पिछली पोसà¥à¤Ÿ में आपने पढ़ा की मनाली के दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ की सैर करने के बाद करीब आठबजे हम लोग कैंप में पहà¥à¤‚चे, इस समय रात का खाना चल ही रहा था सो हमने à¤à¥€ सोचा टैंट में जाने से पहले खाना खा लिया जाय, वैसे à¤à¥‚ख हम सब को लग रही थी और कविता तो सà¥à¤¬à¤¹ से ही à¤à¥‚खी थी, सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ खाना देखकर à¤à¥‚ख और बढ़ गई। खाना खाने के बाद कविता तो बरà¥à¤¤à¤¨ साफ करने चली गई, बचà¥à¤šà¥‡ टैंट में चले गठऔर मैं हमारे साथ शिमला से आई गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ फेमिली के साथ अगले तीन दिन की यातà¥à¤°à¤¾ के लिठगाड़ी की बात करने में वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ हो गया।
अगले तीन दिनों के लिठहमने दोनो परिवारों के लिठशेयरिंग में नौ सीट वाली गाड़ी का सौदा टà¥à¤°à¥‡à¤µà¤² à¤à¤œà¥‡à¤‚ट से किया। तय कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के अंतरà¥à¤—त अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ हमें मणिकरà¥à¤£ जाना था। आज दिनà¤à¤° कैमरे से हमने फोटो खींचे थे अतः कैमरे की बैटरी खाली हो गई थी सो सबसे पहले कैमरे को चारà¥à¤œ किया। à¤à¥‹à¤œà¤¨ ककà¥à¤· के पास ही कैंप में à¤à¤• चारà¥à¤œà¤¿à¤‚ग पॉइंट बनाया गया था जहां कैमरे, मोबाइल आदि को चारà¥à¤œ किया जा सकता था, कविता तथा बचà¥à¤šà¥‡ तो टैंट में जाकर सो गठऔर मेरी डà¥à¤¯à¥‚टी लगी थी चारà¥à¤œà¤¿à¤‚ग पाइंट पर सो करीब à¤à¤• घंटा बैठकर मैने कैमरा और दोनों मोबाइल चारà¥à¤œ किठऔर फिर जाकर सोने की तैयारी की।
सà¥à¤¬à¤¹ हमें मणिकरà¥à¤£ के लिठजलà¥à¤¦à¥€ निकालना था, अतः कविता और मैं सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे उठगठऔर पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤§à¤¨ की ओर चल दिठवहां हमने देखा की दो बड़े बड़े तपेलों में पानी गरà¥à¤® हो रहा था नहाने के लिà¤, यह गरà¥à¤® पानी सà¥à¤¬à¤¹ चार बजे से उपलबà¥à¤§ हो जाता था। कविता और मैनें तो नहा à¤à¥€ लिया लेकिन बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को इतनी सà¥à¤¬à¤¹ उठाना थोड़ा मà¥à¤¶à¥à¤•िल काम था, थोड़ी आनाकानी के बाद दोनों बचà¥à¤šà¥‡ à¤à¥€ नहा धो कर तैयार हो गà¤à¥¤ तैयार होकर हम सà¤à¥€ फूड ज़ोन में आ गà¤, नाशà¥à¤¤à¤¾ तैयार था, और साथ ही दोपहर के लिठलंच à¤à¥€ तैयार था। नाशà¥à¤¤à¥‡ में इडली सांà¤à¤° और मीठा दलिया था जो की बहà¥à¤¤ ही सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ था। इस समय सà¥à¤¬à¤¹ के सात बज रहे थे और नाशà¥à¤¤à¤¾ करने के बाद अब हम लोग तैयार थे, हमें साढ़े सात बजे निकालना था और उससे पहले अपने अपने लंच बॉकà¥à¤¸à¥‡à¤¸ में लंच à¤à¥€ पैक करना था, उधर गाड़ी वाले का à¤à¥€ फोन आ गया था की वो गाड़ी लेकर खड़ा है। लाउड सà¥à¤ªà¥€à¤•र पर चाय तथा पैकà¥à¤¡ लंच के लिठबार बार घोषणा हो रही थी। हमने अपने साथ लाठबरà¥à¤¤à¤¨à¥‹à¤‚ में लंच पैक किया लंच में सà¥à¤–ी आलू की सबà¥à¤œà¥€ और परांठे थे, उसे बैग में रखा और तैयार होकर गाड़ी में आकर बैठगà¤à¥¤ साथ वाले गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ परिवार के मौसा जी का काम थोड़ा ढीला था अतः उनकी वजह से थोड़ा लेट हà¥à¤ और आठबजे हम मणिकरण के लिठनिकल पड़े।
पतली कूहल से आगे तथा à¤à¥à¤‚तर के करीब à¤à¤• जगह थी जहाठरोड के à¤à¤• तरफ तो बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नदी बह रही थी तो दूसरी तरफ अंगोरा खरगोशों के फारà¥à¤®à¥à¤¸ थे जहाठपर अंगोरा पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ के खरगोशों को पाला जाता है और उनके रूई जैसे सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° सफेद à¤à¤µà¤‚ à¤à¤•दम महीन बालों से शालें, परà¥à¤¸ तथा अनà¥â€à¤¯ सामान बनाठजाते हैं। यहाठहम लोगों ने गाड़ी रूकवाई, बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नदी के किनारे राफà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚ग हो रही थी और वहन राफà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚ग करवाने वालों के कà¥à¤› सà¥à¤Ÿà¤¾à¤²à¥à¤¸ à¤à¥€ लगे थे, लेकिन हम लोगों को राफà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚ग नहीं करनी थी, सो हम नदी के किनारे खड़े होकर राफà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚ग के इस रोमांचक खेल को देखने लगे, तथा कà¥à¤› देर बाद फोटोगà¥à¤°à¤¾à¤«à¥€ शà¥à¤°à¥‚ कर दी। कà¥à¤› देर फोटो शूट करने के बाद हम अंगोरा खरगोश फारà¥à¤®à¥à¤¸ पर आ गठतथा 10 रà¥. पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का टिकट लेकर फारà¥à¤® में खरगोशों को देखने पहà¥à¤‚चे। कà¥à¤› समय यहाठबिताने के बाद हम लोग अपनी गाड़ी में बैठकर अपनी मंज़िल की ओर बढ़ चले।

अंगोरा खरगोश पालन केनà¥à¤¦à¥à¤° में खरगोश…

राफà¥à¤Ÿ में खाली पीली बैठने का आनंद….

बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नदी के किनारे..

बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नदी के किनारे ..

बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नदी …

राफà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚ग ..

मणिकरà¥à¤£ की ओर …
यहाठमैं à¤à¤• बात बताना चाहूंगा की अगर आप मणिकरà¥à¤£ जा रहे हैं तो साथ में à¤à¤• तौलिया और à¤à¤• जोड़ी अनà¥à¤¤à¤ƒà¤µà¤¸à¥à¤¤à¥à¤° जरूर रख लें कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि मणिकरà¥à¤£ के पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤°à¤¤à¤¿à¤• गरà¥à¤® पानी के कà¥à¤£à¥à¤¡ में नहाने में बहà¥à¤¤ मजा आता है। हम लोगों ने à¤à¥€ यह सà¥à¤¨ रखा था अतः हम अंडरगारमेंटà¥à¤¸ और टावेल रखना नहीं à¤à¥‚ले। दोनों परिवारों के लिठगाड़ी में परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ जगह थी सो हम आराम से बैठगà¤à¥¤ सà¥à¤¬à¤¹ सà¥à¤¬à¤¹ का समय और खà¥à¤¶à¤¨à¥à¤®à¤¾ मौसम, बहà¥à¤¤ मज़ा आ रहा था इस सफर में। पतली कूहल होते हà¥à¤ पहले हम कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ पहà¥à¤‚चे, वहां से à¤à¥à¤‚तर होते हà¥à¤ मणिकरà¥à¤£ की ओर बढ़ रहे थे। रासà¥à¤¤à¤¾ थोड़ा खराब था लेकिन आसपास की खूबसूरत पहाड़ियाà¤, नदी और देवदार के लमà¥à¤¬à¥‡ लमà¥à¤¬à¥‡ पेड़ मिलकर इतना सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° समा बना रहे थे की उस खराब रोड की ओर हमारा धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ ही नहीं जा रहा था, हाथ में कैमरा, मन में ढेर सारी उमंगें और उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ लिठहम अपने गंतवà¥à¤¯ की ओर बढ़े चले जा रहे थे। चारों ओर इतने सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° नज़ारे थे की समठमें नहीं आ रहा था की किसकी फोटो लें और किसे छोड़ दें, मैं तो लगातार फोटो खींचे जा रहा था. रासà¥à¤¤à¤¾ कैसे कट गया हमें पता ही नहीं चला और हम मणिकरà¥à¤£ पहà¥à¤‚च गà¤à¥¤ यहाठथोड़ा ठंडा मौसम था, पर धूप निकली होने से अचà¥à¤›à¤¾ लग रहा था।
मणिकरà¥à¤£  कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ जिले के à¤à¥à¤‚तर से उतà¥à¤¤à¤° पशà¥à¤šà¤¿à¤® में पारà¥à¤µà¤¤à¥€ घाटी में वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ और पारà¥à¤µà¤¤à¥€ नदियों के मधà¥à¤¯ बसा है। यह हिनà¥à¤¦à¥ और सिकà¥à¤–ों का à¤à¤• तीरà¥à¤¥à¤¸à¥à¤¥à¤² है। यह समà¥à¤¦à¥à¤° तल से 1760  मीटर [छह हजार फà¥à¤Ÿ] की ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है और à¤à¥à¤‚तर में छोटे विमानों के लिठहवाई अडà¥à¤¡à¤¾ à¤à¥€ है। à¤à¥à¤‚तर-मणिकरà¥à¤£ सडक à¤à¤•ल मारà¥à¤—ीय (सिंगल रूट) है, पर है हरा-à¤à¤°à¤¾ व बहà¥à¤¤ सà¥à¤‚दर।
मणिकरà¥à¤£ अपने गरà¥à¤® पानी के लिठà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। देश-विदेश के लाखों पà¥à¤°à¤•ृति पà¥à¤°à¥‡à¤®à¥€ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• यहाठबार-बार आते है, विशेष रà¥à¤ª से à¤à¤¸à¥‡ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• जो चरà¥à¤® रोग या गठिया जैसे रोगों से परेशान हों यहां आकर सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ सà¥à¤– पाते हैं। à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है कि यहां उपलबà¥à¤§ गंधकयà¥à¤•à¥à¤¤ गरà¥à¤® पानी में कà¥à¤› दिन सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी के कà¥à¤‚ड मणिकरà¥à¤£ का सबसे अचरज à¤à¤°à¤¾ और विशिषà¥à¤Ÿ आकरà¥à¤·à¤£ हैं। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ गरà¥à¤® कà¥à¤‚डो में गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के लंगर के लिठबडे-बडे गोल बरà¥à¤¤à¤¨à¥‹à¤‚ में चाय बनती है, दाल व चावल पकते हैं। परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों के लिठसफेद कपड़े की पोटलियों में चावल डालकर धागे से बांधकर बेचे जाते हैं। विशेषकर नवदंपती इकटà¥à¤ े धागा पकडकर चावल उबालते देखे जा सकते हैं।  उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लगता हैं कि जैसे यह उनकी जीवन का पहला खà¥à¤²à¤¾ रसोईघर है, जो सचमà¥à¤š रोमांचक à¤à¥€ है।  यहां पानी इतना खौलता है कि à¤à¥‚मि पर पांव जलाने लगते हें । यहां के गरà¥à¤® गंधक जल का तापमान हर मौसम में à¤à¤• सामान 95 डिगà¥à¤°à¥€ सेलà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¸ रहता है।
मणिकरà¥à¤£ का शाबà¥à¤¦à¤¿à¤• अरà¥à¤¥ है, कान की बाली। यहां मंदिर व गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के विशाल à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ से लगती हà¥à¤ˆ बहती है पारà¥à¤µà¤¤à¥€ नदी, जिसका वेग रोमांचित करने वाला होता है। नदी का पानी बरà¥à¤« के समान ठंडा है। नदी की दाहिनी ओर गरà¥à¤® जल के उबलते सà¥à¤°à¥‹à¤¤ नदी से उलà¤à¤¤à¥‡ दिखते हैं। इस ठंडे-उबलते पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक संतà¥à¤²à¤¨ ने वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•ों को लंबे समय से चकित कर रखा है। वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•ों का कहना है कि यहाठके पानी में रेडियम है।

पारà¥à¤µà¤¤à¥€Â नदी …

पारà¥à¤µà¤¤à¥€Â नदी पर पैदल पà¥à¤²….

गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मणिकरà¥à¤£ साहिब
कà¥à¤› समय इन गरà¥à¤® पानी के कà¥à¤£à¥à¤¡à¥‹à¤‚ के पास बिताने के बाद हमने शिव मंदिर में à¤à¤—वान के दरà¥à¤¶à¤¨ किठऔर फिर नहाने के लिठचल दिà¤à¥¤ चूंकि यहाठके पà¥à¤°à¤•ृतिक गरà¥à¤® पानी के कà¥à¤£à¥à¤¡à¥‹à¤‚ का पानी इतना गरà¥à¤® होता है की इनमें नहाया नहीं जा सकता अतः गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ समिति ने अलग से दो लमà¥à¤¬à¥‡ चौड़े कà¥à¤£à¥à¤¡ बनाये है सिरà¥à¤« नहाने के लिà¤, à¤à¤• पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ तथा दूसरा महिलाओं के लिà¤. इस कà¥à¤£à¥à¤¡ में पाइप के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤•ृतिक कà¥à¤£à¥à¤¡ से गरà¥à¤® पानी लाया जाता है तथा à¤à¤• अनà¥à¤¯ पाइप से उपर से परà¥à¤µà¤¤à¥€ नदी का ठंडा पानी छोड़ा जाता हैं, इस गरà¥à¤® तथा ठंडे पानी के मिशà¥à¤°à¤£ से नहाने लायक गरà¥à¤® पानी कà¥à¤£à¥à¤¡ में इकटà¥à¤ ा होता है, लेकिन फिर à¤à¥€ यह पानी घर पर नहाने के गरà¥à¤® पानी की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में कà¥à¤› जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ गरà¥à¤® होता है अतः पानी में उतरते ही पहले तो जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ गरà¥à¤® पानी की वजह से घबराहट होती है और बाहर निकलने का मन करता है लेकिन कà¥à¤› देर हिमà¥à¤®à¤¤ से अंदर डटे रहने के बाद शरीर इस पानी के अनà¥à¤•ूल हो जाता है।

गरà¥à¤® पानी के कà¥à¤£à¥à¤¡ में खौलता पानी ..

शिव मंदिर

गरà¥à¤® पानी कà¥à¤£à¥à¤¡ से उठता धà¥à¤†à¤

मणिकरà¥à¤£ का à¤à¤• मनोहारी दृशà¥à¤¯

कà¥à¤£à¥à¤¡ में चावल पकाता शिवम….

नहाने के लिये गरà¥à¤® पानी का कà¥à¤£à¥à¤¡ और उपर पाईप से गिरता ठंडा पानी…

गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ परिसर

रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¤• हिमाचली घर…..

जंगल में मंगल

पारà¥à¤¶à¥à¤µ में पारà¥à¤µà¤¤à¥€ नदी …
खाना खाकर हम लोग वापस अपनी अपनी जगह पर गाड़ी में आकर बैठगठऔर गाड़ी चल पड़ी… कà¥à¤› देर के सफर के बाद à¤à¥‚ंतर शहर आया जहाठसे कविता ने à¤à¤• कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ शॉल के फैकà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ काम शो रूम से अपने तथा परिजनों के लिठशौलें खरीदी।

बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नदी के किनारे बसा कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ शहर

कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚
यहां से चले तो कà¥à¤› देर बाद कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ पहà¥à¤‚चे, कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ से हमारे साथी गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ परिवार को दिलà¥à¤²à¥€ के लिठहिमाचल परिवहन की बस का टिकट बà¥à¤• करवाना था अतः हमने यहाठगाड़ी रूकवाई तथा बà¥à¤•िंग करवाने के बाद हम वापस कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ से अपने कैंप की ओर चल दिà¤à¥¤ कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ में शहर से थोड़ा सा बाहर निकलकर माता वैषà¥à¤£à¥Œ देवी का तीन चार मंज़िला à¤à¤• बहà¥à¤¤ ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° तथा विशाल मंदिर है जो की देखने लायक है, अगर आप कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ जा रहे हैं तो इस मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ अवशà¥à¤¯ करें। इस मंदिर में की गई लकड़ी की बारीक नकà¥à¤•ाशी आपको अचंà¤à¤¿à¤¤ कर देगी, इस मंदिर के अंदर à¤à¤• शिव मंदिर तथा à¤à¤• शनिदेव का मंदिर à¤à¥€ है।

कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड

शà¥à¤°à¥€ वैषà¥à¤£à¥‹ देवी मंदिर कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚

बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नदी
कà¥à¤› ही देर में हम पतली कूहल गांव पहà¥à¤‚च गठजहाठà¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर पहाड़ी फलों की बहà¥à¤¤ सारी दà¥à¤•ानें लगी थी, कविता को इन फलों में चेरी बहà¥à¤¤ पसंद आई थी सो हमने चेरी का à¤à¤• किलो का पेकेट खरीदा।

पहाड़ी फल

बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नदी
कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ से निकलकर शाम 6 बजे के लगà¤à¤— कैंप पहà¥à¤‚च गà¤à¥¤Â कैंप में इस समय शाम का चाय सà¥à¤¨à¥‡à¤•à¥à¤¸ चल रहा था सो हम à¤à¥€ टैंट में ना जाकर यहीं बैठकर चाय नमकीन का आनंद उठाने लगे…..
Mukesh Jee,
Thanks for sharing nice post accompanied with beautiful pictures. I have visited this place in 2001. It seems many things have changed.Then there was no ponds in Gurudwara campus . Hot water pond was opposite to Gurudwara on other end of Parvati. Like Garm gufa ,there was also a Thandi (cold ) Gufa in Gurudwara campus whose floor was chilled.
Naresh jee,
Thank you very much for your nice comment and highlighting the changes there so far.
Thanks.
Dear Mukesh Ji,
A well narrated post with beautiful pics. Sulphur spring in Manikarn is famous and I also saw the cooking of rice during my visit there. Kullu is really Kullu. Nice and beautiful. Beas River looks awesome. Photographs are praiseworthy and write up is as usual very interesting.
कुल मिला कर बहुत आनंद आया. (I copied this from your post, I can read Hindi well, but can’t type)
Thanks for sharing.
Thank you very much Anupan ji for your valuable remarks.
Thanks.
I visited on Manikaran Shahab on 18 Aug 2014, really a beautiful place.
Thanks Vivek for your remarks.
nice post,very good pics.
Thanks Ashok Sir for your lovely comments.
मुकेश जी आपने मनाली व मणीकर्ण की पुरानी यादें ताजा कर दी.मै 2007 मे मणीकर्ण गया था पर फोटो देखकर कुछ बदला बदला सा लग रहा है.
बढिया यात्रा रही,पढ कर अच्छा लगा.
लिखते रहीऐगा…….
सचिन जी,
प्रतिक्रिया प्रेषित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद. जी हां, नरेश जी भी ऐसा ही कुछ कह रहे हैं की मणिकर्ण में काफी कुछ बदल गया है।
Hi Mukesh ji
यूँ तो मणीकरण के बारे में कई जगह पड़ा है मगर आपने जिस लग्न और दिल के साथ यहाँ का वर्णन किया है वो अपने आप में काबिले तारीफ है।
हालाँकि मैं अभी तक वहां नही जा पाया मगर आपका यात्रा वृतांत पड़ते हुए यूँ महसूस हुआ कि मैं आपके साथ ही वहां की यात्रा कर रहा हूँ, और फ़ोटोज़ में सब कुछ सजीव देख रहा हूँ।
एक छोटा सा करेक्शन करना चाहूँगा यदि आप बुरा न माने तो।
पंच प्यारे का सिद्वांत गुरु गोबिंद सिंह जी ने शुरू किया था। गुरु नानक अपनी प्रत्येक यात्रा में अपने दो सेवको भाई बाला और भाई मरदाना के साथ ही गये थे। जिनमे से एक हिन्दू थे और दुसरे मुस्लिम।
बाकी आपने हर जगह का बहुत बारीकी से बड़िया वर्णन किया है। आपने शायद गुरूद्वारे में लंगर नही खाया, आपकी पोस्ट से कुछ ऐसा लगा। यदि नही खाया तो आप कभी जरूर खायें। इसलिये नही कि उसमे ऐसा कुछ ख़ास है जो और किसी खाने में नही बल्कि केवल इसलिये लि कि इस महान परम्परा को गुरु नानक देव जी ने इसलिये शुरू किया था कि इसमें सभी धर्म, जाति के लोग बिना किसी भेदभाव के खाना खा सकते है और वो भी पूरी तरह से निशुल्क। और आज के इस भौतिकवादी और बाजारीकरण के दौर में ऐसी परम्पराओं को जिन्दा रखने के लिये ये नितांत आवश्यक है कि हम भी उसमे भाग लें, अन्यथा ये भी कब दम तोड़ दे, हमें पता भी नही चलेगा।
पोस्ट साझा करने के लिये शुक्रिया, अगले भाग का इंतज़ार रहेगा…
(ऊपर कुछ जगह वर्तनी की गलतियाँ हो गयी हैं जो मैं मोबाइल से ठीक नही कर प् रहा, उसके लिए क्षमा प्राथी हूँ)
अवतार जी,
आपकी इस सुन्दर सी टिप्पंणी के लिये धन्यवाद. गुरु नानक के बारे में और जानकारी प्रदान करने के लिए भी धन्यवाद। हाँ अवतार जी हम लोगों ने यहाँ लंगर नहीं खाया, दरअसल हम लोग YHAI कैंप से खाना पैक कर के ले गए थे सो हमने वही खाना खा लिया लेकिन अब मुझे अफसोस हो रहा है की हमने लंगर में खाना क्यों नहीं खाया.
Very comprehensive log, Mukes Bhai.
We were there in 2008 and I can very well remember the drive from Kullu to Kasol, full of trees as you rightly observed. Just before Manikarn, there is a place called ‘Kasol’ which is kind of become a ghetto of foreign nations (Israel etc) and is popular among the green community. When we went, there was no motorable road to Malana but I am told that now there is one, which goes very close to it.
I think, apart from Hemkunt Sahib in Uttrakhand near Valley of Flowers, this Gurduwara is located among most picturesque setup. Thanks again for refreshing our memories.
BTW, I do not remember every coming across a phrase like “अद्भुत, आश्चर्य, घोर आश्चर्य”.. hehe. I think घोर is mostly used for other things.
Nandan,
Thank you very much for your all time encouraging and nice comment.
प्रिय मुकेश,
आपके लेखन की सबसे अच्छी बात ये है कि आपकी पोस्ट का प्रिंट आउट निकाल कर संभाल कर फाइल में रख लेने का मन करता है ताकि वक्त जरूरत काम आये। आपके लेख अगर साथ हों तो न किसी टूरिस्ट गाइड की जरूरत है और न ही किसी नक्शे की ! सब कुछ इतना धैर्य से और प्यार से वर्णन करते हैं कि – यूं के मज़ा आ जाता है ज़िन्दगी का!
मैं आजतक कुल्लू – मनाली नहीं गया ! शायद मैं और मेरी अर्द्धांगिनी पहाड़ी यात्रा के मामले में कुछ ज्यादा ही संकोची हैं। पर बस और नहीं ! इस बार अवश्य जायेंगे और आपकी यह श्रंखला साथ में प्रिंट करके लेते जायेंगे !
परिवार को सादर, सस्नेह अभिवादन !
सुशांत जी,
आपकी यह कमेन्ट पढ़कर तो मैं भाव विभोर हो गया, और फूला नहीं समा रहा हूँ। सब आपकी नज़रों का शउर है ज़नाब वर्ना हम इस तारीफ के काबिल कहाँ …..
काश जल्द ही हमें आपकी कलम से पहाड़ों की सैर का वर्णन पढ़ने को मिले ….
Mukeshjee, Enjoyed reading your report which brought back our memories of trip in July 2008. Nagar Palace stay and drive from Nagar to Manikaran was beautiful. Shivaji Temple and Gurudwara was serene. There is a also a small trek to Bijli Mahadev on the way which I enjoyed very much.
Dear Nagar ji,
Thank you very much for your kind words. We couldn’t visit Naggar, though it was only 8 km from our camp. We visited Bijli Mahadev and it was really awesome.
Thanks.
मुकेश जी मैं घुमाक्कर.कॉम पर नया हु. अभी तक आपके दो यात्रा वृतांत पढ़े है दोनों ही बेहद शानदार लगे आपकी उत्कृष्ट लेखन शैली से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ. मैं भी अभी मार्च २०१४ में अधूरी जानकारी और अधूरी तैयारी के साथ मनाली और मणिकर्ण गया था. आपका आपका लेख पढ़कर यादे ताजा हो आई. मैं मनाली और मणिकर्ण तो घूमकर आ गया लेकिन इनके बारे में जितनी जानकारी आपकी पोस्ट से मिली है वहां घूमकर नहीं मिल पायी थी. पुरानी यादे ताजा कराने के लिए आपका धन्यवाद.
आनंद जी,
आपकी कमेन्ट पढ़कर आनंद आ गया। घुमक्कड़ पर आते रहें और मेरी तथा साथी लेखकों की अन्य रचनाएं भी पढ़ें तथा अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया अवश्य दें। सराहना के लिए धन्यवाद। ..
After taking your bath in hot water, you became unwell becauseyou had overstayed in the hot sulpher water which according to some people should not be more than 10 mintes