मैं शिवखोड़ी कि यात्रा पर कई बार जा चुका हूँ. जब भी वैष्णोदेवी जाता हूँ मैं वंहा जाने कि जरुर कोशिस करता हूँ. मैंने यंहा पर अपनी अलग यात्राओ के चित्र और अनुभव डालने कि कोशिस कि हैं. फोटो पुराने कैमरे से लिए गए हैं. और उनको स्कैन करके डाला हैं. हम लोग कटरा से सुबह के समय ही शिवखोड़ी के लिए निकल जाते हैं. सुबह से ही बारिश चल रही थी. एक बार तो कार्यक्रम निरस्त भी कर दिया था. पर फिर भोले बाबा का नाम लेकर चल पड़े. रास्ते में चिनाब नदी पड़ती हैं. जिसे हिमाचल में चंद्र भागा बोलते हैं. बारिश के कारण नदी पूरे उफान पर थी.
चिनाब (चंद्र – भागा ) नदी का उफनता हुआ जल
पहाडो के ऊपर बादल
रास्ते में एक स्थान पर नाश्ते के लिए रुक जाते हैं. हलवाई कि दुकान पर गरमागरम छोले भटूरे बन रहे थे. बस क्या था हमारे जैन साहब का हलवाई पन जाग उठा और लगे भटूरे तलने. अच्छी तरह से पेट पूजा करने के बाद आगे कि यात्रा पर निकल पड़ते हैं.
हमारे जैन साहब भटूरे तलते हुए
कुछ शिवखोड़ी के बारे में
शिवखोड़ी गुफ़ा जम्मू-कश्मीर राज्य के रियासी ज़िले’ में स्थित है। यह भगवान शिव के प्रमुख पूज्यनीय स्थलों में से एक है। यह पवित्र गुफ़ा 150 मीटर लंबी है। शिवखोड़ी गुफ़ा के अन्दर भगवान शंकर का 4 फीट ऊंचा शिवलिंग है। इस शिवलिंग के ऊपर पवित्र जल की धारा सदैव गिरती रहती है। यह एक प्राकृतिक गुफ़ा है। इस गुफ़ा के अंदर अनेक देवी -देवताओं की मनमोहक आकृतियां है। इन आकृतियों को देखने से दिव्य आनन्द की प्राप्ति होती है। शिवखोड़ी गुफ़ा को हिंदू देवी-देवताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है।
पहाड़ी भाषा में गुफ़ा को ‘खोड़ी’ कहते है। इस प्रकार पहाड़ी भाषा में ‘शिवखोड़ी’ का अर्थ होता है- भगवान शिव की गुफ़ा।
शिवखोड़ी तीर्थस्थल हरी-भरी पहाड़ियों के मध्य में स्थित है। यह रनसू से 3.5 किमी. की दूरी पर स्थित है। रनसू शिवखोड़ी का बेस कैम्प है। यहाँ से पैदल यात्रा कर आप वहाँ तक पहुंच सकते हैं। रनसू तहसील रियासी में आता है, जो कटरा से 80 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। कटरा वैष्णो देवी की यात्रा का बेस कैम्प है। जम्मू से यह 110 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जम्मू से बस या कार के द्वारा रनसू तक पहुँच सकते है। वैष्णो देवी से आने वाले यात्रियों के लिए जम्मू-कश्मीर टूरिज़्म विभाग की ओर से बस सुविधा भी मुहैया कराई जाती है। कटरा से रनसू तक के लिए हल्के वाहन भी उपलब्ध हैं। रनसू गाँव रियासी-राजौरी मार्ग से 6 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
जम्मू से प्राकृतिक सौंदर्य का आंनद उठाकर शिवखोड़ी तक जा सकते है। जम्मू से शिवखोड़ी जाने के रास्ते में काफ़ी सारे मनोहारी दृश्य मिलते हैं, जो कि यात्रियों का मन मोह लेते है। कलकल करते झरने, पहाड़ी सुन्दरता आदि पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
इतिहास
पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में भी इस गुफ़ा के बारे में वर्णन मिलता है। इस गुफ़ा को खोजने का श्रेय एक गड़रिये को जाता है। यह गड़रिया अपनी खोई हुई बकरी खोजते हुए इस गुफ़ा तक पहुँच गया। जिज्ञासावश वह गुफ़ा के अंदर चला गया, जहाँ उसने शिवलिंग को देखा। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शंकर इस गुफ़ा में योग मुद्रा में बैठे हुए हैं। गुफ़ा के अन्दर अन्य देवी-देवताओं की आकृति भी मौजूद हैं।
गुफ़ा का आकार
गुफ़ा का आकार भगवान शंकर के डमरू के आकार का है। जिस तरह से डमरू दोनों तरफ से बड़ा होता है और बीच में से छोटा होता है, उसी प्रकार गुफ़ा भी दोनों तरफ़ से बड़ी है और बीच में छोटी है। गुफ़ा का मुहाना 100 मी. चौड़ा है। परंतु अंदर की ओर बढ़ने पर यह संकीर्ण होता जाता है। गुफ़ा अपने अन्दर काफ़ी सारे प्राकृतिक सौंदर्य दृश्य समेटे हुए है।
गुफ़ा का मुहाना काफ़ी बड़ा है। यह 20 फीट चौड़ा और 22 फीट ऊँचा है। गुफ़ा के मुहाने पर शेषनाग की आकृति के दर्शन होते है। अमरनाथ गुफा के समान शिवखोड़ी गुफ़ा में भी कबूतर दिख जाते हैं। संकीर्ण रास्ते से होकर यात्री गुफ़ा के मुख्य भाग में पहुँचते हैं। गुफा के मुख्य स्थान पर भगवान शंकर का 4 फीट ऊँचा शिवलिंग है। इसके ठीक ऊपर गाय के चार थन बने हुए हैं, जिन्हें कामधेनु के थन कहा जाता है। इनमें से निरंतर जल गिरता रहता है।
शिवलिंग के बाईं ओर माता पार्वती की आकृति है। यह आकृति ध्यान की मुद्रा में है। माता पार्वती की मूर्ति के साथ ही में गौरी कुण्ड है, जो हमेशा पवित्र जल से भरा रहता है। शिवलिंग के बाईं ओर ही भगवान कार्तिकेय की आकृति भी साफ़ दिखाई देती है। कार्तिकेय की प्रतिमा के ऊपर भगवान गणेश की पंचमुखी आकृति है। शिवलिंग के पास ही में राम दरबार है। गुफ़ा के अन्दर ही हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आकृति बनी हुई है। गुफ़ा के ऊपर की ओर छहमुखी शेषनाग, त्रिशूल आदि की आकृति साफ़ दिखाई देती है। साथ-ही-साथ सुदर्शन चक्र की गोल आकृति भी स्पष्ट दिखाई देती है। गुफ़ा के दूसरे हिस्से में महालक्ष्मी, महाकाली, सरस्वती के पिण्डी रूप में दर्शन होते हैं।
सावधानियाँ
रनसू से शिवखोड़ी जाते समय यात्रियों को रेनकोट, टॉर्च आदि अपने पास रखने चाहिए। ये चीज़ें यहाँ किराए पर भी मिल जाती हैं। श्रद्धालु यहाँ से जब शिवखोड़ी के लिए आगे बढ़ते हैं, तो रास्ते में एक नदी पड़ती है। नदी का जल दूध जैसा सफेद होने की वजह से इसे दूध गंगा भी कहते हैं। शिवखोड़ी स्थान पर पहुँचते ही सामने एक गुफ़ा दिखाई देती है। गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए लगभग 60 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। गुफ़ा में प्रवेश करते ही लोगों के मुख से अनायास ‘जय हो बाबा भोलेनाथ’-यह उद्घोष निकलता है।
पौराणिक कथाएँ
भस्मासुर की कथा
इस गुफ़ा के संबंध में अनेक कथाएं प्रसिद्ध हैं। इन कथाओं में भस्मासुर से संबंधित कथा सबसे अधिक प्रचलित है। भस्मासुर असुर जाति का था। उसने भगवान शंकर की घोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे वरदान दिया था कि वह जिस व्यक्ति के सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। वरदान प्राप्ति के बाद वह ऋषि-मुनियों पर अत्याचार करने लगा। उसका अत्याचार इतना बढ़ गया था कि देवता भी उससे डरने लगे थे। देवता उसे मारने का उपाय ढूँढ़ने लगे। इसी उपाय के अंतर्गत नारद मुनि ने उसे देवी पार्वती का अपहरण करने के लिए प्रेरित किया। नारद मुनि ने भस्मासुर से कहा, वह तो अति बलवान है। इसलिए उसके पास तो पार्वती जैसी सुन्दरी होनी चाहिए, जो कि अति सुन्दर है। भस्मासुर के मन में लालच आ गया और वह पार्वती को पाने की इच्छा से भगवान शंकर के पीछे भागा। शंकर ने उसे अपने पीछे आता देखा तो वह पार्वती और नंदी को साथ में लेकर भागे और फिर शिवखोड़ी के पास आकर रूक गए। यहाँ भस्मासुर और भगवान शंकर के बीच में युद्ध प्रारंभ हो गया। यहाँ पर युद्ध होने के कारण ही इस स्थान का नाम रनसू पड़ा। रन का मतलब ‘युद्ध’ और सू का मतलब ‘भूमि’ होता है। इसी कारण इस स्थान को ‘रनसू’ कहा जाता है। रनसू शिवखोड़ी यात्रा का बेस कैम्प है। अपने ही दिए हुए वरदान के कारण वह उसे नहीं मार सकते थे। भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल से शिवखोड़ी का निमार्ण किया। शंकर भगवान ने माता पार्वती के साथ गुफ़ा में प्रवेश किया और योग साधना में बैठ गये। इसके बाद भगवान विष्णु ने पार्वती का रूप धारण किया और भस्मासुर के साथ नृत्य करने लगे। नृत्य के दौरान ही उन्होंने अपने सिर पर हाथ रखा, उसी प्रकार भस्मासुर ने भी अपने सिर पर हाथ रखा, जिस कारण वह भस्म हो गया। इसके पश्चात भगवान विष्णु ने कामधेनु की मदद से गुफा के अन्दर प्रवेश किया फिर सभी देवी-देवताओं ने वहाँ भगवान शंकर की अराधना की। इसी समय भगवान शंकर ने कहा कि आज से यह स्थान ‘शिवखोड़ी’ के नाम से जाना जायेगा।
प्रमुख त्योहार
महाशिवरात्रि का पावन पर्व, जो कि भगवान शिव को समर्पित है, शिवखोडी में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हर वर्ष यहाँ पर तीन दिन के मेले का आयोजन किया जाता है। कुछ वर्षो से यहाँ पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में काफ़ी वृद्धि हुई है। अलग-अलग राज्यों से आकर श्रद्धालु यहाँ पर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। शिवरात्रि का त्योहार फरवरी के अन्तिम सप्ताह या मार्च के प्रथम सप्ताह में मनाया जाता है।
श्राइन बोर्ड द्वारा किये गये कार्य
शिव रात्रि मेले में तीर्थ यात्रियो की संख्या में वृद्धि को देखते हुए यहां पर एक श्राइन बोर्ड का गठन किया गया है। श्राइन बोर्ड द्वारा यहां पर तीथयात्रियों के लिए के विशेष प्रबंध किये गए हैं। पैदल यात्रा के दौरान यात्रियों को कोई परशानी न हो इसके लिए जगह-जगह पीने के पानी की व्यवस्था की गई है। यात्रियों के विश्राम के लिए रास्ते मे जगह-जगह पर विश्राम स्थल बनाएं गए है। पैदल यात्रा को सुगम और आरामदायक बनाने के लिए 3 कि. मी. के पैदल मार्ग में टाइल लगाया गया है।
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रनसू गांव बस यात्रा का अन्तिम पड़ाव है। इसके बाद यहां से 3 कि. मी. की पैदल यात्रा प्रारंम्भ हो जाती है। रनसू में यात्रियो के ठहरने की उचित व्यवस्था है। श्राइन बोर्ड ने यहां पर स्वास्थ्य संबंधी सेवाये मुहैया कराई है। रनसू में यात्रियों के लिए घोड़े व पालकी की व्यवस्था भी हैं। श्राइन बोर्ड द्वारा गुफा के अन्दर रोशनी का प्रबंध किया गया है। गुफा के बाहर यात्रियो के लिए शौचालय, पीने के पानी आदि का भी उचित प्रबंध किया गया है। बारिश से बचाव के लिए यात्रा मार्ग में जगह-जगह पर टिन सेड लगाये गये हैं। रोशनी के लिए पूरे मार्ग में लैम्प लगाये गये हैं। जनरेटर आदि की व्यवस्था भी की गई है। यात्रियो के सामान रखने के लिए क्लॉक रूम बनाये गए हैं। रनसू गांव कटरा, जम्मू, उघमपुर से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। जम्मू-कश्मीर टूरिजम विभाग द्वारा यहां तक आने के लिए बस सर्विस भी मुहैया करायी जाती हैं।
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रनसू गांव, रयसी-राजौरी रोड़ पर स्थित है। रनसू गांव शिव खोड़ी का बेस कैम्प है। यह वैष्णो देवी कटरा से भी सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। वैष्णो देवी के लिए लगभग सभी राज्यों से बस सेवा है। आप यहां से 80 कि.मी. की दूरी तय कर शिव खोड़ी तक पहुंच सकते है। कटरा तक जाने के लिए काफी बसें उपलब्ध है। जम्मू -कश्मीर टूरिज्म विभाग द्वारा भी शिव खोड़ी धाम के लिए बस सुविधा मुहैया कराई जाती है। टैक्सी और हल्के वाहनो द्वारा भी यहां तक पहुंचा जा सकता है। कटरा उधमपुर और जम्मू से यात्री बस, कार, टैम्पू और वैन द्वारा शिव खोड़ी तक पहुंच सकते हैं।
ठहरने की व्यवस्था
श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि को देखते हुए जम्मू-कश्मीर टूरिज्म विभाग द्वारा यात्री निवास की व्यवस्था की गई है। ये यात्री निवास रनसू गांव में है। रनसू शिव खोड़ी का बेस कैम्प है। यहां पर काफी संख्या में निजी होटल भी हैं। यहां पर आपको सभी सुविधाये मिल जायेगी।
(साभार भारत डिस्कवरी)
शिवखोड़ी पहुचने में हमें करीब २- ढाई घंटे लगते हैं. अपनी गाड़ी को पार्क करके, और खाने का ऑर्डर देकर के, जी हाँ खाने का, यंहा पर खाने का आर्डर पहले देकर के ऊपर चढाई शुरू करनी पड़ती हैं. जितने लोग होते हैं. उतना ही वे लोग खाना बनाते हैं. यंहा का राजमा, चावल, और देशी घी कि रोटी मशहूर हैं. और खाना बहुत ही स्वादिष्ट बनता हैं.
महादेव कि गुफा का मुख्य द्वार (चित्र साभार : भारत डिस्कवरी)
करीब पांच किलोमीटर कि चढाई चढ़ने के बाद हम लोग गुफा तक पहुँच जाते हैं. अंदर दर्शन करने जाने के लिए मोबाइल, कैमरा, चमड़े का सामान सब बाहर रख कर जाना पड़ता हैं. यंहा पर एक समस्या और हैं. कोई भी क्लोक रूम आदि नहीं हैं. कुछ लोग को बाहर छोड़कर सामान उनके हवाले कर के जाना पड़ता हैं.
शिवलिंगम (साभार : लाइवइंडिया.कॉम)
गुफा में भी CRPF सुरक्षा हैं. पहले केवल एक ही गुफा हुआ करती थी. पर जाने और आने के लिए अब अलग अलग हैं. बरसात होने के कारण गुफा के अंदर भी पानी भरा हुआ था. बच्चो को गोदी में लेकर निकलना पड़ा. और एक स्थान पर तो करीब साढ़े चार फीट पानी था. मुख्य मंडप में पहुंचकर भोले नाथ के दर्शन करके हम लोग दूसरी और से बाहर निकल आते हैं.
गुफा का चित्र दूर से
शिव खोडी कि पैदल चढाई
ये चित्र मेरी अलग यात्राओं के हैं. और काफी पुराने हैं. एक बार पैदल यात्रा करते हुए और एक बार तबियत खराब होने के कारण घोड़े पर. जिसमे मैं घोड़े से गिर भी पड़ा था और बहुत चोट आयी थी.
बच्चो के साथ गुफा के सामने
दूध गंगा
शिव खोडी कि गुफा के पास से ही दूध गंगा कि पवित्र धारा निकलती हैं. मैं घोड़े सहित इस कि धारा में गिर गया था. उस समय पुल नहीं बना था. और इसकी अंदर से होकर जाना पड़ता था. बारिश के कारण बहाव बहुत तेज था.
घोड़े पर बच्चो के साथ
इसी घोड़े ने मुझे पटक दिया था
इशांक बाबू गुफा के बाहर
गुडिया का स्टाइल
थोड़ी देर के लिए धूप निकल गयी
सनी, तरु अब दोनों इंजिनियर हैं, साथ में संजय भाई
संदीप जाट बच्चो के साथ
जी हाँ हमारे चरथावल में भी हमारे एक दोस्त हैं जिनका नाम संदीप हैं, प्यार से हम लोग उन्हें बचपन से ही संदीप जाट बोलते हैं.
सामान आदि रखने के लिए शेड
शिव खोडी में साधू बाबा
सभी लोग एक साथ बैठ कर खाना खाते हुए
सपरिवार भोजन का आनंद
शिव खोड़ी में वह होटल जंहा हमने खाना खाया था
धान के खेत
यंहा का धान और राजमा बहुत मशहूर हैं. दूर तक फैली हुई घाटी में धान और राजमा की फसल होती हैं.
खेतों में खड़े हुए नाक साफ़ करते हुए ये कौन
मेरी तबियत बहुत बुरी तरह से खराब थी बस किसी तरह से खड़ा हो पा रहा था मै.
धान के खेत में बच्चे
दोनों भाई बहन
भोले बाबा के दर्शन करके, नीचे रन्सू में आकर के भोजन करके तृप्त हुए और जम्मू की और चल दिए. बारिश और आंधी तूफ़ान बहुत तेज था. पहाड़ के एक मोड पर हमारी बस कि टक्कर एक ट्रेक्टर ट्राली से हो गयी. वह टक्कर लगते ही पलट गयी. बस पीछे की और खिसकने लगी. पीछे सैकड़ों फीट गहरी खाई थी. चालक ने किसी तरह से बस को सम्भाला. हम लोगो कि सांस में सांस आयी. सकुशल जम्मू पहुंचकर ही शान्ति मिली. ये तो भोले बाबा कि कृपा थी जो हम लोग सकुशल लौट गए. रात को जम्मू रूककर, अगले दिन जम्मू घूमकर हम लोग मुज़फ्फरनगर लौट गए. जम्मू के बारे में मैं अपनी पिछली पोस्ट में वर्णन कर चुका हूँ.
जय माता कि, वन्देमातरम.
very informative post , helpful for the follow Ghumakkars !!!
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एक सुधार कीजिये अपनी लेख में –
बहुत अच्छा आर्टिकल लिखा है, बहुत सी जानकारी मिली उसी के साथ एक बहुत ग़लत जानकारी आप दे रहे वो यह – कि 33 करोड़ देवी देवता नहीं हैं मात्र 33 तरह के देवी देवता हैं। हम बोलते हैं 33 कोटि देवी देवता और संस्कृत में कोटि का मतलब तरह/प्रकार होता है(एक शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं पर यहां तरह/प्रकार है) अर्थात 33 तरह के देवी देवता हैं न कि 33 करोड़ अब शिव ही जाने उन्होंने कौन कौन 33 करोड़ देवी देवता दिखा दिया आपको खोड़ी/गुफ़ा में – शिव की लीला शिव ही जाने…ॐ नमः शिवाय
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I think this is FOG since I do not remember reading about this place here. I guess Jammu is leading on ensuring that pilgrims get a good service. It is heartening to read that there is now a ‘Shrine Board’ to take care of visitors. I hope that other places of worship, specially the ones which attract a lot of visitors learn from this.
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Dear Praveen,
Very detailed and interesting post about little known Shiv Khodi.
Yes kids would have grown up by now. That reminds me to scan my hard photos also.
Thanks for sharing!
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Mai an maa k darwar me phli war ja RHA aapke lekh she but prb solve ho jaygi
Mere pass 6 day ka time h darsan 3 din me ho jayge for mai yaha she air kaha kaha ghum sakta hu..plz shivkhodi jajjar k alawa ….kya srinager Maya ja Sakta ha
Resp. Sir, good morning… First of all i would like to very very very thanks to you, that you made me provide this great information as i wanted to know any how today only. Sir, by god i am very big fan to you now. Aapne har cheej itne acchi se batai hai ki koi bhi person waha jake problem nahi mahsoos karega. Sir, main bhi apni family ke sath mata rani ke darshan ko jaa raha hu but mijhe waha ke bare me kuch ni pata tha, but sirf apki wajha se abb mujhe bahut accha feel ho raha hai. Ki me waha pe aram se jaa sakta hu. Wakai me me bahut paresan tha ki darshan kese honge etc. ? But thank you so much sir. sir. If you dont mind , pls give me your mobile no. I wanted to ask you something more about that place.