भाग ३- बीकानेर से जयपुर और जयपुर
सुबह करीब सात आठ बजे हम जब बीकानेर से निकलने लगे तो मौसम ठीक ठाक ही लग रहा था लेकिन जैसे ही हाइवे पर पहुंचे, वहाँ घना कोहरा हमारा इंतज़ार कर रहा था| गाड़ी की रफ़्तार घट कर २०-३० किमी/घं रह गयी, गाड़ियां एक दूसरे के पीछे रेंग रहीं थीं| ऐसे में रास्ते में एक जगह हमने एक होटल ढूँढा और वहाँ बढ़िया नाश्ता और चाय का सेवन किया गया, सोचा था कि कोहरा कम हो जाएगा लेकिन, नहीं, किस्मत साथ नहीं थी| खैर रूकने का भी कोई मतलब नहीं था और हम चल दिए जयपुर के रास्ते| करीब ग्यारह बजे जाकर कोहरे ने कम होना शुरू किया और तब हमने थोड़ी रफ़्तार पकड़ी| जाने का रास्ता हमने श्री दुन्गागढ़ और रतनगढ़ होते हुए लिया, और फिर सीकर होते हुए NH-11 से निकल लिए| एक बार कोहरा कम हुआ तो हम रफ़्तार पकड़ चुके थे| हम दोपहर के करीब २ बजे तक जयपुर पहुँच गए और वहाँ पर आगरा रोड पर एक दोस्त के फ़ार्म हाउस में रुके जहां बहुत अच्छा इंतज़ाम था| शाम को हम लोग जयपुर में कुछ खरीददारी करने गए और वहाँ महिलाओं को तो मज़ा गया| वापस आकर खाना पीना खाकर सो गए और अगले दिन निकल पड़े आमेर का किला देखने|
आमेर का किला
आमेर का किला बहुत बड़ा है और एक दिन में इसको पूरा देखना बहुत मुश्किल है| आमेर का किला जयपुर से १० किमी बाहर आमेर में है लेकिन लगता है कि जयपुर में ही है क्योंकि रास्ते में हर जगह आबादी ही आबादी है| किला थोड़ी ऊंचाई पर एक छोटी से पहाड़ी पर है| इस किले को मीणा राजा अलन सिंह चांडा ने बनवाया था और इसका निर्माण कई बार में सन ११०० और १७२७ के बीच हुआ था| इसके मुख्य हिस्से का निर्माण अकबर के ज़माने राजा मान सिंह और उसके बाद राजा जय सिंह प्रथम ने करवाया था|
किले पर पहुँचने पर सबसे बड़ी समस्या आती है पार्किंग की| खैर एक गाइड मिला तो उसको साथ लेकर गाड़ी से ही किले की ओर चल दिए| किले में पार्किंग का रास्ता तंग गलियों से होकर है और चड़ाई की वजह से गाड़ी पहले गियर में ही चलती है| करीब आधे घंटे में पार्किंग मिली| फिर उतर कर किले के अंदर सूरज पोल नामक प्रवेश द्वार से प्रवेश किया गया| किला काफी बड़ा है, खासतौर से उसकी चारदीवारी बहुत बड़ी है, उसका चक्कर लगाने के लिए कम से कम एक दिन चाहिए| हमारे पास जो वक्त था उसके हिसाब से केवल किले का मुख्य हिस्सा ही देख सकते थे| किले में देखने की कई जगहें हैं| किला देखने में काफी प्रभावशाली है और राजपूत राजाओं के गौरवकाल की तरफ इशारा करता है| किले के चार प्रमुख हिस्से हैं जिनके अपने दरवाजे हैं और हर एक का अपना एक कोर्टयार्ड यानी प्रांगण है|
पहले हिस्से में सूरज पोल से जाने पर मिलता है जलेब चौक जहां सैनिकों के रहने के लिए बैरकें बनी हैं| जीत के जश्न को देखने के राजसी महिलाओं के लिए झरोखे भी बने हैं| इस हिस्से को सवाई जय सिंह के कार्यकाल में बनवाया गया था| जलेब चौक के बाद इस हिस्से का प्रांगण है जिसके एक किनारे पर शिला देवी का मंदिर है| मंदिर का दरवाजा काफी प्रभावशाली है और इस पर तरह तरह की बनावटें हैं| इसके पीछे कहानी यह है कि राजा को सपने में देवी ने दर्शन दिए थे और उसके उनहोंने बंगाल के राजा को युद्ध में हराया था| देवी की मूर्ति को समुद्र से एक पत्थर लाकर उस पर नक्काशी करके यहाँ स्थापित किया गया था, इसीलिए नाम पड़ा शिला देवी| नवरात्री के दिनों में यहाँ बलि की प्रथा भी है| हम मंदिर के अंदर नहीं जा पाए क्योंकि पट बंद थे|
दूसरे हिस्से में एक प्रांगण है जहां दीवान-ए–आम मतलब आम जनता को सुनने सुनाने के लिए बुलाया जाता था| ये हिस्सा पत्थर के कालमों पर बना हुआ है|
तीसरे हिस्से में राजा, उनके परिवार और कर्मचारियों के रहने के लिए जगहें बनी थीं| प्रवेश द्वार से घुसने के बाद पहले आता है बाईं तरफ बना हुआ जय मंदिर जिसकी दीवारों और छत पर कमाल की कांच और कई चीज़ों की नक्काशी है| ये हिस्सा काफी ख़ूबसूरत है और उसको शीश महल भी कहा जाता है| जय मंदिर के ठीक सामने है सुख महल जिसके नाम से ही लगता है कि यहाँ राजा जी अय्याशी करते थे| इसका प्रवेश एक चन्दन से बने दरवाजे से होता है जिसमें संगमरमर का काम भी है| इसमें पानी के पाइप इस तरह से बिछाए गए हैं जो कि गर्मियों में वातानुकूलन यानी एयरकंडीशनिंग का काम करते हैं| ये पानी बाहर बगीचे में छोड़ दिया जाता था| मुझे ये इंजीनियरिंग काफी पसंद आयी| कहा जाता है कि हाल से मावता झील का भी अच्छा दृश्य दिखता है जिसके पानी में किले का प्रतिबिम्ब दिखता था, जो कि सुरक्षा की दृष्टि से बनाया गया था|
शीश महल का एक मुख्य आकर्षण है जादुई फूल जिसको कि एक संगमरमर के एक टुकड़े पर बनाया गया है| इसको जादुई इसलिए कहते हैं क्योंकि इसके अलग अलग हिस्सों को हाथ से ढकने पर इसमें सात चीज़ें देख सकते हैं: मछली की पूँछ, कमल, फन वाला कोबरा, हाथी की सूंड, शेर की पूँछ, भुट्टे का ऊपरी हिस्सा, और बिच्छू|
किले के इस हिस्से के दक्षिण में राजा मान सिंह प्रथम का महल भी है जो कि शायद सबसे पुराना हिस्सा है| इस भाग का मुख्य आकर्षण है बारादरी पैवेलियन जो कि खम्भों पर बना हुआ है और काफी ख़ूबसूरत है| इस हिस्से को राजा साहब अपनी रानियों से मिलने के समय करते थे| ये हिस्सा बालकनी सहित कुछ कमरों से भी जुड़ा हुआ है और यहाँ से एक दरवाजा आमेर गाँव में भी निकलता है जहां कई सारे मंदिर हैं|
जय मंदिर और सुख निवास के बीच में एक बगीचा भी है जिसके बीच में एक षटकोण के आकार का एक हिस्सा है जिसके चारों तरफ पानी के पाइप है और बीच में एक झरना है|
यहाँ पर दो दरवाजे भी हैं: त्रिपोलिया दरवाजा और शेर दरवाजा| पश्चिम में स्थित त्रिपोलिया दरवाजे के असल में तीन पट हैं, एक खुलता है जलेब चौक को, दूसरा मानसिंह महल को और तीसरा जनानखाने की तरफ| शेर द्वार एक बड़ा सा पट है जो कि महल के निजी हिस्सों में खुलता है| इसको राजा मान सिंह ने बनवाया था|
किले के चौथे प्रमुख प्रांगण में है जनानखाना जहां शाही औरतें और उनकी दासियाँ रहती थीं| यहाँ कई कमरे हैं जिनके झरोखों से महिलायें बिना खुद को दिखाए बाहर देख सकती थीं|
फिर कुछ और देखने का समय नहीं मिला और हम जलमहल और हवामहल बाहर से ही देख कर निकल गए|
Wow Ashish, what beautiful photographs. Maza aa gaya. I have been to Jaipur and the Jaigah Fort but missed Aamer Quila. No think i have visited it too.
Simply awesome.
Regards
Anupam Mazumdar
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Thanks guys for your comments. ????? ????? ?? ???????? ?? ??? ???? ?? ????? ??? ?? | ???? ?? ?? ??? ?? ?? ?? ??? ??? ??? ?? ????? ?? ???? ???? ????|
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Very good post Mr. Scientist and Teacher…………………..
Very beautiful photos and description . Hawa Mahal is looks really amazing……….
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Aamer gaye 15 saal ho gaye..kile ke bahar jheel ka hissa bilkul aklag sa dikh raha hai. Jadui phool ke bare mein jaaankar achchha laga.
Welcome back, Ashish. Great pics of the Aamer fort and very interestingly narrated. I especially liked the way you blurred the wires in the foreground of the Hawa Mahal by reducing the depth of field. Your description of the magic flower (jaadooi phool) was very intriguing. I wish you had shown us a few pics of this flower.