3 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर 2011 की सà¥à¤¬à¤¹ करीब सात बजे कà¥à¤› हलचल सी सà¥à¤¨à¤•र अपनी आंख खà¥à¤²à¥€à¥¤ याद आया कि मैं धाकà¥à¤¡à¥€ में पडा हूं। अरे हां, अतà¥à¤² और हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® à¤à¥€ तो यही थे, वे कहां चले गये। इस यातà¥à¤°à¤¾ पर चलने से पहले मैंने दिलà¥à¤²à¥€ से ही à¤à¤• सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग खरीद लिया था तो मैं बैग में ही घà¥à¤¸à¤¾ पडा था। वैसे तो पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ में सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग की कोई जरà¥à¤°à¤¤ नहीं होती लेकिन कà¤à¥€-कà¤à¥€ कहीं-कहीं कमà¥à¤¬à¤² लेने के खरà¥à¤šà¥‡ से बच जाते हैं। जो लोग सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग के बारे में नहीं जानते उनके लिये बता दूं कि यह à¤à¤• बहà¥à¤¤ नरम, मजबूत, गरम बोरा होता है जिसमें à¤à¤• अचà¥à¤›à¤¾ खासा इंसान घà¥à¤¸à¤•र सो सकता है। इसमें घà¥à¤¸à¤•र चेन बनà¥à¤¦ करनी होती है और फिर देखो, ठणà¥à¤¡ कैसे दूर à¤à¤¾à¤—ती है। मेरा बैग माइनस पांच डिगà¥à¤°à¥€ तक की ठणà¥à¤¡ को à¤à¥‡à¤²à¤¨à¥‡ वाला था। अजीब बात ये हà¥à¤ˆ कि रात जब मैं सोया था तो अचà¥à¤›à¥€ तरह अनà¥à¤¦à¤° घà¥à¤¸à¤•र सोया था लेकिन अब बैग से बाहर पडा हूं और मैंने बैग को रजाई की तरह ओढ रखा है।
धाकà¥à¤¡à¥€ 2680 मीटर की ऊंचाई पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। इतनी ऊंचाई पर अकà¥à¤Ÿà¥‚बर के महीने में अचà¥à¤›à¥€-खासी ठणà¥à¤¡ होती है। मà¥à¤à¥‡ ना तो नहाना था, ना ही नहाया। हममें à¤à¤• साफ-सà¥à¤¥à¤°à¤¾ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड अतà¥à¤² था। लग रहा था कि वो सà¥à¤¬à¤¹ उठते ही धाकà¥à¤¡à¥€ में नहायेगा लेकिन उसकी à¤à¤• गलत आदत पड गई कि जहां à¤à¥€ चूलà¥à¤¹à¤¾ सà¥à¤²à¤—ता दिखता, वही जा बैठता। जाडे में वो à¤à¥€ ठिठà¥à¤° रहा था। मैं समठगया था कि अतà¥à¤² और हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® दोनों यहां से करीब पचास मीटर दूर होटल में चूलà¥à¤¹à¥‡ के सामने ही बैठे होंगे और मेरा अनà¥à¤¦à¤¾à¤œà¤¾ शत पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ सही निकला।
चलने से पहले à¤à¤• दà¥à¤°à¥à¤˜à¤Ÿà¤¨à¤¾ घट गई। हमारी ही पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ यानी घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ की दो महिलाà¤à¤‚ मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ से पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° देखने आई थीं और आज उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वापस बागेशà¥à¤µà¤° जाना था। उनमें से à¤à¤• महिला खचà¥à¤šà¤° पर बैठते ही गिर पडी। और इतने बà¥à¤°à¥‡ तरीके से गिरी कि सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ में आया कि हाथ की हडà¥à¤¡à¥€ टूट गई। मैंने उनके गिरने की खबर मातà¥à¤° सà¥à¤¨à¥€ थी। अगर उनकी हडà¥à¤¡à¥€ वाकई टूट गई हो तो मैं कामना करता हूं कि जलà¥à¤¦à¥€ से जलà¥à¤¦à¥€ ठीक हो जाये। ना टूटी हो तो कामना नहीं करता।
आठबजे यहां से चल दिये। घणà¥à¤Ÿà¥‡ à¤à¤° में हम साढे चार सौ मीटर नीचे उतर कर à¤à¤• गांव में पहà¥à¤‚चे। यहां सडक बनने की निशानी है यानी ऊबड-खाबड मोटर मारà¥à¤— है। यह सडक वही सौंग से आ रही है जहां से हमने पैदल यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ की थी। लेकिन सौंग से यहां तक इसकी लमà¥à¤¬à¤¾à¤ˆ इतनी है कि अगर गाडी आयेगी तो à¤à¥€ और अगर पैदल रासà¥à¤¤à¥‡ से जायेंगे तो à¤à¥€, समय बराबर लगता है। पैदल रासà¥à¤¤à¥‡ वाले धाकà¥à¤¡à¥€ टॉप के रासà¥à¤¤à¥‡ आते हैं और सडक टॉप पर ना चढकर काफी लमà¥à¤¬à¤¾ चकà¥à¤•र काटकर आती है। à¤à¤• बात और बता दूं कि यहां हमें इस सडक पर किसी पहिये का कोई निशान नहीं दिखा।
अब हम पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° से आने वाली पिणà¥à¤¡à¤° नदी के काफी पास तक पहà¥à¤‚च गये थे। यह नदी धाकà¥à¤¡à¥€ धार की वजह से बागेशà¥à¤µà¤° की तरफ नहीं जा पाती और पूरà¥à¤µ की तरफ मà¥à¤¡à¤•र गढवाल में चली जाती है तथा सैंकडों किलोमीटर का सफर तय करके करà¥à¤£à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— में अलकननà¥à¤¦à¤¾ में जा मिलती है। बेदिनी बà¥à¤—à¥à¤¯à¤¾à¤² और रूपकà¥à¤£à¥à¤¡ जाने वाले यातà¥à¤°à¥€ à¤à¥€ इसे कहीं लोहारजंग के पास पार करते हैं।
सवा दस बजे होटल अनà¥à¤¨à¤ªà¥‚रà¥à¤£à¤¾ पहà¥à¤‚चे। हालांकि लिखने वाले ने होटल अनपोना लिख रखा था। यहां इस इलाके में होटल का मतलब यह नहीं है कि आपको बडे शहरों वाले होटलों वाली सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ मिलेंगीं। लोगों ने अपने ही घरों में यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के रहने और खाने का इंतजाम कर रखा है। शहर से दूर रहने वाले इन सीधे-सादे लोगों को à¤à¥€ कà¤à¥€ लगा होगा कि यार, हर जगह होटल होते हैं, हम à¤à¥€ इसे होटल ही कहेंगे और कहने लगे। और इस होटल की लोकेशन इसे à¤à¤• बेहतरीन होटल बनाती है। यहां से सामने हलà¥à¤•ा सा बायें सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा घाटी और सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° दिखता है जबकि हलà¥à¤•ा सा दाहिने पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ घाटी और पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤°à¥¤ दोनों घाटियों के बीच में दूर तक ऊपर उठता गया डाणà¥à¤¡à¤¾ à¤à¥€ दिखता है।
अनà¥à¤¨à¤ªà¥‚रà¥à¤£à¤¾ होटल से दिखती बायें सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा और दाहिने पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ घाटियां

गूगल अरà¥à¤¥ से लिया गया चितà¥à¤°à¥¤ ऊपर वाले और इसमें कितनी समानता है! बायें सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा और दाहिने पिणà¥à¤¡à¤° नदी।
पिणà¥à¤¡à¤° घाटी। हमें इसी घाटी में जाना है, जहां तक जा सकते हैं।
गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ बजे हम खाती गांव पहà¥à¤‚च जाते हैं। सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा और पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ दोनों घाटियों में खाती से आगे कोई गांव नहीं है। इसकी यही खासियत इसे à¤à¤• समृदà¥à¤§ गांव बनाती है। पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€, कफनी और सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा तीनों यातà¥à¤°à¤¾ मारà¥à¤—ों पर खातियों का ही वरà¥à¤šà¤¸à¥à¤µ है। ये लोग कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚-गढवाल की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ का निरà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¨ करते हà¥à¤ अपने नाम के साथ गांव का नाम ‘खाती’ à¤à¥€ जोडते हैं। मान लो मैं खाती गांव का रहने वाला हूं तो मेरा नाम होता नीरज खाती। गांव के सà¤à¥€ लोग गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° यातà¥à¤°à¤¾ से ही जà¥à¤¡à¥‡ हà¥à¤ हैं हालांकि आधà¥à¤¨à¤¿à¤•ीकरण की हवा à¤à¥€ चल रही है। हमारे साथ चल रहे बंगाली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड का गाइड देवा और हमारा पॉरà¥à¤Ÿà¤° पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª सिंह à¤à¥€ खाती के ही रहने वाले हैं। आगे रासà¥à¤¤à¥‡ में हमें जितने à¤à¥€ लोकल आदमी मिलेंगे, सà¤à¥€ खाती निवासी ही होंगे। à¤à¤• बात और बता दूं कि सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° जाने का रासà¥à¤¤à¤¾ यही से अलग होता है। सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा जाने के लिये रहने-खाने का सामान ले जाना पडता है जो खाती में आराम से मिल जाता है।
यहां आकर बंगाली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड का निरà¥à¤£à¤¯ थोङा बदल गया। अब तक तो कह रहा था कि पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ जाऊंगा, अब कहने लगा कि सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा जाना है। जबकि उसके गाइड देवा का हमारे साथ मन लग चà¥à¤•ा था। खैर, सà¤à¥€ ने बंगाली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड को खूब समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ कि पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ चल लेकिन वो नहीं माना। मैंने अà¤à¥€ बताया था कि सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा जाने के लिये अपने साथ रसद ले जानी पडती है। वो सारी जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ देवा की थी लेकिन संयोग मानिये कि उस दिन पूरे गांव में दो लीटर मिटà¥à¤Ÿà¥€ का तेल नहीं मिला। मजबूरन बंगाली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड को पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ ही जाना पडा।
खाती से 11 किलोमीटर आगे बडी जगह दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ है। मानकर चल रहे थे कि यहां के बाद खाना दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ में ही मिलेगा। इसलिये नेकी होटल में घणà¥à¤Ÿà¥‡ à¤à¤° तक इंतजार करके खाना बनवाया, तब दही से खाकर चले। हां, à¤à¤• बात तो रह ही गई। मेरे पास नोकिया का xpress music 5800 सेट है। इसमें जीपीà¤à¤¸ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ à¤à¥€ है। यानी नेटवरà¥à¤• ना रहने के बावजूद à¤à¥€ हम अपनी लोकेशन (अकà¥à¤·à¤¾à¤‚श, देशानà¥à¤¤à¤°, समà¥à¤¦à¥à¤° तल से ऊंचाई) जान सकते हैं। मैं हर 15-20 मिनट में अपनी ऊंचाई नोट कर लेता था। इसके लिये फोन की बैटरी का हर समय चारà¥à¤œ रहना जरूरी था। कल शाम जब धाकà¥à¤¡à¥€ पहà¥à¤‚चे थे तो बैटरी फà¥à¤² थी लेकिन सà¥à¤¬à¤¹ तक पता नहीं कौन सी कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ हà¥à¤ˆ कि बैटरी खतà¥à¤®à¥¤ इसका à¤à¥€ इलाज था अपने पास- à¤à¤• कà¥à¤°à¥ˆà¤‚क चारà¥à¤œà¤°à¥¤ यह à¤à¤• छोटा सा डिबà¥à¤¬à¤¾ है जिसमें अनà¥à¤¦à¤° बिजली बनाने की मशीन लगी होती है। à¤à¤• हैणà¥à¤¡à¤² बाहर निकला रहता है, हैणà¥à¤¡à¤² घà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥‡ रहो, मशीन घूमती रहेगी और बैटरी चारà¥à¤œ होती रहेगी। लेकिन चारà¥à¤œ होने की रफà¥à¤¤à¤¾à¤° इतनी कम होती है कि सà¥à¤¬à¤¹ से शाम तक लगातार घà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ रहा और चालीस पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ बैटरी चारà¥à¤œ हà¥à¤ˆà¥¤ लेकिन इसे घà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥‡-घà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥‡ ना तो बोरियत हà¥à¤ˆ, ना ही चढाई पर थकान।
साढे बारह बजे के बाद खाती से चल पडे। कà¥à¤› ही आगे कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ मणà¥à¤¡à¤² वालों का टूरिसà¥à¤Ÿ रेसà¥à¤Ÿ हाउस है। तीन बजे छह किलोमीटर चलने के बाद à¤à¤• चाय की दà¥à¤•ान मिली। यही पिणà¥à¤¡à¤° नदी पर à¤à¤• पà¥à¤² है और अब यातà¥à¤°à¤¾ पिणà¥à¤¡à¤° के दूसरी तरफ शà¥à¤°à¥‚ होती है। खाती से दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ तक पूरा रासà¥à¤¤à¤¾ निरà¥à¤œà¤¨ और घनघोर जंगल से यà¥à¤•à¥à¤¤ है। à¤à¤¾à¤²à¥‚ और तेंदà¥à¤† इस जंगल में बहà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¤¤ में हैं। बताते हैं कि ये दोनों जानवर आदमी को देखकर डरकर छिप जाते हैं। और हमें कोई जानवर दिखा à¤à¥€ नहीं। दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते समय à¤à¥€ पिणà¥à¤¡à¤° पर दूसरा पà¥à¤² है, दोबारा हम पिणà¥à¤¡à¤° के बायीं ओर पहà¥à¤‚च जाते हैं।
और पांच बजे जब दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ पहà¥à¤‚चे तो बारिश होने लगी थी। हमारा आज का इरादा दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ से पांच किलोमीटर आगे फà¥à¤°à¤•िया में रà¥à¤•ने का था। खाती से दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ तक चढाई तो है लेकिन बहà¥à¤¤ मामूली सी। दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ मेरे जीपीà¤à¤¸ के हिसाब से 2543 मीटर की ऊंचाई पर है जबकि कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ मणà¥à¤¡à¤² वालों ने लिख रखा है कि करीब 2700 मीटर पर है। फà¥à¤°à¤•िया 3200 मीटर पर है यानी खाती-दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ के मà¥à¤•ाबले दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€-फà¥à¤°à¤•िया के रासà¥à¤¤à¥‡ पर जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ चढाई चढनी पडेगी। पांच किलोमीटर यानी ढाई घणà¥à¤Ÿà¥‡ यानी साढे सात बजे। छह बजे दिन छिप जायेगा तो अगले डेढ घणà¥à¤Ÿà¥‡ तक अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¥‡ में चलना बहà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤°à¥€ पड जायेगा। और कोई à¤à¤¾à¤²à¥‚ आगे आ गया तो सारी बहादà¥à¤°à¥€ निकलते देर à¤à¥€ नहीं लगेगी। इसलिये तय हो गया कि आज दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ में ही रà¥à¤• जाते हैं। बंगाली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड और देवा à¤à¥€ यही रà¥à¤• गये।
खाती से छह किलोमीटर बाद और दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ से पांच किलोमीटर पहले चाय की à¤à¤• दà¥à¤•ान
यह बंगाली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•र का सामान है जो करीब बीस किलो का था।
बायें से: अतà¥à¤², बंगाली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•र और जाट महाराज।
दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ में कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ मणà¥à¤¡à¤² विकास निगम वालों का रेसà¥à¤Ÿ हाउस à¤à¥€ है लेकिन उसका किराया दो सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ था। जबकि बाकी पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¥‡à¤Ÿ होटलों में पचास रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¥¤ यहां à¤à¥€ होटल का मतलब वही है जो अà¤à¥€ थोडी देर पहले बताया था। सà¤à¥€ होटल खाती वालों के ही हैं। रहना इतना ससà¥à¤¤à¤¾ है लेकिन खाना बेहद महंगा है। à¤à¤• रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की चीज दो रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की मिलती है। और मिले à¤à¥€ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ना- 30 किलोमीटर दूर से सिर पर या खचà¥à¤šà¤° पर लाई जाती है। 75 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की खाने की थाली थी चाहे जितने चावल खाओ, या जितनी रोटी-सबà¥à¤œà¥€ खाओ। हां, गरम पानी फà¥à¤°à¥€ मिल जाता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि लकडी और पानी की कोई कमी नहीं है।
दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ वो जगह है जहां से कफनी गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° का रासà¥à¤¤à¤¾ अलग हो जाता है। यहीं पर कफनी नदी और पिणà¥à¤¡à¤° नदी का मिलन होता है। दोनों ही गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° बारह-बारह किलोमीटर की दूरी पर हैं। जहां पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ के रासà¥à¤¤à¥‡ में पांच किलोमीटर के बाद फà¥à¤°à¤•िया आता है वही कफनी के रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¥€ पांच किलोमीटर पर खटिया आता है।
नीचे बायें कोने में धाकà¥à¤¡à¥€ है। खाती से à¤à¤• पीली लाइन ऊपर जाती दिखाई गई है जो सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा जाने वाले रासà¥à¤¤à¥‡ को दिखाती है। ऊपर दाहिने कोने में दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ है। दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ में ऊपर से पिणà¥à¤¡à¤° नदी और दाहिने से कफनी नदी आकर मिलती हैं। पिणà¥à¤¡à¤° नदी के साथ साथ नीचे à¤à¤• डाणà¥à¤¡à¤¾ समानà¥à¤¤à¤° जाता दिख रहा है। डाणà¥à¤¡à¥‡ को पार करके इस तरफ सरयू नदी है जो बागेशà¥à¤µà¤° जाती है। हमने इसी सरयू के किनारे बसे सौंग से पैदल यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ की थी और डाणà¥à¤¡à¥‡ को पार करके धाकà¥à¤¡à¥€ पहà¥à¤‚चे थे। धाकà¥à¤¡à¥€ से खाती तक नीचे उतरना होता है। वैसे सीधे खाती से à¤à¥€ डाणà¥à¤¡à¥‡ पर चढा जा सकता है और पार करके सरयू किनारे सूपी गांव में पहà¥à¤‚च जाते हैं। सूपी के पास तक जीपें जाती हैं। हम वापसी में इसी रासà¥à¤¤à¥‡ का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करेंगे।
शेष अगले à¤à¤¾à¤— में

बढ़िया… अब हमारी तो हिम्मत रही नही, आपकी व संदीप की यात्राएं पढ़ कर ही मज़ा ले लेते है… तुम्हे और संदीप को एक यात्रा होम कुण्ड की करनी चाहिये, वहां अभी तक मैने किसी को जाते नहीं सुना. ये रुपकुण्ड से आगे है, तथा इसका विवरण टी-सीरीज़ की नन्दा देवी जात्रा सी डी में मिल जायेगा
मैं होमकुण्ड जाने को तैयार हूँ, नीरज की वो ही जाने,
इस बार अगस्त में होमकुण्ड यानी नन्दा देवी राजजात यात्रा हो रही है। यह यात्रा हर बारह साल बाद होती है।
मैं होमकुण्ड जाऊंगा। रूपकुण्ड और होमकुण्ड जाने का इससे अच्छा मौका बारह साल बाद ही मिलेगा।
तो गद्दी करीब करीब द्वाली तक पहुँच ही गयी | क्रैंक चार्जर के बारे में नहीं मालूम था, धन्यवाद् इस जानकारी के लिए , कहाँ से खरीद सकतें हैं ?
There are many Chinese brands but I am aware of one from IFFCO and one from other of which name I don’t remember. Let me know if you could not find one.
नंदन जी, मैंने adventure 18 से खरीदा है। उनकी साइट पर उनके दिल्ली स्थित शोरूम का पता दिया गया है। वैसे साउथ दिल्ली में एक शोरूम है।
नीरज, आपकी यात्रा के बारे में पढ़ कर ऐसा लगता है कि एक सपना चल रहा है. आपकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी.
कुछ नहीं सोलंकी साहब, दुनिया जाती है। हम भी चले गये। वैसे भी पिण्डारी जाना कोई हिम्मत की बात नहीं है। पिण्डारी ग्लेशियर तक खाने-लोटने का इंतजाम आराम से हो जाता है। जरुरत है बस एक बार पिण्डारी का नाम लेकर घर से निकलने की।
नीरज जी …..
ये यात्रा तो बहुत ही रोमांचक लग रही .. लगता आगे के लेख में और भी रोमांच आएगा ….
फोटो बहुत अच्छी लगी हमें ..बिलकुल वाल पेपर टाइप…
धन्यवाद
आप की यात्रा का लेख पढ़ के बहुत आनंद आया … ऐसा लगता है की आपके साथ हम भी चल रहे हैं … बहुत बहुत शुक्रिया
Amazing Photos! Keep Posting.