ओंकारेश्वर मन्दिर में दर्शन करने के बाद हम लोग ममलेश्वर मंदिर की ओर चल दिए। ममलेश्वर मंदिर एक बहुत पुराना मंदिर है, यह ओंकारेश्वर मंदिर से नर्मदा नदी के दूसरे तट पर मौजूद है। ओंकारेश्वर एक प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन माना जाता है कि ममलेश्वर ही वास्तविक ज्योतिर्लिंग है।
इसका सही नाम अमरेश्वर मंदिर है। ममलेश्वर मंदिर नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर 10 वीं सदी में बनाया गया था। यह मंदिरों का एक छोटा सा समूह है। अपने सुनहरे दिनों में इसमें दो मुख्य मंदिर थे लेकिन आजकल केवल एक बड़े मंदिर को ही भक्तों के लिए खोला जाता है। मंदिरों का यह समूह एक संरक्षित प्राचीन स्मारक है।
हम ममलेश्वर मंदिर तक पहुंचने के लिए मुख्य सड़क से पहले काफी नीचे उतरना पड़ा और फिर सीड़ियों से चढ़ाई करनी पड़ी। पूरे रास्ते में भगवान के चड़ावे के लिए बिल्व पत्र, फूल और मिठाई के पैकेट स्टालों पर बिक रहे थे। ममलेश्वर मंदिर ज्यादा बड़ा मंदिर नहीं है। भगवान शिव, शिवलिंग रूप में पवित्र स्थान के केंद्र में मौजूद है। पार्वती माता की मूर्ति दीवार पर मौजूद है। ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग में आप खुद के द्वारा शिवलिंग को अभिषेकं कर सकते हैं और छू सकते हैं । ममलेश्वर के मुख्य मंदिर के चारों ओर भगवान शिव के कई छोटे मंदिर हैं।
ममलेश्वर मंदिर में आने वाले श्रदालुओं की संख्या ओंकारेश्वर की तुलना में दसंवा हिस्सा भी नहीं थी। जहाँ एक और ओंकारेश्वर में काफी भीड़ थी और दर्शनों के लिए धक्का मुक्की हो रही थी, यहाँ भीड़ बिलकुल भी नहीं थी। लोग आराम से दर्शन कर रहे थे।जहाँ ममलेश्वर मंदिर में आप शिवलिंग को स्वयं अभिषेक कर सकते हैं, छू सकते हैं, तस्वीरें ले सकते हैं वहीँ ओंकारेश्वर में यह सब कुछ वर्जित है। भगवान से फुर्सत से मिलना सचमुच काफी सकून दायक होता है। लेकिन कम भक्तों के कारण शायद चढ़ावा भी कम होता है जिसका असर मंदिर की देखरेख पर साफ दिख रहा था। मंदिर के गर्भ गृह के आस पास सफाई नगण्य थी।
मुख्य मंदिर में आराम से दर्शनों के बाद मैं आसपास तस्वीरें लेने लगा ओर मेरे दोनों साथी बाहर बैठ कर मेरी प्रतीक्षा करने लगे। मंदिर की दीवारों पर काफी अच्छी मूर्तिकारी की हुई है। इसी मूर्तिकारी के कारण ही इस मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया हुआ है।
मंदिर के गर्भ गृह के सामने नंदी जी की विशाल मूर्ति है। एक अन्य मंदिर भी वहां पर था जिसके बाहर ताला लगा हुआ था।
ममलेश्वर मन्दिर में दर्शन करने के बाद हम लोग बस स्टैंड की ओर चल दिए। ममलेश्वर मंदिर से एक शार्ट कट सीधा बस स्टैंड की तरफ़ निकलता है जिससे आप सीडीयाँ उतरने व दोबारा चढ़ने के झंझट से बच सकते हैं।
ओंकारेश्वर आने से पहले मैंने घुमक्कड़ पर मुकेश भालसे जी से आस पास के घुमने योग्य इलाकों की जानकारी मांगी थी। उन्होंने मुझे महेश्वर व देवास जाने की सलाह दी थी। इसलिए हमने अपने प्रोग्राम में महेश्वर को शामिल किया था । हमारा प्रोग्राम यहाँ से महेश्वर जाने का था और शाम को इंदौर लौटना था, जहाँ हमने पहले से ही कंपनी के गेस्ट हाउस में कमरा बुक करवा रखा था, लेकिन बस स्टैंड से महेश्वर के लिए कोई बस नहीं थी। एक बस ड्राईवर से पूछने पर उसने बताया की अब महेश्वर जाने को यहाँ से कोई सीधी बस नहीं मिलेगी और और यदि मोरटक्का से बस मिल भी जाती है तो भी आप शाम को ही वहाँ पहुँच सकते हैं और वहाँ से रात को इंदौर पहुँचना बहुत मुश्किल हो जायेगा।
रेलगाड़ी के चार घंटे लेट आने और बस में काफी समय ख़राब होने से महेश्वर जाने के लिए अब समय कम पड़ रहा था। वैसे मेरी इच्छा ओंकारेश्वर परिकर्मा करते हुए बड़े हनुमान, खेड़ापति हनुमान, ओंकार मठ, माता आनंदमयी आश्रम, ऋणमुक्तेश्वर महादेव, गायत्री माता मंदिर,नरसिंह टेकरी व कुबेरेश्वर महादेव आदि मंदिरों के दर्शन की भी थी लेकिन तेज धुप तथा काफ़ी गर्मी होने से दोनों साथियों ने मना कर दिया।
हमने महेश्वर जाने का प्रोग्राम रद्द किया और खाना खाने के लिये बस स्टैंड के पास मौजूद एक भोजनालय में चले गये। सुबह की अपेक्षा अब खाना अच्छा था। खाना खाने के बाद हमने इंदौर के लिये बस ले ली। सुबह की अपेक्षा इस बस कि गति ठीक थी लेकिन फ़िर भी 70 किलोमीटर की दुरी तय करने में 2 घंटे लग गये। हमें इंदौर में ट्रांसपोर्ट नगर पहुँचना था इसलिये बस ड्राईवर के कहे अनुसार हम बस स्टैंड से पहले ही उतर गये। वहाँ से हमारा गेस्ट हाउस लगभग 2 किलोमीटर था लेकिन रिक्शा या आँटो रिक्शा करने कि बजाय हम पैदल ही इंदौर के बाजारों में घूमते हुये वहाँ चले गये। गेस्ट हाउस बहुत बढिया बना हुआ था। कमरे पर पहुँचकर सबसे पहले चाय पी और केयर टेकर को रात के खाने के लिये बोल दिया। थोड़ी देर आराम करने के बाद हम सब लोग नहाकर बाहर घूमने निकल गये। वापिस लौटकर खाना खाया, खाना काफ़ी स्वादिष्ट बना था, खाना खाकर एक बार फिर घूमने निकल गये। रात 10 बजे के करीब वापिस आकर सो गये।
अगले दिन सुबह उठ कर जल्दी से तैयार हो गए लेकिन नाश्ता लेट तैयार होने की वजह से कमरे से निकलते-२ सुबह के 10 बज गए। मेन रोड पर आकर बस स्टैंड के लिए एक ऑटो लिया और कुछ ही देर में फिर से सरवटे बस स्टैंड पहुँच गए। वहां से उज्जैन जाने वाली पहली बस पकड़ ली लेकिन इस बस ने भी कल की तरह ,इंदौर के हर चौराहे पर रुक रुक कर ,काफी समय बर्बाद कर दिया। हम जल्दी से उज्जैन पहुँच कर कल सुबह होने वाली भष्म आरती में शामिल होने के लिए आवेदन करना चाहते थे लेकिन शायद बस वाले को कोई जल्दी नहीं थी। इंदौर से उज्जैन की दुरी लगभग 80 किलोमीटर है। इंदौर से उज्जैन व् इंदौर से ओम्कारेश्वर के बीच सड़क काफ़ी अच्छी बनी हुई है । इंदौर शहर से बाहर निकलकर बस तेजी से भागने लगी लेकिन फिर भी हमें उज्जैन पहुँचते -2 दोपहर के 1 बज गए।
(कुछ तस्वीरों में कैमरे में गलत सेटिंग्स के कारन मास और वर्ष गलत है।सभी तस्वीरें 2013 की हैं। जिन तस्वीरों में वर्ष 2012 है उन में मास और वर्ष में एक जोड़ लें। समय व तिथि ठीक है। धन्यवाद!)
enjoying your posts ….looking forward for next one.
Thanks Mahesh Ji..
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Thanks Mukesh Ji..
Guest House of Indore has been selected as best maintained Guest House of BSNL in whole India.
Hi Naresh Ji
This is the real problem, one has to face all the time, when depend solely on the public transport system of our country.
The ‘BHASM arti is quite famous one, and you just missed it,,,,, so sorry!!!
Pics are nice along with your pacy write up….
Thanks Avtar Singh Ji..
Agreed, We missed BHASM arti at Ujjain only due to our public transport system.
nice post with good details.pics are good.
Thanks Ashok Sharma Ji..
beautifully written with attractive photographs…
Thanks Tiwari Ji..
Hi Naresh,
Enjoying the journey with you!
What is remarkable about MP is the vast options it offers – spiritual, natural, historical. And then there tonnes of little places to discover that do not exist on any tourist guide.
Nirdesh Ji..
Fully agree with you ..MP has the vast option. A lot of is still pending to explore..
Thanks for liking..
Thank you Naresh for your detailed log. As Mr. Singh said, in-efficient public transport system has a cascading effect on almost everything. Though you missed Maheshwar this time, I would strongly recommend it whenever you got this side again. We visited it few years back and loved it.
Thanks Nandan Ji..
Next time Maheshwar and Mandu will be covered for sure.