बाबा नागारà¥à¤œà¥à¤¨ की à¤à¤• कविता है-
“अमल धवल गिरी के शिखरों पर
बादल को घिरते देखा है
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तà¥à¤¹à¤¿à¤¨ कणों को
मानसरोवर के उन सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤¿à¤®
कमलों पर गिरते देखा है
बादल को घिरते देखा है ||â€
सदियों से ही मनà¥à¤·à¥à¤¯, पहाड़ों को देखकर रोमांचित होता रहा है, उनका विशाल आकार, आसमान चूमती चोटियाà¤, बादलों से बातें करते लमà¥à¤¬à¥‡â€“घने चीड़, देवदार और चिनार के वृकà¥à¤·, विशाल गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤°à¥‹à¤‚ की कोख से निकल, à¤à¤¾à¤— बिखेरती बल खाती नदियाà¤, अचानक ही ना जाने कहाठसे, जैसे कोई जादू की शकà¥à¤¤à¤¿ अपने आप में समेटे, विशाल पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ का सीना चीर à¤à¤¾à¤— बिखेरते à¤à¤°à¤¨à¥‡, कचà¥à¤šà¥‡-पकà¥à¤•े रासà¥à¤¤à¥‡, सीढ़ी-नà¥à¤®à¤¾ खेत, हरियाली à¤à¤¸à¥€ कि लगे जैसे कà¥à¤¦à¤°à¤¤ ने सारी कायनात को ही हरे रंग की à¤à¤• चà¥à¤¨à¤° औढ़ा दी हो ! सफेद दूधिया परत में लिपटी इनकी चोटियों के मोहपाश में, उन तक पहà¥à¤‚चने और उन पर अपनी विजय की हसरत मन में लिà¤, इंसान रासà¥à¤¤à¥‡ की सà¤à¥€ दà¥à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¥‡à¤² कर à¤à¥€ बार-बार उनकी तरफ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ होता रहा है | चाहे आप पौराणिक हिंदू गà¥à¤°à¤à¤¥ देख लीजिये या गà¥à¤°à¥€à¤• मिथालà¥à¤œà¥€, सà¤à¥€ के देवी-देवता और à¤à¤—वान आपको पहाड़ों पर ही मिलते हैं, चाहे फिर वह कैलाश परà¥à¤µà¤¤ हो या माउंट ओलमà¥à¤ªà¤¸ ! मगर हमारा दà¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ ! हमने अपने सà¤à¥€ देवी-देवताओं को पहाड़ों पर सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ तो कर दिया, पर उसकी वजह से पहाड़ों का जो अंधाधà¥à¤‚ध विकास और अतिकà¥à¤°à¤®à¤£ हà¥à¤† है, उसके दà¥à¤·à¥à¤ªà¤°à¤¿à¤£à¤¾à¤®à¥‹à¤‚ की चिंता नही की | हम यह à¤à¥‚ल जाते हैं कि कà¥à¤¦à¤°à¤¤ से इस अनावशà¥à¤¯à¤• छेड़-छाड़ के गंà¤à¥€à¤° परिणाम à¤à¥€ हो सकते हैं, जैसा हम सब ने उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के केदारनाथ में आई à¤à¥€à¤·à¤£ विपदा में देखा | à¤à¤• संतà¥à¤²à¤¿à¤¤ और पà¥à¤°à¤•ृति के साथ सामंजसà¥à¤¯ रखते हà¥à¤ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ के लिये, पहाड़ी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का विकास और यहाठजाने वाले परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों में परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ जागरूकता की आवशà¥à¤¯à¤•ता ही इसका à¤à¤•मातà¥à¤° हल है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि पहाड़ों की कशिश हम इंसानों के लिठना पहले कà¤à¥€ कम थी और ना ही अब कम हो पायेगी !
अतः à¤à¤¸à¥‡ में जब हमे मौका मिला कि हम नये वरà¥à¤· के अवसर को किसी परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में जाकर मनायें तो हमने इस बार लैंसडाउन को चà¥à¤¨à¤¾ जो दिलà¥à¤²à¥€ से ना तो अधिक दूर है और ना ही हमे पहले कà¤à¥€ वहाठजाने का मौका मिला था | हालाà¤à¤•ि देहरादून में रहते हà¥à¤ इस जगह का नाम तो हमारे लिठअपरिचित नही था पर मसूरी के इतना करीब होने की वजह से, इसकी तरफ कà¤à¥€ जा ही नही पाठथे | लैंसडाउन की ऑनलाइन बà¥à¤•िंग कर के हमने इसके बारे में गूगल बाबा से कà¥à¤› जानकारी इकटà¥à¤ ी की और निकल पड़े à¤à¤• नये और अनजाने से शहर की तरफ…
दिलà¥à¤²à¥€ से बाहर निकलते ही आपको NH 24 पकड़ कर गाजियाबाद होते हà¥à¤ मेरठकी तरफ निकलना होता है और फिर मेरठके बेगमपà¥à¤² से मवाना की तरफ | यहाठकी चीनी मिलें पूरे à¤à¤¾à¤°à¤¤ वरà¥à¤· में मशहूर हैं, और ये पूरा कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° ही उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ की गनà¥à¤¨à¤¾ बेलà¥à¤Ÿ के नाम से जाना जाता है | सड़क के दोनों तरफ मीलों दूर-दूर तक फैले हरे-à¤à¤°à¥‡ खेत और उनमे खड़ी ईख(गनà¥à¤¨à¥‡) की फ़सल, रासà¥à¤¤à¥‡ à¤à¤° आà¤à¤–ों को à¤à¤• सà¥à¤–द à¤à¤¹à¥à¤¸à¤¾à¤¸ सा देती जाती है | UP के अधिकतर हाईवे सिनà¥à¤—ल रोड है, और आप को बीच सड़क पर जाते हà¥à¤ कितनी ही बà¥à¤—à¥à¤—ीयां और टà¥à¤°à¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ गनà¥à¤¨à¥‡ से लदी-फदी हà¥à¤ˆ मिल जाà¤à¤à¤—ी जिनके डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° बिळकà¥à¤² माशाअलà¥à¤²à¤¾à¤¹ ही होते हैं, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने दायें-बाये और पीछे कà¥à¤¯à¤¾ चल रहा है इससे कोई सरोकार नही, à¤à¤²à¥‡ ही आप हॉरà¥à¤¨ दें, डिपर मारें, बस वो तो नाक की सीध में आगे ही चलते जायेंगे, कà¤à¥€ किसी टà¥à¤°à¤• के पीछे पढ़ा ये शेर इनके लिठबड़ा मौजूठहै-
“ दम है तो कà¥à¤°à¤¾à¤¸ कर, वरना बरà¥à¤¦à¤¾à¤¶à¥à¤¤ कर !â€
मगर ज़नाब, यदि NDTV वाले ‘विनोद दà¥à¤† साहब’ की जà¥à¤¬à¤¾à¤¨ में कहें तो ये à¤à¥€ छोटे शहरों का à¤à¤• जायका है, और इसका जायका à¤à¥€ आप तक पहà¥à¤à¤šà¤¾à¤¨à¤¾ ज़रूरी था ! इस मज़े या सज़ा का लà¥à¤¤à¥à¤«à¤¼ तो तà¤à¥€ है जब आप सà¥à¤µà¤¯à¤® इसका अनà¥à¤à¤µ करें | खैर, किसी तरह जगह बनाते-बनाते आप बिजनौर, नजीबाबाद होते हà¥à¤ कोटदà¥à¤µà¤¾à¤° पहà¥à¤‚च जाते हैं | पहाड़ी रासà¥à¤¤à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ होने से पूरà¥à¤µ, कोटदà¥à¤µà¤¾à¤° उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड का पà¥à¤°à¤®à¥à¤– मैदानी शहर है, जो रेल और बस मारà¥à¤— से जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ हà¥à¤† है | ऊपर पहाड़ों पर रहने वाले, अपनी सà¤à¥€ दैन-दिनी आवशà¥à¤¯à¤•ताओं के लिठइस शहर पर ही निरà¥à¤à¤° हैं |
जो परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•, पहाड़ी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ से परिचित हैं, वो जानते हैं कि पहाडो में चढाई से पहले किसी ना किसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ देवी-देवता का मनà¥à¤¦à¤¿à¤° अवशà¥à¤¯ होता है, जिसकी उस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° विशेष में मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ à¤à¥€ बहà¥à¤¤ होती है | ये जगह à¤à¥€ इसका अपवाद नही, बलà¥à¤•ि यहाठतो सिदà¥à¤¦à¤¬à¤²à¥€ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी का आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• रूप से काफी बड़ा और à¤à¤µà¥à¤¯ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° नदी के मà¥à¤¹à¤¾à¤¨à¥‡ पर ही है, और लैंसडाउन आने-जाने वाले अपनी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° कम से कम à¤à¤• बार तो अवशà¥à¤¯ वहाठजाते ही हैं |
हमारे पास अà¤à¥€ समय था, सो हमने विचार किया कि लैंसडाउन की तरफ बदने से पहले à¤à¤• बार यहाठके दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥€ कर लिठजाà¤à¤ | मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की फोटो से आप इसकी à¤à¤µà¥à¤¯à¤¤à¤¾ का अंदाजा लगा सकते हैं | लैंसडाउन का पहाड़ी रासà¥à¤¤à¤¾ लग-à¤à¤— 45 किमी का है और à¤à¤• बार चढ़ाई की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ करते ही, सड़क के साथ-साथ चीड़ और देवदार के वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ के घने जंगल शà¥à¤°à¥ हो जाते हैं | इन पेड़ों से छन कर à¤à¥€à¤¨à¥€-à¤à¥€à¤¨à¥€ खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ साथ लिये ताज़ी मगर ठंडी हवा आपके नथà¥à¤¨à¥‹à¤‚ से गà¥à¤œà¤¼à¤°à¤•र, जब आपके फेफड़ों में समाती है, यकीन मानिये, शरीर तो कà¥à¤¯à¤¾ आतà¥à¤®à¤¾ तक को à¤à¥€ तरोताजा कर देती है, और बाहर की ठंडी हवा के बावजूद, आप अपनी गाड़ी के शीशे नीचे करने को मजबूर हो जाते है | यहाठका रासà¥à¤¤à¤¾ और सड़क के तेज घà¥à¤®à¤¾à¤µ दोनों रोमांचक है और सबसे अचà¥à¤›à¤¾ पकà¥à¤· ये है कि सड़क साफ़-सà¥à¤¥à¤°à¥€ और अचà¥à¤›à¥€ है, जिसका मà¥à¤–à¥à¤¯ कारण ये à¤à¥€ है कि लैंसडाउन में गढ़वाल रायफलà¥à¤¸ का हैड-कà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤Ÿà¤° है और इस वजह से अकà¥à¤¸à¤° सेना की गाड़ियों की आवा-जाही होती रहती है | लैंसडाउन के रासà¥à¤¤à¥‡ के अध-बीच ही सड़क पर ही à¤à¤• छोटा सा गाà¤à¤µ पड़ता है ‘दà¥à¤—डà¥à¤¡à¤¾â€™, जहाठपहाड़ियों में से बहकर आता हà¥à¤ निरà¥à¤®à¤² सà¥à¤µà¤šà¥à¤› पानी यातà¥à¤°à¤¿à¤“ं, को अपनी गाड़ी रोक कर उसे पी कर देखने का आमंतà¥à¤°à¤£ देता पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है | हमने à¤à¥€ कà¥à¤› पल यहाठरà¥à¤• कर, अचà¥à¤›à¥€ तरह उस ठंडे पानी से मूà¤à¤¹-हाथ धोया और आगे के रासà¥à¤¤à¥‡ के लिठनिकल पड़े |
सेना की छावनी से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ हà¥à¤ रासà¥à¤¤à¥‡ में ही गढ़वाल रायफलà¥à¤¸ का मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ पड़ता है, सेना के जवान यहाà¤-तहाठआपको मà¥à¤¸à¥à¤¤à¥ˆà¤¦à¥€ से चौकसी करते दिख जाते हैं. जिससे आप में à¤à¤• गरà¥à¤µ की अनà¥à¤à¥‚ति à¤à¥€ होती है और आपका मनोबल à¤à¥€ बढ़ता है |
शीघà¥à¤° ही आप लैंसडाउन में पहà¥à¤‚च जाते हैं, à¤à¤• छोटा सा चौक, जिसे गाà¤à¤§à¥€ उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ कहा जाता है, ये गाà¤à¤§à¥€ बाबा à¤à¥€ ना… पूरब से पशà¥à¤šà¤¿à¤® हो या उतà¥à¤¤à¤° से दकà¥à¤·à¤¿à¤£, हर जगह अपनी उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ दरà¥à¤œ करा ही जाते हैं… जय हो !, खैर यहाठआपको बहà¥à¤¤ सी जीपें दिख जाà¤à¤à¤—ी, जो बस या रेल यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को कोटदà¥à¤µà¤¾à¤° से लैंसडाउन तक लाती हैं | चौक के आस-पास कà¥à¤›à¥‡à¤• दà¥à¤•ाने हैं जो इसे à¤à¤• लघॠबाज़ार का रूप देती हैं, यहाठअकà¥à¤¸à¤° काफी चहल-पहल रहती है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह, यहाठका इकलौता बाज़ार à¤à¥€ है | इसमें आपको सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ निवासी और परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• खरीदारी करते मिल जायेंगे, सेना के जवान à¤à¥€ अपने छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ के पल इसी बाज़ार में घूम-फिर कर बिताते हैं |
हमारी मंज़िल “Hill View Shanti Raj Resort“, अà¤à¥€ यहाठसे लगà¤à¤— 3 किमी और दूर है, और हम à¤à¥€à¤¡à¤¼ à¤à¤°à¥‡ रासà¥à¤¤à¥‡ से जगह बनाते हà¥à¤ ‘धà¥à¤°à¤¾ रोड’ की और बढ़ जाते हैं, ये 3 किमी का रासà¥à¤¤à¤¾ हमारे लिठतो अतà¥à¤¯à¤‚त ही रोमांचक निकला, कà¥à¤¯à¥‚ंकि यहाठअà¤à¥€ कचà¥à¤šà¥€ सडक है, और आपको बहà¥à¤¤ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से चलना पड़ता है, मगर रोमाà¤à¤š के शौकीनों के लिठये रासà¥à¤¤à¤¾ तो बिन माà¤à¤—े ही किसी मà¥à¤°à¤¾à¤¦ के पूरा हो जाने के जैसा ही है ! विशाल पहाड़ और सड़क के किनारे से लेकर मीलों दूर तक, ऊà¤à¤šà¥€ चोटियों से लेकर गहरी खाईयों तक में, शान से खड़े, हरे à¤à¤°à¥‡ चीड़ और देवदार के पेड़ रासà¥à¤¤à¥‡ à¤à¤° आपके साथ-साथ ही चलते हैं | लैंसडाउन में अà¤à¥€ à¤à¥€ नैसरà¥à¤—िक सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ यहाà¤-तहाठबिखरी पड़ी है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यहाठकी पà¥à¤°à¤•ृति अà¤à¥€ à¤à¥€ raw और unexplored है, बाकी परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की तरह इसका अंधाधà¥à¤‚ध वà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¾à¤¯à¤¿à¤• दोहन नही हो पाया है, जिसका बहà¥à¤¤ हद तक शà¥à¤°à¥‡à¤¯, सेना की उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ को जाता है | वैसे, यदि लैंसडाउन के इतिहास की बात की जाये तो समà¥à¤¦à¥à¤° तल से 1700 मीटर ऊà¤à¤šà¥‡ और दिलà¥à¤²à¥€ से लगà¤à¤— पोंने तीन सौ किमी दूर इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की खोज़ 1884 में हà¥à¤ˆ और इसका नाम तातà¥à¤•ालिक वायसराय लारà¥à¤¡ लैंसडाउन के नाम पर किया गया, और तब से ही यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ सेना के लिये अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ की पसंद बन गया |
31 दिसमà¥à¤¬à¤° का दिन, नव वरà¥à¤· की पूरà¥à¤µ संधà¥à¤¯à¤¾, पर ठंड दिलà¥à¤²à¥€ के मà¥à¤•ाबले कम ही है, जलà¥à¤¦à¥€ ही आपका रिजोरà¥à¤Ÿ आ जाता है और à¤à¤• रोमांचक सफर के सà¥à¤–द अंत पर आप चैन की सांस ले सकते हैं | अà¤à¥€ तक जितनी सादगी, सरलता और शालीनता से आपका परिचय रासà¥à¤¤à¥‡ à¤à¤° हà¥à¤† है, उसी का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° आपको इस रिजोरà¥à¤Ÿ ’हिल विऊ शानà¥à¤¤à¤¿ राज’ में à¤à¥€ दिखता है, जब आप पाते हैं कि ये पूरा रिजोरà¥à¤Ÿ, दिनेश बिषà¥à¤Ÿ और उनके à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मिल कर चलाया जा रहा है | किचन से लेकर सरà¥à¤µà¤¿à¤¸ तक का सारा काम पूरा परिवार मिल-जà¥à¤² कर ही करता है | देहरादून में Polytechnic कर रहे दिनेश के à¤à¤¤à¥€à¤œà¥‡ को, मेहमानों को खाना सरà¥à¤µ करते और à¤à¥‚ठी पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¥‡à¤‚ तक इकटà¥à¤ ी करते देख, इस परिवार की सादगी और आपसी à¤à¤¾à¤ˆ-चारे का à¤à¤• सà¥à¤–द à¤à¤¹à¥à¤¸à¤¾à¤¸ होता है | दिलà¥à¤²à¥€ जैसे शहर से आकर, और टूटते परिवारों के दौर में, à¤à¤• बार तो आपको ये सब कà¥à¤› अज़ीब सा लग सकता है, पर फिर आपको बहà¥à¤¤ जलà¥à¤¦à¥€ ये à¤à¤¹à¥à¤¸à¤¾à¤¸ हो जाता है कि यहाठहोटल जैसा कà¥à¤› नही, बलà¥à¤•ि घर जैसा à¤à¤• सà¥à¤–द पारिवरिक अनà¥à¤à¤µ है, अपना आरà¥à¤¡à¤° देने कसà¥à¤Ÿà¤®à¤° खà¥à¤¦ ही किचन में à¤à¥€ आ सकता है, जैसा और जो खाना चाहे. अपनी पसंद से, अपने सामने बनवा à¤à¥€ सकता है ! और à¤à¤• घà¥à¤®à¥à¤®à¤•ड़ और पेटू परिवार इससे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ और कà¥à¤¯à¤¾ चाह सकता है ????

बाà¤à¤ विशाल जंगल, दायें रिसोरà¥à¤Ÿ और बीच में गाà¤à¤µ की तरफ जाता रासà¥à¤¤à¤¾, तीनों आपसी सामंजसà¥à¤¯ में à¤à¤• दà¥à¤¸à¤°à¥‡ के पूरक

रिसोरà¥à¤Ÿ में सबसे बड़े à¤à¤¾à¤ˆ शिवचरण बिषà¥à¤Ÿ के साथ
यहाà¤-वहाठकà¥à¤› नौजवान लडके-लडकियाठखà¥à¤²à¥‡ में गà¥à¤°à¥à¤ª बनाकर बैठे हैं, कà¥à¤› इधर-उधर घूम रहे है, कà¥à¤› छोटे बचà¥à¤šà¥‡ खरगोशों के पीछे à¤à¤¾à¤— रहें हैं, कà¥à¤› तोते और चिड़ियाठà¤à¥€ हैं, दूर तक फैला, खà¥à¤²à¤¾ विशाल कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°, चारो तरफ चीड़ के पेड़, आपको जंगल में मंगल का नज़ारा देता है | à¤à¤• कप गरमा-गरम अदरक वाली चाय, आपकी रासà¥à¤¤à¥‡ की सारी थकान उतार देती है | यहाठकोई रिसेपà¥à¤¶à¤¨ या हॉल नही है, केवल सोने के लिठकमरे हैं, और आप खà¥à¤²à¥‡ में बाहर बैठकर पूरी तरह से पà¥à¤°à¤•ृति को जी सकते हो | चाय पीते-पीते आपका कमरा तैयार हो जाता है | रिजोरà¥à¤Ÿ की ही तरह कमरा à¤à¥€ बहà¥à¤¤ साधारण है, साधारण पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤° की हà¥à¤ˆ दीवारें, टीन की छत, जिन पर अंदर से लकड़ी की सीलिंग लगी है, कमरे के साथ अटैचà¥à¤¡ टॉयलेट के अलावा, à¤à¤• डबल बैड, दो सोफा-नà¥à¤®à¤¾ कà¥à¤°à¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚, à¤à¤• छोटी मेज़ और टीवी | कमरे में जाकर कपड़े बदलते हैं, पर कमरे में मन ही नही लगता, वो तो कमरे से बाहर निकलना चाहता है | मोबाइल के सिगà¥à¤¨à¤² अकà¥à¤¸à¤° यहाठनही मिलते, BSNL अपवाद है | टीवी कोई देखना नही चाहता कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सारी पà¥à¤°à¤•ृति तो बाहर बिखरी पड़ी है, वो कमरे में तो आà¤à¤—ी नही, अपितॠहमे ही उसके पास जाना पड़ेगा, यदि कमरे की चार-दीवारों में ही बैठना होता, तो अपने घर सा सà¥à¤– कहाठ? असली नजारे देखने हैं तो बाहर निकलो, मिलो दूसरों से… धीरे-धीरे आपकी सबसे जान-पहचान होने लगती है, जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° यà¥à¤µà¤¾ तो दिलà¥à¤²à¥€ या गà¥à¤¡à¤—ाà¤à¤µ से ही हैं, कà¥à¤› हमारी तरह आज ही आये हैं, कà¥à¤› कल | पर जहाठसे अà¤à¥€ तक कोई à¤à¥€ बाहर ही नही गया ! कारण पूछा, तो कहने लगे बाहर कà¥à¤¯à¤¾ देखना है ? सब कà¥à¤› तो यहीं है, इतनी खूबसूरती तो यहीं बिखरी पड़ी है | इस रिजोरà¥à¤Ÿ के चारों तरफ कोई चारदीवारी नही है, बस बांस की खपचà¥à¤šà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की दो-ढाई फà¥à¤Ÿ ऊंची बाढ़ है, जिससे बगल का सारा जंगल à¤à¥€ इसी का à¤à¤¾à¤— लगता है, और इस को और विशाल बना देता है |
इसी की बगल से दो कचà¥à¤šà¥‡ रासà¥à¤¤à¥‡, और आगे के गांवों की तरफ जा रहे है, कà¥à¤› लडके-लडकियाठजिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शायद पहले कà¤à¥€ गाà¤à¤µ या जंगल नही देखा, घूमने जाना चाहते हैं, दिनेश का à¤à¤¤à¥€à¤œà¤¾ जो रसोई के काम से शायद अब निवृत हो गया है, उनके साथ गाइड बनकर चलने को तैयार है, अपने साथ à¤à¤• छड़ी और टॅारà¥à¤š लेकर | छाता, छड़ी और टॅारà¥à¤š ये à¤à¤¸à¥€ चीज़े हैं, जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लिठबिना कोई पहाड़ का वासी बाहर नही निकलता, जाने कब इनकी जरूरत पड़ जाये…. और इधर हम, लोगों से परिचय करते-करते रात के पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® की उधेढ़-बà¥à¤¨ में लगे हैं, रिजोरà¥à¤Ÿ के à¤à¤• कोने की तरफ à¤à¤• छोटा सा टेंट लग रहा है और उधर किचन के पीछे à¤à¤• लड़का लकड़ियाठफाड़ रहा है | दिनेश से पूछने पर पता चलता है आज इनके रिजोरà¥à¤Ÿ का à¤à¤• साल पूरा होने की ख़à¥à¤¶à¥€ में इनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ अपने गाà¤à¤µ वालों और कà¥à¤› दूसरे जानकारों को पारà¥à¤Ÿà¥€ दी है, जिनसे साल à¤à¤° बिज़नेस मिलता है | लकड़ियाठरात को बोन-फायर के लिठकाटी जा रही हैं, à¤à¤• दूसरे किनारे पर डी-जे लग रहा है, कमरों के सामने की तरफ थोड़ी खà¥à¤²à¥€ सी जगह पर 3-4 लडके à¤à¤• टेंट खड़ा कर रहे हैं, जो वैसा ही है, जैसा अकà¥à¤¸à¤° मिलिटà¥à¤°à¥€ वालों के पास या फिर जंगल सफारी करने वालों के पास होता है | हमारे देखते ही देखते उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दो टेंट खड़े करके उनमे सामान रखना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया- गदà¥à¤¦à¥‡, रजाई, टीवी, हीटर और बिजली का बलà¥à¤¬ ये देख कर के तो NCC के दिन याद आ गये | दिनेश से बात की, à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ हमे कमरा नही चाहिà¤, हमे तो यहीं सेट करो… आखिर à¤à¤¡à¤µà¥‡à¤‚चर हो तो पूरा हो ! और फिर आखिर, जिनके लिठटेंट लगाया गया था, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ टेंट के नà¥à¤•à¥à¤¸à¤¾à¤¨ और कमरे के फायदे गिनाकर हमारा कमरा दे दिया गया | सबसे मज़ेदार तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ये बताना था कि कई बार रात को यहाठलकà¥à¤•ड़बगà¥à¤—े à¤à¥€ आ जाते है, आखिर जंगल इसके साथ ही लगा हà¥à¤† है, इस बात ने मासà¥à¤Ÿà¤° सà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‹à¤• का काम किया और अपनी चाहत के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° हम टेंट में शिफà¥à¤Ÿ हो गये, आखिर जीवन में à¤à¤¸à¥‡ मौके कितनी बार मिलते हैं…?

रिसोरà¥à¤Ÿ के à¤à¥€à¤¤à¤° ही बिखरी हà¥à¤ˆ पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤°à¤¤à¤¿à¤• छटा

रिसोरà¥à¤Ÿ के बगल से ही जाते गाà¤à¤µ के रासà¥à¤¤à¥‡ पर

रिसोरà¥à¤Ÿ के कमरे, बहà¥à¤®à¤‚जिली होटलों के दौर में à¤à¤• सà¥à¤–द अनà¥à¤à¤µ
दिनेश के कà¥à¤› सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ दोसà¥à¤¤ à¤à¥€ इंतजाम देखने और मदद करने के किये पहà¥à¤‚च चà¥à¤•े थे, उनसे घà¥à¤²à¤¨à¥‡-मिलने में बिलकà¥à¤² वकà¥à¤¤ नही लगा | देहरादून का हमारा अतीत बहà¥à¤¤ काम आ रहा था, अब यहाठमेहमान और सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« वाली कोई बात ही नही थी, सब à¤à¤• साथ रात के लिठउतà¥à¤¸à¥à¤• थे, उनà¥à¤¹à¥€ में से à¤à¤• लड़का पà¥à¤·à¥à¤ªà¤°à¤¾à¤œ गाने बजाने का शौकीन था, दिलà¥à¤²à¥€-गà¥à¤¡à¤—ाà¤à¤µ के लोग देखकर तो वो कà¥à¤› वैसे ही रोमांचित था ! बस, हम दो चार बनà¥à¤¦à¥‹à¤‚ ने उसे तैयार किया कि रात डीजे के बाद अपनी महफ़िल जमनी चाहिà¤, सो साहिब वो चला गया तबला और हारमोनियम लेने…..
पहाड़ के लोगों का हमारा अनà¥à¤à¤µ बताता है कि “सूरज असà¥à¤¤ और पहाड़ मसà¥à¤¤â€, बस अब इंतजार था तो रात के गहराने का | आठबजते ही डीजे शà¥à¤°à¥‚ हो गया, लकड़ियाठसà¥à¤²à¤—ने लगीं और फिर सà¤à¥€ मेहमान अपने कमरों में ताले लगाकर बाहर आ गये | अलग-अलग गà¥à¤°à¥à¤ªà¥‹à¤‚ में मेजों पर लोगों ने अपना-अपना सामान जमा लिया और फिर रात 12 बजे तक जो मौज-मसà¥à¤¤à¥€ और नाच-गाना चलता रहा उसका वरà¥à¤£à¤¨ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में करना मà¥à¤¶à¥à¤•िल है… सब दोसà¥à¤¤ थे जैसे बरसों के बिछà¥à¤¡à¤¼à¥‡ बस आज ही मिले हों, कौन किस गà¥à¤°à¥à¤ª में था पता नही.. पर मजाल है कि कोई इस लिठमायूस हो जाये कि उनका सामान खतà¥à¤® हो गया है ! जो हमारा है वो सबका है…. कà¥à¤¯à¤¾ रिजोरà¥à¤Ÿ के गेसà¥à¤Ÿ और कà¥à¤¯à¤¾ दिनेश के गाà¤à¤µ वाले और दोसà¥à¤¤, सब à¤à¤¸à¥‡ लग रहे थे जैसे किसी सांà¤à¥‡ दोसà¥à¤¤ की बारात में हों !

बोनफायर का आनंद और नये साल के जशà¥à¤¨ की धूम
बहà¥à¤¤ मà¥à¤¶à¥à¤•िल से रात 12 बजे dj बंद करवाया गया, पहाड़ की नीरवता और सरलता के आगे dj पर बजते गाने à¤à¤• सांसà¥à¤•ृतिक अतिकà¥à¤°à¤®à¤£ का आà¤à¤¾à¤¸ देते है, मगर शायद ये होटल इंडसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ की à¤à¤• मज़बूरी à¤à¥€ है, और विवशता à¤à¥€…और फिर यह à¤à¥€ मानना पड़ेगा कि पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की अपनी पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤•ता और रà¥à¤šà¤¿ होती है, जैसे कि हर परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•, à¤à¤• यायावर या घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ नही हो सकता ! नये साल का विधिवत आगमन हो चà¥à¤•ा था… मà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤•बादों का दौर शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤† और फिर गाà¤à¤µ के लोगों को गले मिल-मिल विदा दी गयी, सà¥à¤¬à¤¹ उनके गाà¤à¤µ में आने के वादे के साथ… लग रहा था मेहमान तो वो हैं और हम मेजबान, आखिर हमें छोड़ कर तो वो ही जा रहे थे !
खाना तैयार था, सबने तय किया की अपने-अपने कमरों में खाना खा कर आधे घंटे में हमारे टेंट में बैठेंगे पà¥à¤·à¥à¤ªà¤°à¤¾à¤œ की टोली के साथ, फिर, आधे à¤à¤• घंटे के बाद जो समां बंधा, उसके कà¥à¤¯à¤¾ कहने ! कà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ फ़िलà¥à¤®à¥€ गीत, गज़लें, पहाड़ी गीत, बदà¥à¤°à¥€-केदार के à¤à¤œà¤¨, सब कà¥à¤› तो गाते रहे वो, और हम लोग à¤à¥‚मते रहे, समय की कोई बंदिश नही थी, और फिर पता नही रात के कितने बजे बरसात आने लगी… कहीं बरà¥à¤«à¤¼ ना पड़नी शà¥à¤°à¥‚ हो जाये, इस वज़ह से पà¥à¤·à¥à¤ªà¤°à¤¾à¤œ ने अपने दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के साथ विदा ली और हमसे ये वादा कि अगली बार आकर फिर à¤à¤¸à¥€ ही मंडली जमायेंगे ! नये साल की शà¥à¤à¤•ामनाà¤à¤‚ देते हà¥à¤ सब अपने-अपने कमरों में चले गठ|

पà¥à¤·à¥à¤ªà¤°à¤¾à¤œ और उसकी टोली के साथ पहाड़ी गीत-संगीत
रात तो बेहतरीन थी, मगर पहाड़ों की सà¥à¤¬à¤¹ का नज़ारा ही कà¥à¤› और होता है, शांत, पावन, शà¥à¤¦à¥à¤§… बस कà¥à¤¦à¤°à¤¤ खà¥à¤¦ बोलती है और इंसान शांत à¤à¤¾à¤µ से मंतà¥à¤°à¤®à¥à¤—à¥à¤§ हो उसे निहारता ही रहता है… आप चितà¥à¤°à¥‹à¤‚ में शायद उस शानà¥à¤¤à¤¿ और पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ को महसूस कर पायें ! टेंट से बाहर आकर देखा कई जोड़े इधर-उधर टहल रहे हैं, हर कोई टेंट में रà¥à¤•ने का अनà¥à¤à¤µ जानना चाहता था !
पिछली रात की हलà¥à¤•ी बरसात के बाद तो जैसे सारा नज़ारा कà¥à¤› और ही हसीन हो गया था, अगले 2-3 घंटे हम जंगल में यूठही निरूदेशà¥à¤¯ à¤à¤Ÿà¤•ते रहे… कà¤à¥€-कà¤à¥€ लगता है शायद पà¥à¤°à¤•ृति के सानिधà¥à¤¯ में à¤à¤Ÿà¤•ना यूठइतना निरूदेशà¥à¤¯ à¤à¥€ नही होता… दरअसल इस à¤à¤Ÿà¤•न में इंसान अपने आप को ही खोज़ रहा होता है, अपने शरीर से लेकर आतà¥à¤®à¤¾ तक का सफर, अपने सà¥à¤µ और निज को तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर पà¥à¤°à¤•ृति की सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ ता को सà¥à¤µà¥€à¤•ार करना, यह तà¤à¥€ समà¥à¤à¤µ है जब आपके सामने जो है, उसके मà¥à¤•ाबले आप को अपना होना ही कà¥à¤·à¥€à¤£ लगे, इक तà¥à¤šà¥à¤›à¤¤à¤¾ का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ आपको अपनी ही सीमाओं को तोड़कर, विशालकाय अनंत तक बिखरी सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ और उसमे समाये हà¥à¤ तमाम जीव-जनà¥à¤¤à¥à¤“ं और पेड़-पौधों के समककà¥à¤· ला खड़ा करता है, अब आप उस पर विजय नही पाना चाहते अपितॠउसका à¤à¤• अंग बन जाना चाहते हैं, अब बात ‘मैं’ की नही है, अब बात सामंजसà¥à¤¯ और सहअसà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ की है, आपके साथ खड़े पचास से सौ फà¥à¤Ÿ ऊंचे पेड़ और विशाल परà¥à¤µà¤¤ शà¥à¤°à¤‚खलायें ना तो आपको तà¥à¤šà¥à¤›à¤¤à¤¾ का अहसास करती हैं और ना आपको कोई चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ सी देती पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होती हैं, à¤à¤¸à¥‡ में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देख आपको अपनी लघà¥à¤¤à¤¾ को देख कोई हीन-à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ महसूस नही होती, बलà¥à¤•ि आप को गरà¥à¤µ महसूस होता है कि आप à¤à¥€ इस कायनात का इक अà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ हिसà¥à¤¸à¤¾ हैं, इसके ज़रà¥à¤°à¥‡-ज़रà¥à¤°à¥‡ में बिखरी नà¥à¤¹à¤¾à¤° बार-बार अपनी तरफ आमनà¥à¤¤à¥à¤°à¤£ सी देती पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होती है…. “अहठबà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤¸à¥à¤®à¤¿â€ का à¤à¤¾à¤µ शायद कà¥à¤› à¤à¤¸à¥‡ ही कà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ की अंत:करण यातà¥à¤°à¤¾ से उपजता हो, समय का अब यहाठकोई अरà¥à¤¥ नही | वो कà¥à¤·à¤£, जब अनंत से निकला पल फिर से उस अनंत में ही विलà¥à¤ªà¥à¤¤ हो जाता हैं, इसकी खोज ही तो मनà¥à¤·à¥à¤¯ की सबसे बड़ी जिजीविषा रही है, और मृगमरीचिका की ही à¤à¤¾à¤‚ति वो उसे परेशान à¤à¥€ करती रही है | समà¥à¤à¤µà¤¤: इसीलिठहमारे सà¤à¥€ ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿ जंगलों में ही रहे और पà¥à¤°à¤•ृति की गोद में बैठबà¥à¤°à¤¹à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ के उन अनसà¥à¤²à¤à¥‡ सवालों से दो-चार होते रहे… जो बातें और जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हमने कà¥à¤› पल की खोज़ में जानने की चेषà¥à¤Ÿà¤¾ कर डाली, उसके लिठतो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपना पूरा जीवन ही जंगलों और पहाड़ों में बिता दिया… अकारण नही कि उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड की धरती को देवà¤à¥‚मि कहलाने का सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है !

पà¥à¤°à¤•ृति की गोद में शà¥à¤¦à¥à¤§ वातावरण में नाशà¥à¤¤à¤¾ शहरी लोगों के लिठअविशà¥à¤µà¤¸à¤¨à¥€à¤¯ पल

रिसोरà¥à¤Ÿ की बगल से पडोस के गाà¤à¤µ की तरफ जाता रासà¥à¤¤à¤¾
वैरागà¥à¤¯ की ये à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤à¤‚ आप पर और अधिक हावी हो जाà¤à¤, इस से पहले ही आपको आपका परिवार याद दिलाता हैं कि अब वापिस चलो à¤à¥‚ख लग रही है, और आप अपने à¤à¥€à¤¤à¤° से अंदर तक की इस अंतरà¥à¤—मन यातà¥à¤°à¤¾ को बीच में ही विराम देकर, अपने मन को वहीं à¤à¤Ÿà¤•ता छोड़ अपने शरीर को, उस लोक से इस लोक में यानि रिसोरà¥à¤Ÿ वापिस ले आते हैं | नाशà¥à¤¤à¤¾ करके जब बाहर आये, तो कल रात के वो साथी जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आज वापिस जाना था, बाहर ही मिल गये, सबसे गले मिले, विजिटिंग कारà¥à¤¡ लिठदिठगठऔर ये वादा à¤à¥€ की सब टच में रहेंगे, फोटो शेयर करने है, और यदि समà¥à¤à¤µ हà¥à¤† तो फिर कोई à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बनायेंगे | à¤à¤• दूसरे से विदा लेते, सच में ) à¤à¤¸à¤¾ महसूस हà¥à¤† जैसे अपने घर से हमारे सगे रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤° जा रहे हो, इसमें बहà¥à¤¤ बड़ा योगदान इस रिजोरà¥à¤Ÿ का à¤à¥€ था, जाने वालों को तिलक लगा कर, मीठा खिला कर, उनकी मंगलमय यातà¥à¤°à¤¾ की कामना की गई और फिर अगली बार अपने और मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ समà¥à¤¬à¤‚धियो के साथ फिर आने की आशा, और फिर जाते-जाते ‘हिल विउ’ के नाम के à¤à¤•-à¤à¤• चाबी के सà¥à¤‚दर छलà¥à¤²à¥‡, जो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यहाठकी सà¥à¤–द याद दिलाते रहें और जो अà¤à¥€ नही जा रहे थे, वो मनà¥à¤¤à¥à¤° मà¥à¤—à¥à¤§ होकर इन कà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ को महसूस कर रहे थे ! कà¥à¤› नये मेहमान à¤à¥€ अब आने शà¥à¤°à¥‚ हो चà¥à¤•े थे, और हम निकल चले कà¥à¤› आसपास की उन जगहों को देखने जहाठपरà¥à¤¯à¤Ÿà¤• अकà¥à¤¸à¤° जाते है जैसे टिप à¤à¤‚ड टॉप, à¤à¥à¤²à¥à¤²à¤¾ लेक, à¤à¤• दो चरà¥à¤š और गढ़वाल रायफलà¥à¤¸ का मà¥à¤¯à¥‚जियम आदि, कà¥à¤² जमा दो तीन घंटो में ही आसपास की कà¥à¤› जगहें देख लीं, और कà¥à¤› जानबूठकर छोड़ दी, जिस से अगली बार यहाठआने का रोमांच बना रहे | जलà¥à¤¦à¥€ से घूम-घाम कर, दोपहर का खाना खाने हम रिजोरà¥à¤Ÿ में वापिस आ गये | à¤à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ बात, यहाठअधिकतर रिजोरà¥à¤Ÿ या होटलों का कोई फिकà¥à¤¸ मेनà¥à¤¯à¥ नही होता और ना आपकी पसंद की हर चीज़ आपको हर समय तैयार मिल सकती है, 3 से 4 घंटे पहले ही आपका आरà¥à¤¡à¤° ले लिया जाता है, जिस से लैंसडाउन की मारà¥à¤•िट से सामान लाया जा सके, और यदि कोई खास चीज़ ना मिल पाठतो वकà¥à¤¤ रहते उसे बदला जा सके i पहाड़ी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की विषम परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ और छोटे बाज़ारों को देखते हà¥à¤, ये जायज है | बहà¥à¤¤ समà¥à¤à¤µ है, यदि आप इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में आयें तो आपको यहाठके होटलों में वो सब सà¥à¤–-सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤ ना मिलें, जिनके हम शहरी लोग अà¤à¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ हो जाते हैं पर यहाठकी पà¥à¤°à¤•ृति, इसके कण-कण में फैला अनछà¥à¤¯à¤¾ सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ और इस जगह की सादगी, हमें उन सब कमियों को नज़रंदाज़ करने पर मजबूर कर देती है |

टिप à¤à¤‚ड टॉप, लैंसडाउन का मशहूर परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• सà¥à¤¥à¤²

à¤à¥à¤²à¥à¤²à¤¾ ताल में धà¥à¤ª सेंकती बतखों का फ़ोटो

लेंसडाउन में अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनवाया गया चरà¥à¤š

विदाई का समय , पूरà¥à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•ृति का अनà¥à¤ªà¤¾à¤²à¤¨
अब हमारा à¤à¥€ लौटने का समय आ चà¥à¤•ा था, और यहाठहमे अपने बिताये पलों में जिसकी बड़ी शिदà¥à¤¦à¤¤ से कमी महसूस हà¥à¤ˆ थी, वो थे बहà¥à¤¤ ही मसà¥à¤¤ और औघड़ हसà¥à¤¤à¥€ के मालिक और मेरे बहà¥à¤¤ ही ख़ास मितà¥à¤° शà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¥‡à¤® तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी जी, यदि वो à¤à¥€ अपने परिवार के साथ हमारे साथ यहाठहोते, तो शायद ये पल कà¥à¤› और यादगार हो जाते, मगर इस बात का सकून था कि हमने अकेले ही à¤à¤• बेहतरीन सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ और शानदार रिसोरà¥à¤Ÿ ढूà¤à¤¢ निकाला था, और फिर अगली दफा जब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ साथ ले कर आयेंगे तो केवल यहाठठहरना नही होगा बलà¥à¤•ि à¤à¤• पूरी जंगल सफ़ारी होगी, साथ ही जाना होगा ताडकेशà¥à¤µà¤° मनà¥à¤¦à¤¿à¤°, लेपà¥à¤ªà¤°à¥à¤¦à¤¸ केव और ना जाने कई और अनजाने सà¥à¤¥à¤¾à¤¨… दिनेश ने गले मिलते हà¥à¤ वादा लिया कि बहà¥à¤¤ जलà¥à¤¦à¥€ फिर यहाठआना है, कà¥à¤¯à¥‚ंकि अगले कà¥à¤› महीनों में वो यहाठज़िप लाइन के साथ-साथ कà¥à¤› और à¤à¤¡à¤µà¥‡à¤‚चर सà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿà¥à¤¸ à¤à¥€ शà¥à¤°à¥‚ करवाने वाला है, उसे ना कहने का तो कोई सवाल ही नही था और फिर à¤à¤• पकà¥à¤•े वाले वादे के साथ सबसे विदा लेते हà¥à¤ हमने अपनी गाड़ी उस रासà¥à¤¤à¥‡ पर बढ़ा दी जो हमे इस जंगल से निकाल कर à¤à¤• और कंकरीट के जंगल में पहà¥à¤‚चा देगा, जहाठहमारा घर है….















भैय़ा लैंसडाउन पर बहुत लेख पढ़े है, एक लिखा भी था ताड़केश्वर महादेव पर… परन्तु आपने लैसडाउन का जो विवरण दिया है, अनूठा है, आध्यत्मिक है, आनंदमय है….. अगली बार जाओ तो ताड़केश्वर में रात रुकना, प्रकृति का एक नया रूप देखने को मिलेगा
लेखन-शैली बिलकुल साहित्यिक… कम से कम मैने किसी पंजाबी को इतनी खूबसूरत हिंदी लिखते नही देखा
तत् त्वम असि
Many thanx Silent Soul for your kind words…. I would love to visit Tarkeshwar, as you suggest. I am just returned from there, but could not go there as roads were not in good condition, and we had Micra, which is not suitable for such roads…. I hope, by God’s grace, next time….
beautiful post,that photograph of sunset is exceptionally nicely taken.
Thanx a lot ashok ji for your kind words.
तो नववर्ष आपने यू.के.,लेंड्सडॉन में मनाया,जितने बेहतर तरीके से मनाया,उससे कहीं उत्तम तरीके से वर्णन किया,मैंने आपकी पहली पोस्ट में ही आपकी सकारात्मक उर्जा के बारे में लिखा था परन्तु यह लिखना भूल गया था की सकारात्मक उर्जा वालों को आगे कैसे भी लोग मिलें,वह् अपने प्रभाव क्षेत्र में आने वालों को सकारात्मक बना लेते हैं तथा वह् आपकी इच्छानुकूल व्यवहार करते हैं. चौकी घानी वाले केवल विदेशियों का ही एहतराम तिलक लगाकर करते हैं मगर ‘हिल विउ शांति राज रिजोर्ट’ में दिनेश द्वारा तिलक तथा मीठा खिलाकर विदाई बहुत अच्छी लगी.
साइलंत सोल ग्रुप के साथ हम तारकेश्वर महाराज गए थे वापसी में हमारा लेंड्सडॉन का अनुभव बहुत खराब रहा,गिनती के कुछ होटल और वह् भी फुल, ‘दुगड्डा’ में दो-एक लॉजनुमा गेस्टहाउस मिलें जो साफ़-सुथरे नहीं थे, इसलिए कोटद्वार आकर ही रुकना पडा.
सजीव चित्रण,लाजवाब स्वयम् बोलते चित्र यानि कुल मिलकर एक बहुत ही अच्छी घुमक्कड़ी.
त्रिदेव सर, आपकी टीप की प्रतीक्षा तो पोस्ट लगते ही हो जाती है, आशा केता हूँ कि सदा यूँ ही आपका स्नेह मिलता रहेगा….. सादर
Very well written post equally supported by beautiful pictures.
Have been to Lansdowne , never heard about this resort .
Keep writing …………………….
Thanx Mahesh Ji for your appreciation… I read your post on D-L-Ggn. Nicely composed and well written and it helped me a lot…
Yeah, you might not be aware of this resort as it is outskirt of LD and it is just 3 years old.
I just returned from there on my 3rd visit of the place, which also surprises us itself!!!
Could you share the Tariff of the resort ?
I have same feelings as SS. The treatment to text is similar to what we used to read in old hindi , literary magazines like Yojna/Kurukshetra etc. You indeed have a way with words, especially when it comes to soul-seraching kind of subject.
Thanx Nandan ji for your kind words. I am feeling speech less and humbled for your comments.
I will send you a post on the same place in English soon.
Beautiful post.Loved reading it.
Thanks for sharing
Thanx Abhee for your lovely words.
अति सुंदर चित्रण लैंसडाउन के बारे में जानकारी परक आलेख।
Thanx VIDYUT ji for your comment.
बहुत सुन्दर लेख …आनंदम भवति !
Thanx Sanjay ji for your nice and short well composed comment… आनंदम भवति !
उत्तम लेख अवतार जी, मै कई बार सोच चुका हू लॅन्सडाउन जाने की लेकिन अभी तक जाना हो ही नहीं पाया जबकि कई बार मसूरी, धनौल्टी, नैनीताल, मुक्तेसवर तक जा चुका हू/ अगर रिज़ॉर्ट की और जानकारी साझा करे तो अच्छा होगा जैसे की चार्जस, फोन नंबर इत्यादि.
मोदीनगर – मंसूरपुर के रास्ते मे गन्ने वालो की दादागिरी कौन भूल सकता है, सर्दियो की रात मे तो आप सड़क क्रॉस कर ही नहीं सकते जब गन्ने की मिल चालू रहती है. खैर सेलेब्रेशन तो यही होता है जो आपने किया.
Thanx Saurabh जी , आपके उत्साह वर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !. मैं स्वयम भी सोच रहा हूँ कि यदि एडमिन agree हों तो मैं इस रिजोर्ट का एक पूरा रिव्यु ही लिख दूं …. मगर ये सोच कर डर लगता हैं कि कहीं मुझे उनका advertiser न समझ लिया जाये…
I don’t think Nandan Ji will object on the information of resort as it is beneficial for fellow ghumakkar.
Nandan Ji : Need your permission please.
Saurabh – Please call me Nandan. :-)
@ Avtar – A honest hotel review is the most beneficial thing for any traveler. I look forward to it.
I will try my level best to be unbiased about the place and the owners, but I have visited there thrice so I can understand their problems etc. more deeply than just other guests of the resort. But I am quite sure, this place is ideal for those who love nature and calmness and ready to ignore services which they may find in big city resorts. Before the review I will send my post on it during my Mansoon visit, in English. Thanx
उम्दा लेखन, अवतार जी…भावों की अभिव्यक्ति हमेशा की तरह काबिले तारीफ़ है…लैंसडाउन पर पहले भी कुछ लेख आ चुके हैं, पर आपके लेख का ज़ायका कुछ अलग ही था…मजा आ गया भई…:)
Many thanx Vipin जी …. सच बताऊं तो आपकी टिप्पणी इसलिए काबिलेतारीफ है कि जो खुद ही एक घुमक्कड़ हो और लेखक भी, अक्सर वो किसी और के लिखे से इत्तिफाक नही रखता … पर आप सदा उत्साह बढाते हो, ये आपका बड़प्पन है… सादर
Very Nice description with beautiful pictures avtar ji. I never got a chance to visit this place.
thanx Pradeep ji for your comment.
Hi Avtarji,
Lansdowne is just incidental in this post. I loved the Hindi writing and it does remind me of my school books.
Especially liked th eparagraph where you described how we discover ourselves when we walk among the mountains and woods.
Good Going. Thanks for sharing!
thanx Nirdesh ji . You got the point, nothing to say more….thanx again
Namaskaar Avtaarji,
I have been to Lansdowne but your article is much better than my visit to the place. You have forced me to plan a trip for my family to this place which I dint like the last time. Really liked the way you have put across the place in your words.
Keep up the good work
Sumit.
Thanx Sumit ji for your kind words. Sir, its entirely up to what would be your expectations for the place. If you compare the kind of luxury, one may find in Mussoorie or in Shimla, then it will definitely be disappointing. But if you want to explore the raw nature, then it definitely have lot to offer. Good luck for your visit.
अवतारजी,
लैंड्सडाउन के बारे में यह लेख पढ़कर कई सुहानी अनुभूतियाँ हुई, एवं इस जायकेदार (दुआ साहब से ज्यादा) लेख के लिए हम आभारी है.
हिमालय के अनुगामी होते हुए भी हमारा कभी लैंड्सडाउन जाना नहीं हुआ है, हालाँकि एक बार उसी रास्ते आगे श्रीनगर/ रूद्रप्रयाग की ऒर गए थे. आपके लेख ने हमें पुनः प्रोत्साहित किया है, उस राह और गंतव्य पर जाने के लिये.
पहाड़ो पर पहुचते ही गाडी के शीशे नीचे करने की बात से पूरी तरह सहमत है – हमारा मानना है की अगर कोई पहाड़ों पर शीशा लगा कर ac चलाता हुआ गाड़ी चला रहा है तो प्रथमतः उसे वहां आना ही नहीं चाहिए था।
‘ छाता, छड़ी और टॅार्च ‘ – इसमें एक और चीज जोड़ना चाहूँगा – ट्रांजिस्टर ( अथवा मोबाइल, आज की पीढ़ी के लिए ), जिसे वह सड़को पर चलते हुए हमेशा अपने कान से सटाकर रखते है :-)
पहाड़ो का बखान वाकई बड़ा ही उम्दा है. हालाँकि एक मुद्दे को मै यहाँ लाना चाहूँगा – रिसोर्ट में देर रात ऊंची आवाज में नाच-गाना, यह शायद हम समतल भूमि के शहरी लोगों की (अ)सभ्यता है जो की पहाड़ो को कलुषित करे जा रही है। शायद मेरी सोच गलत है, पर मेरे विचार से पहाड़ों पर सूर्यास्त होते ही मंदिर की घंटियों की गूँज और माइक पर भजन कीर्तन की आवाज , जिनकी जगह कुछ समय बाद पहाड़ी कुत्तों की लयपूर्वक भौंके ले लेती है – ये ही वहां के वास्तविक आकर्षण है।
पुनः दोहराना चाहूँगा की आपके लेख बड़े न्यायास्नारोचक ढंग से प्रस्तुत होते है जिसका हम पूरा आनंद उठा रहे है.
धन्यवाद .
Hi AUROJIT
आपकी टीप के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद !
आपका कहना बिलकुल सही है आज के समय में मोबाइल भी हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी का एक आवश्यक अवयव हो गया है , दरअसल केवल एक मोबाइल ही आपको फ़ोन की सुविधा के अलावा कैमरा, वाकमैन, घड़ी,टॉर्च, और कम्पूयटर आदि का विकल्प दे देता है |
बाकी dj पर आपकी टिप्पणी से मैं भी सहमत हूँ और हमने इसका प्रायश्चित्त पहाड़ी गीत-संगीत के साथ कर लिया था …..
अवतार जी,
क्षमा करे, ऊपर के response के अंतिम वाक्य में ‘रोचक’ के स्थान पर transliterator ने ‘न्यायास्नारोचक’ लिख दिया है.
खेदपूर्वक ….
Its perfectly OK Aurojit. Although for a moment I was in a dilemma for this word, which was totally alien to me….
Dear Avtar j
After reading your reveiew about your Journey at Lansdowne , we ( including my friends ) enjoyed the review and feeling that we are there ……
and i am also full agree that if a person realy need to see the beauty of nature , flora n fauna of nature , he should stay at place beyond city ( in between the nature ) , and after reading your review we hope that you stayed at Hill View Shantiraj Resort in that way , we will plan soon with my friends group.
thanks for very nice sharing…
Thanx Prem ji for your kind words. Soon I will share a review of this resort for all the ghumakkars. I do hope, after reading that, it will help you to make your mind about, to choose or to avoid that place. Till then, enjoy Ghumakkri….
waha ji waha aapka lekh padkar ,,,sachmuch aanand aaya .ek ajib si satunsti mili ,