आज सुबह उठने के बाद से ही लग रहा था की आनेवाले नए वर्ष का स्वागत भगवान के दर्शनों से ही किया जाये क्योंकि मेरा सोचना है की नववर्ष में भगवान् के दर्शन करने से आनेवाला पुरा वर्ष सुख एवं शान्तिपुर्वक गुजरता है।
बस मन में बात आते ही मैंने अपना यह प्रायोजन मुकेश जी के सामने रखा तो उन्होंने मुझसे ही पूछा की कहाँ जा सकते हैं? मैंने कहा की हम तो बड़े खुश किस्मत हैं की हमारे भोले शंकर हमसे ज्यादा दूर नहीं है ओंकारेश्वर एवं महाकालेश्वर दोनों ही ज्योतिर्लिंग हमसे बहुत करीब हैं दोनों में से कहीं भी चल देंगे तो मन प्रसन्न हो जाएगा।
दरअसल ये दोनों ज्योतिर्लिंग हमारे घर से लगभग 100 किलोमीटर के दायरे में हैं अतः जब भी हमारा मन होता है हम दर्शनों के लिए चल पड़ते हैं। उज्जैन तो अभी कुछ दिनों पहले ही गए थे अतः यह निर्णय लिया गया की इस बार ओंकारेश्वर चला जाए।
यह पांच जनवरी की सुबह थी और अगले दिन यानी शनिवार छह जनवरी का दिन हमने तय किया ओंकारेश्वर जाने के लिये. अक्सर हम कहीं भी यात्रा के लिये निकलते हैं तो शनिवार का ही दिन चुनते हैं क्योंकि अगले दिन रविवार होता है यानि मुकेश जी और बच्चों सबकी छुट्टी, तो इस तरह से रविवार की छुट्टी का सदुपयोग हो जाता है और एक छुट्टी भी बच जाती है।
हर साल हमारी कालोनी में नये वर्ष के उपलक्ष्य में एक कार्निवाल का आयोजन किया जाता है जिसमें हम सभी लोग बहुत इन्जौय करते हैं खासकर बच्चे। बच्चों के लिये यहां पर खाने पीने और मौज़ मस्ती के सारे साधन उपलब्ध होते हैं अत: बच्चों में इस कार्निवाल का खासा क्रेज़ होता है।
इस कार्नीवाल में खाने पीने के स्टाल्स के अलावा झुले, डान्स, आर्केस्ट्रा, रंगबीरंगी सजीधजी खिलौनों की दुकानें, मिकी माउस, लकी ड्रा आदि आकर्षण होते हैं। अब आप लोग सोच रहे होंगे की कविता जी यह सब क्यों बता रही हैं तो मैं बता देना चाह्ती हुं की इस मेले की वजह से हमारे प्लान में समस्या आ रही थी, कारण था की इस वर्ष यह कार्नीवाल छह जनवरी को होना था, यानी उसी दिन जिस दिन हमें ओंकारेश्वर में होना था।
समस्या यह थी की बच्चों को इस मेले से एक दिन पहले कहीं लेकर जाना हमारे लिये टेढी खीर थी, खैर हमने बच्चों को यह लालच देकर की मेले के पैसे आप लोगों के गुल्लक (पीगी बैंक) में डाल देंगे, आखीरकार मना ही लिया.
चलिये अब थोड़ी सी जानकारी हो जाये ओंकारेश्वर के बारे में:
ॐकारेश्वर एक हिन्दू मंदिर है जिसमें भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। यह मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। यह नर्मदा नदी के बीच मन्धाता नामक द्वीप पर स्थित है। यह यहां के मोरटक्का गांव से लगभग 20 कि.मी.दूर बसा है। यह द्वीप हिन्दू पवित्र चिन्ह ॐ के आकार में बना है। यहां दो मंदिर स्थित हैं ॐकारेश्वर तथा ममलेश्वर
ॐकारेश्वर का निर्माण नर्मदा नदी से स्वतः ही हुआ है। यह नदी भारत की पवित्रतम नदियों में से एक है।ओंकारेश्वर में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ ही अमलेश्वर (ममलेश्वर) ज्येतिर्लिंग भी है। इन दोनों शिवलिंगों की गणना एक ही ज्योतिर्लिंग में की गई है। स्कन्द पुराण के रेवा खण्ड में श्री ओंकारेश्वर की महिमा का बखान किया गया है-ओंकारेश्वर तीर्थ अलौकिक है। भगवान शंकर की कृपा से यह देवस्थान के समान ही हैं। जो मनुष्य इस तीर्थ में पहुँचकर अन्नदान, तप, पूजा आदि करता है अथवा अपना प्राणोत्सर्ग यानि मृत्यु को प्राप्त होता है, उसे भगवान शिव के लोक में स्थान प्राप्त होता है।’
सुविधा के साथ प्राकृतिक दृश्यों का लुत्फ लेने की चाह रखने वाले अमूमन बस या फिर खुद के वाहन से ओंकारेश्वर जाना ज्यादा पसंद करते हैं। इंदौर से ओंकारेश्वर की दूरी लगभग 80 किमी है। खंडवा रोड पर बड़वाह, मोरटक्का होते हुए लगभग ढाई घंटे में ओंकारेश्वर पहुंचा जा सकता है।
ओंकारेश्वर जाने के लिए ट्रेन और बस दोनों ही तरह के साधन उपलब्ध हैं। ट्रेन से जाने वाले लोगों को ओंकारेश्वर रोड स्टेशन ही उतरना पड़ता है। यहां से ओंकारेश्वर मंदिर की दूरी लगभग 13 किमी रह जाती है। मंदिर पहुंचने के लिए यहां से कई तरह के साधन उपलब्ध हैं।
इंदौर से ओंकारेश्वर जाने के लिए सुबह से ही बसें उपलब्ध होती हैं। निजी बसों में किराया रु. ८0 से ९0 होता है। बेहतर सुविधा के लिए सुबह 8.15 बजे मप्र पर्यटन की एसी बस का सफर भी किया जा सकता है। इसकी बुकिंग पहले से करवा ली जाए तो ज्यादा बेहतर है।
यहां रात को ठहरने के लिए भी बेहतर व्यवस्थाएं हैं जिनमें श्री गजानन महाराज संस्थान गेस्ट हाउस सबसे किफ़ायती तथा सुविधाजनक विकल्प है। मप्र पर्यटन विभाग के गेस्ट हाउस के साथ ही अन्य होटलों में भी सुविधाएं हैं। ममलेश्वर और ओंकारेश्वर मंदिर के दर्शन के साथ ही ओंकार पर्वत की परिक्रमा का विशेष महत्व है।
इस तरह शनिवार को दोपहर ३ बजे हम लोग अपनी स्पार्क कार से औंकारेश्वर के लिये नीकल पड़े. रास्ते में एक छोटा सा गांव पड़ता है “बाई ग्राम” जहां पर सड़क के किनारे ही एक बहुत सुन्दर शनि मन्दिर है कहा जाता है कि यह मंदिर विश्व का एकमात्र वास्तुशास्त्र पर आधारित नवग्रह तथा शनि मन्दिर है। आज चुंकि शनिवार था और रास्ते में इतना बड़ा तथा अनुठा शनि मंदिर….इससे बड़ी खुशनसीबी क्या हो सकती थी अत: हम लोग वहां कुछ देर रुककर दर्शन करके ही आगे बढे।
शाम करीब ७ बजे हम लोग औंकारेश्वर पहुंच गये। औंकारेश्वर में ठहरने के लिये हमेशा हमारी पहली प्राथमिकता होती है श्री गजानन महाराज संस्थान यात्री निवास, तो हमने सीधी राह पकड़ी संस्थान की और कुछ ही देर में हम संस्थान के सामने खड़े थे।
स्वागत कक्ष पर कुछ जरूरी औपचारीकतायें पुर्ण करने के बाद हमें हमारे कमरे की चाबी मिल गई। हमारा कमरा यात्री निवास नंबर ४ में था. अब चुंकी बहुत जोरों की भुख लगी थी अत:निर्णय लिया गया की सबसे पहले भोजन किया जाये। यहां यह बता देना सही रहेगा की श्री गजानन महाराज संस्थान के हर यात्री निवास में किफ़ायती दर पर भोजन की व्यवस्था होती है, चुंकी हम पहले भी श्री गजानन संस्थान (शेगांव) में रह चुके थे तथा भोजन भी कर चुके थे और वहां हमें भोजन बहुत पसंद आया था अत: हमने आज भी भोजन यहीं भोजनालय में करने का निश्चय किया और चल पड़े भोजनालय की ओर।
खाना सचमुच बड़ा स्वादिष्ट था, ३० रु. में थाली जिसमें दो सब्जी, रोटी, दाल, चावल तथा एक मिष्ठान्न के रुप में हलुवा……शुद्ध सात्वीक भोजन और हमें क्या चाहिये था? सो भरपेट करने के बाद हम लोग अपने रुम में आकर थोड़ी देर के लिये लेट गये। अब हमें ओंकारेश्वर मंदिर में शयन आरती में शामिल होना था जो की रात नौ बजे शुरु होती है. इस समय साढे आठ बज रहे थे और यही समय था शयन आरती के लिये निकलने का, अत: हम लोग मन्दीर जाने के लिये तैयार होने लगे.
चुंकि वातावरण में बहुत ठंडक थी अत: बच्चे तो इस समय बाहर निकलने में आनाकानी कर रहे थे लेकिन उन्हें हमने चलने के लिये मना ही लिया और अन्तत: हम लोग उनी कपड़े वगैरह पहनकर अपने रुम से बाहर निकल गये। बाहर सचमुच बहुत ठंड थी और हमें तो नर्मदा नदी पर बने झुला पूल से होकर ओंकारेश्वर मन्दीर की ओर जाना था जहां और ज्यादा ठंड लगने की संभावना थी।
फोटो नं १७ मां नर्मदा एवं ओंकारेश्वर मंदिर
गजानन संस्थान नर्मदा के एक किनारे पर ममलेश्वर मंदिर के नजदीक है तथा ओंकारेश्वर मन्दिर नर्मदा के दुसरे किनारे पर स्थित है। हम लोग पैदल ही पूल पार करके करीब नौ बजे ओंकारेश्वर मन्दिर पहुंच कर आरती की लाइन में लग गये.
शयन आरती के बारे में मुकेश जी पहले ही अपनी पोस्ट में बहुत कुछ लिख चुके हैं अत: मैं अब और नहीं दोहराउंगी। शयन आरती अपने आप में एक अद्भूत अनुभव है, मन्दिर के गर्भग्रह में रात को चौपड़ बिछाई जाती है, भगवान का बिस्तर लगाया जाता है और उसके बाद आरती होती है। ऐसा कहा जाता है की सुबह चौपड़ की सारी चालें अपने आप अस्त व्यस्त हो जाती है यानि माना जाता है की रात में भगवान शिव यहां आकर माता पार्वती के साथ चौपड़ खेलते हैं।
शयन आरती में शंख, डमरू, घंटी की ध्वनी से सारा वातावरण भक्तीमय हो जाता है। आरती के बीच में ही शिवम को निंद आ गई थी अत: उसे गोद में लेकर ही आरती पुरी की. इस अद्भूत आरती का आनंद उठाने के बाद उसी झुलेवाले पूल से वापस लौटकर हम लोग अपने कमरे में आकर सो गये। हम लोग कई बार ओंकारेश्वर आ चुके थे लेकिन कभी भी ओंकार परीक्रमा करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था अत: इस बार हम घर से ही सोच कर आए थे की परीक्रमा अवश्य करेंगे.अगले दिन हमारा सुबह जल्दी उठ कर परिक्रमा के लिये निकलने का प्लान था.
आज के लिये बस इतना ही। इस श्रंखला की अगली पोस्ट में मैं आपको लिये चलुंगी ओंकार परीक्रमा पर …………..तब तक के लिये बाय…बाय.
Enjoyed reading this post.
I visited Omkareshwar some years ago and enjoyed it and reading your post was like revisiting there.
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kavita Ji.. you and Mukesh ji are so lucky that you have visited Omkareshwar and Mahakaleswar many times. I have planned two times to visit these places but could not succeed.
All the pictures are clear and beautiful.. and the story too is well narrated..
Jai Bhole Ki,…
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Bahuth accha varnan………
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nice post.some of the photographs are beautiful.
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Thank you, Kavitajee, for the darshan of Shri Omkareshwar and the Navagraha temple which looks more like a residence than a temple. The Shayan Arati reminded me of the same ritual which I had witnessed at Srisailam several years ago. ????? ?? ???, ???? ????? ???? ?? ?????? ???
The juxtaposition of the Jhoola Pul with the Mamleshwar shrine looked as if the Golden Gate bridge was transplanted from San Francisco to Benaras! Must say that Mukeshji’s photographic skills have improved a lot. Has Sushantji passed on some tips during his recent trip to Indore?
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Hi Kavita,
Narmada like other rivers is replete with temples. In addition it goes through amazing terrain in MP including marbe hills. It is my plan to follow the river across MP.
Last time I was in Indore, Mandu was my priority. This time i will do the temple and nature circuit.
The bridge does look like Golden Gate!
Thanks for the post!
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Aapke aur Mukesh ji ke posts bahut baar padhe par comment karne ka mauka phli bar mil raha hai. aise lekh Bhartiyata ki yaad dilate hain na ki India ki. Congrats….
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A very nice post Kavita Ji. All the photos are excellent.
Two times I have visited at Indore but both the time it was the official trip so couldn’t go anywhere.
Hope in future I will be there for darshan of Mahakaal.
Thanks.
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Kavitaji,
enjoyed your post on Onkareshwar / Mahakaleshwar.
It is nice of you to bring out such important religious/historical landmarks of central India for every Ghumakkar to read, learn and plan…..
Thanks,
Auro.
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Kavita ji
abhi recently hum bhi omkareswar aur maheswar gye the ab hum Remeswaram jane ka plan bana rahe hai please hamara margdharshan kare Hum June2014 me jayege
really written very nicely…gave me complete knowledge how to visit it..lot many thanks
Hum log kashi vishwanath ka darshan ke bad dwarka, somenath , ujjain maha kaleshwar bhagwan ka darshan karna hai . subah ujjain pahuchane ke bad 36 hrs mere pas rahega. kripya salah de ki mai ujjain aur omkareshwar darshan kar shaku shipra exp se ticket hai ujjain to Dhanbad
श्री ओंकारेश्वर भगवान शिव जी की जय हो