अमृतसर में तीसरा दिन

सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर से सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ तक निःशà¥à¤²à¥à¤• बस-सेवा
अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ आंख खà¥à¤²à¥€ तो सोचा कि अब कà¥à¤¯à¤¾ किया जाये? सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर के दरà¥à¤¶à¤¨ हो गये, जलियांवाला बाग à¤à¥€ हो आया और वाघा बारà¥à¤¡à¤° à¤à¥€! अब कà¥à¤¯à¤¾? वापसी में अà¤à¥€ à¤à¥€ २४ घंटे से अधिक का समय शेष था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अमृतसर – हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° जनशताबà¥à¤¦à¥€ टà¥à¤°à¥‡à¤¨ में मेरा आरकà¥à¤·à¤£ अगले दिन का था और वह सà¥à¤¬à¤¹ सात बजे चलती है। शायद यह अकेलेपन का दà¥à¤·à¥à¤ªà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ रहा होगा, मà¥à¤à¥‡ बार – बार अपने निरà¥à¤£à¤¯ पर संदेह होने लगा कि कà¥à¤¯à¤¾ मैं इस à¤à¤• दिन और à¤à¤• रात का वासà¥à¤¤à¤µ में सदà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤— कर पाऊंगा? फिर सोचा कि जो होना था, हो गया। अब देखते हैं कि आज कà¥à¤¯à¤¾-कà¥à¤¯à¤¾ किया जा सकता था। इस दिन को बाज़ार में बिताने का मेरा कोई इरादा नहीं था। मà¥à¤à¥‡ नये-नये बाज़ार देखने का तो शौक है पर सामान खरीदने का नहीं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सामान खरीदने के दो नà¥à¤•सान हैं। जहां à¤à¤• ओर जेब हलà¥à¤•ी हो जाती है वहीं दूसरी ओर सफर में ढोने के लिये सामान अधिक हो जाता है।

सूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯ से पूरà¥à¤µ शà¥à¤°à¥€ गà¥à¤°à¥ राम राय निवास
नहा धो कर जब à¤à¥‚ख लगने लगी तो सोचा कि आज कà¥à¤¯à¤¾ नाशà¥à¤¤à¤¾ किया जाये? कहां किया जाये? à¤à¤• मन हà¥à¤† कि इंटरकॉम पर होटल को ही आरà¥à¤¡à¤° कर दूं पर फिर तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ मन ने धिकà¥à¤•ारा ! छिः, होटल के कमरे में अकेले बैठकर बà¥à¤°à¥‡à¤¡-बटर खाते हà¥à¤ तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ लजà¥à¤œà¤¾ नहीं आयेगी? मरà¥à¤¦ बचà¥à¤šà¥‡ हो तो कैमरा उठाओ, सर पर à¤à¤—वा वसà¥à¤¤à¥à¤° बांधो और निकल पड़ो खाने की तलाश में! होटल से बाहर आकर सोचा कि सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर के दो ही पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° देखे हैं । तीसरे दà¥à¤µà¤¾à¤° की ओर जाकर à¤à¥€ तो देखा जाये कि वहां कà¥à¤¯à¤¾-कà¥à¤¯à¤¾ है। बस, पैदल – पैदल बाईं दिशा में चल पड़ा जिधर दो ऊंची – ऊंची मीनारें हैं। उधर गया तो सबसे पहले फà¥à¤°à¥€ बस सेवा का काउंटर मिला। सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¨ रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ और हरमंदिर साहब के मधà¥à¤¯ फà¥à¤°à¥€ बस सेवा संचालित करता है। गेट से अंदर पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया तो बायें हाथ पर गà¥à¤°à¥ रामदास निवास है जहां à¤à¤• दिन के लिये यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को ठहरने की बहà¥à¤¤ ससà¥à¤¤à¥€ दरों पर सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ उपलबà¥à¤§ है। मन में आया कि à¤à¤• रात यहां à¤à¥€ रà¥à¤• कर देखा जाये। पर à¤à¤• à¤à¥€ कमरा उपलबà¥à¤§ नहीं था। वासà¥à¤¤à¤µ में उस दिन 9 अकà¥à¤¤à¥‚बर यानि, गà¥à¤°à¥ रामदास का पà¥à¤°à¤•ाश परà¥à¤µ होने के कारण अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• à¤à¥€à¤¡à¤¼ थी। वहां से आगे बढ़ा तो देखा कि à¤à¤• विशाल हॉल में कीरà¥à¤¤à¤¨ चल रहा है। शबद कीरà¥à¤¤à¤¨ मà¥à¤à¥‡ अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• पसनà¥à¤¦ हैं। बहà¥à¤¤ साल पहले à¤à¤• ऑडियो कैसेट मेरे पास हà¥à¤† करता था जिसका शीरà¥à¤·à¤• था – “दास की राखियेâ€à¥¤ इसमें टाइटिल गीत के अतिरिकà¥à¤¤ à¤à¤• गीत था – “रसना जपती तू ही तू ही!” वह कैसेट मैने इतना सà¥à¤¨à¤¾, इतनी बार सà¥à¤¨à¤¾ कि उस बेचारे कैसेट ने परेशान होकर à¤à¤• दिन आतà¥à¤® हतà¥à¤¯à¤¾ कर ली। दरअसल, उसकी रील मेरे पà¥à¤²à¥‡à¤¯à¤° में à¤à¤¸à¥€ उलà¤à¥€, जैसे कोई अपनी गरदन पर रसà¥à¤¸à¤¾ लपेट कर पंखे से à¤à¥‚ल गया हो! उस दिन के बाद से मैने सैंकड़ों दà¥à¤•ानों पर उस कैसेट को तलाशा पर कहीं नहीं मिला। अब youtube पर ढूंढता रहता हूं तो à¤à¥€ वह नहीं मिलता। “रसना जपती तू ही तू ही” शबद youtube पर है तो सही, पर और किसी गायक की आवाज़ में है। जो धà¥à¤¨ मेरे अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤®à¤¨ में बसी हà¥à¤ˆ है, वह कहीं नहीं मिलती है। à¤à¤¸à¤¾ ही à¤à¤• और मनà¤à¤¾à¤µà¤¨ शबद है – “सà¥à¤µà¤¾à¤‚सों दी माला में, सिमरूं मैं तेरा नाम !†यह शबद à¤à¤¾à¤ˆ हरबंस सिंह जी जगाधरी वालों की अनमोल पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ है। आपने यदि इसे नहीं सà¥à¤¨à¤¾ है तो मेरे कहने पर à¤à¤• बार अवशà¥à¤¯ ही सà¥à¤¨ लें – मà¥à¤°à¥€à¤¦ हो जायेंगे। youtube पर उपलबà¥à¤§ है। असà¥à¤¤à¥!

सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर में दीवान हॉल मंजी साहिब

सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर परिसर में दीवान हॉल मंजी साहिब में शबद कीरà¥à¤¤à¤¨
आधा घंटा इस हॉल में जिसका नाम “दीवान हॉल मंजी साहिब†है, बैठा तो पेट ने कहना शà¥à¤°à¥ कर दिया कि मà¥à¤à¥‡ à¤à¥‚खा रख कर तू कà¥à¤¯à¤¾ सोचता है कि शबद के मजे ले लेगा? चल उठ, पहले मेरे लिये कà¥à¤› इंतज़ाम कर, फिर बैठकर शबद कीरà¥à¤¤à¤¨ सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ !  बाहर निकला तो तबीयत पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हो गई ! सामने ही लिखा मिला गà¥à¤°à¥ जी दा लंगर!  बिना जेब में हाथ डाले वाहे गà¥à¤°à¥ जी ने इस पापी पेट को शानà¥à¤¤ करने के à¤à¤°à¤ªà¥‚र इंतज़ाम कर रखा था ।   “à¤à¥‚खे à¤à¤œà¤¨ न होय गोपाला†गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤¾ हà¥à¤† मैं उधर ही बढ़ा, पर सोच रहा था कि आज तक कà¤à¥€ लंगर में पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ गà¥à¤°à¤¹à¤£ नहीं किया। शाकà¥à¤‚à¤à¤°à¥€ मंदिर जाते हैं, साईं बाबा के मंदिर में जाते हैं तो बहà¥à¤¤ सारे à¤à¤‚डारे चल रहे होते हैं। पर किसी का निमंतà¥à¤°à¤£ हो तो ही खाना खाने के लिये बैठते हैं, वरना संकोच होता है। पर चलो, आज यह à¤à¥€ अनà¥à¤à¤µ सही!
विशà¥à¤µ की सबसे बड़ी निःशà¥à¤²à¥à¤• रसोई

विशà¥à¤µ की सबसे बड़ी निःशà¥à¤²à¥à¤• रसोई
सà¥à¤¬à¤¹ साढ़े आठया नौ बजे का वकà¥à¤¤ था अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ नाशà¥à¤¤à¥‡ का ! सैंकड़ों की à¤à¥€à¤¡à¤¼ में मैं à¤à¥€ उस हॉल में घà¥à¤¸ गया। दो-तीन सजà¥à¤œà¤¨ थालियां बांट रहे थे। à¤à¤• थाली थाम कर à¤à¥€à¤¡à¤¼ के साथ – साथ सीढि़यों की ओर आगे बढ़े तो चमà¥à¤®à¤š और à¤à¤• बड़ा सा कटोरा à¤à¥€ मिल गया। à¤à¥€à¤¡à¤¼ ने जीने की ओर बढ़ना शà¥à¤°à¥ किया तो बिना ये जाने कि ऊपर कà¥à¤¯à¤¾ है, उधर ही बढ़ता चला गया। à¤à¤• विशालकाय à¤à¥‹à¤œà¤¨ ककà¥à¤· था जिसमें टाट बिछे हà¥à¤ थे और आधा हॉल पहले ही à¤à¤° चà¥à¤•ा था और लोग आकर बैठते जा रहे थे। à¤à¤• पंकà¥à¤¤à¤¿ में मैं à¤à¥€ अपनी थाली और कटोरा लेकर बैठा ही था कि à¤à¤• कार सेवक खीर की बालà¥à¤Ÿà¥€ लेकर आये और मेरी थाली में कड़छी à¤à¤° के खीर दे दी। इस थाली में कटोरियां बनी हà¥à¤ˆ थीं! इसके बाद पनीर की सबà¥à¤œà¤¼à¥€ आई। जलेबी आई, मालपà¥à¤† आया। जब रोटी आई और मैने हाथ बढ़ाया तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आंखों ही आंखो में मà¥à¤à¥‡ घूरा और इशारा किया कि दोनों हाथ बढ़ाऊं, केवल à¤à¤• नहीं ! दोनों हाथों की अंजà¥à¤²à¥€ बनाई तब जाकर दो रोटी मिलीं ! मेरे सामने कà¥à¤› विदेशी परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• महिलायें आकर बैठीं पर वे उस हॉल में आने जाने की, खाना खाने की अà¤à¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ लग रही थीं। उनमें से à¤à¤• कैमरा लिये हà¥à¤ थी, और धड़ाधड़ फोटो खींचे जा रही थी। मैने उसकी और उसने मेरी फोटो खींची और फिर बड़े ही पà¥à¤°à¥‡à¤® à¤à¤¾à¤µ से खाना खाया।
नाशà¥à¤¤à¥‡ का अति सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§ हो चà¥à¤•ा था। अपने जूठे बरà¥à¤¤à¤¨ लेकर हम बाहर निकले, सीढ़ियों से नीचे उतरे तो सबसे पहले à¤à¤• सजà¥à¤œà¤¨ ने हमसे चमà¥à¤®à¤š ले ली। आगे बढ़े तो थाली और कटोरा à¤à¥€ ले लिया गया। वहां सैंकड़ों महिलाà¤à¤‚ और पà¥à¤°à¥à¤· कार सेवक बरà¥à¤¤à¤¨ धोने के काम में लगे हà¥à¤ थे और उनमें से à¤à¤• à¤à¥€ वेतनà¤à¥‹à¤—ी करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ नहीं था। कई घंटे तक यदि आप इस पà¥à¤°à¤•ार सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर में जाकर अपरिचित लोगों के जूठे बरतन मांजने का अनà¥à¤à¤µ ले चà¥à¤•े हैं तो आप अपने घर में बरà¥à¤¤à¤¨ मांजने वाली बाई को हिकारत की निगाह से कà¤à¥€ नहीं देखेंगे। आपको यह अनà¥à¤à¥‚ति रहेगी कि वह महिला शारीरिक शà¥à¤°à¤® करके अपना और अपने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ का पेट पाल रही है इसलिये समà¥à¤®à¤¾à¤¨ की अधिकारिणी है।
जूठे बरà¥à¤¤à¤¨ देकर जल की तलाश में आगे बढ़ा तो देखा कि बरामदे में लगà¤à¤— सौ महिलायें और पà¥à¤°à¥à¤· फरà¥à¤¶ पर बैठे हà¥à¤ काम में तलà¥à¤²à¥€à¤¨ थे। काम करते हà¥à¤ उनकी फोटो खींचनी लेने लगा तो मेरी à¤à¥€ आंखें छलछला आईं। à¤à¤¸à¤¾ नहीं कि कोई कषà¥à¤Ÿà¤•र दृशà¥à¤¯ देख कर आंखें à¤à¤° आई हों ! दरअसल, वह सब पà¥à¤¯à¤¾à¤œ और हरी मिरà¥à¤š काट रहे थे। आगे बढ़ा तो दाल और सबà¥à¤œà¥€ बनती दिखाई दी। à¤à¤• जगह विशालकाय पिसाई मशीन से पà¥à¤¯à¤¾à¤œ पीसी जा रही थी। कहीं रोटी सेकी जा रही थीं। हर जगह कार सेवक ही कार सेवक ! वेतन à¤à¥‹à¤—ी करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ à¤à¤• à¤à¥€ नहीं ! जिसको जो काम करने में रà¥à¤šà¤¿ हो, अचà¥à¤›à¥‡ से करना आता हो, वह उसी काम को पकड़ लेता है। सामाजिक वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ का इससे बेहतर नमूना और कहीं देखने को नहीं मिलेगा ! वे हज़ारों सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-पà¥à¤°à¥à¤· अपने- अपने घर से सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर के दरà¥à¤¶à¤¨ करने के लिये आये हà¥à¤ हैं अतः इस धरातल पर सब à¤à¤• समान हैं, कोई à¤à¥€ छोटा या बड़ा नहीं है। सब वाहेगà¥à¤°à¥ के दरबार में आकर कार सेवा करने के उतà¥à¤¸à¥à¤• हैं । उस पूरी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ को सही पà¥à¤°à¤•ार से संचालित करने के लिये हर पà¥à¤°à¤•ार की सेवा की जरूरत है। शबद कीरà¥à¤¤à¤¨ करने के लिये रागी चाहिये तो चंवर डà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ वाला à¤à¥€ चाहिये। हज़ारों लोगों का पेट à¤à¤°à¤¨à¤¾ है तो खाना बनाने के लिये à¤à¥€ सैंकड़ों कार सेवक चाहियें। जो लोग जेब से पैसे खरà¥à¤š करके बाज़ार से आटा, चीनी और फल – सबà¥à¤œà¥€ ला कर दे रहे हैं, वह à¤à¥€ सेवा कर रहे हैं और जो खाना बना रहे हैं, जूठे बरà¥à¤¤à¤¨ साफ कर रहे हैं, वह à¤à¥€ सेवा कर रहे हैं। कोई फरà¥à¤¶ पर à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¥‚ लगा रहा है तो कोई पंखों की और छतà¥à¤° की सफाई कर रहा है। अपने-अपने मतलब का, अपनी-अपनी योगà¥à¤¯à¤¤à¤¾ और कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सेवा कारà¥à¤¯ पकड़ कर हर कोई अपनी-अपनी रीति से वाहेगà¥à¤°à¥ की सेवा कर रहा है। सामाजिक वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ के संचालन का à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जीवन-दरà¥à¤¶à¤¨ अपने जितने शà¥à¤¦à¥à¤§, पवितà¥à¤° और सातà¥à¤µà¤¿à¤• रूप में यहां सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर में देखने को मिला, वह अनà¥à¤¯à¤¤à¥à¤° दà¥à¤°à¥à¤²à¤ हो चला है। शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¦à¥ à¤à¤—वतगीता के अठारहवें अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ में योगेशà¥à¤µà¤° शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ जिस वरà¥à¤£à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ का वरà¥à¤£à¤¨ करते हैं उसका साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥ दरà¥à¤¶à¤¨ सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर में किया जा सकता है। असà¥à¤¤à¥!
महाराजा रणजीत सिंह का समर पैलेस – रामबाग
लंगर से बाहर निकल कर पà¥à¤¨à¤ƒ वही पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¤šà¤¿à¤¹à¥à¤¨ समà¥à¤®à¥à¤– आ खड़ा हà¥à¤† – “अब कà¥à¤¯à¤¾?“ अचानक मà¥à¤à¥‡ याद आया कि à¤à¤• मितà¥à¤° ने रामबाग समर पैलेस यानि, महाराजा रणजीत सिंह के महल का ज़िकà¥à¤° किया था और कहा था कि मैं उसे अवशà¥à¤¯ देख कर आऊं। रिकà¥à¤¶à¥‡ वालों से पूछना शà¥à¤°à¥ किया तो सबने 30 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ बताये। मà¥à¤à¥‡ लगा कि अमृतसर के रिकà¥à¤¶à¥‡ वालों को तीस का आंकड़ा कà¥à¤› जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ही पसनà¥à¤¦ है। रामबाग पैलेस चलने के लिये à¤à¤• रिकà¥à¤¶à¤¾ कर लिया। सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर में हर किसी को कार सेवा में तनà¥à¤®à¤¯à¤¤à¤¾ से लगे हà¥à¤ देखते देखते, मà¥à¤à¥‡ लग रहा था कि यह रिकà¥à¤¶à¤¾à¤µà¤¾à¤²à¤¾ à¤à¥€ तो इस विशाल समाज के लिये à¤à¤• अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ उपयोगी कार सेवा ही कर रहा है। अतः उसके पà¥à¤°à¤¤à¤¿ समà¥à¤®à¤¾à¤¨ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ रखते हà¥à¤ मैं रिकà¥à¤¶à¥‡ में à¤à¤¸à¥‡ सिमट कर बैठा जैसे मेरे सिमट कर बैठने मातà¥à¤° से मेरा 82 किलो वज़न घट कर 60 किलो रह जायेगा। मेरा वज़न घटे या न घटे ये तो वाहेगà¥à¤°à¥ जी की इचà¥à¤›à¤¾ पर निरà¥à¤à¤° है, पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने (और आपने à¤à¥€) मेरी à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को तो अवशà¥à¤¯ ही समठलिया होगा।
सà¥à¤¬à¤¹ – सवेरे अमृतसर के बाज़ारों में से घà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥‡ – घà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥‡, रिकà¥à¤¶à¤¾à¤šà¤¾à¤²à¤• रमनीक सिंह गंतवà¥à¤¯ की ओर बढ़ता रहा। (उसने रिकà¥à¤¶à¤¾ चलाते चलाते मà¥à¤à¥‡ अपना नाम रमनीक बताया था। मैं चूंकि अमृतसर मे घूम रहा था सो सिंह मैने अपनी तरफ से जोड़ रहा हूं । अगर बिहार की रिकà¥à¤¶à¤¾ होती तो रमनीक लाल हो जाता।) रामबाग पैलेस के बारे में मà¥à¤à¥‡ बताया गया था कि सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर के बिलà¥à¤•à¥à¤² पास और शहर के मधà¥à¤¯ में है, यानि à¤à¤• – डेढ़ किमी। मेरी उमà¥à¤®à¥€à¤¦ से काफी अधिक समय लगा कर रिकà¥à¤¶à¤¾ गंतवà¥à¤¯ तक पहà¥à¤‚च ही गया तो मà¥à¤à¥‡ लगने लगा कि रिकà¥à¤¶à¥‡ वाले रमनीक à¤à¤‡à¤¯à¤¾ ने 30 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ कम मांगे हैं, हमारे सहारनपà¥à¤° का रिकà¥à¤¶à¤¾ होता तो बिना संकोच के 50 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ तो मांग ही लेता। इससे पहले कि मेरा मन रिकà¥à¤¶à¥‡ वाले को फालतू पैसे देने को कर आये, मैं अपने मन को काबू में करके, रमनीक सिंह को 30 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ देकर रिकà¥à¤¶à¥‡ से उतर गया। रिकà¥à¤¶à¤¾ चालक ने à¤à¤• गेट की ओर इशारा करके बताया कि इसी में से अनà¥à¤¦à¤° जाइये! वासà¥à¤¤à¤µ में वह कंपनी बाग का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° था और उसके अंदर ही महल होना अपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ था।
मैंने अनà¥à¤¦à¤° पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते ही देखा कि वहां पर उस पूरे à¤à¥Œà¤—ोलिक कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° का नकà¥à¤¶à¤¾ बना हà¥à¤† है पर काफी माथा-पचà¥à¤šà¥€ करने पर यह समठनहीं आया कि अब यहां से मà¥à¤à¥‡ किस दिशा में आगे बढ़ना चाहिये। जब तक नकà¥à¤¶à¥‡ में आपको यह इंगित न किया जाये कि उसमें आप किस बिनà¥à¤¦à¥ पर खड़े हैं, तब तक आप आगे कैसे बढ़ेंगे? यह सोच कर कि शायद यह नकà¥à¤¶à¤¾ पैलेस वालों ने उन लोगों के लिये बनाया होगा जो यहां के सà¥à¤¥à¤¾à¤ˆ निवासी हैं, मैने कंपनी बाग में घूम रहे लोगों से ही पूछ – पूछ कर आगे बढ़ने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया। वैसे वहां की हालत देख कर à¤à¤¸à¤¾ लग नहीं रहा था कि परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों के लिये देखने लायक कोई à¤à¥€ महल या मà¥à¤¯à¥‚à¤à¤¿à¤¯à¤® वहां मौजूद होगा।

अपने आकार से बड़ा फावड़ा उठाये घूम रहा à¤à¤• बचà¥à¤šà¤¾
आगे बढ़ा तो कà¥à¤› यà¥à¤µà¤• कà¥à¤°à¤¿à¤•ेट खेलते मिले। à¤à¤• यà¥à¤µà¤• जो बैटिंग कर रहा था, उसे मैने हाथ से इशारा किया। धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ बंट जाने के कारण वह बेचारा कà¥à¤²à¥€à¤¨à¤¬à¥‹à¤²à¥à¤¡ हो गया। à¤à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ हà¥à¤† सा मेरे पास आया और बोला, कà¥à¤¯à¤¾ है अंकल जी? मैने कहा कि यहां कोई मà¥à¤¯à¥‚à¤à¤¿à¤¯à¤® है कà¥à¤¯à¤¾? वो बोला, “पूछताछ काउंटर आगे है, वहां से पता कर लो!†मैं उसे धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ देकर आगे बढ़ा तो à¤à¤• ननà¥à¤¹à¤¾ बचà¥à¤šà¤¾ अपने कंधे पर फावड़ा उठाये घूमता मिला। उस होनहार बचà¥à¤šà¥‡ की माता वहीं पास में घास खोद रही थी। उस बचà¥à¤šà¥‡ की दो-à¤à¤• फोटो खींच कर आगे बढ़ा तो वासà¥à¤¤à¤µ में à¤à¤• गोलाकार à¤à¤µà¤¨ दिखाई दिया जहां गेट पर टिकट काउंटर à¤à¥€ था। १० रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ का टिकट कटा कर मैंने परिसर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया।

महाराजा रणजीत सिंह के घà¥à¤¡à¤¼à¤¸à¤µà¤¾à¤°
इस गेट से अनà¥à¤¦à¤° घà¥à¤¸à¤¾ तो माहौल à¤à¤•दम परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ हो गया। अनà¥à¤¦à¤° परिसर में घास à¤à¥€ अनà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¿à¤¤ थी, दो घà¥à¤¡à¤¼à¤¸à¤µà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ उस परिसर की रकà¥à¤·à¤¾ कर रही थीं। मेरे सामने महाराजा रणजीत सिंह का समर पैलेस था जिसे अब पैनोरामा (संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ हिनà¥à¤¦à¥€ में इसे गवाकà¥à¤· कहेंगे) का सà¥à¤µà¤°à¥‚प दे दिया गया है। (बाद में सहारनपà¥à¤° आकर जब नकà¥à¤¶à¥‡ की फोटो को पà¥à¤¨à¤ƒ गंà¤à¥€à¤°à¤²à¥€ सà¥à¤Ÿà¤¡à¥€ किया तो पता चला कि समर पैलेस तो मैने वासà¥à¤¤à¤µ में देखा ही नहीं। कहां था, यह à¤à¥€ पता नहीं!  ये तो पैनोरामा ही था, जिसको देख कर मैं वापिस लौट आया था।)
अनà¥à¤¦à¤° घूमते हà¥à¤ पाया कि à¤à¥‚तल पर दो ककà¥à¤·à¥‹à¤‚ में शीशे के पीछे 3-D à¤à¤¾à¤‚कियां बनाई गई हैं| हर à¤à¤¾à¤‚की उनके जीवन के किसी विशेष महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ पकà¥à¤· को उजागर कर रही थी। महाराजा रणजीत सिंह को à¤à¤• अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯ राजा और कà¥à¤¶à¤² सेनापति के रूप में खà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अनेकानेक यà¥à¤¦à¥à¤§à¥‹à¤‚ में अपनी सेना का नेतृतà¥à¤µ किया और अब तक अजेय समà¤à¥€ जाने वाली सेनाओं पर विजयशà¥à¤°à¥€ हासिल की। पà¥à¤°à¤¥à¤® तल पर गोलाकार ककà¥à¤· है जिसमें 360 डिगà¥à¤°à¥€ का पैनोरामा बनाया गया है। यहां आते- आते मेरे साथ à¤à¤• à¤à¤¯à¤¾à¤¨à¤• दà¥à¤°à¥à¤˜à¤Ÿà¤¨à¤¾ घट गई और वह ये कि मेरे कैमरे के मैमोरी कारà¥à¤¡ में सà¥à¤ªà¥‡à¤¸ खतà¥à¤® हो गई। मैं वहीं सीढ़ियों पर बैठकर पिछली शाम वाघा बारà¥à¤¡à¤° की फोटो हटा ही रहा था कि बैटरी ने à¤à¥€ जवाब दे दिया। मजबूरन कैमरे को तो उसके बैग में वापिस रखा और अपना नोकिया 202 निकाल लिया ताकि शूटिंग जारी रह सके। à¤à¤¸à¥‡ में, उन वीर à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सेनानायकों की बरबस याद हो आई जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने राइफल में कारतूस खतà¥à¤® हो जाने के बाद अपनी संगीनों के सहारे ही यà¥à¤¦à¥à¤§ में दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨à¥‹à¤‚ का मà¥à¤•ाबला किया था।

महाराजा रणजीत सिंह के पिता अपने दरबारियों के साथ। रणजीत सिंह शिशॠके रूप में नीचे फरà¥à¤¶ पर दिखाई दे रहे हैं।
गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ से ऊपर समय हो चà¥à¤•ा था, वहां से वापिस होटल तक आया तो देखा कि गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ बज कर साठमिनट हो रहे हैं। ( पंजाब में घूमते हà¥à¤ बारह बजने का ज़िकà¥à¤° नहीं करना चाहिये, à¤à¤¸à¤¾ मà¥à¤à¥‡ मेरे कà¥à¤› à¤à¤•à¥à¤•ी मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ ने बता रखा था। ) होटल रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर पूछा गया कि मैं आज रà¥à¤•ने वाला हूं या चैक आउट करूंगा। 9 अकà¥à¤¤à¥‚बर गà¥à¤°à¥ शà¥à¤°à¥€ रामदास जी का पà¥à¤°à¤•ाश परà¥à¤µ होने के कारण आज अमृतसर में और दिनों की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में कई गà¥à¤¨à¤¾ अधिक à¤à¥€à¤¡à¤¼ थी; à¤à¤¸à¥‡ में अचà¥à¤›à¥‡-à¤à¤²à¥‡ हाथ में आये हà¥à¤ कमरे को छोड़ना मूरà¥à¤–ता ही होती अतः उनको बता दिया कि मैं सà¥à¤¬à¤¹ छः बजे घर की दिशा में पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤£ करूंगा।
सà¥à¤¬à¤¹ लंगर में निःशà¥à¤²à¥à¤• नाशà¥à¤¤à¤¾ करने में बहà¥à¤¤ आननà¥à¤¦ आया था, सो à¤à¥‹à¤œà¤¨ करने के लिये à¤à¥€ पà¥à¤¨à¤ƒ वहीं पर पहà¥à¤‚च गया। यह बात अलग है कि वहां रकà¥à¤–ी हà¥à¤ˆ गà¥à¤²à¥à¤²à¤• में अपने मन में जो इचà¥à¤›à¤¾ हà¥à¤ˆ, उसमें अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ कर दिया। लंगर पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने लगा तो थाली दे रहे सजà¥à¤œà¤¨ ने थाली देने से मना कर दिया और कहा कि सिर ढक कर आऊं। अरे, बाप रे, सिर ढकना तो मैं à¤à¥‚ल ही गया था। पà¥à¤¨à¤ƒ बाहर आया, बालà¥à¤Ÿà¥€ में से à¤à¤• सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¤¾ साफा निकाला, बड़ी तनà¥à¤®à¤¯à¤¤à¤¾ से उसे सिर पर बांधा और “पासपोरà¥à¤Ÿ – वीसा†से पूरी तरह से लैस होकर लंगर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया। पà¥à¤°à¤•ाश परà¥à¤µ के कारण इस समय à¤à¥€à¤¡à¤¼ इतनी अधिक हो चà¥à¤•ी थी कि उस सारी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ को संà¤à¤¾à¤² पाना कठिन हो रहा था। पर वहां मौजूद कारसेवकों की ततà¥à¤ªà¤°à¤¤à¤¾ और मृदà¥à¤¤à¤¾ को देख – देख कर लग रहा था कि इनको शायद कà¤à¥€ कà¥à¤°à¥‹à¤§ आता ही नहीं। à¤à¥‹à¤œà¤¨ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करके बाहर निकला तो पà¥à¤¨à¤ƒ होटल में अपने कमरे में आकर सबसे पहले कैमरे का मैमोरी कारà¥à¤¡ खाली किया, बैटरी निकाल कर उसे à¤à¥€ चारà¥à¤œà¤¿à¤‚ग पर लगाया और दो घंटे के लिये सो गया।
कलयà¥à¤— से तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾à¤¯à¥à¤— में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ - अदà¥â€Œà¤à¥à¤¤ तीरà¥à¤¥à¤¸à¥à¤¥à¤² – रामतीरथ
थोड़ा सा धैरà¥à¤¯ रखें । आपके सामने जलà¥à¤¦à¥€ ही उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हो रहा हूं रामतीरथ का विवरण लेकर जो इस शà¥à¤°à¤‚खला का अनà¥à¤¤à¤¿à¤® पड़ाव à¤à¥€ है!
sir
twade upar dashmesh pita da hath hai. aisa lekhan wo likh sakta hai jispe waheguru ne apni mehar barsa rakhi ho.
dhanyawad
parveen
प्रिय प्रवीन जी,
मुझे जुलाई में घुमक्कड़ पर आने के बाद से बहुत सारे साथियों ने दिल खोल प्यार दिया है पर आज आपने ये एक पंक्ति लिख कर मेरी आंखें गीली कर दीं! यह आज तक के सभी कमेंट्स में सबसे प्रिय कमेंट बन गया है मेरे लिये! इससे बढ़कर और किसी को क्या चाहिये कि उस पर वाहेगुरु का हाथ दिखाई देने लगे!
सुशान्त सिंहल
सुशांत जी
आपने यह अच्छा किया जो कि वहां पर लंगर मे प्रसाद ग्रहण किया. और यह जरूरी भी मैने समझता हूँ जैसे कोई मंदिर मे जय और प्रसाद ना ले.
बहुत अच्छी पोस्ट
बहुत सुंदर वर्णन है, हरिमंदिर साहब में आपने हर जगह कार सेवक ही कार सेवक देखे बहुत अच्छा लगा, पर शिरोमणी गुरुद्वारा पर्बंधक कमेटी के पेड वर्कर भी हैं। जो सब काम का संचालन करते हैं। भारत में दूसरे धर्म भी अपने धार्मिक स्थान लोगों के सेवा भावना अनुरूप परिवर्तन कर सकते हैं।
धन्यवाद
प्रिय श्री सुरेन्द्र शर्मा जी,
हो सकता है कि वेतन लेने वाले लोग भी हों पर अगर वह कार सेवक की भावना से कार्य कर रहे हैं तो मैं उनको कार सेवक ही कहना चाहूंगा। दरअसल, मेरी दृष्टि में अगर कोई व्यक्ति अपने गृहस्थ धर्म की जिम्मेदारियां निभाने के लिये वेतन स्वीकार करता है पर काम करते हुए ये नहीं सोचता कि मुझे तो इतने से पैसे मिल रहे हैं फिर मैं यह या वह काम क्यों करूं ? या अब शाम के पांच बज गये हैं, मेरी ड्यूटी खत्म ! अब मुझे काम से क्या लेना देना ? तो फिर वह कार सेवक ही तो हुआ ना ?
आपको पोस्ट अच्छी लगी सो उसके लिये कृतज्ञ हूं !
शु्क्रिया लंगर के इस विस्तृत विवरण के लिए !
Sushant Singhal’s prose is like ice cream; one can never have enough of it and yeh dil maange more.
Sushant, I am sure most of us belonging to the pre-CD generation have had similar experiences with audio cassettes. However, this is the first time it is being portrayed as suicide and the analogy of the entwined tape with a rope around someone’s neck is simply brilliant. As is your reference to 60 minutes past 11. Your humour is strongly reminiscent of the great James Thurber.
You have given 2 good reasons for not shopping; I shall give a third. Usually all such stuff one buys on journeys end up cluttering up the house and crying for the liberation of a trash can even before it is used even once.
Finally, I think that it is a brilliant idea to compress several snapshots into the space of just one using GIF animation.
Looking forward to your journey backward in time (from kaliyug to tretayug).
Dear DL,
I am at a loss of words to convey my heartfelt gratitude for your morale booster words which works like adrenalin to me – asking me to write more and more. :)
Dear Manish Kumar,
Thanks a lot.
सुशांत जी, यदि स्वर्ण मंदिर जैसी सुविधा, अनुशासन, भक्ति, श्रृद्धा, लंगर का प्रबंध, हमारे सभी तीर्थो पर हो जाए तो ये देश फिर से स्वर्ग बन जाए…जो बोले सो निहाल …सत् श्री अकाल….
प्रिय प्रवीण गुप्ता,
सत् श्री अकाल…..
तो आखिरकार आपने एनिमेटेड जिफ लगा ही दिया, बढ़िया हैं , इससे कम जगह में ज्यादा सुख मिलता है पर पढ़ते वक़्त थोडा सा परेशां करता है | अगर ऐसा हो की एक स्लाइड शो आप्शन हो जिसमे पाठक-गन स्वयं आगे पीछे कर के आनंद ले सकें तो और बेहतर होता | वैसे फोटो के मामले में घुमक्कड़ पर बहुत काम बचा हुआ है |
लंगर का विस्तृत विवरण, गुरु राम राय निवास और रामबाग पैलेस की जानकारी नयी थी | धन्यवाद | कभी वो बैट्समेन मिलेगा तो मैं उससे माफ़ी मांग लूँगा | जय हिन्द |
Param Priy Nandan,
Hum to aap ke makaan me kiraayedaar log hain. Aap jo jo suvidhayen dete hain, so hum istemaal kar lete hain. Aap agar slideshow option available karaa doge, to aapki meharbaani. :D Abhi mujhe bhi bahut kuchh seekhna baaki hai.
प्रिय महोदय जी….
हिंदी के सुशोभित और सुन्दर शब्दों में रचित आपका यह लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा….आपने काफी विस्तार से लंगर के बारे में बताया जिसे जानकर अच्छा लगा ….| एक बात कहना चाहूँगा कि मैंने सुना और पढ़ा हैं की दुनिया की सबसे बड़ी रसोई श्री जगन्नाथ मंदिर की रसोई हैं…..जहाँ पर त्यौहार के समय एक लाख और सामान्य दिनों में लगभग पच्चीस हजार लोगो का खाना बनता हैं | अब थोड़ा संशय में हूँ की दुनिया की सबसे बड़ी रसोई अमृतसर की हैं या फिर पूरी की….खैर लेख में लंगर के बारे में पढ़ कर मुझे अपना मनिकरण के गुरूद्वारे में बिताए पल और वहाँ लंगर का प्रसाद ग्रहण करने की याद हो आई…..| रामबाग पैलेस के बारे में पढ़कर अच्छा लगा हमारे आगरा में भी रामबाग नाम का एक मुग़ल कालीन बाग हैं | विस्तृत फोटो श्रृंखला ने लेख को बहुत अच्छा बना दिया हैं…..खासकर लंगर की GIF फ़ाइल ने …इस तरह का प्रयास मैं भी अपने लेखो में करने की कोशिश करूँगा……|
वैसे आपके हिंदी भाषा बहुत सशक्त हैं आपके लेखो में गलतिया नहीं मिलती है …..मेरे हिसाब से और मेरी नजर में म्यूझियम → म्यूजियम और जूठे → झूठे होना चाहिये……|
अमृतसर को लेख के माध्यम से घुमाने के लिए धन्यवाद…..
रीतेश.. आगरा
प्रिय रीतेश,
आपको लेख अच्छा लगा यह जानकर मुझे भी अच्छा लगा ! विश्व की सबसे बड़ी रसोई का जहां तक संबंध है, मैने youtube पर एक वीडियो देखी है, जिसमें अमृतसर की इस रसोई को विश्व की सबसे बड़ी निःशुल्क रसोई बताया गया है जिसमें शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अनुसार लगभग १ लाख लोग प्रतिदिन भोजन / नाश्ता / चाय आदि ग्रहण करते हैं। अनवरत 24 घंटे चलती है, किसी भी धर्म का, जाति का, संप्रदाय का, देश का, विदेश का व्यक्ति यहां आ सकता है। यह सब मैने स्वयं अपनी आंखों से देखा भी है। पुरी मैं नहीं गया हूं अतः यह नहीं पता कि वहां की क्या स्थिति है। क्या वहां पर अहिन्दू यात्रियों को प्रवेश सुलभ है? मुझे नहीं मालूम !
जूठन और झूठ में अन्तर है। जूठन बचे हुए खाने को कहते हैं और झूठ बोला जाता है अर्थात् असत्य संभाषण ! म्यूज़ियम और म्यूझियम में अन्तर केवल इतना है कि हम हिन्दी भाषी अगर लिखेंगे तो म्यूज़ियम लिखेंगे और मराठी लोग अगर लिखेंगे तो म्यूझियम लिखेंगे !
आशा है, आपकी शंका का समाधान हो गया होगा ! :)
यहां पर बड़े – बड़े विद्वान लोग बैठे हैं, अतः मेरे खुराफाती दिमाग में एक प्रश्न कौंध गया है, जिसका उत्तर मिल सके तो बड़ी ही मेहरबानी होगी जी ! “ये गिलास जूठा है।” – इसकी अंग्रेज़ी क्या होगी ?
इसकी अंग्रेजी, “बोल बच्चन बोल” के रघुवंशी (अजय देवग्न) बताएँगे…LOL
“ये गिलास जूठा है।”
The glass is garbage..
यह गूगल से ट्रांस किया हैं….
Google cannot translate successfully between Hindi and English. You can translate between English / French most successfully there but the sentence construction of Hindi and English is entirely different.
As regards my query, the concept of ‘jootha’ is not there in English language as far as my knowledge goes. So, I couldn’t find an exact replacement of the word ‘jootha’ in English. It would need more than a sentence to communicate the meaning. :D
It is amazing how intellectually stimulating a debate with Sushant Singhal can be, even a debate about जूठा and झूठा. I think that जूठा, being a uniquely Indian concept, can easily be translated into any other Indian language but not into a non-Indian language. It is usually translated loosely as polluted by touch. In Telugu, the equivalent is Engili. Often, English is humourously referred to as Engili Bhasha or जूठा भाषा.
I think that the phonetic similarity between these words is a boon for creative humourists like Sushant. For example, hearsay (second hand evidence) is not only झूठा बयान but also जूठा बयान. What about a woman who discovers that her lover is already married? Would she term his love as झूठा प्यार or जूठा प्यार? Maybe both are equally applicable?
पल भर के लिए कोई हमें प्यार करले झूठा/जूठा ही सही…….
Dear DL,
I would love to meet you in person whenever the opportunity is available to me. How can a person be so sober and yet, a great humourist ! The subtle way in which you conveyed humour through the use of just two words – जूठा और झूठा in relation to a lover left me laughing aloud for a long time. Yes, in this particular case, both would be equally applicable! This made me remember two lines of an unknown poet –
“इस नाज़ुकी से लबों को छुआ उसने, कि रोज़ा भी नहीं टूटा और इफ्तारी भी हो गई ! “
यह उचित नही . अगर आपकी नजर मे कोई त्रुटि है भी तो नजरअंदाज करके यात्रा का आंनद लेना चाहिये.
नहीं रस्तोगी जी, मेरा ऐसा विचार नहीं है ! वैसे भी रीतेश जी और मैं बहुत अच्छे दोस्त हैं, यहां घुमक्कड़ पर ही नहीं बल्कि इससे बाहर भी ! हम दोनों को एक दूसरे के ऊपर इतना तो अधिकार है ही कि हम एक दूसरे को कुछ सुझाव दे सकें ! और फिर, यह भी तो देखिये कि कितनी मजेदार बातों की श्रंखला निकल चली है उस बात में से ! DL की बात पढ़ कर तो मजा ही आ गया !
सुशांत जी
खुश की तई,
उपरोक्त पंक्तियाँ पढ़ कर मजा आ गया.
इन लाइनों को पढ़ कर मुझे भी कुछ लाइने लिखने का मन कर आया है
1) अश्रु लिखते रहे , गीत मेरे सदा
वो पैरो से अपने ,मिटाते रहे.
2) मीरा के वे पति बने
इष्ट तुलसीदास के
मै बना दूंगा उसे अब
प्रेमिका संसार में
arey waah ! Rastogi Ji, aap kavi bhi hain? Fir to ek poori post kavita me hi likh daaliye. Main bhi koshish karoonga par yahan saathi log mera permanent boycott kar denge uske baad. Abhi phool baraste hain, fir sade hue ande aur tamaatar hi barsenge. :D
सुशांत जी
यह पंक्तिया मेरे बड़े भाई साहब द्वारा लिखित है. उन्होने अपनी युवावस्था मे कुछ एक श्रंगार रस की कविताये, गजल आदि लिखी थी साथ ही साथ उन्होने एक छोटा सा काव्य मधुशाला भी लिखा था. चन्द पंक्तिया प्रस्तुत हैं
हम पलट रहे इतिहास मगर
इतिहास स्वयं दुहराता है
कुछ ही छण मे वर्षो का
इतिहास बदल ही जाता है.
मरने वाले ही मरते हैं
है जीता है बस जीनेवाला
जीवन का जो उपभोग करे
जीती है वह है मधुशाला
मुझे याद आ रहा हैं …..” स्वांसों दी माला में, सिमरूं मैं तेरा नाम ” इस तरह का एक भक्ति गीत फ़िल्म कोयला में भी हैं……
अगर कोई गीत पहले एक बार सुना हुआ हो तो उसका दूसरे ढंग से प्रस्तुतिकरण मुझे नकली लगता है। कई सारे प्राइवेट एल्बम के गीत बाद में फिल्मों में भी शामिल कर लिये जाते हैं पर मुझे न जाने क्यों वह सब अजीब से लगते हैं। भले ही बाद में उन गीतों को लता जी से ही क्यों न गवाया गया हो !
इतनी प्यारी भाषा शैली ……..लगा जैसे मिले बगेर ही आप से मुलाक़ात हो गयी ।क्रपया ऐसे ही लिखते रहें
बहुत धन्यवाद संजय त्यागी जी !
मैं यहाँ एक बार गया जरुर था जब पहली बार अमरनाथ यात्रा पर गया था, बताऊँगा उस का वर्णन भी कभी जैसे ही समय मिला तो, आपका लेख देखकर याद आया कि मैंने यह लंगर तो देखा ही नहीं था, अगर किसी को मालूम हो बताये कि यहाँ पर अमेरिका या कही और से करोडों कीमत की एक रोटी बनाने वाली विशाल भीमकाय़ मशीन लायी गयी थी, आजकल वह मशीन कार्य कर रही है या उसका बाजा बजा दिया है?
हे परम श्रद्धेय जाटदेवता जी,
मुझे वहां कोई भीमकाय या लघुकाय मशीन ऐसी नहीं मिली जिससे रोटी बनाई जा सकें या जिसका मूल्य एक करोड़ रुपये के आस-पास हो ! अब आप इसका जो भी निहितार्थ निकालना चाहें – बाजा बज गया या ठीक होने गयी या बेच दी गई या खरीदी ही नहीं गई ! या कहीं, संभाल कर, सहेज कर रखी हो शायद !
तनावांत जी, अपने स्वार्थ के वशीभूत आपकी कुशल-क्षेम पूछे बिना, मैंने आपसे शिकायत कर दी, क्षमा चाहता हूँ, आप परिवारसहित परेशानी में रहे ! मुझे स्वामी विवेकानंद जी का कथन याद आता है कि जो दिन बिना परेशानी के गुजर जाता है सोचता हूँ शायद मुझपर प्रभु का स्नेह् कम हो गया है….. खैर अब तो परम् पावन साक्षात अकाल पुरख गुरु महाराज के दर्शन कर आए हो-“दीन दरद दुःख भंजना, घटी-घटी नाथ अनाथ; सरनि तुम्हारी आइयो, नानक के प्रभ साथ |
शायद लोकधर्मी भाषा में दर्शनों का इससे सुंदर वर्णन नहीं हो सकता, चित्रों में आपकी कलाकारी गौण अपितु श्रद्धा-आस्था के हस्ताक्षर हैं. और यदि दुर्गयाना मन्दिर, बिजली पहलवान के मन्दिर गए हों तो उनका भी उल्लेख भी जरूर करना.
धन्यवाद.
आदरणीय त्रिदेव जी
आपका इतना अगाध स्नेह देख कर मेरे मन में जो भावनायें उमड़ती हैं, उनको शब्दों में बांध पाना मेरे लिये असंभव ही है। यह बात बिल्कुल सही है कि अमृतसर जाकर और पावन स्वर्ण मंदिर के दर्शन कर मन को अपार शान्ति मिली है। यद्यपि तीन दिन वहां रहा पर मुझे दुर्गियाना मंदिर या बिजली पहलवान के मंदिर के बारे में कुछ पता नहीं था वरना वहां भी आराम से जा सकता था। चलिये, सारे दर्शनीय स्थल एक साथ ही देख लेता तो भविष्य के लिये क्या करता !
सुशान्त
सुशांत जी
एक और बढ़िया पोस्ट आपके द्वारा जो बहुत अच्छी लगी . मैंने यह महाराजा रणजीत सिंह का समर पैलेस – रामबाग नहीं देखा जब मैं अमृतसर गया था क्यूंकि मेरे पास केवल एक ही दिन था. अगली बार जाऊंगा तो यह जरूर देखूंगा. लंगर का विवरण काफी अच्छा था और आपने जो एनिमेशन किया है वह भी लाजवाब है . कृपा करके उसका राज़ बताइये .
Dear Vishal,
Thank you for liking the post. As regards animated gif, I had searched google for “animated gif maker” and came across several websites. I downloaded the gif creator from http://www.animated-gif-creator.com.
For using the application, you should start by selecting whatever pictures you want in the gif. Needless to add, all pics must be of the same dimension in pixels. Now launch the newly installed application. Start by adding pictures (import pics which you have selected), then arrange their sequence and duration of each slide. I had opted for 5000 milliseconds i.e. 5 seconds! Then I selected the last option “Create Gif now” ! It asked for a new file name which I offered and that’s all. Since it is not a paid version, last slide would be of the application maker. :(
For my post here, I opted for 640 px width x 415 px height. I trust you already know how to reduce your pics to desired size of 640 px. width. I do it with Photoshop but Microsoft Picture Editor is a great freeware for managing / organising / resizing pics in bulk. Usually people don’t know / use it as much as it should be. Hundreds of pics can be converted with a single press of button which otherwise takes hours.
If I can be of any more help, pls do let me know.
Sushant Singhal
Dear Sushantji,
Thoroughly entertaining account.
What is even more entertaining are your replies to the comments.
The use of animated gif is novel.
Thank you Nirdesh,
Thanks a lot for the lovely comments. I don’t have enough words to convey my heart-felt gratitude.
Sushant
सुशांत जी,
कुछ विलम्ब से प्रतिक्रिया प्रेषित कर रहा हूँ अतः क्षमाप्रार्थी हूँ। श्रद्धा भक्ति,ज्ञान,मनोरंजन एवं व्यंग्य से ओतप्रोत यह यात्रा वृत्तान्त एक अनमोल कृति है, मैं अपने आपको खुशनसीब समझता हूँ की मैं उस मंच का एक हिस्सा हूँ जहाँ पर आप जैसे विद्वान, मनीषी एवं महान लेखक उपस्थित हैं।
आपकी यह पोस्ट पढने के बाद तुरंत ही मैंने यु ट्यूब पर भाई हरबंस सिंह जी का वह शबद ढूंढा, उसे दो तीन बार सुना और वह मुझे इतना पसंद आया की उसे डाउनलोड करके मैंने अपने मोबाइल में डाल लिया है और जब भी मन करता है सुन लेता हूँ।
धन्यवाद।
प्रिय मुकेश भालसे,
कुछ विलंब से आपके कमेंट पर प्रतिक्रिया प्रेषित कर रहा हूं, अतः क्षमाप्रार्थी हूं। आपने मेरे लिये बहुत भारी भरकम शब्दों की बौछार कर दी है – जबकि मैं एक नितान्त साधारण सा इंसान हूं! आपको विश्वास न हो तो आप मेरी श्रीमती जी से पूछ लें! अगर आप सब को मेरे यात्रा संस्मरण अच्छे लगते हैं तो शायद इसलिये कि मैं अपने initials अपने ग्रेट Silent Soul के साथ शेयर करता हूं। हम दोनों ही SS हैं, अतः मुझ में भी तनिक सा असर उनका आ गया होगा !
बहुत बढ़िया प्रस्तुति सुशांत जी। हास्य के पुट सहित जिस प्रकार आप घटनाओं की एक खुबसूरत श्रृंखला बांधते है वो काबिले तारीफ़ है। वास्तव में जिस रामबाग गार्डन मे आप घुसे थे महाराजा रंजीत सिंह का पैलेस वहीँ है जो की पैलेस कम और एक सरकारी दफ्तर ज्यादा लगता है। स्वर्ण मंदिर के अलावा अमृतसर में एक और स्वर्ण मंदिर है जो कि हरमंदिर साहेब की नक़ल है। यह मंदिर दुर्गयाणा तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है और माँ दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर लगभग हरमंदिर साहेब की शैली में ही बना है जहाँ सोने और संगमरमर से बना मंदिर एक खुबसूरत छोटे से सरोवर के मध्य में स्तिथ है, कभी मौका लगे तो जरुर जाईयेगा।
प्रिय विपिन जी,
पोस्ट तक आने और उसे पढ़ने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद, शुक्रिया, मेहरबानी ! दुर्गियाना मंदिर अगली विज़िट पर ही जाना हो पायेगा क्योंकि मुझे इस मंदिर की उपस्थिति का भान ही नहीं था। दो – एक और मित्रों ने भी इस खूबसूरत मंदिर का ज़िक्र किया है। वैसे मुझे आश्चर्य है कि जिस किसी ने भी यह मंदिर बनाया उसने स्वर्णमंदिर की वास्तुकला की नकल करने का निर्णय क्यों लिया होगा?
सुशान्त