हरसिद्धि शक्तिपीठ दर्शन (भाग 4)

अब तक : ममलेश्वर व ओंकारेश्वर दर्शन के बाद हम शाम को इंदौर चले गए थे। वहां रात्रि विश्राम के बाद सुबह उठ कर उज्जैन की और चल दिए। और अब आगे…

इंदौर उज्जैन मार्ग पर महामृत्युंजय द्वार

इंदौर उज्जैन मार्ग पर महामृत्युंजय द्वार


महाकाल की नगरी में पहुंचते ही, बस से उतारकर ऑटोरिक्शा लिया और सीधा महाकाल के मंदिर की ओर चल दिए। जब हम महाकाल के मंदिर के आगे से गुजरे तो वहां काफ़ी लम्बी लाइन लगी हुई थी लेकिन हम सीधा उस काउंटर की तरफ गए जहाँ भष्म आरती में हिस्सा लेने के लिए आवेदन किया जाता है लेकिन वहां पहुँच कर हमें काफ़ी निराश होना पड़ा क्योंकि आज का कोटा ख़तम हो चुका था। हमने वहां मौजूद मंदिर के पंडों से पूछा की क्या कुछ दूसरा रास्ता है लेकिन निराशा ही हाथ लगी। सोचा, चलो कोई बात नहीं, भष्म आरती अगली बार सही। पहले कोई कमरा लेते हैं ,सामान वहां रखकर फिर उज्जैन के मंदिरों के दर्शन कर के आयेंगे।

उज्जैन में , महाकालेश्वर मंदिर के आस-पास ही सब की जरुरत के अनुसार कमरे मिल जाते हैं जिनका किराया 300 रूपये से आरम्भ हो जाता है। थोड़ी सी खोजबीन और मोलभाव के बाद हमें एक लॉज में 550 रूपये में एक तीन बिस्तर वाला कमरा मिल गया।

कमरे में सामान रखकर हम वापिस महाकाल मंदिर के पास आये और वहां मौजूद कई भोजनालयों में से एक में खाना खाने चले गए। खाना बिलकुल भी स्वाद नहीं था, लेकिन पेट पूजा करना भी जरुरी था इसलिए थोडा बहुत खाकर काम चलाया। खाना खाने के बाद ,बाहर आकर उज्जैन के सभी मंदिरों में घुमने के लिए 250 रुपये में एक ऑटो ले लिया। वैसे महाकाल मंदिर के पास से मंदिरों में घुमने के लिए ऑटो, वैन व बस भी उपलब्ध होती हैं लेकिन वैन के लिए ज्यादा लोग चाहिए और बस का समय निर्धारित है। ऑटो हर समय मिलते हैं और उनका सब का रेट एक ही होता है। हमारे ऑटो ड्राईवर का नाम नंदू था और वो गाइड का काम भी कर रहा था। लगभग तीन घंटे में वो हमें बड़ा गणेश, शिप्रा घाट , राम मंदिर, चार धाम, सिधवट, कालभैरव, हरसिधी माता, गढ़कालिका, संदीपनी आश्रम, भर्तृहरि गुफा और मंगलनाथ में घुमा लाया। इस पोस्ट में हम सिर्फ हरसिद्धि ‍शक्तिपीठ व उसमे होने वाली भव्य आरती की की चर्चा करेंगे।

हरसिद्धि ‍शक्तिपीठ

हरसिद्धि ‍शक्तिपीठ

हरसिद्धि ‍ माता

हरसिद्धि ‍ माता

हरसिद्धि ‍शक्तिपीठ

हरसिद्धि ‍शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।

महाकालेश्वर की क्रीड़ा-स्थली अवंतिका (उज्जैन), पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है। पार्वती हरसिद्धि देवी का मंदिर- शक्तिपीठ, रुद्रसागर या रुद्र सरोवर नाम के तालाब के निकट है, शिव पुराण के मान्यता के अनुसार जब सती बिन बुलाए अपने पिता के घर गई और वहां पर राजा दक्ष के द्वारा अपने पति का अपमान सह न सकने पर उन्होंने अपनी काया को अपने ही तेज से भस्म कर दिया। भगवान शंकर यह शोक सह नहीं पाए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। जिससे तबाही मच गई। भगवान शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लिया और जब शिव अपनी पत्नी सती की जलती पार्थिव देह को दक्ष प्रजापति की यज्ञ वेदी से उठाकर ले जा रहे थे श्री विष्णु ने सती के अंगों को बावन भागों में बांट दिया । यहाँ सती की कोहनी का पतन हुआ था। अतः वहाँ कोहनी की पूजा होती है। यहाँ की शक्ति ‘मंगल चण्डिका’ तथा भैरव ‘मांगल्य कपिलांबर’ हैं-

उज्जयिन्यां कूर्परं व मांगल्य कपिलाम्बरः।
भैरवः सिद्धिदः साक्षात् देवी मंगल चण्डिका।

 छत पर चित्रकारी

छत पर चित्रकारी

 छत पर चित्रकारी

छत पर चित्रकारी

 दीवार पर मूर्ति

दीवार पर मूर्ति

दीपस्तंभ

दीपस्तंभ

कहते हैं- प्राचीन मंदिर रुद्र सरोवर के तट पर स्थित था तथा सरोवर सदैव कमलपुष्पों से परिपूर्ण रहता था। इसके पश्चिमी तट पर ‘देवी हरसिद्धि का तथा पूर्वी तट पर ‘महाकालेश्वर का मंदिर था। 18वीं शताब्दी में इन मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ। वर्तमान हरसिद्धि मंदिर चारदीवारी से घिरा है। मंदिर के मुख्य पीठ पर प्रतिमा के स्थान पर ‘श्रीयंत्र’ है। इस पर सिंदूर चढ़ाया जाता है, अन्य प्रतिमाओं पर नहीं और उसके पीछे भगवती अन्नपूर्णा की प्रतिमा है। गर्भगृह में हरसिद्धि देवी के प्रतिमा की पूजा होती है। मंदिर में महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार पर बावड़ी है, जिसके बीच में एक स्तंभ है, जिस पर संवत् 1447 अंकित है तथा पास ही में सप्तसागर सरोवर है। शिवपुराण के अनुसार यहाँ श्रीयंत्र की पूजा होती है। इन्हें विक्रमादित्य की आराध्या माना जाता है। स्कंद पुराण में देवी हरसिद्धि का उल्लेख है। मंदिर परिसर में आदिशक्ति महामाया का भी मंदिर है, जहाँ सदैव ज्योति प्रज्जवलित होती रहती है तथा दोनों नवरात्रों में यहाँ उनकी महापूजा होती है-

नवम्यां पूजिता देवी हरसिद्धि हरप्रिया

मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते ही वाहन सिंह की प्रतिमा है। द्वार के दाईं ओर दो बड़े नगाड़े रखे हैं, जो प्रातः सायं आरती के समय बजाए जाते हैं। मंदिर के सामने दो बड़े दीपस्तंभ हैं। इनमे से एक शिव हैं जिसमे 501 दीपमालाएँ हैं , दूसरा पार्वती है जिसमे 500 दीपमालाएँ हैं तथा दोनों दीपस्तंभों पर दीप जलाए जाते हैं।हमने वहां मंदिर के एक कर्मचारी से पूछा की क्या इन पर दीप जलाते भी हैं तो उसने कहा शाम को 6 बजे आरती में आ जाना और खुद देख लेना ।

सुखविंदर सिंह

सुखविंदर सिंह

 नरेश सरोहा

नरेश सरोहा

 मैं दोनों दीपस्तंभों के मध्य

मैं दोनों दीपस्तंभों के मध्य

मुख्य मंदिर में गर्भ गृह की छत पर काफ़ी अच्छी चित्रकारी की हुई है। मंदिर में अच्छी तरह घुमने के बाद हम बाकि मंदिरों में दर्शन के लिए चले गए लेकिन यह तय कर लिया की शाम को आकर आरती में शामिल होंगे और यह देखेंगे की इतनी ऊँची जगह पर दीपक कैसे जलाते हैं।

शिलालेख

शिलालेख

पुराना मंदिर

पुराना मंदिर

हरसिद्धि मंदिर साइड से

हरसिद्धि मंदिर साइड से

शाम को ठीक 6 बजे हम फिर से हरसिद्धि मंदिर पहुँच गए और आरती की तैयारियों को देखने लगे। हरसिद्धि मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पीछे की और लगभग 500 मीटर की दुरी पर है।

हमारे मंदिर में पहुँचने के बाद वहाँ तीन लोग, जो शायद एक ही परिवार से थे , आये और सिर्फ निकर और बनियान में इन दीपस्तंभों पर चढ़ गये। सबसे पहले उन्होंने इन दीपस्तंभों पर मौजूद सभी दीपकों की सफाई की और फिर एक एक कर सभी दीपकों में तेल डाला। यह सब काम वे बड़ी तेजी और सावधानी से कर रहे थे। जब सब दीपकों में तेल डल गया तो फिर उन सब में रुई से बनी बतियाँ डाली गयी। ऊपर चड़ने के लिए वे दीपकों का ही इस्तेमाल कर रहे थे यानी की उन्ही को पकड़ कर व उन्ही पर पैर रख कर।

आरती की तैयारी शुरू

आरती की तैयारी शुरू

दीपकों में तेल डालते हुए

दीपकों में तेल डालते हुए

दीपक जलाते हुए

दीपक जलाते हुए

बतियाँ डालने के बाद सबसे मुश्किल काम था दीपक जलाने का और स्वयं को अग्नि से सुरक्षित रखने का। यह काम भी उन्होंने बखूबी किया। सभी ने छोटी -छोटी मशालें ले रखी थी और लगभग 5 मिनट में 1001 दीपकों में जोत जला दी, जबकि पूरा काम करने में उन्हें लगभग एक घंटा लग गया ।

दीपक जलाते हुए

दीपक जलाते हुए

दीपक जलाते हुए

दीपक जलाते हुए

दुसरे दीपस्तंभ पर

दुसरे दीपस्तंभ पर

सारे दीपक जलते हुए

सारे दीपक जलते हुए

सारे दीपक जलते हुए

सारे दीपक जलते हुए

बाकि सब आप तस्वीरों से देख सकते हैं।

जब वे सारा काम कर चुके तो हमने उनसे बातचीत की तो उन्होंने हमें बताया की एक समय में तीन टिन रिफाइंड तेल यानी की कुल 45 लीटर तेल लग जाता है और सब मिलाकर इस काम पर एक समय का खर्च 7000 रुपये का है जिसमे उनकी लेबर भी शामिल है, और यह सब कुछ दानी सज्जनों द्वारा प्रायोजित होता है। लोग पहले से ही इसकी बुकिंग करवा देते हैं और लगभग तीन महीने की अग्रिम बुकिंग हो चुकी है।

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दोनों दीपस्तंभों के मध्य हरसिद्धि मंदिर

मैं और नरेश सरोहा

मैं और नरेश सरोहा

सभी दीपक जलते ही मंदिर में नगाड़े बजने लगे व आरती शुरू हो गयी। आरती समाप्त होने के बाद हम लोग परशाद लेकर महाकाल के दर्शनों की अभिलाषा लिए महाकालेश्वर मंदिर की ओर चल दिए।

(कुछ तस्वीरों में कैमरे में गलत सेटिंग्स के कारन मास और वर्ष गलत है। सभी तस्वीरें 2013 की हैं। जिन तस्वीरों में वर्ष 2012 है उन में मास और वर्ष में एक जोड़ लें। समय व तिथि ठीक है। धन्यवाद!)

18 Comments

  • Asa deepak stand mene pehli bar dekha hai.

    Thanks for sharing !

  • SilentSoul says:

    Wow…. bahut jabardast log and photos are very crisp and clear.

  • Mukesh Bhalse says:

    बहुत सुन्दर वर्णन नरेश जी, चित्र भी लाजवाब हैं। हम लोग हर चार छह महीने में उज्जैन महाकाल दर्शन के लिये जाते हैं लेकिन फिर भी हमें हरसिद्धि मंदिर की इतनी सुन्दर आरती तथा प्रज्जवलित दीपस्तंभों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, और इसीलिये हम आज तक ये नज़ारा देख नहीं पाए। अब आपकी पोस्ट पढ़ने के बाद हम जरूर हरसिद्धि मंदिर की इस आरती में शामिल होंगे ……आपका बहुत बहुत शुक्रिया। ….

    • मुकेश जी, धन्यवाद
      जब अगली बार उज्जैन जाएँ तो यहाँ आरती में जरुर शामिल हों। एक अलग ही अनुभव होगा।

  • Jitendra Upadhyay says:

    बहुत ही सुन्दर और अनोखा तरीका है यहाँ पर आरती का, इस से पहले आरती के नाम पर सिर्फ हरिद्वार की माँ गंगा की आरती ही जानी जाती थी पर ऐसी महा आरती के दर्शन कराने के लिए आपका धन्यवाद।

    • धन्यवाद जितेंदर जी ,
      सही कहा आपने यहाँ पर आरती का बहुत ही सुन्दर और अनोखा तरीका है ।

  • Anil Sharma says:

    Naresh Ji, Hi.
    We have visited Ujjain this year,and went to this temple but we were not familiar with this Arti. You have written full detail of Arti along with photographs showing what you are saying.Jai ho..
    Thanks for Sharing..

  • Sukhvinder Singh says:

    hi,
    Excellent post.. Carry on..

  • ashok sharma says:

    good post with beautiful photos.

  • Avtar Singh says:

    Hi Naresh ji

    बहुत बढ़िया पोस्ट, दीयों का इस तरह जलना तो वाकई में हासिले-महफिल है…

    इसके फ़ोटोज़ भी मस्त लिये हैं आपने |

  • Nandan Jha says:

    It is a FOG, Naresh and I guess those ‘Deep Sthambhs’ are a real treat. When I saw the pic where two people are climbing on it to put diyas, I could get the real scale of it. It is indeed huge. Thank you for sharing this new thing with us. We missed Ujjain in our trip and it is on the radar.

  • Thanks Nandan Ji..
    These ‘Deep Sthambhs ‘ are available almost in every temple of Ujjain. But Diyas are lighted only at Mata Harsidhi Mandir for Arti.

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