I am working in garments industry in Noida as manager accounts. living in NCR region.
बचपन मे कहानी, उपन्यास धार्मिक ग्रंथ जो भी मिल गया बस पढ़ने बैठ गया . . चाहें वह मुंशी प्रेम चन्द की कहानियाँ हो, या जय शंकर प्रसाद की कामायनी, या देवकी नंदन खत्री का उपन्यास. चंद्रकान्ता , चंद्रकान्ता के लिए कहते है इसको पढ़ने के लिए कई लोगों ने हिन्दी पढ़ना सीखा था. घर मे विशालकाय महाभारत ग्रंथ 2 भागो मे रखे थे, कुछ नही मिला तो उसे ही पढ़ना शुरू कर दिया. सच तो यह है की पढ़ना भी एक कला है. हर कोई धैर्य से पढ़ नही सकता. और इसी तरह से लिखना भी एक कला है. हर कोई पढ़ तो सकता है पर लिख नही सकता. पर लिखने वाले मे पढ़ने की आदत होना ज़रूरी है. अन्यथा वह कभी भी अच्छा नहीं लिख पाएगा.
My phylosphy is " मनुष्य को अपने कर्मो का फल अवश्य मिलता है. हम जैसा दूसरे के साथ करते है वैसा हमारे साथ होता है.
dear manu
तीन चार वर्ष पहले मै मई के पहले हफ्ते मे कोसनी गया होटेल वाले ने सुबह 4 बजे उठा दिया. जैसे – तैसे हम लोग वियू पॉइंट पर पहुँचे पर कुछ भी तो नही दिखा. शायद मौसम साफ नही होने के कारण रहा हो.
बहुत खूबसूरत वर्णन , फोटो भी बाड़िया हैं|
मैं जून में केदारनाथ व बद्रीनाथ गया था , सारी की सारी यात्रा दुबारा आँखों के सामने आ गई |
चोपता वाकई में बहुत खूबसूरत है | ज़यादा चड़ाई के कारण ड्राइवर वहाँ से जाते नही हैं यदि बोला ना जाए |
Bahut hi sunder varnan kiya he aap ne yatra ka. Bardinath se judi saari kathaye bhi bata kar aapne hamare gyan me vradhi ki, us hetu kotish dhanyawad. Bahut ache photos liye he aapne. Badrinath-Kedarnath par likhe lekho me ye lrkh mujhe sabse adhik pasand aaye…..marg aur duriyon ki achi jankari di aapne…bahut gyanvardhak.
इस लेख मे मैने कोशिश यही की थी कि अधिक से अधिक जानकारी थोड़े शब्दो मे दी जाय. अगर पाठक को लेख पसंद आ जाता है तो लिखने वाले को उससे अधिक प्रसन्नता होती है. धन्यवाद
It is a beautiful T-log with equally eye catching fotos. Chopta is indeed one of the most beautiful places on earth. We went there in 1992 and still havent forgotten that
हां रस्तोगी जी जब हम गये तो 1-2 चाय की दुकाने व एक छोटा सा सरकारी गैस्ट हाउस ही था… मुझे नही लगता चोपता अब उतना सुन्दर रहा होगा. टूरिस्म कुछ न कुछ नुक्सान तो करता ही है
बाकी आपका लेख बहुत खूबसूरत है, चित्र बहुत अच्छे है व लेखन उत्तम…छोटी-मोटी त्रुटियां तो हर लेख मे होती ही है |
वैसे अगर आप लेख को 2 भागों मे देते तो कुछ अधिक निखर कर आता। फिर भी बहुत कसा हुआ व बेहतरीन लेख है
रस्तोगी जी नमस्कार, मै पांच बार बदरीनाथ जी की यात्रा पर जा चुका हूँ, मैंने घुमक्कड पर पोस्ट भी डाली थी. आखिरी बार दो साल पहले गया था. ये धाम ऐसा धाम हैं, जंहा बार बार जाने का मन करता हैं. और फिर वंहा से आने का मन नहीं करता हैं. मन करता हैं की भगवान बद्री विशाल के चरणों में ही पड़े रहो. जय बद्री विशाल. वन्देमातरम…
maza la dia aapne rastogi ji.wah kya kehna.main bhi aapke saath -2 dasrshan kar lia. halaki log pehle kedar phir badri vishal ke darshan ko jate hain,par mera jana ulta hua tha,main nainital se sabhi jagah ghumte hue gwaldam me ratri vishram karte hue pindar nadi ke kinare -2 hote hue pehle badri vishal ke darshan kar choupta hote hue kedar baba ke darshan ko gaya tha. choupta me maine night halt kia tha.wahan bijli nahi hai,chhote chhote hotel hain jo khana bhi dete hain aur raat me battery se chalnewali emergency light bhi.bahut khubsurat jagah hai choupta,wahan ek cheej jo maine dekhi subah-2 kaag(kouaa) bahut jyada the aur we kutchh bhi uchhaal kar kar khane ko dene par use jameen par nahi girne dete the,hawa me hi lapak lete the.aage jo gupt kashi me aapne kedar baba ke winter ka unke ghar ka darshan kie wo jagah ukhimath kehlata hai.
राजेश जी तो कुल मिला कर आपकी पुरानी यादे तो मैने ताजी कर ही दी. हाँ एक बात ज़रूर है की मै भी एक बार वहाँ रुक कर वहाँ की सुंदरता को जी भर कर देखना चाहता हूँ
रस्तोगी जी,
इतना सुन्दर एवं कमाल का वर्णन किया है आपने इस पोस्ट में की हमें लग रहा है हम भी आपके साथ यात्रा कर रहे हैं. हम जैसे लोग जो कभी बद्रीनाथ नहीं गए उनके लिए यह पोस्ट बद्रीनाथ की एक कम्प्लीट मार्गदर्शिका है. पढ़ते पढ़ते ऐसा लग रहा था की जो हम पढ़ रहे हैं वही हमारी आँखों के सामने चलचित्र के सामान घूम रहा है. बहुत सुन्दर वर्णन. मात्राओं की तथा वर्तनी की कुछ छोटी मोटी त्रुटियाँ जरूर थीं लेकिन उनसे पोस्ट की रोचकता एवं महत्त्व में रत्ती भर भी कमी नहीं आई.
kavita ji
एक लेखक की सबसे बड़ी खुशी यही होती है की जब अन्य पाठक उसके लेख को सराहे. आपको बद्रीनाथ-केदारनाथ की यात्रा अच्छी लगी. जानकार खुशी हुई. जहाँ तक व्याकरण या मात्राओ कि त्रुटियों का सवाल है तो कोशिश यही रहती है कि ना हो. पर समस्या तब आती है जब हम लिखना कुछ चाहते है. पर कॅंप्यूटर महोदय लिखते कुछ और हि हैं.
Dear Rastogi jee,
In your post not only we are travelling with you by sitting in front of system, but it is great to read our PORANIK granth, some of the storeyes are very much new to us, specially MANI BHADRAM PURAM,Sahstra Kavach, Garud ganga and the value of TAP in Badrinarayan,
Sir, I think our young generation must read these sites to know our religious past,
dear baldev ji
जानकार बहुत खुशी हुई कि आपको कुछ नया पढ़ने को मिला. और पसंद भी आया. जहाँ तक नई पीढ़ी की बात है तो मुझे लगता है वह लोग भी बहुत रूचि इसमे लेते है. हमारे ज़्यादा तक घुमक्कड़ परिवार के लोग युवा हैं पर आप देखें कितनी रूचि लेते हैं.
धन्यवाद
Awesome post Mr. Rastogi. The post is narrated like a story and, therefore, leaves the readers craving for more. I share your concerns about farming on the mountains and the deforestation. And I feel the heartbreak that you felt when you saw Alaknanda drying up because of the project by Jaypee. I wish development could be more eco-friendly else very soon we won’t have too many things to cherish…
एक बहुत बढ़िया पोस्ट और बहुत ज़बरदस्त विवरण, मुझे बहुत आनंद आ गया . क्या खूब लिखा है एक दम दिल से. भक्ति कूट कूट के भरी है आपमें और आपने दिखाया इस पोस्ट में . आपको बहुत बहुत धन्यवाद. फोटो अच्छे है लकिन विवरण ने बाज़ी मारी दी. और यह पोस्ट मेरे बहुत काम में आएगी. इसलिए आपको साधूवाद.
अब चलते है कथा की ओर.आपने लिखा है की शिवजी ने ब्रह्मा जी का सर काटा था और उस जगह का नाम ब्रह्मकपाल पड़ गया है. उसी तरह बहुत से ग्रन्थ और पुरानो में लिखा है कि शिवजी ने कालभैरव को प्रकट किया था , जिसने ब्रह्मा जी का सर काटा था. और उनका सर काल भैरव के हाथ में चिपक गया था. काल भैरव पूरी श्रृष्टि घूम आया, वैकुण्ठ , कैलाश आदि लेकिन वह सर अलग नहीं हुआ लेकिन जब वह काशी में आता है तब सर अलग हो जाता है और काल बहिर्व वही रुक जाते है . काल भैरव को काशी का कोतवाल भी बुलाते है. कशी में कालभैरव का दर्शन भी अनिवार्य है कशी विश्वनाथ जी के दर्शन के बाद. खैर कशी हो या ब्रह्मकपाल कथा ज्यादा महत्त्वपूर्ण है क्यूंकि मैं तो दोनों जगह जाना चाहता हूँ . कशी जाके आया हूँ अब बद्रीनाथ में बुलावे का इन्तेज़ार है.
दूसरी कथा मैं पूरी कर देता हूँ. सह्स्त्रकवच सूर्या की शरण में चले जाता है लेकिन अब भी एक कवच तो बाकी होता है ना उसके पास. तो अब वह सूर्य के पुत्र के रूप में कुंती के पास जनम लेता है . और उसे नर नारायण के अवतार कृष्ण अर्जुन मार देते है महाभारत के युद्ध में.
वह और कोई नहीं अर्जुन का बड़ा भाई और ज्येष्ठ पांडव कर्ण था जिसके पास भी एक अचूक कवच था.
बद्री विशाल धाम को इतने विस्तार से बताने के लिए फिर से धन्यवाद.
hi vishal
सच तो यह है कि इस लेख को मैने बड़े मनोयोग से लिखा था. कोशिश की थी अधिक से अधिक जानकारी सन्छिप्त मे पाठको तक पहुँचे. इसलिए ही सहस्त्रा कवच की पूरी कथा भी सन्छेप मे लिखी थी. दूसरा कारण यह भी कि कहीं पाठक बोर ना होने लगे. जहाँ तक काल भैरव या शिव द्वारा पाँचवा सिर काटने का सवाल है तो मुझे लगता है अलग – अलग पुराणो मे अलग अलग कथा कही जा सकती है. ब्रह्म कपाल के बारे मे मैने ऐसा ही पढ़ा था.
बहुत खुशी हुई जानकर कि अगले वर्ष बद्रीनाथ धाम जाने का प्रोग्राम बना रहे हो. वैसे मेरा भी कुछ ऐसा ही प्रोग्राम है. या तो अमरनाथ यात्रा पर या केदारनाथ बद्रीनाथ यात्रा पर जाने का मन है. देखो कहाँ बुलाते हैं.
सबसे बड़ी बात तो यह है कि बद्रीनाथधाम यात्रा का वर्णन करना ही अपने आप मे एक गहरी अनुभूति प्रदान करता है.
काशी के बारे मे अच्छी जानकारी दी है. मेरा अभी जाना नही हुआ है.
एक बात और
बद्रीनाथ धाम के बारे मे कहा गया है की इस भूमि पर आने वाले के सभी पाप धुल जाते हैं.
भगवान कृष्ण ने उद्धव को यहाँ इसलिए भेजा था क्योकि दुर्वसा मुनि के शाप के कारण समस्त यादव कुल का नाश होना था. तब भगवान कृष्ण ने उद्धव से कहा की तुम मेरी खड़ाउ ले कर बद्रीनाथ धाम जाओ वह भूमि सभी तरह के शाप से मुक्त है.
यह तो रही पुराणो की बात पर मेरा मानना है की अगर पाप किया है तो भोगना भी यहीं पड़ेगा. और इसी जन्म मे. यहाँ carry forward नही. होता है.
रस्तोगी जी – बहुत ही सुन्दर लेख | एक आम भाषा में बंधा हुआ, कसा हुआ कीमती लेख | साथ साथ चलते है, बिना ज्यादा समय लिए आपने सारा ज्ञान भी बांटा, यात्रियों के लिए बहुमूल्य जानकारी भी परोसी और साथ ही साथ कुछ ऐसे विषयों पर (जेपी के प्लांट्स , भूस्खलन, पैसे के दौड़) भी निगाह डाली जो घुमक्कड़ी से परे है पर अत्यंत महतवपूर्ण है | बहुत बढ़िया और शास्त्र कोटि साधुवाद |
नंदन जी
बहुत धन्यवाद , आपको मेरे विचार अच्छे लगे. शायद बचपन मे पढ़ी गयी कहानियो का असर है जैसे जिस तरह से एक कथाकार अपने लेखन मे समाज की बुराइयो को पूरो देता है. कुछ ऐसा ही शायद मेरे साथ है.
रस्तोगी जी,
आपका यह लेख सचमुच अमूल्य है और सहेज कर रखने के काबिल है. बहुत बारीकी से वर्णन किया है आपने बद्रीनाथ का, हर छोटी से छोटी गतिविधि को बड़े ही मनोयोग से वर्णित किया है. इस लेख के लिए आपको 10/10.
Rastogi Ji….
बहुत ही सुन्दर, उत्तम, श्रद्धा युक्त विस्तृत वर्णन …..और भक्ति भावना को ओतप्रोत करते सुन्दर , विस्मयीकारी चित्र !
सच पूछो तो ऐसा लगा की आपके लेख से दुबारा से बदरीनाथ धाम हो आये हो….|आपके लेख से हमें भी अपने बदरीनाथ धाम यात्रा की एक-एक बात याद आ गयी |
बदरीनाथ धाम में नर – नारायण पर्वत के बीच बर्फ से ढका नीलकंठ पर्वत बड़ा ही सुन्दर नजर आता हैं….और उसकी छत्र छाया में बदरीनाथ मंदिर की शोभा का तो क्या कहना …..अति सुन्दर मंदिर….|….. जय बद्री विशाल की….
हमारी यात्रा में माणा गाँव जाना नहीं हो पाया पर आपके लेख से काफी हद तक घूम लिए…..|
बस थोड़ा सा मात्राओ पर ध्यान देने की जरुरत बाकी लेख में कही से कोई कमी नहीं छोड़ी आपने…..हर बात का वर्णन अच्छे से किया हैं….. :-)
धन्यवाद….!
रीतेश…..
अगर सभी को याद हो तो तीसरे मोर्चे की सरकार मे चिदम्बरम वित्त मंत्री थे, जब उन्होने बजट पेश किया तब मनमोहन सिंह जो कि विपछ मे थे बोले यह कोई बजट है.
तब चिदंबरम् बोले की वाह साहिब वाह आपका बजट तो बजट और हमारा बजट , बजट ही नही.
इसी तरह से आपका लिखा लेख तो सुलेख और मेरा खिचडी वाह भई वाह.
अगर अपने आप को देवता लिखते हो तो देवताओ के गुण भी अपने मे लाओ. खाली लिखने से कोई देवता नही बन जाता. देव वाणी लिखना और बोलना भी चाहिए.
मेरा यह लेख भगवान श्री बद्री नारायण को समर्पित है और इस पर किसी को उंगली उठाने का कोई हक नही है.
कल सुबह मैंने आपकी पोस्ट पर एक छोटा सा कमेन्ट किया था आपको आगाह करने हेतू, लेकिन उससे आपने कुछ नहीं सीखा। हालत अब भी वैसी ही है, मैं बताता हूँ कि यह लेख एक खिचडी लेख, कैसे बन कर रह गया है? जिसके कारण आप नाराज हो रहे हो। जिसमें लग रहा है कि जबरदस्ती काफ़ी कुछ मिलाकर ठूँस दिया गया है। जिससे एक अच्छे भले लेख का सत्यानाश हो गया है।
ऊपर वाले जिस छोटे से कमेन्ट को पढकर आप आग बबूला हो रहे हो पहले तो मैंने नीचे वाला लम्बा कमेन्ट लिखा था लेकिन फ़िर मैंने सोचा चलो पहले रस्तोगी साहब को एक लाईन में समझा दिया जाये। अगर समझ गये तो ठीक, नहीं समझे तो फ़िर आपके महाभारत लेख की तरह महाभारत कमेन्ट तो तैयार था ही। पढिये मेरा पूरा कमेन्ट क्या था। फ़िर आप अपनी अनमोल सलाह देना, अगर सही व उचित हुई तो अवश्य मानूँगा।
रस्तोगी साहब राम-राम, लगता है कि आज का दिन मुझे सारे लेख गलतियाँ वाले ही मिलने थे। सबसे पहले मनु का लेख कई गलतियाँ, जिसमें से उसने काफ़ी सुधार कर लिया। जो अच्छा किया। उसके बाद एक और गडबड लेख मात्र 155 शब्द वाला, जिसको बाद में नन्दन जी को हटाना ही पडा।
सबसे बडी बात, इस लेख में इतनी गलतियाँ लिखने में की है कि लगता है कि आप गलतियों का शतक बनाना चाह रहे थे, जो आपने बना भी दिया है मुबारक हो, आप घुमक्कड पर पहले लेखक हो जिसने शतक लगाया है भले ही गलतियों का, वैसे कुछ गलतियाँ निम्न है (वैसे सारी गलतियाँ सौ से भी ज्यादा है)
आपने लिखा है, ज़ीरो वाट का वल्व, आप बताईयेगा, जिसका वाट ही जीरो हो वो क्या जलेगा? जरा कभी देखना उस बल्ब पर या उसके खोल पर कितने वाट लिखे होते है? मुझे पता है लेकिन शायद आपको अपनी आंखों से देखकर ही यकीन आये।
वैसे मेरी आदत नहीं रही है दूसरे के लेख में गलतियाँ निकालने की, लेकिन जब पानी सिर से ऊपर बहने लगे तो हाथ-पैर चलाने ही पडते है। अत: अभी समय है सुधार लीजिए।
आपने जबरदस्ती लेख को लम्बा बनाने के चक्कर में सारा कबाडा कर दिया है, बीच बीच में कहानियाँ भी, डाल दीहै, कहानियाँ नेट पर बहुत मिल जाती है। कहाँनियों का लिंक डाल दिया करे या दूसरे भाग में लिख दिया करे। लेख पढ कर लग रहा है लेख है कि महाभारत जो कि समाप्त ही नहीं हो रहा है। एक आदर्श लेख 2000 से 2500 शब्द के आसपास सही लगता है। ज्यादा कम शब्द या ज्यादा अधिक शब्द भी लेख की अहमियत खराब कर देते है।
कई फ़ोटो लेख में ना भी होते तो भी कोई फ़र्क नहीं पडता? क्योंकि उनमें दोहराव साफ़ झलक रहा है।
एक काम की बात जरा गौर करना कि विशाल ने भी बीच में हिन्दी में लिखना शुरु था लेकिन आपकी तरह उसकी भी हिन्दी पर अच्छी पकड नहीं थी। अत: उसने दुबारा अंग्रेजी में लिखना शुरु किया, यकीन नहीं तो देखिये उसकी अमरनाथ वाली सीरिज क्या धूम मचा रही है? हो सके तो आप भी अंगेजी में लिखिये यदि हिन्दी में ही लिखना है तो यह गलतियाँ मत दोहराओ। मत दोहराओ।
आप भी जानते है इन नेताओ ने देश का क्या कर दिया है? उनका उदाहरण मत दे, हो सके तो क्योंकि नेता कभी सुधर नहीं सकते है जबकि हम व आप अपने लेख व उनकी गलतियाँ सुधार सकते है!!!!!!!!!
जाट देवता वाली बात लेख में कहाँ से आ गयी? मेरा नाम जाट देवता लिखने से नहीं पहाडों में अत्यधिक घूमने से पडा है। लेखन मेरा पेशा नहीं है टाईम पास करने के लिये लिख लेता हूँ।
अगर आप अपनी गलतियाँ भगवान बद्री को समर्पित करना चाहते हो करो, लेकिन उसका सबके सामने पर्दशन मत करो।
अन्तिम लाईन, आप बडे है समझदार है अत: उम्मीद है आगे से इस प्रकार की गलतियों का दोहराव नहीं करेंगे। यदि आपको अब भी लगता है कि मैंने कुछ कडुवा झूठ कहा है तो बता दीजिएगा। फ़िर नहीं कहूँगा।
संदीप जी
अगर आपने अपना कमेन्ट लिखने से पहले दूसरे पाठको के कमेन्ट पढ लिये होते तो बेहतर रहता. आपने जो शाब्दिक त्रुटियो की बात लिखी है तो कविता जी ने पहले ही पॉइंट आउट कर दिया था और मैने इसका कारण भी बता दिया था.
अब आपकी जानकारी के लिये बता दू कि यह लेख मैने 2010 मे ही कागज पर लिख रखा था. पर हिन्दी मे कम्पूटर पर टाइप करना एक बड़ी समस्या थी. क्योकि हमारे कम्पूटर मे हिन्दी का software नही था और ना ही मै इस झंझट मे पड़ना चाहता था. कुछ दिन पहले मैने पढ़ा अमिताभ बच्चन के अलावा ज्यादातर फिल्म एक्टर अपने डायलाग रोमन हिन्दी मे लिखे हुए पढ़ना पसंद करते हैं. अब मुझे आइडिया आया कि रोमन मे टाइप करना बहुत आसन है. क्यो ना रोमन मे लिख कर उसको हिन्दी मे ट्रांसलेट कर लिया जाय. बस मैने यही किया. गूगले पर बहुत से software थे. परन्तु इसमे दिक्कत आ रही थी कि कई शब्द वह सही ढंग से नही लिखता था. मैने भी सोंचा कि काम तो चल रहा है अगर दो-चार शब्द सही नही भी हैं तो चलेगा पर आपने तो तिल का ताड बना दिया. ऐसा लग रहा है कि लेख का आनन्द लेने के विपरीत बच्चो की कापी जांच रहे हो.
अब दूसरी बात कि जीरो वाट का बल्ब नही होता है. पर यह चलन है कि 15 वाट के बल्व को आम तौर पर जीरो वाट का बल्व कहा जाता रहा है. दुकानदार से ज़ीरो वाट का बल्व कह कर ही खरीदते थे. पहले इसे लोग नाइट बल्व की तरह चलन मे लाते थे. या दिवाली पर इसकी झालर बना कर लगाते हैं. मेरा आशय तो पाठको को बताने का था. जिनको मालूम है अच्छी बात , नही मालूम तो उनकी जानकारी मे रहेगा, अगली बार जब वह जाएं तो ध्यान रहेगा. लेकिन आपने तो बात का बतंगड़ बना दिया. इसे कहते हैं बात का बतंगड़
आपने तो पूरे लेख का पोस्टमॉर्टम कर के छोड़ दिया .
अब बात आती है लेख मे कहानियो की तो यह जान ले की यह कहानिया मैने कहीं नेट पर ना ही पढी थी और ना ही मुझे इनके लिंक मालूम हैं. मै तो पाठको को बद्रीनाथ धाम की महिमा के बारे मे बताने के लिये सन्छिप्त मे इन कहानियो को लिखा था. आप क्या सोंचते हैं कि आप को मालूम है तो सारे जहां को मालूम हो गयी.
जहां तक लेख छोटा या बड़ा करने का सवाल है तो किस पुस्तक के कौन से अध्याय मे लिखा है कि यात्रा संस्मरण , व्रतान्त केवल 2000 से 2500 शब्दो का होना चाहिये.
और फोटो तो लेख को सजीवता प्रदान करते है. अगर किसी फोटो मे दोहराव हो गया है तो दोबारा देख लो , आंखे खराब तो हो नही जायेंगी.
मै शाब्दिक गलतियाँ, भगवान बद्री विशाल को नही समर्पित कर रहा हूँ. अपनी भावनाओ को समर्पित कर रहा हूँ और भगवान भी भक्त की भावनाओ को ही देखते हैं. उसके पहने हुए कपड़े या प्रसाद को नहीं. कि यह तो पुराने या गन्दे कपड़े पहन कर आ गया इसे बाहर निकालो. इसमे प्रदर्शन की बात कहाँ से आ गयी. हमे जो अच्छा लगा लिख दिया. अच्छा लगे तो पढ़ो ना अच्छा लगे तो मत पढ़ो.
एक बात और मै कोई साहित्यकार नही हूँ.
आलोचना करना अच्छी बात है पर आलोचना करने से पहले सही शब्दो का चयन करना भी आना चाहिये. जिससे कि दूसरे की भावनाओ को ठेस ना पहुंचे.
आप…….मैने भी सोंचा कि काम तो चल रहा है अगर दो-चार शब्द सही नही भी हैं तो चलेगा पर आपने तो तिल का ताड बना दिया. ऐसा लग रहा है कि लेख का आनन्द लेने के विपरीत बच्चो की कापी जांच रहे हो.
मैं……….जब कोई दिल से कोई लेख पढता है तो बारीकी से पढता है, बिना पढे, सिर्फ़ झूठी वाहवाही करने से बेहतर है कि ना पढे, बीते लेखों की तरह बात दो-चार शब्द तक ही सीमित रहती तो मैं तो क्या? कॊई भी कुछ नहीं कहता, लेकिन आपने तो शतक से भी कही ज्यादा बनाया है तब जाकर मुझे टोकना पडा है, उसके बाद भी आप software की गलती निकाल रहे है कमाल है अपनी गलती मानने को हरगिज तैयार नहीं है, मैं भी इसी software से लिख रहा हूँ देखिए मुश्किल से एक-आध गलती ही रह पायी होगी। जिसके बारे में मुझ जानकारी नहीं होगी। या मैंने ध्यान नहीं दिया होगा। मैं दूसरों के कमेन्ट नहीं पढता क्योंकि मैं लेख पढने आता हूँ कमेन्ट पढने नहीं।
आप…..आपने तो पूरे लेख का पोस्टमॉर्टम कर के छोड़ दिया .
मैं…….. अरे-अरे रस्तोगी साहब गजब कर रहे हो, इतने अच्छे लेख को पोस्टमॉर्टम से तुलना उचित नहीं है, इसमें सिर्फ़ 100 से कुछ ज्यादा ही तो गलतियाँ है जो सुधारी जा सकती है। जल्द सुधारने की कृपा करे। मैंने बद्रीनाथ व केदारनाथ जी पर इस साईट पर इतना शानदर लेख नहीं देखा।(अगर गलतियाँ ना होती तो)
आप…. शाब्दिक गलतियाँ, भगवान बद्री विशाल को नही समर्पित कर रहा हूँ. अपनी भावनाओ को समर्पित कर रहा हूँ और भगवान भी भक्त की भावनाओ को ही देखते हैं. उसके पहने हुए कपड़े या प्रसाद को नहीं. कि यह तो पुराने या गन्दे कपड़े पहन कर आ गया इसे बाहर निकालो. इसमे प्रदर्शन की बात कहाँ से आ गयी. हमे जो अच्छा लगा लिख दिया. अच्छा लगे तो पढ़ो ना अच्छा लगे तो मत पढ़ो. एक बात और मै कोई साहित्यकार नही हूँ.
मैं……..चलो इस पर भी बात करते है आपकी यह बात बहुत अच्छी लगी कि आप अपनी भावनाओं को भगवान को अर्पित कर रहे है सही कहा भगवान भक्त की भावनाओं को ही देखते है। उसके पहने हुए प्रसाद या पकडे को नहीं। इस बात पर मैं आपका कायल हो गया हूँ। आप अच्छा लिख रहे है, जब तक अच्छा लिखते रहोगे, तब तक तो अवश्य पढता रहूँगा, लेकिन झूठी वाहवाही नहीं कर सकता। अच्छा है अच्छा। बुरा है तो बुरा कहना पडेगा। यह भी पता लगा कि आप कोई साहित्यकार नहीं है फ़िर तो आपको और भी ध्यान लगाकर लिखना चाहिए।
आप…. आलोचना करना अच्छी बात है पर आलोचना करने से पहले सही शब्दो का चयन करना भी आना चाहिये. जिससे कि दूसरे की भावनाओ को ठेस ना पहुंचे।
क्या करे रस्तोगी साहब…… वैसे तो मैं आमतौर पर किसी की आलोचना नहीं करता हूँ क्योंकि मुझसे घूमा-फ़िरा बात करना पसन्द नहीं है। इसलिये अनुरोध है कि जितना हो सके उतना लेख गलतियाँ रहित रहना चाहिए। ताकि लेख की शान बनी रहे। इस बात में ज्यादा देर ना करे और गलतियाँ दूर होते ही मेरे दोनों कमेन्ट इस लेख से हटाने के लिये नदन जी से कह दे।
भगवान भी भक्त की भावनाओ को ही देखते हैं. उसके पहने हुए कपड़े या प्रसाद को नहीं | भगवान भाव का भूखा है कपडे-पूजा सामग्री का नहीं, आपकी यह बात दिल को छू गयी है। क्योंकि मेरे भी कुछ यही विचार है। अत: मुझसे आपसे कुछ गलती हो गयी हो तो उसे बताईयेगा कि फ़िर से मैंने कुछ गलत तो नहीं कह दिया है। आप बडे है, मेरे शब्द गलत लगे हो तो, डाटेंगें तो भी चलेगा।
aap dono ke beech ke shabdik vyang baan me main nahi parunga,kyunki mujhe hindi me translate karna nahi aata.nandan sir ne complain bhi kia par kya kare nahi aata hi ndi me translate karna.baat sahi hai devtaji ne thore kare shabdo me alochna kar di hai.jabki iski utani jarurat nahi thi.dusre, main bhi manta hun lekh ko shabdo me bandhna uchit nahi hai kyunki isase lekh ki continuty par asar parta hai.maine manu se bhi request kia tha shabdo ke jaal me na pare,agar lekh bara hai to jiski jaisi itchchha,padhna hai padhe na padhna hai na padhe.aapke lekh me kahin koi kami nahi hai.bahut hi sundar balki atisundar.ummeed hai aage bhi aisi hi rochak yatra sansmaran post karenge.
Rastoji, Hindi Sahitya main aise vyaktiyon ko “Perchhidranveshi” arthath dusron ki kamiyan dekhana, kaha gaya hai. Kisi bhi lekh ka vyakaran nahin dekha jata valki uska prastutikaran dekha jata hai. Maine kal ke ek hindi ke professor ki likhi kahani padhi, jo ki mishrit local bhasha ke sahit, parantu prastuti aisi thi ki jab tak kahani puri nahin hui, maine chai bhi nahin pee. Kahani va kekh ka matlav yahi hota hai ki pathak us ke saat bahe. Bahut Sunder lekh hai. Main to is sight jo aaj hee dekh raha hun. Aagey prayas karunga is me anya lekho ke anand lene ka.
संदीप जी
इतना समझाने के बाद भी आप समझना नही चाहते . लगता है फिर से कहानी लिखनी पड़ेगी.
अगर आप भी मेरी तरह रोमन मे लिख कर बाद मे हिन्दी मे ट्रांसलेट करते है तो आपको मालूम होगा कि बाद मे प्रूफ रीडिंग करनी पड़ती है. जो कि लिखने से ज्यादा जटिल कार्य है. प्रूफ रीडिंग करते समय कुछ शब्द छूट जाना स्वभाभिक है. तो भाई कुछ शब्द तो इस तरह से छूट गये और कुछ एक शब्द मेरा software सही ढंग से लिख नही रहा था जैसे कि मैने mokch लिखा वह गलत उसने टाइप किया फिर मैने mochh लिखा वह भी गलत टाइप किया जबकि मैने छ्त्री वाला छ् लिखना चाहता था पर वह छाते वाला लिख रहा था. इस तरह से कई शब्दो मे गलतियाँ रह गयी पर आप तो अपने हिन्दी ज्ञान को बखाने लगे. यह उचित नही.
आपको बता दू कि 80 के दशक मे , शादी से पहले मेरा बहुत से कवियो और साहित्यकारो से संपर्क रहा. कवि सम्मेलन मे जाया करता था और मंच पर ही अन्य कवियो के साथ बैठा करता था. जिसमे से श्री सुरेन्द्र शर्मा, जो कि बहुत प्रसिद्ध हास्य कवि रहे हैं , ऐसे ही अशोक चक्रधर, ओम प्रकाश आदित्य, हुल्लड मुरादाबादी, संतोषानन्द , शैल चतुर्वेदी, शरद जोशी, काका हाथरसी, जगदीश सोलंकी आदि आदि. जैमिनी हरियाणवी का लड़का अरुण जैमिनी जो हम उम्र था , ने तो मेरे सामने पहली बर दरिया गंज के कवि सम्मेलन मे कविता पढी थी. जो कि अब कादम्बनी का एडीटर है. पर कोई भी अपनी योग्यता का इस तरह से बखान नही करता था.
एक और बात , जैसा कि मैने आपको बताया था कि यह लेख 2010 मे ही यात्रा से आने के बाद कागज पर लिख रखा था. सबूत के तौर पर 2 पेज स्कैन करके नंदन जी के पास भेज रहा हूँ कि आपको भेज दे क्योकि आपकी मेरे पास मेल id नही है. अब आप इसमे गलतियाँ ढूंढे.
आप ने एक छोटा सा जबाव लिखा पर उसमे भी गलतियाँ हो गयी ना आपसे.
मुझ,नही मुझे , पकडे. यहाँ आपने पकड़े लिख दिया कपड़े की जगह पर, इसी तरह मुझसे नही मुझमे शब्द लिखना चाहिये.
आपकी जानकारी के लिये बता दू कि एक बार प्रकाशित होने के बाद लेखक को एडिट करने का अधिकार नंदन जी ने नही दिया है. घुमक्कड़ पर प्रकाशित होने से पहले ही लेखक एडिट कर सकता है.
मुझे मालूम है आप इस जबाव को पढ कर शांत नही बैठेंगे . अभी एक-दो दिन के लिये बाहर जा रहा हूँ, वहां से लौट कर आपके अगले प्रश्न का जवाब दूंगा.
रस्तोगी जी मैं आपकी असली परेशानी समझ गया हूँ अत: आपकी यह पोस्ट मैं ठीक कर नन्दन जी को भेज देता हूँ, कोई शब्दहिन्दी में लिखने में कोई परेशानी आ रही हो तो बता देना।
मुझे अभी भी अच्छी तरह याद है जब मैंने नया-नया ब्लॉग लिखना शुरु किया था तो मैं भी आपकी तरह ढेर सारी गलती कर दिया करता था। (२-४ तो अब भी हो जाती होंगी) जिस तरह मैं आपके पीछे पडा ठीक इसी तरह नीरज भी मेरे पीछे पड गया था कि जब तक सही नहीं लिखोगे, टोकता रहूँगा।
जिस प्रकार आपने ध्यान से मेरा कमेन्ट पढा और उसमें आपको गलतियाँ मिली, उसी प्रकार लेख की गलतियाँ भी आसानी से ठीक हो जायेगी। मोक्ष के लिये mokSh लिखो ठीक हो जायेगा। जिन शब्दों पर आप असंजस की स्थिति में है ध्यान दे कि उनमें से छोटे+बडे अक्षर करने पर सही शब्द बन जाता है।
संदीप जी
बहुत खुशी हुई, आपको मेरी बात, परेशानी समझ मे आ गयी, कोई बात नहीं, कहते हैं ना “ देर आयद दुरस्त आयद”
वैसे एक बात है कि आप भी अडियल टट्टू की तरह अड जाते हो. लेकिन दिल से एकदम मोम यानी SOFT हो. यह बहुत अच्छी बात है.
राम राम
आप ने जो वर्डन किया है बहुत ही बढ़िया इससे अच्छा वर्डन कोई कर भी नहीं सकता. आपकी वजह से हमें
वंहा जाने की उत्सुकता हो रही है कृपया आप हमें ये बताने का कष्ट करें की केदारनाथ तथा बद्रीनाथ धाम की यात्रा कब से और कब तक चलती है तो बहुत बड़ी मेहरबानी होगी . इश्वर आपकी सारी मनोकामना पूर्ति करें.
धन्यवाद
Beautiful defined visit with lovely pics.Thanks to Ghumakkar,providing us beautiful memories of writers.While reading all posts i use to feel as my self is visting.Thanks a lot Sir for beautiful post..
sir ji isse pahle aapki yamunotri / gangotri yatra ke baare me padha tha aur ab aapki kedarnath / badrinath dhaam yatra ke baare me padha . aap bahut hi vistaar se likhte ho jo ki bahut hi achcha he. me bhi ek baar badrinaath gaya tha par kedarnath jaane ka mouka mujhe aaj tak nahi mila he ab mera mann bhi kedarnath aur badirnath jaane ka kar raha he. me jaruru jaunga. thanks sir ji
बहुत बढिया रस्तौगी जी , फोटो के साथ साथ वर्णन भी बहुत बढिया है आपके इस वृतांत ने समां बांध दिया है ।
चोपटा सुंदर है पर कौसानी का भी जबाब नही
dear manu
तीन चार वर्ष पहले मै मई के पहले हफ्ते मे कोसनी गया होटेल वाले ने सुबह 4 बजे उठा दिया. जैसे – तैसे हम लोग वियू पॉइंट पर पहुँचे पर कुछ भी तो नही दिखा. शायद मौसम साफ नही होने के कारण रहा हो.
बहुत खूबसूरत वर्णन , फोटो भी बाड़िया हैं|
मैं जून में केदारनाथ व बद्रीनाथ गया था , सारी की सारी यात्रा दुबारा आँखों के सामने आ गई |
चोपता वाकई में बहुत खूबसूरत है | ज़यादा चड़ाई के कारण ड्राइवर वहाँ से जाते नही हैं यदि बोला ना जाए |
mahesh ji
आप चोपता होकर गये थे या नही. मुझे लगता है कि जून मे तो और भी ज़्यादा खूबसूरत लगता होगा.
हम चोपता हो कर ही गये थे , बहुत सुंदर है , वहाँ से आगे जाने का मान ही नही हो रहा था|
Bahut hi sunder varnan kiya he aap ne yatra ka. Bardinath se judi saari kathaye bhi bata kar aapne hamare gyan me vradhi ki, us hetu kotish dhanyawad. Bahut ache photos liye he aapne. Badrinath-Kedarnath par likhe lekho me ye lrkh mujhe sabse adhik pasand aaye…..marg aur duriyon ki achi jankari di aapne…bahut gyanvardhak.
इस लेख मे मैने कोशिश यही की थी कि अधिक से अधिक जानकारी थोड़े शब्दो मे दी जाय. अगर पाठक को लेख पसंद आ जाता है तो लिखने वाले को उससे अधिक प्रसन्नता होती है. धन्यवाद
It is a beautiful T-log with equally eye catching fotos. Chopta is indeed one of the most beautiful places on earth. We went there in 1992 and still havent forgotten that
tks for sharing
उस समय तो मुझे लगता है कि वहाँ पर होटेल वग़ैरह भी नही होंगे. और बहुत खूबसूरत नज़ारा होगा.
हां रस्तोगी जी जब हम गये तो 1-2 चाय की दुकाने व एक छोटा सा सरकारी गैस्ट हाउस ही था… मुझे नही लगता चोपता अब उतना सुन्दर रहा होगा. टूरिस्म कुछ न कुछ नुक्सान तो करता ही है
बाकी आपका लेख बहुत खूबसूरत है, चित्र बहुत अच्छे है व लेखन उत्तम…छोटी-मोटी त्रुटियां तो हर लेख मे होती ही है |
वैसे अगर आप लेख को 2 भागों मे देते तो कुछ अधिक निखर कर आता। फिर भी बहुत कसा हुआ व बेहतरीन लेख है
बहुत सुन्दर विवरण हैं, पुरानी यादे ताज़ा हो गयी, धन्यवाद, वन्देमातरम…
प्रवीण जी आप कब गये थे. वैसे इसमे कोई शक नही कि पुरानी यादे ताजी हो जाती है,
रस्तोगी जी नमस्कार, मै पांच बार बदरीनाथ जी की यात्रा पर जा चुका हूँ, मैंने घुमक्कड पर पोस्ट भी डाली थी. आखिरी बार दो साल पहले गया था. ये धाम ऐसा धाम हैं, जंहा बार बार जाने का मन करता हैं. और फिर वंहा से आने का मन नहीं करता हैं. मन करता हैं की भगवान बद्री विशाल के चरणों में ही पड़े रहो. जय बद्री विशाल. वन्देमातरम…
बहुत खुशी हुई जानकर कि आप को पाँच बार जाने का मौका मिला. लगता है प्रभु की विशेष कृपा है
ओम नमो नारायण
maza la dia aapne rastogi ji.wah kya kehna.main bhi aapke saath -2 dasrshan kar lia. halaki log pehle kedar phir badri vishal ke darshan ko jate hain,par mera jana ulta hua tha,main nainital se sabhi jagah ghumte hue gwaldam me ratri vishram karte hue pindar nadi ke kinare -2 hote hue pehle badri vishal ke darshan kar choupta hote hue kedar baba ke darshan ko gaya tha. choupta me maine night halt kia tha.wahan bijli nahi hai,chhote chhote hotel hain jo khana bhi dete hain aur raat me battery se chalnewali emergency light bhi.bahut khubsurat jagah hai choupta,wahan ek cheej jo maine dekhi subah-2 kaag(kouaa) bahut jyada the aur we kutchh bhi uchhaal kar kar khane ko dene par use jameen par nahi girne dete the,hawa me hi lapak lete the.aage jo gupt kashi me aapne kedar baba ke winter ka unke ghar ka darshan kie wo jagah ukhimath kehlata hai.
राजेश जी तो कुल मिला कर आपकी पुरानी यादे तो मैने ताजी कर ही दी. हाँ एक बात ज़रूर है की मै भी एक बार वहाँ रुक कर वहाँ की सुंदरता को जी भर कर देखना चाहता हूँ
रस्तोगी जी,
इतना सुन्दर एवं कमाल का वर्णन किया है आपने इस पोस्ट में की हमें लग रहा है हम भी आपके साथ यात्रा कर रहे हैं. हम जैसे लोग जो कभी बद्रीनाथ नहीं गए उनके लिए यह पोस्ट बद्रीनाथ की एक कम्प्लीट मार्गदर्शिका है. पढ़ते पढ़ते ऐसा लग रहा था की जो हम पढ़ रहे हैं वही हमारी आँखों के सामने चलचित्र के सामान घूम रहा है. बहुत सुन्दर वर्णन. मात्राओं की तथा वर्तनी की कुछ छोटी मोटी त्रुटियाँ जरूर थीं लेकिन उनसे पोस्ट की रोचकता एवं महत्त्व में रत्ती भर भी कमी नहीं आई.
kavita ji
एक लेखक की सबसे बड़ी खुशी यही होती है की जब अन्य पाठक उसके लेख को सराहे. आपको बद्रीनाथ-केदारनाथ की यात्रा अच्छी लगी. जानकार खुशी हुई. जहाँ तक व्याकरण या मात्राओ कि त्रुटियों का सवाल है तो कोशिश यही रहती है कि ना हो. पर समस्या तब आती है जब हम लिखना कुछ चाहते है. पर कॅंप्यूटर महोदय लिखते कुछ और हि हैं.
Dear Rastogi jee,
In your post not only we are travelling with you by sitting in front of system, but it is great to read our PORANIK granth, some of the storeyes are very much new to us, specially MANI BHADRAM PURAM,Sahstra Kavach, Garud ganga and the value of TAP in Badrinarayan,
Sir, I think our young generation must read these sites to know our religious past,
Thanks and regards,
Baldev swami
dear baldev ji
जानकार बहुत खुशी हुई कि आपको कुछ नया पढ़ने को मिला. और पसंद भी आया. जहाँ तक नई पीढ़ी की बात है तो मुझे लगता है वह लोग भी बहुत रूचि इसमे लेते है. हमारे ज़्यादा तक घुमक्कड़ परिवार के लोग युवा हैं पर आप देखें कितनी रूचि लेते हैं.
धन्यवाद
Awesome post Mr. Rastogi. The post is narrated like a story and, therefore, leaves the readers craving for more. I share your concerns about farming on the mountains and the deforestation. And I feel the heartbreak that you felt when you saw Alaknanda drying up because of the project by Jaypee. I wish development could be more eco-friendly else very soon we won’t have too many things to cherish…
hello vibha
you are the first person who appreciate me on my view.
thanks a lot
राम राम रस्तोगी जी ,
एक बहुत बढ़िया पोस्ट और बहुत ज़बरदस्त विवरण, मुझे बहुत आनंद आ गया . क्या खूब लिखा है एक दम दिल से. भक्ति कूट कूट के भरी है आपमें और आपने दिखाया इस पोस्ट में . आपको बहुत बहुत धन्यवाद. फोटो अच्छे है लकिन विवरण ने बाज़ी मारी दी. और यह पोस्ट मेरे बहुत काम में आएगी. इसलिए आपको साधूवाद.
अब चलते है कथा की ओर.आपने लिखा है की शिवजी ने ब्रह्मा जी का सर काटा था और उस जगह का नाम ब्रह्मकपाल पड़ गया है. उसी तरह बहुत से ग्रन्थ और पुरानो में लिखा है कि शिवजी ने कालभैरव को प्रकट किया था , जिसने ब्रह्मा जी का सर काटा था. और उनका सर काल भैरव के हाथ में चिपक गया था. काल भैरव पूरी श्रृष्टि घूम आया, वैकुण्ठ , कैलाश आदि लेकिन वह सर अलग नहीं हुआ लेकिन जब वह काशी में आता है तब सर अलग हो जाता है और काल बहिर्व वही रुक जाते है . काल भैरव को काशी का कोतवाल भी बुलाते है. कशी में कालभैरव का दर्शन भी अनिवार्य है कशी विश्वनाथ जी के दर्शन के बाद. खैर कशी हो या ब्रह्मकपाल कथा ज्यादा महत्त्वपूर्ण है क्यूंकि मैं तो दोनों जगह जाना चाहता हूँ . कशी जाके आया हूँ अब बद्रीनाथ में बुलावे का इन्तेज़ार है.
दूसरी कथा मैं पूरी कर देता हूँ. सह्स्त्रकवच सूर्या की शरण में चले जाता है लेकिन अब भी एक कवच तो बाकी होता है ना उसके पास. तो अब वह सूर्य के पुत्र के रूप में कुंती के पास जनम लेता है . और उसे नर नारायण के अवतार कृष्ण अर्जुन मार देते है महाभारत के युद्ध में.
वह और कोई नहीं अर्जुन का बड़ा भाई और ज्येष्ठ पांडव कर्ण था जिसके पास भी एक अचूक कवच था.
बद्री विशाल धाम को इतने विस्तार से बताने के लिए फिर से धन्यवाद.
hi vishal
सच तो यह है कि इस लेख को मैने बड़े मनोयोग से लिखा था. कोशिश की थी अधिक से अधिक जानकारी सन्छिप्त मे पाठको तक पहुँचे. इसलिए ही सहस्त्रा कवच की पूरी कथा भी सन्छेप मे लिखी थी. दूसरा कारण यह भी कि कहीं पाठक बोर ना होने लगे. जहाँ तक काल भैरव या शिव द्वारा पाँचवा सिर काटने का सवाल है तो मुझे लगता है अलग – अलग पुराणो मे अलग अलग कथा कही जा सकती है. ब्रह्म कपाल के बारे मे मैने ऐसा ही पढ़ा था.
बहुत खुशी हुई जानकर कि अगले वर्ष बद्रीनाथ धाम जाने का प्रोग्राम बना रहे हो. वैसे मेरा भी कुछ ऐसा ही प्रोग्राम है. या तो अमरनाथ यात्रा पर या केदारनाथ बद्रीनाथ यात्रा पर जाने का मन है. देखो कहाँ बुलाते हैं.
सबसे बड़ी बात तो यह है कि बद्रीनाथधाम यात्रा का वर्णन करना ही अपने आप मे एक गहरी अनुभूति प्रदान करता है.
काशी के बारे मे अच्छी जानकारी दी है. मेरा अभी जाना नही हुआ है.
एक बात और
बद्रीनाथ धाम के बारे मे कहा गया है की इस भूमि पर आने वाले के सभी पाप धुल जाते हैं.
भगवान कृष्ण ने उद्धव को यहाँ इसलिए भेजा था क्योकि दुर्वसा मुनि के शाप के कारण समस्त यादव कुल का नाश होना था. तब भगवान कृष्ण ने उद्धव से कहा की तुम मेरी खड़ाउ ले कर बद्रीनाथ धाम जाओ वह भूमि सभी तरह के शाप से मुक्त है.
यह तो रही पुराणो की बात पर मेरा मानना है की अगर पाप किया है तो भोगना भी यहीं पड़ेगा. और इसी जन्म मे. यहाँ carry forward नही. होता है.
रस्तोगी जी – बहुत ही सुन्दर लेख | एक आम भाषा में बंधा हुआ, कसा हुआ कीमती लेख | साथ साथ चलते है, बिना ज्यादा समय लिए आपने सारा ज्ञान भी बांटा, यात्रियों के लिए बहुमूल्य जानकारी भी परोसी और साथ ही साथ कुछ ऐसे विषयों पर (जेपी के प्लांट्स , भूस्खलन, पैसे के दौड़) भी निगाह डाली जो घुमक्कड़ी से परे है पर अत्यंत महतवपूर्ण है | बहुत बढ़िया और शास्त्र कोटि साधुवाद |
नंदन जी
बहुत धन्यवाद , आपको मेरे विचार अच्छे लगे. शायद बचपन मे पढ़ी गयी कहानियो का असर है जैसे जिस तरह से एक कथाकार अपने लेखन मे समाज की बुराइयो को पूरो देता है. कुछ ऐसा ही शायद मेरे साथ है.
रस्तोगी जी,
आपका यह लेख सचमुच अमूल्य है और सहेज कर रखने के काबिल है. बहुत बारीकी से वर्णन किया है आपने बद्रीनाथ का, हर छोटी से छोटी गतिविधि को बड़े ही मनोयोग से वर्णित किया है. इस लेख के लिए आपको 10/10.
धन्यवाद.
मुकेश जी
10 मे 10 नंबर देने के लिए धन्यवाद . सबसे सुखद बात यह है कि भगवान बद्री नारायण की यात्रा आप सभी को पसंद आई.
Rastogi Ji….
बहुत ही सुन्दर, उत्तम, श्रद्धा युक्त विस्तृत वर्णन …..और भक्ति भावना को ओतप्रोत करते सुन्दर , विस्मयीकारी चित्र !
सच पूछो तो ऐसा लगा की आपके लेख से दुबारा से बदरीनाथ धाम हो आये हो….|आपके लेख से हमें भी अपने बदरीनाथ धाम यात्रा की एक-एक बात याद आ गयी |
बदरीनाथ धाम में नर – नारायण पर्वत के बीच बर्फ से ढका नीलकंठ पर्वत बड़ा ही सुन्दर नजर आता हैं….और उसकी छत्र छाया में बदरीनाथ मंदिर की शोभा का तो क्या कहना …..अति सुन्दर मंदिर….|….. जय बद्री विशाल की….
हमारी यात्रा में माणा गाँव जाना नहीं हो पाया पर आपके लेख से काफी हद तक घूम लिए…..|
बस थोड़ा सा मात्राओ पर ध्यान देने की जरुरत बाकी लेख में कही से कोई कमी नहीं छोड़ी आपने…..हर बात का वर्णन अच्छे से किया हैं….. :-)
धन्यवाद….!
रीतेश…..
रितेश जी
जानकार खुशी हुई कि आप भी बद्रीनाथ धाम हो आए है. लेखन पसंद आने के लिए धन्यवाद. अगली बार अवश्य माणा होकर आए .
चोपटा वाकई में बहुत सुंदर है. एक नये रास्ते से आप हम सबको बद्रीनाथ लेकर गए, धन्यवाद.
एक खिचडी लेख जिसमें जबरदस्ती काफ़ी कुछ मिलाकर ठूँस दिया गया है।
अगर सभी को याद हो तो तीसरे मोर्चे की सरकार मे चिदम्बरम वित्त मंत्री थे, जब उन्होने बजट पेश किया तब मनमोहन सिंह जो कि विपछ मे थे बोले यह कोई बजट है.
तब चिदंबरम् बोले की वाह साहिब वाह आपका बजट तो बजट और हमारा बजट , बजट ही नही.
इसी तरह से आपका लिखा लेख तो सुलेख और मेरा खिचडी वाह भई वाह.
अगर अपने आप को देवता लिखते हो तो देवताओ के गुण भी अपने मे लाओ. खाली लिखने से कोई देवता नही बन जाता. देव वाणी लिखना और बोलना भी चाहिए.
मेरा यह लेख भगवान श्री बद्री नारायण को समर्पित है और इस पर किसी को उंगली उठाने का कोई हक नही है.
कल सुबह मैंने आपकी पोस्ट पर एक छोटा सा कमेन्ट किया था आपको आगाह करने हेतू, लेकिन उससे आपने कुछ नहीं सीखा। हालत अब भी वैसी ही है, मैं बताता हूँ कि यह लेख एक खिचडी लेख, कैसे बन कर रह गया है? जिसके कारण आप नाराज हो रहे हो। जिसमें लग रहा है कि जबरदस्ती काफ़ी कुछ मिलाकर ठूँस दिया गया है। जिससे एक अच्छे भले लेख का सत्यानाश हो गया है।
ऊपर वाले जिस छोटे से कमेन्ट को पढकर आप आग बबूला हो रहे हो पहले तो मैंने नीचे वाला लम्बा कमेन्ट लिखा था लेकिन फ़िर मैंने सोचा चलो पहले रस्तोगी साहब को एक लाईन में समझा दिया जाये। अगर समझ गये तो ठीक, नहीं समझे तो फ़िर आपके महाभारत लेख की तरह महाभारत कमेन्ट तो तैयार था ही। पढिये मेरा पूरा कमेन्ट क्या था। फ़िर आप अपनी अनमोल सलाह देना, अगर सही व उचित हुई तो अवश्य मानूँगा।
रस्तोगी साहब राम-राम, लगता है कि आज का दिन मुझे सारे लेख गलतियाँ वाले ही मिलने थे। सबसे पहले मनु का लेख कई गलतियाँ, जिसमें से उसने काफ़ी सुधार कर लिया। जो अच्छा किया। उसके बाद एक और गडबड लेख मात्र 155 शब्द वाला, जिसको बाद में नन्दन जी को हटाना ही पडा।
सबसे बडी बात, इस लेख में इतनी गलतियाँ लिखने में की है कि लगता है कि आप गलतियों का शतक बनाना चाह रहे थे, जो आपने बना भी दिया है मुबारक हो, आप घुमक्कड पर पहले लेखक हो जिसने शतक लगाया है भले ही गलतियों का, वैसे कुछ गलतियाँ निम्न है (वैसे सारी गलतियाँ सौ से भी ज्यादा है)
चोपटा, दच्छिना, धाराए, आच्च्छादित, दो –दो, विदूत, होटेल, मोच्छ, जिग्यासा, जोध पूर, तैय्यार, छेत्र, यमञोत्री, जज़र, प्रकर्ती, चरणाम्रत, प्र्थवी, श्राध, शुधि आदि-आदि-आदि-आदि-आदि-आदि-आदिआदि………………………………….
आपने लिखा है, ज़ीरो वाट का वल्व, आप बताईयेगा, जिसका वाट ही जीरो हो वो क्या जलेगा? जरा कभी देखना उस बल्ब पर या उसके खोल पर कितने वाट लिखे होते है? मुझे पता है लेकिन शायद आपको अपनी आंखों से देखकर ही यकीन आये।
वैसे मेरी आदत नहीं रही है दूसरे के लेख में गलतियाँ निकालने की, लेकिन जब पानी सिर से ऊपर बहने लगे तो हाथ-पैर चलाने ही पडते है। अत: अभी समय है सुधार लीजिए।
आपने जबरदस्ती लेख को लम्बा बनाने के चक्कर में सारा कबाडा कर दिया है, बीच बीच में कहानियाँ भी, डाल दीहै, कहानियाँ नेट पर बहुत मिल जाती है। कहाँनियों का लिंक डाल दिया करे या दूसरे भाग में लिख दिया करे। लेख पढ कर लग रहा है लेख है कि महाभारत जो कि समाप्त ही नहीं हो रहा है। एक आदर्श लेख 2000 से 2500 शब्द के आसपास सही लगता है। ज्यादा कम शब्द या ज्यादा अधिक शब्द भी लेख की अहमियत खराब कर देते है।
कई फ़ोटो लेख में ना भी होते तो भी कोई फ़र्क नहीं पडता? क्योंकि उनमें दोहराव साफ़ झलक रहा है।
एक काम की बात जरा गौर करना कि विशाल ने भी बीच में हिन्दी में लिखना शुरु था लेकिन आपकी तरह उसकी भी हिन्दी पर अच्छी पकड नहीं थी। अत: उसने दुबारा अंग्रेजी में लिखना शुरु किया, यकीन नहीं तो देखिये उसकी अमरनाथ वाली सीरिज क्या धूम मचा रही है? हो सके तो आप भी अंगेजी में लिखिये यदि हिन्दी में ही लिखना है तो यह गलतियाँ मत दोहराओ। मत दोहराओ।
आप भी जानते है इन नेताओ ने देश का क्या कर दिया है? उनका उदाहरण मत दे, हो सके तो क्योंकि नेता कभी सुधर नहीं सकते है जबकि हम व आप अपने लेख व उनकी गलतियाँ सुधार सकते है!!!!!!!!!
जाट देवता वाली बात लेख में कहाँ से आ गयी? मेरा नाम जाट देवता लिखने से नहीं पहाडों में अत्यधिक घूमने से पडा है। लेखन मेरा पेशा नहीं है टाईम पास करने के लिये लिख लेता हूँ।
अगर आप अपनी गलतियाँ भगवान बद्री को समर्पित करना चाहते हो करो, लेकिन उसका सबके सामने पर्दशन मत करो।
अन्तिम लाईन, आप बडे है समझदार है अत: उम्मीद है आगे से इस प्रकार की गलतियों का दोहराव नहीं करेंगे। यदि आपको अब भी लगता है कि मैंने कुछ कडुवा झूठ कहा है तो बता दीजिएगा। फ़िर नहीं कहूँगा।
संदीप जी
अगर आपने अपना कमेन्ट लिखने से पहले दूसरे पाठको के कमेन्ट पढ लिये होते तो बेहतर रहता. आपने जो शाब्दिक त्रुटियो की बात लिखी है तो कविता जी ने पहले ही पॉइंट आउट कर दिया था और मैने इसका कारण भी बता दिया था.
अब आपकी जानकारी के लिये बता दू कि यह लेख मैने 2010 मे ही कागज पर लिख रखा था. पर हिन्दी मे कम्पूटर पर टाइप करना एक बड़ी समस्या थी. क्योकि हमारे कम्पूटर मे हिन्दी का software नही था और ना ही मै इस झंझट मे पड़ना चाहता था. कुछ दिन पहले मैने पढ़ा अमिताभ बच्चन के अलावा ज्यादातर फिल्म एक्टर अपने डायलाग रोमन हिन्दी मे लिखे हुए पढ़ना पसंद करते हैं. अब मुझे आइडिया आया कि रोमन मे टाइप करना बहुत आसन है. क्यो ना रोमन मे लिख कर उसको हिन्दी मे ट्रांसलेट कर लिया जाय. बस मैने यही किया. गूगले पर बहुत से software थे. परन्तु इसमे दिक्कत आ रही थी कि कई शब्द वह सही ढंग से नही लिखता था. मैने भी सोंचा कि काम तो चल रहा है अगर दो-चार शब्द सही नही भी हैं तो चलेगा पर आपने तो तिल का ताड बना दिया. ऐसा लग रहा है कि लेख का आनन्द लेने के विपरीत बच्चो की कापी जांच रहे हो.
अब दूसरी बात कि जीरो वाट का बल्ब नही होता है. पर यह चलन है कि 15 वाट के बल्व को आम तौर पर जीरो वाट का बल्व कहा जाता रहा है. दुकानदार से ज़ीरो वाट का बल्व कह कर ही खरीदते थे. पहले इसे लोग नाइट बल्व की तरह चलन मे लाते थे. या दिवाली पर इसकी झालर बना कर लगाते हैं. मेरा आशय तो पाठको को बताने का था. जिनको मालूम है अच्छी बात , नही मालूम तो उनकी जानकारी मे रहेगा, अगली बार जब वह जाएं तो ध्यान रहेगा. लेकिन आपने तो बात का बतंगड़ बना दिया. इसे कहते हैं बात का बतंगड़
आपने तो पूरे लेख का पोस्टमॉर्टम कर के छोड़ दिया .
अब बात आती है लेख मे कहानियो की तो यह जान ले की यह कहानिया मैने कहीं नेट पर ना ही पढी थी और ना ही मुझे इनके लिंक मालूम हैं. मै तो पाठको को बद्रीनाथ धाम की महिमा के बारे मे बताने के लिये सन्छिप्त मे इन कहानियो को लिखा था. आप क्या सोंचते हैं कि आप को मालूम है तो सारे जहां को मालूम हो गयी.
जहां तक लेख छोटा या बड़ा करने का सवाल है तो किस पुस्तक के कौन से अध्याय मे लिखा है कि यात्रा संस्मरण , व्रतान्त केवल 2000 से 2500 शब्दो का होना चाहिये.
और फोटो तो लेख को सजीवता प्रदान करते है. अगर किसी फोटो मे दोहराव हो गया है तो दोबारा देख लो , आंखे खराब तो हो नही जायेंगी.
मै शाब्दिक गलतियाँ, भगवान बद्री विशाल को नही समर्पित कर रहा हूँ. अपनी भावनाओ को समर्पित कर रहा हूँ और भगवान भी भक्त की भावनाओ को ही देखते हैं. उसके पहने हुए कपड़े या प्रसाद को नहीं. कि यह तो पुराने या गन्दे कपड़े पहन कर आ गया इसे बाहर निकालो. इसमे प्रदर्शन की बात कहाँ से आ गयी. हमे जो अच्छा लगा लिख दिया. अच्छा लगे तो पढ़ो ना अच्छा लगे तो मत पढ़ो.
एक बात और मै कोई साहित्यकार नही हूँ.
आलोचना करना अच्छी बात है पर आलोचना करने से पहले सही शब्दो का चयन करना भी आना चाहिये. जिससे कि दूसरे की भावनाओ को ठेस ना पहुंचे.
आप…….मैने भी सोंचा कि काम तो चल रहा है अगर दो-चार शब्द सही नही भी हैं तो चलेगा पर आपने तो तिल का ताड बना दिया. ऐसा लग रहा है कि लेख का आनन्द लेने के विपरीत बच्चो की कापी जांच रहे हो.
मैं……….जब कोई दिल से कोई लेख पढता है तो बारीकी से पढता है, बिना पढे, सिर्फ़ झूठी वाहवाही करने से बेहतर है कि ना पढे, बीते लेखों की तरह बात दो-चार शब्द तक ही सीमित रहती तो मैं तो क्या? कॊई भी कुछ नहीं कहता, लेकिन आपने तो शतक से भी कही ज्यादा बनाया है तब जाकर मुझे टोकना पडा है, उसके बाद भी आप software की गलती निकाल रहे है कमाल है अपनी गलती मानने को हरगिज तैयार नहीं है, मैं भी इसी software से लिख रहा हूँ देखिए मुश्किल से एक-आध गलती ही रह पायी होगी। जिसके बारे में मुझ जानकारी नहीं होगी। या मैंने ध्यान नहीं दिया होगा। मैं दूसरों के कमेन्ट नहीं पढता क्योंकि मैं लेख पढने आता हूँ कमेन्ट पढने नहीं।
आप…..आपने तो पूरे लेख का पोस्टमॉर्टम कर के छोड़ दिया .
मैं…….. अरे-अरे रस्तोगी साहब गजब कर रहे हो, इतने अच्छे लेख को पोस्टमॉर्टम से तुलना उचित नहीं है, इसमें सिर्फ़ 100 से कुछ ज्यादा ही तो गलतियाँ है जो सुधारी जा सकती है। जल्द सुधारने की कृपा करे। मैंने बद्रीनाथ व केदारनाथ जी पर इस साईट पर इतना शानदर लेख नहीं देखा।(अगर गलतियाँ ना होती तो)
आप…. शाब्दिक गलतियाँ, भगवान बद्री विशाल को नही समर्पित कर रहा हूँ. अपनी भावनाओ को समर्पित कर रहा हूँ और भगवान भी भक्त की भावनाओ को ही देखते हैं. उसके पहने हुए कपड़े या प्रसाद को नहीं. कि यह तो पुराने या गन्दे कपड़े पहन कर आ गया इसे बाहर निकालो. इसमे प्रदर्शन की बात कहाँ से आ गयी. हमे जो अच्छा लगा लिख दिया. अच्छा लगे तो पढ़ो ना अच्छा लगे तो मत पढ़ो. एक बात और मै कोई साहित्यकार नही हूँ.
मैं……..चलो इस पर भी बात करते है आपकी यह बात बहुत अच्छी लगी कि आप अपनी भावनाओं को भगवान को अर्पित कर रहे है सही कहा भगवान भक्त की भावनाओं को ही देखते है। उसके पहने हुए प्रसाद या पकडे को नहीं। इस बात पर मैं आपका कायल हो गया हूँ। आप अच्छा लिख रहे है, जब तक अच्छा लिखते रहोगे, तब तक तो अवश्य पढता रहूँगा, लेकिन झूठी वाहवाही नहीं कर सकता। अच्छा है अच्छा। बुरा है तो बुरा कहना पडेगा। यह भी पता लगा कि आप कोई साहित्यकार नहीं है फ़िर तो आपको और भी ध्यान लगाकर लिखना चाहिए।
आप…. आलोचना करना अच्छी बात है पर आलोचना करने से पहले सही शब्दो का चयन करना भी आना चाहिये. जिससे कि दूसरे की भावनाओ को ठेस ना पहुंचे।
क्या करे रस्तोगी साहब…… वैसे तो मैं आमतौर पर किसी की आलोचना नहीं करता हूँ क्योंकि मुझसे घूमा-फ़िरा बात करना पसन्द नहीं है। इसलिये अनुरोध है कि जितना हो सके उतना लेख गलतियाँ रहित रहना चाहिए। ताकि लेख की शान बनी रहे। इस बात में ज्यादा देर ना करे और गलतियाँ दूर होते ही मेरे दोनों कमेन्ट इस लेख से हटाने के लिये नदन जी से कह दे।
भगवान भी भक्त की भावनाओ को ही देखते हैं. उसके पहने हुए कपड़े या प्रसाद को नहीं | भगवान भाव का भूखा है कपडे-पूजा सामग्री का नहीं, आपकी यह बात दिल को छू गयी है। क्योंकि मेरे भी कुछ यही विचार है। अत: मुझसे आपसे कुछ गलती हो गयी हो तो उसे बताईयेगा कि फ़िर से मैंने कुछ गलत तो नहीं कह दिया है। आप बडे है, मेरे शब्द गलत लगे हो तो, डाटेंगें तो भी चलेगा।
aap dono ke beech ke shabdik vyang baan me main nahi parunga,kyunki mujhe hindi me translate karna nahi aata.nandan sir ne complain bhi kia par kya kare nahi aata hi ndi me translate karna.baat sahi hai devtaji ne thore kare shabdo me alochna kar di hai.jabki iski utani jarurat nahi thi.dusre, main bhi manta hun lekh ko shabdo me bandhna uchit nahi hai kyunki isase lekh ki continuty par asar parta hai.maine manu se bhi request kia tha shabdo ke jaal me na pare,agar lekh bara hai to jiski jaisi itchchha,padhna hai padhe na padhna hai na padhe.aapke lekh me kahin koi kami nahi hai.bahut hi sundar balki atisundar.ummeed hai aage bhi aisi hi rochak yatra sansmaran post karenge.
Rastoji, Hindi Sahitya main aise vyaktiyon ko “Perchhidranveshi” arthath dusron ki kamiyan dekhana, kaha gaya hai. Kisi bhi lekh ka vyakaran nahin dekha jata valki uska prastutikaran dekha jata hai. Maine kal ke ek hindi ke professor ki likhi kahani padhi, jo ki mishrit local bhasha ke sahit, parantu prastuti aisi thi ki jab tak kahani puri nahin hui, maine chai bhi nahin pee. Kahani va kekh ka matlav yahi hota hai ki pathak us ke saat bahe. Bahut Sunder lekh hai. Main to is sight jo aaj hee dekh raha hun. Aagey prayas karunga is me anya lekho ke anand lene ka.
ॐ शांति……………..ॐ शांति………………ॐ शांति
संदीप जी
इतना समझाने के बाद भी आप समझना नही चाहते . लगता है फिर से कहानी लिखनी पड़ेगी.
अगर आप भी मेरी तरह रोमन मे लिख कर बाद मे हिन्दी मे ट्रांसलेट करते है तो आपको मालूम होगा कि बाद मे प्रूफ रीडिंग करनी पड़ती है. जो कि लिखने से ज्यादा जटिल कार्य है. प्रूफ रीडिंग करते समय कुछ शब्द छूट जाना स्वभाभिक है. तो भाई कुछ शब्द तो इस तरह से छूट गये और कुछ एक शब्द मेरा software सही ढंग से लिख नही रहा था जैसे कि मैने mokch लिखा वह गलत उसने टाइप किया फिर मैने mochh लिखा वह भी गलत टाइप किया जबकि मैने छ्त्री वाला छ् लिखना चाहता था पर वह छाते वाला लिख रहा था. इस तरह से कई शब्दो मे गलतियाँ रह गयी पर आप तो अपने हिन्दी ज्ञान को बखाने लगे. यह उचित नही.
आपको बता दू कि 80 के दशक मे , शादी से पहले मेरा बहुत से कवियो और साहित्यकारो से संपर्क रहा. कवि सम्मेलन मे जाया करता था और मंच पर ही अन्य कवियो के साथ बैठा करता था. जिसमे से श्री सुरेन्द्र शर्मा, जो कि बहुत प्रसिद्ध हास्य कवि रहे हैं , ऐसे ही अशोक चक्रधर, ओम प्रकाश आदित्य, हुल्लड मुरादाबादी, संतोषानन्द , शैल चतुर्वेदी, शरद जोशी, काका हाथरसी, जगदीश सोलंकी आदि आदि. जैमिनी हरियाणवी का लड़का अरुण जैमिनी जो हम उम्र था , ने तो मेरे सामने पहली बर दरिया गंज के कवि सम्मेलन मे कविता पढी थी. जो कि अब कादम्बनी का एडीटर है. पर कोई भी अपनी योग्यता का इस तरह से बखान नही करता था.
एक और बात , जैसा कि मैने आपको बताया था कि यह लेख 2010 मे ही यात्रा से आने के बाद कागज पर लिख रखा था. सबूत के तौर पर 2 पेज स्कैन करके नंदन जी के पास भेज रहा हूँ कि आपको भेज दे क्योकि आपकी मेरे पास मेल id नही है. अब आप इसमे गलतियाँ ढूंढे.
आप ने एक छोटा सा जबाव लिखा पर उसमे भी गलतियाँ हो गयी ना आपसे.
मुझ,नही मुझे , पकडे. यहाँ आपने पकड़े लिख दिया कपड़े की जगह पर, इसी तरह मुझसे नही मुझमे शब्द लिखना चाहिये.
आपकी जानकारी के लिये बता दू कि एक बार प्रकाशित होने के बाद लेखक को एडिट करने का अधिकार नंदन जी ने नही दिया है. घुमक्कड़ पर प्रकाशित होने से पहले ही लेखक एडिट कर सकता है.
मुझे मालूम है आप इस जबाव को पढ कर शांत नही बैठेंगे . अभी एक-दो दिन के लिये बाहर जा रहा हूँ, वहां से लौट कर आपके अगले प्रश्न का जवाब दूंगा.
रस्तोगी जी मैं आपकी असली परेशानी समझ गया हूँ अत: आपकी यह पोस्ट मैं ठीक कर नन्दन जी को भेज देता हूँ, कोई शब्दहिन्दी में लिखने में कोई परेशानी आ रही हो तो बता देना।
मुझे अभी भी अच्छी तरह याद है जब मैंने नया-नया ब्लॉग लिखना शुरु किया था तो मैं भी आपकी तरह ढेर सारी गलती कर दिया करता था। (२-४ तो अब भी हो जाती होंगी) जिस तरह मैं आपके पीछे पडा ठीक इसी तरह नीरज भी मेरे पीछे पड गया था कि जब तक सही नहीं लिखोगे, टोकता रहूँगा।
जिस प्रकार आपने ध्यान से मेरा कमेन्ट पढा और उसमें आपको गलतियाँ मिली, उसी प्रकार लेख की गलतियाँ भी आसानी से ठीक हो जायेगी। मोक्ष के लिये mokSh लिखो ठीक हो जायेगा। जिन शब्दों पर आप असंजस की स्थिति में है ध्यान दे कि उनमें से छोटे+बडे अक्षर करने पर सही शब्द बन जाता है।
संदीप जी
बहुत खुशी हुई, आपको मेरी बात, परेशानी समझ मे आ गयी, कोई बात नहीं, कहते हैं ना “ देर आयद दुरस्त आयद”
वैसे एक बात है कि आप भी अडियल टट्टू की तरह अड जाते हो. लेकिन दिल से एकदम मोम यानी SOFT हो. यह बहुत अच्छी बात है.
राम राम
sukrya for everything,no words for your birtant katha,
h n singh
आप ने जो वर्डन किया है बहुत ही बढ़िया इससे अच्छा वर्डन कोई कर भी नहीं सकता. आपकी वजह से हमें
वंहा जाने की उत्सुकता हो रही है कृपया आप हमें ये बताने का कष्ट करें की केदारनाथ तथा बद्रीनाथ धाम की यात्रा कब से और कब तक चलती है तो बहुत बड़ी मेहरबानी होगी . इश्वर आपकी सारी मनोकामना पूर्ति करें.
धन्यवाद
Beautiful defined visit with lovely pics.Thanks to Ghumakkar,providing us beautiful memories of writers.While reading all posts i use to feel as my self is visting.Thanks a lot Sir for beautiful post..
sir ji isse pahle aapki yamunotri / gangotri yatra ke baare me padha tha aur ab aapki kedarnath / badrinath dhaam yatra ke baare me padha . aap bahut hi vistaar se likhte ho jo ki bahut hi achcha he. me bhi ek baar badrinaath gaya tha par kedarnath jaane ka mouka mujhe aaj tak nahi mila he ab mera mann bhi kedarnath aur badirnath jaane ka kar raha he. me jaruru jaunga. thanks sir ji