घà¥à¤®à¥à¤®à¤•ड़ी अपने आप में à¤à¤• नशा है, और ये नहीं कि घà¥à¤®à¥à¤®à¤•ड़ी सिरà¥à¤« मन को खà¥à¤¶ करती है या समय काटती है। घà¥à¤®à¥à¤®à¤•ड़ी का असली मज़ा आता है, बहà¥à¤¤ समय के बाद जब घà¥à¤®à¥à¤®à¤•ड़ी की यादें मन को गà¥à¤¦à¤¾à¤—à¥à¤¦à¤¾à¤¤à¥€ हैं, हमें याद दिलाती हैं कि हमने कà¥à¤¯à¤¾ सीखा, कà¥à¤¯à¤¾ नया जाना। और घà¥à¤®à¥à¤®à¤•ड़ी की कà¥à¤› यादें तो सदा के लिये हृदय में अपना घर बना लेती हैं।यूं तो हम सब बड़े हो चà¥à¤•े हैं…. कमà¥à¤ªà¤¯à¥‚टर का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करते हैं… पर घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी हमें फिर से बचà¥à¤šà¤¾ बना डालती है… à¤à¤¸à¤¾ बचà¥à¤šà¤¾ जो नये-2 गिज़मो इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करता है…  कमà¥à¤ªà¤¯à¥‚टर चलाता है… पर आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ से देख रहा है… इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को… इसकी खूबसूरती को… इसके बनाने वाले को… और मानव की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾à¤“ं को जो सदा पà¥à¤°à¤•ृति को जीतने की कोशिश में लगा रहता है ।
बड़े खराब मूढ़ में ये यादें अचानक à¤à¤• सà¥à¤®à¤¿à¤¤ हासà¥à¤¯ ले आती हैं, या à¤à¤• अचà¥à¤›à¥‡ à¤à¤²à¥‡ मूढ़ को बिगाड़ à¤à¥€ डालती हैं… और कà¤à¥€ à¤à¤• छोटी सी घटना पूरे जीवन को बदल देती है ।  जो à¤à¥€ हो, हम अपनी अचà¥à¤›à¥€ या बà¥à¤°à¥€ यादें सदा à¤à¤• अमूलà¥à¤¯ खज़ाने की तरह सहेज कर रखते हैं।
आज मैने à¤à¥€ अपना खजाना खोला तो रंग-बिरंगे इंदà¥à¤°-धनà¥à¤· की तरह वो मेरे आज पर छा गयीं…. सोचा उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कलमबदà¥à¤§ करà¥à¤‚ और अपनों के साथ बांटू ।  पेश हैं à¤à¤¸à¥€ ही कà¥à¤› इंदà¥à¤°-धनà¥à¤·à¥€ यादें ।
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पहले बात मेरी सब से पहली घà¥à¤®à¥à¤®à¤•ड़ी की । बात बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ है 1977 की। हम कà¤à¥€ दिलà¥à¤²à¥€ से बाहर नहीं गये थे ना कà¤à¥€ टà¥à¤°à¥‡à¤¨ में बैठे थे । पिताजी को अचानक कà¥à¤› रà¥à¤•े हà¥à¤ दफà¥à¤¤à¤° के पैसे मिले ओर उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® बनाया हमें पहली बार घà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥‡ का. पहले पंहà¥à¤šà¥‡ वैषà¥à¤£à¥‹ देवी.
Way to Vaishno Devi
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सराय वाली को 10 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ अगà¥à¤°à¤¿à¤® दिये और जब दरà¥à¤¶à¤¨ कर के वापिस आये व रात सराय में रà¥à¤• कर अगले दिन चलने लगे व सराय वाली का हिसाब किया । पिताजी नें 10 रॠअडवांस काट कर बाकी पैसे दिये तो उसने अडवांस की बात से साफ इंकार कर दिया ।  उसने अपना डिबà¥à¤¬à¤¾ दिखा कर कहा, देख लो इसमें कोइ 10 का नोट नहीं। काफी देर बहस के बाद à¤à¥€ वो नहीं मानी व जोर से बोली – तà¥à¤® लोग माता पर आ कर à¤à¥€ बेईमानी करते हो ।  मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ आया मैने पिताजी को बोला – आप इसे 10 रà¥. दे दो और कसम खाओ कि à¤à¤¸à¥€Â वैषà¥à¤£à¥‹ देवी पर कà¤à¥€ नहीं आओगे जहां बेइमान रहते हैं और यातà¥à¤°à¤¿à¤“ं को धोखा देते हैं । खैर हमने उसे 10 रà¥. और दिये और बड़े दà¥à¤–ी मन से जाकर बस में बैठगये। 10 रà¥. हमारे लिये तब काफी थे, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि आगे à¤à¥€ लमà¥à¤¬à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ करनी थी व मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤– ये था कि इतने लोगों के सामने हम बेईमान कहलाये गये.  बस 1 घंटे बाद चलनी थी । कà¥à¤› देर बाद देखा, सराय वाली अपने बेटे के साथ आ रही थी, व बस में किसी को ढूंढ रही थी । मैने पिताजी को बोला – लो आ गयी फिर और अब कहेगी आप पैसे दिये बिना à¤à¤¾à¤— रहे थे ।
खैर वो हमारी बस में चढ़ी और सीधी पिताजी के पास आकर हाथ जोड़कर बोली – à¤à¤¾à¤ˆà¤œà¥€ मà¥à¤à¥‡ माफ कर दो.. अà¤à¥€ मेरे बेटे ने बताया कि आपने अडवांस दिया था जो मैने उसे कà¥à¤› खरीदने के लिये दे दिया और मेरे दिमाग से निकल गया ।  पिताजी ने चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª पैसे लिये और कहा – कोई बात नही गलती हो जाती है । जाते -2 उसने à¤à¤• 5 का नोट निकाला और मà¥à¤à¥‡ दे कर बोली – बेटा मेरी गलती के लिये माता को गाली मत देना… उसी ने मà¥à¤à¥‡ सच दिखाया और मैने अपनी गलती ठीक कर ली…ये लो ये पैसे  तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मौसी की तरफ से समठकर रख लो… इस से पहले कि मैं 5 रà¥. उसे वापिस करता वो बस से उतर कर चली गयी.. और हम जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾ जी की तरफ ।
अब इसे, वैषà¥à¤£à¥‹ देवी का चमतà¥à¤•ार कहें या उस बà¥à¤¢à¤¼à¤¿à¤¯à¤¾ की ईमानदारी या अपनी अचà¥à¤›à¥€ किसà¥à¤®à¤¤ ?? अब हम वैषà¥à¤£à¥‹ देवी जाते हैं हज़ारों रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ खरà¥à¤š करते हैं… पर वो 5 का नोट याद आता है तो दिल à¤à¤° आता है ।
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1983 में… मै, लकà¥à¤·à¤®à¤£, विनोद डलहोज़ी, धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ घूम कर जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾ जी पंहà¥à¤šà¥‡ । सफर में थके थे … तब जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾ जी में केवल कà¥à¤ ियाला धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ ही होती थी ठहरने के लिये, कोई होटल वगैरह नहीं थे.. था à¤à¥€ à¤à¤• पर वो हमारी पंहà¥à¤š के बाहर । सामान धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ में रखा  और चल दिये दरà¥à¤¶à¤¨ करने.  जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾ जी मंदिर के बाहर सीधे हाथ पर à¤à¤• गà¥à¤¸à¤²à¤–ाना था, सोचा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कर के चलें । अंदर गये तो देखा इतनी गंदगी, चारों ओर कीचड़, फटे कपड़े, दातà¥à¤¨ वगैरह बिखरे पड़े थे। सोच रहे थे कि नहायें या नही… à¤à¤• परिवार और आया और वो à¤à¥€ गंदगी देख कर रà¥à¤• गये । बस जी… à¤à¤¾à¤·à¤£ शà¥à¤°à¥ हो गये । देखो हमारे मंदिरों में कितनी गंदगी होती है…गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ देखो कितने चम चम करते हैं… दà¥à¤¸à¤°à¥‡ सजà¥à¤œà¤¨ बोले – अरे इतना दान देते हैं हम लोग.. पंडित सब खा जाते है, कोई सफाई à¤à¥€ नहीं करता ।
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विनोद ने सलाह दी – मà¥à¤–à¥à¤¯ पंडित के पास चलते हैं, और उसे कहते हैं सफाई कराने को.. और 2 लोग चल दिये पंडित के पास… à¤à¤¾à¤·à¤£Â बरकरार चल रहे थे । कà¥à¤› देर बाद आ कर बोले. .ठीक कर दिया जी ..अà¤à¥€ à¤à¥‡à¤œà¥‡à¤‚गे सफाई वाला । खैर कोई नहीं आया…
लकà¥à¤·à¤®à¤£ जो हम सबसे अमीर घर से था व कà¤à¥€ घर में काम नही करता था बोला – मेरे पास रासà¥à¤¤à¤¾ है, सफाई करने का…  सबने पूछा कà¥à¤¯à¤¾ ??? वो à¤à¤• कोठरी-नà¥à¤®à¤¾ कमरे में गया, वहां से à¤à¤• à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¥‚ व बालà¥à¤Ÿà¥€ लेकर आया और बोला चलो मैं à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¥‚ लगाता हूं तà¥à¤® लोग पानी डालो… हम तीनों लग गये, हमें देख 1-2 लोग और à¤à¥€ आ गये और आनन फानन में गà¥à¤¸à¤²à¤–ाना चमकने लगा ।
उस दिन लकà¥à¤·à¤®à¤£ ने मà¥à¤à¥‡ à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़ा पाठपढ़ाया…. फालतू बातें कर के दूसरों को कोसने की जगह सà¥à¤µà¤‚य आगे बढ़ो और कर दो जो दूसरे नही कर पाये ।।  धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥ लकà¥à¤·à¤®à¤£ !!!!!
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1981 – किसी दूर के रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤° की मौत पर पिताजी ने हà¥à¤•à¥à¤® दिया कि मैं जाऊ । बस अडà¥à¤¡à¥‡ पंहà¥à¤šà¤¨à¥‡ से पहले लकà¥à¤·à¤®à¤£ की दà¥à¤•ान पर गया और उसे बताया, कि मैं चंडीगढ़ जा रहा हूं । à¤à¤¾à¤ˆ à¤à¥€ पैदाईशी घà¥à¤®à¥à¤®à¤•ड़ बोला यार तू अकेला बोर हो जायेगा चल मैं à¤à¥€ चलता हूं  । दोनों ने बस पकड़ी और पंहà¥à¤š गये चंडीगढ़ । अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ दिलà¥à¤²à¥€ की बस पकड़ने गये तो सामने शिमले की बस खड़ी थी । लकà¥à¤·à¤®à¤£ बोला चल यार शिमले चलते हैं और हम शिमला पंहà¥à¤š गये… उतरते ही सामने नारकंडा की बस खड़ी थी, लकà¥à¤·à¤®à¤£ ने पूछा यार हमने नारकंडा नहीं देखा… और लो हम शाम तक नारकंडा में थे. तब नारकंडा में केवल 1 हिमाचल टूरिसà¥à¤® वालों का टूटा-फूटा रेसà¥à¤Ÿ हाउस था, और कोई होटल नही । हम थोड़ा उपर चढ़ॠकर उस रेसà¥à¤Ÿ हाउस में पहà¥à¤‚चे और वहां मौजूद थकेले  चौकीदार/मैनेजर/रसोइये से कमरे के बारे में पूछा.  उन दिनों कोइ विरला ही नारकंडा में रहने आता था. कमरे सब खाली पड़े थे…. किराया था 40 रà¥. à¤à¤• रात के ।
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हम कोई यहां की योजना बना कर तो आये नहीं थे अत: पैसे à¤à¥€ कम थे हमारे पास.  लकà¥à¤·à¤®à¤£ ने उसे कहा à¤à¤‡à¤¯à¤¾ हमने सिरà¥à¤« रात को सोना है, कैसा à¤à¥€ हो पर कोई ससà¥à¤¤à¤¾ कमरा बताओ। चौकीदार ने कहा – कमरा तो है.. बहà¥à¤¤ छोटा है फिर न कहना.. किराया 10 रà¥. व रसीद à¤à¥€ नहीं मिलेगी. हमारी à¤à¤Ÿ हां थी.
घूम फिर कर रात सोने आये. कमरा बहà¥à¤¤ छोटा था… पर 10 रॠमें कà¥à¤¯à¤¾ बà¥à¤°à¤¾ था, दोनो टेढ़े-मेढ़े हो कर सो गये… थोड़ी देर में मà¥à¤à¥‡ गरदन में कà¥à¤› चà¥à¤à¤¨à¥‡ लगा… जब असह हो गया तो लकà¥à¤·à¤®à¤£ को बताया.. हम दोनो उठे और गदà¥à¤¦à¤¾ उठा कर देखा तो नीचे पाईप काटा हà¥à¤† लगा था… अचानक कà¥à¤‚डली-जागरण हो गया.. पता चला कि ये वासà¥à¤¤à¤µ में à¤à¤• बाथ-रà¥à¤® था जो शायद अब काम में नहीं लाया जाता.. कमोड का पाईप ही मेरी गरदन में चà¥à¤ रहा था… खैर सिर दूसरी तरफ किया वहां à¤à¥€ कà¥à¤› पाइप जैसा चà¥à¤à¤¨à¥‡ लगा परनà¥à¤¤à¥  कà¥à¤› देर बाद नींद आ ही गयी.
सà¥à¤¬à¤¹ थकेले चौकीदार को शिकायत की – à¤à¤ˆà¤¯à¤¾ बाथ-रूम में सà¥à¤²à¤¾ दिया, रात à¤à¤° करवटें बदलते रहे. चौकीदार महाराज à¤à¥Œà¤‚के – 10 रॠमें कà¥à¤¯à¤¾ ताजमहल में सोना था ??
दिलà¥à¤²à¥€ पंहचे… विनोद के घर गये और अपनी यातà¥à¤°à¤¾ की बढ़ा चढ़ा कर बातें सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ ताकि उसे जला सकें… पेश है हमारी बातचीत का à¤à¤• अंश
विनोद – अचà¥à¤›à¤¾ तो तà¥à¤® नारकंडा तक पंहà¥à¤š गये ?? कैसा है
लकà¥à¤·à¤®à¤£ – बहà¥à¤¤ खूबसूरत .
विनोद – ठहरे कहां थे
मैं – अरे हिमाचल टूरिसà¥à¤® के होटल में..
विनोद – पर वो तो मंहगा होगा
लकà¥à¤·à¤®à¤£ – हां 40 रॠका कमरा था.. पर हमने चौकीदार को पटा लिया और 10 रॠमें ठहरे थे
विनोद – 10 रॠ????
लकà¥à¤·à¤®à¤£ – हां 10 रॅ कà¥à¤¯à¤¾ समà¤à¤¤à¤¾ है हमें
विनोद – à¤à¤ˆà¤¯à¤¾ 10 रॠमें तो कोई बाथरूम ही देगा सोने को.. कमरा नहीं.
हम दोनो को जैसे सांप सूंघ गया और मेरा हाथ बरबस ही अपनी गरदन सहलाने लगा
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः
ये बात 2003 की है जब मैं सà¥à¤•ाटलैंड से वापिस आया था । मैने वहां 2 छोटे टैनà¥à¤Ÿ खरीदे थे घà¥à¤®à¥à¤®à¤•ड़ी के लिये ।
पà¥à¤°à¤¦à¥€à¤ª व विजय को कहा चलो टैनà¥à¤Ÿ टैसà¥à¤Ÿ कर के आते हैं…. आनन-फानन में पà¥à¤°à¤¦à¥€à¤ª की  गाड़ी से पहà¥à¤‚च गये देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— ।  गंगा में नहाये व कà¥à¤› घूमना किया तथा वापिस रिषीकेश की तरफ चले। रासà¥à¤¤à¥‡ मे à¤à¤• छोटी सी नदी मिली जो नीचे जाकर गंगा में  मिल रही थी । नदी के पà¥à¤² के पास नीचे जाने का रासà¥à¤¤à¤¾ नजर आया बस हमने गाड़ी नीचे उतार दी… वहां टà¥à¤°à¤• आने से पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ में रासà¥à¤¤à¤¾ सा बना था । काफी मेहनत से धीरे-2 चलते हà¥à¤ आखिर बिलà¥à¤•à¥à¤² गंगा के किनारे पंहà¥à¤š गये। रेतीले बीच पर गाड़ी खड़ी की और जà¥à¤Ÿ गये टैंट फिट करने…चूंकि पहली बार टैट लगा रहे थे, काफी मà¥à¤¶à¥à¤•िल आई और  अंतत 2 घंटे के बाद हमारा टैंट खड़ा हो गया.
कार की बैटरी से तारें निकाली और 2 छोटे बलà¥à¤¬, à¤à¤• टैंट के बाहर व à¤à¤• अंदर चमकने लगे। गाड़ी का सà¥à¤Ÿà¤¿à¤°à¤¿à¤¯à¥‹ पूरी आवाजं में चलाया और रफी तथा किशोर के गानों की आवाज़ सूनी घाटी में गूंजने लगी । कà¥à¤› मीटर की दूरी पर गंगा कल-कल कर बह रही थी…फिर काफी देर संगीत के मधà¥à¤¯ गंगा में नहाते रहे ।
अंधेरा होने पर बाहर आये और अपने टैंट के बाहर बैठकर गपà¥à¤ªà¥‡à¤‚ मारने लगे ।  रात के 10 बज गये तो सोचा कà¥à¤› खाया जाये । दूर उपर सड़ंक पर à¤à¤• ढाबे की रोशनी जल रही थी….टारà¥à¤š उठाई और चढ़ गये सीधे ढाबे पर.
गरम गरम खाना खाया, और वापिस जाने की तैयारी करने लगे। ढाबे के मालिक का हिसाब किया तो बोला – अà¤à¥€ तो यहां से कोई गाड़ी नहीं मिलेगी, आप रात कहां रहेंगे ?  यहां तो कोई होटल à¤à¥€ नही ।
हम उसे बाहर लेकर आये और अपने टैट की मदà¥à¤§à¤® रौशनी की और इशारा करके कहा – वो दूर गंगा के किनारे रौशनी देख रहे हो, वहां हमने टैंट लगाया है, रात वहीं सोयेंगे…और गरà¥à¤µ से उसकी ओर देखा.

वो दूर टैंट दिख रहा है ? वहीं रहेंगे रात
पहाड़ी बोला – कà¥à¤¯à¤¾ गजब कर रहे हो बाऊजी, वहां तो रात को शेर तथा  अनà¥à¤¯ जंगली जानवर पानी पीने आते हैं
हमारी सिटà¥à¤Ÿà¥€-पिटà¥à¤Ÿà¥€ गà¥à¤®… अब नीचे जाने की हिमà¥à¤®à¤¤ नही हो रही थी…खैर राम राम करते नीचे पंहà¥à¤šà¥‡à¥¤ मैने बोला घबराने की बात नहीं, रौशनी देख कर शेर यहां नही आयेगा.  पर विजय रहने को तैयार नही हà¥à¤†, बोला वो ढाबे वाले के साथ सो जायेगा.  पà¥à¤°à¤¦à¥€à¤ª ने à¤à¥€ कहा कि अगर रात को बतà¥à¤¤à¥€ जलाते रहने से बैटरी बैठगयी तो सà¥à¤¬à¤¹ गाड़ी चालू नहीं होगी…. उनका बातें सà¥à¤¨ कर मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ डर लगने लगा और हमने 2 घंटे की मेहनत से लगाये टैट को 5 मिनट में खोला और वहां से à¤à¤¾à¤— लिये।  आधी रात का समय, कोई गाड़ी नही… कोई रौशनी नहीं..
रात 12 बजे रिषिकेश पंहà¥à¤šà¥‡.. सब होटल बंद पड़े थे… बड़ी कोशिश के बाद 1 बजे के आसपास à¤à¤• घटिया से होटल में कमरा मिला और अपन लोग, केंचà¥à¤²à¥€ मार कर दहाड़ -2 कर सो गये
उसके बाद दसियों बार वहां से निकले और जब à¤à¥€ उस जगह से निकलते है, हंसी  निकल जाती है
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ये बात गंगोतà¥à¤°à¥€ की है, हम लोग मंदिर के पीछे से गंगा के किनारे किनारे जंगल की तरफ घूमने गये. जगह बड़ी रमणीक थी । कà¥à¤› दूरी से 2 विदेशी आ रहे थे… महिला व पà¥à¤°à¥à¤· दोनो 50-55 के रहे होंगे. पास आने पर देखा कि वो दोनो थैला उठाये थे और चà¥à¤¨ चà¥à¤¨ कर वहां से कूड़ा, जिसमें पानी की खाली बोतलें, नमकीन के खाली लिफाफे, सिगरेट की डबà¥à¤¬à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¥€ था.
मैने उनसे पूछा कि कà¥à¤¯à¥‹ कर रहे हो तो वो बोले – ये इतनी सà¥à¤‚दर जगह है, पर गंदगी इस पर दाग लगा रही है…तो हमने सोचा खाली घूमने से अचà¥à¤›à¤¾ है, कूड़ा उठा दें.
Photo Credit – https://www.ghumakkar.com/author/mahesh-semwal
मेरा सिर शरà¥à¤® से à¤à¥à¤• गया, और हम à¤à¥€ फिर उनके साथ कूड़ा उठाते -2 वापिस मंदिर पंहà¥à¤šà¥‡.  उस दिन से मैने कसम खाई कि कà¤à¥€ कहीं कूड़ा नहीं फैकूंगा और न अपने साथ जाने वालों को फैकने दूंगा.
मà¥à¤à¥‡ आशा है, यहां के बहà¥à¤¤ से घà¥à¤®à¥à¤®à¤•ड़ों ने ये कसम ली होगी…  जिनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡à¤‚ नहीं ली  वो आज  यहां हम सब घà¥à¤®à¥à¤®à¤•ड़ों के सामने यही कसम लें – हम कूड़ा नहीं फैलायेंगे, न अपने साथ वालों को फैलाने देंगे… और हो सका तो कूड़ा साफ करेंगे
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः
तो दोसà¥à¤¤à¥‹ आज इतना ही….. कà¥à¤› और कलम-बदà¥à¤§ किया तो आपके साथ अवशà¥à¤¯ बांटूंगा ।  धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦






वाह साइलेंट साहब,
लीक से हटकर पोस्ट थी, बड़े मनोरंजक अनुभव थे, सचमुच खट्टे मीठे. बुढ़िया के द्वारा दस रुपये लौटना साथ में पांच रुपये बोनस, ज्वाला जी में अपने हाथों से गुसलखाना साफ़ करना, नारकंडा में दस रुपये में गुसलखाने नुमा कमरे में रात गुजरना, ऋषिकेश के रास्ते में स्कोटलैंड का टेंट दो घंटे की मेहनत से खड़ा करना और फिर शेर के डर से उसको पांच मिनट में समेटना, गंगोत्री में वृद्ध युगल की प्रेरणा से कूड़ा उठाना………………. एक से बढ़कर एक अनुभव. सचमुच मजा आ गया.
आपकी अगली पोस्ट के इंतज़ार में.
मुकेश
और हाँ साइलेंट साहब,
पहला चित्र बच्चे का लेपटोप के साथ……बड़ा सुन्दर तथा अद्भुत चित्र था.
धन्यवाद.
धन्यवाद मुकेशजी…ये सब आप की प्रेरणा देने का कमाल है
Great Post……
tks prakash ji
सर, एक बहुत अच्छी पोस्ट! मैंने इसे पढ़ने का आनंद लिया.पहली तस्वीर बस कमाल है!;)
tks Naman. you have good photographic skills and I am waiting for some gr8 photos in your next post on Kashmir
Dost,
ankhny nam ho gai, itni chhoti-chhoti bateny bhee ab tak yaad hai.
college time say abtak jitni bhee yatrany tumhary sath kee sab yaad aa gai.
mery bachay to kehty hai ki uncle ney asi-asi jaghy hamey dikhai jin ka naam
bhi nahi suna thaa. mey to sab say kehta hon mujhy hindustan dikhaya mery dost ney mujhey
duniya ghumaya mery dost ney
thanks for every things
waiting for next post
thanks laxman.. there are more little stories about our trips with Kapuria, JP and pradeep. keep coming to Ghumakkar dot com
Superb photography!
tks sunworld…
हमारे कहने के लिये कुछ बचा ही नहीं है। वैसे हर यात्रा में एक-आध मजेदार घटना तो घट ही जाती है जो भूलाये नहीं भूलती है।
जाटदेवता को बामणदेवता का नमस्कार … मैने ये सोच कर ये सीरिज़ शुरू की है कि कुछ अलग किस्म की पोस्ट लिखी जाए. य़े यादें ही हमारी धरोहर रह जाती हैं.. मेरा मित्र विनोद कपूरिया छोटी आयू में ही भगवान को प्यारा हो गया…इस पोस्ट के बहाने उसे भी याद कर लिया.
बामण देवता की जय हो, अब से आपका नाम शान्त आत्मा नहीं रहा, नया नाम बहुत अच्छा लगा।
Travel together woth photography do leave us with moments which could be relived again and again. That’s the joy of traveling. Great post Mr. Silentsoul. Nostalgia is so good :-)
Cheers!
Nikhil
tks chandra and congrats for becoming featured author for Feb,12 !
Dear SS,
Thank you. This post is like ‘Chitrahaar’ – colorful and full of nostalgia! Great format and very interesting. Experiment सफल रहा! :)
Please share more short snippets like these.
पहली फोटो तो लाजवाब है ही!
धन्यवाद स्मिता जी… बस अगली कड़ी भी तैयार है आप का उत्साह-वर्धन मिलता रहे बस !!
बहुत अच्छा लेख शांत आत्मा जी….
सफ़र की कुछ नै व पुरानी यादें ऐसी होती हैं जो हमेशा हमारे जेहन में रहती हैं और अक्सर वो याद भी आ जाती हैं
आपका लेख पढ़कर हमने भी अपनी पुरानी यादे ताज़ा कर ली ..
जय हो बामणदेवता की …
धन्यवाद…..
रीतेश
धन्यवाद रितेशजी. कई वर्षों के बाद वो खट्टी-मीठी यादें अमूल्य खजाना बन जाती हैं
चल गया, चल गया, पता चल गया। साइलेण्ट साहब का आधा नाम पता चल गया-
बामणदेवता नाम पसन्द नहीं आया। बामण तो प्राचीन काल से ही देवता हैं, फिर अलग से देवता लगाने की जरुरत नहीं है।
मैं सोच रहा था कि टेंट में रात को सोते समय गंगा का पानी घुस गया होगा, वहां गंगा में दो-तीन मीटर पानी ऊपर नीचे होना बडी बात नहीं है लेकिन ‘बामणदेवता’ तो शेर से डरकर भाग निकले। वैसे उधर गीदड भी मिल जाते हैं, कहीं दुकान वाले ने गीदड ही ना कहा हो, आप बढा चढा कर शेर बता रहे हो। वैसे सही बात है- डरो तो शेर से डरो।
और हां, एक बात और रह गई। कूडा ना फैलाने की कसम किसी ने नहीं खाई। नंगे बालक को देख-देखकर सब मजे लिये जा रहे हैं,आप की एक अपील पर किसी का ध्यान नहीं है। धिक्कार है।
मैं खाता हूं कसम कि कभी भी घुमक्कडी के दौरान कूडा नहीं फैलाऊंगा। अजी, जाट होते ही ऐसे हैं, लीक से हटकर डिसीजन लेते हैं।
बड़ी खुशी हुई… एक तो निकला कसम खाने वाला जीदार छोरा..
Dear Silent
This is an exceptionally brilliant post and i liked your innovation also…………………..
Secondly each story was fantastic and description was also precise ( not too long)……………..
Apart from this if you have more of these i am waiting dear eagerly………………
Tks vishal rathod ji. yes i will come with more such snippets. tks for encouragement
क्या बात है SS, आपकी पोस्ट तो सुन्दर, सच्चे मोतियों की माला जैसी है। हर एक घटना अपने में अद्वितीय है। अपने अनुभवों को इतने रोचक तरीके से बयान करना एक कला है। और लगता है भगवान ने आपको यह कला खुले मन से दी है। सब कहानियां दिल को छू गयीं।
धन्यवाद विभाजी… आपके कमैंटस पढ़् कर बहुत सकून मिला
प्रिय SS , दूरदर्शन याद आ गया :-) | हालांकि मैं तो बहुत छोटा था जब आप वैष्णो देवी की यात्रा पर गए पर मेरे हिसाब से १९७५ से १९९० तक इंडिया की गति कम थी, १९९१ के बाद (opening up of Economy, FDI, Satellite TV, and then in later half of 90’s we got Internet) तो जैसे एक ज़लज़ला ही आ गया | हो सकता है, की सभी लोग अपने समय के बारे में ऐसे ही कहते होंगे | आपकी पोस्ट में एक गज़ब वाला ठहराव था , कई किस्से पर किसी में भी किसी भी प्रकार की धर-पकड़ नहीं (no stress) |
वाह , धन्यवाद SS |
मेरी तरफ से भी एक नारा सफाई की और. कोशिश रहेगी की दोहरा सकूँ जो आपने गंगोत्री में देखा |
अब गला कैसा है ?
थैंक्स नंदन…. एक और मिला कसम खाने वाला…. लोग मिलते रहे और कारवां बनता गया…एक दिन सब घुमक्कड़ मिल कर शायद पूरे संसार के सामने मिसाल कायम कर दें… न कूड़ा फैलाएंगे.. न फैलाने देंगे ।
आज कल के युवकों को जो आर्थिक व परिवारिक आज़ादी प्राप्त है.. वो हमारे समय में नहीं थी … पैसे भी तब इतने किसी के पास नहीं होते थे कि घूम सकें…..
शायद तुम्हारा बेटा अपने बेटे को बताए कि तुम्हारे दादा बिचारे Scorpio पर मुन्सयारी जाते थे… और बिचारे Sony NX-7पर फोटो खींचते थे… LOL…
जैसे मै अपने बेटे को बताता हूं कि कैसे मेरे ताऊजी बिचारे पैदल रिषिकेश से केदारनाथ जाते थे…
समय बदलता और चलता रहता है… घुमक्कड़ वही रहते है.. पैदल जाए.. या स्कोरपियो में या बैन्ज़ में.. या अपने छोटे राकेट से ….घुमक्कड़ी जिन्दाबाद
वाह एस एस जी, मज़ा आ गया….गुज़रा हुआ कल वापस नहीं आता मगर सुनहरे यादें हमेशा हमारे साथ रहते हैं
नारायण – ऩारायण… धन्यवाद .. आपकी अगली कहानी का इंतज़ार कर रहें है सब
Har jagah hamein vida dete huye yaadein de jati hai.
Bada accha likha aapne, tent wali story padhke mein apni hansi nahi rok paya.
Vaishno Devi wali story mein, us aurat ka pashchatap hoga jo use apki bus tak le aya.
Main bhi kabhi kuda khula mein nahi phekta. kahi jata hoon to apni gadi mein hi ikathha karta rehta hoon, taki dustbeen mile to sara ek saath phek saku…par phir bhi is seekh ke liye dhanyawaad.
Likhte rahiyega.
धन्यवाद विनय जी…अगले भाग भी पढि़येगा
Dear Silentsoul ji,
Very interesting post. keep sharing.
tarunji thanx ! pls read next part too
no one noticed that it was my first hindi post !!!
ss जी ,
आप सही कह रहे ss जी……वास्तव में किसी ने इस बात पर वाकई में ध्यान नहीं दिया….
अपने यह पोस्ट हिंदी में बहुत ही सहजता से तरह से लिखी हैं.
मात्रभाषा हिंदी में लिखी पहली पोस्ट के लिए आपको बहुत बधाई हो…
रीतेश…..आगरा
:) _/\_ धन्यवाद रीतेशजी… ऐसी मज़ेदार यादें अपनी मातृभाषा में अधिक अच्छी तरह लिखी जा सकती हैं.. और आपका, मुकेश भाई का व दोनो जाटों का साथ भी तो देना था…हिन्दी में लिखने के लिए
हिन्दी जिन्दाबाद
Dear Silent Soul !
& Dear Ghumakkars…
Maine to yeh article pad kar kisi dusri duniya mein hi pahuch gaya…aur sach kaho to jitna maja post padh ke maja aaya utna hi comments padh ke bhi aaya. Maine aajkal niyamit rup se ghumakkar dot com aana chalu kar diya hein…ek aadat ban gai hein. Jeevan mein itni acchi ghumakadi kar saku, jeevan ko jee saku aur is tarah ki yaadein .. yaad kar saku… issi khawahish ke saath…
bhavesh
p.s. bhamandevta aapko suit karta hein. safai ki shapath mein bhi leta hu. pehla photo vakai kamal hein. aur pehle hindi post ki bhadhai sweekar kare.
thanks Bhaveshji for your kind words. and thanks for joining my VOW !!
wow, amazing posts!
tks kanupriya. Pls keep reading future parts
Dear SS – Congratulations, your story is the ‘Featured Story of February 2012’ :-). At this point of time, the instrument of this recognition is through the monthly AuthLetter we send to all Authors. If you or any of the other Authors are not getting this, please write to me/Vibha or send a mail at info AT ghumakkar.com
I am hoping that this is a meethi news. Lol.
Tks Nandan for yr compliments and all what you have done for me and for other ghumakkars on this site.
Happy Holi to you & yr family
SSji
Picture hit hai. हंसते-हँसाते जीवन का सबक भी सीखा रहे हो| शुक्रिया|बहुत ही सुंदर यादें हैं|
Tks Manish ji… देर आयद… दुरुस्त आयद
पहली बार कुछ लिख रहन हूँ ……आपकी खट्टी मीठी यादें पढकर बहुत आनंद आया
@ gentlesaand – thank you very much for reading and appreciating my post. Pls share your stories too here.
O Great SS ji! Khatti Mitthi Yaden parhkar to maza aaya hi, saath main hamare pariwaar main ek aur sadsya jurha Mr. gentlesaand. Um-meed karta hoon, ye bhi kuchh-bahut rochak ghumakkary karvayenge aur purani yaadon se gud-gudayenge.
Dear SSji,
Behad ashcharya mein dal diya aapney is lekh ko likhkar, kayse itni minute detailing mein yaad reh jaati hai itne puraaney episodes, aaj ke is bhagam bhag jiwan mein kuii baar apna naam bhi bhool jatey hain log. Humour ek bahoot bada gun hay yeh bilkul bhi asaan nahi, Narkanda main chowkidaar ka kehna 10 rupay main kya Tajmahal me rahogey ultimate thaa. Abhhi bhi hans rahaa hoonmain uss drishya ki kalpana karkey. Aap behud sanjidgi bharey insaan hain shayad issliye jindagi ki bahoot saari baarik baaton ko itni gehrai se pad lete hain. Aapme prachin, madhya aur adhunik sabhi sanskaron kaa samavesh hey isliye aap sabhi paristhityon ko enjoy kar lete hain. My deepest regards to your parents for their extremely creditable upbringing. It is pure entertainment and pleasure reading such experiences. God bless you sir….
Dhonnbad ganguli dada… आपके कमैट देने का अंदाज निराला है… बेबाक, व ईमानदार.. पहले भी आपके कमैट मेरी बदरीनाथ वाली पोस्ट पर पढ़े थे… और मज़ा आया था…ऐसे कमैंट मिलते है तो लिखने का मजा दुगना हो जाता है
आपकी विशुद्ध व अकृत्रिम प्रशंसा ने वाकई मेरे हृदय को बहुत आनंदित किया है..
धन्यवाद व साधूवाद
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ….बहुत ही बढ़िया लगा ..धन्यवाद !
दर्शनकौर जी आपका स्वागत है
कभी – कभी समय निकाल कर पुरानी पोस्ट पढने बैठ जाता हूँ। आज कुछ इसी तरह आपकी कुछ खट्टी कुछ मीठी पढने लगा। अच्छा लग पढ़ कर। अभी मई 2012 में मै गंगोत्री गया था। कुछ एक लोग वहां भागीरथी की स्नान के बाद पूजा कर रहे थे। मैंने देखा एक ने वहां पूजा की और पूजा का सामान जो कि प्लास्टिक के रैपर में था वहीँ दाल दिया। मुझसे ऐसी हरकत बर्दाश्त नहीं होती है। मै तुरंत उसके पास गया और डांट कर बोला, उठाओ इसे और कूड़े दान में डालो, एक लम्बा सा लेक्चर दिया। तब जाकर उसने उठाया। तो भाई समस्या तो है ही। हम ही गंगा को मैली करते हैं फिर कहते हैं राम तेरी गंगा मैली।