पिछले वर्ष यूँ तो हमारा प्रोग्राम यमनोत्री एवं गंगोत्री जाने का था पर वहाँ जाना तो हो नही सका परन्तु अचानक अमरनाथ धाम जाने का प्रोग्राम बन गया और हम पहुँच गये बाबा अमरनाथ के दरबार मे. कहते है ना सब कुछ हमारी मर्ज़ी से नही होता है. जो जिस तरह से होना है वैसे ही होगा. कभी सोचा भी नही था कि हम अमरनाथ धाम की कठिन यात्रा कर सकेंगे. यह पढ़ा और सुना था यह एक कठिन यात्रा है. पहाड़ो पर लगभग 34 किलोमीटर . की चढ़ाई इतनी आसान नही होती है. समतल रोड मे एक दो किलोमीटर चलना कठिन हो जाता है और यहा तो उचे –नीचे , उबड़- खाबड़ , पत्थरो के बीच पहाड़ो पर चलना था. पर शायद श्रधा और आपका का विश्वास ही आपको हिमालय की उँचाई तक पहुँचा देता है. कुछ ऐसी ही श्रधा और लगन से हम चल दिए बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए.
सबसे पहला काम तो रेजिस्ट्रेशन करवाने का था. पता लगा कि रेजिस्ट्रेशन के वगैर वहाँ जाने नही देंगे. बड़ी मुश्किल से रेजिस्ट्रेशन हुआ, क्योकि देल्ही मे फार्म ख़त्म हो गये थे, केवल गुड़गाँव मे यसबैंक के पास थे. पहले उसने बालटाल से यात्रा का रेजिस्ट्रेशन कर दिया, जब हमारी जानकारी मे आया तब हमने दोबारा वाया पहलगाम के लिए रेजिस्ट्रेशन करवाया. हमने पहलगाम हो कर जाना तय किया था..पहलगाम हो कर पवित्र गुफा जाने का रास्ता परंपरागत रास्ता है, भगवान शिव इसी रास्ते से होकर मॉ पार्वती के साथ गुफा तक पहुचे थे., कहते है बालटाल का रास्ता काफ़ी ख़तरनाक है. जैसे तैसे रेजिस्ट्रेशन हो गया , अब दूसरा काम था देल्ही से जम्मू तक का ट्रेन रिज़र्वेशन का. . तत्काल मे रिज़र्वेशन के लिए सुवह 5 बजे दो लोग स्टेशन जा कर लाइन मे लग गये. फिलहाल तत्काल मे रिज़र्वेशन हो गया.
हम 11 लोग थे, जिसमे से एक हमारे भतीजे का मित्र अहमदाबाद से सीधे जम्मू पहुँच रहा था बाकी हम 10 लोग न्यू देल्ही से जम्मू के लिए रवाना हुए . हम 16 जुलाइ-2011 शनिवार की शाम राजधानी एक्सप्रेस से चल कर दूसरे दिन सुवह 5 बजे जम्मू पहुँच गये. यहाँ हमारे भतीजे के दोस्त ने एक टाटा विंगेर 7000/-किराए पर कर लिया था अब सुवह – सुवह टॅक्सी ढुड़ने के झंझट से बच गये. सब लोग फ्रेश हो कर सुबह 7 बजे जम्मू से पहलगाम के लिए चल दिए.
रास्ते मे बहती हुई एक बड़ी नदी पर ड्राइवर ने बताया यह झेलम नदी है, जो कि बहुत गहरी है, थोड़ा आगे जाने पर उस पर बाँध भी बना हुआ देखा. अनंतनाग से दो रास्ते जा रहे थे एक श्रीनगर को और दूसरा पहलगाम. शाम लगभग 6 बजे हम पहलगाम पहुच गये.
एक ठीक- ठाक होटेल मिल गया. 3 रूम का किराया 3600/- सब 3 कमरो मे आराम से एडजुस्ट हो गये. पहलगाम मे यात्रियो के ठहरने के लिए टेंट भी लगे थे पर हमने होटेल मे ठहरना उचित समझापहलगाम साफ सुथरा छोटा सा खूबसूरत शहर है जो कि लिद्दर नदी के किनारे बसा है, यह चारो तरफ उँचे-उँचे पहाड़ो से घिरा हुआ है. . हमारे होटेल के ठीक सामने सड़क के दूसरी तरफ लिद्दर नदी बह रही थी रात के शांत वातावरण मे कल-कल नाद करती हुई उच्छृंखलता के साथ बहती हुई लिद्दर नदी की आवाज़ गूँज रही थी, बहुत ही सुंदर द्र्श्य था. पहलगाम धरती पर स्वर्ग माने जाने वाले कश्मीर के सबसे खूबसूरत हिल स्टेशनों में एक है. पहलगाम की खूबसूरती के बारे मे गुलशन नंदा ने अपने उपन्यास मे भी लिखा था
रात मे ही हमने आगे की यात्रा का प्रोग्राम बना लिया. पता लगा पहलगाम से चंदनवाड़ी तक . 70/ पर हेड टॅक्सी कार चार्ज करती है. हम सभी सुवह 5 बजे उठ कर आगे जाने की तैयारी करने लगे. ज़रूरी समान को छोड़ कर अतिरिक्त समान होटेल मे रखवा दिया. टॅक्सी होटेल के सामने ही मिल गयी सभी लोगचंदनवाड़ी के लिए चल दिए. रास्ते मे एक बहुत खूबसूरत घाटी पड़ी, ड्राइवर ने बतया यह “ बेताब घाटी है,बेताब फिल्म की शूटिंग यही हुई थी तब से इसका नाम बेताब घाटी पड़ गया है, बहुत सुंदर बेताब घाटी का नज़ारा है. पहलगाम से चंदनवाड़ी लगभग 16 किलोमीटर है . जो कि हम लगभग आधा – पोने घंटे मे पहुँच गये यहाँ सुवह – सुवह यात्रियो की काफ़ी भीड़ थी,, चंदनवाड़ी से आगे घोड़े , पालकी या पैदल शेषनाग , पंचतर्णी होते हुए गुफा तक पहुँचते है, ज़्यादातर यात्री चंदनवाड़ी से चल कर पहला पड़ाव शेषनाग पर करते है. कहते है शिव जी ने कंठाभूषण सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया, इस प्रकार इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा। शेषनाग के बाद दूसरा पड़ाव पंचतर्णी है और पंचतर्णी से लोग सीधे गुफा के लिए प्रस्थान करते है, शेषनाग और पंचतर्णी दोनो ही जगह टेंट के शिविर लगाए जाते है. यहाँ चंदनवाड़ी पर कई भंडारे लगे थे,भक्त बुला बुला कर खाने के लिए आमंत्रित कर रहे थे. पहले तो मेरा प्रोग्राम यह था कि हम पिस्सू टॉप तक तो घोड़े से जाएगे फिर वहाँ से शेषनाग पैदल . पिस्सू टॉप की चढ़ाई बहुत कठिन है, यहा पर हमे अपना प्रोग्राम बदलना पड़ा क्योकि मेरी श्रीमती की कमर मे मोच आ गयी थी अब उनके लिए पैदल चलना कठिन था उनके लिए घोड़ा किया, अब वो अकले तो घोड़े से शेषनाग जा नही सकती थी इसलिए मैने अपने लिए भी घोड़ा कर लिया. दो घोड़े के शेषनाग जाने के 1400 रुपये तय हुए. बाकी लोगो को बता दिया की हम दोनो लोग तो घोड़े से जा रहे है..
पिस्सू टॉप की चढ़ाई वास्तव मे एक कठिन चढ़ाई है. घोड़े पर बैठे हुए डर लग रहा था. इससे पिछले वर्ष हम केदारनाथ यात्रा पर गये थे , वाहा 14 किलोमीटर की चढ़ाई है, हम उस रास्ते को देख कर सोचते थे कि कितना कठिन रास्ता है परंतु यहा तो रास्ता ही नही था रास्ते के नाम पर उबड़ -खाबड़ पगडंडी है, कई जगह पर तो ऐसा लगा की अब गिरे तो तब गिरे. सबसे बरी दिक्कत तो तब होती है जब घोड़ा पहाड़ से नीचे को उतरता है.ऐसा लगता है , कई लोग गिर भी जाते है, पिस्सू टॉप से शेषनाग के बीच एक बहुत सुंदर झरना गिर रहा है उसके थोड़ा पहले हमे घोड़े वाले ने उतार दिया और बताया यहाँ से लगभग 1 किलोमीटर . आगे तक पैदल चलना होगा क्योकि घोड़े से जाने का रास्ता नही है. अब हम पैदल आगे चल दिए, रास्ते मे वर्फ़ के ग्लेसियार के बाद खूबसूरत झरना बह रहा था, बहुत लोग फोटो खिचवा रहे थे.
थोड़ा आगे हमे घोड़े वाला मिल गया , हम फिर घोड़े पर बैठ कर शेषनाग कॅंप के लिए चल दिए.शेषनाग पहुचने पर काफ़ी पहले से ही झील दिखने लगती है,
एक जगह पर वर्फ़ का सीधा ढाल है, यह एक ख़तरनाक ढाल है घोड़े पर बैठे हुए डर लग रहा था ऐसा लगा कि नीचे गिरने वाल हू पर किसी तरह संभल गया. जान सुख गयी थी. झील का लगभग आधा चक्कर काट कर करीब 12-1 बजे तक हम शेषनाग कॅंप पहुच गये.झील के किनारे यहाँ शहर बसा हुआ था. चारो तरफ से कांटो की बाड़ लगाई हुई थी . कॅंप मे एंट्री के लिए केवल एक गेट था जहाँ 24 घंटे जवान तैनात रहते थे. हर आने जाने वाले की जाँच पड़ताल करते थे . कॅंप के बाहर कुछ दूरी पर भंडारे लगे थे जहाँ यात्रियो के खाने का प्रबंध था.
हमने एक टेंट 12 लोगो का ले लिया था जिसका किराया र्स. 125/- पर बेड के हिसाब से टेंट वाले ने चार्ज किया. इन टेंटो मे ज़मीन पर पतला सा गद्दा बिच्छाया हुआ था, साथ मे एक रज़ाई थी. कोई आराम देह जगह नही थी, हम एक तरह से फ़ौजी बन गये थे. थकान के कारण खाने-पीने की भी इच्छा ख़त्म हो जाती है, जैसे-तैसे थोड़ा बहुत भंडारे का खा कर सो गये.
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BTW, loved your philosophy of “Help Ever, Hurt Never”…..???? ??? ?? ??? ??
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Har Har Mahadev
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