रामतीरथ
तीन – साà¥à¥‡ तीन बजे पà¥à¤¨à¤ƒ आंख खà¥à¤²à¥€à¤‚ तो सोचा कि बाज़ार में घूमा जाये। हॉल बाज़ार की दिशा में पैदल ही चल पड़ा। मà¥à¤–à¥à¤¯ सड़क न पकड़ कर à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ गली में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गया जो कपड़े का थोक बाज़ार था। घूमते – घूमते जब थक गया तो à¤à¤• टैंपो रोक कर पूछा कि किधर जा रहा है। वह सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ जाने वाला था तो सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के लिये बोलकर उसमें ही बैठगया। होटल से निकला तो कà¥à¤› विशेष लकà¥à¤·à¥à¤¯ नहीं था, पर बाज़ार में घूमते – घूमते मन बन गया था कि रामतीरथ चलते हैं।
रामतीरथ के बारे में पà¥à¤¾ था कि यह सà¥à¤¥à¤² अमृतसर से लगà¤à¤— 11 किमी दूरी पर है।  पà¥à¤°à¤à¥ शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ परितà¥à¤¯à¤¾à¤— कर दिये जाने के बाद माता सीता यहां पर ऋषि वालà¥à¤®à¥€à¤•ि के आशà¥à¤°à¤® में रही थीं और लव-कà¥à¤¶ को जनà¥à¤® दिया था। दोनों बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की शिकà¥à¤·à¤¾-दीकà¥à¤·à¤¾ ऋषि वालà¥à¤®à¥€à¤•ि की ही देख-रेख में समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ थी।
यह à¤à¥€ सà¥à¤¨à¤¾ था कि यहां संतानपà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ की इचà¥à¤›à¤¾ लेकर महिलाà¤à¤‚ आती हैं और मनà¥à¤¨à¤¤ मांगती हैं जो पूरी à¤à¥€ होती है। मà¥à¤à¥‡ à¤à¤¸à¥€ कोई मनà¥à¤¨à¤¤ नहीं मांगनी थी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि पà¥à¤°à¤à¥ शà¥à¤°à¥€ राम के आशीष सà¥à¤µà¤°à¥‚प दो पà¥à¤¤à¥à¤° हमें पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हैं।  (मनà¥à¤¨à¤¤ मांगता à¤à¥€ तो शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी की ओर से तो सहयोग मिलने की कोई आशा थी नहीं ! )
रामतीरथ जाने के लिये अमृतसर रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से हर पांच – सात मिनट में लोकल टाइप की बस मिल जाती है।  लगà¤à¤— 10 मिनट की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ के बाद मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ रामतीरथ की ओर जाने वाली बस मिल गई। अमृतसर में आकर जो à¤à¤• विशेष सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ मà¥à¤à¥‡ अनà¥à¤à¤µ हà¥à¤ˆ वह ये कि मैने 1975-76 में जो गà¥à¤°à¥à¤®à¥à¤–ी लिखनी-पà¥à¤¨à¥€ सीखी थी, वह अब बहà¥à¤¤ काम आई। उन दिनों मैने और पिताजी ने à¤à¤• साथ गà¥à¤°à¥à¤®à¥à¤–ी सीख ली थी और नये – नये शौक के कारण आपस में थोड़ा-बहà¥à¤¤ संदेशों का आदान-पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ कर लिया करते थे।
यहां अमृतसर में आ कर हर जगह गà¥à¤°à¥à¤®à¥à¤–ी लिपि में ही संकेतक लगे हà¥à¤ दिखाई दिये। पर मैं उन सबका अपने लायक अरà¥à¤¥ निकाल ही लेता था। रामतीरथ की बस आई तो उस पर à¤à¥€ जो गà¥à¤°à¥à¤®à¥à¤–ी लिपि में रामतीरथ का बोरà¥à¤¡ लगा था, उसे समठकर उसमें जा बैठा।  “जा बैठा†कहना तो अतिशà¥à¤¯à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤¿ है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि बैठने के लिये सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तो था ही नहीं। महिलाओं को तो हर कोई अपने पास बैठाने को तैयार था, पर इस पà¥à¤°à¥à¤· के लिये दस मिनट बाद बोनट पर जगह मिली। बोनट पर बैठे – बैठे डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° महोदय से बतियाना शà¥à¤°à¥ कर दिया और जब उसने बताया कि रामतीरथ आगया है तो मैं वहीं सड़क पर उतर गया।

अमृतसर रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से रामतीरथ हेतॠबसें मिलती हैं।
आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• सरोवर

रामतीरथ हेतॠइस गेट से विपरीत दिशा में जाना होता है!
जिस जगह में उतरा था, वहीं बाईं ओर à¤à¤• गेट बना हà¥à¤† देख कर मà¥à¤à¥‡ लगा कि मंदिर के लिये यही पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° होगा। पर à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ ने बताया कि मैं उलà¥à¤Ÿà¥€ दिशा में जा रहा हूं, रामतीरथ मंदिर तो दाईं ओर जाने वाली सड़क पर कà¥à¤› आगे जाकर है। वहां जाने के लिये वाहन कोई नहीं था पर बताया गया कि बिलà¥à¤•à¥à¤² पास में ही है, पैदल ही जाया जा सकता है। बलà¥à¤•ि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इशारा करके हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी की à¤à¤• विशालकाय मूरà¥à¤¤à¤¿ की ओर इशारा किया जो मकानों और पेड़ों के पीछे से à¤à¤¾à¤‚क रही थी और कहा कि मंदिर वही है।
मूरà¥à¤¤à¤¿ का मà¥à¤‚ह दूसरी दिशा में था अतः यह मूरà¥à¤¤à¤¿ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी की है, यह à¤à¥€ वहां पहà¥à¤‚चने के बाद ही जà¥à¤žà¤¾à¤¤ हà¥à¤†à¥¤Â खरामा- खरामा चलते हà¥à¤ मैं मंदिर तक पहà¥à¤‚चा पर मंदिर से दो ही कदम आगे à¤à¤• विशालकाय सरोवर दिखाई दिया जो सूखा हà¥à¤† था। अचà¥à¤›à¤¾ गहरा सरोवर था, जिसमें शायद दस सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ बनी हà¥à¤ˆ थीं पर पानी à¤à¤• बूंद à¤à¥€ नहीं था। उतना विशालकाय सरोवर मैने शायद अपने जीवन में पहले कà¤à¥€ नहीं देखा होगा। सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर के अमृत सरोवर से à¤à¥€ तीन – चार गà¥à¤¨à¤¾ बड़ा सरोवर !
सरोवर के उस पार बसà¥à¤¤à¥€ में जाने वाले लोग शॉरà¥à¤Ÿ कट अपनाते हà¥à¤ वे दस सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ उतर कर पगडंडी का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— कर उस पार जाते हैं, वापिस दस सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ चॠकर उधर की बसà¥à¤¤à¥€ में पहà¥à¤‚च जाते हैं। मà¥à¤à¥‡ लगा कि जब तक सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ नहीं हà¥à¤† है, इधर – उधर देख लूं, कà¥à¤› फोटो खींच लूं। मंदिर में लौटते समय आऊंगा। सरोवर के दोनों दिशाओं में आमने सामने के à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ पर हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी की लगà¤à¤— 250 फीट की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हैं ।

रामतीरथ चौराहे से मंदिर/सरोवर तक लगà¤à¤— १ किमी लंबी सड़क

इस सूखे सरोवर के उस पार à¤à¥€ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी की à¤à¤• विशालकाय मूरà¥à¤¤à¤¿ !
सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ उतर कर उस सूखे सरोवर को पगडंडी के रासà¥à¤¤à¥‡ पार करके मैं सामने वाली उस बसà¥à¤¤à¥€ में पहà¥à¤‚चा तो लगने लगा कि किसी दूसरी ही दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में पहà¥à¤‚च गया हूं। यह कहना जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सही लगता है कि वह सरोवर à¤à¤• टाइम मशीन था, जिसमें पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया तो कलयà¥à¤— था पर जब उस पार जाकर मशीन से बाहर निकला तो तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾à¤¯à¥à¤— में आ गया था। सीता मैया की à¤à¥‹à¤‚पड़ी जिसमें वह रहती थीं, रसोई जिसमें वह खाना बनाया करती होंगी, वह सरोवर जिसमें सà¥à¤¨à¤¾à¤¨-धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ चलता होगा, वह कà¥à¤†à¤‚ जो सीता मैया के लिये उनके अननà¥à¤¯ सेवक हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी ने खोद कर दिया था, सब कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था कि बस! शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ कर पाना मेरे लिये कठिन हो रहा है।
पराकाषà¥à¤ ा यह है कि सीता मैया की रसोई के पास सरोवर की सीà¥à¥€ पर à¤à¤• à¤à¥à¤®à¤•ा पड़ा दिखाई दिया तो मन में à¤à¤•दम खà¥à¤¯à¤¾à¤² आया कि शायद ये à¤à¥à¤®à¤•ा उस समय से यहीं पड़ा हà¥à¤† है जब रावण दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ हरण कर लेने के बाद वह आकाश मारà¥à¤— से लंका ले जाये जाते समय रासà¥à¤¤à¥‡ में यह सोच कर अपने आà¤à¥‚षण गिरा रही थीं कि शायद इनको देख कर किसी को उनका अता-पता मिल सके ।

à¤à¤• तिहाई सरोवर सूखा और दो तिहाई पानी से लबालब à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† !

सीता मैया के लिये हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ खोदा गया कà¥à¤†à¤‚ ।
à¤à¤• बड़ी विचितà¥à¤° चीज़ जो वहां दिखाई दी।   जिस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर पगडंडी थी, सरोवर का वह कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° सूखा हà¥à¤† था, पर इस ओर आकर दिखाई दिया कि केवल आधा सरोवर ही सूखा हà¥à¤† है। सरोवर की आधी लंबाई के बाद à¤à¤• बांध जैसा कà¥à¤› बनाया हà¥à¤† है और उस बांध के बाद आधा सरोवर पानी से लबालब à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† है।
और आगे बà¥à¤¾ तो पता चला कि ये सरोवर वासà¥à¤¤à¤µ में अंगà¥à¤°à¥‡à¥›à¥€ के L आकार में है जिसकी à¤à¤• à¤à¥à¤œà¤¾ में पानी की कोई कमी नहीं है और दूसरी à¤à¥à¤œà¤¾ को à¤à¥€ बांध बना कर बराबर – बराबर दो हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ में बांट दिया गया है, आधा बिलà¥à¤•à¥à¤² सूखा और बाकी आधा पानी से लबालब à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤†à¥¤Â यहीं सरोवर के तट पर मà¥à¤à¥‡ à¤à¤• छोटा सा à¤à¤µà¤¨ दिखाई दिया जिसके बाहर दीवार पर चॉक से लिखा हà¥à¤† था कि वह à¤à¤—वान वालà¥à¤®à¥€à¤•ि का मंदिर है।
अनà¥à¤¦à¤° à¤à¤• बचà¥à¤šà¤¾ मौजूद था जो लव-कà¥à¤¶ की ही आयॠका रहा होगा पर उसने अपना नाम रजत बताया। उसने बड़े चाव से मà¥à¤à¥‡ दिखाया कि यहां बैठकर लव-कà¥à¤¶ पà¥à¤¤à¥‡ थे, यहां सीता मैया के पांव के निशान हैं। मà¥à¤à¥‡ लगता है कि इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के साथ जà¥à¥œà¥€ अनेकानेक किंवदंतियों को देखते हà¥à¤ वहां के लोगों ने à¤à¤¸à¥‡ अनेकानेक à¤à¤µà¤¨ बना लिये हैं। अब इनमें से authentic कौन सा है, कहना कठिन है। पर हां, जो सीता माता का कà¥à¤†à¤‚ वहां पर देखा, वह जरूर अपने आप में विशिषà¥à¤Ÿ लगा।
à¤à¤• डेॠघंटे वहां घूमते – फिरते, à¤à¥‹à¤‚पड़ियां देखते – देखते à¤à¤• परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• परिवार दिखाई दिया। उस गà¥à¤°à¥à¤ª की à¤à¤• महिला को मोबाइल पर बात करते देख कर सहसा à¤à¤Ÿà¤•ा लगा। मैं तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾à¤¯à¥à¤— से à¤à¤• à¤à¤Ÿà¤•े से वापस अपने कलियà¥à¤— में आ गया।  बस, फिर उसके बाद वापस पगडंडी के मारà¥à¤— से शà¥à¤·à¥à¤• सरोवर में से होते हà¥à¤ मैं उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर आया जहां मà¥à¤à¥‡ मंदिर दिखाया गया था। जैसे ही मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया, वहां लाइट चली गई। लाइट कब आयेगी, इसका कà¥à¤› à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ नहीं था, अंधेरा à¤à¥€ हो चà¥à¤•ा था अतः वापस बस पकड़ने के लिये हाइवे तक पैदल ही आया। कà¥à¤› ही देर में बस मिल गई जिसने मà¥à¤à¥‡ बस अडà¥à¤¡à¥‡ पर छोड़ दिया।

यहां पर लव-कà¥à¤¶ ने पà¥à¤°à¤à¥ शà¥à¤°à¥€ राम के अशà¥à¤µà¤®à¥‡à¤§ यजà¥à¤ž के घोड़े को बनà¥à¤¦à¥€ बना कर रखा था।

सीता मैया की कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ में जाने हेतॠमारà¥à¤—
बस अडà¥à¤¡à¥‡ से बाहर निकल कर पैदल आगे बà¥à¤¾ तो बाज़ार में लगà¤à¤— हर दà¥à¤•ान पर मोमबतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ जलती हà¥à¤ˆ देखीं जैसा कि दीवाली पर होता है। तà¤à¥€ आकाश में आतिशबाजी होती दिखाई दी। सहसा धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ आया कि आज गà¥à¤°à¥ रामदास जी का पà¥à¤°à¤•ाशपरà¥à¤µ है और यह सारी आतिशबाजी वहीं सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर परिसर में हो रही है। बस, फिर कà¥à¤¯à¤¾ था। लगà¤à¤— à¤à¤¾à¤—ते हà¥à¤ मैने सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर की ओर बà¥à¤¨à¥‡ की चेषà¥à¤Ÿà¤¾ की। पर मà¥à¤à¥‡ लग रहा था कि अà¤à¥€ सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर दूर है और पूरा अमृतसर उधर ही उमड़ा जा रहा है। à¤à¤• रिकà¥à¤¶à¤¾ रोक कर मैं पांच मिनट में सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर के घंटाघर वाले गेट के पास उतरा। (उसने à¤à¥€ तीस रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ मांगे थे जबकि बात बीस रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में तय हà¥à¤ˆ थी पर मेरे पास à¤à¤•बाजी करने के लिये समय नहीं था अतः तीस रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ ही दे दिये)।
जान बची और लाखों पाये
बेइंतहाशा à¤à¥€à¥œ देख कर मंदिर के à¤à¥€à¤¤à¤° जाने की हिमà¥à¤®à¤¤ नहीं हà¥à¤ˆà¥¤  अचानक वहीं संकरी सड़क पर यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का à¤à¤• रेला सा आया और बिना इचà¥à¤›à¤¾ के मैं धकेला जाने लगा। Stampade में फंस रहा हूं, यह अनà¥à¤à¤µ करते हà¥à¤ मैं किसी तरह से à¤à¥€à¥œ में से अपने को अलग करते हà¥à¤ सड़क के किनारे पहà¥à¤‚चा और पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ पूरà¥à¤µà¤• à¤à¤• चबूतरे पर खड़ा हो गया। शà¥à¤•à¥à¤° यही रहा कि वहां किसी à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के साथ किसी पà¥à¤°à¤•ार की कोई दà¥à¤°à¥à¤˜à¤Ÿà¤¨à¤¾ नहीं हà¥à¤ˆà¥¤
रेला आया और चला गया। आतिशबाजी समापà¥à¤¤ हो चà¥à¤•ी थी पर पूरा सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर परिसर लाखों बलà¥à¤¬ के पà¥à¤°à¤•ाश में जगमगा रहा था। सड़क पर खड़े होकर सिरà¥à¤« घंटाघर, पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° और वह कमरे दिखाई देते हैं जिनमें पà¥à¤°à¤¥à¤® तल पर मà¥à¤¯à¥‚à¤à¤¿à¤¯à¤® है। सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर व परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ पथ देखने के लिये कोई ऊंचा सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ चाहिये था। मन बहà¥à¤¤ बेचैन हà¥à¤†à¥¤ काश, मैं किसी तरह से इस दृशà¥à¤¯ को किसी ऊंचे à¤à¤µà¤¨ से देख सकूं और अपने कैमरे में सहेज सकूं । अपने होटल की टैरेस से à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया किनà¥à¤¤à¥ पूरा दृशà¥à¤¯ नज़र नहीं आ रहा था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि कà¥à¤› और à¤à¤µà¤¨ आगे अड़ गये थे। परेशान सा मैं इधर – उधर à¤à¤Ÿà¤•ने लगा। à¤à¤• चार-मंजिला शोरूम सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर के ठीक सामने उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ था। हद से हद मना ही तो कर देंगे, यह सोच कर मैं शोरूम में पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿ हà¥à¤†à¥¤ à¤à¤• सिकà¥à¤– यà¥à¤µà¤• दिखाई दिया तो पूछा कि कà¥à¤¯à¤¾ मैं दो-चार फोटो लेने के लिये उनकी छत पर जा सकता हूं?
उस यà¥à¤µà¤• ने अपने पिता से पूछा तो मैने पà¥à¤¨à¤ƒ उनसे विनती की कि कà¥à¤› फोटो खींचने की इचà¥à¤›à¤¾ है अगर वह कृपा कर दें तो! उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने बेटे को आदेश दिया कि इनको ऊपर ले जाओ। दà¥à¤•ान में लिफà¥à¤Ÿ लगी हà¥à¤ˆ थी अतः वह यà¥à¤µà¤• मà¥à¤à¥‡ लिफà¥à¤Ÿ में अपने साथ सबसे ऊपर छत पर ले गया, जहां उनके परिवार के ढेरों सदसà¥à¤¯ – महिलाà¤à¤‚, बचà¥à¤šà¥‡, और शायद कà¥à¤› मेहमान à¤à¥€ मौजूद थे। वहां से सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर की ओर देखा तो आंखें चौंधिया गईं । कà¥à¤¯à¤¾ अदà¥â€Œà¤à¥à¤¤ दृशà¥à¤¯ था। जो दृशà¥à¤¯ अमृतसर वालों को à¤à¥€ साल में à¤à¤• – आध बार ही देखने को मिलता होगा, संयोगवश आज मà¥à¤à¥‡ उपलबà¥à¤§ हो गया था। मà¥à¤à¥‡ वासà¥à¤¤à¤µ में à¤à¤¸à¤¾ लगा कि आज मेरी तो लाटरी लग गई है।  मैं छत की मà¥à¤‚डेर पर कैमरा टिका कर उस अदà¥â€Œà¤à¥à¤¤ नज़ारे को देखता रहा, फोटो खींचता रहा।

शà¥à¤°à¥€ गà¥à¤°à¥ रामदास जी के पà¥à¤°à¤•ाश परà¥à¤µ पर सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर की शोà¤à¤¾
उस यà¥à¤µà¤• ने ऊपर छत पर आकर मà¥à¤à¥‡ बांस की à¤à¤• सीà¥à¥€ दिखाते हà¥à¤ कहा था कि यदि मैं चाहूं तो इस सीà¥à¥€ से ऊपर ममटी तक à¤à¥€ जा सकता हूं। उस समय तो मà¥à¤à¥‡ सीà¥à¥€ पर चà¥à¤¨à¥‡ के नाम से घबराहट हो रही थी पर दस – पांच मिनट बाद लगा कि यदि और ऊपर जाया जा सके तो और बेहतर दृशà¥à¤¯ मिल सकता है। सीà¥à¥€ पर पांव रख कर ऊपर चà¥à¤¨à¥‡ लगा तो वह बà¥à¤°à¥€ तरह से कांपने लगी। आहिसà¥à¤¤à¤¾-आहिसà¥à¤¤à¤¾ à¤à¤•- à¤à¤• डंडे पर पैर रखते हà¥à¤ मैं लगà¤à¤— आधी ऊंचाई तक चॠगया और वहां से जो दृशà¥à¤¯ मिला वह मेरे मेरे दिल में हमेशा – हमेशा के लिये अंकित हो गया है।
A short video of Golden Temple prepared by me.
घर वापसी
कैमरे की बैटरी को पूरी तरह से खाली करके और मैमोरी कारà¥à¤¡ को पूरी तरह से à¤à¤° कर मैं सीà¥à¥€ से वापस उतर आया और लिफà¥à¤Ÿ पकड़ कर वापस नीचे शोरूम में आया। अपना आà¤à¤¾à¤° वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करने के बाद अपने होटल में गया। कमरे में आकर महसूस हà¥à¤† कि पैरों की हालत दरà¥à¤¦à¤¨à¤¾à¤• थी, पूरे शरीर की हडà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¥€ शबद कीरतन करने लगी थीं। आज शायद पूरे दिन में मैं इतना अधिक पैदल चला था जितना अपने सहारनपà¥à¤° में महीने à¤à¤° में à¤à¥€ चलने की जरूरत नहीं पड़ती। गरà¥à¤® पानी लेकर नहाया, रात को à¤à¤• हलवाई की दà¥à¤•ान पर जाकर कà¥à¤¾à¤¯à¥‡ का गरà¥à¤®à¤¾à¤—रà¥à¤® दूध पिया ।
वैसे अमृतसर वासी दूध और लसà¥à¤¸à¥€ के ही नहीं बलà¥à¤•ि पानी पताशे और चाट के à¤à¥€ बहà¥à¤¤ अधिक शौकीन हैं। मà¥à¤à¥‡ अमृतसर में जितने अधिक पानी पताशे वाले सड़कों पर नज़र आये, उतने मैने और किसी à¤à¥€ शहर में नहीं देखे।  खैर, मैने तो गिलास à¤à¤° दूध पिया और दूध पीकर निरà¥à¤®à¤² आननà¥à¤¦ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆà¥¤  थकान बहà¥à¤¤ अधिक हो चà¥à¤•ी थी, अतः रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर बोला कि मà¥à¤à¥‡ सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे उठा दिया जाये । उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ’पकà¥à¤•ा वायदा’ किया कि ठीक है, मà¥à¤à¥‡ सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे उठा दिया जायेगा।  उसके बाद मैं कमरे में आकर सो गया।  जूते उतारने, कपड़े बदलने की à¤à¥€ हिमà¥à¤®à¤¤ नहीं थी । आधी रात को आंख खà¥à¤²à¥€ तो लेटे – लेटे जूतों में पैर का अंगूठा फंसा कर जूता पैर में से फरà¥à¤¶ पर गिरा दिया, हाथ बà¥à¤¾ कर कमरे की लाइट ऑफ कर दी।
इन सारी हरकतों को मैं अपने घर में करने की हिमà¥à¤®à¤¤ नहीं कर सकता था,  पर वहां à¤à¤²à¤¾ मà¥à¤à¥‡ किसका डर था?  शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी तो मà¥à¤à¤¸à¥‡ 500 किमी दूर थीं!  मेरे बिसà¥à¤¤à¤° पर कैमरा, लैपटॉप, बैग, कपड़े, कंघा, ईयरफोन, कमरे की चाबी, कà¥à¤°à¥à¤¤à¤¾ पायजामा सब कà¥à¤› पड़ा हà¥à¤† था। यह सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ à¤à¤²à¤¾ अपने घर में कहां !  घर पर तो सब काम सलीके से करना पड़ता है!  चलो, खैर ! ये तो मेरे दिल का दरà¥à¤¦ है जो अपने दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के बीच में बैठा हूं तो बांट लिया। वह à¤à¥€ इसलिये कि घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ साइट पर हमारी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी कà¤à¥€ आती ही नहीं अतः मामला सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ है!
सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे आंख खà¥à¤²à¥€, आधा घंटे में नहा धोकर अपने बैग वगैरा पैक किये। कमरे में, बाथरूम में कहीं कोई सामान छूट तो नहीं गया है, देखा। रिसेपà¥à¤¶à¤¨ के पास सोफे पर सोये हà¥à¤ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को जगाया और इस बात के लिये उसकी खिंचाई की कि उसे सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे मà¥à¤à¥‡ जगाने की डà¥à¤¯à¥‚टी दी गई थी पर वह खà¥à¤¦ पड़ा हà¥à¤† सो रहा है।  उसने अपनी सूजी हà¥à¤ˆ नाक दिखाई । मैने पूछा, “कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤†?”  बोला, 101 नंबर कमरे के बजाय 201 नंबर वालों को सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे दरवाज़ा पीट – पीट कर उठा दिया था।  बस, सरदार जी ने à¤à¤• घूंसे से ये हाल कर दिया।
मैने उसे सांतà¥à¤µà¤¨à¤¾ दी, बाकी à¤à¥à¤—तान करके सड़क पर आया और सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर की ओर à¤à¤• बार फिर शीश नवाया, रिकà¥à¤¶à¤¾ पकड़ कर सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पहà¥à¤‚चा । पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® नंबर १ से अमृतसर-हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° जनशताबà¥à¤¦à¥€ सà¥à¤¬à¤¹ सात बजे मिलने वाली थी। सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर ही à¤à¤• बरà¥à¤—र और à¤à¤• चीज़ सैंडविच खरीद कर à¤à¥‹à¤— लगाया और गाड़ी आकर खड़ी हà¥à¤ˆ तो पà¥à¤¨à¤ƒ C1 में अपनी सीट गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर ली। थकान अà¤à¥€ à¤à¥€ बहà¥à¤¤ अधिक थी, अतः वापसी यातà¥à¤°à¤¾ लगà¤à¤— सोते हà¥à¤ ही पूरà¥à¤£ की। साà¥à¥‡ बारह बजे के लगà¤à¤— सहारनपà¥à¤° सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर उतर कर बैंक की राह ली !
अमृतसर की यह यातà¥à¤°à¤¾ इस अरà¥à¤¥ में विशेष रही कि मà¥à¤à¥‡ कहीं पर à¤à¥€ कà¥à¤› नकारातà¥à¤®à¤•ता का सामना नहीं करना पड़ा। जिस किसी से à¤à¥€ बात हà¥à¤ˆ, सबका वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾, सà¥à¤µà¤¾à¤—तपूरà¥à¤£ लगा। यदि धारà¥à¤®à¤¿à¤•ता हम सबको à¤à¤¸à¥€ ही मृदà¥à¤¤à¤¾, निशà¥à¤›à¤²à¤¤à¤¾, सकारातà¥à¤®à¤•ता से ओत-पà¥à¤°à¥‹à¤¤ कर देती है तो à¤à¤¸à¥€ धारà¥à¤®à¤¿à¤•ता को कोटि-कोटि पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® !  आपने इस लंबे सफर में मेरा बखूबी साथ निà¤à¤¾à¤¯à¤¾, इसके लिये आप को à¤à¥€ कोटिशः अà¤à¤¿à¤¨à¤¨à¥à¤¦à¤¨ ! नमसà¥à¤•ार!

Bahut Khoob Sushant Ji….
Ek Baat to Hai ki Harmandar Saahib mein jo hai woh aur Kahin Nahin….
जी प्रकाश यादव जी, बिल्कुल सही फरमाया आपने ! वैसे मैने बहुत सारे तीर्थों के दर्शन किये हों, ऐसा तो नहीं है पर फिर भी, जितने तीर्थ स्थलों को देखने का सौभाग्य मिला है, उनमें अमृतसर के तीर्थों ने बहुत प्रभावित किया है। ऐसा सिर्फ सुन्दरता और भव्यता के ही कारण नहीं है, बल्कि वहां का शान्त, पवित्र वातावरण, सुव्यवस्था, यात्रियों के साथ सद्व्यवहार और अपनापन ज्यादा प्रभावित कर गया है। भगवान करे, हमारे अन्य तीर्थों में विराजमान पंडे, पुरोहित और प्रबन्धक गण भी इससे कुछ शिक्षा ग्रहण करेंगे।
सुशांत जी,
बहुत सुन्दर तथा रोचक लेख, इतना अच्छा लगा की तारीफ़ के लिए शब्द नहीं मिल रहे। तस्वीरें भी बहुत सुन्दर थीं। और आज आपकी पहली पोस्ट के बाद एक लम्बे अंतराल के बाद पेट पकड़ कर हंसने की नौबत आ ही गई, अंतिम पैराग्राफ के पंच ” रिसेप्शन वाले की सूजी नाक और उसका कारण” पढ़कर।
बहुत खूब, अगली कहानी का बेसब्री का इंतज़ार रहेगा।
प्रिय मुकेश एवं कविता भालसे,
आपके घुमक्कड़ परिवार के दर्शन बहुत लम्बी अवधि के बाद हुए पर जब हुए तो खूब हुए ! धन्यवाद ! मैं बहुत जल्दी ही धार और इन्दौर भी जाऊंगा – शायद वर्ष 2012 में ही ! इन्दौर के बारे में आपकी पोस्ट के मुख्य अंश ऐसे ही ले कर जाऊंगा जैसे परीक्षा में लड़के फर्रे बना कर ले कर जाते हैं !
excellent
दाल रोटी घर दी, दिवाली अम्बरसर दी। आप ने गुरुपुरब पर ही दीपमाला के दर्शन करवा दिए। बहुत बहुत धन्यवाद
Dear Sharma Ji,
Thank you very very much. I will try to provide a link to my video of Golden Temple which I had made. Three different and knowledgeable persons (You, Nandan and Tridev Charan Ji) have referred to Amritsar as Ambarsar. Is the original name of modern Amritsar is Ambarsar ? Please enlighten me.
Regards,
Sushant Singhal
AMBARSAR
Ambarsar is folk name people used from centuries. But there was story crows dip in water and they became White Hans (Swan). Rajni, youngest daughter of Rai Duni Chand, was sitting with her sisters admiring some new clothing they all had received from their father. The girls were ecstatic and exclaiming how good their father was to them. Rajni observed that all gifts are ultimately from God. Their father was merely an instrument of His greatness. Unfortunately for her, he overheard her comment and became very angry.
Rai Duni Chand married her to a leper with a taunt that he would see how her God would help her lead a normal life. The leper was severely disfigured and a foul smell came from his body. The poor girl had accepted her fate ungrudging and worked hard to maintain herself and her crippled husband. She kept repeating the name of God, and was certain that he was testing her with this turn of events. She was forced to beg for a living. Still she bathed and fed her leper husband, never losing faith. One day, she reached the site of a pool on her way to a neighboring village. Placing the basket containing her husband by the side of the pool, she had gone oft on an errand, most probably to look for food. In the meantime, her crippled husband had seen a black crow dip into the water of the pool and come out white. Amazed at this miracle, the man crawled up to the edge of the pool and managed a dip. He found himself completely cured. When his wife returned, she was amazed to find her husband in good health. He was handsome and whole. At first, she was alarmed and suspected that he might be a different person. He had, however, kept one finger with leprosy marks un-dipped. He showed her the diseased finger as proof of his identity. The couple thanked God, and went to the Guru to seek his blessings. ( From Wiki)
So Amritsar (Sarover of Amrit) is real name but people pronounce Ambarsar.
ओ हो, तो ये कहानी है इसके पीछे ! बहुत सुन्दर । आपका हार्दिक धन्यवाद ! घुमक्कड़ का वास्तव में सबसे बड़ा आकर्षण यही है कि यहां लेखकगण आपस में बातचीत करते हैं, एक दूसरे की सहायता करते हैं, ज्ञानवर्द्धन करते हैं।
सुशांत जी,
बहुत सुन्दर लेख एवं उम्दा तस्वीरें। सीता मैया के झुमके का प्रसंग पढ़कर अपने आप को हंसने से रोक नहीं पाई। आपके साथ हरमंदिर साहिब के दर्शन किये, वाघा बॉर्डर घुमे, जलियांवाला बाग़ देखकर शहीदों को याद किया और इस अमृतसर के सफ़र का पूरा पूरा लुत्फ़ उठाया। चलिए अमृतसर की यात्रा तो समाप्त हुई अब आगे कहाँ ले जा रहे हैं?
एक अच्छी पोस्ट
धन्यवाद रस्तोगी जी !
प्रिय सुशान्त जी…..
उम्दा लेखन और हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण अमृतसर यात्रा श्रृंखला के अंतिम लेख के साथ समापन पर आपको बधाई !
आपका मनोहारी लेख पढ़कर कर मजा आ गया और रामतीरथ के बारे में जानने को मिला ….आपके साथ हम भी कभी त्रेता युग में पहुँच गए तो कभी प्रकाश पर्व पर जगमग करते स्वर्ण मंदिर में |
बहुत ही नयनाभिराम फोटो लगे प्रकाश में डूबे स्वर्ण मंदिर और रामतीरथ के पौराणिक स्थल के |
मुझे लगता हैं यह लेख आपकी की इस श्रृंखला का पांचवा लेख है जो अपने अन्य साथी लेख से भटक गया हैं….इसमें आपको को इस लेख को उसी श्रृंखला में शामिल करने की आवश्यकता हैं |
लेख के लिए धन्यवाद……
प्रिय रितेश,
बहुत बहुत धन्यवाद ! मुझे ये सिरीज़ में पोस्ट जोड़ने का सिस्टम अभी समझ नहीं आया। मेरे लिये यह कार्य नन्दन करते चले आ रहे हैं। मैं तो यदि जोड़ूंगा तो मैनुअली लिंक बना बना कर लगाऊंगा पर मुझे लगता है कि वर्डप्रेस ने इस कार्य के लिये कोई विगेट दिया हुआ होगा । नन्दन भाई जान या आप ही मुझ नैनहीन को राह दिखाओ !
फिरत फिरत प्रभ आइआ,
परिया तउ सरनाइ ||
नानक की प्रभ बेनती ;
अपनी भगति लाई ||
तनवांत जी, दीपावली के शुभ मौके पर अम्बरसर से प्रकाश पर्व पर जो प्रकाश आप इस घुमक्कड़ परिवार के लिए लाए हैं निस्संदेह यह प्रकाश इस परिवार के लिए उपहार है, ज्ञान के प्रकाश का, अंधकार के नाश का, घुमक्कड़ी के साहित्य का, नए सदस्यों के आथित्य का (और औमीत बाबा की सोलो ड्रायविंग के नए नए कीर्तिमान स्थापित करने का और यह जानने का कि हम लोग केवल बड़े होने के नाते सलाह ही नहीं देते बल्कि हर सदस्य को इतना प्यार करते हैं और दुआ करते हैं कि किसी को जरा सी लापरवाही से खरोंच तक न आए), समस्त घुमक्कड़ परिवार को आपके द्वारा लाए गए प्रकाश से दीपावली की शुभ कामनाए.
एनिमेशन के साथ प्रकाश चित्र सदैव घुमक्कड़.कॉम को प्रकाशमय किए रहेंगे.
धन्यवाद.
Very well written story.
The story of ‘Sita and Luv and Kush’ at Amritsar is new to me – I was not aware of the place. We stayed there for few days and will surely visit there in our next visit.
When I was thinking to ask whether you have taken permission from Mrs. Singhal or not – it was clear from the next line.
Like you, I have never learned Hindi and my hindi is very poor. I can read Hindi because I know Sanskrit and can still manage, though very slowly…my son’s hindi is already better than me…enjoyed the post…there was some debates but I think that is healthy and hope you don’t mind for that…
Do take care of yourself and keep travelling, we will wait for your next
बहुत ही खूब !
आप तो एक दम हाइटेक निकले , GIF का ईस्तमाल पसंद आया|
प्रिय महेश सेमवाल,
धन्यवाद ! मैं शौकिया वेबसाइट का निर्माण करता हूं अतः ऐसी चीज़ें हमारे लिये स्टॉक- इन- ट्रेड हैं।
सुशान्त सिंहल
आदरणीय त्रिदेव जी,
आप मुझे साहित्य में इतनी गहरी घुसपैठ से अक्सर हैरान कर देते हैं। आपके कमेंट्स भी संग्रहणीय होते जा रहे हैं। वैसे भी आप दुनिया में अकेले ही हैं जो मुझे तनावान्त कहते हैं! बहुत अच्छा लगता है, आपसे यह सुनकर ! आपका आशीष मेरे सिर पर सदैव बना रहे, यही प्रभु से याचना है।
सुशान्त सिंहल
Thanks, Sushant for the darshan of Ram Tirath, the place where Maa Sita Devi spent her exile and brought up her twins. Also enjoyed the story of the attendant who gave the wake up call at the wrong address and ended up with a swollen nose. The videos too are amazing.
It is sad that the income of the Ramtirath temple is insufficient to maintain it. What makes it worse is a banner at the entrance which has images of ostensibly holy men on it. I wonder why they spent the money on a banner but find it hard to mobilise the funds required to carry out essential maintenance.
सुशांत जी, अमृतसर यात्रा का अंत वाकई खुबसूरत था। आप सौभाग्यशाली हैं कि आप ऐसे शुभ अवसर पर वहां उपस्थित थे और फोटोज के तो कहने ही क्या! लाजवाब! रामतीरथ के बारे में पहले नहीं सुना था, चलो एक और नया स्थान जुड़ गया अगली अमृतसर यात्रा के लिए। हमारी पिछली अमृतसर यात्रा में हमने आते और जाते दोनों वक्त जनरल डब्बे में ज्यादातर सफ़र खड़े खड़े ही बिताया था जो कि बेहद रोमांचक और एक अविस्मरनीय अनुभव था।
अगले लेख के इंतज़ार में…
मेरा दो से ज्यादा बार ज़िक्र हुआ कमेंट्स में, ये तो शाबाशी वाली बात है | विडियो लगा दिया जाएगा, सिरीज तो आपने खुद ही मशक्क़त कर के ठीक कर दी है | लेख और फोटोज के बारे में कहने के लिए थोडा और होमवर्क करना पड़ेगा इसलिए चुप रहना ही उचित होगा | विडियो लगा दिया जाएगा, सिरीज तो आपने खुद ही मशक्क़त कर के ठीक कर दी है |
बाकी सब ठीक है पर वापसी में ट्रेन वाली मुलाक़ात आप पचा गए |
Hi Sushantji,
Thanks for taking us out on Amritsar tour. Ramtirath was news to me. Maybe next time.
Taking off from DL’s comment about the banner in front of the temple, this is de rigueur for every temple across India.
I just don’t understand why. Other paraphernalia includes tonnes of cable wire hanging all around with nails stuck in the stone work. If not holy men on banners, it will be local politicians. The banner will have the most garish colour clashing with the surroundings. There will be an ugly telecom ad board stuck in the ground in front of the door. There will be uglier tinshed shops sharing walls with the temples. The notice boards put up by the local committe, police station, ASI will be even more prettier embellishments. Recently, I saw this in front of the Kedarnath temple in one of the recent posts, temples in Hampi, and everywhere else.
Someone please make this stop.
मैं अपने अमृतसर टूर में यहाँ नहीं गया. आपके पोस्ट के द्वारा दर्शन करके धन्य हो गया .
लेकिन ज़रा रूकिये थोड़े दिन के लिए . मैं आपको बिलकुल ऐसी ही जगह ले चलूँगा लेकिन उत्तर प्रदेश में
Really enjoyed, the style of telling all about of journey. You experienced after visiting the place but i enjoyed more than you only by going through your live and interesting description.
Dear Mr. Jha.
Thank you very much for coming to the post and liking it. You may like it more if you start reading the story from the start. There are 5 or six posts related to this trip.
Best,
Sushant Singhal
Great post sir…enjoyed thoroughly.
Regards,
Arun
Thanks a lot, dear Arun.
Regards,
Sushant Singhal
Hi SUSHANTJI,
Enjoyed your post and get inspired to visit Amritsar at once. I must appreciate your command over the language. You have shown your skills to attract people to read your post. Your sense of humour is also very nice. Keep it up Sushantji.
Dear Mahesh ji,
Thank you very much for your kind words of appreciation. I am happy to find you sufficiently motivated to.visit Amritsar.
It is the last episode of my Amritsar series. If you go through earlier posts also, you may find them useful while visiting there.