स्वर्ण मंदिर – लंगर और रामबाग पैलेस

अमृतसर में तीसरा दिन

Golden Temple Free Transport Service

स्वर्णमंदिर से स्टेशन तक निःशुल्क बस-सेवा

अगले दिन सुबह आंख खुली तो सोचा कि अब क्या किया जाये? स्वर्णमंदिर के दर्शन हो गये, जलियांवाला बाग भी हो आया और वाघा बार्डर भी! अब क्या? वापसी में अभी भी २४ घंटे से अधिक का समय शेष था क्योंकि अमृतसर – हरिद्वार जनशताब्दी ट्रेन में मेरा आरक्षण अगले दिन का था और वह सुबह सात बजे चलती है। शायद यह अकेलेपन का दुष्प्रभाव रहा होगा, मुझे बार – बार अपने निर्णय पर संदेह होने लगा कि क्या मैं इस एक दिन और एक रात का वास्तव में सदुपयोग कर पाऊंगा? फिर सोचा कि जो होना था, हो गया। अब देखते हैं कि आज क्या-क्या किया जा सकता था। इस दिन को बाज़ार में बिताने का मेरा कोई इरादा नहीं था। मुझे नये-नये बाज़ार देखने का तो शौक है पर सामान खरीदने का नहीं क्योंकि सामान खरीदने के दो नुकसान हैं। जहां एक ओर जेब हल्की हो जाती है वहीं दूसरी ओर सफर में ढोने के लिये सामान अधिक हो जाता है।

Shri Guru Ram Rai Niwas

सूर्योदय से पूर्व श्री गुरु राम राय निवास

नहा धो कर जब भूख लगने लगी तो सोचा कि आज क्या नाश्ता किया जाये? कहां किया जाये? एक मन हुआ कि इंटरकॉम पर होटल को ही आर्डर कर दूं पर फिर तुरन्त मन ने धिक्कारा ! छिः, होटल के कमरे में अकेले बैठ कर ब्रेड-बटर खाते हुए तुम्हें लज्जा नहीं आयेगी? मर्द बच्चे हो तो कैमरा उठाओ, सर पर भगवा वस्त्र बांधो और निकल पड़ो खाने की तलाश में! होटल से बाहर आकर सोचा कि स्वर्णमंदिर के दो ही प्रवेश द्वार देखे हैं । तीसरे द्वार की ओर जाकर भी तो देखा जाये कि वहां क्या-क्या है। बस, पैदल – पैदल बाईं दिशा में चल पड़ा जिधर दो ऊंची – ऊंची मीनारें हैं। उधर गया तो सबसे पहले फ्री बस सेवा का काउंटर मिला। स्वर्ण मंदिर प्रबन्धन रेलवे स्टेशन और हरमंदिर साहब के मध्य फ्री बस सेवा संचालित करता है। गेट से अंदर प्रवेश किया तो बायें हाथ पर गुरु रामदास निवास है जहां एक दिन के लिये यात्रियों को ठहरने की बहुत सस्ती दरों पर सुविधा उपलब्ध है। मन में आया कि एक रात यहां भी रुक कर देखा जाये। पर एक भी कमरा उपलब्ध नहीं था। वास्तव में उस दिन 9 अक्तूबर यानि, गुरु रामदास का प्रकाश पर्व होने के कारण अत्यधिक भीड़ थी। वहां से आगे बढ़ा तो देखा कि एक विशाल हॉल में कीर्तन चल रहा है। शबद कीर्तन मुझे अत्यधिक पसन्द हैं। बहुत साल पहले एक ऑडियो कैसेट मेरे पास हुआ करता था जिसका शीर्षक था – “दास की राखिये”। इसमें टाइटिल गीत के अतिरिक्त एक गीत था – “रसना जपती तू ही तू ही!” वह कैसेट मैने इतना सुना, इतनी बार सुना कि उस बेचारे कैसेट ने परेशान होकर एक दिन आत्म हत्या कर ली। दरअसल, उसकी रील मेरे प्लेयर में ऐसी उलझी, जैसे कोई अपनी गरदन पर रस्सा लपेट कर पंखे से झूल गया हो! उस दिन के बाद से मैने सैंकड़ों दुकानों पर उस कैसेट को तलाशा पर कहीं नहीं मिला। अब youtube पर ढूंढता रहता हूं तो भी वह नहीं मिलता। “रसना जपती तू ही तू ही” शबद youtube पर है तो सही, पर और किसी गायक की आवाज़ में है। जो धुन मेरे अन्तर्मन में बसी हुई है, वह कहीं नहीं मिलती है। ऐसा ही एक और मनभावन शबद है – “स्वांसों दी माला में, सिमरूं मैं तेरा नाम !” यह शबद भाई हरबंस सिंह जी जगाधरी वालों की अनमोल प्रस्तुति है। आपने यदि इसे नहीं सुना है तो मेरे कहने पर एक बार अवश्य ही सुन लें – मुरीद हो जायेंगे। youtube पर उपलब्ध है। अस्तु!

दीवान हॉल मंजी साहिब

स्वर्ण मंदिर में दीवान हॉल मंजी साहिब

 

दीवान हॉल मंजी साहिब

स्वर्ण मंदिर परिसर में दीवान हॉल मंजी साहिब में शबद कीर्तन

आधा घंटा इस हॉल में जिसका नाम “दीवान हॉल मंजी साहिब” है, बैठा तो पेट ने कहना शुरु कर दिया कि मुझे भूखा रख कर तू क्या सोचता है कि शबद के मजे ले लेगा? चल उठ, पहले मेरे लिये कुछ इंतज़ाम कर, फिर बैठ कर शबद कीर्तन सुनना !   बाहर निकला तो  तबीयत प्रसन्न हो गई !  सामने ही लिखा मिला गुरु जी दा लंगर!   बिना जेब में हाथ डाले वाहे गुरु जी ने इस पापी पेट को शान्त करने के भरपूर इंतज़ाम कर रखा था ।    “भूखे भजन न होय गोपाला” गुनगुनाता हुआ मैं उधर ही बढ़ा, पर सोच रहा था कि आज तक कभी लंगर में प्रसाद ग्रहण नहीं किया। शाकुंभरी मंदिर जाते हैं, साईं बाबा के मंदिर में जाते हैं तो बहुत सारे भंडारे चल रहे होते हैं। पर किसी का निमंत्रण हो तो ही खाना खाने के लिये बैठते हैं, वरना संकोच होता है। पर चलो, आज यह भी अनुभव सही!

विश्व की सबसे बड़ी निःशुल्क रसोई

World's largest free kitchen at Golden Temple Amritsar

विश्व की सबसे बड़ी निःशुल्क रसोई

सुबह साढ़े आठ या नौ बजे का वक्त था अर्थात् नाश्ते का ! सैंकड़ों की भीड़ में मैं भी उस हॉल में घुस गया। दो-तीन सज्जन थालियां बांट रहे थे। एक थाली थाम कर भीड़ के साथ – साथ सीढि़यों की ओर आगे बढ़े तो चम्मच और एक बड़ा सा कटोरा भी मिल गया। भीड़ ने जीने की ओर बढ़ना शुरु किया तो बिना ये जाने कि ऊपर क्या है, उधर ही बढ़ता चला गया। एक विशालकाय भोजन कक्ष था जिसमें टाट बिछे हुए थे और आधा हॉल पहले ही भर चुका था और लोग आकर बैठते जा रहे थे। एक पंक्ति में मैं भी अपनी थाली और कटोरा लेकर बैठा ही था कि एक कार सेवक खीर की बाल्टी लेकर आये और मेरी थाली में कड़छी भर के खीर दे दी। इस थाली में कटोरियां बनी हुई थीं! इसके बाद पनीर की सब्ज़ी आई। जलेबी आई, मालपुआ आया। जब रोटी आई और मैने हाथ बढ़ाया तो उन्होंने आंखों ही आंखो में मुझे घूरा और इशारा किया कि दोनों हाथ बढ़ाऊं, केवल एक नहीं ! दोनों हाथों की अंजुली बनाई तब जाकर दो रोटी मिलीं ! मेरे सामने कुछ विदेशी पर्यटक महिलायें आकर बैठीं पर वे उस हॉल में आने जाने की, खाना खाने की अभ्यस्त लग रही थीं। उनमें से एक कैमरा लिये हुए थी, और धड़ाधड़ फोटो खींचे जा रही थी। मैने उसकी और उसने मेरी फोटो खींची और फिर बड़े ही प्रेम भाव से खाना खाया।

नाश्ते का अति सुन्दर प्रबन्ध हो चुका था। अपने जूठे बर्तन लेकर हम बाहर निकले, सीढ़ियों से नीचे उतरे तो सबसे पहले एक सज्जन ने हमसे चम्मच ले ली। आगे बढ़े तो थाली और कटोरा भी ले लिया गया। वहां सैंकड़ों महिलाएं और पुरुष कार सेवक बर्तन धोने के काम में लगे हुए थे और उनमें से एक भी वेतनभोगी कर्मचारी नहीं था। कई घंटे तक यदि आप इस प्रकार स्वर्ण मंदिर में जाकर अपरिचित लोगों के जूठे बरतन मांजने का अनुभव ले चुके हैं तो आप अपने घर में बर्तन मांजने वाली बाई को हिकारत की निगाह से कभी नहीं देखेंगे। आपको यह अनुभूति रहेगी कि वह महिला शारीरिक श्रम करके अपना और अपने बच्चों का पेट पाल रही है इसलिये सम्मान की अधिकारिणी है।

कृपया जूठी चम्मच यहां रखें जी !

अपनी जूठी चम्मचें यहां रख देवें जी !

जूठे बर्तन देकर जल की तलाश में आगे बढ़ा तो देखा कि बरामदे में लगभग सौ महिलायें और पुरुष फर्श पर बैठे हुए काम में तल्लीन थे। काम करते हुए उनकी फोटो खींचनी लेने लगा तो मेरी भी आंखें छलछला आईं। ऐसा नहीं कि कोई कष्टकर दृश्य देख कर आंखें भर आई हों ! दरअसल, वह सब प्याज और हरी मिर्च काट रहे थे। आगे बढ़ा तो दाल और सब्जी बनती दिखाई दी। एक जगह विशालकाय पिसाई मशीन से प्याज पीसी जा रही थी। कहीं रोटी सेकी जा रही थीं। हर जगह कार सेवक ही कार सेवक ! वेतन भोगी कर्मचारी एक भी नहीं ! जिसको जो काम करने में रुचि हो, अच्छे से करना आता हो, वह उसी काम को पकड़ लेता है। सामाजिक व्यवस्था का इससे बेहतर नमूना और कहीं देखने को नहीं मिलेगा ! वे हज़ारों स्त्री-पुरुष अपने- अपने घर से स्वर्णमंदिर के दर्शन करने के लिये आये हुए हैं अतः इस धरातल पर सब एक समान हैं, कोई भी छोटा या बड़ा नहीं है। सब वाहेगुरु के दरबार में आकर कार सेवा करने के उत्सुक हैं । उस पूरी व्यवस्था को सही प्रकार से संचालित करने के लिये हर प्रकार की सेवा की जरूरत है। शबद कीर्तन करने के लिये रागी चाहिये तो चंवर डुलाने वाला भी चाहिये। हज़ारों लोगों का पेट भरना है तो खाना बनाने के लिये भी सैंकड़ों कार सेवक चाहियें। जो लोग जेब से पैसे खर्च करके बाज़ार से आटा, चीनी और फल – सब्जी ला कर दे रहे हैं, वह भी सेवा कर रहे हैं और जो खाना बना रहे हैं, जूठे बर्तन साफ कर रहे हैं, वह भी सेवा कर रहे हैं। कोई फर्श पर झाड़ू लगा रहा है तो कोई पंखों की और छत्र की सफाई कर रहा है। अपने-अपने मतलब का, अपनी-अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार सेवा कार्य पकड़ कर हर कोई अपनी-अपनी रीति से वाहेगुरु की सेवा कर रहा है। सामाजिक व्यवस्था के संचालन का भारतीय जीवन-दर्शन अपने जितने शुद्ध, पवित्र और सात्विक रूप में यहां स्वर्णमंदिर में देखने को मिला, वह अन्यत्र दुर्लभ हो चला है। श्रीमद् भगवतगीता के अठारहवें अध्याय में योगेश्वर श्रीकृष्ण जिस वर्णाश्रम व्यवस्था का वर्णन करते हैं उसका साक्षात् दर्शन स्वर्णमंदिर में किया जा सकता है। अस्तु!

ध्यानमग्न वृद्ध सिक्ख

महाराजा रणजीत सिंह का समर पैलेस – रामबाग

लंगर से बाहर निकल कर पुनः वही प्रश्नचिह्न सम्मुख आ खड़ा हुआ – “अब क्या?“ अचानक मुझे याद आया कि एक मित्र ने रामबाग समर पैलेस यानि, महाराजा रणजीत सिंह के महल का ज़िक्र किया था और कहा था कि मैं उसे अवश्य देख कर आऊं। रिक्शे वालों से पूछना शुरु किया तो सबने 30 रुपये बताये। मुझे लगा कि अमृतसर के रिक्शे वालों को तीस का आंकड़ा कुछ ज्यादा ही पसन्द है। रामबाग पैलेस चलने के लिये एक रिक्शा कर लिया। स्वर्ण मंदिर में हर किसी को कार सेवा में तन्मयता से लगे हुए देखते देखते, मुझे लग रहा था कि यह रिक्शावाला भी तो इस विशाल समाज के लिये एक अत्यन्त उपयोगी कार सेवा ही कर रहा है। अतः उसके प्रति सम्मान की भावना रखते हुए मैं रिक्शे में ऐसे सिमट कर बैठा जैसे मेरे सिमट कर बैठने मात्र से मेरा 82 किलो वज़न घट कर 60 किलो रह जायेगा। मेरा वज़न घटे या न घटे ये तो वाहेगुरु जी की इच्छा पर निर्भर है, पर उन्होंने (और आपने भी) मेरी भावनाओं को तो अवश्य ही समझ लिया होगा।

सुबह – सवेरे अमृतसर के बाज़ारों में से घुमाते – घुमाते, रिक्शाचालक रमनीक सिंह गंतव्य की ओर बढ़ता रहा। (उसने रिक्शा चलाते चलाते मुझे अपना नाम रमनीक बताया था। मैं चूंकि अमृतसर मे घूम रहा था सो सिंह मैने अपनी तरफ से जोड़ रहा हूं । अगर बिहार की रिक्शा होती तो रमनीक लाल हो जाता।) रामबाग पैलेस के बारे में मुझे बताया गया था कि स्वर्ण मंदिर के बिल्कुल पास और शहर के मध्य में है, यानि एक – डेढ़ किमी। मेरी उम्मीद से काफी अधिक समय लगा कर रिक्शा गंतव्य तक पहुंच ही गया तो मुझे लगने लगा कि रिक्शे वाले रमनीक भइया ने 30 रुपये कम मांगे हैं, हमारे सहारनपुर का रिक्शा होता तो बिना संकोच के 50 रुपये तो मांग ही लेता। इससे पहले कि मेरा मन रिक्शे वाले को फालतू पैसे देने को कर आये, मैं अपने मन को काबू में करके, रमनीक सिंह को 30 रुपये देकर रिक्शे से उतर गया। रिक्शा चालक ने एक गेट की ओर इशारा करके बताया कि इसी में से अन्दर जाइये! वास्तव में वह कंपनी बाग का प्रवेश द्वार था और उसके अंदर ही महल होना अपेक्षित था।

Summer Palace Map

महाराजा रणजीत सिंह के महल का नक्शा

मैंने अन्दर प्रवेश करते ही देखा कि वहां पर उस पूरे भौगोलिक क्षेत्र का नक्शा बना हुआ है पर काफी माथा-पच्ची करने पर यह समझ नहीं आया कि अब यहां से मुझे किस दिशा में आगे बढ़ना चाहिये। जब तक नक्शे में आपको यह इंगित न किया जाये कि उसमें आप किस बिन्दु पर खड़े हैं, तब तक आप आगे कैसे बढ़ेंगे? यह सोच कर कि शायद यह नक्शा पैलेस वालों ने उन लोगों के लिये बनाया होगा जो यहां के स्थाई निवासी हैं, मैने कंपनी बाग में घूम रहे लोगों से ही पूछ – पूछ कर आगे बढ़ने का प्रयास किया। वैसे वहां की हालत देख कर ऐसा लग नहीं रहा था कि पर्यटकों के लिये देखने लायक कोई भी महल या म्यूझियम वहां मौजूद होगा।

अपने आकार से बड़ा फावड़ा उठाये घूम रहा एक बच्चा

अपने आकार से बड़ा फावड़ा उठाये घूम रहा एक बच्चा

आगे बढ़ा तो कुछ युवक क्रिकेट खेलते मिले। एक युवक जो बैटिंग कर रहा था, उसे मैने हाथ से इशारा किया। ध्यान बंट जाने के कारण वह बेचारा क्लीनबोल्ड हो गया। झल्लाया हुआ सा मेरे पास आया और बोला, क्या है अंकल जी? मैने कहा कि यहां कोई म्यूझियम है क्या? वो बोला, “पूछताछ काउंटर आगे है, वहां से पता कर लो!” मैं उसे धन्यवाद देकर आगे बढ़ा तो एक नन्हा बच्चा अपने कंधे पर फावड़ा उठाये घूमता मिला। उस होनहार बच्चे की माता वहीं पास में घास खोद रही थी। उस बच्चे की दो-एक फोटो खींच कर आगे बढ़ा तो वास्तव में एक गोलाकार भवन दिखाई दिया जहां गेट पर टिकट काउंटर भी था। १० रुपये का टिकट कटा कर मैंने परिसर में प्रवेश किया।

महाराजा रणजीत सिंह के घुड़सवार

महाराजा रणजीत सिंह के घुड़सवार

इस गेट से अन्दर घुसा तो माहौल एकदम परिवर्तित हो गया। अन्दर परिसर में घास भी अनुशासित थी, दो घुड़सवारों की प्रतिमायें उस परिसर की रक्षा कर रही थीं। मेरे सामने महाराजा रणजीत सिंह का समर पैलेस था जिसे अब पैनोरामा (संभवतः हिन्दी में इसे गवाक्ष कहेंगे) का स्वरूप दे दिया गया है। (बाद में सहारनपुर आकर जब नक्शे की फोटो को पुनः गंभीरली स्टडी किया तो पता चला कि समर पैलेस तो मैने वास्तव में देखा ही नहीं। कहां था, यह भी पता नहीं!   ये तो पैनोरामा ही था, जिसको देख कर मैं वापिस लौट आया था।)

अन्दर घूमते हुए पाया कि भूतल पर दो कक्षों में शीशे के पीछे 3-D झांकियां बनाई गई हैं| हर झांकी उनके जीवन के किसी विशेष महत्वपूर्ण पक्ष को उजागर कर रही थी। महाराजा रणजीत सिंह को एक अत्यन्त न्यायप्रिय राजा और कुशल सेनापति के रूप में ख्याति प्राप्त है जिन्होंने अनेकानेक युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया और अब तक अजेय समझी जाने वाली सेनाओं पर विजयश्री हासिल की। प्रथम तल पर गोलाकार कक्ष है जिसमें 360 डिग्री का पैनोरामा बनाया गया है। यहां आते- आते मेरे साथ एक भयानक दुर्घटना घट गई और वह ये कि मेरे कैमरे के मैमोरी कार्ड में स्पेस खत्म हो गई। मैं वहीं सीढ़ियों पर बैठ कर पिछली शाम वाघा बार्डर की फोटो हटा ही रहा था कि बैटरी ने भी जवाब दे दिया। मजबूरन कैमरे को तो उसके बैग में वापिस रखा और अपना नोकिया 202 निकाल लिया ताकि शूटिंग जारी रह सके। ऐसे में, उन वीर भारतीय सेनानायकों की बरबस याद हो आई जिन्होंने राइफल में कारतूस खत्म हो जाने के बाद अपनी संगीनों के सहारे ही युद्ध में दुश्मनों का मुकाबला किया था।

 

 

महाराजा रणजीत सिंह पैनोरामा

महाराजा रणजीत सिंह के पिता अपने दरबारियों के साथ। रणजीत सिंह शिशु के रूप में नीचे फर्श पर दिखाई दे रहे हैं।

ग्यारह से ऊपर समय हो चुका था, वहां से वापिस होटल तक आया तो देखा कि ग्यारह बज कर साठ मिनट हो रहे हैं। ( पंजाब में घूमते हुए बारह बजने का ज़िक्र नहीं करना चाहिये, ऐसा मुझे मेरे कुछ झक्की मित्रों ने बता रखा था। ) होटल रिसेप्शन पर पूछा गया कि मैं आज रुकने वाला हूं या चैक आउट करूंगा। 9 अक्तूबर गुरु श्री रामदास जी का प्रकाश पर्व होने के कारण आज अमृतसर में और दिनों की तुलना में कई गुना अधिक भीड़ थी; ऐसे में अच्छे-भले हाथ में आये हुए कमरे को छोड़ना मूर्खता ही होती अतः उनको बता दिया कि मैं सुबह छः बजे घर की दिशा में प्रयाण करूंगा।

सुबह लंगर में निःशुल्क नाश्ता करने में बहुत आनन्द आया था, सो भोजन करने के लिये भी पुनः वहीं पर पहुंच गया। यह बात अलग है कि वहां रक्खी हुई गुल्लक में अपने मन में जो इच्छा हुई, उसमें अर्पित कर दिया। लंगर प्रांगण में प्रवेश करने लगा तो थाली दे रहे सज्जन ने थाली देने से मना कर दिया और कहा कि सिर ढक कर आऊं। अरे, बाप रे, सिर ढकना तो मैं भूल ही गया था। पुनः बाहर आया, बाल्टी में से एक सुनहरा साफा निकाला, बड़ी तन्मयता से उसे सिर पर बांधा और “पासपोर्ट – वीसा” से पूरी तरह से लैस होकर लंगर में प्रवेश किया। प्रकाश पर्व के कारण इस समय भीड़ इतनी अधिक हो चुकी थी कि उस सारी व्यवस्था को संभाल पाना कठिन हो रहा था। पर वहां मौजूद कारसेवकों की तत्परता और मृदुता को देख – देख कर लग रहा था कि इनको शायद कभी क्रोध आता ही नहीं। भोजन ग्रहण करके बाहर निकला तो पुनः होटल में अपने कमरे में आकर सबसे पहले कैमरे का मैमोरी कार्ड खाली किया, बैटरी निकाल कर उसे भी चार्जिंग पर लगाया और दो घंटे के लिये सो गया।

कलयुग से त्रेतायुग में प्रवेश –  अद्‌भुत तीर्थस्थल – रामतीरथ

 

थोड़ा सा धैर्य रखें ।  आपके सामने जल्दी ही उपस्थित हो रहा हूं रामतीरथ का  विवरण लेकर जो इस श्रंखला का अन्तिम पड़ाव भी है!

 

41 Comments

  • parveen says:

    sir

    twade upar dashmesh pita da hath hai. aisa lekhan wo likh sakta hai jispe waheguru ne apni mehar barsa rakhi ho.

    dhanyawad
    parveen

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  • Surinder Sharma says:

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  • Manish Kumar says:

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  • D.L.Narayan says:

    Sushant Singhal’s prose is like ice cream; one can never have enough of it and yeh dil maange more.

    Sushant, I am sure most of us belonging to the pre-CD generation have had similar experiences with audio cassettes. However, this is the first time it is being portrayed as suicide and the analogy of the entwined tape with a rope around someone’s neck is simply brilliant. As is your reference to 60 minutes past 11. Your humour is strongly reminiscent of the great James Thurber.

    You have given 2 good reasons for not shopping; I shall give a third. Usually all such stuff one buys on journeys end up cluttering up the house and crying for the liberation of a trash can even before it is used even once.

    Finally, I think that it is a brilliant idea to compress several snapshots into the space of just one using GIF animation.

    Looking forward to your journey backward in time (from kaliyug to tretayug).

    • Dear DL,

      I am at a loss of words to convey my heartfelt gratitude for your morale booster words which works like adrenalin to me – asking me to write more and more. :)

      Dear Manish Kumar,

      Thanks a lot.

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    • Param Priy Nandan,

      Hum to aap ke makaan me kiraayedaar log hain. Aap jo jo suvidhayen dete hain, so hum istemaal kar lete hain. Aap agar slideshow option available karaa doge, to aapki meharbaani. :D Abhi mujhe bhi bahut kuchh seekhna baaki hai.

  • Ritesh Gupta says:

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        • Ritesh Gupta says:

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          The glass is garbage..

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          • Google cannot translate successfully between Hindi and English. You can translate between English / French most successfully there but the sentence construction of Hindi and English is entirely different.

            As regards my query, the concept of ‘jootha’ is not there in English language as far as my knowledge goes. So, I couldn’t find an exact replacement of the word ‘jootha’ in English. It would need more than a sentence to communicate the meaning. :D

        • D.L.Narayan says:

          It is amazing how intellectually stimulating a debate with Sushant Singhal can be, even a debate about ???? and ????. I think that ????, being a uniquely Indian concept, can easily be translated into any other Indian language but not into a non-Indian language. It is usually translated loosely as polluted by touch. In Telugu, the equivalent is Engili. Often, English is humourously referred to as Engili Bhasha or ???? ????.

          I think that the phonetic similarity between these words is a boon for creative humourists like Sushant. For example, hearsay (second hand evidence) is not only ???? ???? but also ???? ????. What about a woman who discovers that her lover is already married? Would she term his love as ???? ????? or ???? ?????? Maybe both are equally applicable?
          ?? ?? ?? ??? ??? ???? ????? ???? ????/???? ?? ???…….

          • Dear DL,

            I would love to meet you in person whenever the opportunity is available to me. How can a person be so sober and yet, a great humourist ! The subtle way in which you conveyed humour through the use of just two words – ???? ?? ???? in relation to a lover left me laughing aloud for a long time. Yes, in this particular case, both would be equally applicable! This made me remember two lines of an unknown poet –

            “?? ?????? ?? ???? ?? ??? ????, ?? ???? ?? ???? ???? ?? ??????? ?? ?? ?? ! “

    • rastogi says:

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        • rastogi says:

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          • arey waah ! Rastogi Ji, aap kavi bhi hain? Fir to ek poori post kavita me hi likh daaliye. Main bhi koshish karoonga par yahan saathi log mera permanent boycott kar denge uske baad. Abhi phool baraste hain, fir sade hue ande aur tamaatar hi barsenge. :D

          • rastogi says:

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  • sanjay tyagi says:

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  • JATDEVTA says:

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    • Dear Vishal,

      Thank you for liking the post. As regards animated gif, I had searched google for “animated gif maker” and came across several websites. I downloaded the gif creator from http://www.animated-gif-creator.com.

      For using the application, you should start by selecting whatever pictures you want in the gif. Needless to add, all pics must be of the same dimension in pixels. Now launch the newly installed application. Start by adding pictures (import pics which you have selected), then arrange their sequence and duration of each slide. I had opted for 5000 milliseconds i.e. 5 seconds! Then I selected the last option “Create Gif now” ! It asked for a new file name which I offered and that’s all. Since it is not a paid version, last slide would be of the application maker. :(

      For my post here, I opted for 640 px width x 415 px height. I trust you already know how to reduce your pics to desired size of 640 px. width. I do it with Photoshop but Microsoft Picture Editor is a great freeware for managing / organising / resizing pics in bulk. Usually people don’t know / use it as much as it should be. Hundreds of pics can be converted with a single press of button which otherwise takes hours.

      If I can be of any more help, pls do let me know.

      Sushant Singhal

  • Nirdesh says:

    Dear Sushantji,

    Thoroughly entertaining account.

    What is even more entertaining are your replies to the comments.

    The use of animated gif is novel.

  • Mukesh Bhalse says:

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  • Vipin says:

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