मैनगà¥à¤°à¥‹à¤µ जंगलों के बीच से इस डेलà¥à¤Ÿà¤¾à¤ˆ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° से गà¥à¤œà¤°à¤¨à¤¾ मेरे लिठकोई पहला अनà¥à¤à¤µ नहीं था। इससे पहले मैं अंडमान के बाराटाà¤à¤— की यातà¥à¤°à¤¾ में इन जंगलों को करीब से देख चà¥à¤•ा था। उस यातà¥à¤°à¤¾ और इस सफ़र में फरà¥à¤• सिरà¥à¤« इतना था कि वहाठहम विशाल बंगाल की खाड़ी में à¤à¤• बेहद पतली मोटर चालित नाव पर सवारी कर रहे थे जिस पर ली गई à¤à¤• अंगड़ाई ही नाव को डगमगाने के लिठपरà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ थी और यहाठउससे कहीं छोटी जलराशि के मधà¥à¤¯ हम ठाठसे अपनी मोटरबोट में चहलकदमी कर सकते थे। à¤à¤• बात और थी कि इन जंगलों में मैनगà¥à¤°à¥‹à¤µà¥‹à¤‚ के सिवा किस किस की à¤à¤²à¤• और देखने को मिलेगी इसका अंदाजा यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥ करने के वक़à¥à¤¤ तो नहीं था।
करीब सवा चार बजे हमारी लकड़ी की मोटरबोट अपने गनà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ डाà¤à¤—माल (Dangmal) की ओर चल पड़ी थी। सूरज अà¤à¥€ à¤à¥€ मदà¥à¤§à¤® नहीं पड़ा था पर अकà¥à¤Ÿà¥‚बर के महिने में उसकी तपिश इतनी à¤à¥€ नहीं थी कि हमें उस नौका की छत पर जाने से रोक सके। कà¥à¤› ही दूर बढ़ने के बाद हमें तट के किनारे छोटे छोटे गाà¤à¤µ दिखने शà¥à¤°à¥ हà¥à¤à¥¤ अगल बगल दिखते इन छोटे मोटे गाà¤à¤µà¥‹à¤‚ में असीम शांति छाई थी। पानी में हिलोले लेती नौका के आलावा जलराशि में à¤à¥€ कोई हलचल नहीं थी।
पर जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गठधीरे धीरे गाà¤à¤µà¥‹à¤‚ की à¤à¤²à¤• मिलनी बंद हो गई और रह गठसिरà¥à¤« जंगल..
अंडमान में जब हैवलॉक के डॉलà¥à¤«à¤¿à¤¨ रिसारà¥à¤Ÿ में रहने का अवसर मिला था तो वहीं पहली बार पेड़ों को उरà¥à¤§à¥à¤µà¤¾à¤•ार यानि सीधी ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ में बढ़ते ना देखकर समानांतर बढ़ते देखा था। कà¥à¤› ही देर में वही नज़ारा à¤à¤¿à¤¤à¤°à¤•निका में à¤à¥€ देखने को मिल गया। अंतर बस इतना था कि ये पेड़ अंडमान की अपेकà¥à¤·à¤¾ अधिक घने थे। नदी की बहती धारा पर वृकà¥à¤· की ये à¤à¥à¤•ती शाखाà¤à¤ उसके सौंदरà¥à¤¯ से इस कदर मंतà¥à¤°à¤®à¥à¤—à¥à¤§ लग रहीं थीं मानो कह रही हों..छू लेने दे नाज़à¥à¤• होठों को कà¥à¤› और नहीं हैं जाम हैं ये…
पेड़ की हर ऊà¤à¤šà¥€ शाख पर पकà¥à¤·à¥€ यूठबैठे थे मानों बाहरी आंगà¥à¤¤à¤•ों से जंगलवासियों को सचेत कर रहे हों। जंगलों के बीच à¤à¤¸à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ करने में आपके पास अगर अचà¥à¤›à¥€ जूम लेंस का कैमरा और उससे बेहतर SLR ना हो तो पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पहचानने और कैमरे में क़ैद करना मà¥à¤¶à¥à¤•िल होता है कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि पास जाते वक़à¥à¤¤ हलका सा खटका हà¥à¤† तो चिड़िया फà¥à¤°à¥à¤°à¥¤
कà¥à¤¯à¤¾ इस चितà¥à¤° को देख कर à¤à¤¾à¤°à¤¤ का आरà¥à¤¥à¤¿à¤• सामाजिक परिदृशà¥à¤¯ नहीं कौंध जाता यानि ऊपर ऊपर हरियाली और पर पेड़ के इस ऊपरी हिसà¥à¤¸à¥‡ को अपने हृदय से सींचती उसके नीचे की शाखाà¤à¤ सूखी।

तब तो पंकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को यही संदेश देना होगा 'चल उड़ जा पंकà¥à¤·à¥€ कि अब तो देश हà¥à¤† बेगाना...'
पाà¤à¤š बजने को थे पर हमें à¤à¤¿à¤¤à¤°à¤•निका के नमकीन पानी में रहने वाले मगरमचà¥à¤›à¥‹à¤‚ (Salt Water Crocodiles) के दरà¥à¤¶à¤¨ नहीं हà¥à¤ थे। यहाठके वन विà¤à¤¾à¤— के अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ के हिसाब से à¤à¤¿à¤¤à¤°à¤•निका में करीब 1500 मगरमचà¥à¤› निवास करते हैं और उनमें से कà¥à¤› की लंबाई 20 फà¥à¤Ÿ तक होती है यानि विशà¥à¤µ के सबसे लंबे मगरमचà¥à¤›à¥‹à¤‚ का दरà¥à¤¶à¤¨ करना हो तो आप à¤à¤¿à¤¤à¤°à¤•निका के चकà¥à¤•र लगा सकते हैं। हमारी आà¤à¤–े पानी में इधर उधर à¤à¤Ÿà¤• ही रही थीं कि दूर पानी की ऊपरी सतह आà¤à¤–े बाहर निकाले à¤à¤• छोटा सा घड़ियाल दिखाई पड़ा। उसके कà¥à¤› देर बाद तो दूर से ही ये मगरमचà¥à¤› महाशय कà¥à¤°à¥€à¤• की दलदली à¤à¥‚मि पर आराम करते दिखे।
फिर दिखी à¤à¤¾à¤—ते कूदते हिरणों की टोली। हिरणों की मनोà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को समà¤à¤¨à¤¾ टेढ़ी खीर है। पहले तो अपनी अपनी à¤à¥‹à¤²à¥€ à¤à¤¾à¤²à¥€ आà¤à¤–ों से आपको à¤à¤• टक ताकेंगे। इस मनोहारी छवियों को क़ैद करने के लिठजैसे ही आपके हाथ हरक़त में आठनहीं कि अचानक à¤à¤¸à¥€ कà¥à¤²à¤¾à¤‚चे à¤à¤°à¥‡à¤‚गे जैसे कि उस निरà¥à¤œà¤¨ इलाके में हमसे बड़ा उनका दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨ कोई और है ही नहीं..
डाà¤à¤—माल पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के पहले ही हमें देखनी थी à¤à¤¿à¤¤à¤°à¤•निका के बीच बसी पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¥¤ क़ायदे से हमें यहाठचार बजे तक पहà¥à¤à¤š जाना था। पर केनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤ªà¤¾à¤¡à¤¼à¤¾ से देर से सफ़र शà¥à¤°à¥ करने की वज़ह से हम यहाठपहà¥à¤à¤šà¥‡ सवा पाà¤à¤š पर। à¤à¤¿à¤¤à¤°à¤•निका की पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को यहाठबागा गाहन (Baga Gahan) या हेरोनरी(Heronry) कहा जाता है।
यहाठपाठजाने वाले पकà¥à¤·à¥€ मूलतः बगà¥à¤²à¤¾ पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ के हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ Asian Open Bill Stork के नाम से à¤à¥€ जाना जा सकता है।। जून से नवंबर के बीच विशà¥à¤µ की गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ बगà¥à¤²à¤¾ पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के पकà¥à¤·à¥€ 50000 तक की तादाद में यहाठआकर घोसला बनाते हैं और नवंबर दिसंबर तक अपने छोटे छोटे बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ जिनकी तादाद à¤à¥€ लगà¤à¤— 35000 होती है लेकर उड़ चलते हैं। हमारी नौका जब सवा पाà¤à¤š बजे पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के इस मोहलà¥à¤²à¥‡ पर रà¥à¤•ी तो पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का करà¥à¤£à¤à¥‡à¤¦à¥€ कलरव दूर से ही सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ दे रहा था।
अà¤à¤§à¥‡à¤°à¤¾ तेजी से फैल रहा था इसलिठनौका से उतरकर जंगल की पगडंडियों पर हम तेज़ कदमों से लगà¤à¤— à¤à¤¾à¤—ते हà¥à¤ वाच टॉवर की ओर बढ़ गà¤à¥¤ जंगल के बीचो बीच बने इस वॉच टॉवर की ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ 25-30 मीटर तक की जरूर रही होगी कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि ऊपर पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ हम सब का दम निकल चà¥à¤•ा था। पर वॉच टावर के ऊपर चढ़कर जैसे ही मैंने चारों ओर नज़रें घà¥à¤®à¤¾à¤ˆ मैं à¤à¤•दम से अचंà¤à¤¿à¤¤ रह गया।
दूर दूर तक उà¤à¤šà¥‡ पेड़ों का घना जाल सा था। और उन पेड़ों के ऊपर थे हजारों हजार की संखà¥à¤¯à¤¾ में बगà¥à¤²à¥‡ सरीखे काले सफेद रंग के पकà¥à¤·à¥€à¥¤ जिंदगी में पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के इतने बड़े कà¥à¤¨à¤¬à¥‡ को à¤à¤• साथ देखना मेरे लिठअविसà¥à¤®à¤°à¤£à¥€à¤¯ अनà¥à¤à¤µ था। ढलती रौशनी में इस दृशà¥à¤¯ को सही तरीके से क़ैद करने के लिठबढ़िया जूम वाले क़ैमरे की जरूरत थी जो हमारे पास नहीं था। फिर à¤à¥€ कई तसवीरें ली गई और उनमें से à¤à¤• ये रही…
वन विà¤à¤¾à¤— के करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का कहना था कि साल में जंगल के जिस इलाके में ये बगà¥à¤²à¥‡ हजारों की संखà¥à¤¯à¤¾ में अपना आसन जमाते हैं उस साल इनके मल अवशेषों से उतने जंगल सूख जाते हैं और ये कà¥à¤°à¤®à¤¬à¤¦à¥à¤§ पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ चलती रहती है।
साà¤à¤ ढल रही थी सो हमें ना चाहते हà¥à¤ à¤à¥€ बाघा गाहन से विदा लेनी पड़ी। आधे घंटे बाद शाम छः बजे हम डाà¤à¤—माल के वन विà¤à¤¾à¤— के गेसà¥à¤Ÿ हाउस में पहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤ आगे कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤† ये जानने के लिठइंतज़ार कीजिठइस शà¥à¤°à¥ƒà¤‚खला की अगली पोसà¥à¤Ÿ का ।











Very good. Mera jana nahi hua kabhi wahan. Bhitarkanika ka naam bahut suna hai, jaaunga kisi din.
भुवनेश्वर पुरी के साथ हाथ में एक दो दिन और हों तो इसे आप देख सकते हैं। शहरों की भीड़ भाड़ से दूर बिल्कुल एकांत वाली जगह है।
बहुत अच्छा लेख मनीश जी ……
आपने भितरकनिका के बारे में और वहाँ के नज़ारे , नदिया, पक्षियों व जंगलो के बारे में बहुत ही अच्छी जानकारी दी हैं, जिसे पढ़कर कर मन को एक शांति की अनुभूति प्रदान हुई | आपके खिचे गए चित्र तो हमें भाई कमाल के लगे | इस तरह की यात्रा करना और जंगली परिवेश की फोटो का अपना ही अलग रोमांच हैं |
मनीश जी आपका बहुत धन्यवाद भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान से परिचय कराने के लिए |
अगले लेख की प्रतीक्षा में !
रीतेश गुप्ता , आगरा |
शुक्रिया रीतेश लेख को पसंद करने के लिए ! हमने एक गलती ये कर दी कि पक्षियों के मोहल्ले में थोड़ी देर से पहुँचे वर्ना कुछ और अच्छे चित्र आपके सामने प्रस्तुत कर पाता।
मनीष् जी , फोटोज बहुत शानदार हैं वाकई में अगर बढिया वाला कैमरा होता तो पक्षियो के बहुत बडे कुनबे का एक शानदार फोटो आता जैसे उडते हुए पक्षियो की एक कतार का आया है । खैर आपक फोटो और उस पर रोमांटिक शब्दो के साथ प्यार भरे गाने मजा आ गया सर
बिल्कुल आपने दिल की बात कह दी मनु। उस वक़्त रौशनी कम हो चली थी जिसकी वज़ह से हमारे तमाम कैमरे स्पष्ट चित्र लेने में बेअसर हो गए।
Dear Manish,
Excellent as always. The picture from watch tower is amazing. The analogy about the trees and our country’s condition is perfect.
Thx Tarun for your words of appreciation !
Manish ji, thanks for bringing us to Bhitarkanika. Pics of beautiful bill storks, tired croco.. It is strange how the excreata of storks destroy the jungle.
Thanks once again.
Yeah Tridevthe excreata thing….it was quite surprising to us also but that’s what forest officials have to say. Apart from croco. we also saw some Ghariyals with only small portion of their head and eyes popping out of the water.
A beautiful and evocative blog, Manishji; its probably the first blog devoted entirely to eco-tourism. Were you travelling along the coast by boat?
Loved the pics of the mangroves and birds. Especially liked the one of the massive magarmachh mahashay. Didn’t you get to see the famous Olive Ridley turtles there? I wish you had given details about facilities for tourists like accommodation, travel and food.
आगे क्या हुआ जानने के लिए बेसब्री से इंतज़ार कर रहा हूँ, देर मत कीजियेगा
जी हाँ हम लोग वन विभाग की मोटरबोट पर थे। समुद्र में मिलने वाली इन नदियों के पाट ज्यादा चौड़े नहीं है। भुवनेश्वर से यहाँ कैसे पहुँचे इसका विवरण पिछली पोस्ट में था। आपने रहने खाने पीने से संबंधित जिस जानकारी का जिक्र किया है वो आपको आगे की पोस्टस में मिलेगी। ये भी कि हमने कछुए देखे या नहीं ! शु्क्रिया चित्रों को पसंद करने का।
Bahut Badhiya .. Machuaoro ke gaon wali photo bahut sahi hai .. Insan ki Jarurate use kahan kahan phuncha deti hain ….
सही कहा आपने बाहरी संसार से दूर इन मछुआरों के लिए तो उनका जीवन इन्हीं नदियों पर निर्भर है।
What a lyrical account of Bhitrakanika!
And how truthful are the words that describe economic disparity.
Whenever your post gets published, I usually go to you blog to read further account. This time though I went through your Sangeetmala series but could not listen to the Wadali bro,s rendering of those soul stirring lyrics because of time limitation. Will have to go again sometime. And yes, you are as deft with selection of music as with your words.
जयश्री… सच मुझे जानकर बेहद खुशी हुई कि आपको एक शाम मेरे नाम पर प्रस्तुत मेरी सालाना वार्षिक संगीतमाला अच्छी लगी। संगीत से मेरा लगाव घुमक्कड़ी से भी पुराना है और चाहते ना चाहते मेरे यात्रा लेखों में भी इनका समावेश हो जाता है।
शुक्रिया इस लेख को पसंद करने के लिए।
वाकई में एक रोमानी लेख | पक्षिओं की फोटो अच्छी बन आयी है | जैसा की DL ने कहा, की टूर करने के जानकारी (contact numbers, timings of tour, charges etc) देने से बाकी घुमक्कड़ो को आसानी रहेगी |
शु्क्रिया नंदन ! यहाँ जाने की जानकारी और हिदायतों वाला हिस्सा श्रृंखला के ठीक अंत में आएगा।
मनीष जी, जैसा की मैं पहले भी बोल चुकी हूँ आपकी पोस्ट्ज़ एक कविता की तरह प्रतीत होती हैं। एक उम्दा लेखक हैं आप।
और फोटोज़ पर आपके कैप्शन्ज़ बहुत ही मजेदार होते हैं। कहानी के अन्दर एक अलग ही कहानी बयान करते हैं।
मैनग्रोव के सूखे तने तथा हरे भरे पत्तों को कितनी खूबसूरती से आपने भारतीय समाज से जोड दिया। आँखे खुली कि खुली ही रह गयीं। अगले भाग का इन्तज़ार रहेगा।
हौसलाफजाही के लिए शुक्रिया विभा!प्रकृति के विविध रूप ही मन में ऐसे भाव गढ़ने में सहायक होते हैं।
Manish ,
Short description of this post is ” bahut majaa aa gaya”.
Bahut hi sunder post hai . best part are pictures . each one is exceptinal . crocodile , birds, mangroves etc.
waiting for next one…………..
Thx Vishal for liking the pics though personally I felt that some of the pictures could have been even better.
Very nice Manish. This is a lesser known place but what a gem it is. So many birds in one view is just breathtaking.
Exactly Roopesh , I think that view of bird’s colony was my best moment at Bhitarkanika.
मनीष जी,
हमेशा की तरह एक उत्कृष्ट लेख, सुन्दर चित्रों के साथ. इस बार तो मुझे आपके फोटोस के केप्शन भी बहुत पसंद आये, बिलकुल किसी सुन्दर कविता की तरह. पक्षियों की पंक्ति का चित्र बड़ा लुभावना लगा.
धन्यवाद.