(अà¤à¥€ तक आपने पà¥à¤¾ कि कैसे मैं अपने साथियों से अलग होकर, अकेला, à¤à¥‹à¤²à¥‡ नाथ के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ की अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤·à¤¾ लिà¤, गà¥à¤«à¤¾ के नजदीक सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ जांच केंदà¥à¤° तक पहà¥à¤à¤š गया। अब उससे आगे …)
पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ जांच केंदà¥à¤° है। यहाठसे आगे परशाद के अलावा कà¥à¤› à¤à¥€ ले जाने की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ नहीं है। इसलिठसà¤à¥€ लोग अपना सारा सामान, कैमरा, फ़ोन आदि पहले ही दà¥à¤•ानो पर जमा करवा देते हैं। यहाठसामान जमा करवाने लिठलॉकर की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ उपलबध नहीं है, सà¤à¥€ कà¥à¤› यहाठमौजूद परशाद की दà¥à¤•ानो पर ही रखना पड़ता है। इसके लिठवो आपसे कोई पैसे नहीं लेते बस आपको उनसे परशाद है। परशाद आप अपनी मरà¥à¤œà¥€ से 51 से शà¥à¤°à¥ कर 501 तक ले सकते हैं।
यहाठà¤à¤• बार फिर पंजीकरण चेक किया गया और पंजीकरण चेक करने के बाद दो तीन बार मेरी अचà¥à¤›à¥€ तरह से तलाशी ली गयी और अंदर जाने दिया। आज यहाठजà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ à¤à¥€à¥œ नहीं थी। कई बार मैंने यहाठबहà¥à¤¤ लमà¥à¤¬à¥€ लमà¥à¤¬à¥€ लाइने देखी हैं। यहाठआकर सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ देखकर à¤à¤• बार तो चà¥à¤¨à¥‡ में तक़लीफ़ होती है लेकिन अपने इषà¥à¤Ÿ देव के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤·à¤¾ इस तक़लीफ़ पर à¤à¤¾à¤°à¥€ पड़ती है। मैं à¤à¥€ तेजी से सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ चà¥à¤¤à¤¾ हà¥à¤† ऊपर गà¥à¤«à¤¾ की तरफ जाने लगा। गà¥à¤«à¤¾ से थोड़ा सा पहले ननà¥à¤¦à¥€ की à¤à¤• चांदी से बनी हà¥à¤ˆ विशाल पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ है जिसका मà¥à¤– हर शिवालय की तरह गà¥à¤«à¤¾ की तरफ है। अब इसके चारो तरफ रेलिंग लगा दी गयी है जो पहले नहीं थी।
à¤à¥€à¥œ को नियंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ करने के लिठगà¥à¤«à¤¾ के अंदर à¤à¤• गेट बना हà¥à¤† है और चारों तरफ रेलिंग लगी हà¥à¤ˆ है कोई à¤à¥€ बिना गेट से गà¥à¤œà¤°à¥‡ अंदर नहीं जा सकता। गà¥à¤«à¤¾ के अंदर à¤à¤• दो पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ को छोड़ कर सारी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ फौजियों के हाथों में है। जैसे ही मैं गेट पर पहà¥à¤‚चा तो वहां तैनात फौजी ने गेट बंद कर गया और बोला अंदर काफी à¤à¥€à¥œ हो गयी है , खाली होने दो। लगà¤à¤— पांच मिनट के बाद जब अंदर से à¤à¥€à¥œ छंट गयी तो उसने गेट खोल दिया और मेरे साथ गेट के बाहर खड़े कई यातà¥à¤°à¥€ à¤à¤•दम से बम बम à¤à¥‹à¤²à¥‡ के जयकारे लगते हà¥à¤ à¤à¤µà¤¨ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गà¤à¥¤
जिस जगह पर हिमलिंग बनता है वो जगह 5-6 फ़ीट ऊà¤à¤šà¥€ है और उसके समानांतर पहà¥à¤à¤šà¤¾à¤¨à¥‡ के लिठ7-8 सीडियां बनी हà¥à¤ˆ है। इस वरà¥à¤· हिमलिंग का आकर लगà¤à¤— 10 फ़ीट था और हम नीचे खड़े हà¥à¤ à¤à¥€ आराम से दरà¥à¤¶à¤¨ कर रहे थे। धीरे -धीरे लाइन में चलते हà¥à¤ मैं बाबा अमरनाथ के à¤à¤•दम सामने जा पहà¥à¤‚चा। जी à¤à¤° कर दरà¥à¤¶à¤¨ किये और परशाद अरà¥à¤ªà¤£ किया और वहां बैठे पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ से परशाद लिया। फौजी यहाठरà¥à¤•ने नहीं देते और सारे काम चलते -चलते ही करने पड़ते है। मैं चलते -चलते पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¥‰à¤°à¥à¤® के दूसरे सिरे से नीचे उतर गया। और यहाठà¤à¥€ फौजियों ने किसी को रà¥à¤•ने नहीं दिया और गà¥à¤«à¤¾ के दूसरे गेट से सबको बाहर करते रहे। यह जरà¥à¤°à¥€ à¤à¥€ है जब तक लोग जलà¥à¤¦à¥€ से बाहर नहीं आà¤à¤‚गे तो बाकि लोग अंदर पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कैसे करेंगे।
अमरनाथ गà¥à¤«à¤¾ का पौराणिक महतà¥à¤µ :
“ अमरनाथ हिनà¥à¤¦à¥à¤“ का à¤à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– तीरà¥à¤¥à¤¸à¥à¤¥à¤² है। यह शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र शहर के उतà¥à¤¤à¤°-पूरà¥à¤µ में 135 किलोमीटर दूर समà¥à¤¦à¥à¤°à¤¤à¤² से 13,600 फà¥à¤Ÿ की ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। इस गà¥à¤«à¤¾ की लंबाई (à¤à¥€à¤¤à¤° की ओर गहराई) 19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है। गà¥à¤«à¤¾ 11 मीटर ऊà¤à¤šà¥€ है।अमरनाथ गà¥à¤«à¤¾ à¤à¤—वान शिव के पà¥à¤°à¤®à¥à¤– धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ में से à¤à¤• है। अमरनाथ को तीरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का तीरà¥à¤¥ कहा जाता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ कि यहीं पर à¤à¤—वान शिव ने माठपारà¥à¤µà¤¤à¥€ को अमरतà¥à¤µ का रहसà¥à¤¯ बताया था।
यहाठकी पà¥à¤°à¤®à¥à¤– विशेषता पवितà¥à¤° गà¥à¤«à¤¾ में बरà¥à¤« से पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक शिवलिंग का निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ होना है। पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक हिम से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ होने के कारण इसे सà¥à¤µà¤¯à¤‚à¤à¥‚ हिमानी शिवलिंग à¤à¥€ कहते हैं। आषाढ़ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ से शà¥à¤°à¥‚ होकर रकà¥à¤·à¤¾à¤¬à¤‚धन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवितà¥à¤° हिमलिंग दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठलाखो लोग यहां आते है। गà¥à¤«à¤¾ की परिधि लगà¤à¤— डेढ़ सौ फà¥à¤Ÿ है और इसमें ऊपर से बरà¥à¤« के पानी की बूà¤à¤¦à¥‡à¤‚ जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूà¤à¤¦à¥‹à¤‚ से कई फà¥à¤Ÿ लंबा शिवलिंग बनता है। चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤®à¤¾ के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बरà¥à¤« का आकार à¤à¥€ घटता-बढ़ता रहता है। शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावसà¥à¤¯à¤¾ तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बरà¥à¤« का बना होता है, जबकि गà¥à¤«à¤¾ में आमतौर पर कचà¥à¤šà¥€ बरà¥à¤« ही होती है जो हाथ में लेते ही à¤à¥à¤°à¤à¥à¤°à¤¾ जाà¤à¥¤ मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फà¥à¤Ÿ दूर गणेश, à¤à¥ˆà¤°à¤µ और पारà¥à¤µà¤¤à¥€ के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं।
अमरनाथ गà¥à¤«à¤¾ का सबसे पहले पता सोलहवीं शताबà¥à¤¦à¥€ के पूरà¥à¤µà¤¾à¤§ में à¤à¤• मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ गडरिठको चला था। आज à¤à¥€ à¤à¤• चौथाई चढ़ावा उस मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ गडरिठके वंशजों को मिलता है।
किंवदंतियों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° माता पारà¥à¤µà¤¤à¥€ ने à¤à¤• बार à¤à¤—वान शंकर से अनà¥à¤°à¥‹à¤§ किया कि वह मानव को अमरता पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ बनाने वाला मंतà¥à¤° उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सिखाà¤à¤‚। शिवजी नहीं चाहते थे कि उस जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को पारà¥à¤µà¤¤à¥€ के सिवा कोई अनà¥à¤¯ नशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ सà¥à¤¨à¥‡, पर वह पारà¥à¤µà¤¤à¥€ का अनà¥à¤°à¥‹à¤§ à¤à¥€ टाल नहीं सकते थे। इसलिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पारà¥à¤µà¤¤à¥€ को वह मंतà¥à¤° बताने के लिठहिमालय में à¤à¤• निरà¥à¤œà¤¨ गà¥à¤ªà¥à¤¤ सà¥à¤¥à¤² चà¥à¤¨à¤¾à¥¤ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि पवितà¥à¤° अमरनाथ गà¥à¤«à¤¾ वही गà¥à¤ªà¥à¤¤ सà¥à¤¥à¤² है। à¤à¤—वान शंकर जब पारà¥à¤µà¤¤à¥€ को अमर कथा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ ले जा रहे थे, तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, नंदी बैल को बैलगाम में जो बिगड़ कर अब पहलगाम बन गया है, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अनà¥à¤¯ पिसà¥à¤¸à¥à¤“ं को पिसà¥à¤¸à¥‚ टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग और पंचततà¥à¤µà¥‹à¤‚ को पंचतरणी नामक सà¥à¤¥à¤² पर छोड़ा था। ये तमाम सà¥à¤¥à¤² अब à¤à¥€ अमरनाथ यातà¥à¤°à¤¾ में आते हैं।
जनशà¥à¤°à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ है कि इसी गà¥à¤«à¤¾ में माता पारà¥à¤µà¤¤à¥€ को à¤à¤—वान शिव ने अमरकथा सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ थी कथा सà¥à¤¨à¤¤à¥‡-सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ माता पारà¥à¤µà¤¤à¥€ तो सो गईं, पर कबूतर के दो अंडे, जो वहां पहले से विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ थे, उस अमर मंतà¥à¤° को सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ वयसà¥à¤• होकर अमरतà¥à¤µ पा गà¤à¥¤ गà¥à¤«à¤¾ में आज à¤à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं को कबूतरों का à¤à¤• जोड़ा इस पवितà¥à¤° गà¥à¤«à¤¾ में दिखाई दे जाता है, जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ अमर पकà¥à¤·à¥€ बताते हैं। आषाढ़ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ से शà¥à¤°à¥‚ होकर रकà¥à¤·à¤¾à¤¬à¤‚धन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवितà¥à¤° हिमलिंग दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठलाखों लोग यहां आते हैं।â€
गà¥à¤«à¤¾ पर पहà¥à¤‚चने पर असीम शांति का अनà¥à¤à¤µ होता है। सब कà¥à¤› इतना समà¥à¤®à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ करने वाला है की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करना à¤à¥€ याद नहीं रहता। नजरें टकटकी लगाये कà¥à¤¦à¤°à¤¤ के इस नज़ारे को देखने में ही लगी रहती हैं। à¤à¥‹à¤²à¥‡ नाथ के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ से शरीर का रोम रोम पà¥à¤²à¤•ित हो जाता है और पल à¤à¤° के लिठसब कà¥à¤› à¤à¥‚ल जाता है। लगता है à¤à¥‹à¤²à¥‡ के दरबार में मोह माया का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ निषिद है। यहाठआप अपनी सारी थकावट ,दà¥à¤ƒà¤– दरà¥à¤¦ à¤à¥‚ल जाते हैं और सिरà¥à¤« à¤à¥‹à¤²à¥‡ नाथ को ही देखने का जी चाहता है। हिमलिंग के पास में ही माठपारà¥à¤µà¤¤à¥€, गणेश व नंदी की पिणà¥à¤¡à¥€, बरà¥à¤« से सà¥à¤µà¤¯à¤®à¥à¤à¥‚ बनती हैं। पवितà¥à¤° गà¥à¤«à¤¾ में होने वाली अनà¥à¤à¥‚ति को शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में वरà¥à¤£à¤¨ करना मेरे जैसी नाचीज़ के लिठसंà¤à¤µ नहीं है।
गà¥à¤«à¤¾ से बाहर निकलते ही मोह माया फिर से आपको जकड़ लेती है। मैं à¤à¥€ जैसे ही गà¥à¤«à¤¾ से बाहर आया तो मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ अपने साथियों की याद आई. जाने वो कहाठरह गà¤? यह सोचता हà¥à¤† और à¤à¥‹à¤²à¥‡ नाथ से अगले वरà¥à¤· फिर बà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करता हà¥à¤† सीडियां उतरने लगा। जूताघर से से अपने जूते लिठ। उस समय ठीक 2:30 बज रहे थे यानि की मैं किसी à¤à¥€ हिसाब से लेट नहीं था। नीचे उतर कर à¤à¤• लंगर से बेसन का à¤à¤• पà¥à¥œà¤¾ मीठी चटनी के साथ खाया और दूसरे से à¤à¤• कटोरी खीर। तीसरे लंगर से गरम चाय पी और फिर से तरोताजा हो वापसी शà¥à¤°à¥‚ कर दी।
“à¤à¤• बात तो मैं आपसे साà¤à¤à¤¾ करना à¤à¥‚ल गया। आज 8 जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ को मेरा जनà¥à¤® दिन था। अपने जनà¥à¤® दिन के दिन à¤à¥‹à¤²à¥‡ नाथ के दरà¥à¤¶à¤¨ हो गà¤à¥¤ इससे बà¥à¤¿à¤¯à¤¾ तोहफ़ा तो मà¥à¤à¥‡ आज तक कà¤à¥€ नहीं मिला था।â€
बाकि अगले à¤à¤¾à¤— में जलà¥à¤¦à¥€ ही….
नरेश जी,
बहुत सुन्दर पोस्ट और उससे भी ज्यादा सुन्दर चित्र। सुबह सुबह भगवान भोलेनाथ के दर्शन करवा दिए, आपको बहुत बहुत धन्यवाद। पवित्र गुफा के पहले दर्शन वाला चित्र तो कमाल का है।
Thanks Mukesh Jee for liking the post .
Dear Naresh Ji
Beautiful is the word for description, photographs, presentations and everything. I had also the same feeling as you while in the cave. As you said, “सब कुछ इतना सम्मोहित करने वाला है की प्रार्थना करना भी याद नहीं रहता।” I too had the same experience.
Now coming to your one photo “बिल्ली के आकार का पहाड़ी चूहा” is actually “The Himalayan Marmot”. Marmot found in the Himalayan regions .Marmots are a group of large ground squirrels. :)
Will wait for next part….hope it will publish soon.
Thanks
Thanks Anupam ,
Thanks for sharing the name “The Himalayan Marmot” otherwise I would have keep on calling it as “बिल्ली के आकार का पहाड़ी चूहा”.
I too waiting for your next post on SheshNag..
Awesome post with beautiful photos.
Thanks Vivek.
Naresh Ji,
Your devotion to lord shiva clearly reflects in your writing. Again I would say perfect post with picture perfect locations. One more thing to share with you that I have also been blessed by lord shiva this year by giving me an opportunity to visit Neelkanth Mahadev Temple on my birthday i.e. 12 of July.
Keep sharing…..
Arun
Thanks Arun.
Surprisingly , my friend and companion of this Yatra, Sushil’s burthday is also on 12th of July.
It makes special to have darshan of your Lord on your Birthday.
Once again nice post. Pictures are very beautiful. Thanks for sharing.
Thanks Anil ji..
Hi Naresh ji
सबसे पहले आपके भोलेनाथ के दर्शन की अपनी यात्रा सफलतापूर्वक करने और वो भी अपने जन्मदिवस पर… लख लख वधाईयां :)
अब आप निश्चिंत हो कर अपने पोते पोतियों और नाती नातिनो को अपनी इन दुर्लभ उपलब्धियों के किस्से सुना सकते हैं… LOL( Of-course आज से कई सालों के बाद!)
एक बार फिर से ऐसा संयोग बना कि आप की और अनुपम की पोस्ट एक साथ ही पड़ रहा हूँ, और आप दोनों ही इसके लिए बधाई के हकदार हैं !!!
बड़िया पोस्ट रही, फोटोज मनमोहक हैं और एक बार फिर से आपके हौसले और जज्बे को सलाम है !
अगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी…
Thanks Avtar jee, for your continuous encouraging and motivating comments.
The photo of Amarnath Gufa from top gives a great perspective of the total size of the Gufa. I would imagine that such big caves are not a normal thing to find. May be along with the the fact about Himlinga would have made the place very special.
Thank you Naresh for continuing to share your Amaranath sojourns with us. You are a veteran now. I have no good ideas but there must be a efficient way to provide free consulting on all issues around Amarnath. You have the gift of articulation, experience of being at Amarnath umpteen times and access to internet. May be a smart phone app or something. Pls think about it if it doesn’t sound like a crazy idea. I am up for any help I could provide to shape it up further. Wishes.
Thanks Nandan Ji..
It will be my pleasure to help any body who wants to take this Yatra . I can answer the queries with best of my knowledge but do not know how to develop smart phone app or something which will serve the purpose. but if it can happen and I get query by mail or by SMS I will definitely reply.
Thanks
Read your whole Yatra . Awesome Narration and Wonderful pictures. Keep it up Dude.
Thanks Vishal Ji for coming to Ghumakkar and encouraging me.
हर हर महादेव नरेश जी,
आपकी पोस्ट पढ़कर मन दोबारा शिवमय हो गया।
मुझे भी महादेव जी की विशेष कृपा से अपने फुफेरे भाई के साथ इस वर्ष (2016) की अमरनाथ यात्रा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ जो जम्मू से पहलगाम प्रथम जत्थे 2/07/2016 को प्रारंभ हुआ और अपनी प्रथम यात्रा मेँ मुझे बाबा के तीन बार दर्शन सौभाग्यवश मिले ।
आपकी इस बार की यात्रा कैसी रही अवश्य बताये।
धन्यवाद
जयकारा वीर बजरंगी , हर हर महादेव।