दूसरे दिन सà¥à¤¬à¤¹ अंधेरे में ही उठकर नितà¥à¤¯à¤•रà¥à¤® से निवृतà¥à¤¤ होकर और हाथ-मà¥à¤¹à¤ धोकर à¤à¤• दà¥à¤•ान में चाय-बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ खाये और पिटà¥à¤ ू लाद कर सूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯ से पहले ही घाघंरिया से हेमकà¥à¤‚ड साहिब को चल पडे। हमें आज रात को ही गोबिंद घाट पहà¥à¤à¤šà¤¨à¤¾ था यानी कि कà¥à¤² 7+7+13=27 किलोमीटर चलना था।
गोबिंद धाम और हेमकà¥à¤‚ड साहिब के बीच दूरी लगà¤à¤— सात किलोमीटर है। हालांकि à¤à¤¸à¥€ खड़ी चढ़ाई चढ़ना बहà¥à¤¤ मà¥à¤¶à¥à¤•िल है, लेकिन सपनों की जगह को देखने की इचà¥à¤›à¤¾ इस तरह के à¤à¤• कठिन रासà¥à¤¤à¥‡ पर चढ़ाई करने के लिठपà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ करती है। पहले के दिनों में हेमकà¥à¤‚ड साहिब तक पहà¥à¤‚चने के लिठकोई रासà¥à¤¤à¤¾ नहीं था लेकिन अब हेमकà¥à¤‚ड साहिब टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ ने à¤à¤• नियमित रूप से रासà¥à¤¤à¤¾ बना दिया है।जब हम चढ़ाई शà¥à¤°à¥‚ करते हैं, तो यह इतना मà¥à¤¶à¥à¤•िल नहीं लगता है, लेकिन आधा किलोमीटर होने के बाद चढ़ाई इतनी खड़ी हो जाती है कि à¤à¤•-2कदम के लिठà¤à¥€ बहà¥à¤¤ जोर लगता है। लेकिन जहां चाह है, वहाठà¤à¤• राह है।गà¥à¤°à¥ गोबिंद सिंह के तपोà¤à¥‚मि ‘को शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करने की उतà¥à¤¸à¥à¤•ता सà¤à¥€ कठिनाइयों को आसान बनाती है। उजाला होने तक करीब 1 किमी. चढ़ाई चढ़ ली थी। रासà¥à¤¤à¥‡ में अनà¥à¤¯ यातà¥à¤°à¥€ à¤à¥€ मिल रहे थे। थोड़ा और आगे चलते ही रासà¥à¤¤à¥‡ के दायीं ओर à¤à¤• विशाल à¤à¤°à¤¨à¤¾ दिखाई दिया जिसमें पानी काफ़ी ऊंचाई से नीचे गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° पर गिर रहा था और बहà¥à¤¤ आवाज़ हो रही थी मानो à¤à¤°à¤¨à¤¾ सबको अपनी मौजूदगी का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ दिला रहा हो। लेकिन यह à¤à¤°à¤¨à¤¾ रासà¥à¤¤à¥‡ से काफ़ी दà¥à¤° था और वहाठपहà¥à¤à¤šà¤¨à¤¾ आसान नहीं था। गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ गोविंद धाम से शà¥à¤°à¥€ हेमकà¥à¤‚ट साहिब की ओर तीन किलोमीटर के बाद मà¥à¤–à¥à¤¯ रासà¥à¤¤à¤¾ दो à¤à¤¾à¤—ों में बंट जाता है। दांयी तरफ़ वाले रासà¥à¤¤à¥‡ से आगे हेमकà¥à¤‚ड साहिब की ओर चले जाते हैं तो बायीं तरफ़ वाला रासà¥à¤¤à¤¾ विशà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ फूलों की घाटीकी ओर जाता है।
“फूलों की घाटी : जब हम गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ गोविंद धाम से शà¥à¤°à¥€ हेमकà¥à¤‚ट साहिब की ओर तीन किलोमीटर की यातà¥à¤°à¤¾ करते हैं तो आगे à¤à¤• रासà¥à¤¤à¤¾ बायीं तरफ़ विशà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ फूलों की घाटी की ओर जाता है। सन 1982 को इसे राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¿à¤¯-उधान के रूप में घोषित किया है ।इस घाटी मेंहजारों किसà¥à¤®à¥‹à¤‚ की और तरह तरह के रंग और खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ के फूल उगते हैं । इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में à¤à¤¸à¥€ और कोई जगह नहीं है जहां इतनी जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ किसà¥à¤®à¥‹à¤‚ के फूल सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• रूप से विकसित होते हों। इन फूलों का मानवता की सहायता के बिना हो जाना à¤à¤• सà¥à¤–द घटना है। इनफूलों का जीवन उनकी पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° रहता है. कà¥à¤› फूल, खिलने के चौबीस घंटे के à¤à¥€à¤¤à¤° ही मà¥à¤°à¤à¤¾ जातें हैं और कà¥à¤› महीनों के लिठखिले रहते हैं। यहाठसिरà¥à¤« इन फूलो को देखना चाहिà¤, छूने की मनाई है, कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि जंगली पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ होने के कारण कोई फूल जहरीला à¤à¥€ होसकता है।
फूलों की घाटी à¤à¤• हिमनदों का गलियारा है जो लंबाई में आठकिलोमीटर और चौड़ाई में दो किलोमीटर है. यह समà¥à¤¦à¥à¤° के सà¥à¤¤à¤° से ऊपर 3,500 मीटर से लगà¤à¤— 4000 मीटर के ढलानों पर है. अपने नाम के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ही, घाटी में मानसून के मौसम के दौरान विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ किसà¥à¤®à¥‹à¤‚ केफूलों से कालीन बिछ जाता है. इस अनूठी पारिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में उगनेवाली कई पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में से, हिमालय कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° की नीली अफीम, मानसून के दौरान खिलने वाली पà¥à¤°à¤¿à¤®à¥à¤²à¤¾ और आरà¥à¤•िड की असामानà¥à¤¯ किसà¥à¤®à¥‡ दरà¥à¤¶à¤•ों के बीच सबसे लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ हैं। à¤à¤¾à¤°à¤¤ और अनà¥à¤¯ देशों के वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• इनफूलों और जड़ी बूटियों पर उपयोगी दवाà¤à¤‚ बनाने के लिठकाम कर रहे है।
इस फूलो की घाटी पर à¤à¤• विदेशी महिला, मिस जोनà¥à¤¸ ,जो लनà¥à¤¦à¤¨ के शाही बागीचो की परà¥à¤¯à¤µà¥‡à¤•à¥à¤·à¤• थी à¤à¤• बार रानीखेत के पादरी की पतà¥à¤¨à¥€ मिसेस सà¥à¤®à¤¿à¤¥ के साथ सन 1922 में à¤à¥à¤°à¤®à¤£ करती हà¥à¤ˆ पहाड़ी पर चढकर इस घाटी में उतर आई थी , फूलों की इस घाटी पर वो इतनामोहित और मंतà¥à¤°à¤®à¥à¤—à¥à¤§ हो गयी थी कि उसने घाटी में फूलों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने के लिठयहां रहने मन बना लिया। उसने पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• फूल का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ व विशà¥à¤²à¥‡à¤·à¤£ किया और सबको à¤à¤• वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ नाम दिया।उसने सà¤à¥€ फूलों की विशेषताओं का उलà¥à¤²à¥‡à¤– किया और फूलों का à¤à¤•विशà¥à¤µà¤•ोश तैयार किया। उसकी किताबों ने इस घाटी को विशà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ बना दिया। वह छह महीने के लिठइस घाटी में रà¥à¤•ी थी और उसे यह जगह इतनी पसंद आई की वो हर साल यहाठआती रही । à¤à¤• दिन उसका पैर यही फिसल गया जिसके कारण उसकी मà¥à¤°à¥ƒà¤¤à¥à¤¯à¥ हो गई ।आजà¤à¥€ इस महिला की यहाठसमाधि बनी हà¥à¤ˆ है। उसकी समाधि इस घाटी का à¤à¤• और अà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ अंग बन गयी हैâ€à¥¤
हम दांयी तरफ़ वाले रासà¥à¤¤à¥‡ से आगे हेमकà¥à¤‚ड साहिब की ओर बढ़ गà¤à¥¤ जब हमने थोडी दूरी और खतà¥à¤® की तो घने जंगलों का कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° समापà¥à¤¤ हो गया। पूरे रासà¥à¤¤à¥‡ में कई दà¥à¤•ाने है जहां चाय मिलती है, कई लोग आलू के पराठों का मज़ा ले रहे थे ।à¤à¤• पराठा 30 रà¥. में साथ में दही औरबिसलरी बाटल 30 रà¥. में, चाय 15 रà¥.में! खाने का सामान काफी महंगा था । जैसे-2 हम उपर की तरफ़ जा रहे थे वैसे-2 खाने –पीने का सामान काफी महंगा होता जा रहा था और आखिर में à¤à¤• जगह बिसलरी बाटल 70 रà¥. में, चाय 25 रà¥.में! थोडा और चलने के बाद गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° शà¥à¤°à¥ हो गये।
घोड़े वाले यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° शà¥à¤°à¥ होते ही उतार देते हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इससे आगे घोड़ों के फ़िसलने का खतरा बहà¥à¤¤ बढ जाता है। नरेश सरोहा, हरिश गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ और सीटी ने आज चढ़ाई के लिये घोड़े किये थे और वो हमसे आगे थे लेकिन गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° पर चढ़ना शà¥à¤°à¥ होते ही वो तीनो हांफने लगे। हम लोगों ने उनको à¤à¤• दà¥à¤•ान पर चाय पीते देखा लेकिन हम वहाठरà¥à¤•े नहीं और लगातार आगे बढ़ते गये। अब आखिरी दो किलोमीटर गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° पर ही चढ़ना था जो काफ़ी मà¥à¤¶à¥à¤•िलों à¤à¤°à¤¾ था। कई जगह तो दोनो तरफ़ 6 फ़à¥à¤Ÿ उà¤à¤šà¥€ बरफ़ की दीवार थी और बीच सेगà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° को काटकर रासà¥à¤¤à¤¾ बनाया हà¥à¤† था।
सोनॠऔर सतीश आज à¤à¥€ सबसे आगे थे और सबसे पहले हेमकà¥à¤‚ड साहिब पहà¥à¤à¤š गये थे, उनके बाद मैं और शà¥à¤¶à¥€à¤² सà¥à¤‚दर और आकरà¥à¤·à¤• दृशà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को देखते हà¥à¤ वहाठपहà¥à¤à¤šà¥‡ । हम सà¥à¤¬à¤¹ 5:15 बजे निकले थे और 9:45 बजे तक हेमकà¥à¤‚ड साहिब पहà¥à¤à¤š गठ,कैसे पहà¥à¤‚चे ,यह हम ही जानते है।
हमने यहॉ पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ से पहले रासà¥à¤¤à¥‡ मे दà¥à¤°à¥à¤²à¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® कमल à¤à¥€ देखा। वैसे तो कमल पानी में खिलने वाला à¤à¤• फूल है लेकिन इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में इस बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® कमल को चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर पाया जाता है।
हेमकà¥à¤‚ड साहिब:
हेमकà¥à¤‚ड साहिब समà¥à¤¦à¥à¤° सà¥à¤¤à¤° से 4329 मीटर की ऊचाà¤à¤ˆ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। सिखों के पवितà¥à¤° तीरà¥à¤¥, हेमकà¥à¤‚ट साहिब और à¤à¥€à¤² चारों तरफ़ बरà¥à¤« से ढकी सात पहाड़ियों से घिरे हà¥à¤ है। à¤à¥€à¤² के चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥€ किनारे वरà¥à¤· के अधिकांश समय बरà¥à¤« के साथ ढके रहते है, लेकिन जब बरà¥à¤« पिघल जाती है,तोयहाठपौराणिक पीले व हरे, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ कमल (परमेशà¥à¤µà¤° के फूल) चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर उग आते हैं ।यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ अपनी अदमà¥à¤¯ सà¥à¤‚दरता के लिये जाना जाता है और यह सिखों के सबसे महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ मंदिरों में से à¤à¤• है। यह पवितà¥à¤° सà¥à¤¥à¤² गà¥à¤°à¥ गोबिंद सिंह जी के यहाठआने से पहले à¤à¥€ तीरà¥à¤¥ माना गया है।इस पवितà¥à¤° सà¥à¤¥à¤² को पहले लोकपाल , जिसका अरà¥à¤¥ है ‘विशà¥à¤µ के रकà¥à¤·à¤•’ कहा जाता था। इस जगह को रामायण के समय से मौजूद माना गया है। लोकपाल को लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ के साथ संबदà¥à¤§ किया गया है यह कहा जाता है कि लोकपाल वही जगह है जहां शà¥à¤°à¥€ लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी, अपनी पसंदीदाजगह होने के कारण, धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ पर बैठगये थे। इस जगह को सिखों के दसवें गà¥à¤°à¥, गà¥à¤°à¥ गोबिंद सिंह के साथ à¤à¥€ संबदà¥à¤§ किया गया है à¤à¤¸à¤¾ कहा जाता है कि अपने पहले के अवतार में गोविनà¥à¤¦ सिंह जी धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ के लिठयहॉ आये थे. गà¥à¤°à¥ गोबिंद सिंह जी ने अपनी आतà¥à¤®à¤•था ‘बिचितà¥à¤° नाटक’में जगह के बारे में अपने अनà¥à¤à¤µ का इस तरह से उलà¥à¤²à¥‡à¤– किया है।
अब मै अपनी कथा बखानो ॥ तप साधत जिह बिधि मà¥à¤¹à¤¿ आनो
हेम कà¥à¤‚ट परबत है जहां ॥ सपत सà¥à¤°à¤¿à¤‚ग सोà¤à¤¿à¤¤ है तहां
सपत सà¥à¤°à¤¿à¤‚ग तिह नामॠकहावा ॥ पंडॠराज जह जोगॠकमावा ॥
तह हम अधिक तपसिआ साधी ॥ महाकाल कालिका अराधी ॥
इह बिधि करत तपिसआ à¤à¤¯à¥‹ ॥ दà¥à¤µà¥ˆ ते à¤à¤• रूप हà¥à¤µà¥ˆ गयो ॥
अब मैं खà¥à¤¦ की कहानी कहता हà¥à¤,जब मैं गहरे धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में लीन था तब à¤à¤—वान ने मà¥à¤à¥‡ इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में à¤à¥‡à¤œà¤¾
सात चोटियों के साथ लग रहा à¤à¤• बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¶à¤¾à¤²à¥€ हेमकà¥à¤‚ट नाम का पहाड़ है।
यह पहाड़ सपà¥à¤¤ (सात)- नà¥à¤•ीला पहाड़ है, जहां पांडवों ने पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ योग किया था।
वहाठमैंने गहरे धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में बहà¥à¤¤ तपसà¥à¤¯à¤¾ की और महाकाल व काली की आराधना की।
इस तरह, मेरा धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ अपने चरम पर पहà¥à¤‚च गया और मैं à¤à¤—वान के साथ à¤à¤• बन गया।
हेमकà¥à¤‚ड संसà¥à¤•ृत (“बरà¥à¤«à¤¼”) हेम और कà¥à¤‚ड (“कटोरा”) से वà¥à¤¯à¥à¤¤à¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ नाम है । हेमकà¥à¤‚ट साहिब गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤• छोटे से सà¥à¤Ÿà¤¾à¤° के आकार का है तथा सिखों के अंतिम गà¥à¤°à¥‚, गà¥à¤°à¥ गोबिंद सिंह जी, को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ है। शà¥à¤°à¥€ हेमकà¥à¤‚ट साहिब गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ के पास ही à¤à¤• सरोवर है। इस पवितà¥à¤° जगह को अमृतसरोवर (अमृत का तालाब) कहा जाता है। यह सरोवर लगà¤à¤— 400 गज लंबा और 200 गज चौड़ा है। यह चारों तरफ़ से हिमालय की सात चोटियों से घिरा हà¥à¤† है। इन चोटियों का रंग वायà¥à¤®à¤‚डलीय सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° अपने आप बदल जाता है। कà¥à¤› समय वे बरà¥à¤«à¤¼ सी सफेद,कà¥à¤› समय सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¥‡ रंग की, कà¤à¥€ लाल रंग की और कà¤à¥€-कà¤à¥€ à¤à¥‚रे नीले रंग की दिखती हैं।
समà¥à¤¦à¥à¤° तल से 14210 फà¥à¤Ÿ की ऊंचाई पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ इस अमृत सरोवर की à¤à¤• à¤à¤²à¤• पाने के लिठहम हेमकà¥à¤‚ट साहिब गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ के पीछे की तरफ़ गये। हिमालय की चोटियों से घिरी à¤à¥€à¤² लगà¤à¤— पूरी तरह जमी हà¥à¤ˆ थी सिरà¥à¤«à¤¼ किनारों के पास ही पानी था और उस पानी के ऊपर à¤à¥€à¤¬à¤°à¥à¤«à¤¼ तैर रही थी । पà¥à¤°à¤¾ दà¥à¤°à¥à¤¶à¥à¤¯ इतना सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° था कि उसे शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में बयान करना बहà¥à¤¤ मà¥à¤¶à¥à¤•िल है। शायद नीचे दी हà¥à¤ˆ तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‹à¤‚ से कà¥à¤› बयां हो जाये।
ठंड के मारे हमारा वैसे ही बà¥à¤°à¤¾ हाल था इसलिये हमने वहाठनहाने का विचार तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया और सिरà¥à¤«à¤¼ हाथ मà¥à¤à¤¹ धोने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। जैसे ही हमने पानी में हाथ डाला, सरोवर के पानी ने कयामत ढाह दी,à¤à¤•दम बरà¥à¤«à¤¼ सा पानी, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि किनारों पर à¤à¥€ बरà¥à¤«à¤¼ थी और सरोवर में à¤à¥€à¤¬à¤°à¥à¤«à¤¼à¥¤ लेकिन हमने à¤à¥€ हार नही मानी और तसलà¥à¤²à¥€ से मà¥à¤à¤¹ हाथ धो लिये और गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ की तरफ़ चल दिये। चारों तरफ़ बरà¥à¤«à¤¼ होने से चलना à¤à¥€ मà¥à¤¶à¥à¤•िल हो रहा था और लोग बार-बार फ़िसल कर गिर रहे थे। हम लोग सावधानी से चलते हà¥à¤ गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गये।
अब कà¥à¤› तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚ हेमकà¥à¤‚ट साहिब गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के अदंर की……
गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते ही मन को काफ़ी शकà¥à¤¨ मिला। गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ में गà¥à¤°à¥à¤¬à¤¾à¤¨à¥€ का पाठचल रहा था और अनà¥à¤¦à¤° का वातवरण गरà¥à¤®à¤¾à¤¹à¤Ÿ से à¤à¤°à¤¾ था। पूरे गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ में कमà¥à¤¬à¤² बिछे हà¥à¤ थे तथा काफ़ी कमà¥à¤¬à¤² तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के ओढने के लिठà¤à¥€ रखे हà¥à¤ थे। हम à¤à¥€ मातà¥à¤¥à¤¾ टेकने के बाद वहाठकमà¥à¤¬à¤² ओढ कर बैठगये और गà¥à¤°à¥à¤¬à¤¾à¤¨à¥€ का पाठसà¥à¤¨à¤¨à¥‡ लगे। हम आधा घंटा वहाठबैठे रहे और जब सब साथी गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ में पहà¥à¤à¤š गये तो हम पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¦ लेकर वहाठसे बाहर आ गये। बाहर निकलते ही लगंर में चाय और खिचडी का गरम-2 पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¦ मिल रहा था, पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¦ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करके गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के साथ ही मौजूद लकà¥à¤·à¥à¤®à¤¨ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में गये और फिर वापसी के लिये निकल लिये। हमे अà¤à¥€ 19-20 किलोमीटर नीचे उतरना था और आज शाम को गोबिनà¥à¤¦ घाट पहà¥à¤à¤šà¤¨à¤¾ था।
मैं और शà¥à¤¶à¥€à¤² सबसे पहले चले और हमारे पीछे -2 सोनॠà¤à¤µà¤‚ सतीश की जोड़ी आ रही थी, बाकी साथी उनसे पिछे थे। हम काफ़ी तेजी से नीचे उतरते गठऔर लगà¤à¤— दो घंटे में घाघंरिया पहà¥à¤à¤š गये और वहाठपहà¥à¤à¤š कर मैंने और शà¥à¤¶à¥€à¤² ने गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ गोविंद धाम में लगंर खाने का निशचय किया। हम दोनो गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ में चले गये और थोड़े इनà¥à¤¤à¤œà¤¼à¤¾à¤° के बाद लगंर हाल में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गये। लगंर खाने के बाद हमने गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ से चाय à¤à¥€ पी ली। इस इनà¥à¤¤à¤œà¤¼à¤¾à¤° और खाने-पीने की पà¥à¤°à¤•िया में à¤à¤• घंटा लग गया। कोई अनà¥à¤¯ साथी हमें गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ में नहीं मिला था इसलिये हमने अनà¥à¤¦à¤¾à¤œà¤¾ लगाया कि सà¤à¥€ लोग आगे जा चूके होंगे । खाने-पीने और थोड़े आराम के बाद हम तरोताजा महसà¥à¤¸ कर रहे थे इसलिये à¤à¤• बार फिर तेजी से नीचे उतरने लगे। सà¥à¤‚दर और आकरà¥à¤·à¤• दृशà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को देखते हà¥à¤ ,पà¥à¤°à¤•ृति का आनंद लेते हà¥à¤ और रासà¥à¤¤à¥‡ में खाते-पीते हमगोबिनà¥à¤¦ घाट कि ओर बढ़ते गये और लगà¤à¤— शाम 6:30 बजे गोबिनà¥à¤¦ घाट पहà¥à¤à¤š गये और आज 27 किलोमीटर की यातà¥à¤°à¤¾ पूरी कर ली। आज हमारे उतरने की औसतन गति तीन किलोमीटर पà¥à¤°à¤¤à¤¿ घंटा थी।
गोबिनà¥à¤¦ घाट पहà¥à¤à¤š कर हमें सोनॠà¤à¤µà¤‚ सतीश अलकनंदा के पà¥à¤² पर बैठे मिले। वे हमसे 10 मिनट पहले ही पहà¥à¤à¤šà¥‡ थे लेकिन बाकी लोग अà¤à¥€ पिछे ही थे। हमने गोबिनà¥à¤¦ घाट गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ में ठहरने के लिये कमरे का पता किया लेकिन सà¤à¥€ कमरे à¤à¤°à¥‡ हà¥à¤ थे। वहाठमौजूद कà¥à¤› अनà¥à¤¯ होटलों में à¤à¥€ यही हाल था , तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की अधिकता के कारण सà¤à¥€ होटल पूरी तरह से à¤à¤°à¥‡ हà¥à¤ थे। जब यातà¥à¤°à¤¾ सीजन अपने चरम पर हो , उस समय यातà¥à¤°à¤¾ करने का यही नà¥à¤•à¥à¤¸à¤¾à¤¨ रहता है। सà¤à¥€ चीजें आपको दà¥à¤—ने-तिगने दाम पर मिलती हैं और कई बार मिलती ही नहीं । हम चारों थक हार कर,अलकनंदा के पà¥à¤² के पास बैठअपने बाकी साथियों का इनà¥à¤¤à¤œà¤¼à¤¾à¤° करने लगे। गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी और नरेश सरोहा ने वापिसी के लिये à¤à¥€ घोड़े किये थे, लेकिन इसके बावज़ूद वे काफ़ी लेट पहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤ जब सà¤à¥€ लोग आ गये तो à¤à¤•-दो जगह और कमरे का पता किया लेकिन नतीज़ा वही रहा। फिर हम सब अपनी गाड़ी के पास पहà¥à¤à¤šà¥‡ और अपने-2 पिठू बैग गाड़ी में रखकर खाना खाने के लिये à¤à¤• à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ में गये। जब खाना खा चूके तो फिर वही समसà¥à¤¯à¤¾ कि अब सोयेंगे कहाà¤? शरà¥à¤®à¤¾ जी, गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी, सोनॠऔर नरेश सरोहा तो सोने के लिये गाड़ी में चले गये। दो लोग पिछली सीटों पर ,à¤à¤• बीच की सीट पर और à¤à¤• आगे डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° के साथ वाली सीट पर सो गये। à¤à¤• बंद चाय की दà¥à¤•ान के बाहर बरामदे में दो तखà¥à¤¤ बिछे थे, à¤à¤• पर सीटी अपने बेटे के साथ और दà¥à¤¸à¤°à¥‡ पर शà¥à¤¶à¥€à¤² सो गया। बस मैं और सतीश बच गये थे , हमने गाड़ी से दरी (carpet) निकाली (जिसे हम अमà¥à¤¬à¤¾à¤²à¤¾ से साथ लाये थे) और उसे पारà¥à¤• कि हà¥à¤ˆ गाड़ीयों के बीच à¤à¤• खà¥à¤²à¥€ जगह देख कर बिछा लिया और उस पर लेट गये लेकिन अधिक थकावट व काफ़ी गरमी के कारण नींद नहीं आ रही थी, उस पर मचà¥à¤›à¤°à¥‹à¤‚ ने काट-2 कर बà¥à¤°à¤¾ हाल कर दिया। काफ़ी देर मचà¥à¤›à¤°à¥‹à¤‚ से मà¥à¤•ाबला करते-करते जैसे ही नींद की à¤à¤ªà¤•ी आई तो बारिश शà¥à¤°à¥ हो गयी। हमारे बाकी साथी तो छत के नीचे थे और सो रहे थे पर हम दोनो खà¥à¤²à¥‡ में थे इसलिये दोनो उठकर बैठगये, अब कहाठजायेगे ? घà¥à¤®à¤•à¥à¤•डी कि à¤à¤• और परीकà¥à¤·à¤¾ … तà¤à¥€ बारिश बंद हो गयी लेकिन बादलों को देखकर लग रहा था कि बारिश फिर आयेगी। हमारे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था इसलिये हम फिर वहीं सो गये। लगà¤à¤— आधा घंटे के बाद जोर से बारिश शà¥à¤°à¥ हो गयी और हम अपनी दरी उठाकर, बारिश में ,खानाबदोश की तरह,किसी सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ को तलाशने लगे और à¤à¤• चार मजिंला à¤à¤µà¤¨, शायद होटल था, जिस की पारà¥à¤•िंग उपर सड़क के साथ थी और कमरे नीचे कि ओर थे, के बरामदे में पहà¥à¤à¤š गये। रात के दो बज रहे थे और सब सो रहे थे। हमने à¤à¥€ बरामदे में अपनी दरी बिछाई और सो गये।





























बहुत मनोरंजक व जानकारी से भरपूर लेख है…
अमृत सरोवर की इतनी सुंदर तस्वीरें पहली बार देखी है
आपकी लेखन शैली बहुत सरल व मनोरंजक है
धन्य वाद SilentSoul जी,
अमृत सरोवर है हि इतना सुन्दर कि जितनी तस्वीरें ले लो, कम लगती हैं ।
नरेश जी
धन्य हमारे भाग्य की आपकी पोस्ट के सहारे हमने भी हेमकुंड शहेब के दर्शन कर लिए वर्ना तो जब हम बद्रीनाथ गए थे तो जब बस गोविन्द घाट में रुकी थी तब हमने बड़ी हसरतो भरी नजरो से हेमकुंड शाहेब की और जाते हुए लोगो को देखा था और सोचा था क्या पता यहाँ के दर्शन हमारे भाग्य में लिखे है या नहीं?
पोस्ट बहुत बढ़िया रही फोटो भी बहुत अच्छे है.
जल्दी से वापसी करना आपकी अगली पोस्ट का तहे दिल से इंतजार रहेगा.
भूपेंद्र सिंह रघुवंशी
Raghuwanshi जी, पोस्ट पसन्द करने के लिये धन्य वाद
हेमकुंड साहिब जाने का सारा रास्ता सुंदर और आकर्षक दृश्यों से भरा हुआ है।
Very nice post… learned a lot about the famous Gurudwara… You have a very natural story telling style…thanks
Thanks ‘ desi Traveler’
Yes ,My style of story telling is ‘Desi’ and pure..
नरेश जी…
हेमकुंड साहिब की यात्रा कराने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद…आपकी यह यात्रा बहुत हि रोमांचक रही और विवरण भी शानदार रहा …
धन्यवाद
Ritesh Gupta जी, उत्साह वर्धन के लिये धन्यवाद…………।
Very engaging story telling. Just like SS, even this was a first time for me to see such clear and well-taken pics of Amriti Sarovar, the way to Hemkunth Sahib. Thank you.
There is a Guruduwar in Sector 18, Noida, Uttar Pradesh which has the same roof-design as Hemkunth Sahib. I guess this is a pretty different then the regular designs. Any insights ?
27 in a single day and then not a place to pass the night would have been pretty hard. I guess, all pilgrimages are hard. Salute. Thank you.
Thanks Nandan Ji..
The Gurdwara, the house of prayer of the Sikhs, is recognized throughout the world not only as a prominent symbol of the Sikh faith but also for its distinct style of architecture. Although certain gurdwaras adapt an architectural identity similar to the style prevalent in the country in which they are built, on the whole – they are unified in terms of architectural characteristics. The gurdwara at Hemkunt, however, is singularly unique. Its location in the lofty Himalayas, at a height of 15,210 ft., makes it the only gurdwara to be built at such an altitude. Its design, which was done keeping in mind the location and climate, makes it the only pentagonal gurdwara in the world. Further, the gurdwara at Hemkunt- the tapasthan of Dusht Daman – imparts it a high degree of respect.
More details available at http://shrihemkuntsahib.com/design_archi.html
Naresh Ji,
Thoroughly enjoying the series, however, this post is a gem. The pictures and the information given is really useful. The Brahm kamal and Amrit sarovar pics need special mention. The excerpt from Guru Granth Sahib is a nice touch. As others have pointed out, your narration is very natural and engaging.
Thanks for sharing.
Thanks Tarun ji for encouragement ..
Hemkund Sahib is located in the Himalayas at an elevation of 4632 meters (15,200 ft) as per the Survey of India. Source http://en.wikipedia.org/wiki/Hemkund , but at many places it is given as 4320 m above sea level.
Nice Post, wish one day I’d make it there.
Thanks Parveen ji..
नरेश जी मुझे तो आपसे जलन हो रही है, हा हा हा …..के आप मुझे यहाँ छोड़ हेमकुंड साहब के दर्शन और अमृत कुंड के अमृत का पान कर रहे हो ….धन्य हो, नवम्बर २०१२ में अभी भगवान् बद्रीनाथ के दर्श को आज्ञा था, और यहाँ भी जाने का प्रोग्राम था लेकिन सच कहु.. गोविन्द घाट पहुचे पर पता चला के ठीक उसी दिन फारेस्ट वालो ने आगे जाना बंद कर दिया था, लगता है आपकी पोस्ट का मजा लेकर ही जाना लिखा था …सचमुच मजा आ गया बहुत संदर चित्र एवं लेख …धन्यवाद
Thanks Pankaj
After visiting Kedarnath and a long drive to Badrinath, we were so tired that many of us have dropped the idea of visiting Hemkund sahib but after the little brawl at Badrinath,no one resist and all went to Hemkund sahib.
raha nahi ja raha hai,lagatar padhta ja raha hun aur is adwitiya yatra ka aanand le raha hun.jheel ke photo to adbhut aaye hain.jab tasveer me itni khubsurat lag rahi hai to sakchhaat dekne me kitna aakarshak hoga ,kalpana kar ke hee aap se thori jalan hone lagi hai. I shapath, lajawab hai ye post.
Thanks Rajesj ji for liking the post..
The lake is one of the most beautiful lake I have ever seen. The other one is SheshNag lake .
Naresh Ji,
Thoroughly enjoying the series,and this post is the gem.
Well described Hemkund journey..
Thanks Ajay Ji,
Really Enjoyed the post. Pictures of Amrit sarovar are awesome .
Thanks Mandeep ji..
Naresh Ji. What is best time to visit the Hemkund Sahib ?Pls Guide
We went in June and found the lake frozen but the season was at peak and everything was costly. if you go late , all snow of the lake melts but due to less pilgrims rate are at lower end.
choice is yours ..
हेमकुंड साहिब की यात्रा कराने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
Thanks Akash bhai…
Oh.. so difficult terrain… and costly too…..but at the end you find a Heaven..
Pictures of Amrit sarovar are awesome…beyond this world..
Thanks…
you are true . it is a heaven on earth..
Sorry,
please read you are right in place you are true..
नरेशजी देर से पढ़ रहा हूँ इसलिए कमेंट भी विलम्ब से कर रहा हूँ। आपने यहाँ बैठे हेमकुंड साहिब के दर्शन करा दिए, उसके लिए कोटि कोटि धन्यवाद। फोटो तो सभी जबरदस्त है। धन्यवाद।
thanks for encouragement, Saurabh Gupta ji