अपनी पिछली पोसà¥à¤Ÿ में मैंने आपको सोमनाथ समà¥à¤¦à¥à¤° तट तथा सोमनाथ के अनà¥à¤¯ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ की जानकारी दी तथा सोमनाथ में मेरे अनà¥à¤à¤µ आपके साथ साà¤à¤¾ किये. जैसे की मैंने बताया की हम सब करीब दो बजे सोमनाथ बस सà¥à¤Ÿà¥‡à¤‚ड पर पहà¥à¤à¤š गठजहाठसे दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के लिठहमारी बस तीन बजे थी अतः हम सबको वहां करीब à¤à¤• घंटा इंतज़ार करना पड़ा. अब आगे………………………….
सोमनाथ से दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा – बस का सफ़र:
सोमनाथ से हमारी बस दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के लिठकरीब 3 :15 को निकल गई. सोमनाथ से दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा सड़क दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लगà¤à¤— 230 किलोमीटर की दà¥à¤°à¥€ पर है तथा सड़क मारà¥à¤— के अलावा अनà¥à¤¯ कोई आवागमन का साधन सोमनाथ तथा दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के बीच नहीं है. लगà¤à¤— पूरा रासà¥à¤¤à¤¾ ही समà¥à¤¦à¥à¤° के सामानांतर चलता है जो की बड़ा ही मनोरम तथा लà¥à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ है.
इस रासà¥à¤¤à¥‡ पर à¤à¥€ कà¥à¤› दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤² आते हैं, जिनके दरà¥à¤¶à¤¨ की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ बस संचालक यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते हैं. दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के रासà¥à¤¤à¥‡ में पड़ने वाले दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ में पà¥à¤°à¤®à¥à¤– हैं – मूल दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा, हरसिदà¥à¤§à¤¿ (हरà¥à¤·à¤¦) माता मंदिर, खोडियार माता मंदिर (नरवाई माता) तथा महातà¥à¤®à¤¾ गाà¤à¤§à¥€ का जनà¥à¤®à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ पोरबंदर आदि (लेकिन हमारी बस पोरबंदर नहीं रà¥à¤•ी थी). सोमनाथ से दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा जाने के लिठगà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ परिवहन निगम की बसों के अलावा कà¥à¤› निजी बसें तथा जीपें à¤à¥€ उपलबà¥à¤§ हैं.
तो पà¥à¤°à¥‡ रासà¥à¤¤à¥‡ समà¥à¤¦à¥à¤° के किनारे सफ़र का आनंद, दूर दूर तक फैले नारियल के पेड़ों के बाग़, तथा बिच बिच में रूककर मंदिरों के दरà¥à¤¶à¤¨ करना सचमà¥à¤š बड़ा ही सà¥à¤–द था, à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था की यह सफ़र यूठही चलता रहे कà¤à¥€ ख़तà¥à¤® न हो लेकिन हम जो चाहते हैं वैसा हमेशा होता नहीं है……………तो हमारे इस सà¥à¤–द सफ़र का अंत हà¥à¤† 8:30 बजे रात जो दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा पहà¥à¤à¤š कर. हमारे साथ उस बस में जितने à¤à¥€ यातà¥à¤°à¥€ थे सबका उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ à¤à¤• ही था दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा पहà¥à¤à¤š कर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ के दरà¥à¤¶à¤¨ करना, अतः बस में इस छः घंटे के सफ़र में हमारी कà¥à¤› लोगों से दोसà¥à¤¤à¥€ à¤à¥€ हो गई, जो हमें पà¥à¤°à¥‡ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा दरà¥à¤¶à¤¨ के दौरान जगह जगह पर मिलते रहे.
दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा आगमन:
खैर, बस से उतरते हà¥à¤ लगà¤à¤— रात के नौ बज गठथे. बस से उतरते ही हम दो तीन दिन रà¥à¤•ने के लिठà¤à¤• अचà¥à¤›à¥‡ आशियाने की तलाश में लग गà¤, बस सà¥à¤Ÿà¥‰à¤ª के पास में ही बहà¥à¤¤ सारे निजी होटलà¥à¤¸ थे, या यों कहें की पà¥à¤°à¥‡ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा शहर में हर जगह धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾à¤à¤‚ तथा होटलà¥à¤¸ की à¤à¤°à¤®à¤¾à¤° है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह पवितà¥à¤° नगरी कई मायनों में अति महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है जैसे:- हिनà¥à¤¦à¥‚ धरà¥à¤® के मà¥à¤–à¥à¤¯ चार धामों में से à¤à¤•, हिनà¥à¤¦à¥‚ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सपà¥à¤¤ मोकà¥à¤·à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤¨à¥€ पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में से à¤à¤• तथा आदि शंकराचारà¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ चारों दिशाओं में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ मठों में से à¤à¤• शà¥à¤°à¥€ शारदा मठयहीं पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है.
हमें à¤à¥€ यहाठअपने लिठà¤à¤• सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤œà¤¨à¤• होटल ढूंढने में कोई ख़ास परेशानी नहीं हà¥à¤ˆ, बस सà¥à¤Ÿà¥‰à¤ª के पास ही हमें बहà¥à¤¤ ही किफायती दर पर अचà¥à¤›à¥€ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं वाला होटल मिल ही गया, मातà¥à¤° 250 रà¥. में डबल बेड के साथ अटेच लेट बाथ वाला à¤à¤•दम नया साफ़ सà¥à¤µà¤šà¥à¤› चमचमाता कमरा वो à¤à¥€ कलर टीवी के साथ जिसकी खिड़की दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा नगरी के मà¥à¤–à¥à¤¯ चौराहे (तीन बतà¥à¤¤à¥€ चौराहा) पर खà¥à¤²à¤¤à¥€ हो, और दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश मंदिर जहाठसे मातà¥à¤° पांच मिनट के पैदल रासà¥à¤¤à¥‡ पर हो इससे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ और हमें कà¥à¤¯à¤¾ चाहिठथा.
साथियों की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ के लिठहोटल के बारे में जानकारी यहाठलिख रही हूà¤- होटल शिव, तीन बतà¥à¤¤à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा – 361335 गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤. फ़ोन- +91 1164557711, तथा +919654-780079.

संसà¥à¤•ृति à¤à¤µà¤‚ शिवमॠहोटल शिव दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा में
इस होटल के करीब ही à¤à¤• बड़ा अचà¥à¤›à¤¾ सा à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ à¤à¥€ है (नाम अब मà¥à¤à¥‡ याद नहीं है,……….हाठयाद आया यमà¥à¤¨à¤¾ à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯, तीन बतà¥à¤¤à¥€, दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा), जहाठपर हमें इतना सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ खाना मिला की अगले तीन दिन तक हमने वहीठखाना खाया. उस रात तो हम बस के लमà¥à¤¬à¥‡ सफ़र से इतने थक गठथे की बस पेट à¤à¤° à¤à¥‹à¤œà¤¨ करके सोना चाहते थे. और हमने वही किया खाना खाकर सो गà¤, और यकीन मानिठà¤à¤—वान कृषà¥à¤£ की इस पावन नगरी में हमें इतनी मीठी नींद आई की सफ़र की सारी थकान मिट गई.
अगले दिन:
अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ जलà¥à¤¦à¥€ उठकर नहा धो कर हम सब à¤à¤—वान दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के लिठनिकल पड़े और मंदिर पहà¥à¤‚चकर à¤à¤—वान को अरà¥à¤ªà¤£ करने के लिठतà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤² (मंजरी) की माला ली. यहाठबताना चाहूंगी की जिस पà¥à¤°à¤•ार à¤à¤—वान शिव जी को बेल पतà¥à¤° पà¥à¤°à¤¿à¤¯ हैं उसी पà¥à¤°à¤•ार à¤à¤—वान विषà¥à¤£à¥ (कृषà¥à¤£) को तà¥à¤²à¤¸à¥€ दल पà¥à¤°à¤¿à¤¯ है.
à¤à¤—वान दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश का मंदिर जिसे जगद मंदिर à¤à¥€ कहा जाता है अब हमारे सामने था, और हमें अपने आप पर विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ ही नहीं हो रहा था की हम दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा धाम में दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश मंदिर के सामने खड़े हैं, à¤à¤• हिनà¥à¤¦à¥‚ के लिठसचमà¥à¤š यह बड़े सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ की बात है. मंदिर की सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ तथा विशालता देखकर मैं तो à¤à¤¾à¤µà¤µà¤¿à¤à¥‹à¤° हो गई, और मंदिर के शिखर पर लहराती विशाल धà¥à¤µà¤œà¤¾ तो इतनी मनमोहक लगी की बस मैं देखती ही रह गई और मेरी पलके ही नहीं à¤à¤ªà¤• रही थीं.
चलिठअब वक़à¥à¤¤ है इस अदà¥à¤à¥à¤¤ जगह की पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• जानकारी पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने का, तो लीजिये मैं अब अपनी यातà¥à¤°à¤¾ को थोडा सा विराम देकर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा तथा दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश मंदिर की थोड़ी सी जानकारी देने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करती हूअ……….
दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ परिचय:
दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ के जामनगर जिले में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¤• पवितà¥à¤° नगर है तथा पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦ हिनà¥à¤¦à¥‚ तीरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है. पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ ने यहाठपर शासन किया था, इसे à¤à¤¾à¤°à¤¤ के कà¥à¤› अति पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ तथा पवितà¥à¤° नगरों में से à¤à¤• माना जाता है तथा पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° इसे संसà¥à¤•ृत में दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾à¤µà¤¤à¥€ कहा जाता था. à¤à¤¸à¤¾ कहा जाता है की यह पौराणिक नगर à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ का निवास सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ था. माना जाता है की समà¥à¤¦à¥à¤°à¥€ विधà¥à¤µà¤‚श तथा अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक आपदाओं की वजह से दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा अब तक छः बार समà¥à¤¦à¥à¤° में डूब चà¥à¤•ी है तथा अà¤à¥€ जो दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा नगर उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है वह सातवीं बार बसाई गई दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा है. यह नगर à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€ विषà¥à¤£à¥ के 108 दिवà¥à¤¯ देसम में से à¤à¥€ à¤à¤• है.
हिनà¥à¤¦à¥‚ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा सात मोकà¥à¤·à¤¦à¤¾à¤¯à¥€ तथा अति पवितà¥à¤° नगरों में से à¤à¤• है. गरà¥à¤¡à¤¼ पà¥à¤°à¤¾à¤£ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°-
अयोधà¥à¤¯à¤¾,मथà¥à¤°à¤¾, माया, कासी, कांची अवंतिका. पूरी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾à¤µà¤¤à¥€ चैव सपà¥à¤¤à¤¯à¤¿à¤¤à¤¾ मोकà¥à¤·à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤•ाः
शà¥à¤°à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश मंदिर-à¤à¤• परिचय:
दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश का वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ मंदिर सोलहवीं शताबà¥à¤¦à¥€ में निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ हà¥à¤† था, जबकि मूल (ओरिजिनल) मंदिर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ के पà¥à¤°à¤ªà¥Œà¤¤à¥à¤° राजा वजà¥à¤° ने करवाया था. यह पांच मंजिला मंदिर चà¥à¤¨à¥‡ तथा रेत से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ किया गया है. मंदिर के शिखर की धà¥à¤µà¤œà¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¥€à¤¨ पांच बार बदली जाती है. मंदिर के दो दà¥à¤µà¤¾à¤° हैं सà¥à¤µà¤°à¥à¤— दà¥à¤µà¤¾à¤° जहाठसे दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ à¤à¤•à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते हैं तथा दूसरा मोकà¥à¤· दà¥à¤µà¤¾à¤° जहाठसे à¤à¤•à¥à¤¤ बाहर की ओर निकलते हैं. मंदिर से ही गोमती नदी का समà¥à¤¦à¥à¤° से संगम देखा जा सकता है. मंदिर के अनà¥à¤¦à¤° à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ की मूरà¥à¤¤à¤¿ है जिसे राजसी वैवाहिक पोषाक से पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¥€à¤¨ सजाया जाता है.रà¥à¤•à¥à¤®à¤£à¤¿ देवी का मंदिर अलग से बनाया गया है जो की बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के रासà¥à¤¤à¥‡ पर पड़ता है.
तो यह तो था à¤à¤• सकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ परिचय दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा तथा दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश मंदिर से अब हम लौटते है पà¥à¤¨à¤ƒ अपनी यातà¥à¤°à¤¾ की ओर…………….. तो हम आरती के समय का पता लगाकर सà¥à¤¬à¤¹ सà¥à¤¬à¤¹ करीब सात बजे मंदीर पहà¥à¤à¤š गठऔर लाइन में लग गà¤, और हमेशा की तरह हमें बिना किसी परेशानी के करीब आधे घंटे में à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश के दरà¥à¤¶à¤¨ हो गà¤. à¤à¤—वान का मोहक सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª और मंदिर का à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¯ माहौल देखकर हम तो जैसे निहाल हो गà¤.
दरà¥à¤¶à¤¨ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ हमने पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ काउंटर से पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ ख़रीदा. मंदिर में à¤à¤• 250 रà¥. का माखन मिशà¥à¤°à¥€ का à¤à¥‹à¤— लगता है, मेरी बहà¥à¤¤ इचà¥à¤›à¤¾ थी यह à¤à¥‹à¤— चढाने की लेकिन पता नहीं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ मैंने यह नहीं किया, और इसीलिठआज à¤à¥€ मेरे दिल में à¤à¤• टीस सी उठती है लेकिन कोई बात नहीं मैं तो सोचती हूठशायद à¤à¤—वान मà¥à¤à¥‡ दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ अपने दà¥à¤µà¤¾à¤° बà¥à¤²à¤¾à¤¨à¤¾ चाहते हैं शायद इसी लिठयह कमी रह गई.

दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ाधीश मंदिर के सामने मैं और मेरा परिवार
दरà¥à¤¶à¤¨ के बाद:
मंदिर दरà¥à¤¶à¤¨ के बाद हम मोकà¥à¤· दà¥à¤µà¤¾à¤° से बाहर की ओर निकल गà¤, पीछे के दà¥à¤µà¤¾à¤° से बाहर आते ही गोमती नदी के दरà¥à¤¶à¤¨ होते हैं तथा नदी के किनारे किनारे देवी देवताओं के कई सारे मंदिर हैं. सारे मंदिरों के दरà¥à¤¶à¤¨ करने तथा गोमती में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने के बाद हम नदी के किनारे होते हà¥à¤ संगम की ओर बढ़े जहाठगोमती नदी का समà¥à¤¦à¥à¤° से संगम होता है, या यह कह लीजिये गोमती नदी समà¥à¤¦à¥à¤° में समा जाती है. यहाठà¤à¥€ समà¥à¤¦à¥à¤° तट पर हमने बहà¥à¤¤ समय बिताया तथा बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के साथ समà¥à¤¦à¥à¤° की लहरों से à¤à¥€à¤—ने का खूब आनंद उठाया.
दिन à¤à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा में खूब घà¥à¤®à¤¨à¥‡ फिरने के बाद शाम को हम अपने होटल में आ गठतथा वहीठयमà¥à¤¨à¤¾ होटल पर सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ खाना खाया. à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ का सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« à¤à¥€ इन तीन दिनों में हमसे खूब हिल मिल गया था, सà¤à¥€ लोग शिवमॠको पहचानने लगे थे और उससे बहà¥à¤¤ लाड पà¥à¤¯à¤¾à¤° करते थे, हमने à¤à¥€ उन सबको इंदौर आने का नà¥à¤¯à¥Œà¤¤à¤¾ दिया. अगले दिन हमारा पà¥à¤²à¤¾à¤¨ था दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के आस पास सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ का à¤à¥à¤°à¤®à¤£ जैसे रà¥à¤•à¥à¤®à¤£à¤¿ मंदिर, गोपी तलाव, नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग मंदिर तथा बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा (à¤à¥‡à¤‚ट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा).
दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के आस पास के अनà¥à¤¯ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ का à¤à¥à¤°à¤®à¤£:
अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ हमने अपने होटल के रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा à¤à¥à¤°à¤®à¤£ के बारे में पता किया तो हमें पता चला की दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा से (बà¥à¤•िंग ऑफिस-सबà¥à¤œà¥€ मारà¥à¤•ेट तथा à¤à¤¦à¥à¤°à¤•ाली चौक) दिन में दो बार सà¥à¤¬à¤¹ आठबजे तथा दोपहर दो बजे दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा नगर पालिका दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संचालित दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा दरà¥à¤¶à¤¨ की बसें चलती हैं जो यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को रà¥à¤•à¥à¤®à¤£à¤¿ मंदिर, गोपी तलाव, नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग मंदिर तथा बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा (à¤à¥‡à¤‚ट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा) के दरà¥à¤¶à¤¨ करवा कर पांच से छः घंटे में वापस दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा लाकर छोड़ देती है तथा 60 रà¥. पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का किराया लेती हैं. अतः हमने à¤à¥€ à¤à¤¸à¥€ ही à¤à¤• बस में अपने लिठतीन सीटों की बà¥à¤•िंग करवा ली.
यहाठà¤à¤• बात मैं सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ कर दूं की हम लोग जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग मंदिरों के बहà¥à¤¤ विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से दरà¥à¤¶à¤¨, पूजन, अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• करने के इचà¥à¤›à¥à¤• रहते हैं तथा जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग मंदिर के लिठअपेकà¥à¤·à¤¾à¤•ृत जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ समय की योजना रखते हैं अतः हमने शà¥à¤°à¥€ नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग मंदिर के लिठअगले दिन के लिठअलग से पà¥à¤²à¤¾à¤¨ किया ताकि पहले दिन दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा दरà¥à¤¶à¤¨ बस से à¤à¥€ नागेशà¥à¤µà¤° के दरà¥à¤¶à¤¨ हो जाà¤à¤ तथा अगले दिन अलग से à¤à¥€ यहाठआकर अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• और दरà¥à¤¶à¤¨ कर लें.
तो करीब 12 बजे हमारी बस दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा à¤à¥à¤°à¤®à¤£ के लिठनिकल पड़ी, उस समय तेज धà¥à¤ª निकली हà¥à¤ˆ थी तथा गरà¥à¤®à¥€ à¤à¥€ हो रही थी, लेकिन थोड़ी ही देर में जैसे ही बस दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा से बाहर निकली बस की खिड़की से हवा आने लगी तथा गरà¥à¤®à¥€ काफूर हो गयी.
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रà¥à¤•à¥à¤®à¤£à¤¿ मंदिर:
यह मंदिर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा से करीब 3 किलोमीटर की दà¥à¤°à¥€ पर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा शहर के बाहरी हिसà¥à¤¸à¥‡ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है. इस मंदिर के बारे में à¤à¤• रोचक कहानी है की à¤à¤• बार दà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¸à¤¾ ऋषि जो à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ के गà¥à¤°à¥ थे, दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा में पधारने वाले थे यह खबर सà¥à¤¨à¤•र à¤à¤—वान कृषà¥à¤£ तथा माता रà¥à¤•à¥à¤®à¤£à¤¿ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ससमà¥à¤®à¤¾à¤¨ लेने के लिठजंगल में गà¤, दà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¸à¤¾ ऋषि की इचà¥à¤›à¤¾ के अनà¥à¤°à¥‚प à¤à¤—वान कृषà¥à¤£ तथा रà¥à¤•à¥à¤®à¤£à¤¿ रथ में घोड़ों की जगह खà¥à¤¦ जà¥à¤¤ गà¤, अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• गरà¥à¤®à¥€ तथा थकान की वजह से माता रà¥à¤•à¥à¤®à¤£à¤¿ को पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ सताने लेगी तो à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ के माता की पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ बà¥à¤à¤¾à¤¨à¥‡ के लिठजमीं से कà¥à¤› पानी निकाला जिसे रà¥à¤•à¥à¤®à¤£à¤¿ जी पीने लगी, यह देखकर ऋषि दà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¸à¤¾ बहà¥à¤¤ कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ हो गठकी पहले गà¥à¤°à¥ से पानी का पूछने के बजाय रà¥à¤•à¥à¤®à¤£à¤¿ ने खà¥à¤¦ कैसे पानी पी लिया.
अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• कà¥à¤°à¥‹à¤§à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µ के होने के कारन दà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¸à¤¾ ने रà¥à¤•à¥à¤®à¤£à¤¿ जी को शà¥à¤°à¤¾à¤ª दिया की अगले बारह वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक रà¥à¤•à¥à¤®à¤£à¤¿ जी à¤à¤—वान कृषà¥à¤£ से दूर इसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर तथा पà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ रहेंगी. इसी शà¥à¤°à¤¾à¤ª की वजह से माता रà¥à¤•à¥à¤®à¤£à¤¿ का यह मंदिर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा से बाहर है. मंदिर में à¤à¤• अजीब पà¥à¤°à¤¥à¤¾ à¤à¥€ है की हर à¤à¤•à¥à¤¤ मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ से पहले à¤à¤• छोटा गà¥à¤²à¤¾à¤¸ पानी पीकर ही पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर सकता है अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾Â नहीं. रà¥à¤•à¥à¤®à¤£à¤¿ मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ करीब दस मिनट में बार यहाठसे आगे की ओर चल दी. बस का कंडकà¥à¤Ÿà¤° ही गाइड का काम à¤à¥€ कर रहा था, तथा मंदिरों के बारे में बड़ी अचà¥à¤›à¥€ जानकारी दे रहा था.
शà¥à¤°à¥€ नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग मंदिर: (शà¥à¤°à¥€ नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग मंदिर को अगली पूरी पोसà¥à¤Ÿ समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ है, अतः यहाठमैं इस मंदिर के बारे में कोई जानकारी नहीं दे रही हूà¤)
गोपी तालाब:
नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग से कà¥à¤› किलोमीटर चलने के बाद बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के रासà¥à¤¤à¥‡ में आता है गोपी तालाब. गोपी तालाब à¤à¤• छोटा सा तालाब है जो की चनà¥à¤¦à¤¨ जैसी पिली मिटà¥à¤Ÿà¥€ से घिरा है जिसे गोपी चनà¥à¤¦à¤¨ कहते हैं, यह चनà¥à¤¦à¤¨ à¤à¤—वानॠशà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ के à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ माथे पर तिलक लगाने के लिठकिया जाता हैं.
यह तालाब हिनà¥à¤¦à¥‚ पौराणिक कथाओं में विशेष सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ रखता है, à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है की इसी जगह पर गोपियाठà¤à¤—वानॠशà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ से मिलने आई थीं. गोपी तलाव दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा से 20 किलोमीटर तथा नागेशà¥à¤µà¤° से मातà¥à¤° 5 किलोमीटर की दà¥à¤°à¥€ पर बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के मारà¥à¤— पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है. कà¥à¤› देर इस सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° जगह पर बिताने तथा तालाब के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ हमारी बस चल पड़ी बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा की ओर.
बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा:
बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा, दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा से करीब 30 किलोमीटर दूर है तथा à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है की यह जगह à¤à¤—वान कृषà¥à¤£ का निवास सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ थी. à¤à¤—वान कृषà¥à¤£ बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा में निवास करते थे तथा उनका कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ (दरबार) दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा में था. बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा वही जगह है जहाठà¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ की अपने बाल सखा सà¥à¤¦à¤¾à¤®à¤¾ जी से मà¥à¤²à¤¾à¤•ात (à¤à¥‡à¤‚ट) हà¥à¤ˆ थी इसी वजह से इसे बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा कहा जाता है. बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा समà¥à¤¦à¥à¤° के कà¥à¤› किलोमीटर अनà¥à¤¦à¤° à¤à¤• छोटे से दà¥à¤µà¥€à¤ª (Island) पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है जहाठपहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के लिठओखा के समà¥à¤¦à¥à¤°à¥€ घाट (Jetty ) से फेरी (छोटा जहाज या नाव) की सहायता से जाना पड़ता है. फेरी से बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ में लगà¤à¤— आधे घंटे का समय लगता है.
लेकिन यह आधे घंटे का सफ़र बड़ा ही आनंददायक होता है, खà¥à¤²à¥‡ आकाश में नाव की सवारी करके à¤à¤• टापू पर पहà¥à¤‚चना सचमà¥à¤š बहà¥à¤¤ सà¥à¤–द अनà¥à¤à¤µ था. पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के à¤à¥à¤£à¥à¤¡ के à¤à¥à¤£à¥à¤¡ हमारी नाव के ऊपर उड़ रहे थे à¤à¤µà¤‚ कई बार तो ये पकà¥à¤·à¥€ à¤à¤•दम हमारे करीब आ जाते थे इतना करीब की हम उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ छू सकते थे.
इस कà¤à¥€ न à¤à¥‚लने योगà¥à¤¯ अनà¥à¤à¤µ को हमने अपनी सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ में हमेशा के लिठबसा लिया और कà¥à¤› ही देर में हम बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के दà¥à¤µà¥€à¤ª पर पहà¥à¤à¤š गà¤. बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा में हमने सबसे पहले दरà¥à¤¶à¤¨ किये à¤à¤—वान कृषà¥à¤£ के निवास सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के जो अब à¤à¤• मंदिर है. बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा में और à¤à¥€ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° तथा देखने लायक मंदिर हैं.
बेट दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा में करीब 2 घंटे रà¥à¤•ने के बाद हमारी बस वापस दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा के लिठनिकल पड़ी तथा शाम सात बजे के लगà¤à¤— हम अपने होटल में पहà¥à¤à¤š गà¤. अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ जलà¥à¤¦à¥€ उठकर हमें शà¥à¤°à¥€ नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के लिठजाना था अतः हम जलà¥à¤¦ ही सो गà¤.
इस à¤à¤¾à¤— के लिठबस इतना ही………………………………………………………अगले तथा अंतिम à¤à¤¾à¤— में मैं आपको दरà¥à¤¶à¤¨ कराउंगी शà¥à¤°à¥€ नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के. उमà¥à¤®à¥€à¤¦ है लेख आपको पसंद आà¤à¤—ा.

















वाह कविता जी… बड़ी तन्मयता व पूरे विवरण के साथ सुनाया… चित्र भी बहुत अच्छे आये हैं.. पर कुछ चित्र जिन्हे शायद स्कैन किया, आऊट आफ फोकस लग रहे है… किसी से सही तरीका जानिये..
और माखन-मिश्री का भोग, फिलहाल जो नन्हा कान्हा आपके घर में है.. यानि शिवम उसे ही खिला दिजीए…भगवान प्रसन्न हो जायेंगे..
ये बताइये जो द्वारका समुद्र में खोजा गया है.. वो यहां से कितनी दूर है.. तथा क्या कोई संग्राहलय वगैरा है जहां उसके बारे में सूचना हो ??
लगता है मुकेश जी ने आपको लिखने के काम में लगा दिया है…
कुल मिलाकर संपूर्ण विवरण, भक्ति भावना से ओत-प्रोत…
और हां हिन्दी की विदुषी को मात्राओं की गलतियां नही करनी चाहियें…हमारे जैसे जाहिलों को ही ये छूट हासिल है…LOL
साइलेंट सोल जी,
आपको पोस्ट पसंद आई मेरे लिए यह हर्ष का विषय है. माखन मिश्री वाली बात का समाधान जो आपने सुझाया है सचमुच मेरे दिल को छू गया.
द्वारका के समुद्र में डूबने तथा उसकी खोज से सम्बंधित जानकारी विकिपीडिया ने बड़े अच्छे तरीके से दी है, कृपया इस लिंक पर क्लीक कीजिये http://en.wikipedia.org/wiki/Dwarka#Submersion_into_the_Sea.
मुकेश जी भी कुछ ही दिनों में अपनी अगली पोस्ट के साथ जरुर आयेंगे.
और आपने अपने आप को जाहिल कैसे कहा? आप तो घुमक्कड़ के भीष्म पितामह हैं, और हम सब के प्रेरणा स्त्रोत. और हम सभी आपके आशीर्वाद का वरदहस्त अपने ऊपर चाहते हैं.
थैंक्स.
अब भाई इतना बुड्ढा भी नहीं हूं जो भीष्म पितामह बना दें…LOL…
माखन मिश्री का समाधान इसलिये दिया कि मुझे भी कान्हा की आवाज सुनाई दे गई – कि मैया मोरी मै नही माखन खायो…(क्यूंकि कविता जी खिला कर नहीं गयीं)….
भौतिक रुप से भेंट देने से अधिक है मानसिक भेंट… जैसे शिव मानस पूजा में बिना कुछ किये हृदय में ही सोचा जाता है कि मैने भोग लगा दिया, फूल चढ़ा दिये इत्यादि… और मानसिक पूजा, भौतिक पूजा से अधिक शक्तिशाली होती है.
जय भोलेनाथ
साइलेंट जी,
आप हमारे लिए उम्र से नहीं अनुभव से भीष्म पितामह हैं. बुड्ढे हों आपके दुश्मन……… LOL.
थैंक्स.
बढिया काम किया कविता जी अापको धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ इस जानकारी के लिà¤
नमस्कार कविताजी ,
आपका लेखन हर पोस्ट के साथ साथ बढ़िया होता जा रहा है. बहुत ही सुंदर वर्णन था. द्वारकाधीश और द्वारका के सुबह सुबह दर्शन करके मन तृप्त हो गया.
इस पोस्ट के बारे जितना लिखू कम है.आपने ज्यादातर जानकारी एक परफेक्ट पोस्ट की तरह दे ही दी है.
और माखन मिश्री के भोग के बारे तो साइलेंट सौल की बात से सहमत हूँ. सही माहीने में आपका भोग तो द्वारकाधीश को लग गया है क्यूंकि आपके भाव इतने प्रबल है. लेकिन फिर भी भगवान आपको सोमनाथ और द्वारका बार बार बुलाए. रुक्मिणी मंदिर की कथा भी बहुत अच्छी लगी.
एक जानकारी मैं जरूर देना चाहूंगा द्वारकाधीश मंदिर की ध्वजा के बारे में. द्वारकाधीश के मंदिर की ध्वजा जैसे आपने कहा की दिन में ५ बार बदली जाती है , यह ध्वजा एक भक्त और उसका परिवार चढाता है और यह उसके नाम से चढाई जाती है. दिन में ५ ध्वजा मतलब ५ भक्त और उसके परिवार के नाम चढती है. मैंने जब इसके बारे में जांच की थी द्वारकाधीश मंदिर में इस जनवरी महीने में तो मुझे पता चला की मई २०१४ तक सारे के सारे स्लोट फुल है . यानी अगर आपको ध्वजा चढानी है द्वारकाधीश के मंदिर पर तो मई २०१४ के बाद ही आपका नंबर लगेगा. अब तो तारीखे और भी बढ़ गयी होगी . और यह ध्वजा चढाते वक्त परिवार के दो लोगो को ऊपर ५ मंजिले तक जाने को मिलता है.
दूसरी बात यह है की द्वारका शहर में सबसे ऊंची इमारत द्वारकाधीश मंदिर है. गुजरात सरकार की आज्ञा है की इस मंदिर से ऊंची कोई इम्मारत नहीं होनी चाहिए द्वारका शहर में.
( तकनिकी वजह से केवल द्वारका लाईट हॉउस उस मंदिर से ऊंचा है. )
जय द्वारकाधीश………………………………..नागेश्वर बाबा का इंतज़ार……………………
विशाल जी,
सुन्दर शब्दों में प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभार. यह आपकी ईश्वर के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतिफल है की द्वारकाधीश के बारे में पढ़कर एवं चित्र देख कर आपका मन तृप्त हो गया. सच कहूँ तो इस बार आपकी कमेन्ट पढ़कर मन प्रसन्न हो गया और मनोबल भी बढ़ा, आपकी हिन्दी पर पकड़ भी दिन ब दिन मजबुत होती जा रही है.
द्वारकाधीश मंदिर की ध्वजा के बारे में आपके द्वारा प्रदान की गई जानकारी काबिले तारीफ़ है, और यह तथ्य जानकार तो बड़ी प्रसन्नता हुई की गुजरात शासन के आदेश के अनुसार द्वारका नगर में कोई भी भवन द्वारकाधीश मंदिर से ज्यादा ऊँचा नहीं बनाया जा सकता.
ध्वजा के बारे में पाठकों से कहना चाहूंगी की आखिर क्यों हजारों रुपये खर्च करने के बाद भी द्वारकाधीश मंदिर पर ध्वजा चढाने के लिए भक्त को दो वर्ष बाद की तारीख मिलती है ? ऐसा इसलिए है की कहा जाता है की जैसे द्वारकाधीश मंदिर पर विशाल ध्वजा लहराती है वैसे ही ध्वजा चढाने वाले भक्त का भाग्य भी ऊँचाइयों को स्पर्श करता है, उसे सफलता, यश, धन एवं प्रसिद्धि प्राप्त होती है. ऐसा है भगवान श्री द्वारकाधीश की भक्ति का प्रसाद.
जय द्वारकाधीश……….
धन्यवाद.
कसा हुआ लेख है कविता जी | एक स्पेशल थैंक्स , होटल की जानकारी के लिए | होटल के बारे में इन्टरनेट पर आसानी से जानकारी उपलब्ध नहीं है तो श्रधालुओं के लिए ऐसी जानकारी काफी लाभकारी है | सोमनाथ से द्वारका का रास्ता समुद्र के साथ साथ होने से काफी मनोरम होगा , चेन्नई से पोंडिचेरी का रास्ता भी कुछ ऐसा ही है, वहां गाडी चलाने का मौका मिला है मुझे पर सोमनाथ कब जाना होता है, देखतें हैं | शायद आपके, विशाल जी के और मुकेश जी के लेख पढ़ कर कुछ हौसला बढे और प्लान बने | इंशा अल्लाह |
मेरा अनुरोध है सभी कमेन्ट कारियों से की इतने बढ़िया तरीके से लिखे लेख पर कमेन्ट प्रकाशित करने से पहले एक बार जांच लें, छोटी मोती गलतियाँ आसानी से गूगल transliterate की सहायता से सुधारी जा सकती है | और अगर देवनागरी में कमेन्ट आये तो पढने में ज्यादा आसानी होती है | आप सभी http://www.google.com/transliterate का इस्तेमाल कर सकतें हैं |
नंदन जी,
इतने मधुर शब्दों में उत्साहवर्धक एवं सटीक प्रतिक्रिया के लिया आपका बहुत बहुत धन्यवाद. जी हाँ नंदन जी सोमनाथ से द्वारका का रास्ता सचमुच बड़ा ही मनोहारी है, और एक बात और कहना चाहूंगी की यदि अब तक आपने सोमनाथ एवं द्वारका का भ्रमण नहीं किया है तो कृपया जल्द से जल्द योजना बनाइये, सचमुच बड़ी सिद्ध एवं सुन्दर जगहें हैं.
धन्यवाद.
कविता जी,
बहुत ही अच्छा विवरण.
सचमुच याद ताज़ा हो गई
लेकिन इसमें आपने द्वारका में ही जो दर्शनीय स्थल हैं उनके बारे मैं नहीं लिखा ?
मुझे वहाँ गए हुए कई साल हो गए लेकिन जो याद आ रहा है एक शिव मंदिर भी है जो की लगभग ५००० साल पूरा बताया जा रहा था. उसपे जाने का रास्ता समुंदर मैं कभी डूब जाता है तो कभी निकल आता है. जब हमने देखा तो उस रास्ते पर से सुंदर का पानी आ जा रहा था, हम सब दोस्तों में से कुछ हे हिम्मत कर पाए वहाँ पहुँचने की, और हाँ उस रास्ते पे फिसल के भी गिरे थे. उस मंदिर के बारे मैं जो सबसे आस्चर्यजनक बात हमें बताई वो ये थी कि आज जिस मंदिर को हम समुंदर में देख रहे हैं, रास्ता तक नहीं मिल रहा जहाँ पहुँचने का, वहाँ हर शिवरात्रि पे विशाल भंडारा लगता है और श्रधालु लोग इसी मंदिर के साथ मैं जमीन पे बैठ के (जिसकी आज हम कल्पना भी नहीं कर पा रहे थे ) प्रशाद ग्रहण करते हैं. उस समय समुंदर अपने आप पीछे हट जाता है और वो स्थान खाली हो जाता है..
वाहन लोकल घूमने के लिए ऑटो रिक्शा काफी मिलते हैं लेकिन जो मजा तांगे मैं घूमने का है उसका कोई मुकाबला नहीं. हमें एक तांगे वाला मिला था जिनका नाम था कांतिभाई. बहुत ही अच्छी तरह घुमाते हैं और साथ साथ गाइड का काम भी फ्री मैं करते हैं…
और रही बात सोमनाथ से द्वारका के रास्ते कि, जब हम गए उस समय शायद कुछ बाद वैगरा आई हुई थी, कई जगह सड़क भी बाद के पानी मैं डूबी हुई थी, क्या मनोरम रास्ता था और कितना सुहावना मौसम शब्दों मैं बयां करना मुश्किल हे नहीं असंभव है,
अब जब मैं खुद लिखने बैठा तब समझ मैं आ रहा है कि “सब कुछ” लिखना सचमुच बहुत मुश्किल है, जितना लिखते हो उससे ज्यादा छूट जाता है..
सचमुच बहुत हे अच्छा वर्णन…
संजय जी,
प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. आप बिलकुल सही कह रहे हैं मैंने अपनी पोस्ट में कुछ चुनिन्दा दर्शनीय स्थलों का ही जिक्र किया है.
आप जिस मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहाँ तक मेरा ख्याल है वह भडकेश्वर महादेव मंदिर है जो की कुछ अन्दर चलकर समुद्र के अन्दर स्थित है. इस मंदिर तथा द्वारका के अन्य दर्शनीय स्थलों की जानकारी के लिए आप विशाल राठोड़ जी की यह पोस्ट पढ़ें – https://www.ghumakkar.com/2012/04/03/dwarka-tour-places-to-see-nageshwar-jyotirlinga-and-unexplored-places-in-dwarka/
और हाँ संजय जी आपने सही कहा जब हम लिखने बैठते हैं तो बहुत कुछ जो हम लिखना चाहते हैं छुट जाता है और बहुत कुछ लिखने में आ जाता है जो हमने प्लान नहीं किया होता है.
धन्यवाद.
कविता जी,
बिलकुल ठीक बताया आपने, विशाल जी ने तो वही बात जिसे मैं शब्दों मैं कहना चाह रहा था, तस्वीरों के माध्यम से समझाई है. भड्केश्वर महादेव जी के मंदिर के दोनों फोटो ( पानी मैं डूबे हुए हुए का उन्होंने किसी और साईट से ले के दिखाया है, जैसा की हमने देखा था) पानी में डूबे हुए और सूखा जैसा उन्होंने देखा था.
बहुत हे सुंदर वर्णन….
और हाँ एक और बधाई देना तो मैं भूल ही गया …
आपके और मुकेश जी के विचारों कि समानता के लिए आप दोनों की जोड़ी बधाई कि पात्र है. आप दोनों ही पर परम पिता की असीम अनुकम्पा है…
हमारी शुभ कामनाएं आप दोनों के लिए….
Hi Kavita……………
Amazing post. Enjoyed thoroughly Once again visiting Dwarka……………..
Feeling to go there again and again…………………..and catch this all moments again……………….All pics are good.
And strike pose of Mukesh is very good………………..keep going………………………missing you……………….
सोनाली,
प्रशंसा से परिपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार. इस पोस्ट के माध्यम से आपकी यादें ताज़ा हो गईं, और आपने भगवान द्वारकाधीश को याद किया तो समझो मेरा पोस्ट लिखने का मकसद पूर्ण हो गया.
मैं तो ईश्वर से यही प्रार्थना करुँगी की आपकी ईच्छानुसार आप बार बार सोमनाथ और द्वारका जाएँ और भगवान के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त करें.
हम सब भी आपको बहुत याद करते हैं. देखते हैं अब कब मिलना होता है (वैसे यह आप पर निर्भर करता है ).
धन्यवाद.
VERY NICE POST KAVITA JI.
Praveen ji,
Thank you very much for your encouraging words.
Thanks.
Kavitaji ne Bhagwan Dwarikadeesh ji ke darshan karwakar poore ghumakkar parivar ko Krishanmay kar diya. Anand aa gaya yatra ki baarikiya parhkar tatha pics main. Ab intzaar hai Bhagwan Triyambak ke Nageshwar Jyotirling ka.
Dhanyawad Kavitaji, thanks Ghumakkar.com.
वाह त्रिदेव जी,
क्या पंक्तियाँ लिखीं है आपने “कविताजी ने भगवान द्वारिकाधीश जी के दर्शन करवाकर पूरे घुमक्कड़ परिवार को कृष्णमय कर दिया”. इन सुदर शब्दों में प्रतिक्रिया देने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद.
इस श्रंखला की मेरी अगली तथा अंतिम पोस्ट “नागेश्वर ज्योतिर्लिंग – ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुदर है” दिनांक 06.05.2012 (रविवार) को प्रकाशित होने वाली है. आशा है आपको पसंद आएगी.
धन्यवाद.
कविता जी , वाकई में बहुत ही कसा हुआ लेख , और जैसा कि मुझसे पहले सभी ने तारीफ की है तो मै भी इस अच्छे और संतुलित लेख के लिये आपको बधाई देता हूं । आपने ये बहुत अच्छा किया जो होटल की जानकारी दी ……….मेरे घुमक्कड पर लिखने के बाद से आपने और विशाल जी ने सोमनाथ और द्धारिका के बारे में इतनी अच्छी तरह लिखा कि मुझे लगता है कि क्या लिखूं…..क्योंकि मैने पहले लिखी हुई स्टोरीज इसीलिये नही पढी है कि एक तो लिखने में समय कम मिलता है दूसरा अगर आप पहले किसी का लेख पढ लो तो फिर वो ध्यान रहता है । …..विशाल जी का लेख भी वाकई में बढिया था और उनकी दी गई जानकारी ध्वजा के बारे में
मनु जी,
सबसे पहले तो आपने लेख को पढ़ा, पसंद किया और सराहना की उसके लिए शुक्रिया. मेरी और मुकेश दोनों की पोस्ट की यह विशेषता होती है की हम पाठकों की सुविधाओं का ध्यान रखते हुए किफायती दामों में जो सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं उनकी जानकारी देने की पूरी कोशिश करते हैं.
विशाल जी की सोमनाथ – द्वारका की पोस्ट आने पर मुझे लगता था की अब मैं और इन स्थानों के बारे में क्या लिखुंगी लेकिन ऐसा नहीं होता है जब लिखने बैठते हैं तो अपने आप अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती जाती है.
थैंक्स.
आपकी आज की पोस्ट में दिखाई सारी जगह देख आया हूँ एक बार फिर देख कर बढ़िया लगा, सुन्दर लेखन
संदीप जी,
सोमनाथ और द्वारका दर्शन कर लेने के बाद भी आपने पोस्ट को तन्मयता से पढ़ा और टिप्पणी की उसके लिए धन्यवाद.
रुक्मणि मंदिर की कहानी जानकर अच्छा लगा। द्वारका जाने वालों के लिए काफी उपयोगी जानकारी थी इस पोस्ट में।
मनीष जी,
समय निकाल कर पोस्ट को पढने तथा कमेन्ट करने के लिए धन्यवाद.
कविता जी…..
जय द्वारिकाधीश ……..जय श्री कृष्णा …………………जय द्वारिकाधीश ……..!
बहुत अच्छे और भक्तिमय शब्दों में श्री द्वारिका जी का लेख पढ़ कर मैं भी कृष्णमय हो गया ……..बहुत अच्छा वर्णन, सुन्दर और महत्वपूर्ण जानकारी से सजा आपका लेख मुझे बहुत ही अच्छा लगा |
वैसे द्वारिका जी के बारे में पहले भी पढ़ चुका हूँ, पर हिंदी भाषा में लेख पढ़ने का आनंद ही कुछ अलग होता हैं , जो मुझे आज मिल गया |
लेख में कई बाते जैसे रुक्मणी मंदिर की कहानी, होटल की जानकारी, खाने-पीने की जगह, द्वारिका जी मंदिर का विवरण, वहाँ के दर्शनीय स्थलों आदि का समावेश बखूबी किया हैं |
समुंद्र के किनारे के रास्ते का सफ़र वाकई में एक खूबसूरत याद छोड़ देता हैं, ऐसा ही कुछ सफ़र समुंद्र के किनारे हमने कोणार्क से जगनाथपुरी तक किया था और वो अनुभव मुझे आज तक याद हैं …|
आपके लेख में लगे आपके परिवार के फोटो अच्छे लगे पर थोड़े धुंधले हैं, शायद स्केन किये हुए यदि इन्हें HIGH DIP में स्केन करो तो और भी अच्छे दिखेंगे | कुछ फोटो अच्छे हैं शायद कही (अन्य साईट) लिए गए हैं |………
बुरा न माने तो मेरी एक सलाह हैं की छोटी इ, बड़ी ई, छोटा उ और बड़ा ऊ की मात्रा में थोड़ा सा ध्यान दीजिए …मैं समझ सकता हू की यह गूगल सॉफ्टवेयर वजह से हैं फिर भी इन पर ध्यान दिया जा सकता हैं |वैसे तो खुद ही हिंदी की सर्वज्ञाता हैं |
बाकि आज का आप का लेख पढ़कर और भगवान श्री द्वारिकाधीश जी के दर्शन करके में आज का मेरा दिन सफल हुआ |
धन्यवाद…
जय द्वारिकाधीश ……..जय श्री कृष्णा …………………जय द्वारिकाधीश ……..!
रीतेश.गुप्ता
धन्यवाद रितेश जी आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए. आपकी अनमोल सलाह के लिए भी हार्दिक धन्यवाद. और आप कब आ रहे हैं अपनी नई पोस्ट के साथ?
कविता जी …मेरी अगली पोस्ट मनाली के बारे में हैं और वह ५ मई की सुबह प्रकाशित हो जायेगी….
कविता जी, द्वारका का इतने खूबसूरत शब्दों से भ्रमण करवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद। एक फोटो की मैं खासकर से तारीफ़ करना चाहूँगी। जो द्वारका के आगे गोमती के ऊपर नीली नाव है उसे बहुत खूबसूरत तरीके से कैमरे में कैद किया गया है। इस श्रृंखला की सबसे खूबसूरत तस्वीर है यह मेरे हिसाब से।
अगले भाग का इन्तज़ार रहेगा।
vibha ji,
Thank you very much for your continuous encouragement in such beautiful words.
Thanks.
Kavita Ji,
Your love for the Lord shines through in this wonderful post. When you write with love and devotion, it touches the reader’s heart, just as it did mine.
You have given very useful information on stay and sightseeing for fellow travellers. Thanks for sharing.
Jai Dwarkadheesh.
Tarun ji,
Thanks for such motivating words. The post touched your heart means my motto is accomplished.
Thanks.
MANOJ KUMAR SAYS :
4MAY2012
KAVITA JI ,
I AM MAKE A PLAN VISIT FOR SOMNATH & DWARKADHIA AGOUST MONTH .YOUR COMANTS & VIOE MY HALP
THANKS
नमस्कार,कविताजी.
द्वारकाजीका सफर करानेकेलिये धन्यवाद. हमे ऑगस्तमे द्वारका-सोमनाथ जाना है,आपने जो जानकारी दी है वो हमारे बहुत काम आएगी. धन्यवाद.
JAY SHRIKRISHNA JAY MATA DI
AAP SAB KO BAHUT SA DHANYAVAAD AAP SAB APNE JIVAN KAA HISSA PRABHU JI KE SAATH VITAANE AUR SABHI BHATO KE SAATH BAATNE KAA BAHUT SAARA SADHUVAAD.
ISI TARAH AAP SAB HAMESHAA APANI YATRA KAA VIVARAN DETE RAHE AUR BHAKTO KAA MARG DARSHAN KARE
JAY SHRIKRISHNA JAY MATA DI
AAP SAB KO BAHUT SA DHANYAVAAD AAP SAB APNE JIVAN KAA HISSA PRABHU JI KE SAATH VITAANE AUR SABHI BHATO KE SAATH BAATNE KAA BAHUT SAARA SADHUVAAD.
ISI TARAH AAP SAB HAMESHAA APANI YATRA KAA VIVARAN DETE RAHE AUR BHAKTO KAA MARG DARSHAN KARE JO BHI BHAKT CHAHE HAMSE EMAIL SE SAMPARK KARE BAHUT BAHUT SVAAGAT
kavita ji
apaki dvarakadhish ji ki yatra ka varnan padha kar maja aa gaya hamare man me bhi is yatra ka bhav jaga hai dekhate hai kab bhagavaan hamari ichcha puri karate hai
Dear kavita ji
very good explanation about Dwarka .
Regards,
H R Mishra
Hi kavita,
please tell me that if there is some locker/cloak room available in dwarka nare temple
As i am planning to visit but will not stay in night. just need to kept my luggage
Regards
Ankit
Ankit,
Thanks for reading the post and commenting. Yes there is a cloak room just adjacent to the main entrance gate of Shri Dwarkadheesh Temple on the left hand. you’ll be able to find it out easily upon reaching temple.
Thanks.
Hi kavita,
Please also tell what is the frequency of bus from dwarka to somnath..and at what time.
and how much time those bus take to reach somnath.and how to book in advance.
And also want to ask that if i start in early morining in dwarka will i cover all which you had mention before 2 pm.
and how much private taxi cost for covering all this.
Regards
Ankit
Hi Ankit,
Buses from Dwarka to Somnath are not at a very good frequency, probably there are 2 -3 buses which usually takes 6 to 7 hours and charges are approx. Rs. 400.
If you hire a taxi or auto and start at 6 AM, you’ll be easily able to cover Nageshwar Jyotirling, Gopi Talab and Bet Dwarka before 2 PM.
कविता जी नमस्कार,
मैं दिनांक ३० अगस्त २०१४ को अपनी माता जी को सोमनाथ तथा द्वारका दर्शन के लिये लेकर जा रहा हुं मैं कानपुर उत्तर प्रदेश का निवासी हुं तथा मैंने दिनांक ३० अगस्त को लखनऊ से अहमदाबाद की जेटएअरवेज से टिकट बुक करवाई है तथा हमारी वापसी की टिकट भी ०६ सितम्बर की अहमदाबाद से लखनऊ की जेटएअरवेज से ही बुक है कारण मेरी माता जी अधिक ट्रेन से यात्रा नहीं कर सकतीं…..
इसीलिये अहमदाबाद तक का आना जाना हवाई सुबिधा से लेना पड़ा !
रेलवे की टीकट ६० दिन पूर्व ही बुक होती है सो वो अभी बुक करवानी हैं !
दिनांक ३० अगस्त से 05 सितम्बर के मध्य छः दिन में हमें द्वारका और सोमनाथ की यात्रा करनी है जिसके लिये हम रेलवे की 3AC की बुकिग समय पर करवा लेंगे…….
हम आपके अनुभव का लाभ तथा मार्गदर्शन चाहते हैं जिसके अनुसार हम इस यात्रा का लाभ प्राप्त करना चाहते हैं !
आशा है हमें आपके अनुभव तथा मार्गदर्शन का लाभ मिल सकेगा , यदि आप उचित समझें तो हमें अपने मोबाइल नम्बर से भी हमें अवगत कराएं !
आपका शुभाकांक्षी
सुशील अवस्थी
M. No. 9236075255
Kavita ji,
aapaki yatra ka pura vivran to main abhi nahi pad paya par jitana pada usase hi lagata hai ki hame jane ki jarurat nahi, aapne apne yatra vritant ke madhyam se pura dwaraka ghuma diya. AAPNE THAHRANE KE JAGAH KA DETAIL DEKAR APNE anubhav ko un logo ke liye aur bhi upyogi bana diya hai jo ki aapka yatra vrintant padhkar wahan jane ke baare me soch rahe ho. Apne yatara vrintant me thahrane ke sthan ke baare me vistrit vivran awashy bataye.
Dhynvad
Anil
respected kavitaji,
very good comments and knowledge full details given by you
thanks
with regards
Hi Kavita……………
Amazing post. Enjoyed thoroughly Once again visiting Dwarka……………..
Feeling to go there again and again…………………..and catch this all moments again……………….All pics are good.
Dhynvad Vinod Tripathi
hai kavita ji aapne jo jankari di wo me liye bahut hi achhi lagi kiyo ki mujhe bhi prabhu ne bulaya hai es jankari se mujhe bahut sahayta milegi ghoomne me dwarka ji , somnath ji
jis hotal ka jikra kiya hai usme khana jaroor khauga.
i am from dwarka a am shoot video for you so plis call plise 7878080861