ताशी विउ प्वाइंट से हमने उत्तरी सिक्किम राजमार्ग की राह पकड़ी और थोड़ी ही देर में समझ लिया कि पहाड़ पर आने के पहले भगवान को अच्छी मनःस्थिति यानि ‘Good Humor’ में रखना इतना जरूरी क्यूँ है ? बाप रे.. एक ओर खाई तो दूसरी ओर भू-स्खलन से जगह जगह कटी फटी सड़कें !
अन्नदाता के ऊपर से बस एक चट्टान खिसकाने की देरी है कि सारी यात्रा का बेड़ा गर्क ! और अगर इन्द्र का कोप हो तो ऐसी बारिश करा दें कि चट्टान आगे खिसक भी रही हो तो भी गाड़ी की विंडस्क्रीन पर कुछ ना दिखाई दे ! खैर हम लोग कबी और फेनसांग तक सड़क के हालात देख मन ही मन राम-राम जपते गए !
फेनसांग के पास एक जलप्रपात मिला ! हमारा समूह तसवीरें खिंचवाने में उत्सुक नहीं दिखा तो हमने अपना कैमरा घुमाया । सामने बैठी एक विदेशी बाला गिरते पानी के प्रवाह से ऐसी मंत्रमुग्ध थी मानों जन्नत में विचरण कर रही हो । ये देख के स्वतः क्लिक का बटन दब गया और नतीजा आप सब के सामने है । :)
फेनसांग से मंगन तक का मार्ग सुगम था ! इन रास्तों की विशेषता ये है कि एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ जाने के लिये पहले आपको एकदम नीचे उतरना पड़ेगा और फिर चढ़ाई चढ़नी पड़ेगी ! मंगन पहुँचते पहुँचते ये प्रक्रिया हमने कई बार दोहरायी । ऐसे में तीस्ता कभी बिलकुल करीब आ जाती तो कभी पहाड़ के शिखर से एक खूबसूरत लकीर की तरह बहती दिखती ।
मंगन बाजार में अपने एक पुराने सहकर्मी की तालाश में हम रुके । पता चला कि वो सड़क से थोड़े नीचे ही रहते हैं । खैर, मुलाकात भी हो गई पर पहाड़ के इस थोड़े नीचे का मर्म वापस चढ़ते समय ही पता लग सका जब अंतिम चार सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते हालत खराब हो गयी।
शाम के 4.30 बजे तक हम चुन्गथांग में थे । लाचेन और लाचुन्ग की तरफ से आती जल संधियाँ यहीं मिलकर तीस्ता को जन्म देती हैं। थोड़ा विश्राम करने के लिये हम सब गाड़ी से नीचे उतरे। चुन्गथांग की हसीन वादियों और चाय की चुस्कियों के साथ सफर की थकान जाती रही ।
शाम ढ़लने लगी थी और मौसम का मिजाज भी कुछ बदलता सा दिख रहा था ।यहाँ से हम शीघ्र ही लाचेन के लिये निकल पड़े जो कि हमारा अगला रात्रि पड़ाव था । लाचेन तक के रास्ते में रिहाइशी इलाके कम ही दिखे । रास्ता सुनसान था, बीच बीच में एक आध गाड़ियों की आवाजाही हमें ये विश्वास दिला जाती थी कि सही मार्ग पर ही जा रहे हैं । लाचेन के करीब 10 किमी पहले मौसम बदल चुका था । लाचेन घाटी पूरी तरह गाढ़ी सफेद धुंध की गिरफ्त में थी और वाहन की खिड़की से आती हल्की फुहारें मन को शीतल कर रही थीं ।
6 बजने से कुछ समय पहले हम लगभग 9000 फीट ऊँचाई पर स्थित इस गांव में प्रवेश कर चुके थे ! पर हम तो मन ही मन रोमांचित हो रहे थे उस अगली सुबह के इंतजार में जो शायद हमें उस नीले आकाश के और पास ले जा सके ! कौन थी वो खूबसूरत जगह जिसे देखने का सपना ले के हम घर से निकले थे? और कितनी ऊपर जाना था हमें ये विवरण अगले हिस्से में…..
Beautiful & lively pics. Well written post with good suspense.
Thx. !
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Thanks.
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Hindi me bhi achchha likhate ho
Shukriya !
Back to back story on Sikkim :-) Just read Tanny’s log on his bike ride.
To repeat what I wrote on this blog. I am just back from a Kumaon (Munsyari) trip and my friend, who flew to Delhi to give us a great company along with his wife and 5 year old son, has just been to Gangtok and then to Lachung and other areas. I didn’t know that Kanchanjunga is referred as Tashi out there, though I once went to Gangtok on a touristy trip. He told us stories about North Sikkim and here I find myself reading some of the best logs in Hindi. Great coincidence.
In the first pic, is it the car bonnet ? At first I thought that you are really using that big a area for the copywrite message :-)
Yes North Sikkim is really beautiful.
mahnat karate ho taveer saaf suthareeri