क्रिसमस @ कमरुनाग

कमरुनाग – हिमाचल की हसीन वादियों के गर्त में छुपा एक अनमोल रत्न. शानदार घने जंगल के बीच से गुजरते हुए, सहसा ही एक छोटे से खुले स्थान में इस झील के दर्शन करना अपने आप में एक अलौकिक अनुभव है. तो मैं और मेरा दोस्त बाली निकल पड़े इस छुपे हुए खजाने की तलाश में. मंडी बस स्टेशन पर आते ही, थोड़ी देर में रोहांडा के लिए बस मिल गयी. रोहांडा, सुंदर नगर – करसोग मार्ग पर बसा एक छोटा सा गाँव है जहाँ से कमरूनाग तक 6 किलोमीटर की पैदल यात्रा से पहुँचा जा सकता है.

सुंदर नगर से रोहांडा तक का मार्ग कुछ अदभुत प्राकृतिक नज़ारे पेश करता है जो मैंने अपनी पहाड़ी यात्राओं में पहले कभी नहीं देखे थे. ऐसे में मुझे कई बार बस से उतरकर पैदल सफ़र करने का मन करता था, पर समय एक बड़ी बाधा थी. वैसे कुदरत के नज़ारों का भरपूर आनंद लेने का जो मज़ा पैदल सफ़र करने में है वो किसी और चीज़ में नहीं, और ये मैं मजाक में नहीं बल्कि अपनी कुछ पिछली छोटी – छोटी पैदल यात्राओं के अनुभव से कह सकता हूँ.

पैदल चलते वक्त हम न सिर्फ कुदरत के विराट स्वरुप का आनंद लेते हैं, बल्कि यह हमारा परिचय प्रकृति के उस अनमोल रूप से भी करवाता है जिसका स्वाद हम अन्यथा नहीं चख पाते, जैसे की राह में दिखने वाले पशु / पक्षी / कीट और उनके मधुर स्वर, मीठे पानी के कुदरती जल स्रोत / नदियाँ / झीलें / झरने, अचंभित कर देने वाले पेड़ / पौधे और उन पर लगे मनमोहक फूल और मीठे फल जो आपको एक पल रुकने पर मजबूर कर देते हैं, भोले – भाले पहाड़ी लोग और उनका रहन – सहन, छोटे – छोटे पहाड़ी रास्ते जिन पर चलकर शरीर में एक नई उर्जा का संचार होता है और अंत में इन सभी यादों को सहेजे रखने के लिए इन्हें कैमरे में कैद करने की लालसा. ये सब न सिर्फ कुदरत की इस अदभुत रचना को नजदीक से जानने की प्रक्रिया होती है, बल्कि प्रकृति और अपने बीच के रिश्ते को समझने और अनुभव करने का भी बहुत अच्छा अवसर होता है.

मंडी से निकलते समय भ्युली पुल के पास भीमकाली मंदिर

सीढी़नुमा खेत

कुछ पल आराम के

दो शांत आत्माएं, ना जाने आपस में क्या बतियाती होंगी?

रोहांडा पहुँचकर सबसे पहला काम था, खाली टंकर (पेट) में पेट्रोल (खाना) भरना ताकि लगभग 12 से 13 किलोमीटर का सफ़र बिना किसी अवरोध के पूरा किया जा सके. हालाँकि बाली के मन में शंका थी की कँही पेट्रोल (खाना) ख़त्म न हो जाये, इसलिए थोडा साथ रखकर भी ले चले. यहाँ से शुरू होता है पैदल यात्रा का असली रोमांच. शुरुआती सफ़र थोडा थकाने वाला जरुर था, जिसकी पहली वजह थी रोहांडा में खाया गया भरपेट भोजन और दूसरा कारण थी अप्रत्याशित खड़ी चढाई. खैर जैसे – जैसे आगे बढते गए, प्रकृति का घूँघट उठता गया और कुदरत के कुछ शानदार नज़ारों नें थकान को छूमंतर कर दिया. इस पर बीच में कहीं – कहीं पर हल्की – फुल्की बिखरी बर्फ के निशान इस बात की पुष्टि करते प्रतीत हो रहे थे कि हो ना हो झील पर थोड़ी बहुत बर्फ तो देखने को जरुर मिलेगी, जिससे हमारा उत्साह और जोश दोगुना हो गया. बीच – बीच में दूर कहीं चोटियों पर पड़ी ताज़ा बर्फ और वो हसीं वादियाँ हमारी कल्पनाओं को पँख दे रही थी, ऐसे में किस तरह हमने आधे से ज्यादा दूरी मजे – मजे में तय कर ली थी, पता ही नहीं चला. ऐसे में एक बात अचंभित करने वाली यह थी कि अभी तक के पूरे रास्ते में हमें किसी आदमजात के दर्शन नहीं हुए थे, जबकि देव कमरुनाग को पूरे मंडी जिले का एक प्रमुख आराध्य देव माना जाता है.

ऐसी चर्चा करते हुए हम चले ही जा रहे थे के अचानक, शांत घने जंगले के बीचों – बीच किसी जानवर के दौड़ने कि आवाज़ ने पलभर के लिए रोंगटे खड़े कर दिए, पर तीखी ढलान होने कि वजह से उसे देख पाना थोडा मुश्किल था. हो ना हो ये कोई जानवर ही था क्योंकि ऐसे तीखी ढलान पर किसी इंसान के लिए इस गति से नीचे उतरना थोडा मुश्किल सा लगता था. कुछ ही पलों में अपने सामने एक भयंकर रौबीले पहाड़ी कुत्ते को देखकर हमारे कदम अचानक ठहर गए और एक पल के लिए साँसे भी थम गयी. ऐसे में हमारी कल्पना हमें पलभर में हसीं वादियों से निकालकर जंगली जानवरों के बीच ले गयी. एक तो सामने खड़े भयंकर कुत्ते का भय, ऊपर से धीमे – धीमे आती हुयी क़दमों की आवाज़, ऐसा लगा मानो उस कुत्ते का पीछा कोई अन्य भयंकर जानवर कर रहा हो. पर हमारी जान में जान आयी जब हमने कुछ छोटे बच्चों को पीछे से दौड़ते हुए आते देखा. पूछने पर पता चला की पास ही के गाँव के बच्चे थे और घूमते – घामते जंगल में चले आये थे.

आगे चलने पर कुछ और लोगों से मुलाकात हुई जिन्होंने बताया कि मंदिर अब बस पास ही था. चेहरे पर ख़ुशी व रोमांच लेकर थोडा ही आगे बढे थे कि रास्ते पर बिछी बर्फ की एक सफ़ेद चादर को देखकर मन जैसे सातवें आसमान पर पहुँच गया. इस तरह यकायक बर्फ देखकर कदम स्वतः ही रुक गए, मन किया कि कुछ पल यहाँ पर बिताये जाएँ, फिर क्या था शुरू हो गया फोटो सैशन. थोड़ी देर में समय का आभास हुआ, तो आगे बढ़ना दोबारा शुरू कर दिया.  बीच – बीच मैं मिलने वाली सफ़ेद बर्फीली चादरें हमारी उत्सुकता और रोमांच को बढ़ाये जा रही थी. अचानक लगा कि हम किसी खुले स्थान पर पहुँचने वाले थे और देखते ही देखते हमारी कल्पना साकार हो गयी. देवदार के खुबसूरत पेड़ों के झुरमुट के बीच, खुले गगन के तले अदभुत बर्फ से जमी हुयी झील और उसके किनारे देव कमरुनाग का मंदिर सब मिलकर मानो हम पर सम्मोहन कर रहे हो. कुछ पल तो मैं और बाली बिना कुछ बोले कुदरत के इस सुन्दरता को निहारते रहे. देव कमरुनाग के दर्शन और झील की परिक्रमा करने के बाद, शुरू हो गयी बर्फ में मस्ती. हालाँकि बर्फ बहुत ज्यादा नहीं थी, पर हमारी अपेक्षा से कहीं अधिक थी.

थोडा फोटू खिचवा लें !

बाली चढा़ई दिखाते हुए

वैली व्यू !

सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं....

ऐसे खुश है जैसे पहले कभी बर्फ देखी ही नहीं

देव कमरुनाग को जो की पूरे मंडी जिले के आराध्य देव हैं, वर्षा का देव माना जाता है. यह मंदिर व झील समुद्र तल से करीब 9100 फीट की ऊंचाई पर कमरू घाटी में स्तिथ है. एक मान्यता के अनुसार, देव कमरू को सोने-चाँदी व करेंसी चढाने का रिवाज है जो की आमतौर पर झील में चढ़ाया जाता है. इस कारण ऐसा माना जाता है कि इस झील के गर्त में करोड़ों की करेंसी व सोना – चाँदी छुपा पड़ा है, स्थानीय लोगों को झील में सोने – चाँदी के आभूषण और करेंसी चढाते हुए यहाँ होने वाले वार्षिक मेले (14 – 15 जून) के दौरान देखा जा सकता है. एक अन्य प्रचलित मान्यता के अनुसार, देव कमरू को देव बर्बरीक (घटोत्कच का पुत्र और भीम का पोता) भी माना जाता है जो एक महान व अविजय योद्धा थे और जिन्होंने महाभारत के युद्ध में एक निर्णायक भूमिका अदा की थी. अपनी माता को दिए वचन के अनुसार, उन्हें महाभारत के युद्ध में कमजोर पक्ष का साथ देना था. इस पर स्वभावानुसार, श्री कृष्ण ने ब्रह्मण के वेश में लीला खेली और बर्बरीक को चुनौती दी कि वो एक वृक्ष के सभी पत्तों को एक साथ एक बाण से भेधकर दिखाए. बर्बरीक के अभेद्य बाण कि परीक्षा लेने के लिए उन्होंने एक पत्ता अपने पैर के नीचे भी छुपा लिया, लेकिन उनके बाण ने उसे भी ढूंढ़ निकाला. यह सोचकर कि यह योद्धा युद्ध में हर हारते हुए पक्ष की ओर से लड़ते हुए अंततः सभी को समाप्त कर देगा, भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को अपने विराट स्वरुप के दर्शन देकर, उनसे गुरुदक्षिणा के रूप में उनका शीश माँग लिया. दानी बर्बरीक थोडा अचंभित होकर, अपना शीश देने को राजी हो गए. पर उन्होंने महाभारत का सम्पूर्ण युद्ध देखने की इच्छा जताई. इस पर भगवान श्री कृष्ण ने उनका शीश कमरू चोटी पर रख दिया जहाँ से उन्होंने महाभारत का पूरा युद्ध देखा. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में तुम्हे मेरे नाम (श्याम) से जाना जायेगा और इन्हें ही आज राजस्थान के खाटू नामक स्थान पर खाटू श्याम जी के नाम से जाना जाता है.

पेडों के बीच में कमरुनाग झील !!!

मंदिर की छत पर जमी हल्की बर्फ

देव कमरुनाग का लकडी़ से बना मंदिर

बर्फ से जमी कमरू झील !!!

ये कूदा

और ये गिरा !!!

फूलों के झरोखे से !!!

लीविंग नथिंग बट फुट-प्रिंट्स !!!

इस सम्मोहन से थोडा बाहर निकले तो अचानक घडी पर नज़र पड़ी, अरे ये क्या! 4 बज गए, 2 घंटे कैसे गुजरे पता ही नहीं चला, लगता था मानो अभी थोड़ी देर पहले ही तो आये थे. खैर आज ही घर वापसी का इरादा था, इसलिए आखिरी बार इस करिश्माई दुनिया को जी भरकर देखकर और फिर आने का वादा करके, नीचे उतरना शुरू किया. उतरते वक्त, कुदरत का एक और रूप देखने को मिला. डूबते सूरज की किरणों का प्रकाश ऐसे फ़ैल रहा था की मानो जैसे कोई पूरी घाटी को सोने से पहले लाल चादर ओढ़ा रहा हो. हालाँकि समय कम था, लेकिन सूर्यास्त के इस अद्भुत नज़ारे ने हमें रुकने पर मजबूर कर ही दिया. हमने ऐसी जगह रूककर इस प्राकृतिक घटना का आनंद लिया जहाँ से सड़क की दुरी कुछ 1 या 2 किलोमीटर रही होगी. सड़क तक आते – आते अँधेरा पसर चुका था. चढाई करते समय हरबार की तरह इस बार भी आखिरी बस का समय पूछना भूल गए थे. खैर देर आये दुरुस्त आये. दिसम्बर माह की ठण्ड में अलाव जलाकर बैठे हुए कुछ लोगों से पूछा तो पता चला कि आखिरी बस तो कबकी जा चुकी थी. हमेशा की तरह यात्रा का अंत भी रोमांचक मोड़ ले रहा था.

नीचे उतरता हुआ बाली

सूरज की लालिमा को ओढती मनमोहक घाटी

सूर्यास्त से पहले परत दर परत फैली खुबसूरत चोटियाँ !!!

डूबते सूरज को रोमांचक यात्रा के लिए शुक्रिया कहते हुए !!!

मैं किसी भी हाल में रोहांडा नहीं रुक सकता था. हालांकि बाली को इसमें कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि वह मंडी में ही काम करता है और सुबह आसानी से बस पकड़कर मंडी पहुँच सकता था. हमारे पास किसी निजी वाहन का इंतज़ार करने का अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था. लगभग आधा घंटा हो गया था उन ठंडी हवाओं के बीच खुली सड़क में ठिठुरते हुए, लेकिन सिवाय एक छोटी बैलगाड़ी के कोई वाहन सुंदर नगर की तरफ नहीं जाता पाया गया. जबकि सड़क के उसपार करसोग जाने वाले रास्ते पर से इस बीच कई वाहन गुजर गए थे. इसी बीच एक छोटा सा कोयलों से भरा टेम्पो पास वाली दूकान पर रुका. पूछने पर पता चला कि वो तो सुंदर नगर ही जा रहा था, सुनते ही मानो खुशी की एक लहर सी दौड़ गई.

चालक से बात की तो उसने ये कहकर मना कर दिया कि जगह नहीं है. हालाँकि उसी टेम्पो में बैठे दूसरे सज्जन से प्रार्थना की तो वो शुरुआती पूछताछ के बाद राजी हो गए. लेकिन उन्होंने बताया कि टेम्पो में इतनी जगह नहीं है कि 4 लोग सीट में बैठ सकें, इसलिए बाली और मैं बिना समय गवाएं टेम्पो के पीछे कोयले से भरी बोरियों के ऊपर जा बैठे. पहाड़ों में खुले आसमान के नीचे, अनगिनत तारों को टिमटिमाते हुए देखना एक अद्भुत अनुभव होता है, जो शहरों कि चमचमाती रौशनी और भारी प्रदुषण के बीच कहीं खो जाता है. तारों को घूरते – घूरते, थकान के कारण न जाने कब आँख लग गयी, पता ही नहीं चला. थोड़ी देर बाद झटका लगने से नीद खुली तो बाली को भी एक कोने में ठिठुरता पाया. बैग में रखी चादर निकालकर, ओढ़कर फिर सो गए.

टेम्पो बीच में कहीं रुका तो लगा मानो पहुँच गए, पर वो तो रास्ते में एक दुकानदार को कोयले की कुछ बोरियां देने रुका था. हालांकि सुंदर नगर अब यहाँ से ज्यादा दूर नहीं था. लगभग 15 मिनट में सुंदर नगर पहुँचकर, टेम्पो वालों को धन्यवाद देकर, बस स्टेशन की तरफ बड़े ही थे कि चाँदनी में नहाई सुंदर नगर कि मनमोहक झील को देखकर कदम यकायक ही थम गए. लेकिन यहाँ ज्यादा समय न बिताते हुए, बस स्टेशन की तरफ चल पड़े. संयोगवश दिल्ली जाने वाली बस रवानगी के लिए तैयार ही खड़ी थी कि लपककर पकड़ लिया और सीट भी मिल गयी. हालांकि इस जल्दबाजी में मेरा कुछ सामान बाली के पास और उसका कुछ सामान मेरे पास रह गया और बाली को फ़ोन पर ही अलविदा कहना पड़ा. वाकई शुरू से अंत तक रोमांच ही रोमांच था इस यात्रा में, ये क्रिसमस मुझे जीवनभर याद रहेगा !!!

53 Comments

  • Ritesh Gupta says:

    वाह विपिन जी…..बहुत खूबसूरती और तन्मयता से वर्णन किया अपने कमरूनाग का……..| घुमक्कड़ पर एक और हिंदी लेखक का स्वागत हैं | आपका शुद्ध हिंदी में सुन्दर शब्दों से लिखा लेख पढ़कर बहुत आत्मिक खुशी महसूस हुई | मुझे आपके लेख लिखने का अंदाज बहुत पसंद आया | करुनाग के बारे में पहले कभी नहीं सुना था पर आज आपके लेख के माध्यम से यह सुन्दर जगह के बारे में पता चला……..उसके लिए धन्यवाद….|
    फोटो तो बहुत ही शानदार और खूबसूरत हैं |
    रीतेश.गुप्ता

    • Vipin says:

      रितेश भाई, आपकी इस हौसला-अफजाही के बहुत बहुत शुक्रिया……हिंदी में लिखना और पढना दोनों ही वाकई सुखद अनुभव होते हैं, ज्यादा दिमाग खर्च नहीं करना पड़ता ……

  • विपिन भाई आज तक की मेरी पढी हुई रोमांचक पोस्टों में बेहतरीन पोस्टों में यह लेख भी शामिल हो गया है, घुमक्कर पर भी मुझे आजतक इतनी बेहतरीन लेख देखने को नहीं मिला है, आपके ब्लॉग पर भी मैंने इसे पढा था शायद वहाँ अंग्रेजी में था आज हिन्दी में होने के कारण इतने दिल से पढा है कि मन करता है कि बस पढता ही जाऊँ,,,,,,,,,,,वैसे कुछ तो खास है जहाँ विपिन जाता है बर्फ़ उसके पीछे-पीछे चली आती है, देख भाई बाइक सीख ली हो तो हिमाचल का रिंग रोड साथ चलेंगे, नहीं सीखी हो तो भईया राम-राम मैं अकेला ही चला जाऊँगा, हा हा हा अबकी बार बैठा कर नहीं ले जाऊँगा।

    • 24 अप्रैल को गंगोत्री व यमुनोत्री के पावन कपाट के खुलने के साथ ही उत्तराखण्ड में हिन्दु धर्म के विश्वविख्यात चार धाम यात्रा का शुभारंभ विधिवत शुरू हो गया। हिन्दुओं के सर्वोच्च धामों में शीर्ष बदरी केदार नाथ धाम के कपाट भी इसी सप्ताह खुलेगे। भगवान शिव के परमदिव्य स्वरूप भगवान केदारनाथ धाम के कपाट 28 अप्रैल को व भगवान विष्णु के साक्षात स्वरूप श्री भगवान बदरीनाथ धाम के कपाट 29 अप्रैल को खुलेंगे।

      • Vipin says:

        संदीप भाई, आपके इन उत्साहवर्धक व सुंदर शब्दों के लिए हार्दिक धन्यवाद. बर्फ में मेरा का क्या हाल होता है, ये बात आपसे बेहतर और कौन जान सकता है भला ………और हाँ आपने वादा किया था बाईक सिखाने का और अभी तक आपके भरोसे ही बैठा हूँ…….

        चारधाम यात्रा की जानकारी के लिए शुक्रिया………केदारनाथ (गाँधी सरोवर तक) जाने की तीव्र इच्छा है इसी महीने………अगर कोई प्रोग्राम बने तो जरुर बताना………

    • Deepak says:

      कब जा रहे हैं? हमे भी बताईएगा …

      • Vipin says:

        भाई जब कोई घुमक्कड़ चलने को राजी हो जाये…….पर 1 मई से पहले घर (दिल्ली) वापसी होनी चाहिए…….अगर मन है तो बताईये चलते हैं कल परसों ही……..

        • Deepak says:

          अरे यार, 20 मई को अपना एक महा exam है | उससे पहले नहीं जा सकते कहीं, घुमक्कड़ी के कीड़े तो काट रहे हैं, पर अभी जायेंगे, तो घर से निकल दिए जायेंगे ;) | २१ मई से ३० मई के बीच अपना प्रोग्राम है मनु भाई और एक और बंधू के साथ, थोडा लम्बा (5 – 6 दिन), या मुन्सियारी या चकराता या हिमाचल (मनाली और आस पास) , या कहीं भी और हिमाचल या उत्तराँचल में , वैसे अभी जगह final नहीं है | उसमे चलना हो तो बताओ …

          • Neeraj Jat says:

            दीपक भाई, मुन्स्यारी जाओ। अगर चले गये तो वापस आकर मुझे भी बताना कि कैसा रहा।

          • Deepak says:

            तुम भी चलो | अजी हम तो कहते हैं, एक घुमाकड़ meet कर डालते हैं | कोई destination तय कर लेते हैं, सभी घुमक्कड़ वहां पहुँच जाएँ, फिर चाहे तो वहां रुकें या वहां से कहीं आगे चलें सभी लोग |

  • वाकई में रोमांचक जगह विपिन जी , बर्फ जहां हो वहां मुझे फोटो भी बडे अच्छे लगते हैं ……….और यहां तो शायद बर्फ पर पहले निशान भी आपने ही बनाये हैं ……….फोटो बडे सुंदर हैं और फोटो के कैप्शन उससे भी सुंदर ……….लिखने का ढंग और शैली उससे भी सुंदर ……….एक अनएक्सप्लोरड जगह को दिखाया है आपने ……….मै तो यही कहूंगा कि पौराणिक महत्व के साथ साथ ये जगह हसीन नजारो का भी गढ है और इतनी सुंदर जगह को हमें दिखाने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद

    • Sanjay Kaushik says:

      त्यागी जी,
      मेरा “googlehindisetup” दोबारा चलने लगा है. पता नहीं क्या क्या किया, लेकिन उस बहुत सारे “क्या-क्या” मैं से कुछ ऐसा हुआ कि ‘चल गया’
      लेकिन फिर भी आपने समय पर मनोबल बढ़ाया था, उसके लिए धन्यवाद

      संजय कौशिक

      • चलिये देर आयद दुरूस्त आयद

        • Monty says:

          ओ मनु जी ,

          आप क्यों ढीले पड़ गये भाई साहब बुढापा आ गया क्या?
          लिखो यार दो-चार नयी पोस्ट.

          लो अब तो में भी आप लोगो की ‘hindi gang’ में आ गया.

          अब आप लोगो की पोस्ट पढ़ कर हिंदी में ही कमेन्ट करूँगा.

          • हा हा हा मोंटी भाई ……..मेरे पास लिखी लिखाई पोस्ट नही हैं मै तो रोज कुंआ खोदता हूं और रोज पानी पीता हूं …बृहस्पतिवार और शनिवार को मेरे लेख आयेंगे …….घुमक्कड बूढा हो गया तो फिर क्या घुमक्कड रहा मोंटी भाई हा हा हा

          • Monty says:

            भाई साहब,

            बृहस्पतिवार भी आ गया पर पोस्ट कहा है?

            **** बना दिया अपने तो…… (इस स्टार का मतलब समझ जाओ क्या है.)

            मनु भाई इस तरह आपकी धोखेबाजी नहीं चलेगी. अपने कहा था की ब्रहस्पतिवार को आपकी पोस्टिंग आयेगी.
            देखो मेरा वक्त बर्बाद करने का हिसाब देना पड़ेगा…एक-एक सेकंड का देना पड़ेगा…

            सुबह से लेकर अब तक पांच बार चेक कर चूका हू पर आपकी कोई पोस्टिंग नहीं है इधर.

  • मै तो सोच रहा था कि शायद पहली बधाई मै दूंगा ……..पर लिखने के लिये शब्द सोचते सोचते देर हो गयी और मै पीछे रह गया खैर इतनी शानदार पोस्ट के लिये एक बार और बधाई और रही संदीप भाई के घुमाने की बात तो भाई विपिन मेरे पीछे बैठ लेना अगर इन्होने ना बिठाया तो पर रिंग रोड देखना जरूर है

    • Vipin says:

      मनु भाई, लेख पढने व पसंद करने के लिए धन्यवाद………जहाँ तक बर्फ का सवाल है, थोड़ी बहुत बर्फ मौज मस्ती के लिए ठीक है……..लेकिन जहाँ ग्लेशिअरों पर चलने के बात आती है तो भैय्या अपनी हालत थोड़ी ख़राब हो जाती है. यहाँ बर्फ पर हमारे आने से पहले कुछ और निशान भी थे……..शायद स्थानीय लोगों के…..

      इस तरह की शांत जगह………भीड़भाड़ से दूर…..एक रोमांचक और आध्यात्मिक अनुभव देती है……….वैसे संदीप भाई की बात बिलकुल सही है क्योंकि पिलियन पर बैठने वाले की क्या हालत होती है ये में व्यक्तिगत अनुभव से भली भांति जानता हूँ…….अगर तब तक बाईक नहीं सीख पाए तो आपका साथ तो है ही रिंग रोड परिक्रमा करने के लिए ….और क्या पता उसी यात्रा के दौरान बाईक भी सीख जाएँ……….

  • Sanjay Kaushik says:

    गौड़ साहब, मजा आ गया पढ़ के…
    और उससे भी ज्यादा मजा एक नई जगह की खोज होने पर आया….
    और इस नई खोज में भी ‘बाबा श्याम’ की कहानी मिली तो एक नई बात पता चली…
    सच बताऊँ तो तो पता नहीं मैं खुद तो यहाँ कभी जा पाउँगा या नहीं, पर लगता है २-३ बार ये पोस्ट और पढ़ लूँगा तो गया हुआ ही मन जाऊंगा…
    सचमुच पढ़ने के बात लगता नहीं है की सिर्फ “पढ़ा” है… सचमुच ऐसा लगता है कि अभी आपके साथ वहीँ से वापस आ रहा हूँ…
    अब दुबारा आपकी पोस्ट पढ़ी, लग नहीं रहा कि मैं वहां जाये बिना रह पाउँगा… और जैसा मेरा विचार था कि पोस्ट २-३ बार पढूंगा तो, उसके बाद तो जाये बिना रह पाउँगा लग नहीं रहा..
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद

    संजय कौशिक

    • Vipin says:

      संजय जी, अगर हमारा लेख आपको घर बैठे इन जगहों की मुफ्त यात्रा करा देता है, तो लेख कुछ हद तक सार्थक लगता है. लेकिन असली सफलता तो तब मानी जाती है, जब आप प्रेरित होकर इन अद्भुत जगहों की सैर करते हैं और वापस आकर अपने यात्रा अनुभव हमारे साथ बाँटते हैं………लेख पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद……..

      • Sanjay Kaushik says:

        विपिन जी,
        आपकी शिकायत जायज है, चलो हम यात्रा की तरफ एक कदम और आगे बढ़ जाते हैं….
        अब जब आप हो ही आये हो तो ये और बता दीजिए की, कम से कम इतनी बर्फ (जितनी आपको मिली) के लिए कब जाना ठीक रहेगा और देल्ही से जाने के लिए कम से कम समय और रास्ता भी बता दे तो शायद मैं आप्पकी मेहनत को और ज्यादा सफल कर सकूं. (क्योंकि अगर मेरा प्रोग्राम बना तो मैं कम से कम 5-7 को तो और साथ ले हे जाऊँगा…. :))

        • Vipin says:

          संदीप जी, सुंदरनगर के लिए कश्मीरी गेट अंतरराज्जीय बस अड्डे से नियमित बसे चलती हैं, वहां पहुंचकर आपको करसोग जाने वाली बस पकडनी है. रात्रि विश्राम के लिए सुंदरनगर रुका जा सकता है जो की एक बड़ा और मनमोहक शहर है. और अगर आप बस से सफ़र कर रहें हैं और मेरी तरह उसी दिन वापसी की योजना हो तो एक बार कृपया सुंदरनगर जाने वाली अंतिम बस का समय याद से पता कर लें………..शुभ यात्रा……

  • Monty says:

    Bhai Vipin,

    tumhari post padhkar kasam se jabardast maja aa gaya. Is wakt aaj shaam ko to vaise hi thand ho rahi hai upar se apne barf ki photo dikhakar thand or badha di.

    kuch yu samajh lo ki is season ki sabse badhiya posting hai ye.

    likhte rahiye.

    • Vipin says:

      मोंटी भाई……आपको पोस्ट अच्छी लगी, तो हम अपने मकसद में कामयाब हो गए………..वैसे हम भी गर्मियों के महिनों में जब पहाड़ों में कभी नहीं जा पाते हैं……..तो ऐसे ही बर्फ की फोटो देखकर ठंडियों का मजा ले लेते हैं……….पोस्ट पदने और टिपण्णी करने के लिए शुक्रिया……….

  • ashok sharma says:

    nice blog , good photographs.

  • D.L.Narayan says:

    Very well written post, Vipin, about places which are not as famous as they rightfully should be. Earlier you had written about the Bijli Mahadev temple and now this gem about the Kamru Nag temple. Also loved the mythological anecdote about the little known Barbareeka, the grandson of the mighty Pandava, Bheema. The photographs are also awesome.

    Your captions too were great. I liked the way your translated terraced farms as “सीढी़नुमा खेत”. However, I wonder why you did not translate a couple of captions like “Valley view” and “Leaving nothing but footprints”.

    • Vipin says:

      Thank you very much DL ji for your kind words…….i believe there are innumerable hidden gems scattered all around the country (some of which are beautifully shared by our fellow Ghumakkars) and the prime reason their being not so famous is the difficult access to these places since most of these places especially in the hills require some hiking which for some people is difficult due to several factors….this is also one of the reason that these places could retain their undefinable beauty and charm and offer you a different experience with almost no crowd, no shops……..

      I had been to Khatu Shyam ji before this trip and had read about Barbarik, but had no idea about his connection with Kamrunag untill i visited Kamrunag. Regarding captions, while seeing the photos these were the only things that came to my mind and translating these thoughts was seeming as if i am doing injustice to the photos…………your comments are always motivating and informative………thanks again for liking the post……….

  • Stone says:

    Lovely, fluid narration Vipin; and beautiful mythological story about the place increased the charm of place and enhanced this post tremendously.

    Thanks for sharing.
    Keep traveling!!!

    • Vipin says:

      Sandeep ji, thank you for reading and enjoying the post. You are true, associated stories really help people connect better, may be there will be a few people who would know Kamrunag, but I am sure there will be many people who would know Khatu Shyam ji………

  • Deepak says:

    ये हुई न एक मस्त ज़बरदस्त पोस्ट | मज़ा आ गया, एक और item जुड़ गया अपनी list में | कहाँ से और कैसे ढूंड निकाली ये जगह भाई ? आपके footprints को हम ज़रूर follow करेंगे |

  • Vipin says:

    दीपक जी, पोस्ट पसंद करने के लिए आभार. अपनी लिस्ट कभी हमारे साथ भी शेयर कीजिये……हम भी लैस एक्सप्लोर्ड जगहों की तलाश में लगे रहते हैं……क्या पता आपके पास इन जगहों का खजाना भरा हो……..मुझे पहाड़ी झीलें और ताल हमेशा से लुभाती रही हैं……..और अपनी पहाड़ी यात्राओं में हमेशा एक ताल को सम्मिलित करने का प्रयास रहता है……ऐसे ही शिकारी देवी की यात्रा के दौरान इस ताल को देखने की योजना थी…….जो उस वक़्त समय की कमी के कारण नहीं पूरी हो पाई…………

    • Deepak says:

      भाई अभी तक तो हम केवल hill stations और छोटे शहरों की ही लिस्ट बना रहे थे, ज्यादा unexplored locations का खज़ाना अभी तैयार नहीं हुआ है | आप सब लोगों की घुमाकड़ी वाली ट्रिप्स पढ़ कर, आज कल ट्रेक्स वाले destinations भी जोड़ने शुरू कर दिए हैं | अभी तक का map आप इस लिंक पे देख सकते हैं , और जो कोई भी चाहे वो मुझे और दिस्तिनतिओन्स/ ट्रेक्स वगेरह सुग्गेस्ट कर सकता है | http://g.co/maps/9e5mp

      • Sanjay Kaushik says:

        बंधु, मैप देखे, सचमुच बहुत बढ़िया काम कर रखा है…..

  • SilentSoul says:

    tks for sharing this unknown but beautiful lake.

  • Harish Bhatt says:

    Very nice description Vipin. The photos are also very nice…Pahadon me ghumakkari ka to maza hi kuch aur hai…

  • Vipin says:

    Thank you for liking the post, Bhattsab……बिलकुल ठीक फ़रमाया आपने…….पहाड़ों में घुमक्कड़ी का कुछ नशा सा होता है…….जिसे छोड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है………

  • Neeraj Jat says:

    विपिन भाई, ये बताओ कि जंजैहली कहां है? कमरुनाग के आसपास ही है या कहीं और है? ये तो पक्का पता है कि इसी घाटी में है। शायद शिकारी देवी को ही जंजैहली कहते हैं। अगर नहीं पता तो पता करके बताना।

    • Vipin says:

      नीरज भाई जंजैहली ( 2150 मीटर), मंडी से करीब 65 किलोमीटर दूर एक शानदार घाटी है जहाँ तक मंडी से बसें मिल जाती हैं. यह घाटी शिकारी देवी, बूढ़ा केदार गुफा व कमरुनाग की ट्रेकिंग के लिए बेस कैंप मानी जाती है, यहाँ से शिकारी देवी लगभग 16 किलोमीटर है. मेने अपनी शिकारी देवी की यात्रा यहीं से शुरू की थी, लेकिन वापस आते समय, मैं करसोग की तरफ उतरा था जहाँ से शिकारी देवी की पैदल दूरी लगभग 22 किलोमीटर है. इस यात्रा में, हालाँकि मैं ना तो बूढ़ा केदार देख पाया और ना ही कमरुनाग. कमरुनाग से शिकारी देवी करीब 10 किलोमीटर के आस पास है……….शिकारी देवी को पूरे मंडी जिले में सबसे ऊँची छोटी का दर्जा हासिल है………और हाँ जंजैहली से लगभग 2 किलोमीटर पहले एक छोटा सा गाँव है ‘पांडव शिला’, जहाँ इसी नाम की एक बहुत बड़ी शिला है. ऐसा माना जाता है कि आप इसे हाथ की एक अंगुली से हिला सकते हैं…….जब मेने कोशिश की तो एक अंगुली तो नहीं पर एक हाथ से तो हिल ही गयी थी……जल्द ही इस रोमांचक यात्रा का विस्तृत वर्णन दूँगा………

  • विपिन भाई आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी. एक नए स्थान का पता चला. कमरुनाग नाम पहली बार सुना हैं. वंहा के बारे में पढ़कर मजा आ गया.

  • नमस्कार विपिन जी , मजा आ गया………….. लगता है यहाँ पर आप दोनों ही गए थे और कोई नहीं.कमरूनाग जील के बारे में जानकारी और घुमाने के लिए धन्यवाद……………

    • Vipin says:

      @ प्रवीण जी, लेख पढने व पसंद करने के लिए शुक्रिया………..

      @ विशाल जी, ठीक कहा आपने उस समय वहाँ हमारे सिवाय और कोई दूसरा आदमजात मौजूद नहीं था………..समय निकालकर लेख पढने के लिए आभार………..

  • Manish Kumar says:

    आनंद आ गया आपके इस रोमांचकारी यात्रा विवरण को पढ़कर। एक नई जगह से रूबरू कराने के लिए धन्यवाद।

  • Nandan says:

    This is a FOG (First on Ghumakkar). Congratulations.

    Beautifully narrated Vipin. You have a great knack of story-telling and you “Must” build on it. The Pauranik details about Barbarik were a great value-add. Bravo.

    I personally think that a more detailed information around, ‘How to Access’, ‘Best time to go’ etc would have befitted further. For someone who is based in North India (like me), ‘Mandi’ doesn’t need any description but considering that our readers are from everywhere, this might help.

    I think it might be better to put this one and the ‘Bijli Mahadev’ and the forthcoming stories on ‘Shikari Devi’ into one single series. Let us know if you want us to put it in the series.

    Finally, I am gonna steal Sanjay’s idea and read it once again, right now :-) and relish it further.

    Brilliant stuff Vipin.

  • arun says:

    bhai mast hai tery pass information cool bhai or update kr apny experince ko thanks bhai

  • Vipin says:

    Thank you Nandanji for your encouraging word, but it is a bit difficult for me to write a series as I am very irregular and a bit lazy also to write the narratives. When it becomes a series, people usually wait for the next story eagerly and then if you are not able to write it early, you do not feel good and at the same time even if you write, you write it in a haste and miss out on many important things.

    Rest i have taken a note of the details on ‘How to access’, ‘The best time to go’ etc…….

  • Sunder.. ati sunder :)

  • altanai says:

    if Life experiences were a currency … ud be a rich man Vipin

  • Sam says:

    Awesome post and the slogan against each pic was the best part. Keep it up brother. All the best.

  • Garima says:

    really awesome wow

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