दोस्तों,
घुमक्कड़ी की अपनी अतृप्त तथा अनियंत्रित तृष्णा को आभासी परिकल्पनाओं की उड़ान से शांत करने की गरज से गूगल पर घूमते घूमते कब घुमक्कड़ पर आकर टिक गया मुझे पता ही नहीं चला, और आज चार वर्ष से अधिक हो गए हैं इस अद्भुत मंच पर, और यह बताते हुए खुशी हो रही है की इस मंच से आज भी उतना ही लगाव है जितना शुरुआती दिनों में था, आज भी दिन की शुरुआत घुमक्कड़ से ही होती है. 5 सितंबर 2010 की अपनी पहली पोस्ट से घुमक्कड़ पर लेखन की शुरूआत करने के बाद से लेकर आज तक यह सिलसिला बदस्तूर जारी है, और आज मेरी यह पचासवीं पोस्ट आप लोगों के सामने प्रस्तुत है. आप सभी पाठकों के स्नेह का ही प्रतिफल है की इस अर्धशतक पोस्ट के लिखे जाने तक यहाँ लिखने का उत्साह बरकरार है और अगर इसी तरह आप सभी का स्नेह मिलता रहा आगे भी इसी उत्साह उमंग तथा उर्जा के साथ लिखता रहूँगा.
पिछली पोस्ट में मैने आप लोगों को बताया था की किस तरह से हम बिजली महादेव के कठीन तथा दुर्गम रास्ते को पार करके हम अन्तत: बिजली महादेव मंदिर तक पहुंच ही गए थे, अब आगे…..
बिजली महादेव मंदिर अथवा मक्खन महादेव मंदिर संपूर्ण रूप से लकडी से र्निमित है. चार सीढियां चढ़ने के उपरांत दरवाजे से एक बडे कमरे में जाने के बाद गर्भ गृह है जहां मक्खन में लिपटे शिवलिंग के दर्शन होते हैं. मंदिर परिसर में एक लकड़ी का स्तंभ है जिसे ध्वजा भी कहते है, यह स्तंभ 60 फुट लंबा है जिसके विषय में बताया जाता है कि इस खम्भे पर प्रत्येक वर्ष सावन के महीने में आकाशीय बिजली गिरती है जो शिवलिंग के टुकड़े टुकड़े कर देती है, इसीलिये इस स्थान को बिजली महादेव कहा जाता है.
इस घटना के उपरांत मंदिर के पुजारी स्थानीय गांव से विशिष्ट मक्खन मंगवाते हैं जिससे शिवलिंग को फिर से उसी आकार में जोड़ दिया जाता है. अगर बिजली के प्रकोप से लकड़ी के ध्वजा स्तंभ को हानि होती है तो फिर संपूर्ण शास्त्रिय विधि विधान से नवीन ध्वज दंड़ की स्थापना कि जाती है. यह बिजली कभी ध्वजा पर तो कभी शिवलिंग पर गिरती है. जब पृथ्वी पर भारी संकट आन पडता है तो भगवान शंकर जी जीवों का उद्धार करने के लिये पृथ्वी पर पडे भारी संकट को अपने ऊपर बिजली प्रारूप द्वारा सहन करते हैं जिस से बिजली महादेव यहां विराजमान हैं.

बिजली महादेव मंदिर
लोगों के संकट दूर करने वाले महादेव खुद इतने विवश हो सकते हैं कभी आपने सोचा नहीं होगा. हर दो तीन साल में यहाँ बिजली कड़कती है और महादेव के शिवलिंग के टुकड़े-टुकड़े कर देती है. यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा है और महादेव चुपचाप इस दर्द को सहते चले आ रहे हैं. महादेव के दर्द को दूर करने के लिए मक्खन का मरहम लगाया जाता है और मक्खन से उनके टुकड़ों को जोड़कर पुनः शिवलिंग को आकार दिया जाता है. कभी मंदिर का ध्वज बिजली से टुकड़े टुकड़े हो जाता है तो कभी शिवलिंग. शिवलिंग पर बिजली गिरते रहने के कारण यह शिवलिंग बिजलेश्वर महादेव के नाम से पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध है.

बिजली महादेव शिवलिंग
मैगी खाने के बाद अब हम लोग मंदिर की ओर बढ़ चले और कुछ दूर चलने के बाद अब मंदिर हमारे सामने था. पास ही लगे एक नल से हाथ मुंह धोकर हम मंदिर में प्रवेश कर गए. गर्भगृह में मक्खन से लिपटा मनोहारी शिवलिंग हमारे सामने था ……जय बिजली महादेव. भोले के दरबार में कुछ समय बिताने के बाद अब हम मंदिर से बाहर आ गए. मंदिर के बाहर पत्थर से निर्मित नन्दी बाबा भी थे तथा अन्य प्राचीन मूर्तियाँ थी जो मंदिर के अति प्राचीन होने का प्रमाण दे रही थी. दर्शन हो जाने के बाद हम बाहर परिसर में आ कर एक पेड़ के नीचे नर्म नर्म घास पर लेट गए. जबरदस्त थके होने के कारण उस कोमल घास पर लेटना हमें बड़ा सुकून दे रहा था.

बिजली महादेव मंदिर के सामने प्राचीन शिवलिंग तथा अन्य मूर्तियाँ
कुछ देर लेटेने के बाद अब भूख लग रही थी, कैंप से लाया गया पैक्ड लंच साथ था ही, भूख भी लग रही थी सो वहीं घास पर बैठकार पिकनिक के रूप में खाना प्रारंभ किया. उस माहौल तथा मौसम में खाना और भी स्वादिष्ट लग रहा था. खाना खाकर ठंडा पानी पिया और फिर घास पर लेट गए.

बिजली महादेव
पास ही में एक खम्भे से रस्सी द्वारा एक प्यारा सा मेमना (भेड़ का बच्चा) बंधा था, जो बच्चों के लिए आकर्षण का केन्द्र था. शिवम तथा गुड़िया दोनों खाना खाने के बाद उसी मेमने के साथ खेलने लगे. कुछ ही देर में उस बेजान प्राणी से बच्चों की गाढी मित्रता हो गई थी. दोनों देर तक उसके साथ खेलते रहे तथा खूब सारी फोटो खिंचवाई.

मेमने के साथ खेलते संस्कृति तथा शिवम
कुछ ही देर में दो स्थानीय हिमाचली लोग आए और बच्चों से कहने लगे, बेटा उसके साथ मत खेलो चलो जाओ यहाँ से, हम लोग वहीं पास में बैठे थे. मैने ये सुना तो मुझे बड़ा बुरा लगा की बच्चे अगर मेमने के साथ खेल रहे हैं तो इन लोगों को क्या तकलीफ हो रही है. मैने बच्चों को अपने पास बुला लिया. बाद में समझ में आया की क्यों वो लोग बच्चों को उस मेमने के साथ खेलने से माना कर रहे थे.
कुछ देर बाद वही दो हिमाचली आए, उनके पास एक झोला था, उन्होने मेमने के रस्से को खम्भे से खोला और धकेलते हुए घाटी के नीचे ले जाने लगे. मुझे कुछ दाल में काला लगा सो उत्सुकतावश मैं भी उनके पीछे हो लिया. थोड़ी दूर ज़ा कर उन्होनें मेमने को एक पेड़ से बाँध दिया, उनमें से एक ने झोले में से एक तेज धार वाला हथियार निकाला और मेमने की गर्दन पर चला दिया.
पता नहीं कब से मेरे दोनों बच्चे मेरे पीछे आकर खड़े ये सब देख रहे थे. जैसे ही मेमने को मारा गया, शिवम जोर जोर से रोने लगा …. पापा वो लोग उस प्यारे मेमने को मार रहे हैं आप उसको बचाते क्यों नहीं?…..असल में उस निरीह प्राणी की बलि दी गई थी. हिमाचल के मंदिरों में आज भी बेरोकटोक तथा बेखौफ रूप से जानवरों की बलि चढ़ाई जाती है. जैसे ही उनलोगों की नज़र हम पर पड़ी वी चिल्लाने लगे …जाओ यहाँ से. और मैं बच्चों की उंगली पकड़ पर वापस मंदिर की ओर मूड गया.

इस दृश्य के पंद्रह मिनट के बाद मासूम मेमने की बलि चढ़ा दी गई …..
मंदिर के पास गया तो एक अलग ही दृश्य दिखाई दिया उसी ग्रुप के कुछ लोग एक दरी बिछा कर प्याज तथा टमाटर काट रहे थे, मेमने को पकाने की तैयारी कर रहे थे. क्या इस तरह मासूम बेजुबान प्राणियों की बलि देना सही है ?

और अब मेमने को पकाने की तैयारी …….

बिजली महादेव शिखर से लिया गया एक मनोहारी दृश्य

नीला आकाश, गगनचुम्बी पर्वतमालाएं, उन्मुक्त उड़ान और मोहक मुस्कान ……
खैर इस दर्दनाक घटना को भुलाकर हम पुनः इस सुरम्य स्थान के सौन्दर्य को निहारने में लग गए. जिस तरफ हमने खाना खाया था उसकी विपरीत तरफ मंदिर के दूसरे साईड क्या था अब तक हमें नहीं मालूम था. तभी हमारे कैंप के कुछ लोगों ने सलाह दी की उस तरफ जाकर देखो. जब हम वहां पहुंचे तो एक अलग ही दुनिया थी. यहाँ से कुल्लू शहर तथा भूंतर कस्बा, ब्यास तथा पार्वती नदियाँ और दोनों नदियों का संगम दिखाई दे रहा था. यह दृश्य किसी सैटेलाइट दृश्य की तरह दिखाई दे रहा था.

बिजली महादेव पर्वत शिखर से दिखाई देता कुल्लू शहर तथा ब्यास एवं पार्वती नदियों का विहंगम दृश्य

बिजली महादेव से दिखाई देता कुल्लू घाटी का विहंगम दृश्य

एक मेगी हो जाए …

ये पर्वतों के दायरे ……

पर्वतीय मैदान
अब हमारे लौटने का समय हो चला था, सो हम वापसी की तैयारी में लग गये. एक बार पुनः भोले बाबा के दर्शन किए, बोतलों में पानी भरा और अपना समान उठा कर मंदिर परिसर से बाहर निकल आए. सोचा डेढ़ दो घंटे और उसी रास्ते से उतरना है तो चलते चलते एक बार और सभी ने एक रेस्टोरेन्ट पर मैगी बनवाई, खाई और भगवान का नाम लेकर वापसी के लिए चल पड़े. वापसी में रास्ता इतना कठिन नहीं लग रहा था, उतार होने की वजह से.

एक दुकान पर विश्राम

कुल्लू में ब्यास नदी पर बना एक पूल

कुल्लू – प्रकृति तथा आधुनिक निर्माण का अनूठा संगम
बीच बीच में कुछ खाते पीते हुए करीब डेढ़ घंटे में हम वापस अपनी गाड़ी तक पहुंच गए तथा शाम छह बजे तक कैंप में आ गए. रात का खाना खाया और सो गए. सुबह साढ़े पांच बजे मनाली से चण्डीगढ़ के लिए हिमाचल परिवहन की डीलक्स बस चलती है उसी में आरक्षण करवा रखा था, सो सुबह साढ़े चार बजे उठने की गरज से रात जल्दी सो गए. बस के कण्डक्टर से बुकिंग करवाते वक्त ही कह दिया था की YHAI के कैंप के सामने बस रोक देना. सुबह तैयार होकर हम लोग कैंप के मेन गेट पर आकर खड़े हो गए, छह बजे के लगभग बस आई उसमें सवार हुए और चल पड़े चण्डीगढ़ की ओर जहाँ से इन्दौर के लिए हमारी ट्रेन थी.

मनाली से चण्डीगढ़ …..

चण्डीगढ़ रेलवे स्टेशन
हिमाचल प्रदेश की ढेर सारी यादें बन में बसा कर बुझे मन से हम सब अपने घर लौट आए. तो दोस्तों इस तरह हिमाचल यात्रा की यह श्रंखला इस कड़ी के साथ यहीं समाप्त होती है. आप सभी साथियों का सुन्दर सुन्दर कमेंट्स के द्वारा ढेर सारा प्यार मिला उसके लिए कविता तथा मेरी ओर से आप सभी को सहृदय आभार. फिर मिलते हैं जल्द ही ऐसे ही किसी सुहाने सफर की दास्तान के साथ ………
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Mukesh Ji,
So your Himachal episode ends with the darshan of Bijli Mahadev. Nice interesting story and beautiful photos. Thank you for sharing.
Congratulation to reach the mile stone of 50 posts. Hope we will read many more from you at Ghumakkar in coming days.
Thanks
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Hi Mukesh Ji
First of all congratulations for the Golden jubilee post :)
Wish, soon we will celebrate your Diamond jubilee post on Ghumakkar!
Now accept one more congratulation for the completion of successful series on Himachal!
It requires a herculean task to write such a long series with the same zeal and dedication, which you achieved successfully.
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Many congratulations for your 50th post, Mukes Bhai. I promise you that I would return your ‘h’ when you complete 75 posts. Though I say that but there is never a race for numbers. I very well remember your comment where you suggested one of our prolific writers (he no longer writes here) that one should not get in the number game, the quality goes down. :-)
Good to hear about the update from Naresh on the ban. But what Avatar says is very true. Back home, having a Bali on DurgaPuja was a very very common thing (and that is something we should understand that this animal killing as a Bali is not a one-religion thing but anyway) when we were young. Now I see much less of it but its there. Last March, we were at Kamakhaya Temple (Guwahati) and its a much revered place and a lot of pilgrims go there to get blessings from Ma Kaali and right in the temple, outside the main Garbha-Griha part of building, we saw as many as 50 big goats. All for same reason. Hopefully things change and we all get better. My views are same as SS.
I think this post is becoming more a discussion ground of this sacrifice business so lets come back to travel part. The picture of Kullu Valley is simply amazing. Thank you.
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Fantastic end of a great post!!!
Felt like travelling with you….
Keep writing….
Thank you very much Pravesh for going through and liking the post.
Thanks,
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