दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚,
à¤à¤• लमà¥à¤¬à¥‡ अंतराल के बाद आज फिर उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हà¥à¤‚ आप लोगों के सामने। आप सà¤à¥€ जानते ही हैं की मेरी घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी का केनà¥à¤¦à¥à¤° अकà¥à¤¸à¤° धरà¥à¤® सà¥à¤¥à¤² ही हà¥à¤† करते हैं, और आज à¤à¥€ मैं आपलोगों को à¤à¤• धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤² की ही सैर पर ले जा रहा हà¥à¤‚। चलिये आज हम चलते हैं à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ के मनोहारी दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के लिये ……नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾à¥¤
नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ के बारे में हम लोगों ने पहले से ही कई बार सà¥à¤¨ रखा था और अब यहां जाने की इचà¥à¤›à¤¾ बलवती होती पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¤ हो रही थी, फ़िर à¤à¤• बार घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ पर रितेश गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी की नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ की पोसà¥à¤Ÿ पढकर इस इचà¥à¤›à¤¾ को और हवा मिल गई।
मथà¥à¤°à¤¾, वà¥à¤°à¤‚दावन à¤à¤µà¤‚ वाराणसी कि यातà¥à¤°à¤¾ को समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ कà¥à¤› ही समय हà¥à¤† था कि मन में फिर कहीं जाने की लालसा होने लगी। हमारे पड़ोस में à¤à¤• परिवार है जो पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿à¤®à¤¾à¤°à¥à¤—िय वैषà¥à¤£à¤µ समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ से हैं और अकà¥à¤¸à¤° à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£Â के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के लिये नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जाते रहते हैं और वहां के बारे में बताते à¤à¥€ रहते हैं। अब चà¥à¤‚कि हमें à¤à¥€ अपने अगले डेसà¥à¤Ÿà¤¿à¤¨à¥‡à¤¶à¤¨ के लिये कà¥à¤› निरà¥à¤£à¤¯ लेना ही था तो हमने सोचा कि कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न इस बार नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ का ही रà¥à¤– किया जाà¤, और वैसे à¤à¥€ नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ हमारे घर से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ दà¥à¤° नहीं है। बस à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤› मन में चल ही रहा था, और फिर मैने गौर किया की कविता ने à¤à¤• हफ़à¥à¤¤à¥‡ में दो बार नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जाने की इचà¥à¤›à¤¾ जताई और बस ……..फिर कà¥à¤¯à¤¾ था मैनें फटाफ़ट दो घंटे में यातà¥à¤°à¤¾ योजना à¤à¥€ बना ली और आरकà¥à¤·à¤£ à¤à¥€ करवा लिया।
हमारे घर के सामने वाली सड़क से ही सीधे उदयपà¥à¤° के लिये बस मिल जाती है और आगे नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ के लिये उदयपà¥à¤° से बस मिलती है। लेकिन हम लोग चà¥à¤‚कि टà¥à¤°à¥ˆà¤¨-लवर हैं और टà¥à¤°à¥ˆà¤¨ से ही सफ़र करना पसंद करते हैं अत: मैनॆं रतलाम से मावली (नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ का नज़दीकि सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨) के लिये तथा वापसी में उदयपà¥à¤° से रतलाम के लिये आरकà¥à¤·à¤£ करवा लिये, और यातà¥à¤°à¤¾ कि दिनांक का बेसबà¥à¤°à¥€ से इनà¥à¤¤à¤œà¤¼à¤¾à¤° करने लगे।
13 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² 2013, शनिवार को दोपहर 12.30 पर रतलाम से हमारी हमें टà¥à¤°à¥ˆà¤¨ थी अत: हमलोग सà¥à¤¬à¤¹ 9 बजे अपनी कार से रतलाम के लिये निकल गये और लगà¤à¤— 11.30 बजे रतलाम पहà¥à¤‚च गये। रेलà¥à¤µà¥‡ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के पारà¥à¤•िंग में कार पारà¥à¤• करने के बाद हमने नाशà¥à¤¤à¤¾ वगैरह किया और करीब बारह बजे हमलोगों ने अपनी अपनी बरà¥à¤¥ पर कबà¥à¤œà¤¾ जमा लिया।
मधà¥à¤¯ अपà¥à¤°à¥ˆà¤² का महिना था और अचà¥à¤›à¥€ खासी गरà¥à¤®à¥€ शà¥à¤°à¥‚ हो गई थी। आम तौर पर हम लोग गरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में टूर नहीं करते हैं, और फिर ये तो गरà¥à¤®à¥€ की à¤à¤°à¥€ दोपहर थी और टà¥à¤°à¥ˆà¤¨ à¤à¥€ पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¼à¤¾à¤°à¥à¤® पर रà¥à¤•ी हà¥à¤ˆ थी, बड़े असहज महà¥à¤¸à¥à¤¸ करते हà¥à¤ हम टà¥à¤°à¥ˆà¤¨ के चलने का इनà¥à¤¤à¤œà¤¼à¤¾à¤° कर रहे थे कà¥à¤› देर के इनà¥à¤¤à¤œà¤¼à¤¾à¤° के बाद टà¥à¤°à¥ˆà¤¨ चल पड़ी और à¤à¤• सà¥à¤•à¥à¤¨ à¤à¤°à¥‡ हवा के à¤à¥‹à¤‚के ने टà¥à¤°à¥ˆà¤¨ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया तब जाकर हमने राहत की सांस ली। टà¥à¤°à¥ˆà¤¨ के सफ़र का आनंद लेते हà¥à¤ तथा खिड़की से बाहर के नज़ारों का लà¥à¤¤à¥à¤«à¤¼ उठाते हà¥à¤ हम शाम करिब छह बजे मावली पहà¥à¤‚च गà¤à¥¤
मावली रेलà¥à¤µà¥‡ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर उतरने के बाद करीब ही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ बस सà¥à¤Ÿà¥‰à¤ª पहà¥à¤‚च कर कà¥à¤› देर इनà¥à¤¤à¤œà¤¼à¤¾à¤° करने के बाद हमें नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ के लिये राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ परिवहन की बस मिल गई और कà¥à¤› à¤à¤• घंटे के सफ़र के बाद हमने उस अति पवितà¥à¤° धरती पर अपने कदम रखे जिसके बारे में कहा जाता है कि à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€ कà¥à¤°à¤·à¥à¤£ आज à¤à¥€ यहां विराजमान हैं। आइये अब कà¥à¤› जानते हैं नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ के बारे में –
नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ के राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के राजसमनà¥à¤¦ ज़िले में उदयपà¥à¤° जाने वाले मारà¥à¤— पर बनास नदी के ठीक दकà¥à¤·à¤¿à¤£ में à¤à¤• हिंदू तीरà¥à¤¥à¤¸à¥à¤¥à¤² है। यहाठवलà¥à¤²à¤ समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ के वैषà¥à¤£à¤µà¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ मà¥à¤–à¥à¤¯ पीठहै। नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सड़क दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उदयपà¥à¤° से 48 किमी दूर है तथा उदयपà¥à¤° से यहाठके लिठबसें चलती हैं। à¤à¤¸à¤¾ कहा जाता है कि नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ के मंदिर की मूरà¥à¤¤à¤¿ पहले गोवरà¥à¤§à¤¨ (बà¥à¤°à¤œ) में थी। मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤®à¥‹à¤‚ के आकà¥à¤°à¤®à¤£ के समय इस मूरà¥à¤¤à¤¿ को सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से नाथदà¥à¤µà¤¾à¤° ले आये थे। नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ के निकट मावली रेल जंकà¥à¤¶à¤¨ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है।
नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ सिंहाड़ गà¥à¤°à¤¾à¤® के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर बसा हà¥à¤† है। कहा जाता है कि मà¥à¤—़ल बादशाह औरंगज़ेब के शासन काल में मथà¥à¤°à¤¾-वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ में à¤à¤¯à¤‚कर तबाही रहा करती थी। इस तबाही से मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ को बचाने के लिये शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी की मूरà¥à¤¤à¤¿ नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लायी गई थी। मूरà¥à¤¤à¤¿ को नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लाने का काम मेवाड़ के राजा राजसिंह ने किया। जिस बैलगाडी में शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥à¤œà¥€ लाये जा रहे थे, उस बैलगाड़ी के पहिये नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ में आकर ही मिटà¥à¤Ÿà¥€ में धंस गये और लाख कोशिशों के बाद à¤à¥€ पहियों को निकाला नहीं जा सका। तब पà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥à¤œà¥€ को यहीं सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ कर दिया।
नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ में 17वीं सदी का वैषà¥à¤£à¤µ मंदिर है, जो à¤à¤¾à¤°à¤¤ के सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ मंदिरों में से à¤à¤• है। मंदिर में à¤à¤—वान कृषà¥à¤£ की à¤à¤• पà¥à¤°à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ मूरà¥à¤¤à¤¿ है, जो सामानà¥à¤¯à¤¤: 12वीं सदी ई.पू. की मानी जाती है। यह मूरà¥à¤¤à¤¿ काले पतà¥â€à¤¥à¤° की बनी हà¥à¤ˆ है। इस मूरà¥à¤¤à¤¿ को औरंगज़ेब के कहर से सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रखने के लिठ1669 ई. में मथà¥à¤°à¤¾ से लाया गया था। मंदिर का गरà¥à¤à¤—ृह शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं के लिठदिन में आठ बार खोला जाता है, लेकिन हर बार सिरà¥à¤«à¤¼ आधे घणà¥â€à¤Ÿà¥‡ के लिà¤à¥¤
नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बस सà¥à¤Ÿà¥‰à¤ª पर उतर कर हमने ऑटो लिया तथा शाम करीब सवा सात बजे हम लोग शà¥à¤°à¥€ नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ के गेसà¥à¤Ÿ हॉउस “नà¥à¤¯à¥ कॉटेज” पहà¥à¤‚च गठजहां मैने पहले से ही टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ कि वेबसाइट http://www.nathdwaratemple.org/ से à¤à¤• रà¥à¤® की ऑनलाइन बूकिंग करवा रखी थी, जिससे हमें जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ परेशानी नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ गेसà¥à¤Ÿ हॉउस की सारी औपचारिकताà¤à¤‚ पà¥à¤°à¥€ करने के बाद हम अपना सामान उठाकर अपने रà¥à¤® की ओर चल दिà¤à¥¤

गेसà¥à¤Ÿ हॉउस (नà¥à¤¯à¥‚ कॉटेज) के बाल उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में….

गेसà¥à¤Ÿ हॉउस से दिखाई देता नये मंदिर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£à¤¾à¤§à¥€à¤¨ à¤à¤µà¤¨
कà¥à¤› देर आराम करने के बाद अपने साथ लाई गई मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की समय सारणी में में देखा तो पता चला की यह समय à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी की शयन आरती का है जो की अब तक शà¥à¤°à¥ हो गई होगी। यहां यह जानकारी देना पà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤‚गिक है की इस मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की विशेषता है की मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में à¤à¤—वान के दरà¥à¤¶à¤¨ दिन में आठबार होते हैं (मंगला, शà¥à¤°à¤‚गार, गà¥à¤µà¤¾à¤², राजà¤à¥‹à¤—, उतà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨, à¤à¥‹à¤—, आरती तथा शयन) तथा मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के पट, हर दरà¥à¤¶à¤¨ के समय सिरà¥à¤«à¤¼ आधे घंटे के लिये ही खà¥à¤²à¤¤à¥‡ हैं, और इन दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ की समय सारणी परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ तथा दिवसों के अनà¥à¤°à¥à¤ª बदलती रहती हैं, अत: यहां दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये समय सारणी देखकर ही जाना चहिये। चà¥à¤‚कि अब अब इस समय दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये जाने से कोई मतलब नहीं है अत:हमने सोचा की अब मनà¥à¤¦à¤¿à¤° सà¥à¤¬à¤¹ ही जाà¤à¤‚गे और फिर रात का खाना वगैरह खा कर हम जलà¥à¤¦à¥€ ही सो गà¤à¥¤
सà¥à¤¬à¤¹ के पहले दरà¥à¤¶à¤¨ (मंगला दरà¥à¤¶à¤¨) का समय ५ बजे का है, चà¥à¤‚कि हम लोग रात के थके हà¥à¤ थे और बचà¥à¤šà¥‡ à¤à¥€ साथ थे अत: मंगला आरती में शामील होने के लिये सà¥à¤¬à¤¹ चार बजे जाग नहीं पाये, और जब नींद खà¥à¤²à¥€ तो देखा की ६ बज रहे थे। अगले दरà¥à¤¶à¤¨ ॠबजे (उतà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨ दरà¥à¤¶à¤¨) होने थे अत: हम सà¤à¥€ आराम से नहा धो कर मनà¥à¤¦à¤¿à¤° जाने के लिये तैयार हो गà¤à¥¤ हमारे गेसà¥à¤Ÿ हॉउस से मनà¥à¤¦à¤¿à¤° पैदल दà¥à¤°à¥€ पर ही था अत: हम पैदल ही मंदिर की ओर चल पड़े।
जब हम मंदिर के करीब पहà¥à¤‚चे तो देखा की मंदिर के बाहर बहà¥à¤¤ à¤à¥€à¤¡à¤¼ थी, यहां इतनी à¤à¥€à¤¡à¤¼ हमेशा रहà¥à¤¤à¥€ है और इस à¤à¥€à¤¡à¤¼ का कारण होता है मनà¥à¤¦à¤¿à¤° का हर दो घंटे के बाद सिरà¥à¤«à¤¼ आधे घणà¥à¤Ÿà¥‡ के लिये खà¥à¤²à¤¨à¤¾à¥¤ यहां à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ को बाल रà¥à¤ª में पà¥à¤œà¤¾ जाता है और उनकी समà¥à¤ªà¥à¤°à¥à¤£ सेवा à¤à¤• बालक के रà¥à¤ª में की जाती है, और हमारे सनातन संसà¥à¤•ारों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° बचà¥à¤šà¥‡ को जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ देर देखते रहने से उसे नज़र लगने का डर होता है इसीलिये मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के पट खà¥à¤²à¤¨à¥‡ के आधे घंटे के बाद ही बंद कर दिये जाते हैं।

जय शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी की तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‹à¤‚ से सजी दà¥à¤•ान

मंदिर के सामने मिटà¥à¤Ÿà¥€ के कà¥à¤²à¥à¤¹à¤¡à¤¼ में रबड़ी (पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦) बेचते महाशय
यह मंदिर परंपरागत मनà¥à¤¦à¤¿à¤°à¥‹à¤‚ की तरह न होकर à¤à¤• हवेली (पेलेस) के रà¥à¤ª में है, इसीलिये इसे “शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी की हवेली” कहा जाता है। इस हवेलीनà¥à¤®à¤¾ मंदिर के अंदर सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, फ़लों à¤à¤µà¤‚ दà¥à¤§ के छोटे छोटे बाज़ार लगे हà¥à¤ होते हैं जहां से आप ये चीजें खरीद कर मंदिर में दान सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ कर सकते हैं, जिसे मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की रसोई जो की 11 बजे राजà¤à¥‹à¤— दरà¥à¤¶à¤¨ के समय बनती है, में उपयोग किया जाता है। हमने à¤à¥€ इस बाज़ार से à¤à¤• लीटर दà¥à¤§ लेकर काउनà¥à¤Ÿà¤° पर जमा करवा दिया और दरà¥à¤¶à¤¨ की लंबी लाईन में लग गà¤à¥¤
महिलाओं तथा पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की कतारें अलग अलग थीं अत:लिंग के आधार पर हमारे परिवार का à¤à¥€ कà¥à¤› देर के लियॆ बंटवारा हो गया। अà¤à¥€ कपाट बंद थे तथा कà¥à¤› देर में खà¥à¤²à¤¨à¥‡ वाले थे, कà¥à¤› देर के इनà¥à¤¤à¤œà¤¼à¤¾à¤° के बाद पट खà¥à¤²à¥‡, पहले पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की पंकà¥à¤¤à¥€ को दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये छोड़ा गया और फिर महिलाओं को …………….अनà¥à¤¤à¤¤: कà¥à¤› देर की मशकà¥à¤•त के बाद अब शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी हमारे सामने थे, à¤à¤—वान का इतना सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°, सलोना और मोहक रà¥à¤ª देखकर मैं तो कà¥à¤› देर के लिये जैसे समà¥à¤®à¥‹à¤¹à¤¨ में बंध गया था। बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥‡ दरà¥à¤¶à¤¨ हà¥à¤ तो मन पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हो गया।
आज का पà¥à¤°à¤¾ दिन तथा रात हमें नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ में ही रà¥à¤•ना था अत: हमने सोच रखा था की जितने अधिक बार समà¥à¤à¤µ होगा उतनी बार à¤à¤—वान के दरà¥à¤¶à¤¨ करेंगे। अब अगले दरà¥à¤¶à¤¨ का समय करीब डेढ घंटे के बाद था और हमें à¤à¥à¤– à¤à¥€ लग रही थी तो हम सब मंदिर से बाहर आ गà¤, नाशà¥à¤¤à¥‡ की खोज में। बाहर निकलते ही हमें à¤à¤• सà¥à¤Ÿà¤¾à¤² पर पोहे तथा खमण दिखाई दिया अत: हम यहीं रà¥à¤• गठऔर नाशà¥à¤¤à¤¾ किया, नाशà¥à¤¤à¤¾ सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ था। अब हमने सोचा की अगले दरà¥à¤¶à¤¨ से पहले नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ के कà¥à¤› और दरà¥à¤¶à¤¨à¤¿à¤¯ सà¥à¤¥à¤² जैसे शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी की गौशाला और लाल बाग गारà¥à¤¡à¤¨ à¤à¥€ देख लिया जाये कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अगले दिन हमें सà¥à¤¬à¤¹ से ही à¤à¤•लिंग जी दरà¥à¤¶à¤¨ करते हà¥à¤ उदयपà¥à¤° जाना था। अत: हमने ये दोनों जगहें घà¥à¤®à¤¨à¥‡ के लिये 150 रà¥. में à¤à¤• ऑटो कर लिया।
इस à¤à¤¾à¤— में इतना ही, इस शà¥à¤°à¤‚खला के अगले à¤à¤¾à¤— में शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी की गौशाला, लाल बाग और शà¥à¤°à¥€ à¤à¤•लिंग à¤à¤—वान के दरà¥à¤¶à¤¨ …………….जलà¥à¤¦ ही.
वेलकम बेक, मुकेश भाई!…हमेशा की तरह भक्ति भाव से ओत प्रोत जानकारी युक्त लेख…बाज़ार के दृश्य यहाँ के स्वाद को हम तक पहुँचाने के लिए काफ़ी हैं…जो सारे संसार को बुरी नज़र से बचाता हो, भला उस कान्हा को भी किसी की नज़र लग सकती है…हाहा…:)….हाल ही मे, इस इलाके के काफ़ी नजदीक से गुजरा था मारवाड़ से मावली जंक्शन (घाट सेक्शन) पर चलने वाली एक छोटी ट्रेन का आनंद लेते हुए…हमें तो कान्हा के दर्शन ट्रेन में ही हो गए, यहाँ तक आने की जरुरत ही नहीं पड़ी…:)…लेकिन जल्द ही दर्शन करेंगे…
थैंक यु विपिन,
कई दिनों से आप की भी कोई पोस्ट नहीं दिखाई दे रही घुमक्कड़ पर। सुन्दर शब्दों में टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति , पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया।
रस्तोगी जी,
बहुत दिनों बाद दर्शन हुए आपके। पोस्ट पढने तथा पसंद करने के लिए धन्यवाद।
सही कह रहे हैं मुकेश जी, बहुत दिनों बाद कमेन्ट दिए हैं, घुमक्कड़ पर प्रकाशित होने वाले लेखो पर।
वह क्या कहते हैं ” और भी गम हैं ज़माने में ग़ालिब, मोहब्बत के सिवा ” तो साहब अपने साथ भी कुछ ऐसा ही है , आजकल राजनितिक , सामाजिक विषयों पर लिखना शुरू कर दिया है। कहते हैं न मन बड़ा चंचल होता है। एक जगह नहीं रहता है।
फिर घुमक्कड़ तो अपने घर जैसा है।
Hi Mukesh जी,
हमेशा कि तरह आपकी यह पोस्ट भी उन सभी तथ्यों एवम् विवरणों से परिपूर्ण है जो किसी भी अगले पर्यटक के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती है |
बेहद सुंदर pics के साथ बहुत बदिया यात्रा विवरण!!!
Thanx for sharing!!!
धन्यवाद अवतार जी,
क्या बात है ? आपकी पोस्ट की तरह आपकी कमेन्ट भी दमदार लगी। आपकी भाषा शैली का मैं भी बड़ा प्रशंसक हूँ। बड़े ही मनोयोग से लिखते हैं आप, हिन्दी साहित्य के सच्चे सेवक की तरह।
Nice to see your post after a long time.
As usual , great post with beautiful pictures !
Thanks Mahesh ji …………..
क्या बात है मुकेसभाई बहुत दिनो बाद… वो भी एक मनमोहक पोस्ट के साथ…. पहला चित्र ही मन को मोह लेता है…विवरण तो आपका है ही लाजवाब… कविता जी किस बात पर गुस्सा हो रही है (आखिरी चित्र में)
साइलेंट जी,
आपकी इस मधुर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद। आप इसी तरह हौसला बढाते रहेंगे तो सफ़र का मज़ा दोगुना हो जायेगा।
मुकेस भाई (ये संबोधन मैने सस से चुरा लिया है ) , काफी दिनों बाद आपकी पोस्ट आयी । अत्यंत खुसी की बात है । बहुत ही सरलता से आपने धार से यात्रा शुरू करवा के श्रीनाथ जी की हवेली तक, वाया न्यू कॉटेज, बिना किसी जद्दोजहद के पहुंचा दिया, इसे कहते है अफर्ट-लेस रचना । मुझे छाया चित्र बहुत ही इमानदार और रियल लगे, इन्हें देख कर वास्तव में आप इस जगह को विसुअल-आईज कर सकते हैं । थैंक यू ।
अगले अध्याय के इंतज़ार में ।
हम तो नरभसा गये थे तो श को स बोल रहे थे
अब ये नरभसाना क्या होता है जी ??? काहे कन्फ्यूजिया रहे है?
नंदन जी,
आपकी कमेन्ट पढ़कर हमेशा की तरह मन प्रसन्न हो गया। सब आपके ही सान्निध्य एवं मार्गदर्शन का प्रताप है ……….
दमदार पोस्ट मुकेश जी,
हम तो धार्मिक जगहों पर कम ही जाते है लेकिन पोस्ट के सहारे थोडा बहुत धर्म लाभ हम भी कमा लेते है। भगवान् श्रीनाथ जी दर्शन बिना किसी दिक्कत के हो गए, शायद गर्भगृह मे कैमरा ले जाना निषेध होगा इसलिए बाहर से दर्शन करके ही हम संतुष्ट है। एकलिंग जी के दर्शन भी जल्दी से करा दीजिये वैसे भी आजकल टीवी पर महाराणा प्रताप धारावाहिक मे रोज एकलिंग जी की जयजयकार सुन ही रहे है।
सौरभ जी,
सुन्दर टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद। आपने बिलकुल सही कहा, अन्य महत्वपूर्ण मंदिरों की तरह यहाँ भी छाया चित्रकारी की अनुमति नहीं है। अगली पोस्ट 12 तारीख को प्रकाशित होनी है जिसमें एकलिंग जी का परिचय है।
श्री मान मुकेश जी को मेरा नमस्कार जी !
हमेशा की तरह बहुत खूबसूरती से लिखा गया लेख पढ़कर हमे भी अपनी नाथद्वारा की यात्रा का पुनः आभास हो गया उसके लिए आपका बहुत बहुत आभार |
नाथद्वारा की गलियों के चित्र भी बहुत शानदार लगे…| एक बात बताना चाहूगां की नाथ द्वारा में दर्शन का समय अलग – अलग है…. कुछ का समय 45 मिनिट , कुछ का 30 मिनिट और कुछ का 15 मिनिट…..है….|
आपके साथ दुबारा से यात्रा करके अच्छा लगा…. धन्यवाद
रितेश जी,
इस सुन्दर सी कमेन्ट के लिए आपका शुक्रिया। सच बात तो यह है की आपकी पोस्ट पढ़कर ही हम नाथद्वारा जाने के लिए प्रेरित हुए थे, सो एक बार फिर शुक्रिया।
मुकेश जी
बहुत दिनों के इंतज़ार के बाद आज आपकी पोस्ट पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया वैसे श्रीनाथजी हम भी दर्शन कर आये है पर आपके साथ घुमने का मजा ही कुछ और है बस अब अगले भाग का इंतज़ार है
लड्ढा साहब,
जी हाँ इस बार घुमक्कड़ से थोड़े लम्बे समय के लिए जुदाई हो गई थी लेकिन अब लौट आये हैं और उम्मीद है की बने रहेंगे। पोस्ट को पसंद करने का शुक्रिया।
Again an infotaining ( entertaining with information) post.
I didn’t know about the place…looking like Baake Bihari ji mandir.
In your family everyone equally likes to travel, and that’s a great thing. And by travelling these religious place you are giving great morals/sanskaar to your kids.
Thanks for sharing your travelling experiences.. waiting for next parts.
Thank you Vinay, Thank you very much for your sweet comment.
Recently I revisited your post on Vaishnodevi and enjoyed every bit of it. Actually I was thinking of a plan to visit Vaishnodevi and immediately I recollected your post and gone through it. It was really very enjoyable and informative. It will help me make my plan to a great extent.
Thanks.
Thanks for liking that post.
Vaishno Devi dhaam is place I would love to go every year.
I waiting for my son to grow little more so that he can also enjoy the place…then I will go.
Mukesh Ji. Till now this place was totally unknown to me and through this post it has becomes familiar.
Thanks for return and sharing informative Post.
Thank you Naresh Ji for your lovely comment. Actually this temple is dedicated to a particular community (Pushtimargiya Vaishnav samaj) that’s why its not that popular among the other Hindu pilgrimage sites in india. Even though you can find crowd throughout the year.
Thanks again.
Hi Mukesh,
I had heard of Nathdwar several times but could not place it.
With your post I have been able to visually place it.
Another wonderful account and as always, the spiritual essence in your posts is all pervading.
Nirdesh Sir,
Thank you very much for your lovely comment. You liked the post, its a big reward to me.
Thanks,
Nice post Mukesh after a long time.
Whenever we will go to Udaipur or that part of our country, we will make a plan to visit this temple.
Thanks amitava ji for your nice comment. Post was incomplete without your comment……
Thanks.
परम स्नेही मुकेश, कविता, संस्कृति एवं नटखट शिवम्,
जैसा कि मैने कहा था, अब मैं आपकी यात्रा को बैक गियर लगा कर पढ़ने बैठा हूं और जिस नाथद्वारा मंदिर को मैं अपनी यात्रा के दौरान एंजॉय नहीं कर पाया था, अब आपके माध्यम से कर पाया हूं ! हमारी बारी में तो धक्का – मुक्की में ही कब एकनाथ जी के ’दर्शन’ हो गये पता ही नहीं चला था। एक बात मुझे समझ नहीं आई ! ये इन्दौर वाले जब भी देखो, इन्दौर में तो पोहा खाते ही रहते हैं, नाथद्वारा जाकर भी पोहा ? अजी, यहां तो कुछ और नाश्ता ट्राई किया होता ! “और भी नाश्ते हैं जमाने में पोहे के सिवाय !”
https://www.ghumakkar.com/2013/01/10/nathdwara-bagaur-haveli-return-from-udaipur/
सुशांत सर,
बड़ा अच्छा लगा आपकी कमेन्ट पढ़कर, कई दिनों से इंतज़ार था। सुन्दर शब्दों में पिरोई टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। क्या करें सर पोहे के बिना ऐसा लगता ही नहीं की नाश्ता किया है, बस ये समझ लीजिये की दिल के हाथों मजबूर हैं।
Jay jay shreeenath ji.. bahut sundarr varnan kiya he aapne mukesh ji hamare mewad ke Shreenath ji bawa ka. Bahut kismat vale hote he ve jo Param pawan veer bhumi tyag tapasya balidaan ki bhumi meera bai aur maharana pratap ke mewad me aate he. Shreeenath ji hum Mewadwasiyo ke param aaradhya he. aapne iyna badhiya Warnan mewad ke shreenath ji ke bare me likha hum iske liya aapke aabhari he. bhagvaan shreenath ji hamesha aapko mewad me darshan pradan karte rahe. jay shreeenath ji
बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटा कर और भाई मुकेश जी से प्रोत्साहित होकर एक
छोटा सा लेख हमने भी नाथद्वारा के श्रीनाथ जी पे लिखा परन्तु दुर्भाग्यवश वो अभी रिव्यु में ही पेंडिंग दिख रहा है (करीबन एक माह से) कृपया मार्गदर्शन करे की कैसे वो प्रकाशित हो सके वेबसाइट पे।
हेमंत जी,
आपने इस सन्दर्भ में नंदन झा जी से संपर्क किया क्या ? कृपया उन्हें मेल के द्वारा अपनी समस्या से अवगत कराएं. वे जरुर आपकी समस्या का समाधान करेंगे.
धन्यवाद.
Thank you Mukesh. Hemant has written here before (https://www.ghumakkar.com/author/hemantvijay/). Let me write to him and resolve this at soonest. Thanks again.