गतांक से आगे
[ पिछले अंक में आपने कैंप रोक्स पर हमारे पहुँचने के बाद से लेकर हो रही वर्षा तथा इस बीच होने वाली अन्य गतिविधियों के घटनाक्रमों को पढ़ा… ], अब आगे –
सुबह के छह बज रहे हैं, जब आपकी नींद खुलती है, खिड़की के पर्दों में से छिन्न-छिन्न कर आती रौशनी की किरणें गवाही भर रही है कि सूर्य देवता अपने सात घोड़ों के रथ पर सवार हो धरती को आलोकित करने के लिये निकल चुके हैं, यानि इन पहाड़ों पर उषाकाल ने अपनी दस्तक दे दी है | सहसा ही, कविवर जयशंकर प्रसाद की पंक्तियाँ, “बीती विभावरी जाग री ! अम्बर पनघट में डुबो रही, तारा घट ऊषा नागरी !” याद आ जाती है | पहाड़ों की सुबह का एक अलग ही नशा है, जब खुद पहाड़ों के साथ साथ, पेड़ पौधे और यहाँ तक कि ये कच्चे पथरीले रास्ते भी अपनी सुप्तावस्था को त्याग कर, एक नये दिन की चुनौतियों को खुद के लिए तैयार कर रहे होते हैं, ऐसे समय में उनका सौन्दर्य अपने अप्रितम शिखर पर होता है और आप अपने आलस्य की वजह से ऐसे मनोरम प्राकृतिक दृश्यों को अपनी आँखों से यूँ ही गवाँ देना, गवारा नही कर सकते | बस, आनन् फानन में बिस्तर त्याग कर और नित्य क्रियायों से निवृत हो आप अपनी काटेज के पट आहिस्ता से सरका कर बाहर आ जाते हो | कल शाम से ही हो रही लगातार वर्षा के बाद, आज सुबह का आकाश बिलकुल साफ़ है, सारा वातावरण एक नीली सी आभा लिये धरा की हर शै (वस्तु) को अपनी हल्की सी नीलिमा मिश्रित आभा में समेटे हुये उत्प्रेरित कर रही है, मगर सूर्य के उदय होने के साथ तो पूरा वातावरण लालिमायुक्त हो जाता है, फिर हमे ही क्यूँ नभ यूँ नीलिमायुक्त प्रतीत हो रहा है ? दरअसल, आज आसमान बिलकुल साफ़ है बादलों का कहीं एक कण तक कहीं नजर नही आता, अत: सूर्य का सारा प्रकाश पूर्णतया अपवर्तित हो कर सम्पूर्ण फलक पर फैल चुका है (Laws of Refraction!), और इस कैम्प के चारो तरफ उगे हजारो चीड़ और देवदार के हरे भरे घने वृक्ष, इस क्षेत्र को हरा रंग दे रहे हैं, और फिर जैसे इन दोनों रंगो का संयोजन ही कायनात के इस छोटे से टुकड़े पर ये हल्का सा हरापन लिये हुये अपनी नीलिमा को ओढ़ा देता है |
पेड़ों की पत्तियों से कहीं टप टप कर बहती पानी की बूंदे, आप के पाँव के नीचे की एकदम गीली दूब और कहीं दूर अनदेखी, अनजानी पहाड़ियों से रिस-रिस कर आती शीतल जल की धारायें, नीचे बहती उस नदी में खुद को तर्पण कर देना ही जैसे इनका एकमेव ध्येय है, ये बताने के लिए पर्याप्त है कि कल रात भर बादल बरसते ही रहे थे | हौले हौले से पाँव जमाते जमाते आप निश्चय करते है कि सबसे पहले नदी की तरफ जाया जाये | रात हुयी बारिश की चुगली ये नदी भी कर रही है, क्यूंकि इसमें पानी का जलस्तर भी ज्यादा है और वेग भी, अब ये पहले से भी कहीं अधिक सुंदर और गतिमान है | छोटी सी इस बरसाती नदी के पार ऊँचे- नीचे पहाड़ी टीलें हैं जिन से गुजर कर छोटे छोटे कद की गैयाँ, कहीं किसी घास के मैदान में चरने के लिये जा रही हैं, जिनका निवास सम्भवत: कोई समीपवर्ती गाँव होगा | ग्रामीण जीवन के परिपेक्ष्य में यह देखना भी एक अविस्मरणीय अनुभव होता है कि किस प्रकार ये पालतू पहाड़ी जानवर उषाकाल में, अपने चारागाहों की तरफ पंक्तिबद्ध हो कर गमन करते हैं, पूरा दिन जंगलो में विचरण करने के पश्चात, गौ धूली की बेला होते ही, ठीक उसी अनुशासन में अपने अपने पालकों के द्वार आ कर खड़े हो जाते हैं | निश्चित ही ये भी प्रकृति का एक सुंदर रूप है, क्यूंकि प्रकृति केवल नदी, झरने, पहाड़ या फूल पत्तियाँ ही तो नही… सम्पूर्ण फ्लोरा और फौना प्रकृति का अंश ही तो है | और इधर, आप बीच नदी में जमे किसी एक ऊंचे से पत्थर पर बैठ जाते हैं और यहाँ तक आपकी नजर जा सकती है देखते जाते है जैसे इस समय इस पूरी कायनात में केवल दो ही चीजें हैं, एक आप और दूसरा ये बहता पानी !
नदी का पानी तो आपकी उपस्थिति से प्रभावित नही होता और अपनी सहज चाल चलता रहता है मगर ये आपके भीतर तक आपको झिंझोड़ता सा जाता है | आप यूँ ही यहाँ घंटो बैठ सकते हैं इस नीरवता में, इन पत्थरों से, इस पानी से बातें कर सकते है | आप जान ही नही पाते कब आपकी चेतन और अवचेतन अवस्था इन सबके साथ जुड़ चुकी है | समय का यहाँ कोई बोध नही, जितने पल गुजर रहे है वो व्यर्थ नही जा रहे अपितु वे आप में और इस पूरी सृष्टि में सामंजस्य बनाने हेतु एक सेतु का कार्य कर रहे हैं | इस बरसाती नदी की मौज को देखते हुये न जाने इन पलों क्यूँ Lord Tennyson की कालजई कविता ‘The Brook’ बार-बार स्मरण हो आती है, और आप बैठे-बैठे ही न जाने कितनी बार इन पंक्तियों को दोहरा लेते हो, “ For men may come and men may go, But I go on forever ” कितनी सच्चाई है इसमें, यह आपने आज इस नदी के संसर्ग में जाना है, जब इसके अस्तिव के आगे आप अपने आप को कितना बौना पाते हो | आप यूँही न जाने कितनी देर यहाँ व्यतीत कर देते हैं कि कुछ आवाजें आपका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करती है, रावी, पारस और सूजी आपकी ही तरफ आ रहे हैं | शायद, ये भी जाग चुके हैं और इस नदी का आकर्षण इन्हें भी अपने मोह पाश में बाँध कर यहाँ ले आया है, इनके साथ सूजी का आगमन उसकी कर्तव्यपरायणता की परिकाष्ठा है, तो इन बच्चों के लिए खेलने और मनोरंजन के लिए एक अतिरिक्त साथी |
कुछ क्षण पहले तक जिस स्थान पर हमारे बीच मौन का साम्राज्य था वहाँ अब चुहलबाजी शुरू हो गयी है | जल में डूबे और उभरे पत्थरों पर बड़े ध्यान से पाँव जमा जमा कर, जगह बनाते बनाते तीनो इधर से उधर जा रहे है | नदी का ठंडा पानी, सुबह की शाँत, नीरव और पवित्र शान्ति और इस सबके बीच जिन्दगी की ख़ुशी और किलकारियाँ, शायद इससे बेहतर एक नये दिन की शुरुआत की परिकल्पना आप नही कर सकते !
कैम्प में लोग जाग रहे हैं, सुबह की चाय बन चुकी है, चाय की चुस्कियों के बीच टीवी पर समाचार चल रहे है कि यहाँ वहाँ पहाड़ो पर भारी बरसात जारी है और भूस्खलन से 50 से ज्यादा जाने जा चुकी हैं, तो उधर मैदानी क्षेत्रों में यही पानी बाढ़ का प्रकोप धारण कर तबाही मचा रहा है | इधर, इस हाल में जितने लोग हैं उनकी बातचीत का केंद्र भी यही परिस्थितीयां हैं | एक समूह इस बात से चिंतित है कि उन्हें आगे नारकंडा जाना था और कहीं अगर बीच राह में इस भूस्खलन की वजह से मार्ग ठप्प मिले तो ? बहरहाल, चाय के बाद अब समय है नहां धोकर तैयार होने का, जिससे दस बजे तक सब नाश्ते के लिये तैयार हो जायें | आज नाश्ते में आलू के परांठे, ब्रेड-जैम, उबले अंडे और चाय है | नाश्ते के बाद का समय एक्टिविटीज के लिए नियत है | ग्यारह बजे के लगभग, जो भी गेस्ट इसमे रुचि रखते हैं, एक नियत स्थान पर एकत्रित होना शुरू हो जाते हैं | जहाँ पहले सबको सुरक्षा उपकरणों पर एक डेमो दिया जाता है, और फिर एक के बाद एक पाँच ऐसी एक्टिविटीज हैं जिन से सभी प्रतिभागी गुजरते हैं, दो एक्टिविटीज शाम को चार बजे करवाई जायेंगी | एक्टिविटीज पूरी होने पर जलजीरा का पेय हाजिर है, जिसकी एक एनर्जी ड्रिंक के तौर पर सभी को बहुत आवश्यकता भी थी |
एक बार फिर से मौसम बिगड़ना शुरू हो गया है और काले कजरारे बदरों ने कैम्प क्षेत्र को अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया है, एक्टिविटीज समाप्त होते ही एक बार फिर से समय है आप अपने परिवार के साथ यहाँ वहाँ घूम सकते हैं अथवा अपनी काटेज में आराम कर सकते हैं | मगर, जो करना है इसी कैम्प क्षेत्र में ही, क्यूंकि बाहरी दुनिया से आपका कोई सम्पर्क नही और शहर यहाँ से मीलों दूरी पर है | काटेज तक पहुँचते पहुँचते बूँदा-बाँदी शुरू हो गयी है, जो जल्द ही घटा टोप बरसात में बदल जाती है | हमारे अति उत्साही सदस्यों में इस बारिश में नहाने का मन है, और फिर एक एक कर सभी अपना संकोच त्याग कर बाहर निकल पड़ते हैं, जिस आवरण को आप अपने रिहाइशी क्षेत्र में ओढ़ कर रखते हैं वो यहाँ पल भर में ही ढह जाता है | और, आप इस बरसात में कुछ उसी प्रकार भीगने लगते हैं जिस सावन और भद्रों की रिमझिम फुहारों में भीगे बचपन की वो यादें आज भी आपको गुदगुदा जाती हैं | अपने परिवेश में तो आप दसों दिशायों की तरफ से औढ़े गये उस कृत्रिम खोल से बाहर आने का साहस नही जुटा पाते, जिसे आपने अपनी ही स्वेच्छा से अपने चारो तरफ कुछ इस मजबूती कस कर पकड़ा हुआ है कि जब कभी आपको मौका मिलता है उस खोल से बाहर आने का, तो आप उसके पाश में कुछ और जोर से अपने को भींच लेते हैं मगर यहाँ ऐसी कोई बँदिश नही, और न ही समाज का पहरा और न ही अड़ोस-पड़ोस वालों की घूरती निगाहें, और न ही सामाजिक बन्धनों की वो बेड़ियाँ… जो आपकी उमंगो को सर उठाने से पहले ही बहुत बेरहमी से कुचल डालती है… तो, आज अपने पंखों को कुछ और फ़ैल जाने दो, अपनी उमंगो को, अपनी चाहतों को कुछ और विस्तार दे दो, अपने पाँवों को कुछ और गति और अपने तन मन और आत्मा को कुदरत के बरसते इस अमृत में भीग जाने दो | त्यागी जी विचार रखते हैं कि इस बरसात में नदी में नहाया जाये और बस बच्चों को और क्या चाहिये ? कोई और उस पर अपनी राय दे, उससे पहले ही सारी जनता पार्टी भाग जाती है, नदी की तरफ… और फिर घँटो उस शाही स्नान का आनंद लिया जाता है, जब तक कि बारिश बंद नही हो जाती और दोपहर के खाने का समय नही हो जाता |
दोपहर का खाना, एक दाल, सब्जी, रोटी, चावल, रायता और सलाद, एक बार फिर सादा मगर साफ़ सुथरा | खाने के बाद और फिर चाय के समय के बीच तक का समय आपके पास है अपनी मनमर्जी से एक बार फिर से यहाँ वहाँ घूमने का | शाम की चाय के बाद रीवर क्रासिंग और ब्रह्मा ब्रिज पार करने की एक्टिविटीज़ करवाई जाती है, जिन मेहमानों ने दिन में हमे नदी में नहाते देखा था, मगर साथ आने में संकोच कर गए थे, वो भी अब अपने खोल से बाहर आ रहे हैं और अब उस नदी में ही नहाने का अपना कार्यक्रम कर रहे हैं |
आज शाम की फिज़ा भी जवाँ है, और मौसम भी खुशगवार ! सभी लोग बाहर हैं तो ट्रेनर महोदय भी फायदा उठाते हैं और सभी को कुछ अलग अलग तरह की मनोरंजक गतिविधियाँ करवाते हैं, जो टीम बिल्डिंग पर आधारित हैं, अच्छा अनुभव है सबके लिये ! शाम की कालिमा गहराते ही कैम्प फायर शुरू हो जाती है, और साथ ही DJ की धुन के साथ ही बोतलों के ढक्कन भी ! आज चूँकि सभी मेहमान बाहर ही हैं, तो शाम के स्नैक्स भी यहीं पहुंचा दिए जाते हैं, सामिष लोगों के लिये फ्रेंच फ्राईज़ हैं तो निरामिष के लिये कबाब | यूँ ही नाचते गाते और झूमते गिरते रात के खाने का समय हो गया है, जिन समूहों में अभी तक कुछ औपचारिकतायों का भीना सा आवरण था भी, वो इस शाम के मदमस्त माहल ने ने पिघला दिया है, ज्यादातर लोग कल वापिस चले जायेंगे, बस आज क ये कुछ लम्हे ही आपको मिलने जुलने का एक आखिरी अवसर दे रहें है | रात के खाने तक सब यूँ ही चलता रहता है, और फिर, एक विविधतापूर्ण दिन की समाप्ति पर संतुष्टि के भाव लिये सब एक दूसरे से विदा लेकर अपने अपने काटेज की तरफ प्रस्थान करते हैं |
अगली सुबह फिर से खुशगवार मौसम लेकर आई है, सुबह की चाय के बाद सब अपने अपने काटेज में अपने सामान की पैकिंग में व्यस्त हैं, आज रविवार का दिन है, तो ज्यादातर लोग यही चाहते हैं कि समय पर अपने घर पर पहुँच कर तरोताजा हो जाये | कल सोमवार, जिनकी जन्माष्टमी की छुट्टी नहीं है, उनकी जीवन से संघर्ष की ज़ँग, सूरज की पहली किरण के दस्तक देने के साथ ही एक बार फिर से शुरू हो जायेगी | मगर, हमारे संघर्ष में अभी विराम है क्यूंकि अभी हमने यहाँ से रेणुका जी झील और फिर वहाँ से पाँवटा साहब गुरूद्वारे में जाना है |
सुबह के नाश्ते में आज छोले-भठूरे हैं और साथ में ब्रेड जैम और उबले अंडे भी | इस कैम्प के प्रबंधन की आप इस बात के लिये तारीफ़ कर सकते हैं कि भिन्न भिन्न संस्कृतियों और पृष्ठ भूमियों के लोगों के लिये खाने पीने का एक ऐसा मेन्यू बना रखा है जो सभी की अपेक्षायों को काफी हद तक पूरा कर देता है और यदि आप की कोई सर्वथा अलग आवश्यकता अथवा आग्रह है, तो आर्डर पर उसे मँगवा सकते हैं या अपनी बुकिंग के समय ही प्रबंधन से इस विषय पर चर्चा कर सकते हैं |
अपने नियत समय के अनुसार जाने वाले ग्रुप काटेज खाली कर रहें है, तो त्वरित गति से कैम्प का स्टाफ उन अस्त व्यस्त जगहों को झाड़ पौंछ कर नये आने वाले मेहमानों के लिये तैयार करने में लगा है, इसी के साथ हमारे लिये भी समय आ गया है कि हम भी अब अपना सामान उठायें और अपनी अगली मंजिल यानी रेणुका जी झील के लिये प्रस्थान करें |
Wah AVTAAR JI , maja aa gya , samajh main nahi aa raha is par kya likhen, kya comment de. aap ne bilkul kavita hi likh daali, you have describe so well as a script writer writes its script , jaise mala main motion ko piroya jaata hai , vaise hi aap ne apne shabdon ko chun -chun ke likha hai, very good Avtaar ji,
Baldev swami
Thanx Baldev ji
Soon I will reply in detail.
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Hi Arun,
My one week old laptop got a major technical fault and now the service centre is in the process of replacing it, but this can a few days.
My phone does not support Hindi font, so I will reply you once again, when things settle down once again.
Till then just accept this, excuse is mine :)
“??????? ?? ???? ?? ?? ??? ?? ??? ??” – and those who became addicted to it, for them, it is always early to bed and and early to rise – exception is rain! Good to see that you had a beautiful morning after a rainy evening.
But what is this? Rains again! …………
Avtar ji, you have beautifully written this story….. Beautiful indeed! Nice Pics!
Thanks
Hi Anupam
Thanks for the encouragement!!!
You are very supportive on all the posts, which is an excellent quality and it really helps the writers to boost their moral.
You picked right… ?????? ?? ???? ?? ?? ??? ?? ??? ???? ?? … of course, and it gives you immense pleasure, if one knows the art of self abasement!!!
and you can add rain too with it….. thanx dear… :)
Paji,
Your poetic flow of description is awesome.Pics are also good.
Keep writing…
Hi Ramta Jogi
Thanks for all your nice words.
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Hi Mukesh ji
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Avtar ji.. this was an another Gem from seasoned writer . Excellent poetic write up. I can not stop laughing after reading the caption :????? ???? ?? ???? ????? ??? ?? ?? ???? ?? . But the camp rate @ 2500 per person per day is too high .Camping at Rishikesh starts from 1300-1400 all inclusive for one person.
Any way.. thanks for sharing a unknown place with us.
Hi Naresh ji
Thanx for liking and commenting on the post.
Sir, rates are under the authority of the management and no can do anything on it. If they feel, their camp deserves this price tag, then they have every right to demand for it.
Rishikesh is in plane area and it is somewhat easy to collect the things, but here the area demands a huge investment in the form of time, money and planning and man power etc. If they need just one kg of paneer in emergency, then they have to travel around 100 km for it and spend three to four hours for it on a four wheeler. This makes all the difference….
And the most important thing, which you mentioned yourself…. it is unknown place still… :)
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Hi Sachin ji
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??? ???? ???? ?? ?????? ?? ??????? ?? ????? ?? ??? ??????? ?? ?????? ?????…. Lol
Hi Tridev Sir
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How beautiful !
Hi Jaishree
I do not know, whether your expression is for Tridev Ji’s comment or for the Triveni of Gulzaar Saheb, but on the behalf of these two stalwarts, I like to pay my heartful thanx to you… :)
Dear Sir
Greetings
Although we enjoyed a lot during the stay there in camp, but after reading whole episode i am feeling as i am still there and enjoying a lot.
the words which you have chosen to describe the whole , are so nice .
Thanks for such a nice sharing in words.
Please keep continue , Most of the Ghumakkars are waiting for your next……..
Hi Prem Ji
Thanx sir.
For finding such a nice place and making it possible!
Keep your dreams alive for Leti 360.
Hope it will be materialise soon
sir really very explantion of your experience, while reading your post i was lost in the hilly areas of himachal and really want to explore the place u have mentioned in your post, very well explained and narrated. want to continue your post. gud luck
Hi Pankaj Ji
It feels really nice that you like the post.
Hope, you will show the same love and affection on the coming posts too.
Than again… :)
I guess Ravi, Paras and Suji were lucky to have you around in that serene setup. Thank you Mr. Singh. Looking forward to Renuka and Paonta from the new HP laptop.
Hi Nandan
I do not think the same way as you commented, on the contrary, they termed us old fashioned and conservative in their own coined terminology.
Although, these were two happy days experienced by me and Tyagi Ji, in which we were free from the tension of meeting their demands of shopping and eating (and, here I am including their moms too… LOL)
We set them free to explore the things, and when felt hungry…. visit the dining area not to us!
Beuatifully explained… the best attraction of Sirmaur is Renuka lake… waiting for that
Hi SS Sir
Thanx for the comment.
Yeah!, you are absolutely right that Renukaji Lake is the best attraction of Sirmour.
I know you have been there for couple of times, so it will be a challenge to find out, if you like its description or not…!!!
See you soon on the next post… :)
gurmukho!
bahut vadiya hindi likde ho tussi. saade wallon shabashan. post karde rahio sir ji.
sat sri akaal.