पà¥à¤°à¤¿à¤¯ मितà¥à¤°à¥‹à¤‚,
सहारनपà¥à¤° से इनà¥à¤¦à¥Œà¤°, इनà¥à¤¦à¥Œà¤° से सेजवाया, सेजवाया से धार होते हà¥à¤ मांडू दरà¥à¤¶à¤¨, शाम को रानी रूपमती की नगरी से इनà¥à¤¦à¥Œà¤° वापसी – इतनी कहानी आप पॠचà¥à¤•े हैं। अब किसà¥à¤¸à¤¾ हम लिखेंगे होलà¥à¤•र परिवार का! संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ सà¥à¤¬à¤¹ छः बजे का वकà¥à¤¤ रहा होगा जब मà¥à¤à¥‡ अचानक यह अनà¥à¤à¥‚ति हà¥à¤ˆ कि ये बिसà¥à¤¤à¤° और रजाई सब मोह माया हैं, इनके चकà¥à¤•र में इंसान को अपना जीवन बरबाद नहीं करना चाहिये।
सà¥à¤¬à¤¹ सवेरे उठकर पूजा, अरà¥à¤šà¤¨à¤¾, वनà¥à¤¦à¤¨à¤¾, सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ आदि में धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ à¤à¤•ागà¥à¤° करना चाहिये ताकि जीवन में निरà¥à¤®à¤² आननà¥à¤¦ का समावेश हो सके। बस, जैसे ही जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤šà¤•à¥à¤·à¥ खà¥à¤²à¥‡, मैने अपने सà¥à¤¥à¥‚ल चकà¥à¤·à¥ à¤à¥€ खोले और अंधेरा देख कर कमरे की लाइट जलाई। सात बजते – बजते मैं इनà¥à¤¦à¥Œà¤° à¤à¤Ÿà¤•न हेतॠपूरी तरह सनà¥à¤¨à¤¦à¥à¤§ हो चà¥à¤•ा था। साà¥à¥‡ सात बजे होटल से सड़क पर आया, और à¤à¤• आटो से कहा – “छतरी बाग” कितने पैसे? उसने कहा, ३००० ।
मैने कहा, “ठीक है, चलो!” रासà¥à¤¤à¥‡ में वह बोला, “आपको छतरियां देखने जाना है या छतरीबाग जाना है?” अब मैं हैरान, परेशान ! मैने कहा, “à¤à¤¾à¤ˆ, कà¥à¤¯à¥‚ं कंफूज़ कर रहे हो? मà¥à¤à¥‡ छतरियां देखने जाना है इसीलिये तो छतरीबाग जाने के लिये बोला है।” पर फिर वह मà¥à¤à¥‡ जवाहर मारà¥à¤— से होते हà¥à¤ सीधे खान नदी के तट पर ले गया जहां नदी के दूसरे तट पर यानि कृषà¥à¤£à¤ªà¥à¤°à¤¾ में à¤à¤µà¥à¤¯ मंदिर जैसे कà¥à¤› à¤à¤µà¤¨ दिखाई दे रहे थे।
(आजकल जिसे खान नदी कहा जाता है वह वासà¥à¤¤à¤µ में कानà¥à¤¹ नदी का अपà¤à¥à¤°à¤‚श है।) नदी के ऊपर बने पà¥à¤² पर से ऑटो उस पार पहà¥à¤‚चा और मà¥à¤à¥‡ छतरियों के पास उतार दिया। मैं असमंजस में था कि इन छतरियों को देखूं या छतरीबाग चलने के लिये जिद करूं। फिर सोचा कि वहां छतरीबाग की छतरियां कैसी हैं, यह तो पता नहीं पर ये à¤à¥€ बहà¥à¤¤ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° हैं अतः इनको देखने में कोई हरà¥à¥› तो है नहीं।
हमारे शहर में छतरी असली छतरी को ही कहते हैं जिसे हम बरसात में घर से लेकर निकलते हैं और छतरी के बावजूद à¤à¥€ à¤à¥€à¤— जाते हैं। कà¥à¤› लोग à¤à¤¸à¥‡ à¤à¥€ होते हैं जो छतरी में अकेले होने के बावजूद à¤à¥€à¤—ते हैं पर फिर à¤à¥€ इतने दरियादिल होते हैं कि दूसरों को à¤à¥€ अपनी छतरी में आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ करते दिखाई देते हैं – “मेरी छतरी के नीचे आजा, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ à¤à¥€à¤—ै कमला खड़ी-खड़ी” ।
पर ये ठहरा इनà¥à¤¦à¥Œà¤°! यहां, हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¾à¤·à¥€ जनता रहती जरूर है पर उसके लिये छतरी का मतलब है – राजा महाराजाओं का à¤à¤µà¥à¤¯ समाधि सà¥à¤¥à¤²à¥¤ पर, बाइ गॉड, कà¥à¤¯à¤¾ छतरी बनाते थे ये इनà¥à¤¦à¥Œà¤° के होलà¥à¤•र राजà¥à¤¯ के लोग à¤à¥€! à¤à¤•दम à¤à¤µà¥à¤¯, सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°, सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¤à¥à¤¯ कला का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥â€Œ नमूना ! आज à¤à¥€ 1849-1856 के दौरान बनी हà¥à¤ˆ छतरियां देख लें तो मन कर उठता है, “वाह, à¤à¤ˆ वाह !
उड़ती – उड़ती खबर मेरी ही तरह आपने à¤à¥€ शायद सà¥à¤¨ रखी हो कि कानà¥à¤¹ नदी के तट पर राजसी परिवार के सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का अंतिम संसà¥à¤•ार करने के बाद यहां उनकी समाधि बना दी जाती थीं जैसे दिलà¥à¤²à¥€ में गांधी जी, इनà¥à¤¦à¤¿à¤°à¤¾ जी, राजीव जी, चरण सिंह जी के समाधि सà¥à¤¥à¤² बने हà¥à¤ हैं – राजघाट, शकà¥à¤¤à¤¿à¤˜à¤¾à¤Ÿ, शांतिघाट वगैरा वगैरा।
इतना अवशà¥à¤¯ है कि होलà¥à¤•र परिवार के पास सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¤à¥à¤¯à¤•ला में निपà¥à¤£ अनेकों कलाकार और मूरà¥à¤¤à¤¿à¤•ार थे जो इन छतरियों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कर सकते थे जो शायद आजकल दà¥à¤°à¥à¤²à¤ हैं। राजवाड़ा कानà¥à¤¹ नदी से बमà¥à¤¶à¥à¤•िल २०० कदम पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है, à¤à¤¸à¥‡ में राज परिवार के लोगों की मृतà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ अंतिम संसà¥à¤•ार के लिये इस नदी पर आना और फिर यहीं नदी तट पर समाधि सà¥à¤¥à¤² का बनाया जाना नितानà¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• ही है।
छतरियां देखते हà¥à¤ मà¥à¤à¥‡ राजवाड़ा का सात मंजिला à¤à¤µà¤¨ दिखाई नहीं दिया था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि बीच में à¤à¤• मारà¥à¤•िट है जो पता नहीं उन दिनों à¤à¥€ हà¥à¤† करता था या नहीं। पर छतरियों को देखने के बाद जब मैने à¤à¤• रिकà¥à¤¶à¤¾ से पूछा कि राजवाड़ा चलोगे कà¥à¤¯à¤¾ तो वह बोला, आप राजवाड़े पर ही तो हैं, दो कदम इस तरफ को जाइये, सामने ही दिखाई देगा।

कृषà¥à¤£à¤¾à¤ªà¥à¤°à¤¾ की छतरियां ! इनके अलावा छतरीबाग में à¤à¥€ हैं कà¥à¤› और छतरियां !

छतरी पर बने हà¥à¤ गौरवशाली गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦ की कलाकारी दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ है।
कृषà¥à¤£à¤¾à¤ªà¥à¤°à¤¾ का नाम संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ राजमाता कृषà¥à¤£à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ होलà¥à¤•र के नाम पर ही पड़ा होगा, à¤à¤¸à¥€ पूरी संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ है। राजमाता कृषà¥à¤£à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ होलà¥à¤•र महाराजा यशवंत राव होलà¥à¤•र पà¥à¤°à¤¥à¤® की पतà¥à¤¨à¥€ व मलà¥à¤¹à¤¾à¤° राव होलà¥à¤•र दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ की माता थीं। यहां पहली छतरी राजमाता की ही है, जिसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ तà¥à¤•ोजी राव दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ ने 1849 में राजमाता के गोलोकवास के तà¥à¤°à¤‚त पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥â€Œ करवाया था।
लगà¤à¤— 5-6 फिट ऊंचे पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® पर गरà¥à¤à¤—ृह का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया गया है जिसमें राज परिवार के दिवंगत सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की आदमकद पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ लगी हà¥à¤ˆ बताई जाती हैं। गरà¥à¤à¤—ृह का दà¥à¤µà¤¾à¤° बनà¥à¤¦ था, दà¥à¤µà¤¾à¤° पर बनी हà¥à¤ˆ संगमरमर की जाली बहà¥à¤¤ बारीक नकà¥à¤•ाशी लिये हà¥à¤ˆ थी जिसमें से à¤à¥€à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤‚कना मà¥à¤à¥‡ शिषà¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° के विपरीत लगा।
इन छतरी में सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करने वाला à¤à¤¾à¤— इसके पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® पर बने हà¥à¤ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° कलातà¥à¤®à¤• सà¥à¤¤à¤‚ठहैं। वाहà¥à¤¯ दीवारों पर à¤à¥€ लगà¤à¤— मानव आकार की ही मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ उकेरी गई हैं जिनको देखकर लगता है कि दो -चार महीने पहले की ही बनी हैं।

ये लीजिये, गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦ के शीरà¥à¤· पर à¤à¥€ आकृतियां ! कौन चॠकर देखेगा वहां, मेरे अलावा?

पतà¥à¤¥à¤° पर à¤à¤• à¤à¤• फूल को उकेरने में कितना समय लगा होगा और वह à¤à¥€ इतनी ऊंचाई पर मचान बना कर?

कानà¥à¤¹à¤¾ जिनके नाम पर कानà¥à¤¹ नदी का नामकरण हà¥à¤†, अब खान नदी के रूप में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤à¥¤

राजमाता कृषà¥à¤£à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ होलकर की छतरी के पà¥à¤°à¤¥à¤® दरà¥à¤¶à¤¨

सà¥à¤¤à¤‚à¤à¥‹à¤‚ पर की गई अदà¥â€Œà¤à¥à¤¤ कलाकारी आज के कलाकारों को शरà¥à¤®à¤¿à¤¨à¥à¤¦à¤¾ करने हेतॠपरà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है।

ये तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¥à¤‚डधारी सजà¥à¤œà¤¨ कौन हैं? आप जानते हैं कà¥à¤¯à¤¾?
मैं इन छतरियों को देखने के लिये सà¥à¤¬à¤¹ – सà¥à¤¬à¤¹ पहà¥à¤‚च गया था तो सूरà¥à¤¯ के पà¥à¤°à¤•ाश में इन छतरियों का और इन पर बने गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦ का अलग आकरà¥à¤·à¤£ था परनà¥à¤¤à¥ यदि समय मिलता तो मैं रात को पà¥à¤¨à¤ƒ वहां जाता कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि मैने सà¥à¤¨à¤¾ है कि रात को इन छतरियों की शोà¤à¤¾ अलग ही है।
सà¥à¤¬à¤¹ के समय इन खंà¤à¥‹à¤‚ की लंबी छाया पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® के फरà¥à¤¶ पर पड़ती हà¥à¤ˆ बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ लग रही थीं। वाहà¥à¤¯ दीवारों पर जो मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ थीं वह मà¥à¤à¥‡ होलà¥à¤•र सेना के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ सेनानायकों की अनà¥à¤à¤µ हà¥à¤ˆà¤‚। यहां कृषà¥à¤£à¤¾à¤ªà¥à¤°à¤¾ में बनी हà¥à¤ˆ छतरियां राजमाता कृषà¥à¤£à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ, महाराज तà¥à¤•ोजीराव दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ और उनके पà¥à¤¤à¥à¤° शिवाजीराव की हैं। इसके अलावा यदि हम छतरीबाग नामक सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर जायें जो वहां से तीन-चार किलोमीटर दूर होगा, वहां पर à¤à¥€ राजपरिवार के अनà¥à¤¯ सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की कà¥à¤› छतरियां मौजूद हैं। मैं वहां तक नहीं जा पाया।
छतरियां देखने के बाद मैने राजवाड़ा की ओर रà¥à¤– किया। इंदौर जाने से पहले से ही मैने कई बार विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•ाशनों में और वेबसाइट पर राजवाड़ा की सात मंजिला इमारत का चितà¥à¤° देखा था अतः जब राजवाड़ा के समà¥à¤®à¥à¤– पहà¥à¤‚चा तो न पहचान पाने का तो कोई पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ ही नहीं था। पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ यदि था तो सिरà¥à¤« ये कि राजवाड़ा देखने से पहले पोहा-जलेबी खा लूं या बाद में इनका à¤à¤•à¥à¤·à¤£ किया जाये?
बिना सिकà¥à¤•ा उछाले ही मैने निरà¥à¤£à¤¯ लिया कि यहां मौजूद अनेक दà¥à¤•ानों में से जिसमें सबसे बà¥à¤¿à¤¯à¤¾ जलेबी बन रही हो, वहीं रà¥à¤• कर पेट पूजा कर ली जाये। à¤à¤¸à¥€ ही à¤à¤• हलवाई की दà¥à¤•ान मिली और उसकी सेवायें गà¥à¤°à¤¹à¤£ करके मैने राजवाड़ा की ओर कदम बà¥à¤¾à¤¯à¥‡à¥¤
राजवाड़ा

देवी अहिलà¥à¤¯à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ होलकर के अनोखे वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ की कांति से à¤à¤¿à¤²à¤®à¤¿à¤²à¤¾à¤¤à¤¾ राजवाड़ा
अब मेरे समà¥à¤®à¥à¤– था विशà¥à¤µ का सबसे ऊंचा मराठा सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• जो अपने à¤à¥€à¤¤à¤° 220 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ का इतिहास संजोये हà¥à¤ था। कà¥à¤² मिला कर सात मंजिलें जिनमें पहली तीन पतà¥à¤¥à¤° की और बाकी चार लकड़ी की। राजवाड़े के बाहर चौक में à¤à¤• खूबसूरत पारà¥à¤• बना हà¥à¤† है, जिसमें देवी अहिलà¥à¤¯à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ होलà¥à¤•र की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ लगी है, इस पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ के सà¥à¤¤à¤‚ठपर कà¥à¤¯à¤¾ लिखा है, यहां पà¥à¤¿à¤¯à¥‡ –

इनà¥à¤¦à¥Œà¤° ही नहीं, पूरा देश कायल है देवि अहिलà¥à¤¯à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ होलकर का।
पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ सà¥à¤®à¤°à¤£à¥€à¤¯ देवी शà¥à¤°à¥€ अहिलà¥à¤¯à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ होलà¥à¤•र
 ईशà¥à¤µà¤° ने मà¥à¤ पर जो उतà¥à¤¤à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤¤à¥à¤µ रखा है, मà¥à¤à¥‡ उसे निà¤à¤¾à¤¨à¤¾ है। मेरा काम पà¥à¤°à¤œà¤¾ को सà¥à¤–ी रखना है। मैं अपने पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• काम के लिये सà¥à¤µà¤¯à¤‚ जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° हूं। सामरà¥à¤¥à¥à¤¯ और सतà¥à¤¤à¤¾ के बल पर मैं जो कà¥à¤› à¤à¥€ यहां कर रही हूं उसका ईशà¥à¤µà¤° के यहां मà¥à¤à¥‡ जवाब देना पड़ेगा। मेरा यहां कà¥à¤› नहीं है, जिसका है, उसी के पास à¤à¥‡à¤œà¤¤à¥€ हूं। जो कà¥à¤› लेती हूं, वह मेरे ऊपर ऋण है। न जाने उसे कैसे चà¥à¤•ा पाऊंगी।
जनà¥à¤®à¤¤à¤¿à¤¥à¤¿- जà¥à¤¯à¥‡à¤·à¥à¤ कृषà¥à¤£ सपà¥à¤¤à¤®à¥€, शक 1647 संवत 1782, 31 मई, 1725 ई.
पà¥à¤£à¥à¤¯à¤¤à¤¿à¤¥à¤¿ – à¤à¤¾à¤¦à¥à¤°à¤ªà¤¦ कृषà¥à¤£ चतà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¥€ (शिवरातà¥à¤°à¤¿), शक 1717, संवत 1852, 13 अगसà¥à¤¤, 1795 ई.

à¤à¤°à¥‹à¤–ा पर अब इन में से à¤à¤¾à¤‚कने वाला कोई मौजूद नहीं है।

यह खंडहर राषà¥à¤Ÿà¥à¤° को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ किया? शà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¾à¤šà¤°à¤£ शà¥à¤•à¥à¤² ने? वह कैसे à¤à¤²à¤¾?

इस खंडहर बन चà¥à¤•े राजवाड़े को देखने हेतॠसरकारी शà¥à¤²à¥à¤• !
राजवाड़ा के मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर जाकर मैने जब पूछा कि दà¥à¤µà¤¾à¤° कब खà¥à¤²à¥‡à¤—ा तो पता चला कि सोमवार होने के नाते आज अवकाश है । मैने सोच लिया कि चलो, बाहर से ही जो कà¥à¤› उपलबà¥à¤§ है, उसका ही चितà¥à¤°à¤¾à¤‚कन कर लिया जाये। मà¥à¤à¥‡ इतना जà¥à¤žà¤¾à¤¨ तो था कि राजवाड़ा के नाम पर आज जो à¤à¤µà¤¨ मौजूद है, वह à¤à¤µà¤¨ है ही नहीं, सिरà¥à¤« मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤° है, जिसे अंगà¥à¤°à¥‡à¥›à¥€ में facade कहते हैं। चारदीवारी के अनà¥à¤¦à¤° जो कà¥à¤› à¤à¥€ है, खंडहर के रूप में है।
इनà¥à¤¦à¥Œà¤° के इस राजवाड़ा में तीन बार आग लगाई गई है। पहली बार आग लगाई गई 1801 में सिंधिया के सेनापति सरजेराव घाटगे दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जिसने इनà¥à¤¦à¥Œà¤° को नेसà¥à¤¤à¤¨à¤¾à¤¬à¥‚द करने का पà¥à¤°à¤£ किया हà¥à¤† था। दूसरी आग लगी सनà¥â€Œ 1834 ई. में। इसमें सबसे ऊपर की मंजिल राख हो गई थी। तीसरी बार, सनà¥â€Œ 1984 में हà¥à¤ दंगों में राजवाड़ा का पिछला à¤à¤¾à¤— जला दिया गया था।
जब मà¥à¤à¥‡ पता चला कि सोमवार के सापà¥à¤¤à¤¾à¤¹à¤¿à¤• अवकाश के चलते मà¥à¤à¥‡ अनà¥à¤¦à¤° पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ नहीं मिलेगा तो बहà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤°à¤•म निराशा अनà¥à¤à¤µ नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ चमगादड़, उलà¥à¤²à¥‚ और मकड़ियों के जाले यदि देखने को न à¤à¥€ मिलें तो कौन सा आसमान टूटा जा रहा है? जो इस à¤à¤µà¤¨ की वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¨à¥€ हैं यानि हर हाईनेस महारानिधिराजा रानी राजेशà¥à¤µà¤° सवाई शà¥à¤°à¥€à¤®à¤‚त अखंडसौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯à¤µà¤¤à¥€ ऊषा देवी, वह तो सà¥à¤¨à¤¾ है कफ परेड, मà¥à¤‚बई में रहती हैं या फिर लालबाग सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ नये राजवाड़े में। à¤à¤¸à¤¾ तो था नहीं कि मà¥à¤à¥‡ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने चाय पर आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया हà¥à¤† हो। तो फिर निराशा कैसी?  (दिल बहलाने को ग़ालिब खयाल अचà¥à¤›à¤¾ है! है न? )
राजवाड़े के बाहर जो सूचना पटà¥à¤Ÿ लगा हà¥à¤† मिला उसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤°…
इंदौर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ राजवाड़ा मालवा के मराठों के चरमोतà¥à¤•रà¥à¤· काल की à¤à¤µà¥à¤¯ इमारत है। 1747 ई. के आसपास मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¤°à¤¾à¤µ होलकर ने अपने परिवार के निवास हेतॠइस महल का पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚à¤à¤¿à¤• निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करवाया था। 1801 में सिंधिया के सेनापति सरजेराव घाटके ने राजवाड़ा जला दिया था। 1818 से 1826 के बीच आग के बचे पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤° की ऊपर की पांच मंजिल पà¥à¤¨à¤ƒ ठीक की गईं। इस कारà¥à¤¯ में होलकरों के पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ तातà¥à¤¯à¤¾à¤œà¥‹à¤— ने अपना अथक योगदान दिया और इस पà¥à¤°à¤•ार 1826 से 1833 के मधà¥à¤¯ वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ की पूरà¥à¤£ इमारत का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हà¥à¤†à¥¤ दà¥à¤°à¥à¤¦à¥ˆà¤µ से 1834 में आग लगने से लकड़ी की बनी à¤à¤• मंजिल नषà¥à¤Ÿ हो गई। 1844 में तà¥à¤•ोजी राव दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ को गोद लिया गया तब होलकर वंश का पहला राजतिलक 1852 में इसी à¤à¤µà¤¨ में हà¥à¤†à¥¤ तà¤à¥€ इस à¤à¤µà¤¨ में जरूरी सà¥à¤§à¤¾à¤° और परिवरà¥à¤¤à¤¨ à¤à¥€ हà¥à¤à¥¤ वरà¥à¤· 1984 के दंगों में इसका पृषà¥à¤ à¤à¤¾à¤— जला दिया गया था।
राजवाड़ा के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ के तीन चरण दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤—त होते हैं। पहली तीन मंजिल पतà¥à¤¥à¤° की बनी हà¥à¤ˆ हैं और राजपूत शैली की परिचायक हैं। चौथी से लेकर सातवीं मंजिल मराठा शैली की जिसमें लकड़ी का कारà¥à¤¯ अधिक है। पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° की संरचना हिनà¥à¤¦à¥‚ शैली के राजपà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤¾à¤¦à¥‹à¤‚ जैसी है। à¤à¤°à¥‹à¤–ों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ है। à¤à¤µà¤¨ का दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¥€ à¤à¤¾à¤— सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿà¤¤à¤ƒ बार – बार हà¥à¤ पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¨à¤¿à¤°à¥à¤®à¤¾à¤£ का साकà¥à¤·à¥€ है। à¤à¤µà¤¨ के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ में पतà¥à¤¤à¥à¤¥à¤° और चूने का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— अधिक हà¥à¤† है। साथ ही, काषà¥à¤ शिलà¥à¤ª का à¤à¥€ कलातà¥à¤®à¤• उपयोग किया गया है। पतà¥à¤¥à¤° के मेहराब और सà¥à¤¤à¤‚à¤à¥‹à¤‚ पर सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° नकà¥à¤•ाशी की गई है। देश का यह सबसे ऊंचा मराठा सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• है और यà¥à¤— पà¥à¤°à¥à¤· की à¤à¤¾à¤‚ति 250 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ का मालवा का इतिहास अपने में संजोये हà¥à¤ है।
होलकर राजà¥à¤¯ का संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ इतिहास
सनà¥â€Œ 1728 से लेकर 1948 के 220 वरà¥à¤· के कालखंड में 14 राजा हà¥à¤ हैं। इस पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ राजवाड़े की कहानी मराठा सेना की ओर से मालवा कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के सूबेदार मलà¥à¤¹à¤¾à¤° राव होलà¥à¤•र से आरंठहोती है जिनको 1728 में पूना के पेशवा ने मालवा के 9 परगना सौंप दिये थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° राजा के रूप में सनà¥â€Œ 1731 से 1766 में देहानà¥à¤¤ होने तक इनà¥à¤¦à¥Œà¤° राजà¥à¤¯ पर शासन किया और इस पà¥à¤°à¤•ार सनà¥â€Œ 1694 में जनà¥à¤®à¥‡à¤‚ मलà¥à¤¹à¤¾à¤° राव होलà¥à¤•र 72 वरà¥à¤· की आयॠमें सà¥à¤µà¤°à¥à¤—वासी हà¥à¤à¥¤
परनà¥à¤¤à¥ उनके पà¥à¤¤à¥à¤° खांडीराव होलà¥à¤•र केवल तीस वरà¥à¤· की आयॠमें सनà¥â€Œ 1754 में सà¥à¤µà¤°à¥à¤—वासी हो गये और उनको शासन करने का कोई मौका नहीं मिला। उनकी पतà¥à¤¨à¥€ थीं अहिलà¥à¤¯à¤¾ बाई होलà¥à¤•र जिनके नाम के पूरा मालवा ही नहीं, पूरा देश गà¥à¤£à¤—ान करता है। वह यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ सिंहासन पर कà¤à¥€ नहीं बैठीं पर 28 वरà¥à¤· तक उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इनà¥à¤¦à¥Œà¤° पर बहà¥à¤¤ गरिमापूरà¥à¤£ ढंग से शासन किया। सच बात तो ये है कि वह अपने पति के साथ ही सती हो जाना चाहती थीं परनà¥à¤¤à¥ उनके शà¥à¤µà¤¸à¥à¤° मलà¥à¤¹à¤¾à¤° राव होलà¥à¤•र ने अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ नहीं दी और कहा कि मैने तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ राजà¥à¤¯ संचालन की समसà¥à¤¤ शिकà¥à¤·à¤¾ दी है।
राजà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤° अब तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ ही संà¤à¤¾à¤²à¤¨à¤¾ है। मैं सोच लूंगा कि मेरे पà¥à¤¤à¥à¤° का नहीं, बलà¥à¤•ि पà¥à¤¤à¥à¤°à¤µà¤§à¥ का देहानà¥à¤¤ हो गया है और अहिलà¥à¤¯à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ के रूप में मेरा पà¥à¤¤à¥à¤° जिनà¥à¤¦à¤¾ है। अहिलà¥à¤¯à¤¾ बाई होलà¥à¤•र ने 28 वरà¥à¤· तक à¤à¤¸à¥‡ शासन किया जैसे à¤à¤°à¤¤ ने राम की चरण – पादà¥à¤•ा को सिंहासन पर रख कर राजà¥à¤¯ की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ संà¤à¤¾à¤²à¥€ थी।
वह à¤à¤—वान शिव की परम à¤à¤•à¥à¤¤ थीं और इंदौर राजà¥à¤¯ को à¤à¤—वान शिव की ही अमानत मान कर राजà¥à¤¯ संचालन करती थीं। सनà¥â€Œ 1725 में जनà¥à¤®à¥€ अहिलà¥à¤¯à¤¾ 70 वरà¥à¤· की आयॠमें 1795 में परलोकगामी हà¥à¤ˆà¤‚ और इस बीच उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने राजमाता कम, मां बन कर इनà¥à¤¦à¥Œà¤° की जनता की सेवा की। à¤à¤¸à¥‡ में यह कोई आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ नहीं लगता कि इनà¥à¤¦à¥Œà¤° की जनता à¤à¥€ 15 होलà¥à¤•र राजाओं में मां साब को ही पूजती है।
देवी अहिलà¥à¤¯à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ होलकर के देहानà¥à¤¤ के बाद दो यशवंत राव, तीन तà¥à¤•ोजीराव, तीन खांडेराव, à¤à¤• शिवाजीराव इनà¥à¤¦à¥Œà¤° पर शासन करते रहे। यह मà¥à¤à¥‡ आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• लगता है कि पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ जमाने में राज परिवारों में बचà¥à¤šà¥‡ होते थे तो उनका नाम रखने में इतने अधिक आलसà¥à¤¯ का परिचय कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ दिया जाता था।
अकà¥à¤¸à¤° पोते का नाम बाबा के नाम पर रख दिया जाता था। कोई नया नाम ढूंढने में à¤à¤²à¤¾ इतना आलसà¥à¤¯ किस लिये? इनमें से कà¥à¤› राजाओं के नाम पर सड़क का नामकरण हà¥à¤† (जैसे यशवंत राव मारà¥à¤—), कà¥à¤› के नाम पर मà¥à¤¹à¤²à¥à¤²à¥‡ बसे – (जैसे मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¤—ंज, तà¥à¤•ोजी गंज) पर इंदौर की जनता के दिलों पर राज करने वाली रानी अहिलà¥à¤¯à¤¾ बाई ही रहीं! बाद के राजाओं में से कà¥à¤› ने कà¥à¤°à¥‚रता, विलासिता और अंगà¥à¤°à¥‡à¥› à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ का à¤à¥€ à¤à¤°à¤ªà¥‚र परिचय दिया।
यशवंतराव होलà¥à¤•र की रकà¥à¤¤ पिपासॠपà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। 28 अकà¥à¤¤à¥‚बर, 1811 ई. को जब यशवंतराव होलकर की मृतà¥à¤¯à¥ हà¥à¤ˆ तब वह केवल 30 वरà¥à¤· के थे और इनà¥à¤¦à¥Œà¤° से 432 किमी दूर à¤à¤¾à¤¨à¤ªà¥à¤°à¤¾ के बीहड़ों में सिंधिया के पिंडारियों का मà¥à¤•ाबला करने के लिये पीतल की तोपें ढलवा रहे थे और बताया जाता है कि वह उस समय लगà¤à¤— विकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में थे।
राजवाड़े में खेली जाने वाली होली बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ रही है जिसमें निमंतà¥à¤°à¤£ पाने के लिये बड़े – बड़े लोग तरसते थे। à¤à¤• राजा मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¤°à¤¾à¤µ होलकर à¤à¤¸à¥‡ à¤à¥€ रहे हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मैसूर से १ॠटन चंदन की लकड़ी मंगवा कर उसकी होली जलाई! वैसे, हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ के सबसे बड़े शोमैन कहे जाने वाले राजकपूर के यहां की होली à¤à¥€ मà¥à¤‚बई में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ रही है पर इनà¥à¤¦à¥Œà¤° के राजवाड़े की होली अकà¥à¤¸à¤° खूनी होली हो जाया करती थी।
राज परिवार में à¤à¤• अपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤® सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¥€ केसर कली थी जो राजवाड़े की ऊपर मंजिल के किसी à¤à¤°à¥‹à¤–े से नीचे हो रहा होली का हà¥à¥œà¤¦à¤‚ग देख रही थीं। उन पर उड़ती सी à¤à¤• नज़र सिंधिया के खासगी सरदार काशीराव ने डाली और रात होते होते होलिका की अगà¥à¤¨à¤¿ में उस काशीराव की खोपड़ी à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¾ कर दी गई।
à¤à¤• अनà¥à¤¯ अवसर पर इंदौर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ रेज़िडेंट हेनरी डेली अपनी मेमसाहिबा वेरोनिका को होली का मज़ा दिलाने के लिये इस राजवाड़े में होली के दिन पधारे जहां शीश महल में रहने वाली रानियों – पटरानियों ने उनके साथ जम कर होली खेली। पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ शीशमहल में केसर मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ à¤à¤¾à¤‚ग खाकर वेरोनिका दो दिन तक बेहोश पड़ी रहीं और उनके पतिदेव की जान हलक में आ गई।
इनà¥à¤¦à¥Œà¤° के à¤à¤• अनà¥à¤¯ महाराजा शिवाजीराव के किसà¥à¤¸à¥‡ à¤à¥€ इनà¥à¤¦à¥Œà¤° में काफी पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने 17 जून 1886 से 31 जनवरी 1903 तक शासन किया और 13 अकà¥à¤¤à¥‚बर 1908 को पà¥à¤°à¤¾à¤£ तà¥à¤¯à¤¾à¤—े। वह अंगà¥à¤°à¥‡à¥›à¥‹à¤‚ से बहà¥à¤¤ अधिक चिà¥à¤¤à¥‡ थे और उनका अपमान करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते थे। उनकी à¤à¤• उपपतà¥à¤¨à¥€ à¤à¥€ थीं तà¥à¤²à¤¸à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ जिनकी बेपनाह खूबसूरती का हर कोई कायल था। बताया जाता है कि शिवाजीराव शारीरिक रूप से बहà¥à¤¤ शकà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ थे, कà¥à¤¶à¥à¤¤à¥€ के बहà¥à¤¤ शौकीन थे और साथ ही, नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯ à¤à¥€ थे।
उनकी नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤¾ का à¤à¤• किसà¥à¤¸à¤¾ मैने à¤à¥€ सà¥à¤¨à¤¾ है । कहते हैं कि 1899 में मालवा में अकाल पड़ा था और जनता à¤à¥‚ख से तà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤¿-तà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤¿ करने लगी थी। अनाज के आà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से कहा गया कि वह इस अकाल के समय जनता की सहायता करें पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कह दिया कि हमारे पास तो अनाज है ही बहà¥à¤¤ कम। शिवाजी राव ने अपने मà¥à¤¨à¥€à¤® से कहा कि सब वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को बà¥à¤²à¤¾à¤•र उनके पास उपलबà¥à¤§ अनाज का सà¥à¤Ÿà¥‰à¤• लिखो। वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने कपटपूरà¥à¤£ ढंग से वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ छिपाते हà¥à¤ सà¥à¤Ÿà¥‰à¤• की बहà¥à¤¤ कम मातà¥à¤°à¤¾ लिखवाई ।
जैसे किसी के पास गेहूं के पांच सौ बोरे थे तो उसने सिरà¥à¤« तीस-चालीस बोरे लिखवा दिये। सारा सà¥à¤Ÿà¥‰à¤• नोट कराने के बाद वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¥€ अपने घर लौट गये।  शाम को शिवाजीराव ने जनता को संकेत कर दिया कि मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¤—ंज की मंडी लूट लो। रोते कलपते वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने अगले दिन राजा के पास आकर अनाज लà¥à¤Ÿà¤¨à¥‡ की शिकायत की और मà¥à¤†à¤µà¥›à¤¾ मांगा। शिवाजीराव ने उनके à¤à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤°à¤•म कà¥à¤²à¥‡à¤® को असà¥à¤µà¥€à¤•ार करते हà¥à¤ केवल उतने ही सà¥à¤Ÿà¥‰à¤• का मà¥à¤†à¤µà¥›à¤¾ दिया जितना सà¥à¤Ÿà¥‰à¤• पहले दिन वह सब लिखवा कर गये थे। जनता के मन में इस नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤¾ और सदाशयता के लिये शिवाजीराव का बहà¥à¤¤ समà¥à¤®à¤¾à¤¨ था। शिवाजीराव के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ किये गये सिकà¥à¤•े पर à¤à¥€ नज़र डाल लीजिये। है ना बà¥à¤¿à¤¯à¤¾? रख लीजिये, काम आयेगा।
रंगीन मिजाज़ तà¥à¤•ोजीराव तृतीय

तà¥à¤•ोजीराव तृतीय अपनी तीसरी पतà¥à¤¨à¥€ नैंसी मिलर उरà¥à¤« शरà¥à¤®à¤¿à¤·à¥à¤ ादेवी से साथ !
इनà¥à¤¦à¥Œà¤° राजà¥à¤¯ में तीन-तीन तà¥à¤•ोजीराव हà¥à¤ हैं, इनमें से किसके नाम पर तà¥à¤•ोजीगंज नामकरण हà¥à¤† है, यह तो मà¥à¤à¥‡ नहीं मालूम पर हां, रंगीनमिजाज़ तà¥à¤•ोजीराव तृतीय के रंगीन किसà¥à¤¸à¥‡ इनà¥à¤¦à¥Œà¤° वासियों की जà¥à¤¬à¤¾à¤¨ पर अब à¤à¥€ रहते हैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तीन शादियां की थीं – सीनियर मोसà¥à¤Ÿ महारानी का नाम था – चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤µà¤¤à¥€ बाई।  जूनियर महारानी थीं – इनà¥à¤¦à¤¿à¤°à¤¾ बाई ।  तीसरी वाली अमेरिकन यà¥à¤µà¤¤à¥€ – नैंसी अनà¥à¤¨à¤¾ मिलर थीं जिनके साथ 12 मारà¥à¤š, 1928 को तà¥à¤•ोजीराव तृतीय ने विवाह रचाया।
विवाह के बाद वह पूरी तरह à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ रंग-ढंग में ढल गई थीं और उनका विवाह à¤à¥€ शरà¥à¤®à¤¿à¤·à¥à¤ ादेवी के रूप में नामकरण के बाद शà¥à¤¦à¥à¤§ हिनà¥à¤¦à¥‚ रीति-रिवाज़ के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• हà¥à¤† था। 1907 में अमेरिका के सियेटल शहर में जनà¥à¤®à¥€ नैंसी ने तà¥à¤•ोजीराव होलकर को पांच संतानें दीं, चार पà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ और à¤à¤• पà¥à¤¤à¥à¤°à¥¤ शरà¥à¤®à¤¿à¤·à¥à¤ ाबाई का देहानà¥à¤¤ अà¤à¥€ 1995 में हà¥à¤† है। कहा जाता है कि तीन पतà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के बावजूद तà¥à¤•ोजीराव अमृतसर के à¤à¤• कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में मà¥à¤®à¤¤à¤¾à¥› बेगम का डांस देखकर उस पर आशिक हो गये और उसे इंदौर ले आये।
वह तà¥à¤•ोजीराव के पà¥à¤°à¥‡à¤® को घास à¤à¥€ नहीं डालती थी और राजवाड़े से à¤à¤¾à¤—ने के कई बार पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ किये और अनà¥à¤¤à¤¤à¤ƒ à¤à¤• बार इनà¥à¤¦à¥Œà¤° से मसूरी जाते हà¥à¤ रासà¥à¤¤à¥‡ में दिलà¥à¤²à¥€ में निगाह बचा कर à¤à¤¾à¤—ने में सफल à¤à¥€ होगई। बस, तà¥à¤•ोजी राव को बहà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¾ लगा, à¤à¤• तो पà¥à¤°à¥‡à¤® की दीवानगी और ऊपर से राजसी अहं को ठेस जो लग गई थी। उनके चेले-चपाटे अपने राजा को खà¥à¤¶ करने के चकà¥à¤•र में मà¥à¤®à¤¤à¤¾à¥› बेगम की खोज खबर लेते रहे और अनà¥à¤¤à¤¤à¤ƒ पता लगा ही लिया कि वह मà¥à¤‚बई में किसी के साथ रहती है।
बस जी, तà¥à¤•ोजी राव के करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ मà¥à¤‚बई के हैंगिंग गारà¥à¤¡à¤¨ में पहà¥à¤‚च गये और वहां जो मारकाट मची उसमें उस वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की गोली लगने से मौत हो गई जिसके साथ मà¥à¤®à¤¤à¤¾à¥› बेगम मà¥à¤‚बई में रहती थी और हैंगिंग गारà¥à¤¡à¤¨ में घूम रही थी। अंगà¥à¤°à¥‡à¥› अधिकारियों ने इस कांड का पूरा फायदा उठाया और तà¥à¤•ोजीराव के दो करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को फांसी की सजा सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ गई और तà¥à¤•ोजीराव तृतीय को राजà¥à¤¯ छोड़ना पड़ा। तà¥à¤•ोजीराव तृतीय की मृतà¥à¤¯à¥ 1978 में पेरिस में हà¥à¤ˆà¥¤ उस समय वह 88 वरà¥à¤· के थे।
इनà¥à¤¦à¥Œà¤° की वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ महारानी

वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ महारानी ऊषादेवी मलà¥à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°à¤¾ – यह फोटो उनकी यà¥à¤µà¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ का है।
वरà¥à¤· 1948 में इनà¥à¤¦à¥Œà¤° राजà¥à¤¯ को à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार में विलीन कर दिया गया था पर उसके बावजूद इनà¥à¤¦à¥Œà¤° की महारानी ऊषादेवी मलà¥à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°à¤¾ हैं जो १४ वें महाराजा यशवंतराव होलकर दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ और उनकी पà¥à¤°à¤¥à¤® पतà¥à¤¨à¥€ संयोगिताराजे घाटगे की सà¥à¤ªà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ हैं । आपका जनà¥à¤® 1933 में पेरिस में हà¥à¤† और वहीं शिकà¥à¤·à¤¾ – दीकà¥à¤·à¤¾ हà¥à¤ˆ । परनà¥à¤¤à¥ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• व समय देकर हिनà¥à¤¦à¥€ व मराठी à¤à¥€ सीखी और हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ संसà¥à¤•ृति और तहज़ीब à¤à¥€ ! इनका विवाह शà¥à¤°à¥€ सतीश चनà¥à¤¦à¥à¤° मलà¥à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°à¤¾ से हà¥à¤† जो à¤à¤‚पायर इंडसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¥› के चेयरमैन हैं और खासगी टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ के टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿà¥€ à¤à¥€ । वह मà¥à¤‚बई में रहती हैं और इनà¥à¤¦à¥Œà¤° में लालबाग सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ नये राजवाड़े में आती रहती हैं।
शà¥à¤°à¥€ मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मारà¥à¤¤à¤£à¥à¤¡ देवसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ मंदिर
यदि राजवाड़े का कà¥à¤› à¤à¤¾à¤— आज à¤à¥€ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ है तो वह है – राजवाड़े के पृषà¥à¤ à¤à¤¾à¤— में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ शà¥à¤°à¥€ मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मारà¥à¤¤à¤£à¥à¤¡ देवसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ मंदिर! यह à¤à¤µà¤¨ 1984 में जल कर खाक हो गया था, परनà¥à¤¤à¥ उसके बाद लगà¤à¤— दो करोड़ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ के वà¥à¤¯à¤¯ पर इसका पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¨à¤¿à¤°à¥à¤®à¤¾à¤£ कराया गया। यहां लगा हà¥à¤† à¤à¤• विशाल बोरà¥à¤¡ निमà¥à¤¨ कहानी कहता है
इनà¥à¤¦à¥Œà¤° के à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• राजवाड़ा पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में होलकर राजवंश के कà¥à¤² देवता शà¥à¤°à¥€ मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मारà¥à¤¤à¤£à¥à¤¡ देवसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ मंदिर सनà¥â€Œ 1984 के दंगों में à¤à¤¸à¥à¤®à¥€à¤à¥‚त हà¥à¤† था। होलकर राजवंश की पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒà¤¸à¥à¤®à¤°à¤£à¥€à¤¯à¤¾ à¤à¤µà¤‚ महान शिवà¤à¤•à¥à¤¤ महारानी लोकमाता देवी अहिलà¥à¤¯à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ के शà¥à¤à¤¾à¤¶à¥€à¤· और उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ की विरासत की वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ राजरानी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤‚त महारानी ऊषादेवी जी की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ से कà¥à¤²à¤¦à¥‡à¤µà¤¤à¤¾ शà¥à¤°à¥€ मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मारà¥à¤¤à¤£à¥à¤¡ देवसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ मंदिर का २ करोड़ की लागत से पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¨à¤¿à¤°à¥à¤®à¤¾à¤£ किया। मंदिर का लोकारà¥à¤ªà¤£ 11 मारà¥à¤š 2007 को धारà¥à¤®à¤¿à¤• विधि विधान में शà¥à¤°à¥€à¤®à¤‚त महाराणी ऊषा देवी के शà¥à¤à¤¹à¤¸à¥à¤¤à¥‡ समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤†à¥¤
देवी अहिलà¥à¤¯à¤¾ खासकी टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ के मà¥à¤–à¥à¤¯ टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿà¥€ माननीय शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¾à¤¨ सतीश मलà¥à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°à¤¾ सा. के कà¥à¤¶à¤² मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ में वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त रà¥à¤šà¤¿ से ही यह कारà¥à¤¯ खासगी टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤†à¥¤ माननीय समसà¥à¤¤ टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का सहयोग à¤à¤µà¤‚ ततà¥à¤•ालीन सचिव सà¥à¤µ. कैलाश तिवारी जी की करà¥à¤®à¤ ता, परिशà¥à¤°à¤® सदैव सà¥à¤®à¤°à¤£à¥€à¤¯ रहेगा। सहसचिव शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ रीता कानूनगो à¤à¤µà¤‚ समसà¥à¤¤ माननीय कला मनीषी, वासà¥à¤¤à¥à¤µà¤¿à¤¦, इंजीनियरà¥à¤¸, करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€à¤—ण, कामगार à¤à¥€ धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ के पातà¥à¤° हैं। इनà¥à¤¦à¥Œà¤° की माननीय सांसद शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¾à¤ˆ महाजन à¤à¤µà¤‚ मधà¥à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ शासन का पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µ विà¤à¤¾à¤— के पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ हेतॠà¤à¥€ धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥¤ इनà¥à¤¦à¥Œà¤° का पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¨ होलकर राजवंश के कà¥à¤²à¤¦à¥‡à¤µà¤¤à¤¾ के रूप में पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¨à¤¿à¤°à¥à¤®à¤¿à¤¤ शà¥à¤°à¥€ मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मारà¥à¤¤à¤£à¥à¤¡ मंदिर à¤à¤µà¤‚ कई समाजों के कà¥à¤² देवता के रूप में à¤à¥€ यह मंदिर, होलकर राजवंश के खासगी टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ आम जनता के लिये पà¥à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ à¤à¤• अमूलà¥à¤¯ धरोहर है। कà¥à¤²à¤¦à¥‡à¤µà¤¤à¤¾ के रूप में à¤à¤• धारà¥à¤®à¤¿à¤• आसà¥à¤¥à¤¾ के केनà¥à¤¦à¥à¤° के रूप में à¤à¥€ सदैव दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ रहेगा। (लेखक – डा. गणेश मतकर)।

नव-निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ शà¥à¤°à¥€ मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मारà¥à¤¤à¤£à¥à¤¡ मंदिर का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° !

अरà¥à¤¦à¥à¤§à¤¨à¤¾à¤°à¥€à¤¶à¥à¤µà¤° अवतार में शिव-पारà¥à¤µà¤¤à¥€ !
शà¥à¤°à¥€ मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मारà¥à¤¤à¤£à¥à¤¡ देवसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ मंदिर के मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर होलकर राजवंश का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• चिहà¥à¤¨
शà¥à¤°à¥€ मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मारà¥à¤¤à¤£à¥à¤¡
मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मारà¥à¤¤à¤£à¥à¤¡ की पूजा à¤à¤—वान शिव के रूप में होती है और इनके विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ परिचित नाम हैं – खंडोबा, मैलार, मà¥à¤¹à¤¾à¤³à¤¸à¤¾à¤•ांत, रावलनाथ इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿à¥¤ पूरे à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¥à¤· के हिनà¥à¤¦à¥‚ à¤à¤—वान शिव को इसी रूप में पूजते हैं। शà¥à¤°à¥€ मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मारà¥à¤¤à¤£à¥à¤¡ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤µ से लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ लोकदेवता माने जाते हैं। à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है कि जो कोई à¤à¥€ शà¥à¤°à¥€ मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मारà¥à¤¤à¤£à¥à¤¡ की पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ उपयà¥à¤•à¥à¤¤ निषà¥à¤ ा à¤à¤µà¤‚ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ से करता है वह धनà¥à¤¯ हो जाता है। उसे धन-संपतà¥à¤¤à¤¿, सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ और परमसà¥à¤– मिलता है। à¤à¤¸à¥‡ à¤à¤•à¥à¤¤ के समसà¥à¤¤ पापों का विनाश होकर उसे मोकà¥à¤· की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। à¤à¤¸à¥‡ ही महातà¥à¤®à¥à¤¯ के कारण शà¥à¤°à¥€ मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मारà¥à¤¤à¤£à¥à¤¡ आज à¤à¥€ जन-जन की आसà¥à¤¥à¤¾ के केनà¥à¤¦à¥à¤° बने हà¥à¤ हैं।
राजकीय मà¥à¤¦à¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¤¯ और गोपाल जी मंदिर

मालवा समाचार – उनà¥à¤¨à¥€à¤¸à¤µà¥€à¤‚ शताबà¥à¤¦à¥€ में इनà¥à¤¦à¥Œà¤° से पà¥à¤°à¤•ाशित होलकर राजà¥à¤¯ का मà¥à¤–पतà¥à¤° था जो म. पà¥à¤°. का पहला हिनà¥à¤¦à¥€ समाचार पतà¥à¤° था, यहीं छपता था।

पà¥à¤°à¤¿à¤‚टिग पà¥à¤°à¥‡à¤¸ वाली बिलà¥à¤¡à¤¿à¤‚ग कà¥à¤› दिनों बाद गायब हो जाने वाली पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होती है।
राजवाड़े से à¤à¤• समाचार पतà¥à¤° पà¥à¤°à¤•ाशित हà¥à¤† करता था – ’मालवा समाचार’ जिसका मà¥à¤¦à¥à¤°à¤£ व पà¥à¤°à¤•ाशन राजवाड़े के राजकीय मà¥à¤¦à¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¤¯ (printing press) से ही हà¥à¤† करता था। अब यह मà¥à¤¦à¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¤¯ राजवाड़े के निकट बेशकीमती धरती पर खड़ा हà¥à¤† खंडहर मातà¥à¤° है। इस à¤à¤µà¤¨ का कà¥à¤› हिसà¥à¤¸à¤¾ मौजूद है, कà¥à¤› गिर चà¥à¤•ा है, कà¥à¤› गिराया जा रहा है।
इस मà¥à¤¦à¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¤¯ की जसà¥à¤Ÿ बगल में गोपाल जी का मंदिर है जिसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ सनà¥â€Œ 1832 में उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ राजमाता कृषà¥à¤£à¤¾ बाई होलà¥à¤•र ने कराया था जिनकी छतरी राजवाड़ा के सामने खान नदी के तट पर हम अà¤à¥€ कà¥à¤› देर पहले देख रहे थे। (बाय द वे, खान नदी का यह नाम वासà¥à¤¤à¤µ में कानà¥à¤¹ नदी का अपà¤à¥à¤°à¤‚श है।) मंदिर की ओर का हिसà¥à¤¸à¤¾ अब मलबे के रूप में मौजूद है जैसा कि आप चितà¥à¤° में देख रहे हैं। बाकी हिसà¥à¤¸à¥‡ को देख कर à¤à¥€ अनà¥à¤à¥‚ति होती है कि कहीं पैर रखते ही फरà¥à¤¶ नीचे दरक न जाये।
गोपाल मंदिर का परिचय देते हà¥à¤ वहां à¤à¤• बोरà¥à¤¡ लगा हà¥à¤† था, जिससे इस मंदिर के पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¾à¤¤à¥à¤µà¤¿à¤•, धारà¥à¤®à¤¿à¤• व सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¤à¥à¤¯ कला के सà¥à¤µà¤°à¥‚प का विशद परिचय मिलता है।
यह मंदिर महाराजा यशवंत राव होलकर पà¥à¤°à¤¥à¤® की विधवा पतà¥à¤¨à¥€ और महाराजा मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¤°à¤¾à¤µ होलकर दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ की मां राजमाता कृषà¥à¤£à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ होलकर (मृतà¥à¤¯à¥ सन 1849 ई.) दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वरà¥à¤· 1832 ई. में निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कराया गया था। विशाल पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण के मधà¥à¤¯ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤à¤¿à¤®à¥à¤–ी यह मंदिर ऊंची जगती पर काले पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤° से बना हà¥à¤† है। à¤à¥‚विनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ में गरà¥à¤à¤—ृह अंतराल à¤à¤µà¤‚ सà¤à¤¾ मंडप है। गरà¥à¤à¤—ृह चौकोर है, इसमें à¤à¤• ऊंचे देव ककà¥à¤·à¤¾à¤¸à¤¨ पर राधा à¤à¤µà¤‚ कृषà¥à¤£ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हैं। पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° आयताकार है, जिसमें कोई अलंकरण नहीं है। सिरदल के ललाट बिमà¥à¤¬ पर गणेश, उतà¥à¤¤à¤°à¤‚ग पटà¥à¤Ÿ पर रतà¥à¤¨à¤œà¤‚ध और इसके ऊपर à¤à¤•ादश कलश अंकित है। अंतराल चार सà¥à¤¤à¤‚à¤à¥‹à¤‚ पर आधारित और मेहराबदार है। पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° के सामने गरà¥à¥œ à¤à¤µà¤‚ गणेश की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित हैं। दà¥à¤µà¤¾à¤° शाखा में दोनों ओर विषà¥à¤£ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤ªà¤¾à¤² हैं और चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¶à¤¿à¤–ा अलंकृत है।
मंडप चौकोर तीस सà¥à¤¤à¤‚à¤à¥‹à¤‚ पर आधारित है, तीनों ओर गलियारा है, बितान समतल है। मंडप à¤à¤µà¤‚ गलियारे के सà¥à¤¤à¤‚ठपर à¤à¤• महरान का रूप लेते हैं। वाहà¥à¤¯ विनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ में गरà¥à¤à¤—ृह पंचरथी योजना का नागर शैली के शिखर यà¥à¤•à¥à¤¤ है। जगती पर खà¥à¤²à¤¾ हà¥à¤† पà¥à¤°à¤¦à¤•à¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ पथ है। अधिषà¥à¤ ान से जंघा तक केवल à¤à¤• पटà¥à¤Ÿ बंध है जिससे संपूरà¥à¤£ मणà¥à¤¡à¥‹à¤µà¤¾ दो à¤à¤¾à¤—ों में विà¤à¤•à¥à¤¤ होकर अलंकरण विहीन है। शिखर के à¤à¤¦à¥à¤° – पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¦à¥à¤° à¤à¤µà¤‚ कोणक रथों पर लघॠशिखराब कृतियों की नवà¤à¥‚मि है किनà¥à¤¤à¥ à¤à¤¦à¥à¤° रथ का लता à¤à¤¾à¤— शिखर के मधà¥à¤¯ तक ही है। मंदिर à¤à¤µà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ कलातà¥à¤®à¤• है जो मालवी मराठा शैली का उदाहरण है। à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µà¥€à¤¯ दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से à¤à¥€ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है।
राजमाता कृषà¥à¤£à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ होलकर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनवाठगये गोपालजी मंदिर हेतॠपà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶[/caption]

अरे नहीं, ये राजमाता कृषà¥à¤£à¤¾à¤¬à¤¾à¤ˆ होलकर नहीं हैं ! ये तो मंदिर के पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में बैठी धूप सेक रही पंडिताइन हैं !

à¤à¤—वान की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ के समà¥à¤®à¥à¤– हाथ जोड़े खड़े गरà¥à¥œ देव à¤à¤µà¤‚ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं को आशीष देते हà¥à¤ गणपति बपà¥à¤ªà¤¾!
गोपाल मंदिर से निकलते निकलते पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ 09.30 का समय हो गया था। मà¥à¤à¥‡ बैंक जाना था, अतः बिना और समय गंवाये मैने à¤à¤• आटो किया और पà¥à¤¨à¤ƒ होटल जा पहà¥à¤‚चा और फिर वहां से सीधे बैंक। शाम को बाज़ार से बैंक के लिये कà¥à¤› उपकरण खरीदे जाने थे। अपने शाखा पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤• को साथ में लेकर सà¤à¥€ उपकरणों के उपयà¥à¤•à¥à¤¤ मॉडल पसनà¥à¤¦ करके, कà¥à¤°à¤¯ आदेश देकर पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤• ने अपने घर की राह पकड़ी और मैने सोचा कि तà¥à¤•ोजी गंज में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ Treasure Island Mall का बहà¥à¤¤ नाम सà¥à¤¨à¤¾ है, चलो वहां à¤à¥€ हो आते हैं, कल तो सहारनपà¥à¤° के लिये वापसी करनी ही है।
आर.à¤à¤¨.टी. मारà¥à¤— से महातà¥à¤®à¤¾ गांधी मारà¥à¤— और फिर पैदल चलते चलते मॉल पर आ पहà¥à¤‚चा। यह मॉल इनà¥à¤¦à¥Œà¤° का संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ सबसे बड़ा मॉल है।  सोचा कि कà¥à¤› न कà¥à¤› खरीद कर ले चलूं अपनी इकलौती महारानी के लिये।  घूमते – घूमते à¤à¤• दà¥à¤•ान लेडीज़ परà¥à¤¸ की दिखाई दी पर उसके यहां रेट सà¥à¤¨à¤•र ही होश फाखà¥à¤¤à¤¾ हो गये। परà¥à¤¸ खरीद लेने के बाद पैसे रखने की तो गà¥à¤‚जाइश ही नहीं बचती !   फिर à¤à¤• छोटी सी दà¥à¤•ान पर देखा कि कॉफी मग पर à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ कà¥à¤› चितà¥à¤° छपवा रहा है।
बस, मà¥à¤à¥‡ लगा कि यह सिदà¥à¤§ करने के लिये कि इनà¥à¤¦à¥Œà¤° में रंग-बिरंगी तितलियों के बीच में घूमते फिरते हà¥à¤ à¤à¥€ मैं अपनी धरà¥à¤®à¤ªà¤¤à¥à¤¨à¥€ की ही याद में खोया हà¥à¤† था, इससे बà¥à¤¿à¤¯à¤¾, ससà¥à¤¤à¤¾, सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° और टिकाऊ जà¥à¤—ाड़ कà¥à¤› नहीं हो सकता। अपने मोबाइल में से पतà¥à¤¨à¥€ व पà¥à¤¤à¥à¤° की दो फोटो बà¥à¤²à¥‚टूथ के सहारे उस दà¥à¤•ानदार को दीं और à¤à¤• मग पर वह दोनों फोटो पà¥à¤°à¤¿à¤‚ट कराईं। खाने के नाम पर वेज बरà¥à¤—र खाया, कोलà¥à¤¡ डà¥à¤°à¤¿à¤‚क पिया और होटल की राह पकड़ी। मग के मामले में मेरा यह निशाना à¤à¤•दम सटीक बैठा और उसका मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ लाठà¤à¥€ मिला। (कà¥à¤¯à¤¾ लाठमिला, इससे आपको कà¥à¤¯à¤¾ लेना देना!)
मितà¥à¤°à¥‹à¤‚, मंगलवार को मेरी टà¥à¤°à¥‡à¤¨ शाम को चार बजे के लगà¤à¤— थी, इस दिन मैने कà¥à¤¯à¤¾ किया यह अंतिम कड़ी अब अगली पोसà¥à¤Ÿ में ही दे पाऊंगा। फिलहाल विदा दें, शीघà¥à¤° ही फिर मिलेंगे। नमसà¥à¤•ार !
typical sushant style. really superb.
thanks for sharing
बहुत खूबसूरत, सुन्दर, लिखने के लिए अब शब्द ही नहीं बचे हैं. धन्यवाद , वन्देमातरम…
Praveen Wadhwa: These Chattries and Rajbara are my favorite place.
Thanks for taking me there – again –
सुशांत जी, हमेशा की तरह बहुत उम्दा चित्रण व वर्णन, खासतौर पर होलकर परिवार के इतिहास और उनसे जुड़े रोचक किस्सों का! साझा करने के लिए शुक्रिया…
इतिहास की इतनी जानकारी मुझे कभी नहीं रही लेकिन इस पोस्ट से जो जानकारी आपने दी है उससे कम से कम इतिहास मे तो टॉप किया जा सकता है. फोटो तो हमेशा की तरह बेहतरीन है. शुरू मे अजीब लगा की आपने ३००० रूपये दिए ऑटो वाले को लेकिन बाद मे देखा की ३००० पैसे है तो फिर ठीक है. समय का अच्चा सदुपयोग किया आपने. धन्यवाद
Hi Sushantji,
Great description of Indore’s and Holkar dynasty’s history. I will read it once again since you have used certain words that are certainly not Hindi!
Was the first photo shot from the other side of river Kanh? If yes, can we go to the other side?
So there were two Rajwadas – Old and New. I was not aware of that.
I have recently seen such chattris in Bhuj. This was the cremation ground of the Kutch royal family. Though most of them are damaged due to the earthquake.
So the arson/looting/pillaging was not limited to certain rulers as we all believe. It has been prevalent throughout history among all kinds of rulers. This is also confirmed after recent reading of ancient Indian history.
Nice photos and a great read as always!
Dear Nirdesh Ji,
Thank you for visiting and approving the post. Your comments mean to me a lot. When I am writing about monuments, I am acutely aware that the post would go through your eyes too so I am extra alert. Still, I committed a blunder. One photograph of the chhatri which I had saved through google search was also in the folder when I gave the command to automatically create watermark on the pics. Watermark came on that picture also which was not taken by me and that happens to be the first picture of this post. I have changed the picture and also the caption.
However, Kanh river has got roads on both of its banks and there are bridges over the river to connect the roads on both sides. When my auto reached from hotel via Jawahar Marg, I was on the opposite side of the river and my auto used the bridge to cross the river and reach near chhataries. The first picture must have been taken by someone from the opposite side of the chhatari so that river was between the photographer and the chhataries. The second photo (and all other photos taken by me) was taken from chhatari side of the river. Old Rajwada is also on the chhatari side of the river but roughly 200 meters or so away from the river and these chhataries. I could not visit the Lalbagh Palace – the new Rajwada-cum-museum for want of time.
Many of Holkar rulers had died at early age and their children were designated as king in their childhood. One very strange story of Devi Ahilya Bai Holkar awarding capital punishment to her only son Male Rao Holkar was heard by me. He was punished because of his unruly behaviour and sadistic traits. Devi Ahilya was being approached almost everyday by her assistants who were badly treated by Male Rao. Completely fed up with her son, she awarded capital punishment – death by crushing under the feet of elephant publicly – to Male Rao Holkar !!!
Sushant Ji, Namaskar.
Nice post . Informative and “Sushantesque” style.
सुशांत जी
सुन्दर आलेख के लिए बधाई। सबसे अच्छी बात लगी कि काफी अच्छी जानकारी आपने होल्कर साम्रज्य के विषय में पाठको को इस लेख के माध्यम से परोसी है।
सुशांत जी,
इंदौर की इन प्राचीन धरोहरों को कई बार नजदीक से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है लेकिन जो मजा आपके कैमरे से खिंची गई तस्वीरों को देखने में आया वो इन इमारतों को प्रत्यक्ष देखने में भी कभी नहीं आया। आप इंदौर का लाल बाग़ पेलेस (महाराजा तुकोजीराव द्वारा निर्मित निजी निवास महल) देखते तो आपको और भी मज़ा आता।
Dear Friends,
Last 15 -17 days have been sometime thrilling and on other occasions tormenting. Receiving family guests for 4-5 days felt great but then the floods in Saharanpur and in Uttarakhand have been devastating. I even forgot about ghumakkar in the past few days. I had promises to keep for 22nd June Insight slot, so last night I started writing at 10.30 and finished uploading the post and pics somewhere around 1.30. Bas yu samajhiye ki baal-baal ijjat bach gayi.
@Mukesh : आपका कहना सही है कि लालबाग पैलेस देख कर बहुत अच्छा लगता । मेरी इच्छा भी थी पर कुछ चीज़ें अगली बार के लिये भी छोड़ कर रखनी चाहिये ना ? वैसे वहां फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है, ऐसा मुझे बताया गया है। यह मेरे जैसे लोगों के लिये तो हृदय-विदारक सूचना है! आपकी प्रशंसा को मैं आपके स्नेह के रूप में ले रहा हूं ! जल्दी ही इन्दौर फिर जाना होगा आधिकारिक टूर पर, पर इस बार बहुत कम समय के लिये और अपने बैंक के CEO के साथ, अतः घूमने – फिरने की संभावना नहीं है।
@ Rastogi @Rakesh Bawa: @Vipin : आप पोस्ट तक आये, इसे पसन्द किया तो अपनी मेहनत वसूल !
@ Lakshya Rajput : Thank you Lakshya.
@ Praveen Wadhwa : Indore has become one of my favourite cities besides Udaipur and Panaji.
@ Saurabh Gupta : प्रिय सौरभ, मेरी आदत है कि मैं ’कितने रुपये’ के बजाय ’कितने पैसे?’ पूछा करता हूं पर इस बन्दे ने मेरी तलवार का मुझ पर ही वार कर दिया, सो अच्छा लगा ! आपका धन्यवाद ।
@ Praveen Gupta : शब्दों की जरूरत ही नहीं है, प्रवीण जी ! आपका प्यार ही सब कुछ है।
सबसे पहले तो सौरभ गुप्ता जी को बधाई की उन्होंने आपका तीन सहस्त्र वाले लतीफे का लिफाफा खोल दिया । उस ऑटो वाले का एक चित्र तो बनता था डीअरेस्ट सुशांत सर । वैसे मेरी ही तरह काफी पुराना जोक है ।
पोस्ट बेहतरीन है , पर फोटोज का वॉटरमार्क सर पर चढ़ गया है । माफ़ी चाहता हूँ पर शायद कहीं कोने में छोटा लिखने पर ज्यादा रम्य और ललित दीखता , बाकी मर्ज़ी आपकी क्योंकि सर है आपका (बहुत पहले दूरदर्शन पर एक विज्ञापन आता है, की बिना हेलमेट पहने ऐसा है जैसे के एक नारियल पर हथोडा मारना और अंत में डायलाग था की मर्ज़ी …) ।
मेरे ख्याल से फूल ज़मीन पर ही तराशे गए होंगे और उन्हें बाद में शिखर पर लगाया होगा, मंदिर शायद लिटा के बनता था और भी खड़ा करते थे , ऐसा कुछ खजुराहो मंदिर घूमते हुआ सरकारी गाइड ने बताया था ।
होलकर , राव, मराठा परिवार की कहानिया पढ़ कर “मनोहर कहानियाँ ” पत्रिका की याद आ गयी । इतना कुछ लिखना , वो भी सही सही और इत्मीनान से, सुद्रढ़ भाषा में , जल्द ही आपकी किताब का वक़्त आने वाला है ।
विलम्ब से पढने के लिए क्षमा और एक बार फिर से धन्यवाद ।
thamks………….
अध्दभुत, अकाल्पनिक, असाधारण वर्णन वर्णित किया है, धन्यवाद
अदà¥à¤à¥‚त जानकारी
à¤à¤• à¤à¤• शबà¥à¤¦ आपने रिसरà¥à¤š करके बेबाक़ी और सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ से लिखा।
220 साल के होलà¥à¤•र वंश का इतिहास तो आपको मà¥à¤‚ह जà¥à¤¬à¤¾à¤¨à¥€ याद रहा लेकिन छतà¥à¤°à¥€ बाग जाने का किराया 3000 रà¥à¤ªà¤ हजम नहीं हà¥à¤†à¥¤
300 रà¥à¤ªà¤ में रिकà¥à¤¶à¤¾ में सारा इंदौर घूम सकते है। 3000 रà¥à¤ªà¤ में तो रिकà¥à¤¶à¤¾ वाला मांडव घà¥à¤®à¤¾ लाà¤
अदà¥à¤à¥‚त जानकारी
à¤à¤• à¤à¤• शबà¥à¤¦ आपने रिसरà¥à¤š करके बेबाक़ी और सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ से लिखा।
220 साल के होलà¥à¤•र वंश का इतिहास तो आपको मà¥à¤‚ह जà¥à¤¬à¤¾à¤¨à¥€ याद रहा लेकिन छतà¥à¤°à¥€ बाग जाने का किराया 3000 रà¥à¤ªà¤ हजम नहीं हà¥à¤†à¥¤
300 रà¥à¤ªà¤ में रिकà¥à¤¶à¤¾ में सारा इंदौर घूम सकते है। 3000 रà¥à¤ªà¤ में तो रिकà¥à¤¶à¤¾ वाला मांडव घà¥à¤®à¤¾ लाà¤l
मैने शरà¥à¤®à¤¿à¤·à¥à¤ ा देवी को देखा था जब राजबाड़ा पर पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¥€ लगी थी।