हिंदुस्तान का नाज़, यक़ीनन ताज….

ताज महल नहीं देखा, क्या मजाक कर रहे हो, जन्म से दिल्लीवासी हो फिर भी ताज नहीं देखा। दिल्ली से आगरा केवल 231 किमी ही तो है और बस, ट्रैन या फिर हवाई जहाज (जिससे जाने की तुम्हारी हैसियत फ़िलहाल है नहीं) जैसे भरपूर साधन उपलब्ध होने के बावजूद तुमने ताज नहीं देखा. अरे भाई अब तो यमुना एक्सप्रेस वे से दिल्ली-आगरा की दूरी भी घंटो में तय हो जाती है यही कोई तीन साढ़े तीन घंटे लगते है और तुमने कभी अपनी कार से जाने का भी प्रयत्न नहीं किया, कमाल है. एक बार देखो तो उस हसीं ईमारत को जिसे लगभग बीस हजार मजदूरो ने दिन रात काम करने के बाद तैयार किया था और तुम्हे पता है इसके निर्माण में लगाई गई सामग्री संगमरमर पत्थर राजस्थान के मकराणा से, अन्य कई प्रकार के कीमती पत्थर एवं रत्न बगदाद, अफगानिस्तान, तिब्बत, इजिप्त, रूस, ईरान आदि कई देशों से इकट्‍ठा कर उन्हें भारी कीमतों पर खरीद कर ताजमहल का निर्माण करवाया गया. और भाईसाहब कहते है की ताज नहीं देखा। अरे बाबा ताज केवल एक दूधिया ईमारत ही नहीं है बल्कि शाहजहाँ और मुमताज महल के प्रेम की एक अमिट निशानी है जिसे लोग जब देखते है तो देखने की इन्तहा हो जाती है लेकिन मन नहीं भरता।

ऐसे ही प्रश्नो के चक्रव्यूह में मैं स्वयं को अक्सर फंसा हुआ पाता था जब सामने उपस्थित विपक्षी दल को यह पता चलता था की मैंने कभी इंटरनेट के अलावा ताज नहीं देखा। वैसे एक दो बार मैंने अपने मित्रो से सप्ताहांत में ताज देखने के लिए कहा तो अवश्य था किन्तु अब वो सब मेरी तरह आजाद पंछी तो रहे नहीं थे और उनके गले में स्वेच्छा से घंटी (शादी) बंधी जा चुकी थी जिनमे से अब एक-आध घुंघरू (बच्चे) भी बजने लगे थे. बेचारे चक्की के दो पाटन (माता-पिता और सास-ससुर) के बीच ही पिसे जाते है, अब उनके लिए शनिवार और इतवार की दफ्तर से छुट्टी का मतलब घर की नौकरी ही रह गया है जहाँ से छुट्टी मिलना असंभव है….

खैर, कोई बात नहीं अपने घर में जब पता लगा की पड़ोस वाली आंटी एक बार ताज देखने के बाद फिर से ताज देखने जा रही है तो मेरी माताजी को भी अहसास हुआ की क्यों न एक बार हम भी देख आये उस दूधिया ईमारत को जिसे लोगो ने सात अजूबो की श्रेणी में शामिल कर रखा है. ऐसे ही बातो ही बातो में आगरा प्रस्थान की योजना बना ली गयी और नियत दिन व् तय समय पर हम तीन लोग में स्वयं, माताश्री और बहनाश्री अपनी विश्वसनीय वैगनर पर सवार हो कर दिल्ली की सड़को से निकलते हुए सीधे पहुँच गए यमुना एक्सप्रेस वे जहाँ साफ़, खुली और चौड़ी सड़क आपको सीधे आगरा में ले जाकर छोड़ देती है. मौसम की नजर से यह महीना पर्यटन हेतु काफी अच्छा प्रतीत हो रहा था, घरो में छिपे-दुबके लोग अब अपनी रजाइयों से बाहर झाँकने लगे थे और अधिकांशतः घरो की छतों पर सूखते रंग बिरंगे स्वेटर खेतो में खिले हुए फूलो से कम नहीं लगते। मतलब साफ़ है की दिल्ली की गुलाबी धुप अब विदा लेने के लिए आतुर है और अब हमे शीघ्र ही ग्रीष्म ऋतू का स्वागत करने के लिए तैयार होना पड़ेगा।

दिन गुरुवार, दिनांक उन्नीस फरवरी दो हजार पंद्रह, समय सुबह के आठ बजते ही हम लोग आगरा के लिए घर से रवाना हो गए. रास्ते में खाने के लिए वोही घर का बना खाना और साथ में नमकीन-बिस्किट पहले से ही पैक कर लिए थे. प्रस्थान मार्ग के रूप में यमुना एक्सप्रेसवे को सर्वसम्मति से तरजीह दी गयी जो की हमारे निवास स्थान (दक्षिण दिल्ली) से लगभग पैंतालीस किलोमीटर दूर है. फिर भी सुबह का समय होने के कारन अत्यधिक ट्रैफिक तो नहीं मिला और हमारी कार सरपट दौड़ते हुए सीधे एक्सप्रेसवे में प्रवेश कर गयी. मौसम बिलकुल साफ था और वर्किंग डे होने के कारन ज्यादा वाहन भी नजर नहीं आ रहे थे और हमारी कार अस्सी किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से आगरा की तरफ निरंतर बढ़ रही थी. वैसे एक्सप्रेसवे में कार के लिए सौ किलोमीटर प्रति घंटे की गति सीमा तय कर रखी है किन्तु जिस मटेरियल से इसका निर्माण हुआ है वो टायरों की सेहत के अनुकूल नहीं होता और अत्यधिक घर्षण की स्थिति में इनके गर्म होकर बर्स्ट होने के आसार काफी बढ़ जाते है अतः वाहन को धीमा ही चलाया जाये तो सुरक्षा और प्राकृतिक सौंदर्य का साथ पुरे सफर में बना रहता है.

तकरीबन तीन घंटे की स्मूथ ड्राइव के बाद आगरा शहर में दिशा निर्देशो का पीछा करते हुए हम लोग होटल मधुश्री के सामने आकर खड़े हो गए. यमुना एक्सप्रेसवे से बाहर निकल कर जब आप आगरा शहर में प्रवेश करते है तो नाक की सीध में चलते चले जाने से एत्माददुल्ला के मकबरे (किले) की तरफ जाने वाले रस्ते पर एक टी पॉइंट आता है जिसमे यह होटल बिलकुल कोने पर ही बना हुआ है और इस होटल से दो मार्ग जाते है पहला आपको रामबाग, मथुरा, दिल्ली की तरफ ले जाता है और दूसरा मार्ग एत्माददुला और ताज महल की तरफ ले जाता है। इस होटल की एक बात मुझे और अच्छी लगी की आगरा की भीड़ से आप बचे भी रहेंगे और शांति भी बनी रहेगी अन्यथा जैसे-२ आप शहर के भीतर बढ़ते चले जाते है बेतहाशा ट्रैफिक और गन्दगी के ढेर आपको परेशान करते रहते है. और एक बात जिसकी हमे बहुत आवश्यकता थी वो थी कार पार्किंग जिसका बंद गलियो वाले रास्तो पर मिलना बहुत ही कठिन कार्य लग रहा था और एक पल को तो हमे लगा की कहीं हम इस भूल भुलैया में ही घूमते हुए न रह जाये। होटल के प्रांगण में कार पार्किंग का पर्याप्त स्थान मिल जाने के कारन एक मुसीबत तो हल हो चुकी थी और अब बारी थी उस जोर के झटके की जो धीरे से लगने वाला था अर्थात कमरे का किराया। होटल के अंदर स्वागत कक्ष में उपलब्ध प्रबंधक साहब ने बताया की यह होटल अधिकतर बिजनेस मीटिंग्स के लिए ही बुक रहता है जिसमे फॉरेन डेलीगेट्स आकर ठहरते है अतः आपको एक कमरा मिल तो जायेगा किन्तु चार्जेज लगेंगे पूरे पच्चीस सौ रूपए। अब मरता क्या न करता, आगरा के भीतर घुसकर ट्रैफिक से जूझने और कमरा ढूंढने की हिम्मत तो नहीं हो रही थी अतः महाशय को एडवांस में रूम चार्जेज का भुगतान करने के बाद अब हम लोग निश्चिंत होकर ताज देखने के लिए अपनी आगे की योजना बनाने लगे. वैसे यहाँ एक बात और बताना चाहूंगा की साफ़-सफाई और सुविधा की दृष्टि से होटल में कोई कमी नहीं थी, कार पार्किंग के अलावा अलमारी, सोफ़ा, एक्स्ट्रा पलंग, कलर टीवी, एयर कंडीशनर, संलग्नित बाथरूम, फ़ोन व् फ्री वाईफाई जैसे तमाम विकल्प मौजूद थे.

Hotel Madhushree with Car parking

Hotel Madhushree with Car parking

Hotel Room - Sufficient for 3 persons

Hotel Room – Sufficient for 3 persons

खैर कमरे में थोड़ी देर सुस्ताने और खाना खाने के बाद अब बारी थी ताज महल के दीदार की जिसके लिए तीन बजते-२ हम लोग तैयार हो गए, तीन बजे इसलिए क्योंकि मैंने ताज की इ-टिकट बुक करवा रखी थी जिसमे समय तीन बजे के बाद का था. यह टिकट केवल पूर्वी द्वार से प्रवेश करने हेतु वैध थी जहाँ तक पहुँचने के लिए ऑटो वाले ने पुरे एक सौ अस्सी रूपए लिए.

Way to Shilpgram - Eastern Gate

Way to Shilpgram – Eastern Gate

हालांकि होटल से यहाँ तक की दूरी बमुश्किल ही पांच से छह किलोमीटर रही होगी। अब जब सर दिया ओखल में तो मूसल से क्या डरना, यही सोच कर हम लोग ऑटो वाले से ज्यादा बहस नहीं कर पाये और जलेबी नुमा गलियो से घूमते हुए भाईसाहब ने हमे ताज तक छोड़ दिया। यहाँ गेट पर टिकट चेक की गयी और थोड़ी बहुत फ्रिस्किंग भी हुयी, वैसे इस गेट पर विदेशी सैलानी ही अधिक नजर आ रहे थे और सभी ने हमारी तरह इ-टिकट हाथ में पकड़ रखी थी. यहाँ पर एक बात बताना चाहूंगा की इ-टिकट होने के बावजूद आपके पास एक पहचान पत्र होने अनिवार्ये है ताकि आपकी जांच करने में सम्बंधित सुरक्षा अधिकारी को किसी प्रकार की कोई समस्या न होने पाये। वैसे हमसे तो किसी ने पहचान पत्र माँगा नहीं फिर भी हम तो ले ही गए थे.

मुख्या द्वार जो स्वयं भी काफी भव्य है से प्रवेश करते ही आपको एक खूबसूरत नजारा दिखाई देता है ताज प्रांगण में स्थित सुन्दर से गार्डन का जिसकी हरियाली और रंग-बिरंगे फूलो की चमक आपका मन मोह लेती है

Entry Gate to Taj Mahal

Entry Gate to Taj Mahal

Taj Campus - Beautiful Gardens

Taj Campus – Beautiful Gardens

Lovely Garden

Lovely Garden

किन्तु हमे तो इंतजार था दीदार-अ-ताज का जिसकी खूबसूरती और भव्यता के चर्चे हमने बहुत सुन रखे थे और अब तो बस उस पर एक नजर डालना चाहते थे. शीघ्र ही हमारा इन्तेजार ख़त्म हुमा और जो दृश्य हमारे समक्ष था उस पर यकीं ही नहीं हो पा रहा था, एक अति विशाल सफ़ेद ईमारत जिसे बनाने और बनवाने वाले दोनों ने ही जुनून, दीवानगी, जी-तोड़ मेहनत और पागलपन की सभी हदो को शायद तक पर रख कर भावी पीढ़ी को एक अचंभित कर देने की जिद पकड़ रखी थी. और जिसमे वह सौ फीसदी सफल भी हुए.

First Deedar-E-Taj

First Deedar-E-Taj

बरबस ही ताज को देख ग़ालिब की कुछ पंक्तिया जेहन में आ गयी जिन पर गौर फरमाइयेगा –

की दुनिया की ईदों से मेरा क्या वास्ता, मेरा चाँद जब दीखता है तभी मेरी ईद हो जाती है….

ताज को देखते हुए एकबारगी अपने अवतार जी और भालसे जी की भी याद आयी और उनसे प्रेरणा लेते हुए मैंने भी धड़ाधड़ फोटोग्राफी पर हाथ आजमा लिया जिसमे स्वयं के आलावा कलकल बहती यमुना और ईदगाह को भी कैमरा में उतार लिया गया.

People running towards the Taj

People running towards the Taj

Yamuna Ji

Yamuna Ji

Another Fort in Taj Campus

Another Fort in Taj Campus

Its Selfie time now

Its Selfie time now

इस तरह हमारा आज का दिन संपन्न हुआ और मन में एक संतोष भी हुआ की चलो इस धरती पर मौजूद सात अजूबो में से कोई एक तो देखने को मिला। वैसे यह मानव जीवन भी किसी अजूबे से कम नहीं होता और जिस तरह की उठक-पाठक आये दिन हमे देखने को मिलती रहती है उससे तो यह ही लगता है, उदहारण के लिए हाल ही में संपन्न अपने डेल्ही के चुनावो के नतीजों पर ही नजर डालिये झाड़ू लेकर स्वच्छता अभियान चलाया किसी और ने और झाड़ू जीत गयी किसी और की…… हे न कमाल की बात.

अगले दिन सुबह छह कप चाय / दो कप प्रति व्यक्ति पीने और नमकीन-बिस्कुट का नाश्ता करने के बाद लगभग साढ़े नौ बजे हम लोग अपने होटल से दिल्ली की तरफ प्रस्थान कर चुके थे और कुछ नया ट्राई करने के चक्कर में इस बार हम दिल्ली-आगरा हाइवे पर आगे बढ़ चले इस उम्मीद में की मथुरा में रुक कर दोपहर का भोजन कर लेंगे किन्तु आश्चर्य की बात यह है की सुबह से ही कार का एयर कंडीशनर चालू करना पड़ा क्योंकि आगरा में तापमान बहुत बढ़ चूका था, और धूल-मिटटी के गुबार भी वातावरण को दूषित कर रहे थे. आगरा के सिकंदरा की तरफ बढ़ते हुए रेड लाइट पर गाड़ी रुकी तो देखकर हंसी आ गयी की हमारे समीप ही काफी मात्रा में पालतू पशु भी ट्रैफिक नियमो का पालन कर रहे थे और वो आगरा के उन ट्रक/ऑटो चालकों से कहीं अधिक समझदार थे जो आपको साइड नहीं देते, आप भले ही गाडी बैक कर रहे हो लेकिन वो आपके लिए नहीं रुकते, क्या हाथ गाडी, क्या साइकिल वाला और क्या पैदल यात्री सभी को जल्दी से जल्दी कहीं पहुंचना है फिर चाहे वो आपसे टकराये या आप उनसे।

खैर बाहर के प्रदुषण को ध्यान में रखते हुए हमने फिलहाल भोजन न करने का निर्णय लिया और पलवल पहुँच कर एक साफ़-सुथरे होटल (तंदूरी तड़का) में दोपहर का शुद्ध शाकाहारी भोजन किया। यहाँ एक बात कहना चाहूंगा की आगरा-दिल्ली हाईवे की हालत बहुत ही दयनीय है और यमुना एक्सप्रेसवे की तुलना में यह कहीं नहीं ठहरता। किन्तु धैर्य और सावधानी दोनों ही जगह अति आवश्यक है अतः धीरे चले और सुरक्षित रहे.

और इस प्रकार हमारी दिल्ली-आगरा की यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न हुयी।

28 Comments

  • Mukesh Bhalse says:

    अरुण जी,
    जितना खूबसूरत ताज है उतनी ही खूबसूरती से आपने यह पोस्ट लिखी है. मैने सोचा प्रतिक्रियाओं के द्वार पर पहली दस्तक मेरी ही होनी चाहिए. बहुत सुन्दर लेख तथा मनभावन चित्र. आगरा का क़िला भी देखने के लिए बहुत अच्छी जगह है, और वहां से दिखाई देता ताज महल तो माशा अल्लाह…..

    मुकेश ……

    • Arun says:

      प्रथम टिप्पणी व् लेख की सराहना करने हेतु धन्यवाद भालसे जी.

      यदि में यह कहूँ की लेख कहीं न कही आपकी और अवतार जी की ताज यात्रा से प्रभावित और प्रेरित था तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं होगी. आप दोनों के ही पदचिन्हो पर चलते हुए हम भी पहुँच गए ताज के दीदार करने के लिए… अतः आप दोनों को हमारी तरफ से बहुत-२ धन्यवाद।

      अभी हाल ही में मैंने सिंघल जी के कुछ लेखो को पढ़ा और आपके द्वारा की गयी मेहमाननवाजी के बारे में पढ़ कर आपके सात्विक परिवार और दिलदारी के बारे में ज्ञात हुआ, जिससे मन को बहुत संतोष भी मिला की आज इस बदलते परिवेश में भी कुछ लोग ऐसे मिल जाते है.

      अरुण

  • Gaurav says:

    बेहद शानदार लेख. और बहुत ही रोचक। देख कर मजा आ गया. मार्च प्रथम सप्ताह में हम लोग भी सोच रहे है. ताज को देख आये.
    यह मेरे पहली हाईवे यात्रा होगी। अतः अगर कुछ और सूचना आप दे पाये तो बेहतर होगा।

    • Arun says:

      लेख की सराहना करने हेतु धन्यवाद गौरव जी.

      प्रथम हाईवे यात्रा के बारे में सोचते ही ह्रदय रोमांच से भर जाता है किन्तु यदि कुछ अति महत्वपूर्ण बातो को यदि याद रखा जाये तो यात्रा सुगम व् सुरक्षित भी बन जाती है.

      यदि आप दिल्ली-आगरा हाईवे से जाने के बारे में सोच रहे है तो कृपया निम्न बिन्दुओं पर ध्यान दीजियेगा –

      1. इस मार्ग पर आगरा से लेकर दिल्ली तक हमने नब्बे+नब्बे+पच्चीस रूपए का तीन बार में भुगतान किया था,
      2. इस मार्ग की स्थिति अत्यंत ही दयनीय है और स्मूथ ड्राइविंग को तो भूल ही जाइये परिणामतः सफर में लगने वाला समय बड़ा ही थकाऊ और लम्बा रहा,
      3. इस मार्ग पर जगह-२ सड़क बनाने का काम चल रहा है जिससे सीधा असर ट्रैफिक पर पड़ता है परिणामता जाम या रुक-रुक कर चलना स्वाभाविक है,
      4. धूल-मिटटी के अच्छे खासे गुबार पुरे मार्ग पर उड़ते हुए मिल जायेंगे अतः कर के शीशे बंद ही रखे परिणामता ‘ऐसी’ चलना ही पड़ता है,
      5. साइकिल से लेकर हाथ गाड़ी और बस से लेकर ट्रक तक सभी प्रकार के वाहन यहाँ आपको मिल जायेंगे अतः भीड़ से बचना मुश्किल है.

      यदि आप यमुना एक्सप्रेसवे से जाने के बारे में सोच रहे है तो कृपया निम्न बिन्दुओं पर ध्यान दीजियेगा-

      1. सड़क बहुत ही सख्त है और टायर के गर्म होकर फटने का अंदेशा अधिक है अतः गति सीमा का पालन करे और यदि मेरी व्यक्तिगत राय लेना चाहेंगे तो गति अस्सी-नब्बे के बीच में ही रखे,
      2. अपनी गाड़ी सड़क के बीच वाली लेन पर एक नियमित गति में ही रखे ताकि कोई भी दूसरी गाडी आपको दायें तरफ से आसानी से ओवरटेक कर सके और आपको बार-बार लेन भी चेंज नहीं करनी पड़ेगी,
      3. यदि लेन चेंज करनी ही पड़े तो सदैव इंडिकेटर देकर ही करे और हाँ एक बार अपनी दोनों तरफ व् पीछे की तरफ भी अवश्य देखे और थोड़ा भी संदेह होने पर हड़बड़ी न करे,
      4. जहाँ तक हो सके गाड़ी किसी रेस्टोरेंट में नियत पार्किंग स्थल पर ही रोके जहाँ आपको स्वछ जन सुविधाएँ भी मिलेंगी और सेफ्टी भी बानी रहेगी क्योंकि एक्सप्रेसवे में कहीं भी साइड में गाड़ी रोकना यातायात नियमो के विरुद्ध है और दूसरे वाहन चालकों की मनः स्थिति व् ड्राइविंग स्किल्स का भी तो कुछ पता नहीं होता।
      5. यहाँ दिल्ली से लेकर आगरा तक टोल तीन सौ तीस रूपए है. अतः यदि सौ-डेढ़ सौ रूपए अधिक लग भी जाएँ तो क्या आखिर हमे विश्वस्तरीय सुविधा भी तो मिल रही है.

      बाकी आपकी और आपके परिवार की यात्रा मंगलमय व् शुभ हो ऐसी हम सभी घुमक्कड़ परिवार के सदस्य कामना करते है.

      हैप्पी जर्नी,

      अरुण

      • Gaurav says:

        जितना सुन्दर आपका लेख है. उससे भी बेहतर आपके सुझाव है.
        ये सुझाव सबके लिए बड़े काम आएंगे। वैसे एक्सप्रेसवे से जाने का सोचा जायेगा।
        बस थोड़ा सावधानी बरतने की आवश्यकता है
        बहुत बहुत शुक्रिया आपका

  • MUNESH MISHRA says:

    ताज को चित्रों में देखकर या उसके बारे में पढ़कर. जिसने भी ताज देखा है उसके यादें ताजा हो जाती है. घुमक्कड़ पर आज ताज की चर्चा करके यादें ताज़ा करने के लिए धन्यवाद. लेखन और चित्रों का अनूठा मिश्रण प्रशंसनीय है.

    • Arun says:

      लेख की सराहना करने हेतु धन्यवाद मुनीश जी.

      वैसे आपके ग़ालिब वर्णन का खुमार अभी तक उतरा नहीं है और अभी भी हम उसी शायराना अंदाज में बने हुए है. आपके लिए कुछ पंक्तियाँ अर्ज करना चाहूंगा, गौर फरमाइयेगा –

      की हाथो की लकीरों पे मत जा ऐ ग़ालिब,
      नसीब उनके भी होते है जिनके हाथ नहीं होते।

      एक बार फिर से आपको धन्यवाद,
      अरुण

  • वाह अरुण वाह। एक उम्दा पोस्ट। ताज का दीदार एवं विवरण बेहद खूबसूरत।

    • Arun says:

      लेख की सराहना करने हेतु धन्यवाद नरेश जी.

      वैसे यह तो ताज की ही चमक का कमाल है जिसका रिफ्लेक्शन इस अधकचरा लेखक के लेख व् चित्रो पर छाया हुआ है.

      अरुण

  • Uday Baxi says:

    अरुण जी
    आपने बड़े ही अच्छे ढंग से अपनी यात्रा का वर्णन किया है। पढ़ कर मजा आ गया। काफी सूचनाएं आपने दी हैं जिस से यात्रियों को सुविधा मिलेगी। फोटोग्रॅफ्स भी बड़े ही सुन्दर आयें हैं।
    धन्यवाद।

    • Arun says:

      लेख की सराहना करने हेतु धन्यवाद उदय जी.

      तो आप मेरे प्रथम पैराग्राफ को लिखने का आशय समझ ही गए, बहुत खूब….
      वैसे हाल ही में घुमक्कड़ के माध्यम से हमने भी आपके साथ बहुत सी यात्रायें की है जिसका अनुभव बहुत ही शानदार रहा.

      अरुण

  • Anupam Chakraborty says:

    Bah Taj!! Wow Photos! Wow Post! Absolutely mind blowing post! Great Arun!

  • Tarun Talwar says:

    Arun,

    This was a really well written light and funny post. The pictures are beautiful.

  • Arun says:

    Thanks Mr. Tarun for leaving your lovely comments on the post.

    Arun

  • Jaishree says:

    lekh to kavita ki tarah rasmasai liye hue tha. bahut accha.

    • Arun says:

      मेरा तो केवल एक छोटा सा प्रयास था किन्तु आप जैसे दिग्गज घुमक्कड़ सदस्यों की स्नेहपूर्ण टिप्पणियॉ से स्वतः ही यह लेख मनोरंजक बन पड़ा होगा।

      धन्यवाद जयश्री जी…

  • swati says:

    बहुत खूबसूरती और सहजता से आपने वर्णन लिखा है,पढ़कर लगा जैसे कि हम भी वह यात्रा कर आए हो।

    • Arun says:

      स्वाती जी, सुंदरता और सहजता तो पाठकों के नजरिये में है जिसके फलस्वरूप एक साधारण सा यात्रावृतांत भी आप लोगो की वाह-वाही बटोर जाता है…. लेख को पसंद करने हेतु धन्यवाद।

  • Rinku Gupta says:

    अरुण जी
    ताज का मनमोहक विवरण पढ़ के मज़ा आ गया
    फोटो बहुत ही शानदार है।
    आगरा में प्रदूषण ही सबसे ज्यादा अखर जाता है।
    आगे के लेखो के लिए शुभकामनायें।

  • Arun says:

    रिंकू जी स्नेहपूर्ण टिप्पणी के लिए आपका दिल से शुक्रिया।

    वैसे उत्तर प्रदेश सरकार ने एक्सप्रेसवे का निर्माण तो कर दिया किन्तु शायद वो आगरा शहर पर अधिक ध्यान नहीं दे पाये, चलिए आज नहीं तो कल बदलाव तो होना ही है….. तब तक आप और हम मिल कर इन्तेजार करते है…अगर समय हो तो एक मशहूर पुराने हिंदी गाने के कुछ बोल आपकी शान में कहना चाहूंगा की –

    यह कली जब तलाक फूूल बनकर खिले, इन्तेजार, इन्तेजार, इन्तेजार करो, इन्तेजार करो.

  • बहुत सुन्दर वर्णन…शुरूआत मे अपने ऊपर ही व्यंगात्मक टिप्पनी की मेने अब तक नही देखा ताज पढ कर मजा आया

    • Arun says:

      इस खूबसूरत हौसलाफजाई के लिए आपका शुक्रिया सचिन जी

  • प्रिय अरुण सिंह,

    बहुत अच्छा लिखते हो, पढ़ते हुए निर्मल आनन्द की अनुभूति बनी रहती है। आज अचानक ही इस साइट पर आया हूं और आपकी पोस्ट के intro ने विवश कर दिया कि पूरी पोस्ट पढ़ी जाये। फोटो और उन पर दिये गये शीर्षक भी अच्छे लगे। लिखते रहिये और यूं ही आनन्द बिखेरते रहिये !

    सस्नेह,
    सुशान्त सिंहल

  • Arun says:

    सुशांत जी,

    आपसे इतना स्नेह प्राप्त होगा इसकी आशा न थी, आपको पढ़ते हुए एक अलग ही चुटीले पन का अहसास होता है, जिसमे बारम्बार बैग खोलना, चार्जर रखना, बाल बनाना और रानी रूपमती की शारीरिक विशेषता जिससे अवगत कराया तो भालसे जी ने था किन्तु हम सभी के समक्ष प्रस्तुत किया आपने, यह सब तो सच मानिये भुलाये नहीं भूलते और हँसते-२ पेट में बल पड़ जाते है वो अलग.

    पोस्ट को पढ़ने और पसंद करने के लिए आपका धन्यवाद।

    सादर
    अरुण

  • Nandan Jha says:

    अरुण भाई , आपकी टिप्पणियां (Comments) और लेख बड़े रोचक और दिलचिस्प (कुछ लोग वैसे दिलचस्प भी कहतें है) होतें हैं और न जाने कब हम ताज पहुंचे (१८० रुपये का तो जैसे जुरमाना लग गया वरना ६ किलो मीटर के इतने पैसे, बाप रे बाप ) , ताज के मज़े लिए, और कब लौटे , ये मालूम ही नहीं चला ।

    आलम तो ये है की दिल्ली-आगरा न च ३ हाईवे की करुणाजनक यात्रा भी महसूस नहीं हुई ।

    अंग्रेजी में इसे कहेंगे ‘ब्रावो’ । थैंक यू ।

    • Arun says:

      नंदन सर,

      लेख पर आपकी प्रतिक्रिया थोड़ी देर से ही सही किन्तु मिल गयी, यही अपने लिए काफी है।
      यूपी में है दम क्योंकि जुर्म है यहाँ कम जैसी पंक्तियों को चरितार्थ करती हुयी घटनाएं (180 का जुरमाना) तो होती रहती है। वैसे मुझे दिलचस्प कहना शायद मेरे अन्य मित्रों को हजम न हो क्यूंकि अपनी इमेज तो OBSOLETE वाली है।

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