“बास करहॠतहठरघà¥à¤•à¥à¤² राया, कीजे सकल मà¥à¤¨à¤¿à¤¨à¥à¤¹ पर दाया. चले राम मà¥à¤¨à¤¿ आयसॠपाई, तà¥à¤°à¤¤à¤¹à¤¿à¤‚ पंचवटी नियराई 
यह पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ कृत रामचरितमानस के अरणà¥à¤¯à¤•ाणà¥à¤¡ से उधृत हैं. इसका अरà¥à¤¥ यह हà¥à¤† कि अपने वनवास के दौरान शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦à¥à¤° जी ने वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ नाशिक शहर में गोदावरी नदी के तट पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ पंचवटी में निवास किया था. इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ का यही सबसे बड़ा महतà¥à¤¤à¥à¤µ है. २५ मारà¥à¤š २०१६ को मैं सपरिवार नाशिक शहर में था. उसी दिन सà¥à¤¬à¤¹ में हमलोग सपà¥à¤¤à¥à¤¶à¥à¤°à¥€à¤‚गी देवी की यातà¥à¤°à¤¾ करके दोपहर तक नाशिक लौटे थे. वह हमारे लिठà¤à¤• नया शहर था, इसीलिठहमसà¤à¥€ उतà¥à¤¸à¥à¤•ता इस शहर के बारे में जानने की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ कर रहे थे. मैं देखना चाहता था वे सारे सà¥à¤¥à¤² जहाठशूरà¥à¤ªà¤¨à¤–ा का नाक-कान कटा गया था, जहाठसे सीता का अपहरण हà¥à¤† था और जिस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर शà¥à¤°à¥€ रामचनà¥à¤¦à¥à¤°à¤œà¥€ ने अपने पिता दशरथ का अंतिम संसà¥à¤•ार किया था. अतः दोपहर के खाने के बाद थोड़ा विशà¥à¤°à¤¾à¤® करके करीब चार बजे अपने गेसà¥à¤Ÿ हाउस से à¤à¤• कार पर सवार हो कर गोदावरी-नदी के तट के लिठनिकल पड़े. जलà¥à¤¦à¥€ ही हमारी कार पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ नाशिक की तंग गलियों से होती हà¥à¤ˆ गोदावरी तट पर राम-तीरà¥à¤¥ के पास पहà¥à¤à¤š गयी. यहाठहमसब उतर गà¤, कार को उचित पारà¥à¤•िंग सà¥à¤¥à¤² के लिठà¤à¥‡à¤œ दिया गया और हमारी गोदावरी-तट की पैदल यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ हो गयी.

राम-तीरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ गंगा-गोदावरी मंदिर
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¥à¤· में चार सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर कà¥à¤®à¥à¤ का आयोजन होता है, जिसमें से à¤à¤• नाशिक का गोदावरी तट है. यह कà¥à¤®à¥à¤ का समय à¤à¥€ था. बारह वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ आने वाले कà¥à¤®à¥à¤ की कई धारà¥à¤®à¤¿à¤• लोग-बाग़ वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ करते हैं. कà¥à¤®à¥à¤ का सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ पवितà¥à¤° तथा पापमोचक मन जाता है. जैसे ही हमें कà¥à¤®à¥à¤ के बारे में पता चला, हमारी ख़à¥à¤¶à¥€ और बढ़ गयी, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हमने तो इस उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से तो यहाठआने का सोचा ही नहीं था. à¤à¤¸à¥‡ ही में à¤à¤—वानॠके बà¥à¤²à¤¾à¤µà¥‡ के बारे में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ लोकोकà¥à¤¤à¤¿ का सà¥à¤®à¤°à¤£ हो जाता है. इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर गोदावरी नदी पर बने सारे घाट पकà¥à¤•ी सीढ़ियों वाले हैं. ठीक दायीं ओर à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨-सा दिखने वाला “गंगा-गोदावरी मंदिर अथवा गोदावरी-à¤à¤¾à¤—ीरथी मंदिर†था. सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ नियमों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° यह मंदिर पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• बारह-वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के बाद सिरà¥à¤« कà¥à¤®à¥à¤ के समय में ही खà¥à¤²à¤¤à¤¾ है. उस समय इसकी सफाई की जाती है और फिर कà¥à¤®à¥à¤ में आये लोग इसमें पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ करते है. हमारी तो ख़à¥à¤¶à¥€ का ठिकाना नहीं. पहली बार नाशिक आये और à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ मंदिर में पूजा करने का सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ मिला जो अब बारह वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के बाद ही खà¥à¤²à¥‡à¤—ा.

कà¥à¤®à¥à¤ की धà¥à¤µà¤œà¤¾
उस मंदिर से बाहर निकले तो देखा कि इसी मंदिर के पास पीतल से बने धà¥à¤µà¤œ-खंठपर “कà¥à¤®à¥à¤ की धà¥à¤µà¤œà¤¾â€ फहरायी गयी थी. वहीठपता चला की कà¥à¤®à¥à¤ के समय धà¥à¤µà¤œ फहराने और उतारने का à¤à¥€ à¤à¤• कोड है. गà¥à¤°à¤¹à¥‹à¤‚ की गति के साथ साथ कà¥à¤®à¥à¤ à¤à¥€ à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से दूसरे सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर मनाया जाता है. उसी की निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤£ से यह बताया जाता है कि किस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर कà¥à¤®à¥à¤ की धà¥à¤µà¤œà¤¾ कब चढ़ेगी और कब उतरेगी. और इसी धà¥à¤µà¤œ के उतार-चढ़ाव के समय से सारे कà¥à¤®à¥à¤-सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ के धरà¥à¤®-गà¥à¤°à¥ और शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ à¤à¤•-दà¥à¤¸à¤°à¥‡ से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ रहते है. धà¥à¤µà¤œà¤¾à¤°à¥‹à¤¹à¤£ के समय काफी विशाल कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® à¤à¥€ आयोजित किया जाता है, जिसमें सà¤à¥€ गणà¥à¤¯-मानà¥à¤¯ à¤à¥€ आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ रहते है. कà¥à¤®à¥à¤ की धà¥à¤µà¤œ के महतà¥à¤¤à¥à¤µ का हमें पहले जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं था, अतà¤à¤µ यह जानकारी संजो कर हम आगे चल पड़े कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अब यह पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ तो अगले बारह वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के बाद ही होगी.

राम-कà¥à¤£à¥à¤¡
वहीठमंदिर के सामने गोदावरी-नदी के घाट में à¤à¤• बड़ा और पीछे à¤à¤• छोटा कà¥à¤£à¥à¤¡ बना था, जिसमें अà¤à¥€ कà¥à¤› जल शेष था. बड़े कà¥à¤£à¥à¤¡ को “राम-कà¥à¤£à¥à¤¡â€, तथा छोटे कà¥à¤£à¥à¤¡ को लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£-कà¥à¤£à¥à¤¡ कहा जाता है. किमà¥à¤µà¤¦à¤‚ती है कि वनवास पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ के दौरान शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® राम-कà¥à¤£à¥à¤¡ में और शà¥à¤°à¥€à¤²à¤•à¥à¤·à¥à¤®à¤£ लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£-कà¥à¤£à¥à¤¡ में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ किया करते थे. शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤®-कà¥à¤£à¥à¤¡ के पास ही à¤à¤• छोटा सीता-कà¥à¤£à¥à¤¡ à¤à¥€ बताया गया. जल रà¥à¤•ा हà¥à¤† और गनà¥à¤¦à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता था. फिर à¤à¥€ कई शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ उसमें सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कर रहे थे. हमलोगों ने सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करना तो उचित नहीं समà¤à¤¾, पर धारà¥à¤®à¤¿à¤• मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं का अनà¥à¤¸à¤°à¤£ करते हà¥à¤ अपने पर जल का छिडकाव किया और उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर आये, जहाठखड़े हो कर शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® ने अपने पिता दशरथजी की असà¥à¤¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ गोदावरी नदी में पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ की थी.

असà¥à¤¥à¤¿-विलय तीरà¥à¤¥
वह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨, जहाठशà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® ने असà¥à¤¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ की थीं, वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में सीमेंट के पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® से चिनà¥à¤¹à¤¿à¤¤ था और लोहे की रैलिंगà¥à¤¸ से घेरा हà¥à¤† था. इसे वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में “असà¥à¤¥à¤¿ विलय तीरà¥à¤¥â€ कहते हैं. आज-कल à¤à¥€ कई लोग अपने विशेष परिवार-जनों की असà¥à¤¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ यहीं विसरà¥à¤œà¤¿à¤¤ करते हैं. सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोकोकà¥à¤¤à¤¿ है कि कोई नहीं जानता कि वे विसरà¥à¤œà¤¿à¤¤ असà¥à¤¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ कहाठलà¥à¤ªà¥à¤¤ हो जाती हैं. अब यदि à¤à¤• वरà¥à¤· में पांच हज़ार लोग à¤à¥€ यहाठअसà¥à¤¥à¤¿ विसरà¥à¤œà¤¿à¤¤ करें तो इस सà¥à¤¥à¤² पर à¤à¤• छोटा उà¤à¤¾à¤° बनना तो सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• था, परनà¥à¤¤à¥ उà¤à¤¾à¤° तो कà¥à¤¯à¤¾, वहाठतो बिलकà¥à¤²-ही नीचे तक नदी की धारा-ही बह रही थी. इसीलिठइस लोकोकà¥à¤¤à¤¿ पर विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ करना तरà¥à¤•संगत लगा. मैंने à¤à¥€ कà¥à¤› समय तक वहां खड़ा होके अपने पà¥à¤°à¥à¤–ों की मानसिक पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की और फिर अगले पॉइंट की ओर चला.

गाà¤à¤§à¥€ सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• और गाà¤à¤§à¥€ तालाब
अगला पॉइंट ‘गाà¤à¤§à¥€ सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤•†और “गाà¤à¤§à¥€ तालाब†थे. यह दोनों à¤à¥€ गोदावरी-तट पर राम-तीरà¥à¤¥ के निकट ही थे. गाà¤à¤§à¥€ सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर बना है, जहाठसे गाà¤à¤§à¥€ जी की असà¥à¤¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ १९४८ में गोदावरी नदी में पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ की गयीं थीं. सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• काफी बड़ा है और उस पर ऊपर चढ़ने के लिठसीढियां बनी हà¥à¤ˆà¤‚ हैं. ऊपर सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• में गीता के कà¥à¤› शà¥à¤²à¥‹à¤• अंकित हैं. नीचे काले पतà¥à¤¥à¤° और ऊपर संगमरमर से बने यह सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• पशà¥à¤šà¤¾à¤¤-काल में कितना à¤à¤µà¥à¤¯ दीखता होगा. परनà¥à¤¤à¥ अब यहाठसफाई की अतà¥à¤¯à¤‚त आवशà¥à¤¯à¤•ता पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होती थी. वहीठपता चला कि महातà¥à¤®à¤¾ गाà¤à¤§à¥€ के अतिरिकà¥à¤¤ कई बड़े-बड़े नेताओं की असà¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¥€ इसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर विसरà¥à¤œà¤¿à¤¤ करने के लिठलाया गया था. गाà¤à¤§à¥€ तलब में कà¥à¤› जल शेष था, जिसमें बचà¥à¤šà¥‡ तैरने का अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ कर रहे थे. साथ-ही वहां कà¥à¤› नौकाà¤à¤‚ à¤à¥€ किनारे लगीं हà¥à¤ˆà¤‚ दिखीं, जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शायद नौका-विहार के लिठपà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— में लाया जाता होगा.

राम-तीरà¥à¤¥ का विहंगम दृशà¥à¤¯
अब तक गोदावरी-नदी का यह तट हमें पाप-पà¥à¤£à¥à¤¯-मृतà¥à¤¯à¥ इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ के बारे में सà¥à¤®à¤°à¤£ करा रहा था. पर साथ-साथ मैं वहां की आबो-हवा का अनà¥à¤à¤µ करने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ à¤à¥€ कर रहा था. हलकी-हलकी हवा चल रही थी, जिसने दोपहर की धूप की तपिश को हरना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया था. आंशिक संधà¥à¤¯à¤¾ काल में à¤à¤• धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤² होने के कारण वहां का सारा वातावरण निसà¥à¤¸à¤‚देह धरà¥à¤®à¤ªà¤°à¤¾à¤¯à¤£à¤¤à¤¾ के अहसास दिला रहा था. परनà¥à¤¤à¥ मैं किसी बात से खिनà¥à¤¨ था. और वह था गोदावरी नदी में पानी का न होना. नदी का पाट छोटा था, परनà¥à¤¤à¥ पार जाने के लिठà¤à¤• सीमेंट का पà¥à¤² बना हà¥à¤† था. पà¥à¤² के ऊपर चढ़ने से सारा तट साफ दिखाई देने लगा. राम-तीरà¥à¤¥ के सारे घाट पकà¥à¤•ी सीढ़ियों से बने थे. काफ़ी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ à¤à¥€ यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठउपलबà¥à¤§ थीं. पर वहीठमैंने देखा कि नदी के पाटों के बीच तक लोगों की गाड़ियाठलगी हà¥à¤ˆà¤‚ थीं. अब à¤à¤¸à¥‡ में, जब नदी के बीच में ही निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कारà¥à¤¯ हो, तो नदी में जल कहाठसे आये.

शà¥à¤°à¥€ यशवंत राव माधो की समाधि
घाट पार करने के उपरानà¥à¤¤ हमलोग à¤à¤• लाल रंग से रंगी à¤à¤• विशाल ईमारत के समीप आये. चार मंजिला और गोल गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦ वाली उस ईमारत पर नज़र पड़ते ही कौतà¥à¤¹à¤² सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• था. नजदीक जाने से पता चला की हाल में ही निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ वह ईमारत à¤à¤• साधू की समाधी थी. निसंदेह वह कोई विशेष पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ रखने वाला मठाधीश होगा, à¤à¤¸à¤¾ सोच कर हमलोग वहां से आगे बढे. वैसे तो हर थोड़ी-थोड़ी दूर पर कोई मंदिर या कोई धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤² दीखता था, पर साधू की समाधि के बाद उस घाट पर और कोई विशेष कौतà¥à¤¹à¤² शेष नहीं होने की वजह से हमलोग वापस लौटने लगे.

जड़ी-बूटियाà¤
नदी के ठीक बीचो-बीच दोनों पाटों को जोड़ता हà¥à¤† à¤à¤• रासà¥à¤¤à¤¾ बना हà¥à¤† था, जिसमें सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ आदिवासी तरह-तरह की जड़ी-बूटियाठबेच रहे थे. हमें सड़कों पर बिछी हà¥à¤ˆ à¤à¤¸à¥€ जड़ी-बूटियों वाली दà¥à¤•ानें बहà¥à¤¤ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करतीं हैं, हालाà¤à¤•ि मैं इनके बारे में जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं रखता. कà¥à¤› समय रà¥à¤•ता हूà¤, कà¥à¤› तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚ खींच कर आगे बढ़ जाता हूà¤. पर कà¤à¥€-न-कà¤à¥€ मैं इनके बारे में जानने की और कोशिश करूà¤à¤—ा, à¤à¤¸à¤¾ सोच कर आगे बढ़ा तो आगे “दू-तोंदà¥à¤¯ मूरà¥à¤¤à¤¿â€ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ दिखी. à¤à¤• तरफ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤œà¥€ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किसी राकà¥à¤·à¤¸ का वध किया जाना अंकित था तो दूसरी तरफ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤œà¥€ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤µ से अपने आराधà¥à¤¯ की पूजा कर रहे थे.

दू-तोंदà¥à¤¯à¤¾ मूरà¥à¤¤à¥€
दो-मà¥à¤–ी हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ के बाद हमलोग अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ “नारोशंकर मंदिर†के ठीक सामने थे. १à¥à¥¬à¥ª ईसà¥à¤µà¥€ में बने इस मंदिर के दà¥à¤µà¤¾à¤° पर à¤à¤• बड़ा-सा घंटा लटक रहा था. इस “नारोशंकर घंटे†की à¤à¥€ à¤à¤• कहानी है. लोकोकà¥à¤¤à¤¿ है कि १à¥à¥©à¥¯ में ततà¥à¤•ालीन पेशवा बालाजी राव पà¥à¤°à¤¥à¤® ने पोरà¥à¤¤à¥à¤—िसों से वसई किला जीत लिया था और उसी जीत के बाद वसई चरà¥à¤š में लगा घंटा यहाठला कर लगा दिया गया. किमà¥à¤µà¤¦à¤‚ती यह à¤à¥€ है कि इस घंटे की आवाज २-३ किलोमीटर तक जाती है, पर मंदिर के जीरà¥à¤£-शीरà¥à¤£ होने की वजह से अब इसे बजाया नहीं जाता. यह à¤à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि जब गोदावरी नदी का पानी ऊपर चढ़ कर इस घंटे को छूने लगे तो पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ नाशिक शहर पर बाढ़ का खतरा होगा.

नारोशंकर घंटा
नारोशंकर मंदिर की छत अपने आप में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¤à¥à¤¯-कला के लिठपà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है. काफ़ी विदेशी परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• इस मंदिर की छत का अधà¥à¤§à¤¯à¤¨ करने आते हैं. चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के नकà¥à¤•ाशीदार टà¥à¤•ड़े सिरà¥à¤« उन टà¥à¤•ड़ों पर बने खांच में लग कर अà¤à¥€ तक खड़े है. मंदिर के अनà¥à¤¦à¤° के सà¤à¤¾ मंडप में à¤à¤• नंदी और à¤à¤• कछà¥à¤ की मूरà¥à¤¤à¤¿ है. कछà¥à¤ की मूरà¥à¤¤à¤¿ तो जमीन के सतह पर ही अंकित है. कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾-ही तà¥à¤°à¥ˆà¤®à¥à¤¬à¤•ेशà¥à¤µà¤° मंदिर में à¤à¥€ देखने को मिलता है. मंदिर के बाहर के पà¥à¤°à¤¾à¤‚गन में à¤à¥€ कई कलातà¥à¤®à¤• आकृतियाठहैं, जैसे की काल-सरà¥à¤ª की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾. नारोशंकर मंदिर में कà¥à¤› समय बिताने के बाद हमलोग फिर से राम-तीरà¥à¤¥ की तरफ बढ़े.

नारोशंकर मंदिर की छत
राम-तीरà¥à¤¥ पर ही à¤à¤• और मंदिर की नकà¥à¤•ाशी ने हमलोगों को आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ किया. यह इंदौर की होलकर मराठाओं की रानी अहिलà¥à¤¯à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ ‘सरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° मंदिर’ था. मंदिर की दीवार पर लगे पतà¥à¤¥à¤° पर उकृत सूचना दरà¥à¤¶à¤¾ रही थी कि इस मंदिर की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ शक संवत १à¥à¥¦à¥ (१à¥à¥®à¥« ईसà¥à¤µà¥€) में हà¥à¤ˆ थी. पर मंदिर अà¤à¥€ बंद था. अतः हमलोग इस मंदिर का दरà¥à¤¶à¤¨ नहीं कर पाà¤, जिसका हमें खेद रहेगा.

अहिलà¥à¤¯à¤¾ बाई रानी का सरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° मंदिर
पर अब तक संधà¥à¤¯à¤¾ के ५.४५ बज चà¥à¤•े थे. गोदावरी तट से बाहर निकलने का समय हो चà¥à¤•ा था. अà¤à¥€ हमें उस धरती पर à¤à¥€ जाना था, जिसे रामायण काल में “दणà¥à¤¡à¤•ारनà¥à¤¯â€ कहा जाता था. इसीलिठहमलोग राम-तीरà¥à¤¥ से बाहर आये तो देखा कि इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर कई धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾à¤à¤‚, लॉज और खाने-पीने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ है. कà¥à¤›à¥‡à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तो शताबà¥à¤¦à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से चल रहे थे. हर थोड़ी दूर पर à¤à¤• मंदिर था. अब यदि कोई चाहे तो हरेक मंदिर का दरà¥à¤¶à¤¨ कर सकता है. परनà¥à¤¤à¥ समय का अà¤à¤¾à¤µ सà¤à¥€ को होता ही है, हमारे पास à¤à¥€ यही हाल था. इसीलिà¤, राम-तीरà¥à¤¥ से बाहर निकल कर हमलोग सीधे “शà¥à¤°à¥€ कपालेशà¥à¤µà¤° मंदिर†आ गà¤.

शà¥à¤°à¥€ कपालेशà¥à¤µà¤° मंदिर में जाने का रासà¥à¤¤à¤¾
शà¥à¤°à¥€ कपालेशà¥à¤µà¤° मंदिर में जाने के लिठसंकरी सीढियां थीं. सà¥à¤¬à¤¹ ही हमलोगों ने सपà¥à¤¤à¥à¤¶à¥à¤°à¥€à¤‚गी देवी के मंदिर की ५०० सीढियां चढ़ी थीं, जिससे पैरों में थोड़ी जकड़ जरà¥à¤° थी. परनà¥à¤¤à¥ कपालेशà¥à¤µà¤° मंदिर में जाने का हाथ आया मौका à¤à¥€ कैसे छोड़ा जाता. इसीलिठबिलकà¥à¤² धीरे-धीरे चल कर हमलोग ऊपर चढ़ ही गà¤. इस मंदिर में पूजन करने हेतॠयदि पूजन सामगà¥à¤°à¥€-फूल इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ लेने हों, तो वे सीढियां चढ़ने से पहले ही ले-लेने चाहिठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि ऊपर सिरà¥à¤« मंदिर ही है.

शà¥à¤°à¥€ कपालेशà¥à¤µà¤°
शà¥à¤°à¥€ कपालेशà¥à¤µà¤° महादेव की à¤à¥€ à¤à¤• कहानी है. à¤à¤¸à¤¾ कहा जाता है कि à¤à¤—वानॠशिव को किसी वक़à¥à¤¤ गो-हतà¥à¤¯à¤¾ का पाप लगा. उस पाप से छà¥à¤Ÿà¤•ारा पाने के लिठउनके वाहन नंदी ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गोदावरी नदी सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ राम-तीरà¥à¤¥ में पूजन करने की सलाह दी. नंदी की बात मान कर शिवजी अकेले ही राम-तीरà¥à¤¥ आये और वहां पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ की, जिससे उनका पातक छूट गया. यही वजह है कि इस शिव मंदिर में नंदी की कोई पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ नहीं है. यहाठशिवजी का काफ़ी शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गार किया गया था, जो दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ था. कई लोग इस मंदिर की परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ कर रहे थे. उनà¥à¤¹à¥€ से सà¥à¤¨à¤¾ कि शà¥à¤°à¥€ कपालेशà¥à¤µà¤° की परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ करने से कई मनोरथ पूरे हो जाते है. मनोरथ ले के तो हम आये नहीं थे, परनà¥à¤¤à¥ परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ करने में सच में आनंद आ गया. उस परिसर में और à¤à¥€ कई छोटे-बड़े मंदिर थे. वहीठहमलोगों ने à¤à¤• विदेशी महिला को à¤à¥€ देखा, जिसने गेंदा के फूलों की à¤à¤• माला खरीद ली थी और उस माला से à¤à¤•-à¤à¤• फूल तोड़-तोड़ कर बड़ी शांति à¤à¤µà¤‚ तनà¥à¤®à¤¯à¤¤à¤¾ से हरेक मंदिर में चढ़ाये जा रही थी. कà¥à¤› दूर तक तो हम साथ-साथ चले, फिर हमलोग अपने रासà¥à¤¤à¥‡ बढ़ गठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अà¤à¥€ हमारी दणà¥à¤¡à¤•-वन या तपोवन की यातà¥à¤°à¤¾ शेष थी.
Uday ji, very nice post. Just by reading your post I feel that I am travelling the place right at the moment. Your hindi and the detailing about each and every place you visit is commendable. Waiting for your next post!
Thank you Pooja for very nice comments. I am really glad to know that you liked the post.
Regards
नाशिक को मैंने हमेशा नासिक समझा , शायद नाशिक सही रूप है , खैर आपका उल्लेख जीवंतता से राम-तीर्थ का वर्णन करता है । शायद निश्चितता से तो कहना ममुश्किल है, की वाकई में यह वही जगह है जहाँ श्री राम ने डेरा डाला था पर जो आज सही है उसे सही मान लेतें हैं ।
तो क्या गोदावरी में बिलकुल पानी नहीं था ?
आपके इस सचित्र एंड वृस्तित लेख के लिए साधुवाद । ऐसा पढ़ने के बाद लगा की अंग्रेजी में क्विक एंड इजी , कमेंट करना अनुचित नहीं होगा तो हिंदी में प्रयास है ।
नाशिक और नासिक दोनों आजकल प्रसिद्ध हैं. मान्यताओं पर आधारित ऐतिहासिक स्थलों की बात कुछ और है, खास कर उस काल में जब वैज्ञानिक सबूतों की प्राथमिकता बढ़ रही हो. पर फिर भी लोगों की धारणाएं स्थिर रहतीं हैं.
गोदावरी में पानी वहाँ पर उस वक़्त नहीं था, परन्तु इस वर्ष मानसून की बारिश के दौरान अगस्त २०१६ के महीने में गोदावारी में जो उफान आया था, वैसा उफान नाशिक के लोगों ने पहले नहीं देखा था. मैं उस समय भी वहाँ गया था. और जो मैंने गोदावरी की विभीषिका देखी तो दिल दहल उठा. कितना प्रवाह सबल था उस नदी का.
खैर, आपको पोस्ट पसंद आया और आपने भी हिंदी में लिखने की कोशिश की, उसके लिए धन्यवाद.