लेह – थिकसे(Thiksey) – रुम्त्से(Rumtse) – भाग 7

आज सुबह हम आराम से उठे यहाँ से लंच के बाद निकलने का प्रोग्राम था। आप लोगों को एक बताना भूल गया की जिस दिन हम लेह पहुंचे थे तो राहुल ने बताया की वो अपना मोबाइल कहीं भूल गया है। उसे पक्का यकीन था की मोबाइल “पैंग” मे ही छूटा था जहाँ हमने बिना सोए रात बिताई थी। इसी वजह से हम लोग लेह-मनाली रूट से ही वापस जाने वाले थे। हम लोग फ्रेश होने के बाद बाज़ार की ओर चल दिए। मैंने अपनी 2 साल की बेटी के लिए एक जैकेट ली। दुकान एक कश्मीरी युवक की थी और राहुल भी कश्मीरी है तो अच्छा मोल-भाव कर लिया था। अपनी पत्नी और बहन के लिए नेचुरल स्टोन की अंगूठी ली। सबने कुछ न कुछ लिया। हरी ने तो खुकरी (चाकू जैसा होता है) ली। ये चीजें हमने एक प्रदर्शनी मे लगी हुई दुकानों से ली थी। प्रदर्शनी का नाम याद नहीं आ रहा है। इन लोगों ने यहाँ भी फोटो सेशन कर डाला।

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यहीं पर हमने नाश्ता किया। अब करने को कुछ नहीं था और अभी 11 बज रहे थे। लंच करने मे अभी देरी थी। हम लोगों ने लेह से निकलने मे ही ठीक समझा। अभी हमे “थिकसे” monastary भी जाना था। जल्दी ही हम monastary पहुँच गए। ये बहुत ऊँचाई पर बनी हुई थी। मैंने सोच लिया था कि अगर सीडियाँ चढ़नी होंगी तो मै नहीं जाऊँगा।

"थिकसे" monastery, इतनी ऊपर पैदल चढ़ने की हिम्मत नहीं थी।

“थिकसे” monastery, इतनी ऊपर पैदल चढ़ने की हिम्मत नहीं थी।

राह चलते पूछने पर पता चला कि गाड़ी ऊपर तक जाती है वहीं पर पार्किंग की जगह है। प्रवेश करते ही एक दुकान थी। जहाँ कपड़े और chinese आइटम्स बिक रही थी। सोचा पहले monastary घूम लें फिर इस दुकान में घुसेंगे। अंदर बहुत ही शांति थी और बहुत ही सकारात्मक माहौल था।

हरी मंत्रों का चक्र घुमाते हुए।

हरी मंत्रों का चक्र घुमाते हुए।


यहाँ ज्यादा भीड़-भाड़ नहीं थी पर लोगों का आना जाना लगातार लगा हुआ था। टूरिस्ट से ज्यादा तो यहाँ लोकल लोग दर्शन के लिए आ रहे थे। यहाँ पूजा लगातार चल रही थी।
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यहाँ पर दो प्रतिमाएँ थी। एक मे बुद्ध मुस्कुराते हुए शांत मुद्रा मे और दूसरी मे गुस्से वाली मुद्रा मे। दोनों ही प्रतिमाएँ देखते ही बनती थी।

 प्रसन्न मुद्रा मे।

प्रसन्न मुद्रा मे।

 डराते हुए।

डराते हुए।

ये जगह बहुत खूबसूरत थी। हमे यहाँ बने हर कक्ष मे गए। यहाँ एक संग्रालय जैसी जगह भी थी। इसके अंदर बहुत सी मूर्तियाँ और बहुत ही सुंदर नक्काशी की हुई थी। मेरे पास कुछ फोटो है आप भी देख लीजिए।

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यहाँ पर हमने करीब 2 घंटे बिताए। क्यूँकि प्लान के हिसाब से हम रुम्त्से (Rumtse) मे रुकने वाले थे इसीलिए कोई जल्दी-बाजी नहीं थी। आखिर मे हम monastary की छत पर जा पहुँचे। छत पर बहुत तेज़ हवा चल रही थी और नीचे का नज़ारा तो देखते ही बनता था। मन करता था की कुछ दिन इसी जगह पर ही रुक जाऊँ। हवा मे एक खुशबू सी थी जो मन को मोह लेती थी।

 छत से बाएँ ओर का नज़ारा।

छत से बाएँ ओर का नज़ारा।

 छत से बाएँ ओर का नज़ारा।

छत से बाएँ ओर का नज़ारा।

मुझे स्लिप डिस्क है ऊपर से लद्दाख का ट्रिप। मुझे कमर दर्द शुरू हो गया था तभी देखा की यहाँ पर एक औषधालय है। मे अंदर गया ओर अपनी दिक्कत बताई। उन्हें समझने मे थोडा टाइम लगा मुझे ऐसा लगा कहीं गलत दवाई ना दें। तभी वहां पर एक बाँदा आया उसने डॉक्टर साहब को समझाया। तब जाकर उसने मुझे कुछ गोलियाँ दी।

 औषधालय

औषधालय

यहाँ से अब हम अगले पड़ाव की ओर निकल पड़े। रास्ते मे अब परेशानी कम हो रही थी क्यूँकि जिस रास्ते से आए थे उसी से वापस जा रहे थे। अब जगह जानी पहचानी सी लग रही थी। अच्छी धुप निकली हुई थी शाम होने मे अभी टाइम था। रास्ते का निर्माण कार्य चल रहा था। रास्ते मे बहुत से चरवाहे अपनी भेड़ो को हाक रहे थे। ये सब भेड़ वही थी जिनसे पश्मीना शाल बनती है। इनके बाल एक दम मुलायम, हलके और लम्बे थे। यहाँ के लोग जान बूझ कर इस नस्ल को पालते होंगे ताकि आमदनी अच्छी हो। और ये भी हो सकता है की लद्दाख मे सिर्फ ये ही नस्ल जिंदा रह पाती हो। ये सिर्फ मेरा अंदाजा है असलियत मुझे नहीं मालूम।

 गाड़ी से अंदर से लिया हुआ फोटो।

गाड़ी से अंदर से लिया हुआ फोटो।

लेकिन आगे चलने पर मौसम एका-एक खराब हो गया। एस लगा कहीं बारिश ना हो जाए। बारिश से सबसे ज्यादा खतरा था। पर एस कुछ नहीं हुआ पर धूप अब गायब हो गयी थी। आराम से चलते-चलते हम रुम्त्से(Rumtse) पहुँच गए। ये एक छोटा सा कस्बा है। यहाँ पर सड़क के दोनों ओर 3-4 दुकाने हैं। आज की रात हमे यहीं गुजारनी थी। शायद शाम के 5 बजे थे। अँधेरा होने मे अभी टाइम था। हम लोग और आगे जा सकते थे पर आगे बहुत दूर तक कुछ नहीं था। अगर हम अँधेरे मे भी चलते तो भी हम “पैंग” तक ही पहुँच पाते। दूध का जला छाच भी फूक-फूक कर पीता है इसीलिए “पैंग” पर रात गुजारने का तो कोई मतलब ही नहीं था। लेह से चलते वक़्त ही तय किया था की आज रात रुम्त्से ही रुकना है। गाड़ी को सड़क किनारे लगा दिया। सब लोग उतर कर एक दुकान के बाहर जा बैठे। चाय-बिस्कुट मँगवाया। बातों-बातों मे रात के रहने, खाने के इंतज़ाम का भी पता कर लिया गया।

चाय पीते ही मेरा प्रेशर बन गया। दुकान वाले ने बताया की पीछे ही नदी है वहाँ जा सकते हो। फिर बोल इतनी दूर कहाँ जाओगे, दुकान के बगल से ऊपर सीडी चढ़ कर टॉयलेट है वहीं चले जाओ। लेकिन मैंने पहला विकल्प चुना। खुले मे मज़ा ही कुछ और आता है। बाकी तीनों यहाँ भी फोटो सेशन पर चल दिए। यहाँ पर लोगों के खेत थे और पशु भी पाले हुए थे।

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राहुल खेत मे पोज़ देते हुए।

राहुल खेत मे पोज़ देते हुए।


अब अँधेरा होने लगा था सब लोग लौट कर दुकान के पास आ गए। इसी दुकान मे हमने चार बिस्तर ले लिए। अंकल तो अपने चलते-फिरते बिस्तर मे ही सोना था। टाइम पास करने के लिए 2 मैगी बनवाई गई। कुछ देर के बाद वहाँ एक फिरंगी आया, हमने उससे वार्तालाव शुरू कर दिया। पूछने पर पता चला की वो इजराइल(Israel) का रहने वाला है। अपने भाई के साथ India घूमने आया है। हमने उससे बहुत सारी बाते की जैसे यहाँ के लोग, समाज, रहन-सहन, खाना-पीना, राजनीती इत्यादि। वो भी यहीं रुकना चाहता था पर एक भी बिस्तर खाली नहीं था। वो बाहर चला गया रात को सोने का जुगाड़ करने के लिए। तभी हमारी वाली दुकान मे 2-3 लोकल लोग आए। वो दुकानदार को जानते थे और हमारे साथ ही अंदर बैठ गए। इन लोगों से भी अपनी बातचीत शुरू हो गई। इनमे से एक लेह की फुटबॉल टीम का पूर्व कप्तान रह चुका था। एक एक्सीडेंट होने के बाद अब वो स्कूल मे बच्चो को फुटबॉल सिखाता था। दूसरा व्यक्ति यहाँ सरकारी स्कूल मे टीचर था। दोनों हो बहुत अच्छे स्वाभाव के थे। जल्दी ही हम लोगो से घुल-मिल गए थे। तभी उन्होंने दुकानदार से बियर माँगी। उसने निकाल कर उनको पकड़ा दी। मैं कुछ देर चुप रहा पर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने टीचर से पुछा ये सब भी मिलता है क्या यहाँ पर? वो फट से बोला जो चाहिए वो मिलेगा हुकुम करो। उसको ये जवाब सुनते ही मैंने अपने बन्दों की तरफ देखा, उनके चहरे पर खुशी फूट-फूट के नज़र आने लगी थी। मैंने दुकानदार से रम के लिए पुछा उसने कहा बहुत है जितनी बोलो उतनी मिल जाएगी। एक पेग 35 रुपए का था इस वीरान जगह पर इतना सस्ता पेग मिल गया और क्या चाहिए था। हम सब इस काम मे तन-मन-धन सब लेकर जुट गए। यहाँ पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया काफी शोर मच रहा था। माहौल रंगीन हो चूका था। टीचर और कोच तो गाने लगे थे। तभी वहाँ इसरायली आया उसने भी एक बियर मारी और हमारे साथ एन्जॉय करने लगा। फुटबॉल कोच ने अब अपने मोबाइल पर लद्दाखी गाने चला दिए थे। गाने के बोल का मतलब वो हमे हिंदी मे बता रहा था।

 फुटबॉल कोच और हरी।

फुटबॉल कोच और हरी।

 राहुल, मैं और स्कूल टीचर ।


राहुल, मैं और स्कूल टीचर ।


कोच ने मेरा हाथ खींचा और डांस करने को कहा। मुझे भी कोई संकोच नहीं हुआ और मे उसके साथ डांस करने लगा। सब लोग बहुत एन्जॉय कर रहे थे। मैंने और लोगों को खींचा और हम सब मिलकर डांस करने लगे।

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इसरायली भी बहुत मजे से हम लोगों को देख रहा था और गाने की धुन मे झूम रहा था। कोच ने उसका हाथ खीचा लेकिन उसने संकोच किया। कोच ने बोल “डोंट वारी आइ विल टीच यू” और इसरायली तैयार हो गया। बहुत ही अच्छा डांस किया था उसने कोच की ताल मे ताल मिला कर। आप लोग भी देख लो।

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हम लोगों को साथ मे 3 घंटे हो गए थे। शायद ये सिलसिला जारी रहता तभी दुकानदार की बीवी बोली खाना बन गया है खा लो वरना ठंडा हो जाएगा। मैं सोने जा रही हूँ बाद मे कौन गर्म करेगा। राहुल ने कहा ये सही बोल रही है अब डिनर कर ही लेते हैं। सबने एक दुसरे को अलविदा किया। कोच और टीचर ने क़ुबूल किया की जिंदगी की आज तक उनको इतना मज़ा नहीं आया था जो आज आया। उन्होंने गले मिलकर हमे धन्यवाद दिया और फिर से मिलेंगे ये बोल कर अलविदा कर दिया। हम भी खाकर सो गए।

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