अगले दिन तडके उठके गंगोतà¥à¤°à¥€ की बस पकड़ी जिसने हमें १२.०० के आसपास गंगोतà¥à¤°à¥€ उतार दिया, गंगोतà¥à¤°à¥€Â में गढ़वाल मंडल का बहà¥à¤¤ ही खूबसूरत रेसà¥à¤Ÿ हाउस है, यहाठपर à¤à¥€ हम दोनों ने अपनी तीन दिन की और आने वाले गà¥à¤°à¥à¤ª की बà¥à¤•िंग à¤à¥€ करवाई.
गंगोतà¥à¤°à¥€ हिंदà¥à¤“ं के पावन चार धामों मे से à¤à¤• है इसका धारà¥à¤®à¤¿à¤• और सांसà¥à¤•ृतिक महतà¥à¤µ सà¤à¥€ को आलौकिक करता है धारà¥à¤®à¤¿à¤• संदरà¥à¤ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° राजा सगर ने देवलोक पर विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिये à¤à¤• यजà¥à¤ž किया यजà¥à¤ž का घोडा़ इंदà¥à¤° ने चà¥à¤°à¤¾ लिया राजा सगर के सारे पà¥à¤¤à¥à¤° घोड़े की खोज में निकल पडे. घोड़ा पाताल लोक में मिला जो à¤à¤• ऋषि के समीप बà¤à¤§à¤¾ था. सगर के पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ ने सोचा की ऋषि ने ही घोड़े को पकडा है इस पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ऋषि का अपमान किया तपसà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¤ ऋषि ने अपनी आà¤à¤–ें खोली और कà¥à¤°à¥‹à¤§ से सगर के साठहज़ार पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को जलाकर à¤à¤¸à¥à¤® कर दिया और वह मृत आतà¥à¤®à¤¾à¤à¤ à¤à¥‚त बनकर à¤à¤Ÿà¤•ने लगीं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनका अंतिम संसà¥à¤•ार नहीं हो पाया था. à¤à¤—ीरथ जो राजा दिलीप के पà¥à¤¤à¥à¤° थे. उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ अपने पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ का अंतिम संसà¥à¤•ार करने का निशà¥à¤šà¤¯ किया तथा गंगा को पृथà¥à¤µà¥€ पर लाने का पà¥à¤°à¤£ किया जिससे उनके अंतिम संसà¥à¤•ार की रीतिपूरà¥à¤£ कर राख को गंगाजल में पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ किया जा सके. और à¤à¤Ÿà¤•ती आतà¥à¤®à¤¾à¤“ं को मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो. à¤à¤—ीरथ ने à¤à¤—वान बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ की घोर तपसà¥à¤¯à¤¾ की ताकि गंगा को पृथà¥à¤µà¥€ पर लाया जा सके. बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ कठोर तपसà¥à¤¯à¤¾ देखकर पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤¯à¥‡ और गंगा को पृथà¥à¤µà¥€ पर अवतरित होने को कहा ताकि सगर के पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की आतà¥à¤®à¤¾à¤“ं की मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ संà¤à¤µ हो. उस समय गंगा ने कहा कि इतनी ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ से पृथà¥à¤µà¥€ पर गिरने से पृà¥à¤¥à¥à¤µà¥€ मेरा इतना वेग नहीं सह पाà¤à¤—ी. तब à¤à¤—ीरथ ने à¤à¤—वान शिव से निवेदन किया और à¤à¤—वान शिव ने अपनी खà¥à¤²à¥€ जटाओं में गंगा के वेग को रोक कर à¤à¤• लट खोल दी जिससे गंगा की पृथà¥à¤µà¥€ पर अविरल रà¥à¤ª से पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ हà¥à¤ˆ और सगर-पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का उदà¥à¤§à¤¾à¤° हà¥à¤† गंगोतà¥à¤°à¥€ वह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है जो गंगा का उदà¥à¤—म सà¥à¤¥à¤² बना.
यहाठपर शंकराचारà¥à¤¯Â ने गंगा देवी की à¤à¤• मूरà¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ की थी। जहां इस मूरà¥à¤¤à¤¿ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ हà¥à¤ˆ थी वहां 18वीं शती ई. में à¤à¤• गà¥à¤°à¤–ा अधिकारी ने मंदिर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करा दिया है। इसके निकट à¤à¥ˆà¤°à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ का à¤à¤• मंदिर है। इसे à¤à¤—ीरथ का तपसà¥à¤¥à¤² à¤à¥€ कहते हैं। जिस शिला पर बैठकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तपसà¥à¤¯à¤¾ की थी वह à¤à¤—ीरथ शिला कहलाती है। उस शिला पर लोग पिंडदान करते हैं। गंगोतà¥à¤°à¥€ में सूरà¥à¤¯, विषà¥à¤£à¥, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ आदि देवताओ के नाम पर अनेक कà¥à¤‚ड हैं।
à¤à¤—ीरथ शिला से कà¥à¤› दूर पर रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¶à¤¿à¤²à¤¾ है। जहां कहा जाता है कि शिव ने गंगा को अपने मसà¥à¤¤à¤• पर धारण किया था। इसके निकट ही केदारगंगा, गंगा में मिलती है। इससे आधी मील दूर पर वह पाषाण के बीच से होती हà¥à¤ˆ 30-35 फà¥à¤Ÿ नीचे पà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤¤ के रूप में गिरती है। यह पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª नाला गौरीकà¥à¤‚ड कहलाता है। इसके बीच में à¤à¤• शिवलिंग है जिसके ऊपर पà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤¤ के बीच का जल गिरता रहता है।
होटल वाले से गौमà¥à¤– की जानकारी ली तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया की अà¤à¥€ १ बजा है आप लोग à¤à¥‹à¤œà¤µà¤¾à¤¸à¤¾ के लिठनिकल जाये जो की गौमà¥à¤– से पहले पड़ता है और गढ़वाल मंडल के होटल के साथ और à¤à¥€ होटल वहां पर है, हमने अपना जरà¥à¤°à¥€ सामान लिया और चल दिठगौमà¥à¤– की और. गंगोतà¥à¤°à¥€ से चलते ही à¤à¤• गेट आया जहाठहमारी तलाशी ली गयी की हमारे पास पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤• का सामान है की नहीं और कितना है, हमारे पास २ पानी की बोतल थी तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमसे १०० रूपये मांगे की जब आप वापस आओगे तो आप के पास दोनों पानी की बोतल होनी चाहिये और आपको आपके पैसे वापस मिल जायेगे. हमने पूछा की à¤à¤¸à¤¾ कियॠतो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया की वो लोग सरकार की तरफ से है और गौमà¥à¤– की सफाई की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ उन लोगो पे है, वो हर यातà¥à¤°à¥€ को चेक करते है की पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤• का सामान कितना है और १ सामान की ५० रूपये लेते है, अगर वापसी मे कोई अपना सामान वापस नहीं लाता तो वो पैसे वापस नहीं देते है और उन पैसो का इसà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤² गौमà¥à¤– की साफ सफाई मे खरà¥à¤š कर देते है, हर रोज़ वो गौमà¥à¤– जाते है और जितना à¤à¥€ पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤• का कूड़ा उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मिलता है वो उसे गंगोतà¥à¤°à¥€ ला कर जला देते है जिसका हिसाब वहां लगे बोरà¥à¤¡ पर लिखा होता है की कितना कूड़ा आज इकà¥à¤•ठा किया और जलाया. उन लोगो के जसà¥à¤¬à¥‡ को सलाम. ( मेरा अनà¥à¤°à¥‹à¤§ उन सà¤à¥€ से है जो गौमà¥à¤– जाते है की जो à¤à¥€ पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤• का कूड़ा है उसे अपने साथ वापस लाये और इस नेक काम में अपना सहियोग दे)
खैर आगे के यातà¥à¤°à¤¾ चालू रखी, जो मेरे साथ जो थे वह फौजी थे, मै उनका चलने मे मà¥à¤•ाबला नहीं कर पा रहा था, काफी चलने के बाद मैंने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कहा की आप चलते रहो मै आराम आराम से आऊंगा, पहाड़ी होने के बावजूद मै अपने आप को बहà¥à¤¤ कमजोर महसूस कर रहा था ( दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ मà¥à¤à¥‡ जयादा चलने के आदत नहीं है). करीब १-२ किलोमीटर चलने के बाद मà¥à¤à¥‡ चलने मे बहà¥à¤¤ परेशानी होने लगी कमर के नीचे का हिसà¥à¤¸à¤¾ बहà¥à¤¤ दरà¥à¤¦ कर रहा था, जब दरà¥à¤¦ बरà¥à¤¦à¤¾à¤¶ से बाहर हो गया तो मै à¤à¤• पतà¥à¤¥à¤° पर बठे गया, करीबन १० मिनट के बाद मà¥à¤à¥‡ आगे से à¤à¤• अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ जोड़ा आता दिखा उन लोगो ने मà¥à¤à¥‡ बैठा देख उसनका कारण पूछा, मेरे बताने पे उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤› गोली खाने के लिठऔर लगाने के लिठटयूब दी, और वो चले गà¤, करीब १० मिनट के बाद जैसे दरà¥à¤¦ था ही नहीं, अपनी यातà¥à¤°à¤¾ आगे जारी करते हà¥à¤ और पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¤à¤¿ का आनंद लेते हà¥à¤ मै चलता रहा, रसà¥à¤¤à¥‡ मे टेंट वाली कई दà¥à¤•ाने à¤à¥€ थी जहाठआराम करने की और खाने पीने की à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ थी. à¤à¤• बात जो सामने आई की कई टेंट साधà¥à¤“ के à¤à¥€ थे जिसमे कई अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ थे, पता चला की वह १ महीने से उस साधू के साथ है, यातà¥à¤°à¤¾ मे साथ साथ à¤à¤¾à¤—ीरथी जो कà¤à¥€ पास तो कà¤à¥€ दूर होती जा रही थी, खैर किसी तरह मे à¤à¥‹à¤œà¤µà¤¾à¤¸à¤¾ पहà¥à¤š गया, वहां गढ़वाल मंडल के रेसà¥à¤Ÿ हाउस मे अपने लिठà¤à¤• बेड़ à¤à¥€ बà¥à¤• करा दिया मà¥à¤à¥‡ अपने साथ का फौजी नजर नहीं आ रहा था. थोड़ी ही देर मे वो मà¥à¤à¥‡ दà¥à¤¸à¤°à¥‡ गेसà¥à¤Ÿ हाउस से आते दिखाई दिà¤, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया की वो दà¥à¤¸à¤°à¥‡ गेसà¥à¤Ÿ हाउस में अपनी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करा चà¥à¤•े है और मेरा ही इंतजार कर रहे थे.
à¤à¥‹à¤œ पतà¥à¤° विषयक जानकारी:(दैनिक जागरण से साà¤à¤¾à¤°)हमारे देश के कई पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µ संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ में à¤à¥‹à¤œà¤ªà¤¤à¥à¤° पर लिखी गई सैकड़ों पांडà¥à¤²à¤¿à¤ªà¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रखी है। जैसे हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² कांगड़ी विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ का संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯à¥¤ कालीदास ने à¤à¥€ अपनी कृतियों में à¤à¥‹à¤œ-पतà¥à¤° का उलà¥à¤²à¥‡à¤– कई सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर किया है। उनकी कृति कà¥à¤®à¤¾à¤°à¤¸à¤‚à¤à¤µà¤®à¥ में तो à¤à¥‹à¤œà¤ªà¤¤à¥à¤° को वसà¥à¤¤à¥à¤° के रूप में उपयोग करने का जिकà¥à¤° à¤à¥€ है। à¤à¥‹à¤œà¤ªà¤¤à¥à¤° का उपयोग पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ रूस में कागज की मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ ‘बेरेसà¥à¤¤à¤¾’ के रूप में à¤à¥€ किया जाता था। दरअसल, à¤à¥‹à¤œà¤ªà¤¤à¥à¤° à¤à¥‹à¤œ नाम के वृकà¥à¤· की छाल का नाम है, पतà¥à¤¤à¥‡ का नहीं। इस वृकà¥à¤· की छाल ही सरà¥à¤¦à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में पतली-पतली परतों के रूप में निकलती हैं, जिनà¥à¤¹à¥‡ मà¥à¤–à¥à¤¯ रूप से कागज की तरह इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² किया जाता था। à¤à¥‹à¤œ वृकà¥à¤· हिमालय में 4,500 मीटर तक की ऊंचाई पर पाया जाता है। यह à¤à¤• ठंडे वातावरण में उगने वाला पतà¤à¤¡à¤¼à¥€ वृकà¥à¤· है, जो लगà¤à¤— 20 मीटर तक ऊंचा हो सकता है। à¤à¥‹à¤œ को संसà¥à¤•ृत में à¤à¥‚रà¥à¤œ या बहà¥à¤µà¤²à¥à¤•ल कहा गया है। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड में गंगोतà¥à¤°à¥€ के रासà¥à¤¤à¥‡ में 14 किलोमीटर पहले à¤à¥‹à¤œà¤µà¤¾à¤¸à¤¾ आता है। à¤à¥‹à¤œà¤ªà¤¤à¥à¤° के पेड़ों की अधिकता के कारण ही इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ का नाम à¤à¥‹à¤œà¤µà¤¾à¤¸à¤¾ पड़ा था, लेकिन वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में इस जगह à¤à¥‹à¤œ वृकà¥à¤· गिनती के ही बचे है। यही हाल गंगोतà¥à¤°à¥€ केडनास दरà¥à¤°à¥‡ का à¤à¥€ है।2007 में डेकà¥à¤•न हेरालà¥à¤¡ में छपी रिपोरà¥à¤Ÿ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° यह पेड़ विलà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¿ की कगार पर है। इसे सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ खतरा कांवडियों और परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों से है, जो गंगोतà¥à¤°à¥€ का पानी लेने आते है और à¤à¥‹à¤œ वृकà¥à¤· को नà¥à¤•सान पहà¥à¤‚चाते है।
पहाड़ो का घà¥à¤ª अà¤à¤§à¥‡à¤°à¤¾, à¤à¥‹à¤œà¤µà¤¾à¤¸à¤¾ के होटलों के अलावा कहीं लाइट नहीं थी, खामोशी को चीरती à¤à¤¾à¤—ीरथी जैसे कहीं पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ की जलà¥à¤¦à¥€ में थी, खैर ठणà¥à¤¡ और थकन की वजह से और कà¥à¤› नहीं देख पाया. होटल में और à¤à¥€ यातà¥à¤°à¥€ थे, अपना पहाड़ी हà¥à¤¨à¤° और होटल में काम करना आज काम आया जलà¥à¤¦ ही वहां के करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹ से दोसà¥à¤¤à¥€ कर ली, फायदा .. १ गरम बालà¥à¤Ÿà¥€ पानी और खाने के लिया उन लोगो का बना खाना जो घर जैसा था बिलकà¥à¤² मà¥à¤«à¥à¤¤. à¤à¤• करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ जो वहां खाना बनता था उसने मà¥à¤à¤¸à¥‡ गढ़वाली मे बात करनी शरू करी, ( हमारी बोली ( पौड़ी वाली) और उनकी बोली (टेहरी वाली) में काफी फरà¥à¤• है, थोडा बहà¥à¤¤ जो समठआया उस से पता चला की उस की रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ हमारे गाà¤à¤µ के पास की है, और जब मैंने उसे बताया की मै यहाठके बाद अपने गाà¤à¤µ जाऊंगा तो वो काफी खà¥à¤¶ हà¥à¤† उसने कहा की उसकी चिटà¥à¤Ÿà¥€ अगर हो सके तो उस गाà¤à¤µ के बाज़ार में दे देना, मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤¯à¤¾ दिकà¥à¤•त होती अरे à¤à¤¾à¤ˆ वो बाज़ार हमारे रसà¥à¤¤à¥‡ में जो था. खैर रात काफी हो गयी थी, तो वारà¥à¤¤à¤¾à¤²à¤¾à¤ª को विराम देते हà¥à¤ मैंने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कहा की वो मà¥à¤à¥‡ सà¥à¤¬à¤¹à¥‡ ४ बजे उठा दे गौमà¥à¤– के लिà¤.
सà¥à¤¬à¤¹à¥‡ १ गरम बालà¥à¤Ÿà¥€ पानी के साथ पञà¥à¤š सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ किया, बाहर गया तो देखा की वो ( कà¥à¤•) à¤à¤• खचà¥à¤šà¤°Â के साथ तैयार था, मैंने कहा की इसकी कà¥à¤¯à¤¾ जरà¥à¤°à¤¤ है तो उसने कहा की आप जब à¤à¥‹à¤œà¤µà¤¾à¤¸à¤¾ आ रहे थे तो मैंने आपको देखा था आपको चलने मे परेशानी हो रही थी और आगे का रासà¥à¤¤à¤¾ और कठिन है और ये रेसà¥à¤Ÿ हाउस का की खचà¥à¤šà¤°Â है जो सामान लाने के लिठरखा है, मैं à¤à¥€ चलूà¤à¤—ा आपके साथ… अंधे को कà¥à¤¯à¤¾ चाहिये दो रोटी ( ऑंखें वाला dialog पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ हो गया है), तो जी हम तीनो चल पड़े गौमà¥à¤– की और.
सà¥à¤¬à¤¹à¥‡ जलà¥à¤¦à¥€ निकले थे पर अकेले नहीं थे बहà¥à¤¤ सारे यातà¥à¤°à¥€ à¤à¥€ थे, गौमà¥à¤–, गौमà¥à¤– दिल मे जपते जपते आगे बढ़ते रहे, फिर à¤à¤• जगह खचà¥à¤šà¤° को रोका गया की इस से आगे की यातà¥à¤°à¤¾ पैदल ही करनी पड़ेगी, कमर कस कर आगे चले. आगे की यातà¥à¤°à¤¾ सच मे कठिन है बड़ी बड़ी चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को पार करना पड़ रहा था, à¤à¤¾à¤—ीरथी की गरà¥à¤œà¤¨à¤¾ और वेग बढ़ता जा रहा था. चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से गौमà¥à¤– नजर आने लगा था.
जय जय à¤à¤—ीरथ ननà¥à¤¦à¤¿à¤¨à¤¿, मà¥à¤¨à¤¿-चय चकोर-चनà¥à¤¦à¤¨à¤¿,
नर-नाग-बिबà¥à¤§-बनà¥à¤¦à¤¿à¤¨à¤¿ जय जहनॠबालिका।
बिसà¥à¤¨à¥-पद-सरोजजासि, ईस-सीसपर बिà¤à¤¾à¤¸à¤¿,
तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¤¥ गासि, पà¥à¤¨à¥à¤°à¥‚रासि, पाप-छालिका।1।
बिमल बिपà¥à¤² बहसि बारि, सीतल तà¥à¤°à¤¯à¤¤à¤¾à¤ª-हारि,
à¤à¤à¤µà¤° बर, बिà¤à¤‚गतर तरंग-मालिका।
पà¥à¤°à¤œà¤¨ पूजोपहार, सोà¤à¤¿à¤¤ ससि धवलधार,
à¤à¤‚जन à¤à¤µ-à¤à¤¾à¤°, à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿-कलà¥à¤ªà¤¥à¤¾à¤²à¤¿à¤•ा।2।
थà¥à¤¨à¤œ तटबासी बिहंग, जल-थल-चर पसà¥-पतंग,
कीट,जटिल तापस सब सरिस पालिका।
तà¥à¤²à¤¸à¥€ तव तीर तीर सà¥à¤®à¤¿à¤°à¤¤ रघà¥à¤µà¤‚स-बीर,
बिचरत मति देहि मोह-महिष-कालिका।3।
गंगोतà¥à¤°à¥€ से 19 किलोमीटर दूर 3,892 मीटर की ऊंचाई पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ गौमà¥à¤– गंगोतà¥à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° का मà¥à¤¹à¤¾à¤¨à¤¾ तथा à¤à¤¾à¤—ीरथी नदी का उदà¥à¤—म सà¥à¤¥à¤² है। कहते हैं कि यहां के बरà¥à¤«à¤¿à¤²à¥‡ पानी में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने से सà¤à¥€ पाप धà¥à¤² जाते हैं।
25 किलोमीटर लंबा, 4 किलोमीटर चौड़ा तथा लगà¤à¤— 40 मीटर ऊंचा गौमà¥à¤– अपने आप में à¤à¤• परिपूरà¥à¤£ माप है। इस गौमà¥à¤– गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° में à¤à¤—ीरथी à¤à¤• छोटी गà¥à¤«à¤¾à¤¨à¥à¤®à¤¾ ढांचे से आती है। इस बड़ी वरà¥à¤«à¤¾à¤¨à¥€ नदी में पानी 5,000 मीटर की ऊंचाई पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¤• बेसिन में आता है जिसका मूल पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ ढलान पर से संतोपंथ समूह की चोटियों से है।
यातà¥à¤°à¤¾ जारी है …….
मेरे भाई आपको बहुत बहुत बधाई ………..एक तो हिंदी और दूसरी जबरदस्त यात्रा वृतांत ………पहली और इस पोस्ट दोनो में फेाटो की कोई जरूरत नही है । हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी बिना गाने की फिल्मे बनी हैं और हिट रही हैं । ये फोटो वाली लकीर तेा हम खूब पीट रहे हैं तुम ऐसे ही लिखते रहो कस कस के
बहुत खूब राकेश जी , गौमुख यात्रा का इतना अच्छा वर्णन. भोजपत्र के बारे में जानकारी देने के लिए धन्यवाद, मैं हाल ही में गंगोत्री गया था. गौमुख जाने की बहुत इच्छा थी. लेकिन समयाभाव के कारण नहीं जा सका. परन्तु आपकी पोस्ट पढ़कर लगा में भी आपके साथ हूँ. साथ ही गौमुख जाने की इच्छा फिर बलबती होने लगी है. देखो कब जाना हो. आगे की यात्रा के बारे में जाने की उत्सुकता है. जल्दी ही लिखिए.
राकेश जी, गंगोत्री और गौमुख यात्रा के विवरण बहुत ही दिलचस्प रहा.
अगर वर्णन के साथ चंद तस्वीरें भी जोड़ लेते तो इस वृत्तान्त का शान और भी बढ़ जाता
मनु जी, आनंद जी और नारायण जी आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद्, की लेख आपको पसंद आया.
आप के लेख ने दो साल पहले की याद ताज़ा कर दी | अब गोमुख से 03 kilometer पहले ही रोक देते हैं |ग्लोबल वॉरमिंग के कारण ग्लेशियर पिघल रहें है |
सेमवाल जी, मैं इसी महीने गौमुख गया था और गौमुख तक का परमिट होने के बावजूद गौमुख ग्लेशियर पर चढकर, उसे पार करके तपोवन तक जा पहुंचा था। हालांकि हमने दो दिन फालतू लगाये, तो इसके बदले में हमें मामूली सा जुर्माना देना पडा। नहीं तो हमें तो रास्ते भर कोई रोकने वाला नहीं मिला।
hamare desh mein law & order bas paper mein hi hai :-)
सब कुछ बेहतरीन था
Hi Rodneyrock,
Hi Rodneyrock,
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बहुत अच्छा लिखा है भाई . भोजवासा , गोमुख जाना ही पड़ेगा
फोटू??????
केवल फोटू देखने ही मैं आया था, नहीं तो आता ही नहीं। निराश हूं मैं।
पहाड़ी होने के बावजूद मै अपने आप को बहुत कमजोर महसूस कर रहा था ( दोस्तों मुझे जयादा चलने के आदत नहीं है)
इसमें आदत की कोई बात नहीं है। यह यात्रा 3000 मीटर से शुरू होती है और 4000 मीटर तक जाती है। इतनी ऊंचाई पर साधारण आदमी कभी नहीं चल सकता। मैंने ऐसे ऐसे लोग देखे हैं जो मसूरी (2000 मीटर) पर ही हवा की कमी कहकर हांफने लगते हैं। आप कमजोर महसूस कर रहे थे, इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। आप अगले दिन भोजबासा से आगे गये थे, तो आप अपेक्षाकृत आसानी से चले होंगे।
नीरज जी आपकी निराशा का कोई समाधान नहीं है. बाकी ये आपने सही कहा की भोजवासा से आगे दिक्कत नहीं हुई
यात्रा चलती रहे राकेश भाई | :-)
प्लास्टिक के विषय पर मैं आपके साथ हूँ, जब भी ७-ताल में दुबकी लगता हूँ तो कोशिश करता हूँ के कम से कम एक दो पन्नी किनारे में कर दी जाए | भोजपत्र के बारे में नहीं मालूम था , धन्यवाद | अगले पड़ाव के इंतज़ार में |
नंदन, शायद आपने भी वो कहानी पढ़ी होगी जिसमे एक छोटा लड़का समुंदर के किनारे पे पड़ी जिन्दा मछलियो को वापस समुंदर में फेक रहा था जो की लहरों के साथ किनारे पे आ गयी थी, एक आदमी ने उसके कहा की इतनी मछलियों के मरने से समुंदर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लड़के ने एक मछली को उठा के समुंदर में फ़ेक दिया और उस आदमी से कहा की इसको फर्क पड़ेगा.
साफ़ सुथरी जगह तो सभी चाहते है, पर पहल कोई नहीं करता.
अगर आप की तरह हर कोई १-२ पन्नी भी हटता है तो वो दिन दूर नहीं जब हमे एक साफ सुथरा, प्रदुषण मुक्त भारत हमें मिलेगा.