पिछले à¤à¤¾à¤— में, मैंने अपनी राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ यातà¥à¤°à¤¾ का पà¥à¤·à¥à¤•र तक वाले à¤à¤¾à¤— के बारे में बताया| अब मैं बीकानेर के बारे में बताऊंगा|
बीकानेर पहà¥à¤‚चते पहà¥à¤‚चते काफी रात हो गयी थी| बीकानेर हम पà¥à¤·à¥à¤•र से मेंड़ता – नागौर के रासà¥à¤¤à¥‡ से होकर पहà¥à¤‚चे जो कि पà¥à¤·à¥à¤•र से करीब २५० किमी दूर है| सड़क ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° अचà¥à¤›à¥€ ही थी लेकिन à¤à¤• लेन की थी| पर ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• न होने की वजह से कोई खास दिकà¥à¤•त नहीं हà¥à¤ˆ| रासà¥à¤¤à¥‡ में जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, वैसे वैसे जमीन के नज़ारे बदल रहे थे, बीकानेर के कà¥à¤› पहले से ही रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ जैसा दिखाना शà¥à¤°à¥‚ गया था और दूर दूर तक बालू ही नज़र आती थी, कोई पेड़ दिखाई नहीं पड़ता था| हम पà¥à¤·à¥à¤•र से करीब दोपहर के डेढ़-दो बजे निकले थे और बीकानेर पहà¥à¤‚चते पहà¥à¤‚चते रात का सात बज गया था| बीकानेर पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के बाद पहली चीज़ जो दिखी कि शहर काफी खà¥à¤²à¤¾ हà¥à¤† है और रासà¥à¤¤à¥‡ à¤à¥€ काफी चौड़े थे| यहाठपर सेना का कैंट इलाका à¤à¥€ है|
बीकानेर पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के ठीक पहले का सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤
बीकानेर के बारे में कहा जाता है कि ये काफी मसà¥à¤¤ लोगों का शहर है| इसका इतिहास यहाठपढ़ा जा सकता है| साकà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° शहर की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ सन १४८५ के आसपास की गयी थी|
खैर हम पहले अपने होटल गठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सब लोग ४-५ घंटे की सड़क यातà¥à¤°à¤¾ के बाद थक से गठथे और कà¥à¤› खाने पीने की ज़रूर दिखाई दे रही थे| होटल à¤à¤• हवेलीनà¥à¤®à¤¾ मकान था, जो कि बाद में हमने देखा कि वहाठआम बात है| किसी रिटायरà¥à¤¡ सरकारी अफसर का घर था जो कि उसने होटल में बदल दिया था| ये à¤à¤• अचà¥à¤›à¤¾ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° है बीकानेर में जहां यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, खासकर, विदेशी डालर यूरो वाले, की संखà¥à¤¯à¤¾ ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ है और लोकल लोगों के लिठये पैसा कमाने का अचà¥à¤›à¤¾ ज़रिया है| होटल बहà¥à¤¤ ससà¥à¤¤à¤¾ तो नहीं था, करीब १५०० रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ रात डबल बेड के लिठ(घà¥à¤¸à¤²à¤–ाने के साथ) लेकिन ठीक-ठाक था, सफाई ठीक थी और ऊपर à¤à¤• रेसà¥à¤¤à¤¾à¤°à¥‡à¤‚ट à¤à¥€ था जहां से नजारा काफी अचà¥à¤›à¤¾ था| लेकिन जिस बात ने हमारा पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ ही मूड आफ किया वो ये थी कि सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« विदेशी लोगों में ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मशगूल थे और à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤•ों को नज़रंदाज़ कर रहे थे| इस बात को लेकर हमारी थोड़ी कहा-सà¥à¤¨à¥€ हà¥à¤ˆ और फिर सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« का रवैया à¤à¤• दम बदल गया| रात को खाना खा-पीकर हम बिसà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ में घà¥à¤¸ गठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अगले दिन कई सारी जगह देखने जाना था|
होटल में à¤à¤• गलियारा
अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ उठकर पहले तो छत वाले रेसà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤‚ पर आलू के पराठों और आमलेट का नाशà¥à¤¤à¤¾ किया गया जो कि दिसंबर के महीने में मसà¥à¤¤ लग रहे थे| उसके बाद हम पहले गठबीकानेर परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• गृह जहां पर हमको बीकानेर में देखने की जगहें और रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ और ऊà¤à¤Ÿ की सवारी के बारे में जानकारी मिली|
जूनागढ़ किला
à¤à¤• राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ रेसà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤‚ में खाना खाने के बाद हम पहले गठबीकानेर किले की तरफ जिसको कि जूनागढ़ का किला à¤à¥€ कहा जाता है|
जूनागढ़ महल का पूरा दृशà¥à¤¯ (जोड़ा हà¥à¤†)
इस किले को पहले चिंतामणि किला à¤à¥€ कहा जाता था| लेकिन बाद में बीसवीं शताबà¥à¤¦à¥€ में इसको जूनागढ़ या पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ किला कहा जाने लगा जब यहाठके बाशिंदे लालगढ़ में शिफà¥à¤Ÿ हो गà¤| इस किले को राजा जय सिंह के पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ करà¥à¤£ चंद की देख रेख में बनाया गया था और इसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ सन १५९४ में पूरा हà¥à¤†| इस किले पर मà¥à¤—लों ने कई आकà¥à¤°à¤®à¤£ किये लेकिन हर बार उनको मà¥à¤‚ह की खानी पड़ी| किले के इतिहास के बारे में यहाà¤Â पढ़ा जा सकता है| यहाठकई सारे हिसà¥à¤¸à¥‡ हैं देखने लायक: करण महल, फूल महल, अनूप महल, चंदà¥à¤° महल, गंगा महल, बादल महल और किले का मà¥à¤¯à¥‚ज़ियम| महल के कई हिसà¥à¤¸à¥‡ इटालियन संगमरमर से बने हà¥à¤ हैं और यहाठमà¥à¤—़ल सà¥à¤¥à¤¾à¤®à¤¤à¥à¤¯ कला का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ देखा जा सकता है|
ये किला काफी बड़ा है और इसको देखने में लगà¤à¤— आधा दिन लग जाता है| नीचे किले की कà¥à¤› तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚ हैं|
पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤°
पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ के पास का हिसà¥à¤¸à¤¾
दीवार पर कà¥à¤› बनावट
राजा की तारीफ़ में कà¥à¤›
फरà¥à¤¶ पर कà¥à¤› कलाकारी
राजसी लोगों के बैठने की जगह
कà¥à¤¯à¤¾ शानोशौकत?
बाहर का नज़ारा
छत के ऊपर à¤à¤• गलियारा
राजा का पलंग
मà¥à¤à¥‡ ये तसà¥à¤µà¥€à¤° अचà¥à¤›à¥€ लगती है
इनको उठा के लड़ा जा सकता है?
वाणों का अचà¥à¤›à¤¾ संगà¥à¤°à¤¹
इसको पहन के कोई लड़ सकता है?
दीवार पर बनी हà¥à¤ˆ कà¥à¤› पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ जैसी चीज़
राजा का शिकार
रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ यातà¥à¤°à¤¾à¤”र ऊà¤à¤Ÿ की सवारी
किला देखने के तà¥à¤°à¤‚त बाद हम थोड़ा फà¥à¤°à¥‡à¤¶ होकर चले रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ की तरफ जो कि बीकानेर से करीब à¤à¤• घंटे की दूरी पर है| पहले हाइवे से हम देशनोक (NH-89) की तरह चले फिर बीच में पलाना से दायें मà¥à¤¡à¤¼ लिठजहां से रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ करीब २० किमी की दूरी पर था| हम पहà¥à¤‚चे बढ़ईसर जो कि à¤à¤• छोटा सा गाà¤à¤µ है जहां के आबादी बहà¥à¤¤ कम रही होगी| जगह à¤à¤• दम रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨, शायद इकà¥à¤•ा दà¥à¤•à¥à¤•ा पेड़, मिटà¥à¤Ÿà¥€ और पतà¥à¤¥à¤° के मकान और रेत ही रेत| हम अब रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ में थे| वहाठहमको कà¥à¤› सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोगों की मदद से कà¥à¤› ऊंटों का इतजाम हो गया| सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोग बहà¥à¤¤ ही सरल सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ के और अचà¥à¤›à¥‡ थे| फिर हम गाड़ी खड़ी करके पैदल रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ में गठजहां शाम का समय हो रहा था, वहाठऊà¤à¤Ÿ की सवारी की गयी और फिर रेत में खेला गया| नीचे हैं कà¥à¤› तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚ इस समय की|
रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ और ऊंट
आसपास की जगह
बालू में रहने वाले à¤à¤• और महाशय
गाà¤à¤µ की à¤à¤• बचà¥à¤šà¥€
ऊà¤à¤Ÿ वाले लोग
रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ का सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤
आपस की बातचीत
बालू में खेलने के बाद जब अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¤¾ हो गया, तब हम गाà¤à¤µ के सरपंच के घर गठजहां उनहोंने हमको खालिस देसी घी और लहसà¥à¤¨-मिरà¥à¤š की चटनी के साथ चूलà¥à¤¹à¥‡ पर पकी बाजरे की रोटियां खिलाईं जिनका सà¥à¤µà¤¾à¤¦ बहà¥à¤¤ ही अचà¥à¤›à¤¾ था| लोग बहà¥à¤¤ ही अचà¥à¤›à¥‡ थे, बहà¥à¤¤ सरल और बिना किसी लालच के| वहां से निकलते निकलते रात हो गयी और हम वापस पहà¥à¤à¤š गठअपने होटल, जहां हम जलà¥à¤¦ ही सोने चले गठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अगले दिन चूहे वाले मंदिर और ऊà¤à¤Ÿ पालन केंदà¥à¤° जाना था|
करणी माता का मंदिर, देशनोक
अगले दिन हम सà¥à¤¬à¤¹ निकले देशनोक की तरफ जहां है पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ करणी माता का मंदिर, जो कि माता के नाम से कम पर चूहों की वजह से ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ जाना जाता है| करणी माता चारण जाति की à¤à¤• महिला साधू थीं और जो कि दà¥à¤°à¥à¤—ा के अवतार के नाम से पूजी जाती हैं| मंदिर के अंदर हज़ारों चूहे हैं जो कि साधकों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लाये हà¥à¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ पर जीवित रहते हैं, और सही में देखा जाठतो काफी तंदरà¥à¤¸à¥à¤¤ à¤à¥€ हैं| इन चूहों को काफी पवितà¥à¤° माना जाता है और उनको करणी माता और उनके रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ से जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ हà¥à¤† माना जाता है|
दूध पीते चूहे, कà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤¶ है!
गरà¥à¤®à¥€ लेते हà¥à¤
ऊà¤à¤Ÿ पालन केंदà¥à¤°
देशनोक से लौटने के बाद हम बीकानेर से पहले à¤à¤• मोड़ से, जिससे जयपà¥à¤° की तरफ जाते हैं, दायें मà¥à¤¡à¤¼ गठजहां पर अपने में ही à¤à¤• अनोखा ऊà¤à¤Ÿ पालन केंदà¥à¤° है, जिसका नाम है राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ उषà¥à¤Ÿà¥à¤° अनà¥à¤¸à¤‚धान केंदà¥à¤° जो कि शायद विशà¥à¤µ में अकेला ऊंट के ऊपर शोध करने वाला केंदà¥à¤° है और à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ कृषि शोध à¤à¤µà¤‚ शिकà¥à¤·à¤¾ कौंसिल दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ खोला गया है|  यहाठऊà¤à¤Ÿ की विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ और उनके रहन, सहन, खाने, पीने और बà¥à¤°à¥€à¤¡à¤¿à¤‚ग पर शोध किया जाता है| केंदà¥à¤° में कई सारे ऊà¤à¤Ÿ और उनके बचà¥à¤šà¥‡ à¤à¥€ रहते हैं जिनपर परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• सवारी à¤à¥€ कर सकते हैं और उनको देख à¤à¥€ सकते हैं| केंदà¥à¤° में à¤à¤• दà¥à¤•ान à¤à¥€ है जहां ऊà¤à¤Ÿ का दूध और उससे बनी चीजें मिलती हैं, और साथ साथ ऊà¤à¤Ÿ की खाल से बने हà¥à¤ जूते और टोपियां à¤à¥€ मिलाती हैं| केंदà¥à¤° में ऊà¤à¤Ÿ के ऊपर à¤à¤• छोटा सा à¤à¤• मà¥à¤¯à¥‚ज़ियम à¤à¥€ है जहां ऊà¤à¤Ÿ से जà¥à¤¡à¤¼à¥€ हà¥à¤ˆ काफी जानकारियाठमिल जाती हैं|
ऊà¤à¤Ÿ अनà¥à¤¸à¤‚धान केंदà¥à¤° से लौटते हà¥à¤ शाम हो गयी थी और फिर हम सीधे अपने होटल गठजहां à¤à¥‹à¤œà¤¨ किया गया और सà¥à¤¬à¤¹ जयपà¥à¤° पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ की तैयारी|
और काफी तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚ यहाठपर हैं|
आगे की यातà¥à¤°à¤¾ का वृतà¥à¤¤à¤¾à¤‚त अगले à¤à¤¾à¤— में|
kya baat hai…aapka lekhan va aapke chitra ati uttam hai tatha itne utshahvardhak hai jo kisi ko bhi bikaner ghumne ki prerna dene ke liye paryapta hai…….
dhanyavaad….
great narration and good photos.
वह आशीष भाई, मज़ा आ गया
आप का लेखन लाजवाब है और तस्वीरें बेमिसाल
>>>>”लेकिन जिस बात ने हमारा पहुँचते ही मूड आफ किया वो ये थी कि स्टाफ विदेशी लोगों में ज़्यादा मशगूल थे”
यह तो कई सदियों की ग़ुलामी का असर है, सुधरने में देर तो लगेगी.
बहुत बहुत धन्यवाद और ऐसे ही दिलचस्प यात्रावृत यहाँ लिखते रहिये
आशीष भाई,
सुबह सुबह आपकी यह दिलचस्प पोस्ट पढ़कर मजा आ गया. जितना सुन्दर वर्णन उतने ही सुन्दर छायाचित्र, सब एक से बढ़कर एक. जो चित्र आपको पसंद है वही मुझे भी बहुत पसंद आया. लहसुन मिर्च की चटनी, बाजरे की रोटी और गाँव का शुद्ध घी पढ़कर ही मुंह में पानी आ गया.
धन्यवाद.
चित्र बेहद सुंदर आए हैं।