जैसे की मैंने पिछली पोस्ट में बताया था की हमने उज्जैन घुमने के लिए एक ऑटो कर लिया था। ऑटो के चलने के सिर्फ एक मिनट बाद ही नंदू ने ऑटो रोक दिया और बोला ” लो पहला स्थान (पॉइंट) आ गया है। सामने बडे गणेश जी का मंदिर है , जाओ और दर्शन कर के आ जाओ मैं यहीं पर आपका इंतजार करूँगा। ” हमने बोला कि यहाँ तो हम पैदल ही आ जाते ,क्या सारे मंदिर पास में ही हैं ” उसने जबाब दिया नहीं कुछ मंदिर तो 5-6 किलोमीटर की दुरी पर हैं। सबसे नजदीक यही है। यह सुनकर हम लोग जल्दी से मंदिर की ओर चल दिए।
“श्री बडे गणेश मंदिर:
भारत के हर कोने में भगवान गणेश जी के मंदिरों को देखा जा सकता है और उनके प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, बडे गणेश जी का मंदिर, जो उज्जैन के श्री महाकालेश्वर मंदिर के निकट हरसिध्दि मार्ग पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान गणेश जी को बडे गणेश जी के नाम से जाना जाता है।
इस मंदिर में विराजित गणेश जी की भव्य और कलापूर्ण मूर्ति प्रतिष्ठित है। यह एक बहुत बडी़ मूर्ति है जिस कारण से इसे बडे़ गणेश जी के नाम से पुकारा जाता है। इस मंदिर की प्रसिद्धि दूर दूर तक फैली हुई है। गणेश जी की इस भव्य प्रतिमा का निर्माण पं. नारायण जी व्यास के अथक प्रयासों द्वारा हो सका। यहां स्थापित गणेश जी की यह प्रतिमा विश्व की सबसे ऊँची और विशाल गणेश जी की मूर्ति के रूप में विख्यात है।बडे गणेशजी की इस प्रतिमा के निर्माण में अनेक प्रकार के प्रयोग किए गए थे, जैसे की यह विशाल गणेश प्रतिमा सीमेंट से नहीं बल्कि ईंट, चूने व बालू रेत से बनी हैं और इससे भी विचित्र बात यह है कि इस प्रतिमा को बनाने में गुड़ व मेथीदाने का मसाला भी उपयोग में लाया गया था।
इसके साथ साथ ही इसको बनाने में सभी पवित्र तीर्थ स्थलों का जल मिलाया गया था तथा सात मोक्षपुरियों मथुरा, माया, अयोध्या, काँची, उज्जैन, काशी, व द्वारका से लाई गई मिट्टी भी मिलाई गई है जो इसकी महत्ता को दर्शाती है। इस प्रतिमा के निर्माण में ढाई वर्ष का समय लगा जिसके बाद यह मूर्ति अपने विशाल रूप में सबके समक्ष प्रत्यक्ष रूप से विराजमान है।
बडे गणेशजी मंदिर महत्व
बडे गणेशजी का मंदिर भक्तों के लिए एक पावन धाम है जहाँ पर आकर वह अपनी सभी चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं। इस मंदिर में सप्तधातु की पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित है इसके अतिरिक्त मंदिर परिसर में नवग्रह मंदिर भी बना है। बडे गणेश जी की प्रतिमा को बहुत दूर से भी देखा जा सकता है।
इसकी विशालता से प्रभावित हो लोग देश भर से यहाँ मूर्तिको देखने के लिए आते हैं। गणेश चतुर्थी के पावन समय यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है बडे गणेश जी के दर्शनो को करके सभी की चिंताओं का हरण होता है तथा सुख समृद्धि प्राप्त होती है। ”
बडे गणेश जी मंदिर में दर्शन कर के हम लोग आकर ऑटो में बैठ गए ओर बाकी मंदिरों की ओर चल दिए। इसके बाद हम सीधा शक्तिपीठ, हरसिद्धि माता के मंदिर गए जिसका वर्णन हम विस्तार से कर चुके हैं। हरसिद्धि माता के मंदिर के बाद नंदू हमें सीधा चारधाम मंदिर में ले गया जो हरसिद्धि माता मंदिर के पास ही है।
चारधाम मंदिर:
यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर से कुछ दूरी पर तथा श्री हरसिद्धि देवी के मंदिर की दक्षिण दिशा में थोड़ी सी दुरी पर है. इस मंदिर में श्री आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित हिन्दू धर्म के चारधामों की सजीव झांकियां स्थापित की गयी हैं है। यहां पर चारों धामों श्री द्वारकाधाम, श्री जगन्नाथधाम, श्री रामेश्वरधाम, और श्री बद्रीनाथधाम की स्थापना कि गई है। मंदिर परिसर में एक सुंदर बगीचा भी स्थित है। चार धाम मंदिर में जाते हुए हमारा कैमरा ऑटो में ही रह गया था जिस कारण यहाँ की तस्वीरें नहीं ले सके।
चारधाम मंदिर में दर्शनों के बाद हमारा ऑटो चालक हमें क्षिप्रा नदी के राम घाट पर ले गया। क्षिप्रा नदी में जल किसी तालाब की तरह ठहरा हुआ था यानी की यह कोई बहती हुई नदी नहीं है लेकिन क्षिप्रा में हर घाट पर, जहाँ भी हम गए ,पानी था। हो सकता है नदी बहुत धीरे बह रही हो ।
अब थोड़ी सी जानकारी क्षिप्रा नदी व उसके महत्व के बारे में……
क्षिप्रा घाट
हिन्दु धर्म ग्रंथों में अनेक पवित्र नदियों की महिमा बताई गई है। इनमें परम पवित्र गंगा नदी पापों का नाश करने वाली मानी गई है। हर नदी का अपना धार्मिक महत्व बताया गया है। इसी क्रम में मध्यप्रदेश की दो पवित्र नदियों नर्मदा और क्षिप्रा से भी जन-जन की आस्था जुड़ी है। जहां नर्मदा को ज्ञान प्रदायिनी यानि ज्ञान देने वाली माना गया है। वहीं उज्जैन नगर की जीवन धारा, क्षिप्रा को मोक्ष देने वाली, यानि जन्म -मरण के बंधन से मुक्त करने वाली माना गया है।
क्षिप्रा नदी का उद्गम, मध्यप्रदेश के महू छावनी से लगभग 17 किलोमीटर दूर, जानापाव की पहाडिय़ों से माना गया है। यह स्थान भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम का जन्म स्थान भी माना गया है।
पुराणों में अवंतिका यानि आधुनिक उज्जैन को सात पुरियों में गिना जाता है। यह मध्यप्रदेश के साथ ही देश का प्रमुख धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राचीन नगर है। यह क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। यहां क्षिप्रा नदी और उसमें स्नान का महत्व वैसा ही माना गया है, जितना इलाहाबाद, प्रयाग, हरिद्वार और काशी में गंगास्नान का है।
उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योर्तिंलिंग, शक्तिपीठ हरसिद्धि, पवित्र वट वृक्ष सिद्धवट सहित अनेक पवित्र धार्मिक स्थल होने के साथ 12 वर्षों में होने वाले सिंहस्थ स्नान के कारण क्षिप्रा नदी का धार्मिक महत्व है।
मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु के योग बनने पर, उज्जैन की पुण्य भूमि पर क्षिप्रा के अमृत समान जल में कुंभ स्नान करने पर कोई भी व्यक्ति जनम-मरण के बंधन से छूट जाता है।
क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित सांदीपनी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और उनके प्रिय सखा सुदामा ने विद्या अध्ययन किया। राजा भर्तृहरि और गुरु गोरखनाथ ने भी इस पवित्र नदी के तट पर तपस्या से सिद्धि प्राप्त की।
क्षिप्रा नदी के किनारे के घाटों का भी पौराणिक महत्व है। जिनमें रामघाट मुख्य घाट माना जाता है। माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने पिता दशरथ का श्राद्धकर्म और तर्पण इसी घाट पर किया था। इसके अलावा नृसिंह घाट, गंगा घाट, पिशाचमोचन तीर्थ, गंधर्व तीर्थ भी प्रमुख घाट हैं।
उज्जैन नगर को शिव की नगरी माना जाता है। अत: यहां महाशिवरात्रि पर्व के साथ ही कार्तिक पूर्णिमा और गंगा दशहरा के दिन श्रद्धालु क्षिप्रा में स्नान के लिए बड़ी संख्या में आते हैं। स्नान, दान, जप कर वह धर्म लाभ अर्जित करते हैं। स्कंदपुराण में भी क्षिप्रा नदी की महिमा बताई है। यह नदी अपने उद्गम स्थल से बहते हुए चंबल नदी से मिल जाती है। मान्यता है कि प्राचीन समय में इसके तेज बहाव के कारण ही इसका नाम क्षिप्रा प्रसिद्ध हुआ।
उज्जैन नगर को तीन ओर से घेरे क्षिप्रा का अपना ही आकर्षण है। उज्जैन के दक्षिण-पूर्वी सिरे से नगर में प्रवेश कर क्षिप्रा ने यहां के हर स्थान से अपना अंतरंग संबंध स्थापित किया है। क्षिप्रा के घाटों पर प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा बिखरी पडी है, उज्जैन में क्षिप्रा के तट पर होने वाली गंगा और क्षिप्रा आरती के दिव्य अध्यात्मिक वातावरण में श्रद्धालू डूब जाते हैं।
भर्तृहरि गुफा, पीर मछिन्दर , गढकालिका का क्षेत्र ,मंगलनाथ मंदिर, सान्दीपनि आश्रम ,राम-जनार्दन मंदिर ,सिध्दवट, काल भैरव और कालियादेह महल जैसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल क्षिप्रा नदी के किनारों पर ही हैं ।”
श्री राम मंदिर
क्षिप्रा नदी के राम घाट के दर्शन के बाद हम हरसिधि और राम घाट के मध्य स्थित पाटीदार समाज के सुन्दर श्री राम मंदिर गए। इस मंदिर के साथ ही एक हर सुविधा युक्त धर्मशाला भी है।
यहाँ दर्शनों के बाद हम लोग फिर से नंदू के ऑटो में आकर बैठ गए जो हमें यहाँ से सीधा काल भैरव, गढ़कालिका और अन्य मंदिरों में ले गया जिसका वर्णन हम अगली पोस्ट में विस्तार से करेंगे।
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Thanks Mukesh ji for your kind words..
Very informative post !
Thanks Mahesh Ji..
very good post,reminded me of my Ujjain tour in 2006.
Thanks Ashok Ji..
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Thanks Kamlesh Ji..
Sehgal ji,
Good information about places of Ujjain. We missed these places due to time shortage in our recent visit.
Thanks..
Thanks Anil ji for liking the posts.
kahan kahan ghuma rahe ho sehgalji… very good t.log
Thanks Tiwari Ji..
Sir, jo jo hamne Ujjain mein dekha vahi sabko dikha rahe hain.