पà¥à¤°à¤¿à¤¯ साथियों,
लीजिये आज फिर से उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हूठमैं अपनी अगली यातà¥à¤°à¤¾ कहानी के साथ। छः à¤à¤¾à¤—ों की इस विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤Â शà¥à¤°à¤‚खला में मैं आपको ले कर चलूà¤à¤—ा à¤à¤—वानॠकृषà¥à¤£ की पवितà¥à¤° à¤à¥‚मि यानी बृज à¤à¥‚मि मथà¥à¤°à¤¾, गोकà¥à¤², वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ तथा उसके बाद आगरा à¤à¤µà¤‚ आगरा से होते हà¥à¤ हम चलेंगे à¤à¤—वानॠविशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ की नगरी यानी वाराणसी।
कई दिनों से हमारी इचà¥à¤›à¤¾ थी की à¤à¤• à¤à¤• धारà¥à¤®à¤¿à¤• यातà¥à¤°à¤¾ अपने तथा कविता के ममà¥à¤®à¥€ पापा के साथ à¤à¥€ की जाà¤, तो इस बार निरà¥à¤£à¤¯ लिया गया की अपनी अगली यातà¥à¤°à¤¾ पर कविता के ममà¥à¤®à¥€ पापा को साथ में लेकर चला जाठऔर जब उनसे पूछा गया तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¥€ बड़ी ख़à¥à¤¶à¥€ से हमारे साथ जाने में अपनी सहमती जाहिर कर दी। अब अगला कदम था सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के चयन का सो सबसे पहले अपने सास ससà¥à¤° जी से पूछा और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गंगा जी के दरà¥à¤¶à¤¨ तथा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ की इचà¥à¤›à¤¾ जाहिर की।
चूà¤à¤•ि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ की इचà¥à¤›à¤¾ थी और हमें वरà¥à¤· में कम से कम à¤à¤• जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग की यातà¥à¤°à¤¾ करनी ही होती है, अतः अब यह बात सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ हो गई की à¤à¤¸à¥€ जगह का चà¥à¤¨à¤¾à¤µ किया जाठजहाठगंगा à¤à¥€ हो और जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग à¤à¥€, और à¤à¤¸à¥€ जगह तो बस à¤à¤• ही है काशी या वाराणसी। उनकी गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ की इचà¥à¤›à¤¾ तथा हमारे पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤µà¤°à¥à¤· कम से कम à¤à¤• जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के संकलà¥à¤ª को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखते हà¥à¤ हम लोगों ने फटाफट निरà¥à¤£à¤¯ लिया की काशी ही जाना  है।
इधर पिछले कà¥à¤›Â वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से मथà¥à¤°à¤¾ वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ तथा आगरा (ताज महल) की इचà¥à¤›à¤¾Â à¤à¥€ बलवती हो रही थी तो मैंने सोचा की उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ ही जा रहे हैं तो बृज à¤à¥‚मि, à¤à¤¾à¤°à¤¤ की शान ताज महल तथा वाराणसी का à¤à¤• समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ टूर बनाया जाà¤, और बस बन गया à¤à¤• अचà¥à¤›à¤¾ सा पà¥à¤²à¤¾à¤¨, जिसके तहत हमें सबसे पहले टà¥à¤°à¥‡à¤¨ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾Â इंदौर से मथà¥à¤°à¤¾ (निजामà¥à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸) जाना था, मथà¥à¤°à¤¾ में दो दिन रà¥à¤• कर मथà¥à¤°à¤¾ गोकà¥à¤² तथा वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ के सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ के दरà¥à¤¶à¤¨ करने थे तथा तीसरे दिन सà¥à¤¬à¤¹ आगरा के लिठनिकलकर आगरा में ताज महल तथा आगरा का किला देखना था और उसी दिन रात में टà¥à¤°à¥‡à¤¨ से (मरà¥à¤§à¤° à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸) वाराणसी पहà¥à¤‚चकर दो दिन यहाठरूककर वाराणसी के घाट, काशी विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ तथा अनà¥à¤¯ मंदिर à¤à¤µà¤‚ आखिरी दिन सारनाथ के दरà¥à¤¶à¤¨ करके दोपहर में वाराणसी से इंदौर के लिठटà¥à¤°à¥‡à¤¨ (पटना इंदौर à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸) पकड़कर इंदौर पहà¥à¤‚चना था। यातà¥à¤°à¤¾ की तारीखें थीं 20 से 27 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर।
टूर पà¥à¤²à¤¾à¤¨ फाइनल हो जाने के बाद तà¥à¤°à¤‚त ही मैंने तीनों टà¥à¤°à¥‡à¤¨à¥‹à¤‚ में अपना रिजरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¤¨ करवा लिया। गà¥à¤°à¥à¤ª में मेरे परिवार से हम चार कविता के ममà¥à¤®à¥€ पापा तथा मेरी साली की बेटी शाना शामिल थे, इस तरह छोटे बड़े मिला कर हम सात लोग हो गठथे।
जलà¥à¤¦à¥€ जलà¥à¤¦à¥€ à¤à¤• के बाद दूसरी यातà¥à¤°à¤¾ पर जाने तथा वह à¤à¥€ तीरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ पर जाने की वजह से अब हमारे बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ का यातà¥à¤°à¤¾à¤“ं से मन à¤à¤° गया है या यह कह लीजिये की वे बोर हो चà¥à¤•े हैं अतः इस टूर के मामले में à¤à¥€ वे कोई रूचि नहीं दिखा रहे थे, लेकिन जब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यह बताया गया की हम लोग आगरा à¤à¥€ जा रहे हैं ताज महल देखने के लिठतो वे ख़à¥à¤¶à¥€ से à¤à¥‚म उठे।
कविता के ममà¥à¤®à¥€ पापा पहली बार कहीं तीरà¥à¤¥ यातà¥à¤°à¤¾ पर जा रहे थे अतः वे बहà¥à¤¤ खà¥à¤¶ थे, कविता इसलिठखà¥à¤¶ थी की काशी में à¤à¤—वानॠविशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ के दरà¥à¤¶à¤¨ होने वाले थे, बचà¥à¤šà¥‡ इसलिठखà¥à¤¶ थे की उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ताज महल देखने को मिलने वाला था, और मैं इसलिठखà¥à¤¶ था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि ये सब खà¥à¤¶ थे।
जैसे जैसे हमारी यातà¥à¤°à¤¾ की तारीखे करीब आ रही थीं, वैसे वैसे हमारा उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ à¤à¤µà¤‚ उतà¥à¤¸à¥à¤•ता बढती जा रही थी। यहाठपर à¤à¤• चीज़ बताना चाहूà¤à¤—ा की घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ शौक है जिससे वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ कà¤à¥€ à¤à¥€ बोर नहीं होता है, हर नठटूर पर जाने से पहले न जाने कहाठसे उतना ही उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹, उतनी ही उमंगें उतनी ही खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ दिलो दिमाग पर हावी हो जाती है जितनी हमने कà¤à¥€Â हमारे पहले टूर  के दौरान महसूस की होती है।
सासॠमां ने दो नठबड़े साइज़ के बैग ख़रीदे और ज़रूरत का सारा सामान लेकर वे लोग हमारे यहाठदो दिन पहले यानी 18 अकà¥à¤¤à¥‚बर को आ गà¤à¥¤ सफ़र में साथ ले जाने के लिठकविता ने कà¥à¤› नाशà¥à¤¤à¤¾ तैयार कर लिया था तथा कà¥à¤› हमने बाज़ार से खरीद लिया था। शनिवार 20 अकà¥à¤¤à¥‚बर को हमारी टà¥à¤°à¥‡à¤¨ शाम साढ़े चार बजे थी। चूà¤à¤•ि तीन बजे तक इंदौर पहà¥à¤‚चना था अतः मैंने आज हाफ डे ले लिया था बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को सà¥à¤•ूल नहीं à¤à¥‡à¤œà¤¾ था। दोपहर का खाना खाकर तथा शाम का खाना घर से ही पैक करके ले जाने का पà¥à¤²à¤¾à¤¨ था।
रितेश गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी से मिलना- à¤à¤• अदà¥à¤à¥à¤¤ संयोग:Â
यहाठपर मैं जिकà¥à¤° करना चाहूà¤à¤—ा हमारे à¤à¤• घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ मितà¥à¤° का जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आप सà¤à¥€ बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥‡ से जानते ही होंगे, अपने हिनà¥à¤¦à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ वृतà¥à¤¤à¤¾à¤‚तों से घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ के पाठकों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ने वाले, पाठकों को मंतà¥à¤°à¤®à¥à¤—à¥à¤§ कर देने वाले तथा घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ के हिनà¥à¤¦à¥€ खजाने को अपनी रचनाओं से समृदà¥à¤§ करने के लिठजाने जानेवाले  घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ के à¤à¤• सशकà¥à¤¤ आधार सà¥à¤¤à¤®à¥à¤, हम सबके पà¥à¤°à¤¿à¤¯ शà¥à¤°à¥€Â रितेश गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾Â जी आगरा वाले। आप सोच रहे होंगे की मैं अपनी पोसà¥à¤Ÿ में रितेश जी का उलà¥à¤²à¥‡à¤– कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ कर रहा हूà¤? तो जी बात à¤à¤¸à¥€ है की रितेश जी से हमारी दोसà¥à¤¤à¥€ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ के माधà¥à¤¯à¤® से हà¥à¤ˆ थी और अकà¥à¤¸à¤° ही उनसे फोन पर या फेसबà¥à¤• पर बातें होती रहती थीं।अब अगर बà¥à¤°à¤œ à¤à¥‚मि à¤à¤µà¤‚ आगरा की यातà¥à¤°à¤¾ करनी हो और रितेश जी से इस बारे में सलाह न ली जाठतो फिर आखिर घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ से हà¥à¤ˆ इस दोसà¥à¤¤à¥€ का कà¥à¤¯à¤¾ मतलब, सो à¤à¤¸à¥€ ही à¤à¤• बातचीत  में हमने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बताया था की हम लोग मथà¥à¤°à¤¾ à¤à¤µà¤‚ आगरा आने का पà¥à¤²à¤¾à¤¨ कर रहे हैं, यह सà¥à¤¨ कर वे à¤à¥€ बड़े खà¥à¤¶ हà¥à¤, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमारे इस टूर में बहà¥à¤¤ रूचि दिखाई और मà¥à¤à¤¸à¥‡ यह कहा की इस टूर के दौरान कहीं न कहीं वे अपने परिवार सहित हमसे ज़रूर मिलेंगे अतः उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ अपने टूर पà¥à¤²à¤¾à¤¨ की à¤à¤• कॉपी à¤à¥‡à¤œà¤¨à¥‡ के लिठकहा। मैंने तà¥à¤°à¤‚त ही मेल के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी इस यातà¥à¤°à¤¾ योजना की पà¥à¤°à¤¤à¤¿ à¤à¥‡à¤œ दी। तो इस तरह से इस टूर में हमारा रितेश गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾Â जी से मिलना तो लगà¤à¤— तय हो ही गया था।
अंततः हमारी यातà¥à¤°à¤¾Â की तिथि आ ही गई और 20 नवमà¥à¤¬à¤°Â की दोपहर को हम सब अपनी सà¥à¤ªà¤¾à¤°à¥à¤• से इंदौर के लिà¤Â निकल पड़े।यहाà¤Â पर à¤à¤• अपà¥à¤°à¤¿à¤¯Â घटना घटी, हà¥à¤†Â ये की इंदौर शहर में घà¥à¤¸à¤¤à¥‡Â ही हमारा सामना à¤à¤• बेहद ईमानदार (????) पà¥à¤²à¤¿à¤¸Â वाले से हà¥à¤†, इंदौर की à¤à¤• वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤à¤¤à¤®Â सड़क पर गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡Â समय उसने मà¥à¤à¥‡Â इशारा करके गाडी साइड में खड़ी करने के लिà¤Â कहा मैंने उसके आदेश का पालन करते हà¥à¤Â गाडी साइड में खड़ी कर दी, उसने मà¥à¤à¤¸à¥‡Â पेपर दिखने के लिà¤Â कहा, वैसे तो गाडी के सारे दसà¥à¤¤à¤¾à¤µà¥‡à¤œÂ मेरे पास मौजूद थे लेकिन डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤¿à¤‚ग लाइसेंस तथा रजिसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‡à¤¶à¤¨Â के पेपरà¥à¤¸Â की फोटोकॉपी थीं, और वो मà¥à¤à¤¸à¥‡Â कह रहा था की ओरिजिनल दिखाओ या फिर गाडी यहीं खड़ी कर दो और कल कोरà¥à¤ŸÂ से आकर ले जाना।
वासà¥à¤¤à¤µÂ में वो मà¥à¤à¥‡Â हर हाल में रोकना चाह रहा था, मैं उसका मंतवà¥à¤¯Â समà¤Â गया और बिना जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾Â बहस किये जेब में से सौ का नोट निकाल कर उसकी और बढ़ा दिया, सौ का नोट देखते ही उसके चेहरे पे मà¥à¤¸à¥à¤•ान आ गई और उसने मà¥à¤à¥‡Â आगे बढ़ने का संकेत दे दिया, तब तक साढ़े तीन बज चà¥à¤•े थे और हमारी टà¥à¤°à¥‡à¤¨Â साढ़े चार बजे निकलनेवाली थी, कà¥à¤›Â ही देर में हम रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨Â पहà¥à¤à¤šÂ गà¤à¥¤Â पहले मैंने बाकी लोगों तथा सामान को रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨Â पर छोड़ा तथा मैं अपनी कंपनी के हेड ऑफिस अपनी गाडी पारà¥à¤• करने के लिà¤Â  चला गया।
टà¥à¤°à¥‡à¤¨ अपने सही समय पर थी तथा सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर à¤à¤• घंटे के इंतज़ार के बाद अपने नियत समय पर टà¥à¤°à¥‡à¤¨ चल पड़ी और अब टà¥à¤°à¥‡à¤¨ चलने के बाद हमें à¤à¥€ सà¥à¤•ून मिल रहा था। टà¥à¤°à¥‡à¤¨ में ही घर से लाया खाना खाने के बाद करीब नौ बजे हम लोग अपनी अपनी बरà¥à¤¥ पर लेट गà¤à¥¤ रात में रितेश जी का फ़ोन आया और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पूछा की अब तक के सफ़र में कोई परेशानी तो नहीं आई, और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमें सà¥à¤¬à¤¹ का कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® बता दिया की वे सà¥à¤¬à¤¹Â आगरा से मथà¥à¤°à¤¾ पहà¥à¤à¤š जायेंगे तथा हमें मथà¥à¤°à¤¾ में ही मिलेंगे।
सà¥à¤¬à¤¹ 3.35 पर टà¥à¤°à¥‡à¤¨ का मथà¥à¤°à¤¾ पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ का समय था और हमें à¤à¥€Â मथà¥à¤°à¤¾ ही उतरना था अतः मैंने अपने तथा कविता दोनों के मोबाइल में 3.00 बजे का अलारà¥à¤® लगा दिया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सà¥à¤¬à¤¹ के तीन बजे उठना टेढ़ी खीर थी। इस टà¥à¤°à¥‡à¤¨ में अकà¥à¤¸à¤° ये होता है की जिन पेसेंजरà¥à¤¸ को मथà¥à¤°à¤¾ उतरना होता है, सà¥à¤¬à¤¹ साढ़े  तीन बजे वे जाग नहीं पाते और जब नींद खà¥à¤²à¤¤à¥€ है तब तक दिलà¥à¤²à¥€ पहà¥à¤à¤š चà¥à¤•े होते हैं। चूà¤à¤•ि हम लोग 3.35 बजे मथà¥à¤°à¤¾ पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ वाले थे और ये à¤à¤• बड़ी समसà¥à¤¯à¤¾ थी अतः मथà¥à¤°à¤¾ में मैंने पहले से ही फ़ोन के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤• होटल में रूम बà¥à¤• करवा रखा था (लेकिन उसे पेमेंट नहीं किया था) और उससे बात à¤à¥€ कर रखी थी की हम लोग सà¥à¤¬à¤¹ 4.00 बजे चेक इन करेंगे ।
अपने सही समय पर टà¥à¤°à¥‡à¤¨ मथà¥à¤°à¤¾ पहà¥à¤‚ची और हम सब सकà¥à¤¶à¤² मथà¥à¤°à¤¾ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर उतर गà¤à¥¤ पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¥‹à¤°à¥à¤® से बाहर आते ही कई सारे ऑटो वाले हमारे पीछे लग गà¤, मà¥à¤à¥‡ आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ हà¥à¤† की रात के तीसरे पà¥à¤°à¤¹à¤° में à¤à¥€ यहाठइतने सारे ऑटो वाले उपलबà¥à¤§ हैं। खैर à¤à¤• मारà¥à¤¤à¥€ ओमनी वेन वाले से बात करके हम उसमें सवार हो गà¤, सबसे पहले तो उसी होटल को खोजा जिसमें मैंने कमरा बà¥à¤• करवाया था लेकिन यह होटल मà¥à¤à¥‡ पसंद नहीं आया अतः मैंने वेन वाले से कà¥à¤› और होटल दिखाने को कहा तो वह हमें à¤à¤• अचà¥à¤›à¥‡ होटल में लेकर गया जहाठहमें 800 रॠमें  à¤à¤• चार बेड वाला बड़ा कमरा मिल गया जिसमें अटैच लेट बाथ, गीजर, टीवी जैसी आधारà¤à¥‚त सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤ शामिल थीं। सà¥à¤¬à¤¹ के चार बज रहे थे अतः हमने सोचा की à¤à¤• नींद और ले ली जाà¤, वैसे à¤à¥€ इस समय जाग कर à¤à¥€ कà¥à¤› हासिल नहीं होना था, अतः हम सब सो गà¤, सà¥à¤¬à¤¹ करीब सात बजे नींद खà¥à¤²à¥€, उठते ही मैंने सबसे पहले रितेश जी को फ़ोन लगाया तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया की वे लोग दस बजे के करीब अपनी फेमिली के साथ मथà¥à¤°à¤¾ पहà¥à¤à¤š जायेंगे और हमें जनà¥à¤®à¤à¥‚मि मंदिर के बाहर मिलेंगे।
मथà¥à¤°à¤¾ – à¤à¤• परिचय:
मथà¥à¤°à¤¾, à¤à¤—वान कृषà¥à¤£Â की जनà¥à¤®à¤¸à¥à¤¥à¤²à¥€Â और à¤à¤¾à¤°à¤¤ की परम पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ तथा जगदà¥-विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ नगरी है। पौराणिक साहितà¥à¤¯ में मथà¥à¤°à¤¾ को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जैसे- शूरसेन नगरी, मधà¥à¤ªà¥à¤°à¥€, मधà¥à¤¨à¤—री, मधà¥à¤°à¤¾ आदि। यह वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ उतà¥à¤¤à¤°Â पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶Â में आगरा और दिलà¥à¤²à¥€ से कà¥à¤°à¤®à¤¶: 58 कि.मी उतà¥à¤¤à¤°-पशà¥à¤šà¤¿à¤® à¤à¤µà¤‚ 145 कि. मी दकà¥à¤·à¤¿à¤£-पशà¥à¤šà¤¿à¤® में यमà¥à¤¨à¤¾ के किनारे राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ राजमारà¥à¤— 2 पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है।
वालà¥à¤®à¥€à¤•ि रामायण में मथà¥à¤°à¤¾ को मधà¥à¤ªà¥à¤° या मधà¥à¤¦à¤¾à¤¨à¤µ का नगर कहा गया है तथा यहाठलवणासà¥à¤° की राजधानी बताई गई है.  इस नगरी को इस पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग में मधà¥à¤¦à¥ˆà¤¤à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बसाई, बताया गया है। लवणासà¥à¤°, जिसको शतà¥à¤°à¥à¤˜à¥à¤¨ ने यà¥à¤¦à¥à¤§ में हराकर मारा था इसी मधà¥à¤¦à¤¾à¤¨à¤µ का पà¥à¤¤à¥à¤° था। इससे मधà¥à¤ªà¥à¤°à¥€ या मथà¥à¤°à¤¾ का रामायण-काल में बसाया जाना सूचित होता है। रामायण में इस नगरी की समृदà¥à¤§à¤¿ का वरà¥à¤£à¤¨ है। इस नगरी को लवणासà¥à¤° ने à¤à¥€ सजाया संवारा था । पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤•ाल से अब तक इस नगर का असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ अखणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ रूप से चला आ रहा है।
वराह पà¥à¤°à¤¾à¤£Â में कहा गया है – विषà¥à¤£à¥ कहते हैं कि इस पृथिवी या अनà¥à¤¤à¤°à¤¿à¤•à¥à¤· या पाताल लोक में कोई à¤à¤¸à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ नहीं है जो मथà¥à¤°à¤¾ के समान मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¾ हो- मथà¥à¤°à¤¾ मेरा पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° है और मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¦à¤¾à¤¯à¤• है, इससे बढ़कर मà¥à¤à¥‡ कोई अनà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤² नहीं लगता।Â
à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€Â कृषà¥à¤£Â की जनà¥à¤®à¤à¥‚मि का ना केवल राषà¥à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤¤à¤° पर महतà¥à¤µ है बलà¥à¤•ि वैशà¥à¤µà¤¿à¤• सà¥à¤¤à¤° पर जनपद मथà¥à¤°à¤¾ à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ के जनà¥à¤®à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ से ही जाना जाता है। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में पंडित मदनमोहन मालवीयजी की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ से यह à¤à¤• à¤à¤µà¥à¤¯ आकरà¥à¤·à¤£ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के रूप में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है। परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से विदेशों से à¤à¥€ à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठयहाठपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ आते हैं। à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ को विशà¥à¤µ में बहà¥à¤¤ बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ में नागरिक आराधà¥à¤¯ के रूप में मानते हà¥à¤ दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥ आते हैं।  (जानकारी आà¤à¤¾à¤°Â : http://hi.brajdiscovery.org)
अब हम सब लोग करीब आठबजे तक तैयार होकर सबसे पहले यमà¥à¤¨à¤¾ नदी की ओर चल दिà¤, यमà¥à¤¨à¤¾ नदी का विशà¥à¤°à¤¾à¤® घाट हमारे होटल से पैदल दà¥à¤°à¥€ पर ही था अतः हम सब पैदल ही चल दिà¤à¥¤ इस घाट का नाम विशà¥à¤°à¤¾à¤® घाट इसलिठपड़ा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि à¤à¤—वानॠशà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ ने कंस का वध करने के बाद यहीं पर यमà¥à¤¨à¤¾ के किनारे विशà¥à¤°à¤¾à¤® किया था। यहाठघाट पर हमने सबसे पहले यमà¥à¤¨à¤¾ जी के दरà¥à¤¶à¤¨ किये, यहाठपर बहà¥à¤¤ सारे नाव वाले खड़े थे अतः à¤à¤• नाव वाले से किराया ठहरा कर हम सब उस नाव में सवार हो गà¤à¥¤ अब हमें इस नाव से ही मथà¥à¤°à¤¾ के à¤à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ मंदिर शà¥à¤°à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के लिठजाना था। कà¥à¤› पांच मिनट में हम नाव से दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश मंदिर पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤ इस समय करीब नौ बज रहे थे और यहाठमंदिर में पहà¥à¤à¤š कर पता चला की मंदिर दस बजे खà¥à¤²à¥‡à¤—ा, अब बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ बड़ों सà¤à¥€ को à¤à¥‚ख à¤à¥€ लग रही थी अतः हमने सोचा की इस खाली समय में नाशà¥à¤¤à¤¾ कर लिया जाठअतः हम मंदिर के ही बगल में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¤• नà¥à¤•à¥à¤•ड़ वाली सà¥à¤Ÿà¤¾à¤²à¤¨à¥à¤®à¤¾ दà¥à¤•ान में पहà¥à¤‚चे।
मथà¥à¤°à¤¾ में मैंने à¤à¤• विशेष बात देखी की यहाà¤Â नाशà¥à¤¤à¥‡ के सà¥à¤Ÿà¤¾à¤²à¥‹à¤‚ पर बैठने की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ नहीं होती, बस खड़े खड़े नाशà¥à¤¤à¤¾ करो, पैसे दो और चलते बनो जबकि हमारे मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में हर रेसà¥à¤¤à¥Œà¤°à¥‡à¤‚ट पर कम से कम बैठने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ तो होती ही है। खैर नाशà¥à¤¤à¤¾ करके हम पà¥à¤¨à¤ƒÂ मंदिर की ओर चल दिठअब तक मंदिर खà¥à¤²à¤¨à¥‡ का समय à¤à¥€ हो चूका था और मंदिर में शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं की à¤à¥€à¤¡à¤¼ à¤à¥€ बढ़ने लगी थी।
दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश मंदिर :
यह मथà¥à¤°à¤¾ का सबसे विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿à¤®à¤¾à¤°à¥à¤— मंदिर है। à¤à¤—वान कृषà¥à¤£Â को ही दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¿à¤•ाधीश (दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¿à¤•ा का राजा) कहते हैं । मथà¥à¤°à¤¾Â नगर के राजाधिराज बाज़ार में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ यह मनà¥à¤¦à¤¿à¤° अपने सांसà¥à¤•ृतिक वैà¤à¤µ कला à¤à¤µà¤‚ सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ के लिठअनà¥à¤ªà¤® है । गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤°Â राज के कोषाधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· सेठगोकà¥à¤² दास पारीख ने इसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ 1814–15 में पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ कराया, जिनकी मृतà¥à¤¯à¥ पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ इनकी समà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ के उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤§à¤¿à¤•ारी सेठलकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤šà¤¨à¥à¤¦à¥à¤° ने मनà¥à¤¦à¤¿à¤° का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कारà¥à¤¯ पूरà¥à¤£ कराया । शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£Â के महीने में पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वरà¥à¤· यहाठलाखों शà¥à¤°à¥ƒà¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ सोने–चाà¤à¤¦à¥€ के हिंडोले देखने आते हैं। मथà¥à¤°à¤¾Â के विशà¥à¤°à¤¾à¤® घाट के निकट ही असकà¥à¤‚डा घाट के निकट यह मंदिर विराजमान है।  (सनà¥à¤¦à¤°à¥à¤: http://hi.brajdiscovery.org)
मंदिर में à¤à¤—वानॠदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश के दरà¥à¤¶à¤¨ कर लेने के बाद अब हम मंदिर से बाहर आ चà¥à¤•े थे और अब हमारा अगला पड़ाव था शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ जनà¥à¤®à¤à¥‚मि मंदिर।

दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश मंदिर के सामने हमारा गà¥à¤°à¥à¤ª
इस बीच रितेश जी से फ़ोन से लगातार संपरà¥à¤• हो रहा था और हम जैसे ही साइकिल रिकà¥à¤¶à¤¾ पर सवार हà¥à¤ वैसे ही उनका फ़ोन आ गया और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया की वे लोग जनà¥à¤®à¤à¥‚मि मंदिर पहà¥à¤à¤š चà¥à¤•े हैं तथा मंदिर के बाहर खड़े हमारा इंतज़ार कर रहे हैं। अब कà¥à¤› ही मिनटों में हम à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ तथा उनके परिवार से मिलने जा रहे थे जिनसे हम घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़, फेसबà¥à¤• तथा फ़ोन के माधà¥à¤¯à¤® से बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥‡ तरीके से परिचित थे लेकिन कà¤à¥€ मिले नहीं थे, मन में à¤à¤• अलग ही तरह का रोमांच तथा अनà¥à¤à¥‚ति हो रही थी, अंततः वह कà¥à¤·à¤£ आ गया।
जैसे ही हम जनà¥à¤®à¤à¥‚मि मंदिर पहà¥à¤à¤š कर रिकà¥à¤¶à¤¾ से निचे उतरे, हमें रितेश गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी अपने परिवार सहित मिल गà¤, चूà¤à¤•ि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ तथा उनके पà¥à¤°à¥‡ परिवार को हम घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ की पोसà¥à¤Ÿà¥à¤¸ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ देख ही चà¥à¤•े थे अतः पहचानने में किसी à¤à¥€ तरह की कोई परेशानी नहीं आई, उनसे तथा उनके परिवार से मिलकर हमें जो ख़à¥à¤¶à¥€ मिली उसे शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में बखान करना मेरे लिठनामà¥à¤®à¤•ीन है। कà¥à¤› ही देर की औपचारिक बातचीत के बाद हम सब à¤à¤• दà¥à¤¸à¤°à¥‡ से बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€Â तरह से घà¥à¤² मिल  गठथे, और अब हम सब मिलकर शà¥à¤°à¥€ जनà¥à¤®à¤à¥‚मि मंदिर के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° की  ओर बढ़ चले।
यहाठपर à¤à¤• बात बताना चाहूà¤à¤—ा की हम लोगों ने अब तक कई बड़े बड़े मंदिरों à¤à¤µà¤‚ अनेक धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ के दरà¥à¤¶à¤¨ किये हैं लेकिन मथà¥à¤°à¤¾ के जनà¥à¤®à¤à¥‚मि मंदिर जितनी सखà¥à¤¤ चेकिंग à¤à¤µà¤‚ सिकà¥à¤¯à¥‚रिटी (सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾) मैंने अपने जीवन में पहली बार देखी, खैर यहाठके बाद हम आगरा ताज महल देखने à¤à¥€ गठऔर काशी विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ मंदिर à¤à¥€ लेकिन पहरेदारी का जो आलम मैंने मथà¥à¤°à¤¾ के इस जनà¥à¤®à¤à¥‚मि मंदिर का देखा वह और कहीं नहीं देखने को मिला। कतार में लगने के बाद कम से कम तीन बार मà¥à¤à¥‡ तथा कविता के पापा को सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ चेक पोसà¥à¤Ÿ से लाइन से बाहर निकलना पड़ा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हर बार कà¥à¤› न कà¥à¤› समसà¥à¤¯à¤¾ बता कर पà¥à¤²à¤¿à¤¸ वाले हमें लाइन से बाहर निकाल देते, आखिरी बार तो हमें इसलिठबाहर कर दिया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि मेरी पेंट की पिछली जेब में सà¥à¤ªà¤¾à¤°à¥€ का à¤à¤• पाउच रह गया था। जबकि सारा बड़ा सामान जैसे मोबाइल, केमेरा परà¥à¤¸ आदि तो हम सबसे पहले ही कà¥à¤²à¥‰à¤• रूम में जमा करा चà¥à¤•े थे।  खैर इस खतरनाक चेकिंग से गà¥à¤œà¤°à¤¨à¥‡ के बाद हम मंदिर में पहà¥à¤‚चे। यहाठमंदिर दो à¤à¤¾à¤—ों में बंटा हà¥à¤† है, à¤à¤• तरफ तो कंस के कारागà¥à¤°à¤¹ का वह संकरा कमरा है जहाठà¤à¤—वानॠशà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£Â का जनà¥à¤® हà¥à¤† था और दूसरी और शà¥à¤°à¥€ राधा कृषà¥à¤£ का सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° मंदिर है।
शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ जनà¥à¤®à¤à¥‚मि मंदिर/ केशव देव मंदिर :
à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£Â का यह जनà¥à¤®à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨Â कंस का कारागार था, जहाठवासà¥à¤¦à¥‡à¤µ ने à¤à¤¾à¤¦à¥à¤°à¤ªà¤¦ कृषà¥à¤£ अषà¥à¤Ÿà¤®à¥€ की आधी रात अवतार गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया था। आज यह कटरा केशवदेव नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤µ है। यह कारागार केशवदेव के मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के रूप में परिणत हà¥à¤†à¥¤ इसी के आसपास मथà¥à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¥€ सà¥à¤¶à¥‹à¤à¤¿à¤¤ हà¥à¤ˆà¥¤ यहाठकालकà¥à¤°à¤® में अनेकानेक गगनचà¥à¤®à¥à¤¬à¥€ à¤à¤µà¥à¤¯ मनà¥à¤¦à¤¿à¤°à¥‹à¤‚ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हà¥à¤†à¥¤ इनमें से कà¥à¤› तो समय के साथ नषà¥à¤Ÿ हो गये और कà¥à¤› को विधरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने नषà¥à¤Ÿ कर दिया।Â
कटरा केशवदेव-सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£-चबूतरा ही à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ की दिवà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤Ÿà¥à¤¯-सà¥à¤¥à¤²à¥€ कहा जाता है। मथà¥à¤°à¤¾ के राजा कंस के जिस कारागार में वसà¥à¤¦à¥‡à¤µ-देवकीननà¥à¤¦à¤¨ शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ ने जनà¥à¤®-गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया था, वह कारागार आज कटरा केशवदेव के नाम से विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ है और ‘इस कटरा केशवदेव के मधà¥à¤¯ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ चबूतरे के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर ही कंस का वह बनà¥à¤¦à¥€à¤—ृह था, जहाठअपनी बहन देवकी और अपने बहनोई वसà¥à¤¦à¥‡à¤µ को कंस ने कैद कर रखा था।
(जानकारी आà¤à¤¾à¤°Â : http://hi.brajdiscovery.org)
मंदिर में हम लोगों को बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ तरह से दरà¥à¤¶à¤¨ हà¥à¤, कंस के कारागार के उस कमरे जहाठशà¥à¤°à¥€Â कृषà¥à¤£ का जनà¥à¤® हà¥à¤† था, के दरà¥à¤¶à¤¨ करके तो बस मन पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हो गया। यह कमरा आज à¤à¥€ जेल की कोठडी के सामान ही लगता है। दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के बाद मंदिर परिसर में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤Â अमानती सामान गृह से हमने हमारा सामान लिया और बाहर निकल आये। बाहर आकर हमने मंदिर के सामने सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ दà¥à¤•ान से मथà¥à¤°à¤¾ के पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦Â पेड़े घर ले जाने के लिठख़रीदे। अब चूà¤à¤•ि खाने का समय à¤à¥€ हो चूका था और हम सà¤à¥€ को जोरों की à¤à¥‚ख à¤à¥€ लग रही थी अतः à¤à¤• अचà¥à¤›à¤¾ सा à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ देखकर हम सà¤à¥€ ने खाना खाया।
खाना खाने के बाद अब हमारा विचार था गोकà¥à¤² दरà¥à¤¶à¤¨ का, सो हमने गोकà¥à¤² जाने के लिठदो ऑटो रिकà¥à¤¶à¥‡ तय किये कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अब रितेश जी का परिवार मिलाकर हम गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ लोग हो गठथे। उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶Â के ऑटो रिकà¥à¤¶à¤¾ में à¤à¤• खूबी होती है की आगे डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° के आजू बाजू दोनों तरफ à¤à¤• à¤à¤• सीट लगी होती है अतः à¤à¤• ऑटो में आसानी से पांच से छः लोग समां जाते हैं जबकि हमारे यहाठà¤à¤® पी में ऑटो रिकà¥à¤¶à¤¾ में ये सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ नहीं होती अतः तीन ही लोग बैठपाते हैं।
तो इस तरह से हम सब गोकà¥à¤² के लिठरवाना हो गà¤à¥¤ करीब पौन घंटे में हम गोकà¥à¤² पहà¥à¤à¤š गà¤, यहाठपहà¥à¤à¤š कर ऑटो वाले ने हमें à¤à¤• गाइड करने की सलाह दी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यहाठकी कà¥à¤žà¥à¤œ गलियों के रासà¥à¤¤à¥‡ बहरी परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों को नहीं मालà¥à¤® होते तथा मंदिरों की जानकारी à¤à¥€ नहीं होती अतः यहाठगाइड करना à¤à¤• फायदे का सौदा होता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इनका चारà¥à¤œ à¤à¥€ बहà¥à¤¤ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ नहीं होता है, 100 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में अगर आपके साथ कोई दो घंटे रहकर आपको सारे मंदिर घà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥‡ और जानकारी à¤à¥€ दे तो कà¥à¤¯à¤¾ बà¥à¤°à¤¾ है?
सबसे पहले हम उस कदमà¥à¤¬ के पेड़ के करीब पहà¥à¤‚चे जिस पर बैठकर कनà¥à¤¹à¥ˆà¤¯à¤¾ बांसà¥à¤°à¥€ बजाया करते थे, और उसके बाद हम ननà¥à¤¦ महल पहà¥à¤‚चे जहाठà¤à¤—वान कृषà¥à¤£ पले बढे थे। इसी गोकà¥à¤² की गलियों में à¤à¤—वान कृषà¥à¤£ का बचपन बीता था। सचमà¥à¤š यहाठबहà¥à¤¤ सारी  छोटी छोटी गलियां देखने को मिली। इन गलियों को देखकर मà¥à¤à¥‡ अनायास ही किसी हिंदी फिलà¥à¤® का वो गाना याद आ गया ” गोकà¥à¤² की गलियों का गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾, नटखट बड़ा नंदलाला”
ननà¥à¤¦ महल में हमने à¤à¤—वान के छठी पूजन का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ देखा à¤à¤µà¤‚ वह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ à¤à¥€ देखा जहाठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने घà¥à¤Ÿà¤¨à¥‹à¤‚ के बल चलना सिखा था। गोकà¥à¤² में à¤à¤• संसà¥à¤¥à¤¾ है जो विधवा सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के à¤à¤°à¤£ पोषण तथा रोज़गार के लिठकारà¥à¤¯ करती है, यहाठबहà¥à¤¤ सारी विधवा सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ à¤à¤—वानॠका à¤à¤œà¤¨ कीरà¥à¤¤à¤¨ करती हैं तथा यह संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ उनकी आधारà¤à¥‚त आवशà¥à¤¯à¤•ताओं की पूरà¥à¤¤à¤¿ करती है। गोकà¥à¤² में बनà¥à¤¦à¤° बहà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¤¤ में पाà¤Â जाते हैं तथा उनसे सावधान रहने की सखà¥à¤¤ आवशà¥à¤¯à¤•ता होती है वरà¥à¤¨à¤¾ वे आपके हाथ का सामन छीन कर à¤à¤¾à¤— जाते हैं। यहाठके बंदरों को मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के चशà¥à¤®à¥‹à¤‚ से बहà¥à¤¤ लगाव है, वे आपके पहने हà¥à¤ चशà¥à¤®à¥‡ को à¤à¥€ छीन कर à¤à¤¾à¤— सकते हैं।
गोकà¥à¤²Â :
यह सà¥à¤¥à¤²Â मथà¥à¤°à¤¾Â से 15 किमी की दूरी पर यमà¥à¤¨à¤¾Â के पार सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। यह वैषà¥à¤£à¤µ तीरà¥à¤¥ है। यथारà¥à¤¥Â महावन और गोकà¥à¤² à¤à¤• ही है। ननà¥à¤¦Â बाबा अपने परिजनों को लेकर ननà¥à¤¦à¤—ाà¤à¤µÂ से महावन में बस गये। गो, गोप,गोपी आदि का समूह वास करने के कारण महावन को ही गोकà¥à¤² कहा गया है। ननà¥à¤¦à¤¬à¤¾à¤¬à¤¾ के समय गोकà¥à¤² नाम का कोई पृथकॠरूप में गाà¤à¤µ या नगर नहीं था। यथारà¥à¤¥ में यह गोकà¥à¤² आधà¥à¤¨à¤¿à¤• बसà¥à¤¤à¥€ है। यहाठपर ननà¥à¤¦à¤¬à¤¾à¤¬à¤¾ की गौशाला थी। विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ किया जाता है कि à¤à¤—वान कृषà¥à¤£Â ने यहाठकी गलियों में अपने बाल सखाओं तथा बलदाऊ के साथ खेला करते थे तथा गाà¤à¤µ से लगे वनों में गौà¤à¤ चराया करते थे।

वह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ जहाठशà¥à¤°à¥€ बाल कृषà¥à¤£ ने पूतना राकà¥à¤·à¤¸à¥€ का वध किया था
यह बà¥à¤°à¤œ का à¤à¤• बहà¥à¤¤ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ सà¥à¤¥à¤² है। यहीं पर रोहिणी ने बलराम को जनà¥à¤® दिया था। बलराम देवकी के सातवें गरà¥à¤ में थे जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ योगमाया ने आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करके रोहिणी के गरà¥à¤ में डाल दिया था। मथà¥à¤°à¤¾ में कृषà¥à¤£ के जनà¥à¤® के बाद कंस के सà¤à¥€ सैनिकों को नींद आ गयी और वासà¥à¤¦à¥‡à¤µÂ की बेड़ियाठखà¥à¤² गयी थीं। तब वासà¥à¤¦à¥‡à¤µ कृषà¥à¤£ को गोकà¥à¤² में ननà¥à¤¦à¤°à¤¾à¤¯ के यहाठछोड़ आये थे। ननà¥à¤¦à¤°à¤¾à¤¯ जी के घर लाला का जनà¥à¤® हà¥à¤† है, धीरे-धीरे यह बात गोकà¥à¤² में फैल गयी। सà¤à¥€ गोपगण, गोपियाà¤, गोकà¥à¤²à¤µà¤¾à¤¸à¥€ खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾à¤ मनाने लगे। सà¤à¥€ घर, गलियाठचौक आदि सजाये जाने लगे और बधाइयाठगायी जाने लगीं। कृषà¥à¤£ और बलराम का पालन पोषण यही हà¥à¤† और दोनों अपनी लीलाओं से सà¤à¥€ का मन मोहते रहे।
घà¥à¤Ÿà¤¨à¥‹à¤‚ के बल चलते हà¥à¤ दोनों à¤à¤¾à¤ˆ को देखना गोकà¥à¤² वासियों को सà¥à¤– देता था, वहीं माखन चà¥à¤°à¤¾à¤•र कृषà¥à¤£ बà¥à¤°à¤œ की गोपिकाओं के दà¥à¤–ों को हर लेते थे। गोपियाठकृषà¥à¤£ जी को छाछ और माखन का लालच देकर नचाती थीं तो कृषà¥à¤£ जी बांसà¥à¤°à¥€Â की धà¥à¤¨ से सà¤à¥€ को मनà¥à¤¤à¥à¤° मà¥à¤—à¥à¤§ कर देते थे। कृषà¥à¤£ ने गोकà¥à¤² में रहते हà¥à¤Â पूतना, शकटासà¥à¤°, तृणावरà¥à¤¤Â आदि असà¥à¤°à¥‹à¤‚ को मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया।

ननà¥à¤¦ महल के मंदिर के गरà¥à¤à¤—ृह में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ कृषà¥à¤£ बलराम की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤
गोकà¥à¤² में दो तीन घंटे बिताने के बाद शाम तक हम लोग वापस मथà¥à¤°à¤¾ आ गà¤à¥¤ रितेश जी à¤à¤µà¤‚ à¤à¤µà¤‚ उनका परिवार हमारे साथ ही हमारे होटल तक à¤à¥€ आये ताकि हम लोग कà¥à¤› वक़à¥à¤¤ और साथ में बिता सकें। रितेश जी हमारे लिठउपहार सà¥à¤µà¤°à¥à¤ªÂ आगरे के पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦ पेठे के दो पैकेट à¤à¥€ लेकर लाठथे जो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमें सपà¥à¤°à¥‡à¤® à¤à¥‡à¤‚ट किये। यह गिफà¥à¤Ÿ पाकर हमें बहà¥à¤¤ ख़à¥à¤¶à¥€ हà¥à¤ˆ, केशर फà¥à¤²à¥‡à¤µà¤° वाला पेठा सचमà¥à¤š बहà¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤ŸÂ था।
कà¥à¤› देर हमारे साथ और बिताने के बाद वे हमें अपने घर आगरा आने का निमंतà¥à¤°à¤£ देकर बस से आगरा के लिठनिकल गà¤à¥¤ इस तरह यह दिन मथà¥à¤°à¤¾ तथा गोकà¥à¤² घà¥à¤®à¤¨à¥‡ में बिता और अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ हमें वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨Â के लिठनिकलना था।
अगले दिन वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨Â à¤à¥à¤°à¤®à¤£Â के लिठआपको अगले संडे (09′ December) तक इंतज़ार करना होगा  ……………………













जय हो मुरली वाले की! बहुत सुन्दर प्रस्तुति, मुकेश जी…फोटोज भी खुबसूरत हैं खासतौर पर यमुना के घाट का….और कदंब के वृक्ष की फोटो देखकर तो सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य पंक्तियाँ “यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे, मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे” बरसों बाद स्वतः ही स्मृति पटल पर लौट आयी, इसके लिए शुक्रिया…
दो घुमक्कड़ परिवारों का आपस में मिलना और साथ घुमक्कड़ी का आनंद लेना घुमक्कड़.कॉम को सार्थक बनाता है…और हाँ आपकी यात्रा नवम्बर में थी या अक्तूबर में…आपकी यात्रा की तारीख कहती है नवम्बर और आपकी ट्रेन कहती है अक्तूबर…कृपया इसे ठीक कर लें…:)…
विपिन जी,
जय श्री कृष्ण.
इतने सुन्दर शब्दों के साथ उत्साहवर्धन करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। यह यात्रा अक्टूबर में ही की गई थी, गलती से नवम्बर टाइप हो गया। गलती की ओर ध्यान आकर्षित करवाने के लिए धन्यवाद। घुमक्कड़ के द्वारा हमारे अलावा अब तक कई और सदस्य भी एक दुसरे से मिल चुके हैं, आपने बिलकुल सही कहा यही बात घुमक्कड़ को सार्थक बनती है।
mukesh ji kya aap bata sakte hai apne post me picture kaise upload karte hai..i m new user
हेमंत जी,
घुमक्कड़ पर अपनी पोस्ट प्रकाशित करवाने के लिए शुरुआत की कुछ पोस्ट्स आपको घुमक्कड़ के सम्पादक मंडल (Editorial Board) की सहायता से प्रकाशित करवानी होंगी, तथा साथ ही साथ आपको एक बूट कैंप कोर्स करना होगा जो की घुमक्कड़ के संपादकों के द्वारा तीन किश्तों में आपको भेजा जाएगा। जब आप बूट केम्प सफलतापूर्वक पूरा कर लेंगे तभी आप स्वयं अपनी पोस्ट घुमक्कड़ के डेश बोर्ड पर अपलोड तथा शेड्यूल कर पायेंगे। अपनी पहली पोस्ट तैयार तथा शेड्यूल करवाने के लिए अपना लेख तथा फोटोग्राफ्स इस आईडी पर मेल कर दीजिये – nandan@ghumakkar.com
धन्यवाद।
मुकेश जी
नमस्कार,चुकि आपकी इस यात्रा के बारे में मुझे पहले से जानकारी थी, इसलिए आपके इस लेख का बहुत दिनों से इंतजार था ,वो इंतजार आज जा के खत्म हुआ, आपके लेख की में क्या तारीफ़ करू वो हर बार की तरह जानकारी से पूर्ण है ,तस्वीर सचमुच बहुत खुबसूरत है, जो खुद एक कहानी कहती है , राकेश जी और आपने यात्रा का पूरा आनंद लिया है,
आपके अगले लेख के इन्तजार में
किशन (यात्रा द यादे )
किशन जी,
आपकी प्रेमभरी चिट्ठी पढ़कर मन को बड़ी प्रसन्नता हुई। आपने पोस्ट को पढ़ा तथा पसंद किया उसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। अगली पोस्ट अगले रविवार।
शु्क्रिया कृष्ण कन्हैया की इस जन्मभूमि से हमें रूबरू कराने के लिए।
मनीष जी,
आपकी इस मनभावन प्रतिक्रिया के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद।
Mukesh jee… Bahut he badiya varnan kiya hai apne… photographs ekdum Braj bhoomee le jate hain hame…
Agle post ka intzaar ho raha hi..
देसी घुमंतू जी,
आपकी इस प्यारी सी टिप्पणी के लिए आपको आभार।
mukesh ji, aapki yatra ka lekh bhut hi achcha lga .gokul ki photo bhut achchi par thori km thi Aapki lekhni bhut achchi hai. Aapki Agli post ka intjar rhega.
एस.आर. होलकर जी,
आपकी टिप्पणीयां हमेशा से ही मेरे लिए उत्साहवर्धक तथा मार्गदर्शक रही हैं। पोस्ट की सराहना के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। आशा है आप अपनी प्रतिक्रियाओं के माध्यम से इसी तरह मेरा उत्साहवर्धन भविष्य में भी करते रहेंगे।
Mukesh Jee, a very good comprehensive description of Mathura and its temples. I spend so much time in Delhi but never been to Mathura and never before found any other guide that tell more.
So your’s is a complete travel guide.
Thanks and keep travelling.
Praveen ji,
Thanks a lot for your encouraging and motivating comment. I am also a big fan of your writings on ghumakkar.
Thanks.
Thanks, Mukesh, for taking us through the magical places which are associated with the legend of Lord Krishna like Mathura and Gokul. Sad that there is so much of needless security there. It must be highly disturbing for devotees to undergo such an ordeal. Great to know that you had the pleasure of Ritesh Gupta’s company during this trip.
DL,
Thank you very much for your lovely comment. DL’s comment means mark of approval and acceptance.
Once again Two Ghumakkars together………………….
Nice and detailed description Mukesh, of each and every part of your day with Ritesh . How was Yamuna looking as far as cleanliness was concerned .Was it polluted ?
Good to know places in Mathura and Gokul This post will help me in my trip.
No Vishal not two ghumakkars together, Its three ghumakkars together, Don’t forget Kavita ji.
Thank you very much for your sweet comment. Yes it was a great experience to be in company of Ritesh. Yamuna was good at Mathura, Clean and clear water.
Thanks.
मुकेश भाई आपकी इस श्रृंखला में हम साथी बन चलते रहेंगे। कन्हैया के हर ठिकाने का दर्शन भी इसी बहाने हो जायेगा।
संदीप भाई,
हमारी यात्रा में आप हमारे साथ हैं ये आपकी मोहब्बत का असर है।
जो कुछ भी लिख रहे हैं घुमक्कड़ पर आपकी सोहबत का असर है।
मुकेश जी,
बहुत अच्छा यात्रा विर्तान्त है , फोटो भी बहुत सुंदर हैं , धन्यावाद
सुरिंदर जी,
इज्ज़त अफजाई का शुक्रिया, इस नाचीज़ को आपने काबिल तो समझा।
what is Author Bootcamp ? and how can i insert pictures in my post? i am new on ghumakkar.com
pls help me
Hemant,
Please see my reply on your first comment and you’ll find answer to your question. Initially You are not authorized to upload the pictures in ghumakkar dashboard, You need to get your initial posts published through ghumakkar editorial board and simultaneously complete our author bootcamp. Please contact nandan@ghumakkar.com for this.
Thanks.
मुकेश जी….
हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की…!
मथुरा के श्री कृष्ण भगवान से हमारे हृदय में बसते हैं और आपने बहुत ही खूबसूरती से मथुरा और गोकुल नगरी बखान बहुत ही सुन्दर शब्दों से किया हैं ….जो काफी सराहनीय और अतुलनीय है | बृज प्रदेश में रहने के कारण मुझे यहाँ के बारे में पढ़ना काफी अच्छा लगता हैं | काफी दिनों से इस लेख की प्रतीक्षा थी….आज वो प्रतीक्षा खत्म हुई….और इस लेख को बड़े चाव से पढ़ा | खूबसूरत फोटो देखकर आपके साथ हुई मुलाकात और मथुरा/गोकुल की यात्रा का फिर एक एक पल स्मरण हो आया | नाव पर बच्चो वाला फोटो काफी अच्छा लगा |
मुकेश जी ! मेरा आप से मिलना भी मेरे लिए एक अदभुत अनुभव ही था , जिसे आजतक हम केवल अंतर्जाल के माध्यम से ही जानते थे | मुझे भी आप और आपके परिवार से मिलकर बहुत प्रसन्नता हुई थी और मिलने बाद हमे बिल्कुल भी नहीं लगा था, हम और आप पहली बार मिले हैं | लेख में आपने काफी कुछ मेरे बारे में लिख दिया, उसके लिए मैं आपका हृदय से शुक्र गुजार हूँ |
घुमक्कड़ी जिंदाबाद….वन्देमातरम !
सधन्यवाद ….अगले लेख की प्रतीक्षा में …..रीतेश …आगरा से …!
रितेश जी,
इस विस्तृत टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। पोस्ट को चाव से पढने के लिए एक बार पुनः धन्यवाद। और मैंने आपके बारे में जो भी और जितना भी लिखा है, आप उसके हक़दार हैं।
धन्यवाद।
नमस्ते मुकेश जी,
सुन्दर व सचित्र वर्णन के साथ मथुरा दर्शन करवाने के लिए धन्यवाद। आपकी यह पोस्ट निश्चित ही मेरा मार्गदर्शन करेगी।
मुझे पहचाना या नहीं?
अंकित,
आपको पोस्ट पसंद आई, मेरे लिए बड़ी ख़ुशी की बात है, सराहना के लिए हार्दिक आभार। और आपने ये पूछने की जुर्रत कैसे की की हमने आपको पहचाना या नहीं। आप भी कोई भूलने की चीज़ हो? हाँ अंकित आपने अपनी पोस्ट पर काम शुरू किया की नहीं? और वैष्णो देवी टूर की प्लानिंग कहाँ तक पहुंची है?
मुकेश जी,
गुस्ताखी के लिए क्षमा। :-)
पोस्ट पर काम चालू है पर रफ्तार थोड़ी धीमी है। वैष्णोदेवी के लिए 1 फ़रवरी का रिजर्वेशन हो चुका है। विशाल जी से बात करके काफी अच्छा लगा और उन्होंने एक नई जगह बताई है “शिवखोड़ी”, उसे भी यात्रा में सम्मिलित कर लिया है और वापसी में अमृतसर भी जुड़ गया है।
प्रवीण गुप्ता जी का नंबर ले लिया गया है और कुछ दिनों में उन्हें भी परेशान किया जाएगा। :-)
Dear Mukesh,
Nice post about Braj Bhoomi.
Though we are from Mathura, I have not seen any of these places.
Thanks for the trip.
Dear Nirdesh ji,
Thank you very much for your kind words , Its great to read that you are from Mathura.
Thanks.
प्रिय मुकेश,
आपकी सुन्दर पोस्ट और फोटो देख कर मुझे 1984 में अपनी बरबादी की, ओह सॉरी, मेरा मतलब था, अपनी शादी की और शादी के बाद आगरा – मथुरा की यादें ताज़ा हो गईं !
अयोध्या, मथुरा और काशी विश्वनाथ – देश के बहुसंख्य समाज के लिये अति पूज्य इन तीनों ही पावन तीर्थस्थलों से जुड़ी अप्रतिम आस्था को आहत करने के राजनीतिक उद्देश्य से विदेशी आक्रान्ताओं ने यहां आक्रमण किये और अपने ’पूजा स्थल’ जबरदस्ती बना डाले थे । जैसा कि प्रत्येक स्वाभिमानी समाज करता है, हमारे समाज में भी इन तीनों पावन तीर्थों को वापस पाने के लिये आन्दोलन चल रहा है पर हमारे देश में वोट बैंक की राजनीति के चलते कुछ तथाकथित सेकुलर नेता अल्पसंख्यक समुदाय को भड़काते रहते हैं और अनावश्यक तनाव को जन्म दे रहे हैं ! वास्तव में यदि इन तीनों तीर्थ स्थलों की महत्ता को देखते हुए और विश्व भर के हिन्दू समाज की भावनाओं को सम्मान देने के लिये इनको मुक्त कर दिया जाये और यहां राजनीतिक कारणों के खड़े किये गये structures को हटा लिया जाये तो हिन्दू – मुस्लिम सामंजस्य और आपसी प्रेम का एक नया अध्याय आरंभ हो सकता है ! पर हमारे सेकुलर नेताओं की दुकान फिर कैसे चलेगी जिनकी दुकानदारी हिन्दू और मुसलमानों के मध्य द्वेष भावना को भड़का कर ही चलती है ?
अतः ये सिक्योरिटी जो पावन कृष्ण जन्मभूमि स्थल पर आपने देखी, वह अकारण नहीं है !
सुशान्त सिंहल
सुशांत जी,
विस्तृत टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार। आपके इतने अच्छे तथा सुलझे विचार जानकर बड़ा हर्ष हुआ। हाई सिक्यूरिटी वाले इन तीनों स्थानों के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए धन्यवाद।
एक बात समझ नहीं आई ! जब दिल्ली में मथुरा इतनी भयानक रूप से प्रदूषित है कि वहां मछलियों का जीवित रहना असंभव हो चला है तो मथुरा और आगरा पहुंच कर वही यमुना साफ और सुन्दर कैसे होगई?
दिल्ली का तो हमें नहीं मालूम, लेकिन मथुरा में जो यमुना हमें दिखाई दी वह तो साफ़ सुथरी ही थी …………….
मुकेश जी , मथुरा के ऊपर एक बढ़िया लेख। सभी गणों ने उचित प्रशंसा की है । एक दो शिकायत हैं , आपके समक्ष रख रहा हूँ । कृपया अन्यथा न लें । मेरे हिसाब से आगाज़ को थोडा कम किया जा सकता था और जल्दी मथुरा स्टेशन पहुँचने से लेख और कसा हुआ लगता । हालांकि मुझे शुरू में ऐसा लगा की कहीं लेख ट्रेन ही में तो ख़तम नहीं हो जाएगा पर ऐसा नहीं हुआ , इसलिए लेख में मसाला भरपूर है पर शायद शुरूआती पक्ष में थोडा काट-छांट की गुंजाईश है । दूसरी शिकायत ये है की आपने होटल के बारे में कम बताया और कोई फोटो नहीं लगाया ।
ऐसा लगता है की सुरक्षा विभाग ने आपको थोडा परेशान किया । शायद ये पश्चिमी उत्तर प्रदेश का गुण ज्यादा है, यहाँ इतने वर्षों से रहने के बाद ऐसा लगता है मुझे । :-) सभी मंदिरों की स्पष्ट तस्वीरे और यमुना जी पर नाव का सफ़र मनोहारी है । धन्यवाद ।
@ सुशांत जी – आमिर खान के प्रोग्राम “सत्येमेव जयते” के अनुसार मथुरा में यमुना को नदी कहना ग़लत है क्योंके उसमे जीवन नहीं हैं जितना के पारिभाषिक नदी में होना चाहिए ।
नंदन,
इस प्यारी सी टिप्पणी के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। आपके सुझावों को अन्यथा लेने का सवाल ही नहीं उठता, आपकी सलाह सर आँखों पर …………… अगली पोस्ट में सुधार कर लिया जाएगा। आपने शायद ध्यान नहीं दिया एक फोटो है गेस्ट हाउस का, इस फोटो में गेस्ट हाउस का नाम पता तथा फ़ोन नंबर भी लिखा हुआ है।
धन्यवाद।
बहोत ही सुंदर और रोचक यात्रा वर्णन किया है आपने, मैं भी २००९ में मथुरा गया था पर यहाँ पर मैं सिर्फ़ वृंदावन गया और बाद में आगर जाकर ताजमहल देख सका. वैसे यदि मथुरा जाया जाए और सभी दर्शनीय स्थल को देखना हो तो इसके के लिये मेरे ख्याल से दस दिन तो होना ही चाहिये.
कई दिनों बाद आपका लेख पढ़ा इसके लिये क्षमाप्रार्थी. मेरे ख्याल से अब आपके कई पोस्ट हो गये होंगे और मुझे अब एक रोचक यात्रा वर्णन की किताब पढ़ने को मिलेगी :-)
आपके अगले लेख के इंतजार में……….
आशीष मिश्रा
आशीष,
आपको हमारी ओर से शुभ आशीष। आपकी इस सुन्दर सी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। किताब का तो नहीं मालुम, लेकिन घुमक्कड़ पर यह संग्रह अवश्य फले फूलेगा ……………
अच्छी जानकारी लगी…निवेदन है इसे जारी रख्खें…..