सौराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‡Â सोमनाथं च शà¥à¤°à¥€à¤¶à¥ˆà¤²à¥‡Â मलà¥à¤²à¤¿à¤•ारà¥à¤œà¥à¤¨à¤®à¥à¥¤à¤‰à¤œà¥à¤œà¤¯à¤¿à¤¨à¥à¤¯à¤¾à¤‚ महाकालमोङà¥à¤•ारममलेशà¥à¤µà¤°à¤®à¥à¥¥
परलà¥à¤¯à¤¾à¤‚ वैदà¥à¤¯à¤¨à¤¾à¤¥à¤‚ च डाकिनà¥à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¥€à¤®à¤¶à¤™à¥à¤•रमà¥à¥¤à¤¸à¥‡à¤¤à¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¥‡Â तà¥Â रामेशं नागेशं दारà¥à¤•ावने॥
वाराणसà¥à¤¯à¤¾à¤‚ तà¥Â विशà¥à¤µà¥‡à¤¶à¤‚ तà¥à¤°à¥à¤¯à¤®à¥à¤¬à¤•ं गौतमीतटे।हिमालये तà¥Â केदारं घà¥à¤¶à¥à¤®à¥‡à¤¶à¤‚ च शिवालये॥
à¤à¤¤à¤¾à¤¨à¤¿Â जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤™à¥à¤—ानि सायं पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒÂ पठेनà¥à¤¨à¤°à¤ƒà¥¤à¤¸à¤ªà¥à¤¤à¤œà¤¨à¥à¤®à¤•ृतं पापं सà¥à¤®à¤°à¤£à¥‡à¤¨Â विनशà¥à¤¯à¤¤à¤¿à¥¥
à¤à¤¤à¥‡à¤¶à¤¾à¤‚ दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤¦à¥‡à¤µÂ पातकं नैव तिषà¥à¤ ति।करà¥à¤®à¤•à¥à¤·à¤¯à¥‹Â à¤à¤µà¥‡à¤¤à¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯Â यसà¥à¤¯Â तà¥à¤·à¥à¤Ÿà¥‹Â महेशà¥à¤µà¤°à¤¾à¤ƒà¥¥
à¤à¤¸à¥€ कहावत है कि à¤à¤—वान के बà¥à¤²à¤¾à¤µà¥‡ के बिना कोई तीरà¥à¤¥ यातà¥à¤°à¤¾ पर नहीं जा सकता और उसकी इचà¥à¤›à¤¾ के बिना कोई तीरà¥à¤¥ यातà¥à¤°à¤¾ पूरी नहीं कर सकता। मेरे साथ à¤à¥€ कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ ही हà¥à¤†à¥¤
काफ़ी समय से उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ जाकर महाकाल के दरà¥à¤¶à¤¨ करने कि इचà¥à¤›à¤¾ थी लेकिन कà¥à¤› फ़ाइनल नहीं हो पा रहा था। आखिरकार पिछà¥à¤²à¥‡ वरà¥à¤· (2012) दिसमà¥à¤¬à¤° में जाने का कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® बन ही गया। मैंने अपने दोसà¥à¤¤ शà¥à¤¶à¥€à¤² मलà¥à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°à¤¾ को अपने साथ जाने के लिये तैयार किया और 20 दिसमà¥à¤¬à¤° 2012 को अमà¥à¤¬à¤¾à¤²à¤¾ से जाने के लिये और 23 दिसमà¥à¤¬à¤° 2012 को उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ से वापसी के लिये मालवा à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ में दो- दो बरà¥à¤¥ बà¥à¤• करवा दी और नियत समय की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ करने लगे।
जाने से à¤à¤• दिन पहले, शाम को मैने शà¥à¤¶à¥€à¤² को फोन किया और उससे चलने की तैयारी के बारे में पूछा तो उसने जबाब दिया कि तैयारी पूरी हो चà¥à¤•ी है बस बैग पैक करना बाकी है और फ़िलहाल वो अपनी ममà¥à¤®à¥€ जी को डाकà¥à¤Ÿà¤° के पास लेकर जा रहा है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनकी तबीयत रात से ठीक नहीं है। मैंने कहा ठीक है, तà¥à¤® पहले आंटी को दवाई दिला लाओ मैं बाद में फ़ोन करता हूठ। मैंने फ़ोन काट दिया लेकिन मेरा मन आशंकित हो गया। मैंने अपनी पतà¥à¤¨à¥€ से कहा कि मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤› ठीक नहीं लग रहा है, ना जाने कà¥à¤¯à¥‚ठà¤à¤¸à¤¾ लग रहा है कि हम लोग जा नहीं पायेंगे । मेरी तैयारी तो पूरी थी लेकिन आशंका के चलते मैंने बैग पैक नहीं किया और पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ करने लगा। हमारी गाड़ी का समय दिन में 3 बजे था और दोपहर 12 बजे के करीब मेरे पास मेरे à¤à¤¾à¤ˆ का फोन आया और उसने बताया कि शà¥à¤¶à¥€à¤² की ममà¥à¤®à¥€ जी का देहांत हो गया है ,तà¥à¤® जलà¥à¤¦à¥€ उसके घर पहà¥à¤à¤šà¥‹ और मैं à¤à¥€ वहाठपहà¥à¤à¤š रहा हूठ। मेरी आशंका सच निकली। मैं तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ शà¥à¤¶à¥€à¤² के घर चला गया और फ़ोन पर ही à¤à¤• दà¥à¤¸à¤°à¥‡ मितà¥à¤° को कहकर रेलवे कि टिकटें निरसà¥à¤¤ करवा दी।  इस पà¥à¤°à¤•ार अपने पà¥à¤°à¤¿à¤¯ मितà¥à¤° और घà¥à¤®à¤•à¥à¤•डी के लगà¤à¤— सà¥à¤¥à¤¾à¤ˆ साथी की माता जी के आकà¥à¤¸à¥à¤®à¤¿à¤• देहानà¥à¤¤ के कारण मेरा महाकाल के दरà¥à¤¶à¤¨ करने का पà¥à¤°à¤¥à¤® पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ विफ़ल हो गया या शायद अà¤à¥€ à¤à¥‹à¤²à¥‡ नाथ का बà¥à¤²à¤¾à¤µà¤¾ नहीं आया था।
जनवरी 2013 , लोहडी की रात जब हम à¤à¤•ठà¥à¤ ा बैठे थे तो मेरे à¤à¤¾à¤ˆ ने मà¥à¤à¥‡ बताया कि वरà¥à¤®à¤¾ जी (हमारे à¤à¤• जानकार) कà¥à¤› जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤—ों की यातà¥à¤°à¤¾ पर फरवरी में जा रहें हैं , तà¥à¤®à¤¨à¥‡ जाना हो तो उनसे बात कर लेना। मैने सà¥à¤¬à¤¹ उनसे बात की और उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡à¤‚ मà¥à¤à¥‡ बताया कि वो रेलवे टूरिज़à¥à¤®Â के माधà¥à¤¯à¤® से 26 फरवरी को 7 जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤—ों की यातà¥à¤°à¤¾ पर जा रहें है, पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® 13-14 दिन का है और अगर मैने जाना हो तो उनको  बता दूठताकि वो सीटें इकटà¥à¤ ी बà¥à¤• करवा लें । मैं तो जाने के लिये à¤à¤•दम तैयार था लेकिन कà¥à¤› समसà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ थी। à¤à¤• तो कारà¥à¤¯à¤²à¤¯ से इतनी लमà¥à¤¬à¥€ छà¥à¤Ÿà¤¼à¥à¤Ÿà¥€ मिलनी आसान नहीं थी और दूसरा घर से सहमति  (अनà¥à¤®à¤¤à¤¿) लेना à¤à¥€ जरà¥à¤°à¥€ था। मà¥à¤à¥‡ पहला काम जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मà¥à¤¶à¥à¤•िल लगा और शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ वहीं से की। बॉस  ने कà¥à¤› ना नà¥à¤•र के बाद कहा, ठीक है , अवकाश के लिये आवेदन कर दो देख लेंगे।
जब शाम को घर पर गया तो मौका देखकर पतà¥à¤¨à¥€ से बात  की  और काफी ठणà¥à¤¡à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ मिली।
“फरवरी के आखिरी सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ में बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के पेपर शà¥à¤°à¥‚ हो रहें हैं और तà¥à¤® 15 दिन के लिठघूमने जा रहे हो , जाओ, मेरे कहने से तà¥à¤® रोकोगे थोड़ा । मेरी तà¥à¤® सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही कब हो ? और मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡ तीरà¥à¤¥ यातà¥à¤°à¤¾ से रोककर पाप की à¤à¤¾à¤—ी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ बंनू।â€
“इस अदा पर कौन न मर जाठठख़à¥à¤¦à¤¾,
लड़ते हैं और हाथ में हथियार à¤à¥€ नहीं।â€
मतलब तो आप à¤à¥€ समठगठहोंगे। जब आपसे आपका कोई अपना इस तरह से शिकवा करे तो आपको तà¥à¤°à¤‚त हथियार डालने पड़ते हैं। मैंने à¤à¥€ कह दिया ठीक है नहीं जाऊà¤à¤—ा लेकिन मन में मैं सोचने लगा कि पिछली बार तो बिलकà¥à¤² आखिर में कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® रदà¥à¤¦ हà¥à¤† था और इस बार शà¥à¤°à¥‚ में ही।
हे à¤à¥‹à¤²à¥‡ नाथ! मेरा नंबर कब आà¤à¤—ा ?
वैसे हम मरà¥à¤¦à¥‹à¤‚ की अपने घर में हालत, हमारे पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ जैसी ही है, कहने को तो सतà¥à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤®à¥à¤– हैं लेकिन केंदà¥à¤° सरकार और घर, दोनों जगह चलती हमेशा ” मैडम जी ” की है। जो लोग सहमत न हो जरूर बताà¤à¤‚ वरना आपकी ख़ामोशी को सहमति माना जाà¤à¤—ा।
लगातार दूसरा कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® रदà¥à¤¦ होने से, मेरा इस यातà¥à¤°à¤¾ पर जाने का निशà¥à¤šà¤¯ और दृड हो गया और मैंने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की परीकà¥à¤·à¤¾ के बाद ,मारà¥à¤š के आखिर में जाने का निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ कर लिया।  जब मैं इंटरनेट पर इंदौर के लिठरेलगाड़ी देख रहा था तो मेरे दो सहकरà¥à¤®à¥€Â  à¤à¥€ मेरे साथ चलने को तैयार हो गà¤à¥¤Â इनमे से नरेश सरोहा तो मेरे साथ पहले à¤à¥€ कई बार घà¥à¤® चà¥à¤•़े हैं लेकिन , दà¥à¤¸à¤°à¥‡ साथी, सà¥à¤–विंदर जी हमारे साथ पहली बार जा रहे थे, थोड़े नासà¥à¤¤à¤¿à¤• किसà¥à¤® के हैं इसलिठहमने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पहले ही बता दिया था की हम लोग तो तीरà¥à¤¥ यातà¥à¤°à¤¾ पर जा रहे हैं और हमने मंदिरों में ही घूमना है ,तà¥à¤® बोर मत हो जाना। लेकिन उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इससे कोई दिकà¥à¤•त नहीं थी।
इस तरह हम तीनो लोग ओमकारेशà¥à¤µà¤° तथा महाकालेशà¥à¤µà¤° के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठतैयार हो गठऔर मैंने तीनों  की  जाने के लिà¤Â  अमृतसर  इंदौर à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ , 19326, में 28 मारà¥à¤š की और वापसी के लिठमालवा à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ में 2 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² की  सीटें बà¥à¤• करवा दी।
निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ दिन हम तीनो सà¥à¤¬à¤¹ 8 बजे रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पहà¥à¤à¤š गठऔर गाड़ी à¤à¥€ अपने निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ समय से 10 मिनट पहले ही पहà¥à¤à¤š गयी।  हम जलà¥à¤¦à¥€ से अपनी आरकà¥à¤·à¤¿à¤¤ सीटों पर पहà¥à¤à¤š गठतथा गाड़ी à¤à¥€ अपने समय पर अमà¥à¤¬à¤¾à¤²à¤¾ से चल दी लेकिन सहारनपà¥à¤° से निकलने के बाद इसके इंजन में कà¥à¤› दिकà¥à¤•त हो गयी , मà¥à¤¶à¥à¤•िल से देवबंद तक पहà¥à¤‚ची और वहां जाते ही पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® पर घोषणा कर दी गयी की गाड़ी का इंजन खराब हो गया है और नया इंजन आने के बाद ही  गाड़ी आगे जायेगी और इसमें लगà¤à¤— दो घंटे लग जायेंगे। हमारे पास इंतजार के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था। पà¥à¤°à¥‡ तीन घंटे विशà¥à¤°à¤¾à¤® के बाद गाड़ी आगे चली। अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ इंदौर पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ -2 चार घंटे लेट हो गयी और हम ठीक 9 बजे इंदौर पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤
इंदौर रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के दोनों और से बाहर आने का मारà¥à¤— है, पूछताछ करने पर मालूम हà¥à¤† कि ओंकारेशà¥à¤µà¤° जाने के लिठहमें बांये तरफ से बाहर निकलना होगा। सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से बाहर आकर सबसे पहले नाशà¥à¤¤à¤¾ करने का निशà¥à¤šà¤¯ किया
रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से बाहर निकलकर दाà¤à¤ तरफ़ थोड़ी दूर ही बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड है,लेकिन हम लोग नाशà¥à¤¤à¥‡ की तलाश में बायें तरफ़ चल दिये। सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के बाहर ,सड़क पर दोनों तरफ कई दà¥à¤•ानों पर तथा कई रेहड़ी पर चावल से बनी खाने की à¤à¤• ही चीज बिक रही थी जो हम लोगो के लिठबिलकà¥à¤² नयी थी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हम तीनो पहली बार ही मधà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤°à¤¤ में आये थे। हम किसी à¤à¤¸à¥€ दà¥à¤•ान की खोज में थे जहाठसे हमें खाने के लिठपरांठे मिल जाते, लेकिन à¤à¤¸à¥€ कोई दà¥à¤•ान मिल नहीं रही थी।  थोड़ा और आगे चलकर à¤à¤• चौराहे पर à¤à¤• दà¥à¤•ानदार ने कहा ,बैठो मिल जायेंगे पर थोड़ा समय लगेगा।
हम वहाठबैठकर नाशà¥à¤¤à¥‡ की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ करने लगे और जब काफ़ी देर बाद परांठे आये तो तेज नमक व मिरचों के कारण à¤à¤• – à¤à¤• परांठा à¤à¥€ खाना मà¥à¤¶à¥à¤•िल हो गया। तीनों ने मिल कर बडी मà¥à¤¶à¥à¤•िल से दो परांठे खाये लेकिन पैसे चार परांठे के दिये कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि चार परांठे हमारे आरà¥à¤¡à¤° पर बन चà¥à¤•े थे। यहाठचाय के गिलास à¤à¥€ छोटे -2 थे, दो घूंट में शरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ चाय खतम । हमने उतà¥à¤¸à¥à¤•तावश दà¥à¤•ानदार से पूछा कि इस चीज का नाम कà¥à¤¯à¤¾ है जो चावलों से बनी हà¥à¤ˆ है और हर जगह बिक रही है। दà¥à¤•ानदार ने बताया कि यह यहाठकि मशहूर डिश पोहा है। हम तीनो के लिये यह नई चीज थी। मैने अपने साथियों से पूछा “ पोहा लूठकà¥à¤¯à¤¾ ? खाओगे ?
लेकिन दोनो ने मना कर दिया। वहाठसे निकल कर हम बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड की तरफ़ चल दिये। ओंकारेशà¥à¤µà¤° के लिये बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से बाहर निकलकर बायीं तरफ़ लगà¤à¤— आधा किलोमीटर की दà¥à¤°à¥€ पर है। शायद इनà¥à¤¦à¥Œà¤° में दो बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड हैं ,इस बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड से ओंकारेशà¥à¤µà¤°, उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨, à¤à¥‹à¤ªà¤¾à¤², à¤à¤°à¤µà¤¾à¤¹ आदि के लिये बसें उपलबà¥à¤§ हैं और इसका नाम सरवटे बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड है। यहाठसे चलने वाली सà¤à¥€ बसें पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¥‡à¤Ÿ आपà¥à¤°à¥‡à¤Ÿà¤°à¥‹à¤‚ की ही थी और à¤à¤• à¤à¥€ बस राजà¥à¤¯ परिवहन की नहीं थी। हमने ओंकारेशà¥à¤µà¤° के लिये बस पूछी तो à¤à¤• बस मिल गयी लेकिन वो अà¤à¥€ बिलà¥à¤•à¥à¤² खाली थी और हमें इतना तो मालूम ही था कि पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¥‡à¤Ÿ बसपà¥à¤°à¥€Â à¤à¤°à¥‡ बिना नहीं जायेगी, हम किसी दूसरी बस को तलाशने लगे ।
à¤à¤• अनà¥à¤¯ जाती हà¥à¤ˆ बस वाले ने बताया कि वो हमें मोरटकà¥à¤•ा में उतार देगा वहाठसे दूसरी बस पकड़ लेना लेकिन हमने मना कर दिया, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हम ओंकारेशà¥à¤µà¤° के लिये सीधी बस लेना चाहते थे। कोई अनà¥à¤¯ उपाय ना देख हम उसी बस में आकर बैठगये और उसके à¤à¤° जाने की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ करने लगे। लगà¤à¤— 40 मिनट बाद बस चल दी और इनà¥à¤¦à¥Œà¤° के हर चौराहे पर रà¥à¤•ती हà¥à¤ˆ, धीरे -2 चलने लगी। हम सोच रहे थे कि शायद इनà¥à¤¦à¥Œà¤° शहर से बाहर निकल कर बस गति पकड़ लेगी लेकिन à¤à¤¸à¤¾ हà¥à¤† नहीं । बस ने 40 की सà¥à¤ªà¥€à¤¡ को कà¤à¥€ नहीं छूआ। काफ़ी समय खराब हो रहा था लेकिन शायद अà¤à¥€ और समय खराब होना बाकी था। हमें बस में बैठी हà¥à¤ˆ अनà¥à¤¯ सवारियों ने बताया कि यह बस सीधा ओंकारेशà¥à¤µà¤° नही जायेगी और आगे जाकर तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ दूसरी बस में बिठा देगें।

ओंकारेशà¥à¤µà¤° के रासà¥à¤¤à¥‡ में शनि नव गृह मंदिर
इनà¥à¤¦à¥Œà¤° शहर से ओंकारेशà¥à¤µà¤° जाने के लिये इनà¥à¤¦à¥Œà¤° – à¤à¤°à¤µà¤¾à¤¹- खंडवा राजमारà¥à¤— से जाना पड़ता है और मोरटकà¥à¤•ा सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से मà¥à¤–à¥à¤¯ राजमारà¥à¤— से ओंकारेशà¥à¤µà¤° जाने के लिये रासà¥à¤¤à¤¾ कट जाता है। इसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के पास ‘ओंकारेशà¥à¤µà¤° मोड़’ नाम का रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ à¤à¥€ है। मोरटकà¥à¤•ा से ओंकारेशà¥à¤µà¤° कि दà¥à¤°à¥€ लगà¤à¤— 20 किलोमीटर है। हमारी बस मोरटकà¥à¤•ा सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से ओंकारेशà¥à¤µà¤° की ओर नहीं मà¥à¤¡à¥€ बलà¥à¤•ि सीधा आगे चली गयी। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हम पहली बार यहाठआ रहे थे इसलिये हमें इस बात का पता नही चला। लगà¤à¤— 10-12 किलोमीटर आगे जाने के बाद बस à¤à¤• जगह जाकर रà¥à¤•ी और बस वाले ने कहा कि ओंकारेशà¥à¤µà¤° जाने वाले सà¤à¥€ लोग दूसरी बस में जाकर बैठजायें,हमने वैसा ही किया । नयी बस उसी मारà¥à¤— पर चल दी जहाठसे हम आये थे तब जाकर हमें यह घपला मालà¥à¤® हà¥à¤† । बस मोरटकà¥à¤•ा जाकर अनà¥à¤¯ सवारियों को लेने के लिये रà¥à¤• गयी और थोड़ी देर बाद ओंकारेशà¥à¤µà¤° की ओर चल दी। कà¥à¤› ही देर बाद हम ओंकारेशà¥à¤µà¤° पहà¥à¤¨à¥à¤š गये। इस पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग का अà¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤¯ इतना ही है कि यदि कोई इनà¥à¤¦à¥Œà¤° से ओंकारेशà¥à¤µà¤° बस दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जाना चाहे तो कोई à¤à¥€ बस, जो मोरटकà¥à¤•ा होकर जा रही हो, पकड़ ले और मोरटकà¥à¤•ा उतरकर वहाठसे ओंकारेशà¥à¤µà¤° के लिये दूसरी बस ले ले।
(कà¥à¤› तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‹à¤‚ में गलत सेटिंगà¥à¤¸ के कारन मास और वरà¥à¤· गलत है। सà¤à¥€ तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚ 2013 की हैं। जिन तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‹à¤‚ में वरà¥à¤· 2012 है उन में मास और वरà¥à¤· में à¤à¤• जोड़ लें। समय व तिथि ठीक है। धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥¤)
















नरेश जी,
जितनी सुन्दर यह जगह है उतनी ही सुन्दरता से इसे आपने यहाँ प्रस्तुत किया है। बहुत सुन्दर लेख तथा मनमोहक चित्र।
दो बार कार्यक्रम रद्द हो के बावजूद आपने हार नहीं मानी और अंततः भोले का बुलावा आ ही गया। बधाई हो ….
इंदौर में आकर आपने पोहा नहीं खाया ?? खाना था भाई, बहुत स्वादिष्ट चीज होती है, मुझे तो लगभग रोज़ ही नाश्ते में पोहा चाहिए रहता है।
मध्य प्रदेश में आपको राज्य परिवहन की बसें कहीं नहीं दिखाई देंगीं, क्योंकि वर्षों पहले ही (2008 में ) मध्य प्रदेश सड़क परिवहन निगम बंद हो चूका है, अब एम.पी. में सिर्फ प्राइवेट बसें ही चलती हैं। हाँ निगम की कुछ चुनिन्दा अंतरराज्यीय (इंटरस्टेट) बसें पडोसी राज्यों तक जाती हैं।
नरेश जी, जहाँ तक बात घर में शासन की है, मुझे तो यह बताते हुए गर्व महसूस होता है की मेरे घर में मैडम की ही चलती है, देश की तो नहीं मालूम लेकिन हाँ, जिस घर में महिला का शासन होता है वो घर हर तरह से खुशहाल तथा सम्रद्ध होता है।
मुकेश भालसे जी , हौंसला अफजाई व उत्साह वर्धन के लिए बहुत -२ धन्यवाद।
पोहा का आनंद हमने उज्जैन में लिया था। काफी स्वादिष्ट था।
एक बार फिर से धन्यवाद। …………
नरेश जी,
इस बार गर्मियों में इंदौर से अम्बाला होते हुए मनाली जाने का मन बन रहा है, आपसे मुलाकात के योग बन रहे हैं, क्या कहते है ?
अहो भाग्य हमारे जो आपके साक्षात दर्शन हों। अगर आपके अम्बाला आगमन के समय मैं कहीं घूमने ना गया हुआ तो मुलाकात पक्की। धन्यवाद।
Hi Naresh ji,
congrats for the nice post.
With all the inputs of the tit-bits, the post leaves the reader with humor.
Hope, the next parts will also contain the same flavor….
Thanks Avtar Singh Ji for your kind words
beautifully written post with very good pics.
Thanks Sharma Ji..
Bahut khub … agali post ka intzar ….
Thanks Mahesh Ji..
नरेश , वो कहतें हैं न की करत करत अभ्यास के …. तो आपने भी हिम्मत नहीं हारी और अंत में यात्रा सफल हुई । मेरे ख्याल से एक काबिल घुमक्कड़ को जुझारू (थोडा बहुत हठी ) होना ही पड़ता है पर एक पारिवारिक आदमी को सामंजस्य भी बना कर रखा पड़ता है जोकि दूसरी बार ट्रिप कैंसिल कर के आपने सिद्ध किया । नेट नेट कहें को एक ‘स्वीट स्पॉट’ (हिंदी में इसका शब्द मेरी शब्दावली में नहीं है, गुनी गण मदद करें) ।
एक करीबी मित्र की शादी में २००४ में इंदौर गए थे दिल्ली से, इंटर सिटी से, सुबह तडके उतर कर पहले पोहा-भोग हुआ था । वैसे पूर्वोतर राज्य वालों के लिए पोहा (या चुडा / चिडवा ) कोई नई चीज़ नहीं है । खैर । इंदौर से ओम्कारेश्वर जाने किए लिए आपकी मोरटक्का वाली टिप उपयोगी है । माँ नर्मदा के फोटो बढ़िया निकल कर आयें हैं । जय हिन्द ।
नंदन जी धन्यवाद ,
आपने बिलकुल ठीक कहा कि एक काबिल घुमक्कड़ को जुझारू और थोडा बहुत हठी होना ही पड़ता है, अन्यथा घुमक्कड़ी नहीं हो सकती।
सहगल जी बहुत सुन्दर वर्णन तथा सुन्दर चित्र, मगर ट्रेन में एक चित्र जिसमें आप सुखविंदर तथा नरेश जी का परिचय करा रहे हैं वह लगता है आपने महान लेखक सरदार खुशवंत सिंह जी से खिचवाया है… हा हा.. दूसरी बात आदरणीय कविता भालसे जी तो राजस्थान जा कर भी पोहे का नाश्ता करती हैं और आपने मध्य प्रदेश जाकर भी पोहे का रस स्वादन नहीं किया. नंदन जी ने सही कहा कि पूर्वोत्तर राज्य वालों के लिए पोहा/चिवड़ा/चूड़ा कोई नयी चीज़ नहीं पर नरेश जी, लोहडी के त्यौहार पर आपने भी रेवडीयों में इसे जरूर खाया होगा.
त्रिदेव जी, प्रणाम व धन्यवाद।
इस चित्र के लिए सरदार खुशवंत सिंह जी का रोल मैंने ही निभाया था। काफी सावधानी से चित्र लिया गया था। इतने लम्बे सफ़र में टाइम भी तो पास करना था ।
Hi Naresh,
Nice to know that you finally got to go to the temples.
Next time I am in Indore, will definitely try to make it there – but then if time is limited and there is an option of Mandu or temples, Mandu always wins!
Nice photos!
Thanks Nirdesh Ji..
I would also like to visit Mandu next time..
नरेश जी, आप लोगो के सहारे ही हम लोग भी धार्मिक हो जाते है उसके लिए धन्यवाद अन्यथा अपना तो जाना कम ही होता है.
पिछले माह तो घुमक्कड़ पर आना ही नहीं हुआ इसलिए देर हो गयी आते आते
बिना हथियार के ही मार गिराते है ये योद्धा और आप कुछ कर भी नहीं पाते सिवाए कि अंगूर खट्टे थे, सबका यही हाल है जनाब
Thanks Saurabh Ji.
I have noticed your absence as there was no comment from you on any post.
No problem . Der aaye dursat aaye..
I have planned to go to Ujjain and Onkareshwar in Oct. 14 . Your tips will definitely benefit me. I shall post my experience after visit.
Thanks Rajesh ..