सफ़र सिक्किम का भाग 1 : सिलिगुड़ी के जंगल और वो बलखाती नदी…

गर्मियाँ अपने पूरे शबाब पर हैं । आखिर क्यूँ ना हों, मई का महिना जो ठहरा । अगर ऐसे में भी सूर्य देव अपना रौद्र रूप हम सबको ना दिखा पायें तो फिर लोग उन्हें देवताओं की श्रेणी से ही हटा दें :)। अब आपके शहर की गर्मी तो मैं कम कर नहीं सकता, कम से कम इस चिट्ठे पर ही ले चलता हूँ एक ऐसी जगह जहाँ पिछले महिने तमाम ऊनी कपड़े भी हमारी ठंड से कपकपीं कम करने में पूर्णतः असमर्थ थे।

बात 7 अप्रैल की है जब हमारा कुनबा रांची से रवाना हुआ । अगली दोपहर हम न्यू जलपाईगुड़ी पहुँचे । हमारा पहला पड़ाव गंगतोक था जो कि सड़क मार्ग से सिलीगुड़ी से 4 घंटे की दूरी पर है । घुमावदार रास्तों की शुरुआत होने के पहले आई इस रेलवे क्रासिंग पर जब हमारी जीप रुकी तो हाथ पैर सीधे करने के लिए हम सभी नीचे उतरे..



सिलीगुड़ी से 30 किलोमीटर दूर चलते ही सड़क के दोनों ओर का परिदृश्य बदलने लगता है पहले आती है हरे भरे वृक्षों की कतारें जिनके खत्म होते ही ऊपर की चढ़ाई शुरू हो जाती है।

हाँ, एक बात तो बतानी रह ही गई कि सिलीगुड़ी से निकलते ही हमारे इस समूह को इक नयी सदस्या मिलने वाली थीं। वो यहाँ से जो साथ हुईं….क्या बताऊँ पूरा सफर उसकी मोहक इठलाती तो कभी बलखाती अदाओं को निहारने में ही बीता। खैर,कुछ भी हो उसकी वजह से पूरी यात्रा खुशनुमा रही ।

क्या कहा आपने नाम क्या था उनका? अजी छोड़िए नाम में क्या रखा है पर फिर भी आप सब की यही इच्छा है तो बताये देते हैँ….नाम था उनका तीस्ता । कहीं आप कुछ और तो उम्मीद नहीं लगाये बैठे थे ?
खैर तीस्ता की हरी भरी घाटी और घुमावदार रास्तों में चलते चलते शाम हो गई और नदी के किनारे थोड़ी देर के लिये हम टहलने निकले। नीचे नदी की हल्की धारा थी तो दूर पहाड़ पर छोटे छोटे घरों की बगल से निकलती उजले धुँऐ की लकीर।

On the way to Gangtok from Siligudi...

गंगतोक से अभी भी हम 60किलोमीटर की दूरी पर थे। करीब 7.30 बजे हमें ऊँचाई पर बसे शहर की जगमगाहट दूर से ही दिखने लगी । पर गंगतोक में तो हमारी इस यात्रा का संक्षिप्त ठहराव था । हमें अभी बहुत दूर और बहुत ऊपर जाना था ……

गंगतोक पहुँचते ही हमने होटल में अपना सामान रखा । दिन भर की घुमावदार यात्रा ने पेट में हलचल मचा रखी थी। सो अपनी क्षुधा शान्त करने के लिये करीब ९ बजे मुख्य बाजार की ओर निकले । पर ये क्या एम. जी. रोड पर तो पूरी तरह सन्नाटा छाया हुआ था। दुकानें तो सारी बंद थीं ही कोई रेस्तरॉ भी खुला नहीं दिख रहा था ! पेट में उछल रहे चूहों ने इत्ती जल्दी सो जाने वाले इस शहर को मन ही मन लानत भेजी ।मुझे मसूरी की याद आई जहाँ रात १० बजे के बाद भी बाजार में अच्छी खासी रौनक हुआ करती थी । खैर भगवन ने उन चूहों की सुन ली और अंततः घूमते घामते हमें एक बंगाली भोजनालय खुला मिला । वैसे भोजन यहाँ अन्य पर्वतीय स्थलों की तुलना में सस्ता था ।

सुबह हुई और साथ वालों ने खबर दी की बाहर हो आओ अच्छा नजारा है । फिर क्या था निकल पड़े कैमरे को ले कर। होटल के ठीक बाहर जैसे ही सड़क पर कदम रखा सामने का दृश्य ऐसा था मानो कंचनजंघा की चोटियाँ बाहें खोल हमारा स्वागत कर रही हों । आप भी देखें !

Kanchanjungha as seen from Gangtok

सुबह का गंगतोक शाम से भी प्यारा था । पहाड़ों की सबसे बड़ी खासियत यही है कि यहाँ मौसम बदलते देर नहीं लगती । सुबह की कंचनजंघा १० बजे तक तक बादलों में विलुप्त हो चुकी थी । कुछ ही देर बाद हम गंगतोक के ताशी विउ प्वाइंट (५५०० फीट MSL) पर थे । यहाँ से दो मुख्य रास्ते कटते हैं । एक पूरब की तरफ जो नाथू ला जाता है और दूसरा उत्तरी सिक्किम जिधर हमें जाना था ।

यात्रा की अगली कड़ी में ले चलूँगा आप सबको ताशी विउ प्वाइंट से चुन्गथांग तक जहाँ से तीस्ता नदी दो जल संधियों के जुड़ने से शुरू होती हैं ।

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