कुदरत ने भी पहाडो को हर मौसम में अलग अलग खूबसूरती दे रखी है ,और अभी तो मौसम है बरसात का जब पहाड़ो की हरियाली अपने चरम पर होती है ,हाल में आये उत्तराखंड में जो तबाही हुई वो शायद उत्तराखंड के इतिहास में दर्ज हो जायेगा की प्रकति जब अपना आपा खोती है तो सिर्फ तबाही का ही मंजर होता है ,पर शायद जो जान माल की हानि हुई वो इंसान के द्वारा किये गए क्रिया कलाप से हुए है,बाढ़ ,भूस्खलन ,ये तो प्रकति की स्वत चलने वाली प्रक्रिया है पर इससे होने वाली हानि इतनी बड़ी क्यों हुई अगर हम अब भी सुधर जाये तो शायद प्रकति हम पर कुछ रहम कर दे…
खैर बात कर रहा हूँ पहाडो की हरियाली की वो भी बरसात के मौसम में…घुमक्कड़ी का कीड़ा कब काट ले कुछ पता नहीं चलता ,मन में पहाडो की हरियाली ,वंहा उतरते बादल,घने जंगल ,ये सभी आने लगे ,निश्चय कर लिया की चलते है हिमाचल की ओर, जगह चुनी गयी चायल जो की सोलन जिले में है शिमला कालका मार्ग में कंड़ाघाटसे दाहिने ओर जाती एक सड़क पर करीब २५ किलोमीटर की दुरी पर है..दिन तय किया गया शनिवार ६ जुलाई की ,जाने का साधन अपनी भरोसेमंद आल्टो कार से हुआ हालाँकि इसकी सर्विस अभी होनी बाकी थी पर हवा पानी अगर सही तो फिर सड़क पर भगा लो फर्राटे से…एक बात और तय की गयी की चायल पहुँच कर होटल में खाना नहीं खाना है ,खुद बनाना है,इसके लिए छोटी गैस सिलिंडर,और खाना बनाने के लिए जरुरी सभी सामान जैसे बर्तन,तेल,नमक मसाले आदि सभी पैक कर लिए गए और तय किया गया की चायल के जंगलो में उतरते बादल के बीच चिकेन और चावल बनाने का आनंद लिया जायेगा..
हालाँकि जाने का प्लान अकेले ही था पर सोचा सफ़र में एक साथी और रख लिया जाए तो बेहतर है,इससे पहले अकेले ही चोपता के जंगलो में चिकेन बनाने का आनद ले चूका था .अपने मित्र जिसका नाम प्रदीप है उसे फ़ोन कर के प्लानिंग बताई गयी ..चिकेन चावल और चायल का नाम सुनते ही जाने के लिए तैयार हो गया.घुमक्कड़ी की सबसे अजीब बात ये है की अगर सुबह जल्दी निकलना हो तो रात में नींद ही नहीं आती हालाँकि सब कुछ पैक कर लिया था फिर भी मन घुमने की उमंग के कारण नींद ही नहीं आई..खैर सुबह के चार बजे उठ गया सब कुछ निबटा कर ..अपने मित्र प्रदीप को लेने आश्रम गया और उधर से रिंग रोड पकड़ कर सीधा चंडीगढ़ हाईवे पर आल्टो दौड़ा दी..
बरसात में घुमने की सबसे अच्छी बात ये रहती है की नजदीक के और कम उंचाई पर बसे पहाड़ी शहर भी बादलों के बीच बड़े सुन्दर लगते है ,खैर 12 बजे के आस पास सोलन पहुच गए ..और वंहा से सीधा कंड़ाघाट होते हुए चायल के रास्ते पर आल्टो दौड़ा दी.. हालाँकि हरियाली चारो तरफ थी पर अभी तक एक ही बात निराश किये जा रही थी की कंही भी बादल उतरते नहीं दिखे थे ..खैर ये शिकायत भी जल्दी ही दूर हो गयी रास्ते में साधुपुल नाम की एक जगह आती है जो की चायल से १५ किलो मीटर पहले है इस जगह को पार करते ही बादलो ने सड़क पर अपने डेरा जमा लिया ..वाह …..यही पहला शब्द हमारे मुँह से निकला..जैसे जैसे चायल की ओर गाडी जा रही रही थी जंगल और घने होते जा रहे थे और बादलो का घनत्व बढ़ता जा रहा था ..मन में आया की यंही कंही कार रोककर गैस चूल्हा निकाल कर चालु हो जाऊं पर बनाऊंगा क्या चिकेन तो थी नहीं अपने पास …राह चलते एक आदमी से पता किया की कान्हा मिल सकता है चिकेन तो उसने बताया की चायल में ही मिलेगा ..फिर क्या था चल दिए चायल की ओर ..
चायल पहुचते पहुचते एक से बढ़कर एक नज़ारे दिख रहे थे मेरे ख्याल से चायल की खूबसूरती,कुफरी और शिमला की भीड़ से कंही अधिक अच्छी है ..आपको यंहा आकर ये कभी नहीं लगेगा की आप शिमला जैसे जैसे भीड़ भाड़ वाले हिल स्टेशन से इतने करीब है ,गिने चुने कुछ होटल ,छोटा सा बाज़ार ,एक बस स्टैंड और चारो तरफ देवदार और चीड़ के घने जंगले ..समुद्र तल से २२०० मीटर की उंचाई पर बसा ये छोटा सा हिल स्टेशन काफी सुन्दर है,चूँकि जुलाई महिना चालु हो चूका था तो और बरसात में वैसे भी अधिक भीड़ नहीं होती ..तो होटल में जगह भी सस्ते दामो में मिल जाते है ..पहुचते ही एक होटल जिसका नाम होटल कैलाश है उसमे शरण ली गयी ..होटल मालिक से बाकी जानकारी ली गयी की बाहर पिकनिक मानाने के लिए कौन सी जगह बेहतर रहेगी ..पहले तो उसने कहा की आपलोग बरसात में लकड़ी नहीं जला पाओगे फिर जब हमने बताया की हम गैस चूल्हा लाये है तब उसने चायल कुफरी मार्ग और काली का टिब्बा वाले मार्ग पर जाने की सलाह दी ..एक बात और थी की बारिश तो हो रही थी पर झरने कंही भी हमे नहीं मिले थे .मतलब आप समझ ही गए होंगे की खाने की चीजे कैसे धोयी जायंगी ..इस समस्या निबटने के लिए १० लीटर वाला एक प्लास्टिक का गैलन ख़रीदा गया और उसमे पानी भर लिया गया..
चिकेन मिलने में कोई परेशानी नहीं हुई ..और इस तरह हम निकल चले चायल कुफरी मार्ग,चायल कुफरी मार्ग चारो तरफ घने देवदार और चीड़ के पेड़ो से घिरा हुआ है ..बड़ा ही मनमोहक नज़ारा था एक तो घने घने देवदार के पेड़ और ऊपर से मानसून का जादू ..बादलों ने पुरे मार्ग तथा वनों पर कब्ज़ा कर रखा था ..इसी दिलकश नज़ारे को देखते हुए मार्ग में एक चौड़ी जगह देख कर गाडी वंहा रोक दी गयी और निकाल लिया गया अपना रसोइखाना..घने जंगल और बादलों के बीच चिकेन बनाने की हसरत पूरी हो रही थी ..बारिश तो हो रही थी पर पानी की बुँदे पेड़ो से छनकर कर फुहारों के रूप में आ रही थी ..फुहारों से बचने के लिए कार के कवर को तम्बू की तरह इस्तेमाल किया गया ..चारो तरह शान्ति ही शान्ति ही थी..फुहारों की आवाज उस वातावरण में मिश्री घोल रहे थे ..हाँ बीच बीच में कुछ गाडी वाले रोककर हमारे रसोइखने में नजर जरुर डाल रहे थे और मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जा रहे थे..बनाने और खाने में ही ३ घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला ..बारिश तेज़ होती जा रही थी ..हम अपना रसोइखन समेत ही रहे थे के एक हिमाचली जोड़ा हमारे पास आकर रुक गया और उसने पूछा की आप लोग किस तरफ जाओगे ..मैंने कहा वापस चायल ही जायेंगे ..वह जोड़ा शादी के बाद पहली बार अपने ससुराल(लड़की का) जा रहा था ..कोई साधन न मिलने की वजह से पैदल ही चलना पड़ रहा था ..उनलोगों ने कहा अगर उसके गाँव कोटि अगर हम पहुंचा देंगे तो ३०० रूपया देंगे ..हमने कहा भाई हम तो घुमक्कड़ है घुमने आये हैं पैसा ले क्या करेंगे ..ऐसा करते है हम आपको आपके गाँव पंहुचा देते हैं और आप हमें अपना गाँव घुमा दो ..खैर उस जोड़े को उसके गाँव पंहुचा कर रात में ८ बजे वापसी हुई होटल में ..पूरा दिन ही काफी शानदार गुजरा था हमारा ..होटल पहुच कर दोपहर का बचा खाना कह कर बिस्तर पर लेट गए..
अगले सुबह नींद खुली तो याद आया की अरे हम तो पहाड़ो के बीच आए है और सो कर अपना टाइम खराब कर रहे है,बस फिर क्या था रोज़ के क्रियाकलाप निबटा कर प्लान बनाने लगे की की किधर का रुख़ किया जाए,तो सबसे पहले दिमाग़ मे फिर रसोइगिरी करने करने का भूत सवार हो गया ..पर बाहर देखने पर पता चला की बरसा रानी अपने पूरे अपने चरम पर है ,पर मन मे आया उत्साह कम ही नही हो रहा था..फिर क्या था ,पूरी और आलू सब्जी को होटल मे खा कर निकल चले चायल के जंगलो मे..इस जगह एक बात का ज़िक्र करना चाहूँगा की चायल है तो एक छोटा सा पहाड़ी कस्बा,पर आपको ज़रूरत की सभी चीज़े मिल जाएँगी ,और हाँ इस जगह अगर आप आए और ब्रेकफ़ास्ट करने की जगह सोच रहे हो तो होटल कैलाश के आलू पूरी ज़रूर आज़माए …बिल्कुल घर जैसा स्वाद था…
खैर खाने के बाद हम लोग काली का टिब्बे की ओर निकल चले…काली का टिब्बा चायल की सबसे उँचाई वाले चोटी पर है जँहा से सोलन और शिमला का शानदार नज़ारा दिखाई पड़ता है.पर मानसून के कारण इस समय कुछ भी नज़र नही आ रहा था पर इतनी उँचाई वाले जगह से बादल भी हुमलोगो से नीचे नज़र आ रहे थे ..काली का टिब्बा तक आने वाली सड़क काफ़ी संकरी है ,थोड़ी सावधानी बरतनी ज़रूरी है,पर पूरे रास्ते आपको घने जंगलो की खूबसूरती आपका मन मोह लेगी ..और जब आप बिल्कुल उँचाई पर पंहुच जाएँगे तो सामने ही मंदिर और आस पास मानव निर्मित विशाल मंदिर की इमारत जो की बहुत ही खूबसूरती से इतनी उँचाई पर बनाया गया है जिसे देखकर आपका मन उल्लासित हो उठेगा ..शायद ये ऑफ सीज़न का कमाल था या मंदिर का पवित्र वातावरण …आपको इस जगह आते ही एक मन को खुशी देने वाली शांति मिलेगी..खैर मंदिर का दर्शन कर हुमलोग वापस चल पड़े अपना रसोइगिरी करने के लिए किसी उपयुक्त जगह की तलाश मे ..जल्दी ही हमे वो जगह भी मिल गयी..फिर क्या था
मार्केट मे जाकर खरीदारी कर के वापस उसी जगह चिकेन और चावल को बना कर खाने का आनंद लिया गया ..शायद भगवान भी हम पर मेहरबान थे की खाना बनाते बनाते चारो तरफ से बादलो ने हमे घेर लिया ..एक अलग ही आनंद आ रहा था उस समय तो एसा लग रहा था की अगर हमे सात सितारा होटेल मे खाने का ऑफर मिले तो हम उसे नकार कर इसी जगह आकर खुद खाना बना कर खाना पसंद करेंगे..खैर हम लोगो ने जो इस ट्रिप मे महसूस किया उसे शायद शब्दो मे उतारना मुश्किल है,अगर आप अपनी गाड़ी से किसी भी हिल स्टेशन पर जाए तो कोशिश करे की कम से कम से एक बार पहाड़ो के बीच रसोइगिरी करने का आनंद ले,यकीन मानिए बहुत मज़ा आएगा,और खाना चाहे ही भले ही अच्छा ना बने पर पहाड़ो की हसीन नज़ारे आपके खाने का स्वाद बढ़ा देंगे…….खैर अब इज़ाज़त दीजिए…अगली बार फिर किसी पहाड़ो के बीच रसोइगिरी करता मिलूँगा……..
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Very well written rakesh, its really very good to cook at your own in such places. I have never been to this place Chail, probably visit this place very soon. Keep writing and keep sharing your travel experiences.
thank you pradeep..chail is a must visit place if one compare crowded hill with this lonely and calm place..self cooking gives different pleasure ..just try it..it will great fun…
Your enthusiasm is all over the log, Rakesh. I have been to Chail twice and we loved the place. It is away from the maddening crowd.
It must have been an awesome experience, cooking in this setup. I remember one more story where someone did this. Kudos and thank you for inspiring us to do this on our trips to hills.
Thank you nandan sir for encouraging words …me too gone through that post to whom you are talking about…once again thank you.
…idea of chicken -chawal cooking..is very innovative, interesting and mouth watering..
thank you h.l singh… if you are enjoying cooking in hill station, surrounding environment makes food more palatable and mouth watering…
Such a wonderful post Rakesh. I was not aware about this place before. To us (people of Bengal) Himachal means Simla. But I suppose this is a far more beautiful place with serenity all around. I really envy you guys cooking and having chicken and chawal at this wonderful mystic place.
Mountains in monsoon are something I die for. Shower-fresh green leaves and clouds brushing your skin is altogether a different experience.
The photo of snake plant which you have put is also found in Neora Valley Forest area in Darjeeling District. It is indeed a unique creation of God.
Keep travelling and keep posting.
thank you Sharmistha..in my observation people of Bengal are real ghumakkar ..i found every where their presence in uttrakhand or himachal ..in uttrakhand remote area like deoriataal,chopta there is preponderance of bengaali ghumakkar…you are right, beauty of mountain in monsoon is fantastic..and on the top of this if you are enjoying cooking in misty environment …we can see plant which looks like snake in approximate every higher mountain area..thank you once again..
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“…??? ???? ??? ??? ?? ?? ?????????? ??? ??? ??? ?? ??? ??…” but, I will surely ask for my share if I come across you in future.
Very nice to come across this post Rakesh. Whatever little I saw in Chail & Solan valley, it’s beautiful. I couldn’t stay there, just passed through, but this place is on our radar for quite some time.
Yeah…one can just look at you and feel how much you have enjoyed this trip…hills during monsoon is very romantic too and no doubt Ghumakkars like such places so dearly.
Keep traveling…and keep cooking. Hope to have my share of Chicken some other day.
Amitava sir ,how are you..thank you for such a beautiful comment..in future if come across me in such kind of circumstances need not to ask for sharing just come and attack( he he he) …monsoon magic,hill station and self cooking gives a wonderful cocktail…thank you and HAPPY DURGA PUJA..
ha ha ha
Tx.
Not going home this year. We are on our way to bring idols now.
Happy Durga Puja to you and to all my friends.
Hi Rakesh,
Photos of you cooking chicken on the roadside did bring a smile! I do hope you guys picked up the litter after the feast!
Enjoyed the post with pretty monsoon photos in Chail.
Hi Niredesh sir
good to know that you enjoyed the post..yes we too want our mountain must be clean always..so i always remember to pick up the litter …
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Hi Rakesh
A good post, with a novel idea of cooking on the road and that too a chicken!
Great idea!
Undoubtedly mountains look great during rains, although a bit risky.
Nice to read something different.
hello Avtar sir
Thanks for reading the post.. really cooking on any trip gives a unbeatable enjoyment..
hope you will try this on you next mountain visit..thanks once again..
That’s really something new, exciting and the way you narrated the story urges me to do so. The mix of clouds, mountains during monsoon, serenity and cooking chicken & rice is really enticing.
Nice pics
thanks for sharing such a wonderful idea and giving us an exciting reason to visit mountains once more.
Thank you mukesh kumar ji for liking my post..it was really a great fun by cooking chicken in misty environment of lovely mountain..hope you will also try this ….thanks again for lovely comment..