घà¥à¤®à¤•à¥à¤•डी किसà¥à¤®à¤¤ से मिलती है और इसके लिये कà¥à¤› चीजों का होना बहà¥à¤¤ आवयशà¥à¤• है जिनमे से कà¥à¤› महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ हैं – अचà¥à¤›à¤¾ सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ ,समय, धन और सबसे महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है घà¥à¤®à¤¨à¥‡ का शौक़ । इनमे से किसी à¤à¤• के à¤à¥€ ना होने से घà¥à¤®à¤•à¥à¤•डी मà¥à¤¶à¥à¤•िल है।
मेरे पिता जी à¤à¤• दà¥à¤•ानदार थे इसलिये उनके पास घà¥à¤®à¤¨à¥‡ के लिये समय की कमी होती थी। à¤à¤• दà¥à¤•ानदार के घà¥à¤®à¤¨à¥‡ जाने का मतलब है कि उतने दिनो तक दà¥à¤•ान बनà¥à¤¦, खरà¥à¤šà¤¾ दूगना और आमदनी शà¥à¤¨à¥à¤¯ । इसलिये मेरे पिता जी के घà¥à¤®à¤¨à¥‡ का दायरा सिरà¥à¥ž माता वैषà¥à¤£à¥‹à¤¦à¥‡à¤µà¥€, हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° और गà¥à¤°à¤¹à¤£ के दिनो में कà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° तक सीमित था लेकिन उनकी अमरनाथ यातà¥à¤°à¤¾ में काफ़ी दिलà¥à¤šà¤¸à¥à¤ªà¥€ रहà¥à¤¤à¥€ थी। जब हम काफ़ी छोटे थे तब à¤à¤• बार à¤à¤• अख़बार की कटींग लेकर आये जिसमें अमरनाथ गà¥à¤«à¤¾ में बने हà¥à¤ हिमलिंग की तसà¥à¤µà¥€à¤° थी और हमें इस कठिन यातà¥à¤°à¤¾ के बारे में बताने लगे कि यहाठकोई-2 जाता है और यह यातà¥à¤°à¤¾ बहà¥à¤¤ दà¥à¤°à¥à¤—म है।
यह कटींग मेरे पास आज à¤à¥€ है लेकिन यह अख़बार उरà¥à¤¦à¥‚ में है इसलिये मैं तिथि नहीं पढ पाया। उन दिनो यातà¥à¤°à¤¾ सचमà¥à¤š बहà¥à¤¤ दà¥à¤°à¥à¤—म थी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि ना तो उन दिनों सरकारी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ थी ना ही उन दिनों हिनà¥à¤¦à¥ संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं की ओर से कोई लंगर लगाये जाते थे, खाने-पीने की वसà¥à¤¤à¥à¤à¤ बहà¥à¤¤ मंहगी मिलती थी और ठहरने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ खà¥à¤¦ करनी पड़ती थी। परिवरà¥à¤¤à¤¨ 1996 के बाद आया जब अमरनाथ यातà¥à¤°à¤¾ में पà¥à¤°à¤²à¤¯ आ गया। बरà¥à¥žà¤¿à¤²à¥‡ तà¥à¥žà¤¾à¤¨ से जितने लोग मरे उससे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ लोगों को सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोगों (पिठà¥à¤ ॠऔर घोड़े वाले) ने लà¥à¤Ÿ-पाट के लिये मार डाला। खाने-पीने की वसà¥à¤¤à¥à¤à¤ बहà¥à¤¤ मंहगी बिकने लगी । बचे खà¥à¤šà¥‡ लोग जब वापिस अपने-2 घरों में पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ लगे तो उनके किसà¥à¤¸à¥‡ सà¥à¤¨à¤•र हाहाकर मचा। सामाजिक और हिनà¥à¤¦à¥ संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं ने यातà¥à¤°à¤¾ में लंगर लगाने शà¥à¤°à¥ कर दिये।
यातà¥à¤°à¤¾ पर à¤à¤• –दो आतंकवादी हमलों के बाद सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ के à¤à¥€Â कड़े इनà¥à¤¤à¥›à¤¾à¤® होने लगे और अमरनाथ शà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤¨ बोरà¥à¤¡à¤¼ असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में आया। आजकल यातà¥à¤°à¤¾ पहले से काफ़ी सà¥à¤—म और सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤Â हो गयी है।
बात जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ 1998 की है। मैं इंजीनियरी करने के बाद बेकार था । हमारे शहर से à¤à¤• बस अमरनाथ यातà¥à¤°à¤¾ पर जा रही थी। मेरे पिता जी उन दिनो बिमार थे और घर पर ही रहते थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡à¤‚ मà¥à¤à¤¸à¥‡ कहा कि सारा दिन आवारा घà¥à¤®à¤¤à¤¾ है, अमरनाथ यातà¥à¤°à¤¾ पर ही चला जा। मैं यातà¥à¤°à¤¾ पर जाने के लिठतैयार हो गया। आने जाने और खाने-पीने का खरà¥à¤š घर से मिल रहा था तो कौन मना करता। à¤à¤• साल पहले ही मेरे मामा जी वहाठहोकर आये थे इसलिये यातà¥à¤°à¤¾ की काफ़ी जानकारी मिल चà¥à¤•ी थी। मैने अपने दोसà¥à¤¤ शà¥à¤¶à¥€à¤² मलà¥à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°à¤¾ को यातà¥à¤°à¤¾ पर जाने के लिये तैयार किया और बस में दो सीट बूक करवा दी। तब से à¤à¤¸à¤¾ चसका लगा कि अब हर साल इस यातà¥à¤°à¤¾ के शà¥à¤°à¥ होने की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¤¾ रहà¥à¤¤à¥€ है।
à¤à¤¸à¤¾ कहते हैं कि माठ–बाप अपनी अधà¥à¤°à¥€ इचà¥à¤›à¤¾à¤“ं को अपने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¾ होते देखना चाहà¥à¤¤à¥‡ हैं शायद इसलिये मेरे पिता जी ने मà¥à¤à¤¸à¥‡ इस यातà¥à¤°à¤¾ के लिये कहा।
इस साल 2014 की यातà¥à¤°à¤¾ के लिये पजींकरण मारà¥à¤š से शà¥à¤°à¥ हो गया था और हमने à¤à¥€ कà¥à¤² छ: लोगों का 8 जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ के लिये बालटाल रूट से पजींकरन करवा लिया। मेरे अलावा मेरे दोसà¥à¤¤ शà¥à¤¶à¥€à¤² मलà¥à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°à¤¾, राजू, राजू की पतà¥à¤¨à¤¿ व उसके दो बचà¥à¤šà¥‡ शामिल थे। 6 जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ को अमà¥à¤¬à¤¾à¤²à¤¾ से मालवा à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जमà¥à¤®à¥‚ के लिठनिकलना तय हà¥à¤†à¥¤ तय दिन सà¤à¥€ समय से रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पहà¥à¤à¤š गठऔर तय समय से दो घंटे लेट शाम 6 बजे तक जमà¥à¤®à¥‚ जा पहà¥à¤‚चे।
जमà¥à¤®à¥‚ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से  जà¥à¤µà¥‡à¤²Â चौक (बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड के पास ) तक मैटाडोर से पहà¥à¤à¤š गठ। यहाठतक का किराया 10 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ था। जà¥à¤µà¥‡à¤² चौक पर उतरकर, मौलाना आज़ाद सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¡à¤¿à¤¯à¤® के आगे से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ हà¥à¤ लगà¤à¤— 150 मीटर आगे à¤à¤• तिराहा है जहाठसे à¤à¤—वती नगर के लिठमैटाडोर मिल जाती है, और किराया 5 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ । हम à¤à¥€ उस चौक पर पहà¥à¤‚चे और वहाठसे à¤à¤—वती नगर के लिये दूसरी मैटाडोर मिल गयी.
“अमरनाथ यातà¥à¤°à¤¾ के लिठपहला बेस कैंप जमà¥à¤®à¥‚ में ही है जहाठसे यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठबालटाल व पहलगाम के लिठबसें और छोटे वाहन मिलते हैं। यह बेस कैंप à¤à¤—वती नगर में है। इसे यातà¥à¤°à¥€ निवास à¤à¥€ कहते हैं यह काफी बड़ा बना हà¥à¤† है और à¤à¤• साथ दो हजार यातà¥à¤°à¥€ यहाठठहर सकतें हैं। यातà¥à¤°à¥€ निवास के अंदर ही सà¥à¤Ÿà¥‡à¤Ÿ रोडवेज़ काउंटर , मेडिकल सेंटर तथा à¤à¤• कैंटीन à¤à¥€ है। यहाठवो ही यातà¥à¤°à¥€ पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ हैं जो जमà¥à¤®à¥‚ तक बस या टà¥à¤°à¥‡à¤¨ से आते हैं और उनको बालटाल व पहलगाम के लिठबसें और छोटे वाहन यहॉ से मिल जाते हैं ।
अपने वाहनो से आने वालों को यहाठआने की कोई आवशà¥à¤¯à¤•ता नही, वो सीधा उधमपà¥à¤° के लिये निकल सकते हैं । रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से à¤à¤—वती नगर की दà¥à¤°à¥€ लगà¤à¤— चार किलोमीटर है और बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड से लगà¤à¤— दो किलोमीटर है. वहां जाने के लिठदोनों जगह से सीधे ऑटो à¤à¥€ मिल जातें हैं।â€
थोड़ी ही देर बाद हम लोग à¤à¤—वती नगर पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤ यातà¥à¤°à¥€ निवास के पास बनी कॉलोनी के लोग यातà¥à¤°à¤¾ के दिनों में अपने घरों में कमरे यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को किराये पर दे देते हैं जिससे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤› आमदनी हो जाती है। हमने à¤à¥€ यातà¥à¤°à¥€ निवास में शोर -शराबे में ठहरने के बजाय बाहर रà¥à¤•ना बेहतर समà¤à¤¾ और तीन तीन सौ में दो कमरे ले लिà¤à¥¤Â कमरों में सामान रखकर  मैं और सà¥à¤¶à¥€à¤² , सà¥à¤¬à¤¹ की यातà¥à¤°à¤¾ के लिठबस की टिकट लेने यातà¥à¤°à¥€ निवास में गà¤à¥¤à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ निवास में केवल उनà¥à¤¹à¥€ लोगो को पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने दिया जाता है जिनके पास तय तिथि के पंजीकरण फारà¥à¤® होते हैं। रोडवेज़ काउंटर पर जाकर देखा तो टिकट काउंटर पर लमà¥à¤¬à¥€ लाइन लगी हà¥à¤ˆ थी और लाइन रà¥à¤•ी हà¥à¤ˆ थी। पता करने पर मालà¥à¤® हà¥à¤† की पहले से मौजूद बसें पूरी à¤à¤° चà¥à¤•ी हैं और जो बसें अà¤à¥€ आनी हैं वो कहीं दूर जाम में फसी हà¥à¤ˆ हैं और उनका सà¥à¤¬à¤¹ तक जमà¥à¤®à¥‚ पहà¥à¤‚चना मà¥à¤¶à¥à¤•िल है इसीलिठऔर बà¥à¤•िंग बंद कर दी गयी है। काफी असंतोष होने पर रोडवेज़ का à¤à¤• सीनियर अधिकारी आया और बोला की सà¥à¤¬à¤¹ चार बजे टिकट मिलेगी वो à¤à¥€ यदि बसें यहाठपहà¥à¤à¤š गयी तो , नहीं तो बाहर पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¥‡à¤Ÿ साधन उपलà¥à¤¬à¤§ है आप वहां बà¥à¤• कर सकते हैं।
à¤à¤• घंटे की माथा मचà¥à¤šà¥€ के बाद , बिना टिकट , वापिस आ गà¤à¥¤ à¤à¤• लंगर पर खाना खाया और रात 11 बजे के करीब सà¥à¤¬à¤¹ 3:30 का अलारà¥à¤® लगा सो गठ।
शà¥à¤°à¥€ अमरनाथ जी पवितà¥à¤°Â गà¥à¤«à¤¾ में तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾ के लिà¤Â जरà¥à¤°à¥€Â सलाह
- शà¥à¤°à¥€Â अमरनाथ जी की पवितà¥à¤° गà¥à¤«à¤¾Â दकà¥à¤·à¤¿à¤£Â कशà¥à¤®à¥€à¤°Â में हिमालय के ऊपर 13,500 फीट पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। पवितà¥à¤° गà¥à¤«à¤¾Â जाने के लिà¤Â अधिक ऊंचाई पर टà¥à¤°à¥‡à¤•करने से  अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• ठंड, कम नमी और कम हवा के दबाव का जोखिम रहता है , à¤à¤¸à¥€Â सà¥à¤¤à¤¿à¤¥à¤¿Â में यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¤• तीवà¥à¤°Â परà¥à¤µà¤¤Â बीमारी (A.M.S.) होने काजोखिम रहता है. जब  आप 8,000 फीट (2,500 मीटर) की ऊंचाई से ऊपर चड़ते हैं तो यह बीमारी आपके मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤• और फेफड़ों को पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤à¤•र सकती  है।
- अपनी यातà¥à¤°à¤¾ के लिठअपने साथ परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ मातà¥à¤°à¤¾ में गरà¥à¤® वसà¥à¤¤à¥à¤°, रेन कोट, बरसाती जूते, टॉरà¥à¤š, दसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‡, जैकेट आदि जरूर लेकर चलें। यह सà¤à¥€ वसà¥à¤¤à¥à¤à¤‚ बहà¥à¤¤ जरà¥à¤°à¥€ हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यहाठमौसम का à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ नहीं किया जा सकता और कई बार खिली धूप अचानक बारिश और बरà¥à¤« का रूप ले लेती है और तापमान अचानक काफी गिर सकता है।
- आप के साथ यातà¥à¤°à¤¾ कर रहे सह यातà¥à¤°à¥€ को सà¤à¥€ आवशà¥à¤¯à¤• मदद पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करें।
- ततà¥à¤•ाल राहत के लिठअपने साथ गà¥à¤²à¥‚कोज, डिसà¥à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¨ आदि कà¥à¤› सामानà¥à¤¯ दवा रखें।
- यातà¥à¤°à¤¾ पर अचà¥à¤›à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ करने के लिठसबसे अचà¥à¤›à¤¾ तरीका है à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¿à¤° और धीमी गति बनायें रखें।  तेज चलने से अधिक फायदा नहीं है, खरगोश और कछà¥à¤† की कहानी की शिकà¥à¤·à¤¾ यहाठपूरी तरह लागू होती है
- अपनी जेब में अपना नाम, पता के साथ और साथी यातà¥à¤°à¥€Â के नाम की à¤à¤• परà¥à¤šà¥€Â जरूर  रखें।
- यातà¥à¤°à¤¾ के दौरान अपने साथ पानी की बोतल, सूखे मेवे और à¤à¥à¤¨à¥‡Â  हà¥à¤Â  चने आपात काल के लिà¤Â जरूर  रखें।
- ठंडी हवाओं से तà¥à¤µà¤šà¤¾ की रकà¥à¤·à¤¾Â करने के लिà¤Â आप के साथ कà¥à¤›Â कोलà¥à¤¡ कà¥à¤°à¥€à¤®Â या वैसलीन रखें
Dear Naresh,
It’s great to see you back with your Amarnath Yatra 2014 experience. Your previous log on Amarnath Yatra in English are really helpful for anyone wish to undertake the Yatra. Hope your this Hindi version will also help them as well. You are such a wonderful and helpful person who never fails to help anyone who wish to enquire you about the Amarnath Pilgrimage. I am one of them who was benefited from you log and your personal suggestions.
In this series you have started well, informative too, and I hope that your this Hindi version will also become popular like your previous log in English.
Thank you for sharing.
Thanks Anupam jee for your kind and encouraging word.
I am glad to know that my previous logs on Amarnath yatra have helped you and indeed this the main motto of this site to share one’s travel experiences so that it can help others to prepare for that place.
Thanks again.
नरेश जी,
घुमक्कड़ पर अमरनाथ यात्रा हिन्दी में शायद पहली बार आ रही है. मैं तो बेहद उत्साहित हुं इस पूरी यात्रा कहानी का शुरु से आनंद उठाने के लिए. आज की पहली पोस्ट ही धमाकेदार रही, एक एक शब्द को चाव से पढा मैने. बहुत सुन्दर, सटीक तथा मोहक भाषा में लिखी यह पोस्ट एक कसावट लिए हुए है. पोस्ट की शुरुआत ही बहुत आकर्षक रही. प्रारंभ में पिताजी का प्रसंग, अखबार की कटींग, 1996 से पहले अमरनाथ यात्रा की दुर्गमता एवं रास्ते की कठिनाईयां, सब कुछ पाठकों को मंत्रमुग्ध कर देने के लिए पर्याप्त था. सबसे ज्यादा आनंद आया आपके इस फ़िकरे पर “उन्होनें मुझसे कहा कि सारा दिन आवारा घुमता है, अमरनाथ यात्रा पर ही चला जा” बहुत जीवंत तथा मनोरंजन से भरपूर लेखन शैली.
नरेश जी, एक बात आपसे पुछना है, क्या परिवार के इस यात्रा पर जाना पुर्णत: सुरक्षित है? क्या मैं अपने परिवार के साथ जाने के लिये सोच सकता हुं? (मेरे परिवार के सदस्यों की उम्र आदि से आप सर्वथा परिचित हैं ही). किस किस तरह की मुश्किलें आ सकती हैं? कितने प्रतिशत लोग अपने परिवार/बच्चों के साथ जाते हैं?
आपके प्रत्युत्तर की प्रतिक्षा में….
मुकेश जी, मधुर शब्दों में की गयी होंसला अफजाई के लिए बहुत धन्यवाद ,
वैसे मुझसे पहले, रस्तोगी जी अमरनाथ यात्रा, हिंदी में लिख चुके हैं।
मुकेश जी,परिवार के साथ इस यात्रा पर जाना पुर्णत: सुरक्षित है लेकिन १३ वर्ष से छोटे बच्चे को ले जाने की अनुमति नहीं है इसलिए शिवम का जाना नहीं हो सकता। अधिक ऊंचाई पर ट्रेक करने से कुछ मुश्किलें तो रहती ही हैं लेकिन घबराने की कोई बात नहीं। लाखों लोग हर वर्ष वहाँ जाते हैं।
This is your 10th or even 20 th yatra ? Hats off to you Naresh ! very interesting and informative post…waiting for next parts
Thanks S.S. jee for your kind words.
Sir, last year, my first two attempts for Amarnath Yatra were failed miserably. I succeed in third attempt and completed this in the last leg of journey . Since then I have stopped mentioning the count anywhere because directly or indirectly it shows vanity .
ॐ नमः शिवाय ! नरेश जी,
श्रवण मास में भगवन शिव के पवित्र स्थल श्री अमरनाथजी की यात्रा श्रंखला की प्रथम कड़ी अत्यंत रोचक है. आगामी लेखों में अपने अनुभवों को इसी प्रकार साँझा करते हुए भगवान श्री अमरनाथ जी के दर्शनों का लाभ पाठकों को सुलभ करवाएं.
हिंदी में होने के कारण पाठकों के लिए यह यात्रा वर्णन और अधिक लाभकारी है साथ ही आकर्षक चित्र भी लेख के सौंदर्य को और अधिक बढ़ा रहे है.
आगामी वर्णन की प्रतीक्षा में…
मुनेश मिश्रा जी पोस्ट पढ़ने और कमेंट के माध्यम से प्रोत्साहन करने के लिए बहुत धन्यवाद।
Nice post
Thanks Vivek.
Naresh Sehgal Sir,
Nice post , Good information and precautions about yatra . Next year I will try to go with you.
Thnaks for sharing
Thanks Dear Mahesh,
You are welcome for Yatra.
Naresh jee. Last year I have read your blog on Amarnath yatra and that helped me too much for this yatra. Writing this time in Hindi is a good decision as it will help the more persons. Thanks for sharing. Waiti
Thanks Sharma ji for liking the post.
Thank you Naresh. For me the biggest highlight of the log was the tip around going slow and steady and a firm reminder of the legendary story. :-)
Thanks Nandan Jee..
Nice description Naresh Bhai, I undertook the Yatra in 2012 and that was a life time experience. AMS is bound to happen and it was rightly advised by you. The most impressive is your description about the condition in the past. Well compiled and good to know, I believe it was really once in a life time affair those days.
Keep traveling
Ajay
Thanks Ajay Jee for your kind words..
जय बाबा बम लहरी, जय बाबा बर्फानी पंडितजी, यात्रा विवरण से पहले पूज्य कर्मयोगी पिताश्री को याद किया तथा उनके अनुग्रह पर पहली यात्रा को स्मरण कर जो यात्रा वृतांत आपने शुरू किया निश्चय ही इसकी इतिश्री भारी-भरकम होगी ऎसा मेरा विश्वास है. 1996 की प्रलय के समय मैं बाबा बर्फानी की गुफा और पंचतरणी के बीच था, क्षमा चाहूँगा जैसा की आपने टट्टू-पिट्ठू-घोडे वालों के लिए कहा सभी ऐसे नहीं थे हां जिनकी दुकानें बच गयी थीं उन्होंने यात्रीयों को लूटने में कोई कोर-कसर नहीं छोडी. दूसरी बात लंगर भी हुआ करते थे मगर इतनी संख्या में नहीं होते थे और लंगरों से पहले हमारे फौजी-लांगरी पहलगाँव वाले रास्ते में यात्रीयों को दाल-रोटी व चाय-पकोडे अपने केंपों में भंडारा करके खिलाया करते थे. भगवान उस ‘सामना’ के शेर की दिवंगत आत्मा को शांति दे जिसने मुंबई से बैठे कश्मीर के ‘तथाकथित जेहादियों द्वारा श्रीअमरनाथ यात्रा का विरोध करने पर चेतावनी दी थी कि यदि मेरा एक भी अमरनाथ यात्री मारा गया तो मुंबई से हज-यात्रा नहीं निकलने दूँगा जिसके फलस्वरूप यात्रा के पूरे रास्ते में यात्रीयों के स्वागत हेतू उन्हीं लोगों ने बडे-बडे बैनर टाँग दिए. उसके बाद लंगर सेवादारों की संख्या में लगातार बडौतरी होती चली गयी और आज ये आलम है कि सेवादार क़दम-क़दम पर यात्रीयों के लिए पलकें बिछाए सेवा के लिए आतुर दिखतें हैं.
सुंदर चित्र तथा विस्तृत जानकारी, धन्यवाद.
त्रिदेव जी ,यदि आप 1996 में वहां थे तो आपसे बेहतर कौन जान सकता है कि वहाँ क्या हुआ था। मैंने तो वो लिखा जो लोगों से सुना। अधिक जानकारी के लिए आपका बहुत धन्यवाद। अपने व्यस्त समय के बावजूद टिप्पणी कर जो मेरी होंसला अफजाई की, इसके लिए आपका बहुत -बहुत धन्यवाद।
बहुत ही उत्तम और उपयोगी जानकारी पूर्ण रोचक आलेख , हिन्दी भाषा में अमरनाथ यात्रा का विवरण बहुत कम मिलता है और आपने सभी जानकारी अत्यंत अच्छे से दी है। लिखते रहिए।
उपयोगी जानकारी… जय महाकाल !!
हर – हर महादेव !!
उम्मीद है आपके मार्गदर्शन से कुछ हेल्प मिले
!! हरि ॐ तत्सत !!