राम घाट और शà¥à¤°à¥€ राम मंदिर में घà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥‡ के बाद नंदू हमें गढ़कालिका मंदिर ले गया। मंदिर के सामने काफी खà¥à¤²à¥€ जगह है जहाठगाड़ी वगैरह आराम से पारà¥à¤• की जा सकती है। मंदिर के बाहर, पूजा के सामान की कà¥à¤› दà¥à¤•ाने हैं।दोपहर का समय होने के कारण मंदिर में à¤à¥€à¤¡à¤¼ नगणà¥à¤¯ थी,सिरà¥à¤« हम जैसे कà¥à¤› परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• ही वहाठथे।
गढ़कालिका मंदिर, उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨
गढ़कालिका मंदिर, मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ शहर में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। कालजयी कवि कालिदास गढ़ कालिका देवी के उपासक थे। कालिदास के संबंध में मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि जब से वे इस मंदिर में पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ करने लगे तà¤à¥€ से उनके पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤¶à¤¾à¤²à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ होने लगा। कालिदास रचित ‘शà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤²à¤¾ दंडक’ महाकाली सà¥à¤¤à¥‹à¤¤à¥à¤° à¤à¤• सà¥à¤‚दर रचना है। à¤à¤¸à¤¾ कहा जाता है कि महाकवि के मà¥à¤– से सबसे पहले यही सà¥à¤¤à¥‹à¤¤à¥à¤° पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤† था। यहाठपà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• वरà¥à¤· कालिदास समारोह के आयोजन के पूरà¥à¤µ माठकालिका की आराधना की जाती है।गढ़ कालिका के मंदिर में माठकालिका के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठरोज हजारों à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ की à¤à¥€à¤¡à¤¼ जà¥à¤Ÿà¤¤à¥€ है।

गढ़कालिका मंदिर में लगा हà¥à¤† उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ का नकà¥à¤¶à¤¾
तांतà¥à¤°à¤¿à¤•ों की देवी कालिका के इस चमतà¥à¤•ारिक मंदिर की पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤¤à¤¾ के विषय में कोई नहीं जानता, फिर à¤à¥€ माना जाता है कि इसकी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ महाà¤à¤¾à¤°à¤¤à¤•ाल में हà¥à¤ˆ थी, लेकिन मूरà¥à¤¤à¤¿ सतयà¥à¤— के काल की है। बाद में इस पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ मंदिर का जीरà¥à¤£à¥‹à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤° समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ हरà¥à¤·à¤µà¤°à¥à¤§à¤¨ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किठजाने का उलà¥à¤²à¥‡à¤– मिलता है। सà¥à¤Ÿà¥‡à¤Ÿà¤•ाल में गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° के महाराजा ने इसका पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¨à¤¿à¤°à¥à¤®à¤¾à¤£ कराया। वैसे तो गढ़ कालिका का मंदिर शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ में शामिल नहीं है, किंतॠउजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में माठहरसिदà¥à¤§à¤¿ â€à¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ होने के कारण इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° का महतà¥à¤µ बढ़ जाता है।यहाठपर नवराâ€à¤¤à¥à¤°à¤¿ में लगने वाले मेले के अलावा à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ मौकों पर उतà¥à¤¸à¤µà¥‹à¤‚ और यजà¥à¤žà¥‹à¤‚ का आयोजन होता रहता है। माठकालिका के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठदूर-दूर से लोग आते हैं।
माठकालिका के आराम से दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के बाद हम अगले सà¥à¤¥à¤² à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤‚ मंदिर की ओर चल दिà¤à¥¤
à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤‚ मंदिर की ओर चलते हà¥à¤ रासà¥à¤¤à¥‡ में हमें हमारे डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° /गाइड नंदू ने इस मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की विशेष महिमा बतायी कि इस मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की मूरà¥à¤¤à¤¿ को जितना चाहे उतनी शराब पिला दो, मूरà¥à¤¤à¤¿ को शराब का पातà¥à¤° मà¥à¤à¤¹ से लगाते ही शराब कम होनी शà¥à¤°à¥ हो जाती है। वैसे यह बात मà¥à¤à¥‡ मेरे à¤à¤• मितà¥à¤° ने à¤à¥€ बताई थी जो अà¤à¥€ कà¥à¤› दिन पहले ही उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ होकर गया था। इसलिठहम मंदिर जाकर यह सब अपनी आà¤à¤–ों से देखने को उतà¥à¤¸à¥à¤• थे। नंदू ने हमें यह à¤à¥€ बताया कि इस मूरà¥à¤¤à¤¿ के बारे में जब अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ ने सà¥à¤¨à¤¾ तो वे अपने वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•ों को लेकर यहाठपहà¥à¤à¤šà¥‡, इस मूरà¥à¤¤à¤¿ के चारों ओर से गहराई तक खोदकर देखा लेकिन उनà¥à¤¹à¥‡ यह पता नहीं चला कि आखिर मूरà¥à¤¤à¤¿ जिस दारॠको पीती है वह कहाठजाती है? सबसे बड़ा कमाल तो यह मिला था कि मूरà¥à¤¤à¤¿ के चारों की मिटà¥à¤Ÿà¥€ खà¥à¤¦à¤¾à¤ˆ के दौरान à¤à¤•दम शà¥à¤·à¥à¤• मिली थी। इस घटना के बाद अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ ने कà¤à¥€ दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ इस मनà¥à¤¦à¤¿à¤° को हाथ तक नहीं लगाया था।
काल à¤à¥ˆà¤°à¤µ
“ महाकाल के इस नगर को मंदिरों का नगर कहा जाता है। यहां à¤à¤• विशेष मंदिर – काल à¤à¥ˆà¤°à¤µ मंदिर है। यह मंदिर महाकाल से लगà¤à¤— पाà¤à¤š किलोमीटर की दूरी पर है। वाम मारà¥à¤—ी संपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ के इस मंदिर में काल à¤à¥ˆà¤°à¤µ की मूरà¥à¤¤à¤¿ को न सिरà¥à¤« मदिरा चढ़ाई जाती है, बलà¥à¤•ि बाबा à¤à¥€ मदिरापान करते हैं ।
बाबा के दर पर आने वाला हर à¤à¤•à¥à¤¤ उनको मदिरा (देशी मदिरा) जरूर चढ़ाता है। बाबा के मà¥à¤à¤¹ से मदिरा का कटोरा लगाने के बाद मदिरा धीरे-धीरे गायब हो जाती है।मंदिर में à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ का ताà¤à¤¤à¤¾ लगा रहता है। à¤à¤•à¥à¤¤à¤“ं के हाथ में पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ की टोकरी में फूल औऱ शà¥à¤°à¥€à¤«à¤² के साथ-साथ मदिरा की à¤à¤• छोटी बोतल à¤à¥€ जरूर नजर आ जाती है।

शà¥à¤°à¥€à¤•ाल à¤à¥ˆà¤°à¤µ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के बाहर परशाद की à¤à¤• दà¥à¤•ान
यह मंदिर à¤à¥€ शà¥à¤°à¥€ शीपà¥à¤°à¤¾à¤œà¥€ के तट पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। यह मंदिर à¤à¤—वान कालà¤à¥ˆà¤°à¤µ का है जो कि अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ à¤à¤µà¤‚ चमतà¥à¤•ारिक है। यहाठपर शà¥à¤°à¥€ कालà¤à¥ˆà¤°à¤µà¤œà¥€ की मूरà¥à¤¤à¤¿ जो कि मदिरा पान करती है à¤à¤µà¤‚ सà¤à¥€ को आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤šà¤•ित कर देती है। मदिरा का पातà¥à¤° पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤—वान के मà¥à¤‚ह पर लगा दिया जाता है à¤à¤µà¤‚ मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ किया जाता है, देखते ही देखते मूरà¥à¤¤à¤¿ सारी मदिरा पी जाती है। मूरà¥à¤¤à¤¿ के सामने à¤à¥‚लें में बटà¥à¤• à¤à¥ˆà¤°à¤µ की मूरà¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ विराजमान है। बाहरी दिवरों पर अनà¥à¤¯ देवी-देवताओं की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है। सà¤à¤¾à¤—ृह के उतà¥à¤¤à¤° की ओर à¤à¤• पाताल à¤à¥ˆà¤°à¤µà¥€ नाम की à¤à¤• छोटी सी गà¥à¤«à¤¾ à¤à¥€ है।
उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ के मंदिरों के शहर में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ काल à¤à¥ˆà¤°à¤µ मंदिर पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ हिंदू संसà¥à¤•ृति का बेहतरीन उदाहरण है। à¤à¤¸à¤¾ कहा जाता है कि यह मंदिर तंतà¥à¤° के पंथ से जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ है। सà¥à¤•नà¥à¤¦ पूरण में इनà¥à¤¹à¥€ काल à¤à¥ˆà¤°à¤µ का अवनà¥à¤¤à¥€ खंड में वरà¥à¤£à¤¨ मिलता है। इनके नाम से ही यह कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° à¤à¥ˆà¤°à¤µà¤—ढ़ कहलाता है। काल à¤à¥ˆà¤°à¤µ को à¤à¤—वान शिव की à¤à¤¯à¤‚कर अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में से à¤à¤• माना जाता है। अतः शिव की नगरी में उनà¥à¤¹à¥€ के रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤µà¤¤à¤¾à¤°, काल à¤à¥ˆà¤°à¤µ का यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ बड़े महतà¥à¤µ का है। राजा à¤à¤¦à¥à¤°à¤¸à¥‡à¤¨ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इस मंदिर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करवाया गया था। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ मंदिर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ राजा जय सिंह दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ करवाया गया है। सैकड़ों à¤à¤•à¥à¤¤ इस मंदिर में हर रोज़ आते हैं और आसानी से मंदिर परिसर के चारों ओर राख लिपà¥à¤¤ शरीर वाले साधॠदेखें जा सकते हैं। इस मंदिर में à¤à¤• सà¥à¤‚दर दीपशिला हैं। मंदिर परिसर में à¤à¤• बरगद का पेड़ है और इस पेड़ के नीचे à¤à¤• शिवलिंग है। यह शिवलिंग नंदी बैल की मूरà¥à¤¤à¤¿ के à¤à¤•दम सामने सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। इस मंदिर के साथ अनेक मिथक जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ हैं। à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ का à¤à¤¸à¤¾ विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ हैं कि दिल से कà¥à¤› à¤à¥€ इचà¥à¤›à¤¾ करने पर हमेशा पूरी होती है। महाशिवरातà¥à¤°à¤¿ के शà¥à¤ दिन पर इस मंदिर में à¤à¤• विशाल मेला लगता है।â€
उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ की केनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¯ जेल के सामने से होते हà¥à¤ हम लोग शà¥à¤°à¥€à¤•ाल à¤à¥ˆà¤°à¤µ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° जा पहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤ मंदिर के बाहर सजी दà¥à¤•ानों पर हमें फूल, पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के साथ-साथ मदिरा की छोटी-छोटी बोतलें à¤à¥€ सजी नजर आईं। यहाठकà¥à¤› शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के साथ-साथ मदिरा की बोतलें à¤à¥€ खरीदते हैं। à¤à¤¸à¥€ ही à¤à¤• दà¥à¤•ान पर हम परसाद लेने के लिठरà¥à¤•े तो दà¥à¤•ानदार हमसे मंदिर में à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤‚ बाबा को पिलाने के लिठमदिरा लेने की जिदà¥à¤¦ करने लगा। यहाठपर लगà¤à¤— हर बà¥à¤°à¤¾à¤‚ड की शराब उपलबà¥à¤§ थी लेकिन शराब का रेट काफी तेज था, लगà¤à¤— दà¥à¤—ना। दà¥à¤•ानदार ने हमें बताया की यहाठडà¥à¤°à¤¾à¤ˆ डे को à¤à¥€ शराब मिलती है , उसने हमें यह à¤à¥€ बताया की यहाठà¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤‚ बाबा को देसी मदिरा ही जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ चड़ाई जाती है। उसकी बातें सà¥à¤¨à¤•र हमने à¤à¥€ à¤à¤• देसी मदिरा की छोटी बोतल ली ओर à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤‚ मंदिर की ओर चल दिà¤à¥¤
मंदिर में पहà¥à¤‚चकर कà¥à¤› सीड़ियाठचड़ने के बाद शà¥à¤°à¥€ कालà¤à¥ˆà¤°à¤µà¤œà¥€ की मूरà¥à¤¤à¤¿ दिखाई दी। उनके साथ ही पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ बैठे हà¥à¤ थे। हमने सारा पूजा का सामान उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दे दिया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने परशाद मूरà¥à¤¤à¤¿ को à¤à¥‹à¤— लगाया फिर शराब की बोतल खोलकर लगà¤à¤— आधी बोतल à¤à¤• पातà¥à¤° में डाली और उस पातà¥à¤° को मूरà¥à¤¤à¤¿ के मà¥à¤¹à¤ से लगा दिया। हमारे देखते ही देखते पातà¥à¤° खाली हो गया और पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ जी ने बाकि की आधी à¤à¤°à¥€ बोतल हमें वापिस कर दी। मंदिर से जैसे ही हम निचे उतरे तो हमारे आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ की कोई सीमा न रही जब कà¥à¤› सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोग हमसे शराब का परशाद माà¤à¤—ने लगे जिसमे औरतें à¤à¥€ शामिल थी। हमने à¤à¥€ लिंग à¤à¥‡à¤¦ की निति अपनाते हà¥à¤ परशाद किसी महिला को देने की बजाय à¤à¤• पà¥à¤°à¥à¤· को बची हà¥à¤ˆ बोतल दे दी और मंदिर से बाहर आकर अपने ऑटो की ओर चल दिà¤à¥¤
nice post. good pics. the unsatiable thirst of KALBHAIRAV is intriguing.
Thanks Ashok Ji..
Great detailing Naresh. In all temples of Bhairav, Liquor is the prescribed prashad. In Delhi there is a big Kaal Bhairav temple near Pragati Maidaan. Sunday is the day when all the pilgrims and bhakts visit there.
ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद मे बैठकर।
ये वो जगह बता दे जहाँ पर खुदा न हो॥
उठ जा लई वहाँ से , यह पीने कि जां नहीं
काफिर के दिल पे जाके पी , जिसका खुद नहीं
उठ जा लई वहाँ से , यह पीने की जां नहीं
काफिर के दिल पे जाके पी , जिसका खुदा नहीं
रहता हूँ मयख़ाने में तो शराबी न समझ मुझे ,
हर वो शखस जो मस्जिद से निकले नमाज़ी नहीं होता।
काफिर के दिल में भी खुदा है …पर उसे मालूम नहीं.
खुदा सिर्फ तेरी किताबों में नहीं.. ये तुझे मालूम नही
बुत-परस्ती का पैबंद मुझ पर ना लगाओ
रेत के हर जर्रे में नूरे खुदा है…पर हाजी को ये मालूम नही
मस्जिद खुदा का घर है, पीने की जगह नहीं,
काफ़िर के दिल में जा, वहाँ खुदा नहीं..
दिल खुश हुआ मस्जिदें वीरान देखकर ,
मेरी तरह खुदा का भी ‘खाना’ ख़राब है।
To S.S. Ji,
दिल खुश हुआ मस्जिदें वीरान देखकर ,
मेरी तरह खुदा का भी ‘खाना’ ख़राब है।
LOL…. wah Sehgal ji… nehle pe dehla mar diya :)
बहुत खूब , यहाँ पर तो कमाल का discussion शुरू हो गया। मुझे नहीं मालूम था कि आप लोग भी शेरो – शायरी में इतनी दिलचस्पी रखते हैं। मैंने तो बहुत साल पहले इन्हे पढ़ा था और मस्तिष्क के किसी कोने में यह जगह बना बैठे।
यहाँ पर जब मैंने पहला शेयर पढ़ा तो उत्सुकता हुई क्यों न आप लोगे से साझा करूँ।
Thanks Nandan Ji. for encouraging words.
Liqour Parsad to Bhairon is common feature but statue drinking liquor is very uncommon.
Hi Naresh ji
आपकी पोस्ट मे भैरों मन्दिर में शराब के प्रशाद का वर्णन पड़कर कुछ साल पहले अंग्रेजी के मशहूर लेखक खुशवंत सिंह का एक आर्टिकल याद आ गया, जिसमे उन्होंने अपनी ही स्टाइल में भैरों मन्दिर का जिक्र किया था, जिसमे देवता, पुजारी और भक्त सब झूमते हुए नजर आते हैं , इतना खुशदिल मन्दिर और कहीं नही !….. LOL
वैसे नरेश जी, मूर्ती के शराब पीने में कुछ वैसा ही पेच होगा, जैसे मन्दिरों में कुछ साल पहले मूर्तिया दूध पी रही थी ….
@ Nandan, दिल्ली में भैरों के do मन्दिर हैं, एक प्रगति मैदान में और दूसरा चाणक्यपुरी में |
धन्यवाद अवतार जी ,
भैरों मन्दिर में मूर्ती के शराब पीने में या न पीने कि सच्चाई कया है कोई नहीं जानता। वैसे मैंने गौर से देखा था ,न तो मदिरा निचे गिरी न ही कहीं और। देखते ही देखते पात्र खाली हो गया। वैसे इस आस्था के कारण बहुत से लोगों कि रोजी रोटी चल रही है।
खुशवंत सिंह जी तो खुद भैरों के बड़े अनुयायी हैं। उनसे अच्छा वर्णन कौन कर सकता है।
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होश वाले क्या जाने ,
बेखुदी का मजा क्या है ?
हम लोग भी उज्जैन गए थे और लगभग आपके बताये सभी मंदिरों के दर्शन भी किये थे | आपका पोस्ट बहुत ही शानदार है | लेकिन मन में एक कसक सी रह गयी क्युकी हम एक मंदिर के दर्शन नहीं कर पाए जिसके लिए हम विशेष कामना लेकर गये थे | आपके पोस्ट का अंतिम चित्र शायद वही का हो “कर्कोटक शिव मंदिर ” हमें यहाँ एक विशेष पूजा करवानी थी जोकि कुंडली में एक विशेष योग (कर्कोटक कल सर्प योग ) को विफल करती है | लेकिन कई बार पूछने पर भी स्थानीय लोगो ने इस बारे में हमें जानकारी नहीं दी | कृपया कर हमें बताये की ये मंदिर कहा स्तिथ है ताकि दुबारा जाने पर अपना मनोरथ सिध्ध कर सके | धन्यवाद
Thanks Hemant for liking the post and for your information.
कर्कोटेश्वर का मंदिर उज्जैन में हरसिद्धि मंदिर परिसर के अन्दर स्थित है.
नरेश जी .
आपकी धारावाहिक सभी पोस्ट पढ़ी। बहुत ही सुन्दर और जानकारी से भरपूर आपके लेख हैं। नये जाने वालो को अच्छी जानकारी आपकी पोस्ट पढ़ने से मिल जायेगी।नर्मदा जी के लिए कहते हैं कि नर्मदा एक बार स्नान गंगा के सहस्त्र स्नान के बराबर है। पुराणो में तो यह भी लिखा है कि साल में एक बार माँ गंगा स्वयं नर्मदा में स्नान करने आती है। नर्मदा का हर कंकण शिवलिंग तुल्य है।
नर्मदा जी के दर्शन कराने के लिए बहुत – बहुत बधाई।
धन्यवाद रस्तोगी जी ,
नर्मदा जी को शिव कि बेटी माना जाता है। इसीलिए कहते हैं कि- नर्मदा के कंकर -कंकर, में है शंकर।
नरेश जी,
उज्जैन का बहुत ही सुन्दर तथा विस्तृत वर्णन कर रहे हैं आप । यह श्रंखला उन लोगों के लिए बहुत फायदेमंद सिद्ध होगी जो ओंकारेश्वर तथा उज्जैन भ्रमण की योजना बना रहे हैं। इस नेक काम के लिए तथा शिव की सेवा के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद।
धन्यवाद मुकेश जी ,
आप लोगों के मार्ग दर्शन से ही कुछ सीख रहे हैं।
Tiwari Ji
“Guru Ji aap to chha gaye “
Respected S.S. Ji and Rastogi Ji..
Arj kiya hai..
तेरी इस दुनिया में ये मंज़र क्यों है ?
कहीं ज़ख्म तो कहिं पीठ में खंजर क्यों है ?
सुना है कि तू हर ज़र्रे में है रहता,
तो फिर ज़मी पर कही मस्जिद और कही मंदिर क्यों है ?
जब रहने वाले इस दुनिया के है तेरे ही बन्दे ,
तो फिर कोई किसी का दोस्त और कोई दुश्मन क्यों है
तू ही लिखता है सब लोगो का मुकद्दर,
तो फिर कोई बदनसीब और कोई मुकद्दर का सिकंदर क्यों है ???
ईबादत के लिए एक इंसान ढूंढ़ रहा हूँ .
पत्थरों में मैं एक भगवान ढूंढ़ रहा हूँ .
आदमी सीधा मगर जिन्दगी टेढ़ी होती है .
इसलिए टूटी पंखडियों से चहकते फूल ढूंढ़ रहा हूँ .
लोगों के साथ खुश हूँ मैं इस भागती दुनिया में.
मगर गाँव के उस पुराने घर में माँ को ढूंढ़ रहा हूँ .
वक्त कैसा है इस सच्चाई का पता कौन देगा.
मैं उस जहीन को मय्खाने में ढूंढ़ रहा हूँ .
Wah wah..Sukhvinder Ji..
मैखाने सजे थे , जाम का था दौर ;
जाम में क्या था ये किसने किया था गौर ;
जाम में गम था मेरे अरमानो का ;
और सब कहे रहे थे एक और , एक और !
बहुत बढ़िय़ा सहगल व सिंह जी…. कही संपादक इन शेयरों को उड़ा न दें..(in the name of off-topic)
मस्जिद मेँ बुलाते हैँ हमेँ ज़ाहिदे-नाफहम।
होता कुछ अगर होश तो मयख़ाने न जाते॥
बोतल खुली जो हजरत-ए-ज़ाहिद के वास्ते।
मारे खुशी के काग भी दो गज़ उछल गया॥
एहसास अलफ़ाज़ के मोहताज नहीं होते ग़ालिब
कुछ बर्फ़ें पिघलती हैं और नदियाँ बह निकलती हैं
@ Naresh, SS – Take it easy folks. These stories sees a lot of readers who land up here via Google and they may not be able to relate to it. Lets keep our focus on Ghumakkari/travelling. :-)
Then you must introduce a discussion forum where people can nikalo their भड़ास…
those who have nothing to write and not interested in Vah-Vah-Vah… should they stop coming to Ghumakkar ?
how can you reconnect the old members ? THINK
Right Sir,
Orders will be followed by me in right spirit.
चौपाल लगी थी घुमक्कर की,
सहगल का चर्चित शब्द-शब्द;
भैरों प्रसाद का ज़िक्र लिए,
नंदन कर गये सबको स्तब्ध,
एक पल में चर्चा यूँ बदली,
हा हा हलचल, हलचल हा हा,
विषय रजस्वला बना प्रसूता,
अवतार लिए आई हाला,
कमलांश, आत्मा शांत,
सिंघ, तनावांत एक सुर में बोले,
हाँ ला, हाँ ला, हाँ ला.
अति हर्षित शब्द गिरे निर्झर,
आबाद यहाँ भी मधुशाला.
शैख़ साहब मुकाबला कैसा, हम सरीं शराब नौशों से
एक इस्मत फरौश बेहतर है, तुम सरीं खुदा फरौशों से.
लो एक और आ गया चचा गालिब का भतीजा… पढ़ा नही उपर ?? नंदन ढूंढ-2 कर मारेगा सारे शायरों को
इसी लिए भैया हम तो मन मार के चुपचाप बैठे हैं.…। वरना हम भी कोई कम शायर थोड़े ही हैं।
Tridev Ji.. प्रणाम
बहुत बढ़िया कहा आपने .
धन्यवाद
@ Naresh – Thank you. I value you spirit and the spirited conversations we all are having.
@ Mukesh – Agree but some other day.
@ SS – चुन चुन के … चुन चुन के …… , कर्टसी सलीम जावेद ।