस स्थल को देखना मात्र नहीं था, वरन उसे महसूस करना था, जिस आध्यात्मिक विशेषता के लिये वह प्रसिद्ध है – उसे जाना जाता है। ऐसे कार्य के लिए हप्ते, महीने, वर्ष भी कम हो जाते हैं और कुछ क्षण की अनुभूति ही अंतर्मन को भर देती है। खैर मैने कोई केवल ‘एडवेण्चर’ के लिये यह यात्रा नहीं की थी। आपके साथ यात्रा कर मुझे प्रसन्नता होगी।
आपकी चाहना और ‘कमेण्ट’ के लिये धन्यवाद।
आपकी लेख पढ़ते समय ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मैं आपके साथ ही यात्रा करा रहा हूँ. आपका लेखन इतना जिवंत है की इसमें चित्रों की आवश्यकता ही नहीं महसूस हुयी, फिर भी अगर आपकी यात्रा के कुछ नजारों को अगर देख पता तो खुद को धन्य समझता. मुझे एक बात और अच्छी लगी आपकी की आप सिर्फ स्थानों को देखते नहीं अपितु उन्हें निकट से महसूस भी करते है, कुछ समय वहां बिता कर स्थान की आध्यात्मिकता में रम जाते हैं. यह आपकी विशेषता है जो दर्शाती है की आप सज्जन और अध्यात्मिक है, तभी तो मार्ग में मिलने वाले साधू जन भी आपसे जुड़ाव महसूस करते हैं. मैं भी निकट भविष्य में आप ही की भाती इन सभी स्थानों को देखना चाहूँगा. चाहता हूँ जल्द ही आपके क्रमश लेख पढू!
आपके कमेण्ट के लिये धन्यवाद। हम भारतीयों की मुख्यतया यात्रायें आध्यात्मिक ही होती हैं। पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से अब एडवेंचर या केवल घूमने के लिये यात्रायें होने लगी हैं। भविष्य में यात्रा के दौरान चित्रों का लेना नहीं भूलूंगा। नियमित लेखन की आदत नहीं होने के कारण मैं यात्रा वृतांत पूरा नहीं लिख पाया। शीघ्र ही शेष वृतांत पूर्ण कर घुमक्कड पर डालने की चेष्टा है। आपके कमेण्ट से इसे शीघ्रतापूर्वक पूर्ण करने की प्रेरणा मिली।
घुमककर पर आपका हार्दिक स्वागत है | निश्चित तौर पर आप हम सभी के लिए एक बहुत बड़ी इन्स्पिरेशन हैं | काफ़ी समय के बाद एक हिन्दी का यात्रा संस्मरण बिल्कुल हिन्दी स्टाइल में पढ़ने को मिला | मैं कभी इस तरफ नहीं गया, हालाँकि मैने घुमककर पर काफ़ी लेख पढ़े परंतु आपकी लेखनी में एक अजब सा आकर्षण है | ऐसा लगा मानो आपके साथ ही चल रहा हूँ | हर एक मोड़ का विवरण विस्तार से है | आपकी गति में एक स्पेशल सा ठहराव है और वो रीडर को बाँधे रखता है | धन्यवाद हमे साथ ले जाने के लिए | घुमककर पर ऐसे ही अनेक यात्रा वृतांतो की आशा में |
नंदन
आपकी प्रतिक्रिया के लिये धन्यवाद। मेरा मानना है कि देव-भूमी-उत्तराखण्ड की जिसने यात्रा नहीं की वह आस्तिक व्यक्ति जीवन के एक अहम आनन्द से वंचित रह गया। पूर्ण विश्वास के साथ यात्रा करें कि वहां ईश्वर की निकटता अधिकतम है।
Just do me a favor and keep writing such trenchant alnayess, OK?
“…प्रकृति जनित विनाश के इस कठिन दौर में किसी और के जीवन को जोखिम में शामिल नहीं करने की इच्छा के कारण, मैं अकेला ही अपनी ‘अल्टो’ पर जयपुर से 14-अक्टूबर-2010 को रवाना हो गया। …”
यह तो आपने ठीक नहीं किया. आपके प्रियजन साथ रहते तो यकीनन और ज्यादा मजा आता. वैसे, आपके इस विवरण को पढ़कर दोबारा उत्तराखंड यात्रा की प्लानिंग कर रहे हैं. पहाड़ हैं ही ऐसे. और जो आपने कुछ चमत्कारिक वर्णन किए हैं तो हमने भी वहाँ ऐसे ही कुछ अनुभव किए हैं.
आपने जो अनुभव किया उसे जानने की इच्छा है ।