काफी समय से आफिस के कुछ कार्यवश ग्वालियर जाना था। दिल्ली से ग्वालियर जाने के लिए ट्रेन सबसे अच्छा साधन है लगभग 25 -26 ट्रेन ग्वालियर हो कर जाती हैं. आमतौर पर ट्रेन से ग्वालियर तक का सफ़र 5 से 6 घंटे का है. हाँ राजधानी या शताब्दी ट्रेन, साढ़े तीन घंटे से कम समय में ही पहुँचा देती हैं. जय विलास पैलेस की अनुभवी यात्रा (अधिक जानने के लिए साइट पर जाएँ).
काफी सोंच विचार कर निर्णय किया कि शताब्दी से जाकर वापसी भी शताब्दी ट्रेन से की जाय. परेशान इसलिए था कि सुबह 6 बजे की शताब्दी से जाने का मतलब है कि सुबह चार बजे सोकर उठना और घंटे भर में तैयार होकर पाँच बजे से कुछ पहले ही घर से निकलना पड़ेगा तभी समय से शताब्दी ट्रेन पकड़ सकूंगा। अजमेरी गेट पर बाइक को स्टेशन से बाहर पार्किंग में खड़ा करके स्टेशन पहुँचा।
इस समय स्टेशन पर काफी गहमा – गहमी थी। पता लगा ट्रेन एक नंबर प्लेटफार्म से जायेगी और अजमेरी गेट की तरफ का प्लेटफार्म नंबर 16 है यानि की स्टेशन के दूसरे छोर पर जाना था। समय काफी था इसलिए आराम से जाकर अपनी सीट पर बैठ गया। ट्रेन सही समय से रवाना हुई। थोड़ी देर बाद ही सुबह की चाय सर्व की जाने लगी। आठ बजे सभी को सुबह का नाश्ता भी सर्व किया जाने लगा। मन में विचार आ रहा था कि इन ट्रेनो में यह अच्छी बात होती है कि हर काम समय से होता है। आपको समय से नाश्ता – खाना सर्व किया जाता है। ↓
हमारी कोच में 12 -15 कालेज के लड़के एवं लड़कियो का ग्रुप भी सफ़र कर रहा था। जहाँ पर इतने सारे इकट्ठे हो तब तो शोर-शराबा , हंगामा न हो तो ऐसा हो नहीं सकता। सारे के सारे इन्जॉय कर रहे थे लेकिन उनके इस शोर – शराबे से अन्य लोगो को परेशानी हो रही थी। मै भी सोंच रहा था कि नींद पूरी कर ली जाय।
काफी देर तक मै यही देखता रहा की शायद उनके पास बैठे सह यात्री इन लोगो को थोडा शांत रह कर इन्जॉय करने के लिए बोलेगा पर सारे के सारे एक दुसरे का मुंह देख रहे और बर्दाश्त कर रहे थे। मुझसे रहा नहीं गया तो मै अपनी सीट छोड़ कर उनके पास जाकर खड़ा हो गया। वह सारे मेरी ओर देखने लगे , मैंने कहा इस कोच में आप लोगो के साथ अन्य लोग भी सफ़र कर रहे हैं आप लोगो को उनका भी ख्याल रखना चाहिए।
यह कह कर मै अपनी सीट पर आकर बैठ गया। मेरी बात का असर यह हुआ कि अब वह लोग इन्जॉय तो करते रहे परन्तु जो तेज आवाज से शोर – शराबा कर रहे थे उसमे लगाम लगा दी थी। अच्छा लगा जब यह कम उम्र के लोग अपने से बड़े की बात का बुरा न मानते हुए सम्मान करते हैं। यहाँ पर इस बात को लिखने का मेरा आशय यह है कि कई लोग बर्दाश्त करते रहते हैं पर अपना विरोध दर्ज करवाने में संकोच महसूस करते हैं।
ट्रेन ने समय से सुबह के लगभग साढ़े नौ बजे ग्वालियर स्टेशन पर उतार दिया। । वहीँ पास में एक होटल में होटल ले लिया और आराम करने लगा। लेकिन ऐसे मौके पर नींद नहीं आती है जब तक काम समाप्त नहीं हो जाता है।
उसके बाद अपना ऑफिस का काम समाप्त करके बाहर आ कर देखा एक बजने वाला था। मुझे ऑटो ड्राइवर ने बताया था कि पहले सिंधिया का महल देखने जाना चाहिए। एक ऑटो वाले से बात की वह पचास रूपये में चलने के लिए तैयार हो गया। कई घुमावदार रास्तो से होता हुआ ऑटो ड्राइवर ने मुझे महल के बाहर छोड़ दिया।
जय विलास पैलेस
महल के प्रवेश द्वार पर ही अंदर जाने के लिए टिकट काउन्टर बना हुआ है।


महल के अंदर प्रवेश करते ही उसकी विशालता , भव्यता और राजसी वैभव के दर्शन होने लगे। इस शानदार बिल्डिंग को जय विलास पैलेस या जय विलास महल के नाम से जाना जाता है। प्रवेशद्वार के एक तरफ ग्रेनाइट पत्थर पर जय विलास पैलेस 1874 लिखा हुआ है और दूसरी तरफ ग्रेनाइट पत्थर पर महाराजा जीवाजी राव सिंधिया म्यूजियम लिखा हुआ है साथ में दो – दो छोटी तोपे लगी हुई हैं । सिन्धिया राज घराने का निवास स्थान यही महल है। महल के एक भाग को संग्रहालय बनाया गया है जहाँ पर सिन्धिया राज-परिवार के अतीत की झाँकी देखने को मिलती है। प्रवेशद्वार के मध्य एक बड़ी तोप के दर्शन होते हैं।
यहाँ पर आम भारतीयो के लिए टिकेट 60 रूपये का है। विदेशियो के लिए और भी ज्यादा। कैमरा या मोबाईल कैमरा के लिए 70 रूपये का अतिरिक्त टिकेट लेना पड़ता है। वहीँ पर एक – दो गाइड भी घूम रहे थे। उन्होंने अपनी गाइड की सर्विस देने के लिए पूछा पर मैंने सोंचा महल में घूमना ही तो है , गाइड की क्या जरुरत , मैंने मना कर दिया। म्यूजियम में प्रवेश करते ही सबसे पहले महाराजा जीवाजी राव सिंधिया की पीतल की स्टेचू लगी हुई है और वहीँ आस -पास की दीवारो पर सिंधिया परिवार के सदस्यो की फोटो लगी हैं। इस गैलरी को पार करते ही सीढ़ियों से महल के प्रथम तल पर पहुँचते हैं।

यहाँ पर एक कमरे से दूसरे कमरे होते हुए महल के विभिन्न भागो में मै मंत्रमुग्ध घूम रहा था। हर एक कमरा अपने सुनहरे अतीत और भव्यता की दास्तान सुना रहा था।

इन सीढ़ियों से उतर कर हम महल के दूसरे भाग में पहुँचते हैं। यहाँ पर उस समय सवारी में प्रयुक्त होने वाल तरह -तरह की बग्घी रखी हुई हैं। यहाँ पर उस समय सवारी में प्रयुक्त होने वाल तरह -तरह की बग्घी , डोली आदि रखी हुई हैं।
इसके साथ ही महल के दूसरे भाग में हम पहुँचते हैं जिसे दरबार हाल के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर राजसी भोजनालय है जहाँ पर एक साथ बहुत सारे लोगो के खाने की व्यवस्था है। मेहमानों के साथ यहीं पर खाना खाने का प्रबन्ध है। दरबार हाल की चकाचौंध उस समय के राज घराने के वैभव और विलासिता की दास्तान कह रहे थे। इसकी छत में लटके विशालकाय झाड़ – फानूस का वजन लगभग तीन – तीन टन है।
इसकी छत इसका वजन उठा पायेगी या नहीं इसलिए छत के ऊपर दस हाथियो को चढ़ा कर छत की मजबूती की जाँच की गई थी। दरबार हाल में जाने की सीढ़ियों के किनारे लगी रेलिंग कांच के पायो पर टिकी हुई है। एक गार्ड यहाँ पर बैठा दर्शको को यही आगाह करवा रहा था कि रेलिंग को न छुए।

लगभग एक – डेढ़ घंटे घूमने के बाद महल से बाहर आया। अब ग्वालियर का किला देखने का प्रोग्राम था।
I have visited Gwalior twice but have not been to visit the Palace. It indeed looks like a palace of a rich man :-), of a king.
dear Nandan
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Kamlansh ji,
I have visited Gwalior a couple of times but never happened to visit the palace from inside. Your log has instigated to see it next time. Good job with appropriate pics. Keep it up.
Keep traveling
Ajay
dear Ajay
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Kamlansh Ji,
Nice travelogue. Pictures itself describes the beauty of the Palace.
Thanks for sharing..
dear Naresh
Thanks for sharing your view.
Hi Kamlanshji,
It seems like these are my photos! As luck would have it I have been to Gwalior thrice in the last six months. After seeing Saas Bahu Temple and Tansen Samadhi last week, i think I have covered entire Gwalior city but I am sure there would be more to the city.
The palace is the grandest I have seen so far not counting the Hyderabad palaces which I have yet to see. Of course the eight tonnes chandeliers are amazing.
Nice photos and post. Looking forward to the fort post.
Dear Nirdesh ji
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Hi Kamlansh ji
Nice post with exceptional photographs!
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