सन 2014 में दैवयोग से ऐसे अनेक अवसर आ रहे हैं जब कई उत्सव तथा रविवार आपस में इस प्रकार से एकाकार हो रहे हैं कि समझना मुश्किल हो जाता है कि आज रविवार की ख़ुशी अधिक है अथवा अमुक त्यौहार की!, तो कुछ इस तरह से भी क्रम बना रहे हैं, जिसे हम आम बोलचाल की भाषा में ‘एक्सटेंडेड वीकेंड’ कहते है और अब तो ये शब्द अंग्रेजी समाचार पत्रों में इतना अधिक चलन के कारण, ऑफिस कल्चर में कुछ इस तरह से जुड़ गया है कि कभी कभी तो ऐसा लगता है कि आफिस जाने वाले अपने खाली समय में केलेंडर सामने रख कर यही विचार करते रहते हों कि अब आने वाले त्यौहार में कितनी छुट्टियाँ हो जाएँगी और इनमे कहाँ कहाँ जाया जा सकता है ? मेरा ये लिखने का आशय सिर्फ इतना भर है कि इस वर्ष 15 अगस्त, शुक्रवार से लेकर 18 अगस्त, सोमवार तक के चार दिन (वैसे 15 अगस्त को छुट्टी का दिन मानने के लिए माफ़ी !) घरेलू पर्यटन के हिसाब से टूर आपरेटरों और होटल वालों के लिये बड़े मुफ़ीद साबित हुए, जो लोग इन दिनों में घर से निकले हो वो सहमत होंगे कि बिना पूर्व बुकिंग के, किसी भी जगह होटल में कमरा मिलना लगभग नामुमकिन सा ही था | तो क्या, अपने राम भी इन दिनों में इन वजहों से परेशान हुए ?, बिलकुल भी नही ! क्यूंकि हमारे पास दो ऐसे दिमाग हैं, जिनमे से एक का काम कई महीने पहले से ही छुट्टियों का हिसाब किताब लगा कर नयी-नयी जगहों की सूचना देना होता है और दूसरे का उनमे से काम की जानकारी जुटा कर आगे की रणनीति को क्रियान्वतित करना |
तो इस बार आदेश हुआ कि इन छुट्टियों में कुछ अलग तरह का प्रोग्राम बनेगा, शहरी चकाचौंध और भीड़भाड़ से भरे पर्यटन स्थलों की जगह हिमाचल के अपेक्षाकृत कम चर्चित परन्तु रमणीयता में उतने ही हसीन और खुशगवार हिस्से को चुना गया है | 15 अगस्त की सुबह, पौ फटने से भी एक पहर पहले हम घर छोड़ देंगे, और किसी भी तरह से अपराह्न् के समय तक हमे हिमाचल प्रदेश में नाहन के करीब सिरमौर जिले में ‘कांगो जोहड़ी’ गाँव तक पहुंचना है और दो रात वहीं पर कैंप रौक्स नाम के एडवेंचर क्लब में गुजारनी है जिसकी कुल दूरी गुडगांव से लगभग 300 किमी है | फरमान की सूचना पाते ही हरेक दस्ते ने अपने अपने स्तर पर युद्ध स्तर की तैयारी शुरू कर दी और फिर नियत तिथि पर निर्धारित समय से ( यदि घंटा भर की देरी को देरी न माने तो, इंडियन स्टेंडर्ड टाइम के हिसाब से! ) हमारा काफिला अपने रथ पर सवार हो आनन फानन में ही दिल्ली पार करके GT रोड पर पहुँच गया | हमने तो सोचा था शायद हम ही मूर्ख हैं जो अल-सुबह ही घर छोड़ कर निकल आये, पर GT रोड पकड़ते ही पता चला हमारे जैसे दीवानों की कोई कमी नही | सढ़क पर हर दूसरी गाड़ी दिल्ली या गुडगाँव के नंबर की, और उनमे बैठी सवारियों और उनमे लदे फदे सामान को देख कर ही पता चल रहा था कि आज हमारी तरह ये सभी आज पूरी धूमधाम से अपनी आजादी के जश्न को मनाने के लिए घर बार छोड़ कर कूच कर चुके है |
पौ फटते ही हम मुरथल में ! अक्सर ही बड़े बूड़े ये उक्ति कहते सुनाई दे जाते है कि सुबह की अमृत वेला का समय यदि ईश्वर के स्मरण का है तो यही समय काल का भी है, जो हमे सोने के लिए प्रेरित करता है, मगर हम तो जगे हुये है, पर अब चाय की तलब है, क्यूंकि जाने की जल्दी में सुबह चाय भी नही पी | और, फिर इस रोड पर सुखदेव अब एक ढाबा नही ब्रांड बन चुका है, सो पहला धावा वहीं पर, बच्चा पार्टी के चेहरे पर उभर आई मुस्कान उनकी विजय का शंखनाद करती प्रतीत होती है जो दिल्ली पार करते ही सुखदेव-सुखदेव की रट लगा देते है | आखिर कितना आत्माभिमान महसूस होता होगा न जब ये फटाफट उतरते ही अपने स्टेटस अपडेट करते है, Feeling awesum at Sukhdev Da Dhaba, आखिर जब सुबह सवेरे इनके मित्रगण अपने मोबाइल और लैपटॉप खोलें तो उन्हें चिढ़ाने का कोई सामान भी तो होना चाहिए !
और फिर यहाँ से निवृत होते ही एक बार फिर से GT रोड | कुछ रास्ते की भी बात कर लें | गुडगाँव से धौलाकुआ, वहां से आउटर रिंग रोड पकड़ कर सिंधु बोर्डर पार कर दिल्ली से निकलते ही पहले कुंडली, सोनीपत, मुरथल, समालखा, पानीपत, घरौंडा, करनाल, पिपली और फिर शाहबाद मारकंडा से दायीं तरफ मुड़ जाना है, शाहबाद लाडवा सडक पर, और जिस से आप पहुँचते हैं नारायणगढ वाले मार्ग पर, यहाँ पहले सज्जाद पुर, नारायणगढ़, काला अम्ब और फिर नाहन की तरफ | बस, इसी रोड पर चलते और सढ़क पर लगे बोर्डों का पीछा करते करते आप हिमाचल की सीमा में दाखिल हो जाते है | जल्द ही आपको समझ आ जाता है कि हिमाचल का यह हिस्सा अपनी इन्तेहा खूबसूरती के बावजूद अभी भी अनन्वेषित (unexplored) है, शायद आने वाले दिनों में इसके दिन भी बहुरें !
हिमाचल के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में स्थित सिरमौर का इतिहास सन 1000 ईo के आस पास का माना जाता है जब उस समय के किसी राजा ने अपने नाम पर ही इस नगर की स्थापना की थी | पूर्णतय: पहाड़ी क्षेत्र है और अधिकतर आपको यहाँ गाँव ही मिलेंगे, कृषि ही यहाँ के लोगों के लिये जीवकोपार्जन का मुख्य साधन है क्यूंकि अभी पर्यटन इस क्षेत्र में इतना विकसित नही हो पाया ! सब्जियों में आलू और फलों में आडू इस क्षेत्र की मुख्य फसल मानी जाती है और यहाँ से देश के अलग अलग हिस्सों में इसे भेजा जाता है, मगर फिर भी कुल मिलाकर अभी ये क्षेत्र पिछड़ा हुआ ही है |
और इधर, ग्यारह बजे के लगभग फिर एक बार विश्राम लिया जाता है जब आपने कुछ पेट पूजा करनी होती है | हाईवे के किनारे बने ढाबे, कहीं खाट तो कहीं प्लास्टिक की कुर्सियाँ लगा कर, परम्परा और आधुनिकता का कुछ बेमेल सा संगम नज़र आते हैं, घर के बने परांठे, घर की सब्जी के, खाना देख ढाबे वाले के चेहरे पर छाए निराशा के भाव, मगर कुछ चाय और कुछ कोल्ड ड्रिंक्स के आर्डर से कुछ क्षतिपूर्ति होने की संतुष्टि , पहले तो घर का खाना देख बच्चों का नाक मुंह सिकोड़ना, मगर साथ वाले टेबल पर बैठे लोगो का गुस्सा कि परांठे ठंडे भी है और एक तरफ से जले और एक तरफ से कच्चे, जिससे बच्चों में अपने भोजन को देखकर एक नई भावना के साथ गर्व का संचार होना और फिर एक बार घर के खाने का स्वाद जिव्हा पर चढ़ते ही सब कुछ भूल कर सिर्फ आपने खाने में ही मशगूल हो जाना… बड़े ही रंग बिरंगे अनुभवों से दो चार हो जाते है आप… और हैरान भी, अपने ही बच्चों को कितना कम जानते हैं हम लोग…
बहरहाल, अब नारायणगढ़ से आगे पहाड़ी रास्ता शुरू होगा, अभी तक का समय हमारी उम्मीद से कम लगा है यानि हम लोग अपनी पीठ थोक सकते है कि हमने अपनी गाड़ी अच्छी खींची | समय के प्रबंधन में हम विजयी हैं तो क्यूँ न इसका जश्न एक एक कप चाय पी कर ही मनाया जाये, राह में एक छोटे से कस्बे नुमा बाज़ार में छोटी सी गुजरे जमाने की दुकान, कप तो नही काँच के गिलास हैं, अरसे बाद गिलास में चाय पी जाती है | हर लिहाज से चाय बढ़िया है और दाम भी आधा | यदि, सच कहा जाये तो चाय का तो इक बहाना होता है, असल मनोरथ तो है कुछ देर गाढ़ी से उतर कर टाँगे सीधी कर लेना और आगे के पहाड़ी रास्ते के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से जागृत हो जाना | पहाड़ी रास्ता, हिमाचल लगते ही शुरू हो जाता है और साथ ही यह एहसास भी कि भले ही इस बार मानसून मैदानी इलाकों में कमजोर है मगर पहाड़ों पर वर्षा में कोई कमी नही, सम्भवतः औसत से ज्यादा ही हो | पेड़, सुबह ही नहा धो कर हरे रंग की चुनर ओढ़े, बेतरतीब से कतारों में खड़े हो, आने वाले मेहमानों के स्वागत के लिए उत्सुक हैं | मगर जगह जगह कटी फटी चट्टाने और कहीं कहीं तो बीच सडक तक फैला हुआ उनका मलबा और पत्थरों के ढेर पहाड़ की दुर्दशा भी बयाँ कर रहे है | वर्षा ऋतू में पहाड़ों में जाने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि आप को सढ़को पर इतने प्राकृतिक झरने दिख जाते है जो शायद चौमासे के गुजरते ही सूख जाते होंगे क्यूंकि नाहन की तरफ इतनी अधिक ऊंचाई नही है कि बर्फ पड़े और कहीं अगर पढ़ भी जाये तो साल भर जमी रहे जिससे पिघल कर आता पानी ऐसे ही झरनों का उद्गम स्रोत्र बनता हो | बहरहाल पहाड़ फिर पहाड़ हैं और उनकी खूबसूरती को निखारने में ईश्वर की सदा से ही अनुकम्पा रही है | सौन्दर्य के मामले में इन का भी कोई सानी नही और इधर प्रकृति हर पल अपना रंग बदल रही है | इस बीच कुहासा इतना गहरा हो चुका है कि हाथ को हाथ न सूझे जबकि दिन के 12 बजे का समय हो रहा है और फिर यकायक बरसात शुरू…. इतने अच्छे स्वागत की तो हमने कल्पना भी नही की थी ! धन्यवाद !, हे देवभूमि हमारे आगमन को इतना रोमांचक और आनंदित बनाने के लिए … जितना कुछ आँखों के रास्ते अपने मष्तिक में बसा सकते हो बसा लो, क्यूंकि दुनिया का कोई भी कैमरा इन क्षणों को अपने में नही समेट सकता | जब आप अपनी आँखों से भी, जितना देखते हो उससे कहीं ज्यादा छोड़ देते हो, फिर वो तो फिर बेचारा एक निर्जीव उपकरण मात्र है !
हिमाचल प्रदेश की एक बात ने प्रभावित किया कि सढ़कों की हालत अच्छी है | वैसे, हम तो फिलहाल राजमार्ग पर ही चल रहे हैं जो बहुत बढ़िया है | बाकायदा उस पर सड़क को आने-जाने वालों में बाँटने के लिये सफेद पट्टियाँ खिंची हैं, यहाँ-तहाँ आपको JCB मशीने भी सड़क से मलबा उठाते दिख जाती हैं, और सबसे बड़ी बात तो है, हर गाँव के बाहरी मुहाने पर यहाँ बस रूकती होगी, वर्षा शालिकाएं हैं जो बस की प्रतीक्षा के अतिरिक्त लोगो को अकस्मात से होने वाली वर्षा से बचाने का काम भी करती हैं | अभी हमारे इस वर्तमान सफर का पड़ाव, कांगो जोहड़ी कुछ दूर है, क्यूंकि धुंध और भूस्खलन की वजह से आपकी गति बेहद ही कम है | खैर गति भले कम हो, मगर बिना रुके चलते ही जाना है और फिर अचानक किसी मोड़ को पार करते ही न कोई बारिश, न कोई धुंध बल्क़ि टुकडो-टुकड़ों में धूप खिली है, वाह भगवान् तेरी माया, कहीं धूप तो कहीं छाया … बस कुछ देर की दूरी और… कुछ और घुमावदार रास्ते, कुछ और झरने, कुछ और टूट कर गिरी चट्टानों का मलबा… और फिर हम जा पहुंचे कांगो जोहड़ी !
कांगो जोहड़ी में ही मुख्य सड़क से लगभग चार किमी नीचे की उतराई पर कैंप रोंक्स हमारी मंजिल है | हमे रास्ता दिखाने रिसोर्ट की तरफ से अपनी इनोवा गाड़ी लेकर सौरभ ( इस कैम्प के मालिक का बेटा} आया है और अब हमे इस कच्ची और पथरीली सडक पर बिना किसी सुरक्षा व वाले रास्ते पर जाना है | इस सडक पर गाड़ी बढ़ाते ही लैंसडाउन के हिल व्यू शांति राज रिसोर्ट की याद ताजा हो आई | बिलकुल वैसी ही सड़क मगर रास्ता उससे भी एक किमी और ज्यादा लम्बा, ऊपर से बारिश और गाड़ियों की लगातार आवाजाही के कारण बीच बीच में पानी के पोखर से बन गए हैं जिनमे से गुजरते डर लगता है कहीं आप की गाड़ी का पहिया न फँस जाये, मगर इसके सिवा कोई और चारा भी तो नही | नास्तिक पता नही कैसे इन लम्हों से पार पाते होंगे, मगर हम तो राम राम और वाहेगुरु वाहेगुरु करते और फिर से एक बार ये सोचते हुये कि इस बार तो यहाँ आ गए अगली बार किसी ऐसी जगह नही आना, पिछले कुछ सालों से इसी तरह से अपने डर पर काबू पाते आ रहें है | रिसोर्ट की इनोवा आगे आगे चल रही है और पीछे पीछे हम मगर अभी तक तो रिसोर्ट का नामो निशाँ ही नही | मगर फिर दूर नीचे घाटी में पानी की कुछ टँकियां नजर आती है तो मन में आशा की एक नई लहर का संचार होता है जब इतना पहुँच गए तो वहाँ भी पहुँच ही जायेंगे और फिर हमसे आगे तो इनोवा है | हालांकि प्रकृति वही है और प्रकृति के नजारे भी, मगर अब जल्दी पहुँचने की हसरत में इसे भोगने का कोई इरादा नही, अन्यथा आप कहीं भी अपनी गाड़ी रोक कर यहाँ घंटो गुजार सकते हैं | परन्तु चाहत अब यही है कि बस अब ये रास्ता किसी तरह जल्दी से कट जाये |
और फिर अंततः वो क्षण भी आ पहुँचा जब हमारी गाड़ी कैंप रोक्स के मुहाने पर जाकर रुकी और हमे बाहर निकलना था | मगर कभी कभी ऐसा क्यूँ होता है कि जिस राह के आप गुजर जाने की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं उस से पार पाने के बाद भी जैसे कोई प्यास अधूरी सी रह जाती है खतरनाक ही सही मगर उस खतरे में भी अब आपको मजा आने लगता है और गाड़ी छोड़ने के वक्त आपको लगने लगता है, काश! कुछ और लम्बा हो जाता | मगर अब यही इस यात्रा का पूर्ण विराम है और अब आगे जो भी रोमाँच होगा वो इस कैम्प के भीतर ही होगा…. तो फिर मिलते हैं अगली पोस्ट पर, कैम्प के भीतर की मौज मस्ती के साथ….
Beautiful is the word for Pics…….Great is the word for your narration…… ???! ??? ?? ????? ?? ????. Lets the party begin… lets know about the enjoyment and Ghumakkari in and around ???? ????? in your next post…..come back soon, Avatar Ji!
Thanks for sharing.
Hi Anupam
Thanx for a nice inauguratory comment on the new post.
I too realized that the current post is a bit short, actually I have writing the current travelogue in a series of 5 parts and to keep it in order and in harmony with other parts I decided to close this part here, otherwise the continuity of other parts will get disturbed.
I hope, the other parts too will be appreciated by you as well.
Thanx and regards.
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Hi ???? ???? ?????
Although it feels mysterious to use the salutation ???? ???? ????? instead of a name, but after all its your choice and I could not help doing anything on it.
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Avtar Ji,
Very nice description with beautiful pics. I always get some free time to read your travel stories. You describe your experiences very well. I am eagerly waiting for your next part….
Pradeep
Hi Pradeep ji
It’s an honor to know that you like my posts.
Afterall the love and affection of the fellow ghumakkars inspire some one to narrate his/her tales of their journey.
Thanx for commenting om the post.
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Hi Rakesh ji
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Hi Schin ??
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Hi Arun
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My favourite line
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I will quote it many a times perhaps in day-to-day talks, with due citations.
Hi Jaishree ji
Thank you very much for finding enough time to read the story and posting the comment.
It feels really nice!
You liked the line, it is indeed an honour for me.
Ma’am, what we speak and what we write, every thing, we get from others, which includes our parents, siblings, teachers, friends and those, who touch our lives on various counts in our life span.
So on the whole, every single word of mine is taken from the society and the society has every right to use it, as per its own wish…. thanx
sir
u have described ur views very well, really its very nice place to relax and enjoy but i really salute a person who have searched this place for amusement. please post some more pics of ur tour specially some special moments u had in the camp.
Hi Pankaj ji
Its really feel great to find your comment here.
You are the witness of all such fun filled activities there.
Your presence here giving me mixed types of feelings. On the one hand, it inspires me more as you too like the place as your comment suggests but on the other hand, it challenges me to narrate the post on most real terms… Ha Ha Ha
Hope for the long association-ship of Ghumakkari… :)
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Hi ??
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Dear sir
Greetings
Although journey was excellent , you explained the journey in a fantastic way…
Thanks a lot for sharing with all group members.
With Regards
Hi Tyagi ji
Thanks for all your nice words.
I would like to share the credit for the post with you as you are the wonderful planner of all such journeys. Apart from this, having a nice photographic sense and a really tough driver on all the kaccha hill roads.
Thanx again.
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Hi ???????? ??
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good beginning.. Avtarji I have a very slow connection so will read all posts here after I reach my new home…. so dont mind if you dont see my comments
Hi SS Sir
No issue sir!, comment does not matter at all.
If a scholar like you, just peep on to the post, it is much satisfactory, indeed.
You took the pain to read in spite of poor connectivity, it is itself a compliment for me…. :)
Avtar Ji. Ek bahut hi umda post.tasviren bhi kafi sunder aayi hain. Camp ka naam or rent share karna. Hamare yahan se jyada due nahi hai. thanks
Hi Naresh ji
Thanx for reading and posting your comment.
In the next part, you will get all the necessary details.
Yes, from Ambala, this place is very near.
Ram Ram! Bahut accha post and photos .waiting for next.
Hi Niraj ji
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Hi Deependra ji
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Thanx for commenting… :)
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Hi Mahesh ji
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So just like everyone else you also took the plunge and headed for hills. As you noted, it was indeed very very hard to get a booking anywhere, as if whole of NCR was out. But with enough planning and preparation, you were all set. I was safely here :-) for a change.
I have traveled to Paonta a few times, a close friend belongs from there, so I could relate to the route. Sukhdev indeed has become a big brand. We have never stopped at Sukhdev or Murthal because we always wanted to cover some distance. This time, I was coming back from Chandigarh (from an official trip) and we stopped at Sukhdev for a quick tea. Boy, it must have had at least 500 people, may be more. The place was buzzing.
Hills in August can be hard, especially if rains doesn’t cease. Enough is known and said about your Darshan and Philosophical nuances, keep them coming. Even if most of it is a bouncer to me and Mukes, we would manage. We would share some jokes on Facebook to compensate.
Camp Rox looks exciting, let me now go to next part. Wishes.
Hi Nandan
Thanx for the comment and touching all the major highlights of the post.
I agree on most of the terms you mentioned about Sukhdev and hills etc.
For a change and test yourself physically, this camp is exciting. Although the altitude is not so high and it lies in a valley, so you can not expect chilly temp particularly in these sultry months.
But, on the whole, a nice experience, the roads of Himachal are in good condition and the area has lot of vegetation and natural springs and the most important thing, this part of the Himachal is still less explored
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