दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚,
घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी की अपनी अतृपà¥à¤¤ तथा अनियंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ तृषà¥à¤£à¤¾ को आà¤à¤¾à¤¸à¥€ परिकलà¥à¤ªà¤¨à¤¾à¤“ं की उड़ान से शांत करने की गरज से गूगल पर घूमते घूमते कब घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ पर आकर टिक गया मà¥à¤à¥‡ पता ही नहीं चला, और आज चार वरà¥à¤· से अधिक हो गठहैं इस अदà¥à¤à¥à¤¤ मंच पर, और यह बताते हà¥à¤ खà¥à¤¶à¥€ हो रही है की इस मंच से आज à¤à¥€ उतना ही लगाव है जितना शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤à¥€ दिनों में था, आज à¤à¥€ दिन की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ से ही होती है. 5 सितंबर 2010 की अपनी पहली पोसà¥à¤Ÿ से घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ पर लेखन की शà¥à¤°à¥‚आत करने के बाद से लेकर आज तक यह सिलसिला बदसà¥à¤¤à¥‚र जारी है, और आज मेरी यह पचासवीं पोसà¥à¤Ÿ आप लोगों के सामने पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ है. आप सà¤à¥€ पाठकों के सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ का ही पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤«à¤² है की इस अरà¥à¤§à¤¶à¤¤à¤• पोसà¥à¤Ÿ के लिखे जाने तक यहाठलिखने का उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ बरकरार है और अगर इसी तरह आप सà¤à¥€ का सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ मिलता रहा आगे à¤à¥€ इसी उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ उमंग तथा उरà¥à¤œà¤¾ के साथ लिखता रहूà¤à¤—ा.
पिछली पोसà¥à¤Ÿ में मैने आप लोगों को बताया था की किस तरह से हम बिजली महादेव के कठीन तथा दà¥à¤°à¥à¤—म रासà¥à¤¤à¥‡ को पार करके हम अनà¥à¤¤à¤¤: बिजली महादेव मंदिर तक पहà¥à¤‚च ही गठथे, अब आगे…..
बिजली महादेव मंदिर अथवा मकà¥à¤–न महादेव मंदिर संपूरà¥à¤£ रूप से लकडी से रà¥à¤¨à¤¿à¤®à¤¿à¤¤ है. चार सीढियां चà¥à¤¨à¥‡ के उपरांत दरवाजे से à¤à¤• बडे कमरे में जाने के बाद गरà¥à¤ गृह है जहां मकà¥à¤–न में लिपटे शिवलिंग के दरà¥à¤¶à¤¨ होते हैं. मंदिर परिसर में à¤à¤• लकड़ी का सà¥à¤¤à¤‚ठहै जिसे धà¥â€à¤µà¤œà¤¾ à¤à¥€ कहते है, यह सà¥à¤¤à¤‚ठ60 फà¥à¤Ÿ लंबा है जिसके विषय में बताया जाता है कि इस खमà¥à¤à¥‡ पर पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• वरà¥à¤· सावन के महीने में आकाशीय बिजली गिरती है जो शिवलिंग के टà¥à¤•ड़े टà¥à¤•ड़े कर देती है, इसीलिये इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ को बिजली महादेव कहा जाता है.
इस घटना के उपरांत मंदिर के पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ गांव से विशिषà¥à¤Ÿ मकà¥à¤–न मंगवाते हैं जिससे शिवलिंग को फिर से उसी आकार में जोड़ दिया जाता है. अगर बिजली के पà¥à¤°à¤•ोप से लकड़ी के धà¥â€à¤µà¤œà¤¾ सà¥à¤¤à¤‚ठको हानि होती है तो फिर संपूरà¥à¤£ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ विधि विधान से नवीन धà¥à¤µà¤œ दंड़ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ कि जाती है. यह बिजली कà¤à¥€ धà¥à¤µà¤œà¤¾ पर तो कà¤à¥€ शिवलिंग पर गिरती है. जब पृथà¥à¤µà¥€ पर à¤à¤¾à¤°à¥€ संकट आन पडता है तो à¤à¤—वान शंकर जी जीवों का उदà¥à¤§à¤¾à¤° करने के लिये पृथà¥à¤µà¥€ पर पडे à¤à¤¾à¤°à¥€ संकट को अपने ऊपर बिजली पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥‚प दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सहन करते हैं जिस से बिजली महादेव यहां विराजमान हैं.

बिजली महादेव मंदिर
लोगों के संकट दूर करने वाले महादेव खà¥à¤¦ इतने विवश हो सकते हैं कà¤à¥€ आपने सोचा नहीं होगा. हर दो तीन साल में यहाठबिजली कड़कती है और महादेव के शिवलिंग के टà¥à¤•ड़े-टà¥à¤•ड़े कर देती है. यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा है और महादेव चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª इस दरà¥à¤¦ को सहते चले आ रहे हैं. महादेव के दरà¥à¤¦ को दूर करने के लिठमकà¥à¤–न का मरहम लगाया जाता है और मकà¥à¤–न से उनके टà¥à¤•ड़ों को जोड़कर पà¥à¤¨à¤ƒ शिवलिंग को आकार दिया जाता है. कà¤à¥€ मंदिर का धà¥à¤µà¤œ बिजली से टà¥à¤•ड़े टà¥à¤•ड़े हो जाता है तो कà¤à¥€ शिवलिंग. शिवलिंग पर बिजली गिरते रहने के कारण यह शिवलिंग बिजलेशà¥à¤µà¤° महादेव के नाम से पूरे कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है.

बिजली महादेव शिवलिंग
मैगी खाने के बाद अब हम लोग मंदिर की ओर बढ़ चले और कà¥à¤› दूर चलने के बाद अब मंदिर हमारे सामने था. पास ही लगे à¤à¤• नल से हाथ मà¥à¤‚ह धोकर हम मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गà¤. गरà¥à¤à¤—ृह में मकà¥à¤–न से लिपटा मनोहारी शिवलिंग हमारे सामने था ……जय बिजली महादेव. à¤à¥‹à¤²à¥‡ के दरबार में कà¥à¤› समय बिताने के बाद अब हम मंदिर से बाहर आ गà¤. मंदिर के बाहर पतà¥à¤¥à¤° से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ ननà¥à¤¦à¥€ बाबा à¤à¥€ थे तथा अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ थी जो मंदिर के अति पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ होने का पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ दे रही थी. दरà¥à¤¶à¤¨ हो जाने के बाद हम बाहर परिसर में आ कर à¤à¤• पेड़ के नीचे नरà¥à¤® नरà¥à¤® घास पर लेट गà¤. जबरदसà¥à¤¤ थके होने के कारण उस कोमल घास पर लेटना हमें बड़ा सà¥à¤•ून दे रहा था.

बिजली महादेव मंदिर के सामने पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ शिवलिंग तथा अनà¥à¤¯ मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤
कà¥à¤› देर लेटेने के बाद अब à¤à¥‚ख लग रही थी, कैंप से लाया गया पैकà¥à¤¡ लंच साथ था ही, à¤à¥‚ख à¤à¥€ लग रही थी सो वहीं घास पर बैठकार पिकनिक के रूप में खाना पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठकिया. उस माहौल तथा मौसम में खाना और à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ लग रहा था. खाना खाकर ठंडा पानी पिया और फिर घास पर लेट गà¤.

बिजली महादेव
पास ही में à¤à¤• खमà¥à¤à¥‡ से रसà¥à¤¸à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤• पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¾ सा मेमना (à¤à¥‡à¤¡à¤¼ का बचà¥à¤šà¤¾) बंधा था, जो बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के लिठआकरà¥à¤·à¤£ का केनà¥à¤¦à¥à¤° था. शिवम तथा गà¥à¤¡à¤¼à¤¿à¤¯à¤¾ दोनों खाना खाने के बाद उसी मेमने के साथ खेलने लगे. कà¥à¤› ही देर में उस बेजान पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ से बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की गाढी मितà¥à¤°à¤¤à¤¾ हो गई थी. दोनों देर तक उसके साथ खेलते रहे तथा खूब सारी फोटो खिंचवाई.

मेमने के साथ खेलते संसà¥à¤•ृति तथा शिवम
कà¥à¤› ही देर में दो सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ हिमाचली लोग आठऔर बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ से कहने लगे, बेटा उसके साथ मत खेलो चलो जाओ यहाठसे, हम लोग वहीं पास में बैठे थे. मैने ये सà¥à¤¨à¤¾ तो मà¥à¤à¥‡ बड़ा बà¥à¤°à¤¾ लगा की बचà¥à¤šà¥‡ अगर मेमने के साथ खेल रहे हैं तो इन लोगों को कà¥à¤¯à¤¾ तकलीफ हो रही है. मैने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को अपने पास बà¥à¤²à¤¾ लिया. बाद में समठमें आया की कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ वो लोग बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को उस मेमने के साथ खेलने से माना कर रहे थे.
कà¥à¤› देर बाद वही दो हिमाचली आà¤, उनके पास à¤à¤• à¤à¥‹à¤²à¤¾ था, उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ मेमने के रसà¥à¤¸à¥‡ को खमà¥à¤à¥‡ से खोला और धकेलते हà¥à¤ घाटी के नीचे ले जाने लगे. मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤› दाल में काला लगा सो उतà¥à¤¸à¥à¤•तावश मैं à¤à¥€ उनके पीछे हो लिया. थोड़ी दूर ज़ा कर उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡à¤‚ मेमने को à¤à¤• पेड़ से बाà¤à¤§ दिया, उनमें से à¤à¤• ने à¤à¥‹à¤²à¥‡ में से à¤à¤• तेज धार वाला हथियार निकाला और मेमने की गरà¥à¤¦à¤¨ पर चला दिया.
पता नहीं कब से मेरे दोनों बचà¥à¤šà¥‡ मेरे पीछे आकर खड़े ये सब देख रहे थे. जैसे ही मेमने को मारा गया, शिवम जोर जोर से रोने लगा …. पापा वो लोग उस पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ मेमने को मार रहे हैं आप उसको बचाते कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं?…..असल में उस निरीह पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ की बलि दी गई थी. हिमाचल के मंदिरों में आज à¤à¥€ बेरोकटोक तथा बेखौफ रूप से जानवरों की बलि चढ़ाई जाती है. जैसे ही उनलोगों की नज़र हम पर पड़ी वी चिलà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ लगे …जाओ यहाठसे. और मैं बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की उंगली पकड़ पर वापस मंदिर की ओर मूड गया.

इस दृशà¥à¤¯ के पंदà¥à¤°à¤¹ मिनट के बाद मासूम मेमने की बलि चढ़ा दी गई …..
मंदिर के पास गया तो à¤à¤• अलग ही दृशà¥à¤¯ दिखाई दिया उसी गà¥à¤°à¥à¤ª के कà¥à¤› लोग à¤à¤• दरी बिछा कर पà¥à¤¯à¤¾à¤œ तथा टमाटर काट रहे थे, मेमने को पकाने की तैयारी कर रहे थे. कà¥à¤¯à¤¾ इस तरह मासूम बेजà¥à¤¬à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की बलि देना सही है ?

और अब मेमने को पकाने की तैयारी …….

बिजली महादेव शिखर से लिया गया à¤à¤• मनोहारी दृशà¥à¤¯

नीला आकाश, गगनचà¥à¤®à¥à¤¬à¥€ परà¥à¤µà¤¤à¤®à¤¾à¤²à¤¾à¤à¤‚, उनà¥à¤®à¥à¤•à¥à¤¤ उड़ान और मोहक मà¥à¤¸à¥à¤•ान ……
खैर इस दरà¥à¤¦à¤¨à¤¾à¤• घटना को à¤à¥à¤²à¤¾à¤•र हम पà¥à¤¨à¤ƒ इस सà¥à¤°à¤®à¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ को निहारने में लग गà¤. जिस तरफ हमने खाना खाया था उसकी विपरीत तरफ मंदिर के दूसरे साईड कà¥à¤¯à¤¾ था अब तक हमें नहीं मालूम था. तà¤à¥€ हमारे कैंप के कà¥à¤› लोगों ने सलाह दी की उस तरफ जाकर देखो. जब हम वहां पहà¥à¤‚चे तो à¤à¤• अलग ही दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ थी. यहाठसे कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ शहर तथा à¤à¥‚ंतर कसà¥â€à¤¬à¤¾, बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ तथा पारà¥à¤µà¤¤à¥€ नदियाठऔर दोनों नदियों का संगम दिखाई दे रहा था. यह दृशà¥à¤¯ किसी सैटेलाइट दृशà¥à¤¯ की तरह दिखाई दे रहा था.

बिजली महादेव परà¥à¤µà¤¤ शिखर से दिखाई देता कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ शहर तथा बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ à¤à¤µà¤‚ पारà¥à¤µà¤¤à¥€ नदियों का विहंगम दृशà¥à¤¯

बिजली महादेव से दिखाई देता कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ घाटी का विहंगम दृशà¥à¤¯

à¤à¤• मेगी हो जाठ…

ये परà¥à¤µà¤¤à¥‹à¤‚ के दायरे ……

परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ मैदान
अब हमारे लौटने का समय हो चला था, सो हम वापसी की तैयारी में लग गये. à¤à¤• बार पà¥à¤¨à¤ƒ à¤à¥‹à¤²à¥‡ बाबा के दरà¥à¤¶à¤¨ किà¤, बोतलों में पानी à¤à¤°à¤¾Â और अपना समान उठा कर मंदिर परिसर से बाहर निकल आà¤. सोचा डेढ़ दो घंटे और उसी रासà¥à¤¤à¥‡ से उतरना है तो चलते चलते à¤à¤• बार और सà¤à¥€ ने à¤à¤• रेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤¨à¥à¤Ÿ पर मैगी बनवाई, खाई और à¤à¤—वान का नाम लेकर वापसी के लिठचल पड़े. वापसी में रासà¥à¤¤à¤¾ इतना कठिन नहीं लग रहा था, उतार होने की वजह से.

à¤à¤• दà¥à¤•ान पर विशà¥à¤°à¤¾à¤®

कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ में बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नदी पर बना à¤à¤• पूल

कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ – पà¥à¤°à¤•ृति तथा आधà¥à¤¨à¤¿à¤• निरà¥à¤®à¤¾à¤£ का अनूठा संगम
बीच बीच में कà¥à¤› खाते पीते हà¥à¤ करीब डेढ़ घंटे में हम वापस अपनी गाड़ी तक पहà¥à¤‚च गठतथा शाम छह बजे तक कैंप में आ गà¤. रात का खाना खाया और सो गà¤. सà¥à¤¬à¤¹ साढ़े पांच बजे मनाली से चणà¥à¤¡à¥€à¤—ढ़ के लिठहिमाचल परिवहन की डीलकà¥à¤¸ बस चलती है उसी में आरकà¥à¤·à¤£ करवा रखा था, सो सà¥à¤¬à¤¹ साढ़े चार बजे उठने की गरज से रात जलà¥à¤¦à¥€ सो गà¤. बस के कणà¥à¤¡à¤•à¥à¤Ÿà¤° से बà¥à¤•िंग करवाते वकà¥à¤¤ ही कह दिया था की YHAI के कैंप के सामने बस रोक देना. सà¥à¤¬à¤¹ तैयार होकर हम लोग कैंप के मेन गेट पर आकर खड़े हो गà¤, छह बजे के लगà¤à¤— बस आई उसमें सवार हà¥à¤ और चल पड़े चणà¥à¤¡à¥€à¤—ढ़ की ओर जहाठसे इनà¥à¤¦à¥Œà¤° के लिठहमारी टà¥à¤°à¥‡à¤¨ थी.

मनाली से चणà¥à¤¡à¥€à¤—ढ़ …..

चणà¥à¤¡à¥€à¤—ढ़ रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨
हिमाचल पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ की ढेर सारी यादें बन में बसा कर बà¥à¤à¥‡ मन से हम सब अपने घर लौट आà¤. तो दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ इस तरह हिमाचल यातà¥à¤°à¤¾ की यह शà¥à¤°à¤‚खला इस कड़ी के साथ यहीं समापà¥à¤¤ होती है. आप सà¤à¥€ साथियों का सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° कमेंटà¥à¤¸ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ढेर सारा पà¥à¤¯à¤¾à¤° मिला उसके लिठकविता तथा मेरी ओर से आप सà¤à¥€ को सहृदय आà¤à¤¾à¤°. फिर मिलते हैं जलà¥à¤¦ ही à¤à¤¸à¥‡ ही किसी सà¥à¤¹à¤¾à¤¨à¥‡ सफर की दासà¥à¤¤à¤¾à¤¨ के साथ ………
मुकेश जी हिमाचल यात्रा का सम्पूर्ण विवरण पढ़ कर आनंद आ गया। चित्र खूबसूरत और काफी मनमोहक हैं। पशु बलि के बारे में आपको खुश खबरी देता हूँ। पिछले मास हिमाचल हाई कोर्ट ने पशु बलि पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। इस कारण कुल्लू दशहरे पर भी इसका सख्ती से पालन किया गया।
अर्धशतक पोस्ट के लिखे जाने के लिए बहुत बधाई। लेकिन एक आशंका भी है यहाँ घुमक्कड़ पर जिसने भी अर्धशतक लगाया वो यहाँ टिक नहीं पाया। आप सब जानते हैं, आशा करते हैं आप का साथ यूँ ही बना रहेगा। धन्यवाद ।
नरेश जी,
आपकी हमेशा की तरह मनमोहक टिप्पंणी पढ़कर बड़ी खुशी हुई. उत्साह वर्धन के लिए शुक्रिया. बहुत खुशी की बात है की हिमाचल शासन ने पशु बलि पर रोक लगा दी है.
धन्यवाद.
मुकेश जी…. जय श्री राम
बलि के बारे में सुनकर थोड़ा अच्छा नहीं लगा …. पर समाज में रहते हुए यह सब देखना और झेलना पड़ता है जैसा की आपने मंदिर पर झेला है | यह कुप्रथा देश में लगभग हर जगह बंद हो चुकी है फिर भी कर्मकांडी, अंधविश्वासी, लालची और दुम्भी लोगो के कारण यह प्रथा कही-कही देखने को मिल ही जाती है | मेरे हिसाब से हर आदमी के नजरिया बदलने की जरूरत है तभी देश में से इस तरह की कुप्रथाए बंद होगी |
अब आपके लेख के बारे में …. बहुत शानदार और अच्छे से लिखा आपने यह पोस्ट, बिल्कुल उस जगह की सजीवता का एक अहसास नजर आया | फोटो भी बहुत अच्छे लगे… आप की सम्पूर्ण यात्रा की कहानी ख रहे है…
धन्यवाद
हिमाचल यात्रा सुन्दर लगी। पशु बलि बंद हो गई पड़ कर अच्छा लगा। ५० वीं पोस्ट पर बधाई।
नरेश जी जो अर्धशतक वालें छोड़ कर गए हैं वह भी अपने ब्लॉग पर असमंजस में हैं।
बेनु जी,
इस सुन्दर कमेन्ट के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद. आपने अपनी कमेन्ट की दूसरी पंक्ति में लाख टके की बात कह दी है, इसे कहते हैं “गागर में सागर भरना”.
वैसे आज आपको घुमक्कड़ पर पहली बार देख रहा हूँ, कृपया हमें अपने आप से परिचित करवाएँ, क्योंकि आपने जो गूढ़ बात कही है वो कोई अपरिचित अनजान व्यक्ति नहीं कह सकता है. आपने मेरी उत्सुकता बढ़ा दी है.
धन्यवाद.
Mukesh Ji,
So your Himachal episode ends with the darshan of Bijli Mahadev. Nice interesting story and beautiful photos. Thank you for sharing.
Congratulation to reach the mile stone of 50 posts. Hope we will read many more from you at Ghumakkar in coming days.
Thanks
अनुपम जी,
आपका बहुत बहुत धन्यवाद, हमेशा की तरह हौसला आफज़ाई के लिए। इस श्रंखला में शुरू से आखिरी तक आपने अपनी सुन्दर सुन्दर कमेंट्स के माध्यम से मेरा भरपूर साथ दिया और उत्साहवर्धन किया उसके लिए आभार।
बधाई अर्ध-शतक की… उम्मीद है शतक भी जल्दी लगेगा. पशु बलि के मै भी विरुद्ध हूं (मां खाने के नही..पर भगवान के नाम पर निरीह पशुओं को मारने के)…मैने अपनी खट्टी मीठी में धारी देवी का उदाहरण दिया था जहां मा काली के कहने पर बली बंद कर दी गई.
बेहतरीन पोस्ट…इस बार मात्राओं की गलतिया नगण्य थी… ज्याद एंज्वाय किया
आदरणीय निस्तब्ध आत्मा जी,
इस मनोहारी अभ्युक्ति के लिए धन्यवाद. पशु बलि के बारे में नरेश जी की अभ्युक्ति पढ़ने के बाद अब हर्ष व्याप्त है. आपके निस्वार्थ दिशा निर्देश के लिए आभार. जानकर हर्ष हुआ की इस बार मात्राओं की गलतियां नहीं मिलीं. आपने हमारी कथा का आनंद उठाया और हमने आपकी टिप्पंणी का ……
मां खाने के नही… वास्तव में मांस खाने के नही है :)
मुकेश भाई आपकी हिमाचल यात्रा बहुत बहतरीन ढंग से समापन हुई.
बिजली महादेव के दर्शन के लिए आभार,
पशु बली हिमाचल के मन्दिरो मे पहले से ही दि जाती रही है जिसपर प्रतिबंध लगना चाहिए.
सचिन जी,
आपको श्रंखला पसंद आई समझो हमारा मनोरथ सम्पूर्ण हुआ. सब शिव की कृपा है हम तो निमित्त भर है ….नरेश जी की टिप्पणी से आज ही विदित हुआ की हिमाचल उच्च न्यायालय ने पशु बलि पर पिछले माह ही प्रतिबंध लगा दिया है, तो समझ लीजिए आपकी इच्छा पूर्ण हुई.
धन्यवाद.
मुकेश जी सबसे पहले घुमक्कड़ पर 50 पोस्ट्स लिखने के लिए बधाई। आपकी इस पूरी यात्रा श्रृंखला को पढ कर बहुत अच्छा लगा।
उस प्यारे से मेमने की बलि देना ये पड़कर बहुत दुःख हुआ। निर्दोष प्राणियों की बलि देने से भला हमारा क्या फायदा हो सकता है। अच्छा है की हिमाचल सरकार ने इस पर रोक लगा दी है।
बिजली महादेव पहाड़ी से कुल्लू शहर की तस्वीर बहुत मनोरम लग रही है। . अपनी यात्रा हमारे साथ बांटने के लिए धन्यवाद।
शेफाली जी,
बधाई के लिए तथा प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. आपको ये श्रंखला पसंद आई जानकर प्रसन्नता हुई. निर्दोष प्राणियों के प्रति आपका मर्म जानकर खुशी हुई. जी बिजली महादेव से कुल्लू घाटी के चित्र ऐसे लगता हैं जैसे ये कोई सैटेलाइट चित्र हों.
धन्यवाद.
Hi Mukesh Ji
First of all congratulations for the Golden jubilee post :)
Wish, soon we will celebrate your Diamond jubilee post on Ghumakkar!
Now accept one more congratulation for the completion of successful series on Himachal!
It requires a herculean task to write such a long series with the same zeal and dedication, which you achieved successfully.
@नरेश जी की बात से धक्का लगा, पर फिर ख्याल आया कि अपने नंदन भाई की तो 100 से भी ऊपर पोस्ट है और वो फिर भी पूरी दिलेरी और मजबूती से डटे हुये हैं, इसलिए हमे और आपको चिंता करने की कोई जरूरत नही… LOL
पशु बली, कोर्ट के आदेश के बाद पूरी तरह बंद हो जायेगी, मानना मुश्किल है, दरअसल आस्था और कर्मकाण्ड चेहरा बदल लेते हैं पर चरित्र बदलना नामुमकिन है क्यूंकि धीरे-धीरे यह लोगो की जीवन शैली बन जाता है |
SS सर की वर्तनी से सम्बन्धित टिप्पणी बिलकुल सही है, इसके लिए आप भी बधाई के पात्र हैं :)
आलेख और फोटो दोनों ही अच्छे हैं, ऊपर से चौथा फोटो जहाँ बहुत ही मनोहारी दृश्य दिखाता है, वहीं दसवाँ पूरे क्षेत्र का बहुत ही विहंगम…
उम्मीद है जल्द ही आप और मैं, हरिद्वार पर एक साथ ही लिखेंगे … :)
मुकेश जी…. जय श्री राम
बलि के बारे में सुनकर थोड़ा अच्छा नहीं लगा …. पर समाज में रहते हुए यह सब देखना और झेलना पड़ता है जैसा की आपने मंदिर पर झेला है | यह कुप्रथा देश में लगभग हर जगह बंद हो चुकी है फिर भी कर्मकांडी, अंधविश्वासी, लालची और दुम्भी लोगो के कारण यह प्रथा कही-कही देखने को मिल ही जाती है | मेरे हिसाब से हर आदमी के नजरिया बदलने की जरूरत है तभी देश में से इस तरह की कुप्रथाए बंद होगी |
अब आपके लेख के बारे में …. बहुत शानदार और अच्छे से लिखा आपने यह पोस्ट, बिल्कुल उस जगह की सजीवता का एक अहसास नजर आया | फोटो भी बहुत अच्छे लगे… आप की सम्पूर्ण यात्रा की कहानी ख रहे है…
धन्यवाद
Many congratulations for your 50th post, Mukes Bhai. I promise you that I would return your ‘h’ when you complete 75 posts. Though I say that but there is never a race for numbers. I very well remember your comment where you suggested one of our prolific writers (he no longer writes here) that one should not get in the number game, the quality goes down. :-)
Good to hear about the update from Naresh on the ban. But what Avatar says is very true. Back home, having a Bali on DurgaPuja was a very very common thing (and that is something we should understand that this animal killing as a Bali is not a one-religion thing but anyway) when we were young. Now I see much less of it but its there. Last March, we were at Kamakhaya Temple (Guwahati) and its a much revered place and a lot of pilgrims go there to get blessings from Ma Kaali and right in the temple, outside the main Garbha-Griha part of building, we saw as many as 50 big goats. All for same reason. Hopefully things change and we all get better. My views are same as SS.
I think this post is becoming more a discussion ground of this sacrifice business so lets come back to travel part. The picture of Kullu Valley is simply amazing. Thank you.
बहुत ही सुंदर यात्रा वर्णन लिखा है आपने । पशु बलि के बारे में जानकर दुख हुआ किंतु हाईकोर्ट द्वारा इस पर रोक लगाए जाने का समाचार पा कर संतोष भी हुआ।
आपने अपने इंटरव्यू में कही लिखा है कि हिन्दी लिखने में तकलीफ होती है, आपको उसे गूगल ट्रांसलिटरेशन की सहायता से लिखना पडता है जबकि अंग्रेजी डायरेक्ट लिख सकते है। मैं यह बताना चाहूंगी कि आप अपने पीसी पर यूनिकोड एक्टिवेट करवा ले और उसमें ट्रांसलिटरेशन वाला आप्शन रखें तो हिन्दी भी आप डायरेक्ट लिख पाएंगे ।
Fantastic end of a great post!!!
Felt like travelling with you….
Keep writing….
Thank you very much Pravesh for going through and liking the post.
Thanks,
बहुत सुन्दर यात्रा-वृत्तांत,,,, सुन्दर छायाचित्र,,, इच्छा हो रही है कि बस अभी पहुँच जाऊँ मनाली,,,,,
बहुत सुन्दर यात्रा-वृत्तांत,,,, सुन्दर छायाचित्र,,, इच्छा हो रही है कि बस अभी पहुँच जाऊँ मनाली,,,,, पचासवीं पोस्ट पर बधाई,,,
मुकेश जी में आपसे ये पूछना चाहता हु आप हिमाचल घुमने गए थे तो आप के वह पे टोटल कितने रुपये खर्च हुए