यातà¥à¤°à¤¾ की योजना à¤à¤µà¤‚ तैयारी:
वैसे तो अब तक घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ पर सोमनाथ के बारे में बहà¥à¤¤ कà¥à¤› लिखा जा चूका है, लेकिन à¤à¤• छोटा सा पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करने की मेरी à¤à¥€ इचà¥à¤›à¤¾ है, आशा है आपलोगों को मेरा यह पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ पसंद आà¤à¤—ा.
हमने अपनी जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग यातà¥à¤°à¤¾à¤à¤‚ तà¥à¤°à¥à¤¯à¤®à¥à¤¬à¤•ेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग यातà¥à¤°à¤¾ के साथ सन 2007 में शà¥à¤°à¥‚ की थीं लेकिन उस यातà¥à¤°à¤¾ के कोई साकà¥à¤·à¥à¤¯ हमारे पास मौजूद नहीं होने की वजह से हम उस यातà¥à¤°à¤¾ का वरà¥à¤£à¤¨ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ के पाठकों तक नहीं ला पाठफिर 2008 में घृषà¥à¤£à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग की यातà¥à¤°à¤¾ के बाद अब हम अपनी जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग यातà¥à¤°à¤¾ के बारे में सोच ही रहे थे की अब कहाठजाना चाहिà¤? तà¤à¥€ दिमाग में यह बात आई की कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न सोमनाथ जाया जाये? सोमनाथ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥€ हो जायेंगे और साथ में दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¿à¤•ा धाम à¤à¥€ हो आयेंगे यानि à¤à¤• जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के साथ à¤à¤• धाम फà¥à¤°à¥€, और बस मà¥à¤•ेश जी ने योजना बनाने पर काम पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठकर दिया और हमने यह निरà¥à¤£à¤¯ लिया की हमारी यह यातà¥à¤°à¤¾ 30 जनवरी से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठहोकर 5 फरवरी  को समापà¥à¤¤ होगी. 30 जनवरी को इसलिठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इस दिन हमारी बिटिया संसà¥à¤•ृति का जनà¥à¤®à¤¦à¤¿à¤¨ होता है, अब वह नौ वरà¥à¤· की हो गई थी और इससे पहले के उसके सारे जनà¥à¤®à¤¦à¤¿à¤¨ हमने अपने घर में बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की फौज के साथ ही मनाये गà¤, लेकिन इस वरà¥à¤· हमने सोचा की उसके जनà¥à¤®à¤¦à¤¿à¤¨ पर हम तीरà¥à¤¥ यातà¥à¤°à¤¾ जायेंगे अतः हमने यह टूर इस दिन के लिठपà¥à¤²à¤¾à¤¨ किया और फिर हमने जबलपà¥à¤° सोमनाथ à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ में अपना रिजरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¤¨ करवा लिया.
यातà¥à¤°à¤¾ का आरमà¥à¤:
संसà¥à¤•ृति अपने सà¥à¤•ूल से लौटी और कोलोनी में टॉफी बांटकर आई और शाम के लगà¤à¤— छः बजे हम लोग अपनी कार से उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ के लिठरवाना हो गà¤, हमें अपनी टà¥à¤°à¥‡à¤¨ में उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ से ही बैठना था. टà¥à¤°à¥‡à¤¨ रात को 10 बजे उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ से निकलनेवाली थी और हम लोग लगà¤à¤— नौ बजे रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पहà¥à¤à¤š गà¤, à¤à¤• घंटे के इंतज़ार के बाद करीब 10 :10 बजे हमारी टà¥à¤°à¥‡à¤¨ उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ से निकल पड़ी.
मà¥à¤•ेश को टà¥à¤°à¥‡à¤¨ (रेलवे) का खाना बिलकà¥à¤² पसंद नहीं है, इसलिठवे अपने ओफ़िशिअल टूर पर à¤à¥€ जब जाते हैं तो कम से कम à¤à¤• बार का खाना मेरे हाथ का बनवाकर लेकर जाते हैं खासकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ टà¥à¤°à¥‡à¤¨ में मेरे हाथ की आलू मटर की सबà¥à¤œà¥€ या à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¡à¥€ और पà¥à¤¡à¤¼à¥€ या परांठे बहà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤¤à¥‡ हैं तो मैं उनकी पसंद का खाना बनाकर साथ लेकर आई थी अतः खाना वगैरह खाकर हम लोग अपनी अपनी बरà¥à¤¥ पर सो गà¤.
सोमनाथ जाने का मेरा उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ अपने चरम पर था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि à¤à¤• तो बचपन से किताबों में सोमनाथ मंदिर के बारे में पढ़ते आ रहे थे और दूसरा सारे जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों में पà¥à¤°à¤¥à¤® जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के दरà¥à¤¶à¤¨ के आनंद की लालसा. वैसे मैं कई बार शिव महापà¥à¤°à¤¾à¤£ की कथा सà¥à¤¨ चà¥à¤•ी थी जिसमें कहा जाता है की जो à¤à¤•à¥à¤¤ सोमनाथ के दरà¥à¤¶à¤¨ करता हैं वह यहाठसे à¤à¤• नई उरà¥à¤œà¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करके अनà¥à¤¯ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों की यातà¥à¤°à¤¾ के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ होता है, वैसे तकनिकी à¤à¤¾à¤·à¤¾ में कहूठतो वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ रिचारà¥à¤œ हो जाता है, उसे à¤à¤• नई à¤à¤¨à¤°à¥à¤œà¥€ मिल जाती है.
हम सोते रहे और टà¥à¤°à¥‡à¤¨ अपने गति से चलती रही, à¤à¤• à¤à¤• करके सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ रहे, बीच बीच में नींद खà¥à¤² जाती थी तो खिड़की से à¤à¤¾à¤à¤• कर देख लिया करते की कौन सा सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ आया है. वैसे मà¥à¤•ेश को तो बस, कार, टà¥à¤°à¥‡à¤¨ आदि में नींद आती ही नहीं है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ घà¥à¤®à¤¨à¥‡ और नई जगहों को देखने का इतना जबरदसà¥à¤¤ शौक है की वो पà¥à¤°à¥‡ समय खिड़की से à¤à¤¾à¤à¤• कर बाहर देखने की कोशिश करते रहते हैं, और जैसे ही सà¥à¤¬à¤¹Â की पहली किरण फूटती है उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी मà¥à¤‚ह मांगी मà¥à¤°à¤¾à¤¦ मिल जाती है और वे उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ होकर बाहर देखने लगते हैं.
वेरावल से सोमनाथ का सफ़र: कà¥à¤› यादगार अनà¥à¤à¤µ
रात के बैठे हम लोग अगले दिन शाम के पांच बजे के लगà¤à¤— वेरावल पहà¥à¤à¤š गà¤. वेरावल आते आते जैसे पूरी टà¥à¤°à¥‡à¤¨ ही खाली हो गई और टà¥à¤°à¥‡à¤¨ के खाली होते ही बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ ने कमà¥à¤ªà¤¾à¤°à¥à¤Ÿà¤®à¥‡à¤‚ट में उछल कूद मचाना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया.
वेरावल सोमनाथ से कà¥à¤› 8 किलोमीटर पहले à¤à¤• क़सà¥à¤¬à¤¾ है, जहाठजà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° सोमनाथ तीरà¥à¤¥ यातà¥à¤°à¥€Â ठहरते हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यहाठठहरने के लिठअचà¥à¤›à¥€ धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾à¤à¤‚ तथा होटलà¥à¤¸ हैं. पहले कोई à¤à¥€ टà¥à¤°à¥‡à¤¨ सोमनाथ तक नहीं जाती थी तथा वेरावल ही टà¥à¤°à¥‡à¤¨ का अंतिम सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ हà¥à¤† करता था तथा वेरावल से यातà¥à¤°à¥€ ऑटो रिकà¥à¤¶à¤¾ करके सोमनाथ जाया करते हैं, लेकिन अब कà¥à¤› सालों पहले इसी टà¥à¤°à¥‡à¤¨ को बढाकर सोमनाथ तक कर दिया गया है. यहाठपर टà¥à¤°à¥‡à¤¨ की पटरी ख़तà¥à¤® हो जाती है, यानी इस रूट पर यह रेलवे का आखिरी सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ है.
मैंने अपने जीवन में पहली बार टà¥à¤°à¥‡à¤¨ की पटरी (टà¥à¤°à¥‡à¤•) को समापà¥à¤¤ (end) होते देखा जहाठआगे à¤à¤• पटिये पर तीन कà¥à¤°à¥‹à¤¸ के चिनà¥à¤¹ लगे थे. वेरावल से सोमनाथ के उस सात आठकिलोमीटर के रासà¥à¤¤à¥‡ में मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ सारी à¤à¤¸à¥€ चीजें देखने को मिली जो मैंने जीवन में पहली बार महसूस की थी जैसे à¤à¤• तो मैंने बताया रेल की पटरियां जो ख़तà¥à¤® हो गईं, दूसरा मैंने नारियल के इतने सारे पेड़ à¤à¥€ à¤à¤• साथ कà¤à¥€ नहीं देखे थे, तीसरा समà¥à¤¦à¥à¤° का किनारा होने की वजह से यहाठसà¥à¤–ी मछलियों की बड़ी जबरदसà¥à¤¤ तथा जानलेवा गंध फैली हà¥à¤ˆ थी, चौथा मैंने कà¤à¥€ नाव या पानी के छोटे जहाज बनते नहीं देखे थे, लेकिन यहाठवेरावल से सोमनाथ के बीच पà¥à¤°à¥‡ समà¥à¤¦à¥à¤°à¥€ किनारे पर à¤à¤°à¥€ संखà¥à¤¯à¤¾ में नावें तथा जहाज का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ होते हà¥à¤ दिखा, और अंत में यह कहना चाहूंगी की मैंने यहाठपहली बार समà¥à¤¦à¥à¤° देखा था. यानी यह यातà¥à¤°à¤¾ मेरे लिठबहà¥à¤¤ यादगार थी जिसमें बहà¥à¤¤ सारी जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾, कौतà¥à¤¹à¤², आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤®à¤¿à¤¶à¥à¤°à¤¿à¤¤ हरà¥à¤· था. मैं तो बस इन नजारों को सà¥à¤¤à¤¬à¥à¤§ होकर देखती रही. लगà¤à¤— साढ़े पांच बजे हम सोमनाथ पहà¥à¤à¤š गये.
सोमनाथ आगमन:
जैसे ही हम लोग सोमनाथ के सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर उतरे हमें ऑटो वालों ने घेर लिया. à¤à¤• ऑटोवाले से हमने बताया की हमें सोमनाथ मंदिर के नजदीक à¤à¤• दिन के लिठकमरा चाहिà¤. उसने हमें होटल पर ले जाकर छोड़ा, मà¥à¤•ेश ने ऑटो से उतर कर कमरे तथा सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं का जायजा लिया. कमरे का किराया था 300 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡, और विशेष बात थी की यह होटल हमारी इचà¥à¤›à¤¾ के अनà¥à¤°à¥‚प मंदिर से इतने करीब था की शिवमॠअकेला ही मंदिर परिसर में चला जाà¤.
खैर हमने कमरा बà¥à¤• करवाया और थके हारे होने की वजह से जलà¥à¤¦ ही कमरे की ओर रà¥à¤– किया. कमरे में आकर हमने फटाफट अपने बैग रखे और होटल वाले से नहाने के लिठगरà¥à¤® पानी के बारे में पूछा, अब आपके मन में यह पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ आ रहा होगा की इतनी जलà¥à¤¦à¥€ नहाने की कà¥à¤¯à¤¾ जरà¥à¤°à¤¤ थी तो मैं बताये देती हूठकी हमने होटल में रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर मंदिर की आरती दरà¥à¤¶à¤¨ आदि के बारे में पूछा तो हमने पता चला की शाम सात बजे सांधà¥à¤¯ आरती होती है, बस फिर कà¥à¤¯à¤¾ था हम सब यहाठतक की शिवम à¤à¥€ नहाने के लिठतैयार हो गà¤, जब होटलवाले ने बताया की इस समय गरà¥à¤® पानी नहीं मिल सकता तो हम सबने ठनà¥à¤¡à¥‡ पानी से ही नहा लिया, वैसे हमें à¤à¤—वानॠके दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के नाम से किसी à¤à¥€ पà¥à¤°à¤•ार की थकान या तकलीफ नहीं होती और वैसे à¤à¥€ हम à¤à¤—वानॠके दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ का कोई मौका नहीं छोड़ते. à¤à¥‹à¤²à¥‡ बाबा के दरà¥à¤¶à¤¨ की इचà¥à¤›à¤¾ से सबकी थकान गायब हो गई थी. तो साहब नहा धोकर हम सब मंदिर जाने के लिठतैयार हो गठया कह लीजिये की मंदिर के लिठनिकल पड़े. उस समय मंदिर में à¤à¥€à¤¡à¤¼ अपेकà¥à¤·à¤¾à¤•ृत कम ही थी, à¤à¤• छोटी सी लाइन लगी थी, हम सब à¤à¥€ उस लाइन में जाकर खड़े हो गअ……………….. और अब मैं अपनी कहानी को यहाठथोडा विराम देती हूठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सोमनाथ से समà¥à¤¬à¤‚धित कà¥à¤› पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• जानकारी से अवगत करना मैं अति आवशà¥à¤¯à¤• समà¤à¤¤à¥€ हूà¤.
सोमनाथ मंदिर – à¤à¤• परिचय:
à¤à¤¾à¤°à¤¤ के गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ राजà¥à¤¯ के जूनागढ़ जिले में पà¥à¤°à¤à¤¾à¤¸ पाटन नामक गाà¤à¤µ को ही सोमनाथ कहा जाता है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यहाठपर à¤à¤—वानॠशिव के पवितà¥à¤° तथा दà¥à¤°à¥à¤²à¤ बारह जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों में से à¤à¤• आदि तथा सà¥à¤µà¤‚à¤à¥‚ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग शà¥à¤°à¥€ सोमनाथ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है. सोमनाथ को अनंत देवालय à¤à¥€ कहा जाता है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह छः बार मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® शासकों के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ धà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ किया गया तथा हर बार अपने उसी गौरव के साथ फिर से खड़ा किया गया. वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ मंदिर सन 1947 में लौह पà¥à¤°à¥à¤· सरदार वलà¥à¤²à¤ à¤à¤¾à¤ˆ पटेल के अथक पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ किया गया है.
सोमनाथ मंदिर का वैà¤à¤µà¤¶à¤¾à¤²à¥€ अतीत:
जय सोमनाथ…………..जय सोमनाथ यह जयघोष गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ में सौराषà¥à¤Ÿà¥à¤° के वेरावल बंदरगाह और पà¥à¤°à¤à¤¾à¤¸ पाटन गाà¤à¤µ के परिसर में गूंजता रहता था. साथ ही साथ मंदिर की सीढियों पर आकर टकराने वाली समà¥à¤¦à¥à¤°à¥€ लहरों से निकलनेवाली जय शंकर…जय शंकर…..की धीर गंà¤à¥€à¤° धà¥à¤µà¤¨à¤¿ और सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ घंटानाद से निकलनेवाली ॠनमः शिवाय…….ॠनमः शिवाय……..धà¥à¤µà¤¨à¤¿ से सारा मंदिर परिसर à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¯ बन जाता था.
मंदिर की यह विशाल सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ घंटा दो सौ मन सोने की थी और मंदिर के छपà¥à¤ªà¤¨ खमà¥à¤à¥‡ हीरे, माणिकà¥à¤¯ और मोती जैसे रतà¥à¤¨à¥‹à¤‚ से जड़े हà¥à¤ थे. मंदिर के गरà¥à¤à¤—ृह में रतà¥à¤¨à¤¦à¥€à¤ªà¥‹à¤‚ की जगमगाहट रात दिन रहती थी और कनà¥à¤¨à¥Œà¤œà¥€ इतà¥à¤° से नंदा दीप हमेशा पà¥à¤°à¤œà¥à¤œà¤µà¤²à¤¿à¤¤ रहता था. à¤à¤‚डार गृह में अनगिनत धन सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ था.
à¤à¤—वानॠकी पूजा अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के लिठहरिदà¥à¤µà¤¾à¤°, पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤—, काशी से पूजन सामगà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ लाई जाती थी. कशà¥à¤®à¥€à¤° से फूल आते थे. नितà¥à¤¯ की पूजा के लिठà¤à¤• हज़ार बà¥à¤°à¤¾à¤®à¥à¤¹à¤£ गण नियà¥à¤•à¥à¤¤ किये गठथे. मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के दरबार में चलने वाले नृतà¥à¤¯ गायन के लिठलगà¤à¤— साढ़े तीन सौ नरà¥à¤¤à¤•ियां नियà¥à¤•à¥à¤¤ की गई थीं. इस धारà¥à¤®à¤¿à¤• संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ को दस हज़ार गावों का उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ इनाम के रूप में मिलता था.
सोमनाथ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° का इतिहास:
शà¥à¤°à¥€ सोमनाथ के इस वैà¤à¤µà¤¸à¤‚पनà¥à¤¨ पवितà¥à¤° सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर कà¥à¤°à¥‚र à¤à¤µà¤‚ आतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ मà¥à¤¸à¤²à¤¾à¤®à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ ने कई बार आकà¥à¤°à¤®à¤£ किये. कà¥à¤² मिला कर सोमनाथ मंदिर को छः बार धà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ किया गया तथा लूटा गया. सिलसिलेवार घटनाकà¥à¤°à¤® निमà¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•ार से है:
- सोमनाथ का पà¥à¤°à¤¥à¤® मंदिर आदिकाल का माना जाता है जिसे चनà¥à¤¦à¥à¤° देव ने देव काल में निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ करवाया था.
- आदि मंदिर के कà¥à¤·à¥€à¤£ हो जाने पर दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ मंदिर वलà¥à¤²à¤à¥€ गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ के यादव राजाओं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सन 649 में आदि मंदिर के ही सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर बनवाया गया.
- सन 725 में सिंध के अरब सूबेदार जà¥à¤¨à¤¾à¤®à¤¦ ने पà¥à¤°à¤¥à¤® आकà¥à¤°à¤®à¤£ कर अनगिनत खज़ाना लूटा.
- सन 815 में गà¥à¤°à¥à¤œà¤° पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤° राजा नागà¤à¤Ÿà¥à¤Ÿ ने तीसरा मंदिर बनवाया जिस पर आकà¥à¤°à¤®à¤£ करके गजनी के महमूद ने शà¥à¤•à¥à¤°à¤µà¤¾à¤° दिनांक 11 मई 1025 को सà¥à¤¬à¤¹ 9 .46 पर मंदिर में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग को तोड़ डाला. इस दिन उसने 18 करोड़ का खज़ाना लूटा था.
- सन 1297 में इस मंदिर को à¤à¤• बार फिर सà¥à¤²à¤¤à¤¾à¤¨ अलाउदà¥à¤¦à¥€à¤¨ खिलजी की सेना ने लूटा, खसोटा और धà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ किया.
- 1375 में गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ के सà¥à¤²à¥à¤¤à¤¾à¤¨ मà¥à¤œà¤¼à¤«à¥à¤«à¤° शाह ने इस मंदिर को फिर धà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ किया.
- 1451 में मंदिर à¤à¤• बार फिर महमूद बेगडा के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ धà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ किया गया.
- और अंत में 1701 में इस मंदिर को मà¥à¤—़ल शासक औरंगजेब के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ धà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ किया गया à¤à¤µà¤‚ लूटा गया.
- वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ मंदिर सन 1947 में लौह पà¥à¤°à¥à¤· सरदार वलà¥à¤²à¤ à¤à¤¾à¤ˆ पटेल के अथक पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ से à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार के सहयोग से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ किया गया, तथा इसके जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग की पà¥à¤°à¤¾à¤£ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा दिनांक 11 मई सन 1951 को सà¥à¤¬à¤¹ 9 .46 पर की गई. गौरतलब है की यह वही दिनांक तथा समय है जब सन 1025 में महमूद गजनवी ने इस जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग को तोडा था.
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यह तो थी कà¥à¤› जानकारी सोमनाथ मंदिर के बारे में अब मैं वापस आपको लिठचलती हूठमेरी कहानी की ओर……………………………
सोमनाथ मंदिर पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶: Â
मà¥à¤•ेश और मैं तो बाहर से ही मंदिर की à¤à¤µà¥à¤¯à¤¤à¤¾ और विशालता को देखकर मंतà¥à¤°à¤®à¥à¤—à¥à¤§ हो गà¤. समà¥à¤¦à¥à¤° के à¤à¤•दम किनारे पर विशाल à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° मंदिर, मंदिर परिसर का शांत और सौमà¥à¤¯ वातावरण, मंदिर पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ के ठीक पहले अतिसà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° à¤à¤µà¤‚ वृहदॠदिगà¥à¤µà¤¿à¤œà¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°, शाम का समय और दà¥à¤° दà¥à¤° तक फैले अंतहीन समà¥à¤¦à¥à¤° से आती लहरों की करà¥à¤£à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯ धà¥à¤µà¤¨à¤¿, और मंदिर के शिखर पर उनà¥à¤®à¥à¤•à¥à¤¤ लहराती विशाल धà¥à¤µà¤œà¤¾ सबकà¥à¤› मानो à¤à¤• सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ सा लग रहा था. à¤à¤¸à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है की यदि आप किसी कारणवश मंदिर में नहीं जा पाते हैं तो मंदिर की धà¥à¤µà¤œà¤¾ के दरà¥à¤¶à¤¨ से ही मंदिर दरà¥à¤¶à¤¨ का पà¥à¤£à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो जाता है.
और फिर जैसे ही हमने मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया, मंदिर की आतंरिक साज सजà¥à¤œà¤¾, सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° नकà¥à¤•ाशी à¤à¤µà¤‚ उतà¥à¤•ृषà¥à¤Ÿ कारीगरी को देखकर हम हतपà¥à¤°à¤ रह गà¤. और फिर आगे जाकर गरà¥à¤à¤—ृह में जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग का सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª देखकर तो हम कà¥à¤› देर के लिठजैसे समà¥à¤®à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ ही हो गठथे. बड़ा ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯ था जिसका बखान मैं शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में करने में असमरà¥à¤¥ हूà¤.
सोमनाथ मंदिर आरती: अतà¥à¤²à¤¨à¥€à¤¯, अकलà¥à¤ªà¤¨à¥€à¤¯, अमूलà¥à¤¯
सोमनाथ की आरती शहनाई, शंख, नगाड़े à¤à¤µà¤‚ घंटियों की धà¥à¤µà¤¨à¤¿ के साथ होती है, à¤à¤• विशेष बात यह है की इस आरती में शबà¥à¤¦ नहीं होते सिरà¥à¤« संगीत होता है और à¤à¤¸à¤¾ संगीत जो à¤à¤• नासà¥à¤¤à¤¿à¤• के मन में à¤à¥€ अगाध शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करने में सकà¥à¤·à¤® है. करà¥à¤£à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯ धà¥à¤µà¤¨à¤¿, वातावरण में फैली गà¥à¤—à¥à¤—ल की खà¥à¤¶à¤¬à¥‚, à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ से सराबोर जनमानस, दीयों की मदà¥à¤§à¤¿à¤® रौशनी, महादेव का अनवरत अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• सबकà¥à¤› सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨à¤²à¥‹à¤• की तरह……..और मन में यह तीवà¥à¤° उतà¥à¤•ंठा की यह सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ कà¤à¥€ à¤à¥€ समापà¥à¤¤ न हो, यह आरती à¤à¤¸à¥‡ ही चलती रहे. यहाठमैं आपलोगों को यह बता देना चाहती हूठकी मà¥à¤•ेश के मन में शिव जी के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ असीम शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ के बीज यहीं सोमनाथ मंदिर में इसी माहौल में अंकà¥à¤°à¤¿à¤¤ हà¥à¤ थे, और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पहली बार à¤à¤—वान शिव की सतà¥à¤¤à¤¾ से साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार की अनà¥à¤à¥‚ति हà¥à¤ˆ. मैं ठगी सी शिव के जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग को अपलक निहार रही थी, और महसूस कर रही थी की जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग से जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿ की रशà¥à¤®à¤¿à¤¯à¤¾à¤ निकल कर मेरे शरीर में मेरी आतà¥à¤®à¤¾ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर रही हैं. संसà¥à¤•ृति à¤à¤µà¤‚ शिवमॠà¤à¥€ उस वातावरण में रम से गठथे. कà¥à¤› देर में यह चमतà¥à¤•ारी आरती समापà¥à¤¤ हà¥à¤ˆ और हम शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ की बेड़ियों से बंधे हà¥à¤ अनमने से मंदिर से बाहर आये.
रात के सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¥‡ को चीरती मंदिर की दीवारों से टकराती समà¥à¤¦à¥à¤° की लहरों की वे आवाजें à¤à¤• अदà¥à¤à¥‚त वातावरण निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ कर रहीं थीं. कà¥à¤› समय तक तो हम मंदिर के पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में ही लगी बेनà¥à¤šà¥‹à¤‚ पर बैठकर इस अदà¥à¤à¥‚त नज़ारे का अवलोकन करते रहे और समà¥à¤¦à¥à¤° की लहरों को आते जाते देखते रहे. कà¥à¤› देर के बाद उठकर हम बाहर की ओर सजी पूजन सामगà¥à¤°à¥€ तथा अनà¥à¤¯ वसà¥à¤¤à¥à¤“ं की छोटी छोटी दà¥à¤•ानों जो बहà¥à¤§à¤¾ हर बड़े मंदिर के परिसर में होती हैं में थोड़ी बहà¥à¤¤ खरीददारी के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया. फिर कà¥à¤› देर में à¤à¥‚ख ने अपना पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ दिखाया और हम à¤à¥‹à¤œà¤¨ की तलाश में कोई अचà¥à¤›à¤¾ रेसà¥à¤Ÿà¤¾à¤°à¥‡à¤‚ट ढूंढने लगे, जो हमें कà¥à¤› ही देर में मिल गया. हमने गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥€ थाली आरà¥à¤¡à¤° की और खाना खाकर हम वापिस अपने होटल आ गà¤.
चूà¤à¤•ि हमें सà¥à¤¬à¤¹ à¤à¤—वान का अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• करना था अतः होटल लौटते समय हमने पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ जी से अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के लिठबात कर ली à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤¬à¤¹ सात बजे का समय तय कर लिया. होटल पहà¥à¤‚चकर सà¥à¤¬à¤¹ जलà¥à¤¦à¥€ उठने के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से मोबाइल में अलारà¥à¤® लगाया, चूà¤à¤•ि सà¥à¤¬à¤¹ जलà¥à¤¦à¥€ उठाना था और दिनà¤à¤° की थकान के कारण हम सब तà¥à¤°à¤‚त ही सो गà¤.
अब इस शà¥à¤°à¤‚खला की इस पहली कड़ी को मैं यहीं समापà¥à¤¤ करने की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ चाहती हूअ…………..तब तक आप लोग à¤à¥€ थोडा बà¥à¤°à¥‡à¤• ले लीजिये…………अगली कड़ी में आप लोगों को कà¥à¤› और जानकारी दूंगी इस पावन जगह के बारे में. पाठकों की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ का इंतज़ार बेसबà¥à¤°à¥€ से रहेगा.
(नोट: कà¥à¤› चितà¥à¤° गूगल से साà¤à¤¾à¤° लिठगठहैं.)
वाह कविताजी, बड़ा सीधा व सरल यात्रा उल्लेख है यूं लग रहा है आप के साथ ही यात्रा कर रहे हैं. यूं तो कुछ दिन पहले ही विशाल भाई का सोमनाथ विवरण पढ़ा था, पर हर यात्रा की अपनी एक अलग कहानी होती है.
चित्र भी अच्छे है… पर आपको शायद हैरानी हो मुझे सबसे अच्छा चित्र रेलगाड़ी वाला लगा…
अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी
ऊँ नमः शिवाय्
साइलेंट जी,
मेरे पहले यात्रा विवरण पर पहली प्रतिक्रिया भेजने के लिए धन्यवाद. आपने पोस्ट को पढ़ा एवं पसंद किया उसके लिए हार्दिक आभार.
धन्यवाद.
दो तीन छोटी-छोटी टाइपिंग की गलतियां हैं, कृपया सम्पादकों से कहकर (अगर आप खुद नहीं कर सकती तो) इन्हें सही करवाइये:
1. हमने यह निर्णय लिया की हमारी यह यात्रा 30 जनवरी से प्रारंभ होकर 5 जनवरी को समाप्त होगी (मेरा विचार है कि आपने एक साल तक यह यात्रा नहीं की होगी, शायद 5 फरवरी तक ही की होगी।)
2. विशेष बात थी की यह होटल हमारी इच्छा के अनुरूप होटल से इतने करीब था (होटल मन्दिर के करीब था)
और सोमनाथ का जिक्र आते ही मेरे सामने एक दढियल, कट्टर, धर्मांध, धनलोलुप, हाथ में तलवार लिये मुल्ला शासक का चित्र आ जाता है।
कुल मिलाकर यात्राएं हमेशा यादगार होती हैं और अगर यात्रा सोमनाथ जैसी पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक जगह की हो तो कहने ही क्या!!!
नीरज जी,
सबसे पहले तो पोस्ट को इतना ध्यानपूर्वक पढने के लिए तथा त्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित करवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. आपकी कमेन्ट पढने के तुरंत बाद ही त्रुटियों का सुधार कर लिया गया है. आपने बिलकुल सही कहा यात्रा अगर धर्म स्थल की हो तो यात्रा का मजा ही कुछ ओर होता है.
और उस धर्मांध शासक के लिए आपने जो शब्द इस्तेमाल किये वे लाजवाब थे. मज़ा आ गया.
धन्यवाद.
छोटे चौस्साब, मेरा बस चले तो आपको प्रधान-मंत्री बना दूं.
कविता जी नमस्कार, एक से साथ एक फ़्री वाली योजना यहाँ भी कार्य कर रही है देखकर अच्छा लगा। मुकेश भाई आलू मटर व भिन्डी की सब्जी के साथ पुडी खाने के शौकीन है, आपके हाथों की बनी पुडी सब्जी खाने का मन कर रहा है, देखो कब मौका मिलता है? वेरावल से याद आता है वहाँ पर जबरदस्त मछलियों की बदबू से बुरा हाल हो जाता है।
सरदार पटेल ने इस मंदिर के पुन: निर्माण(उदघाटन) के समय के तथा उस समय भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को यहाँ आने का निमंत्रण दिया था, लेकिन उस समय की सरकार के प्रधानमंत्री ने उन्हे यह कहकर हवाई जहाज देने से मना कर दिया था, कि राष्ट्रपति को किसी धार्मिक समारोह में नहीं जाना चाहिए, लेकिन उसके बाद भी अपने प्यारे देश भक्त धार्मिक राष्ट्रपति अपने निजी खर्चे से इस मन्दिर के उदघाटन पर पहुँचे थे,
राष्ट्रपति को यहाँ आने से रोकने वाले प्रधानमंत्री इसके कुछ दिनों बाद ही किसी अन्य धर्म के स्थल पर गये थे। वो भी पूरे सरकारी लाव लश्कर ब खर्चे पर। मेरा भारत महान।
दिल्ली में अभी भी औरंगजेब रोड़ है, यानि भारत उसे क्रूर शासक व भारत विरोधी नही मानता
SS jee, there are at least 2 places called Aurangabad in India and one of them is a major city.
Just a little bit of history……Jahangir was the son of Akbar and Princess Hira Kumari of Amber, so he was half Rajput and half Mughal. Aurangzeb was born to Shah Jahan and Princess Manmati of Jodhpur. So, he was 3/4th Rajput and 1/4 Mughal. So, Aurangzeb, as far as his genes were concerned was mainly Rajput with a trace of Mughal blood. Notwithstanding his Hindu roots, Aurangzeb was the most bigoted and fanatical of the Mughal Emperors.
Naming roads or airports or cities after certain people does not mean that they are loved by the people. Such acts are dictated by the needs of political expediency, SSji, as you very well know. No amount of rewriting history can wash away the blood stained hands of this evil tyrant.
Babu Rajendra Prasad had himself performed the प्राण प्रतिष्टान of the jyotirlingam in the reconstructed Somnath Temple. What he said on this occasion is worth repeating; “The Somnath temple signifies that the power of reconstruction is always greater than the power of destruction”
डी. एल. जी आप इतना ज्ञान कहाँ से प्राप्त करते हैं? वह भी हर क्षेत्र में!
Agreed fully DL, i was just teasing big Jaat LOL. Yes I agree with Kavitaji, your knowledge in all fields is so immense.
In India not many people knew abut Iceland, but you immediately brought up issue of Geo-thermal energy, which surprised me. In all posts your addendums are really very interesting and full of wisdom.
@ Kavita Bhalse : will you tell why you people dont go on long tours by your own cars… I would never travel by train/bus if I have a car or even a bike
संदीप जी,
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद. हम सब तो आपके इंदौर आने का बेसब्री से इंतज़ार का रहे हैं, आप आइये आपको ज़रूर सब्जी पूरी बना कर खिलाई जायेगी.
धन्यवाद.
कविता जी , बहुत ही उत्कृष्ट एवं सराहनीय प्रयास है आपका ……..और सबसे पहला तो ये कि आपने पहला फोटो श्री सोमनाथ जी का लगाया जिसे देखकर मन प्रसन्न हो गया ……….जो भी त्रुटिया हैं वो मानव स्वभाव वश हैं और इनसे पता चलता है कि आप मुकेश जी से अलग अपने खुद के आयाम बना रही हैं जिसके लिये आपको साधुवाद …….मेरी धर्मपत्नी आपकी प्रशंसक है और आपसे प्रेरणा लेती हैं ……….मछलियो की आती ग्ंध का सामना शायद वहां जाने वाले हर व्यक्ति को करना पडता है साथ ही गर्मियो होते हुए भी समंदर किनारा होने के कारण हल्की पानी की बूंदे वहां मौसम में रहती हैं ……….आपने सोमनाथ का इतिहास भी बहुत अच्छे तरीके से लिखा और कुल मिलाकर आपकी ये पोस्ट एक सराहनीय योगदान है हिंदू धर्म और घुमक्कडो के लिये …..आशा है कि आप ऐसे ही लिखते रहें ……….
@संदीप जी आपने बहुत अच्छी जानकारी दी
मनु जी,
पोस्ट को पसंद करने तथा प्रोत्साहन के लिए आभार. हाँ पोस्ट पर सबसे पहले भगवान का फोटो लगाना मुझे अच्छा लगता है. मुझे जानकर प्रसन्नता हुई की लवी को मेरी पोस्ट्स पसंद आती है, मैं भी उससे बात करना चाहूंगी. आप लोगों का यूँ ही प्रोत्साहन मिलता रहा तो मैं भी ऐसे ही लिखती रहूंगी.
थैंक्स.
Beautiful
अनुपम जी,
आपकी इस छोटी सी कमेन्ट के लिए छोटा सा जवाब……………. ” धन्यवाद”
सरदार पटेल ने इस मंदिर के पुन: निर्माण(उदघाटन) के समय के तथा उस समय भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को यहाँ आने का निमंत्रण दिया था, लेकिन उस समय की सरकार के प्रधानमंत्री ने उन्हे यह कहकर हवाई जहाज देने से मना कर दिया था, कि राष्ट्रपति को किसी धार्मिक समारोह में नहीं जाना चाहिए, लेकिन उसके बाद भी अपने प्यारे देश भक्त धार्मिक राष्ट्रपति अपने निजी खर्चे से इस मन्दिर के उदघाटन पर पहुँचे थे,
राष्ट्रपति को यहाँ आने से रोकने वाले प्रधानमंत्री इसके कुछ दिनों बाद ही किसी अन्य धर्म के स्थल पर गये थे। वो भी पूरे सरकारी लाव लश्कर ब खर्चे पर। मेरा भारत महान।
संदीप जी ऐसी जानकारी आपके जैसा देवता ही देता है धन्यवाद . कल के ऍम सी दी चुनाव में ध्यान रखूँगा
कविता जी जानकारी से भरे लेख पड़ने में मजा आ जाता है आगे की यात्रा भी पुरे विवरण से लिखना
सर्वेश जी,
आपकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.
वाह कविता जी, आप का यह प्रयास पढ़कर बहुत मज़ा आ गया।
आप ने कहा था की “अब तक घुमक्कड़ पर सोमनाथ के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चूका है”; बिलकुल सही फरमाया आपने, लेकिन हरेक व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण होता है और आप ने एक शिवुपासिका की नजरिया से लिखा, एक माँ की तरह लिखा, और इस तीर्थ यात्रा को अपनी ख़ास शैली में लिखा।
नीरज भाई ने दो तीन छोटी सी गलतियाँ को सूचित किया; मैंने भी एक गलती आप के ध्यान में ले आऊं ?
जितने आक्रमण सोमनाथ क्षेत्र पर इस्लामी हम्लेवर ने किया, वोह सब ईसा मसीह के जन्म के पश्चात हुआ, पूर्व नहीं।
मेरा और एक टिप्पणी है; गाडी आप का परिवार का अटूट हिस्सा है, जहां भी जाएँ उसे भी साथ लेके जाईयेगा।
बेचारा स्पार्क कितना खुश नज़र आ रहा था जब उसने आप के साथ फोटो खीन्चवायी; उसे क्या पता था की आप उसको उज्जैन में हे छोड़ दोगी :-)
नारायण जी,
आपकी कमेंट्स हमेशा ही बहुत उम्दा किस्म की होती है, तथा बड़े मनन तथा चिंतन का परिणाम लगती है. अगर घुमक्कड़ पर कभी कमेन्टर ऑफ़ द मंथ या इयर का खिताब मिले तो वह निर्विवाद रूप से आपको ही मिलना चाहिए. गलती की ओर इंगित करने के लिए धन्यवाद, सुधार तत्काल ही कर लिया गया है.
क्या करें डी. एल. जी हमें भी हमारी स्पार्क से बहुत प्यार है लेकिन उसे हर जगह (ज्यादा लम्बे सफ़र पर) तो ले जाया नहीं जा सकता ना.
धन्यवाद.
Thanks, Kavitajee. It is much easier to comment than to write, so I am happy leaving the hard work in the capable hands of writers like you.
@Nandan/Vibha…are you listening? Commentator of the month/year awards :-)
कविता जी…
जय सोमनाथ की ….
अतिउत्तम , आनंददायक बर्णन….मज़ा आ गया पढ़कर ……|
वैसे सोमनाथ के बारे में काफी पढ़ चुके हैं पर आपके शब्दों में पढ़कर अच्छा लगा…|
लिखते रहिएगा…..
लेख के लिए धन्यवाद….
रीतेश….
रितेश जी,
सुन्दर शब्दों में टिप्पणी प्रेषित करने तथा उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद.
कविता जी, भगवान सोमनाथ के दर्शन कराने के लिए धन्यवाद. सोमनाथ की आरती का वर्णन वाकई सम्मोहित करने वाला है. विशाल मंदिर और उसके सामने विशाल समुद्र, वाकई एक अद्भुत अनुभव रहा होगा. यात्रायें सच में अविस्मरनीय बन जाती है अगर कुछ छोटे – छोटे अनदेखे स्थल या अनुभव उनमे जुड़ जाते हैं. आगे की यात्रा के इन्तेज़ार में……
विपिन जी,
आपने पोस्ट पढ़ी, पसंद की और आरती के वर्णन की प्रशंसा की उसके लिए आपको धन्यवाद. सही कहा आपने की कुछ यात्रायें हमेशा के लिए हमारी स्मृति में अंकित हो जाती हैं, और उन्हें हम जब भी याद करते हैं, वे हमारे अन्दर एक नई उर्जा का संचार कर देती हैं. इस यात्रा की अगली कड़ी जल्द ही प्रकाशित होने वाली है.
कविता जी,
सोमनाथजी का यह वर्णन काफी रोमांचक था.
मच्छियो की बू – यह तो गुजरात और दूसरे तटीय स्थानों की खासियत है. पर कुछ ही दिन लगते है उनसे अभ्यस्त होने के लिए.
आपका आलेख एवं उसके बाद की टिप्पड़िया , Silent soul , नीरज जाट, संदीप पंवार एवं DL जी द्वारा ज्ञानवर्धक थी.
आपका ‘प्रयास’ निश्चय ही सराहनीय है एवं आशा है कि जल्द ही हम आपके अगले लेखो को भी पढ़ पाएंगे.
लिखते रहिये,
AURO.
औरोजित जी,
आपने मेरी पोस्ट पर पहली बार कमेन्ट की उसके लिए आपको धन्यवाद. आपने सही कहा प्रतिक्रियाओं के आदान प्रदान से कई तरह की जानकारियां मिलती हैं जो हमारे ज्ञान को बढ़ाती हैं. वैसे मैं कमेंट्स को तालियों का ही दूसरा रूप मानती हूँ जो की उत्साहवर्धन का एक सशक्त माध्यम है.
धन्यवाद.
Dear kavita jee extremely good post with great description . majaa aa gayaa. somnath ka darshan raat ke baaraa baje ke baad kar rahaa hoon. bahaar gayaa tha……………….
About Somnath temple I want to add something regarding mythology .
1) Moon God made that temple in Gold first and then it was
2) Ravana who made it in silver and then it was
3 ) Lord Krishna who made it in wood.
I have seen above info in many internet searches and finally last in January 2012 I went there and from Somnath Trust Museum also I found the same info.
Thanks for Somnath Darshan ………………
विशाल जी,
सुन्दर शब्दों में प्रशंसा एवं उत्साहवर्धन के लिए आभार. सोमनाथ मंदिर के निर्माण की पौराणिक जानकारी जो आपने अपनी कमेन्ट के माध्यम से दी, बहुत रोचक लगी.
थैंक्स.
Dear Kavita ,,
This post is very simple as well as detailed as you only………………………………This post reflects yours and Mukesh’s personality in many ways…………..
Somnath as I know is a very beautiful place but everytime when I view something about it , its always new and exciting ……………
Thanks for lovely trip and waiting for next.
Where is Mukesh?? I am waiting for his post also………………Alarm for Mukesh ….wake up !!!!!!!!
Sonali jee welcome to Ghumakkar dot com ! Ek kahani aapki taraf se bhi ho jaye ???
हाय सोनाली,
आपने पोस्ट पढ़ी और उसे पसंद किया उसके लिए धन्यवाद. अपने मिश्री जैसे मीठे शब्दों में तारीफ़ की उसके लिए एक्स्ट्रा धन्यवाद. जब आपसे मिले तब आपकी बातों को सुनकर और अब आपकी कमेंट्स को पढ़कर मन प्रसन्न हो जाता है. हाँ सोनाली बिलकुल सही कहा सोमनाथ के बारे में जब भी पढ़ते या सुनते हैं हर बार एक नया एहसास होता है. मेरी अगली पोस्ट जल्द ही प्रकाशित होगी.
थैंक्स.
hiiii chachu very nice chchi told me to see this so i had seen……….
Adarsh,
Thanks you very much for reading the post and liking. Keep visiting on ghumakkar.com.
Thanks.
okk send me msg on fb when u post new story i will see the stories……
बहोत ही सुंदर और व्यवस्थित पोस्ट. आपने भगवान सोमनाथजी के दर्शन का बहोत ही सजीव वर्णन किया है. पोस्ट की हर एक पंक्ति में अपना अलग ही प्रभाव है. इस साक्षात दर्शन के लिए सादर आभार. सतत लेखन के लिए शुभकामनाए. ……
आपकी अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा.
आशीष,
सुन्दर शब्दों में प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए धन्यवाद. घुमक्कड़ पढ़ते रहिये, इस श्रंखला की मेरी अगली पोस्ट शुक्रवार को यहाँ पर प्रकाशित होने वाली है.
धन्यवाद.
सप्ताहांत के लेख पड़ने में देरी हो रही है, इसके लिए सॉरी है कविता जी |
सबसे पहले शुरुआत करते हैं खाने से , :-), आलू मटर के सब्जी, भिन्डी , पूरी, परांठे , क्या कहने | संदीप की तरह मुंह में पानी आ गया |
मैने लेख को इत्मीनान से पढ़ा और मुझे सबसे अच्छी पंक्तिया लगीं
“…….और ऐसा संगीत जो एक नास्तिक के मन में भी अगाध श्रद्धा उत्पन्न करने में सक्षम है. कर्णप्रिय ध्वनि, वातावरण में फैली गुग्गल की खुशबू, भक्ति से सराबोर जनमानस, दीयों की मद्धिम रौशनी, महादेव का अनवरत अभिषेक सबकुछ स्वप्नलोक की तरह………”. बिलकुल परमानंद | jai हो
बहुत बढ़िया लेख बन कर आया कविता जी, अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा | इस लेख में मुख्य किरदार (यानी की आपका आलेख) के साथ साथ बाकी की कास्ट (यानी की कमेंट्स) ने भी पूरा साथ निभाया है |
नंदन जी,
कोई बात नहीं देर आये दुरुस्त आये. आप को भी वही कहना चाहूंगी जब भी इंदौर आना हो हमारे घर ज़रूर आइयेगा आपको भी यह सब (और भी बहूत कुछ) बना कर खिलाएंगे. लग रहा है की आपने सचमुच बहुत आनंद और इत्मिनान से लेख को पढ़ा. आपने इस लेख में से जो लाइनें निकालीं, वे सचमुच इस लेख की श्रेष्ठ पंक्तियाँ थीं.
हौसला अफजाई एवं प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभार.
धन्यवाद.
२००९ में दिल्ली से मांडू की सड़क यात्रा की थी परिवार के साथ | हम लोग धार ही में रुके थे, ३ रातों के लिए :-), वहां एक होटल है Jhira Bagh | वो पूरा ट्रिप (दिल्ली, शिवपुरी, चंदेरी, मांडू, चित्तोर) बहुत ही बढ़िया था | महेश्वर में तो कमाल हो गया था जब हमे नर्मदा के घाट पर ताजिये का मेला देखा | ठीक घाट पर एक शिव मंदिर में बड़े से लाउडस्पीकर पर क़व्वाली चल रही थी |
एक बार फिर से वो रोड ट्रिप करना है और आपके यहाँ चाय नास्ता पक्का |
नहीं नंदन जी सिर्फ चाय नाश्ते से काम नहीं चलेगा कम से दो दिन का स्टे और खाना पीना वगैरह तो होना ही चाहिए.
Rajendra Babu remains one of the most respected and admired Administrators of modern India. Probably Nehru had a reason of doing what he did or may be he made a mistake. Rajendra Babu did what he thought right. Later JP was another guy who is often cited as the ‘Best PM India never had’ and now finally I have high regard of Nitishji (as he is loving called back home). :-). So much for Rajya-Prem. I should stop now.
@ DL – Yes, we are reading. :-). When I was talking to Mukesh as part of ‘Featured Author Interview’, Mukesh stressed upon the good-energy an encouraging and rich comment brings to the Author and readers of Ghumakkar. Comments like yours add ‘Chaar Chaand’ to the beauty of the prose and Mukesh suggested that we should look at having something like ‘Comment of the Month’ or ‘Top x comments of the month’.
We discussed internally and everyone agreed that its a great idea. It would specifically motivate those people who are not Authors but are regular readers (like Ashok, Stone, Tridev) and make valuable contribution. We are of the opinion that we would strengthen the ‘Featured Author’ Process. Currently it is taking a non-trivial effort. Once it is on a auto-pilot mode, we would certainly invest in this area. Thank You for your call, it greatly matters :-) so please keep them coming.
@ Nandan-I was just kidding; being a member of the ghumakkar family is in itself a huge privilege and the biggest reward too. When authors put in a lot of effort in producing a blog, the least we can do is clap and show our appreciation. And, maybe, offer some constructive criticism too. One of the huge attractions on ghumakkar is the lively and healthy debate which take place in the comments section. There is inevitably a diversity of opinions which adds a yummy tadka to the flavour of the debate.
Good post, Good write up and nice pictures.
Adarsh,
Thank you very much for liking the post and your sweet comments.
Thanks.
नमस्कार कविताजी.
सोमनाथजीके बढिया दर्शन करान्रेकेलिये बहुत बहुत धन्यवाद.सोमनाथमे आप कौनसे होटले रुके थे? द्वारकामे होटेल शिवमे रुके थे और वह होटेल अच्छा था इसलिये पुछा. हम द्वारकामे उसी होटेलमे रुकेन्गे.ऑगस्तमे जा रहे है.
हमने अभी थोडे दिन पहले नर्मदामैय्याकी पैदल परिक्रमा सम्पन्न की है. ओम्कारेश्वर हम सालमे एक दो बार जाते है,उजैनीभी एक बार गये थे.एक बार पुन्हःच धन्यवाद.
very bright past but not a good present ; hoping to be for a glorious future.
कविता जी आपने तो यहाँ अपनी सोमनाथ यात्रा का विवरण देकर इतिश्री कर ली
लेकिन आपका यात्रा वृतांत पढ़ने के बाद हम भी सोमनाथ यात्रा को मजबूर हो गए है लिहाज़ा आज रात वाली ट्रेन से हम भी सोमनाथ यात्रा पर निकल रहे है
जय हो
Kavita JI ko sadar naman jai bhole ki
Aapka lekh padakar laga Jo halchal ho rahi thi unka uttar mil gaya kyoki 21 June ko me bhi bhole k darbar m Jane ka wait kar raha hu mujhe aapke sare yatra smarn bahut ache lage jai bhole ki