पिछले भाग में, मैंने अपनी राजस्थान यात्रा का पुष्कर तक वाले भाग के बारे में बताया| अब मैं बीकानेर के बारे में बताऊंगा|
बीकानेर पहुंचते पहुंचते काफी रात हो गयी थी| बीकानेर हम पुष्कर से मेंड़ता – नागौर के रास्ते से होकर पहुंचे जो कि पुष्कर से करीब २५० किमी दूर है| सड़क ज़्यादातर अच्छी ही थी लेकिन एक लेन की थी| पर ज़्यादा ट्रैफिक न होने की वजह से कोई खास दिक्कत नहीं हुई| रास्ते में जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, वैसे वैसे जमीन के नज़ारे बदल रहे थे, बीकानेर के कुछ पहले से ही रेगिस्तान जैसा दिखाना शुरू गया था और दूर दूर तक बालू ही नज़र आती थी, कोई पेड़ दिखाई नहीं पड़ता था| हम पुष्कर से करीब दोपहर के डेढ़-दो बजे निकले थे और बीकानेर पहुंचते पहुंचते रात का सात बज गया था| बीकानेर पहुँचने के बाद पहली चीज़ जो दिखी कि शहर काफी खुला हुआ है और रास्ते भी काफी चौड़े थे| यहाँ पर सेना का कैंट इलाका भी है|
बीकानेर पहुँचने के ठीक पहले का सूर्यास्त
बीकानेर के बारे में कहा जाता है कि ये काफी मस्त लोगों का शहर है| इसका इतिहास यहाँ पढ़ा जा सकता है| साक्ष्यों के अनुसार शहर की स्थापना सन १४८५ के आसपास की गयी थी|
खैर हम पहले अपने होटल गए क्योंकि सब लोग ४-५ घंटे की सड़क यात्रा के बाद थक से गए थे और कुछ खाने पीने की ज़रूर दिखाई दे रही थे| होटल एक हवेलीनुमा मकान था, जो कि बाद में हमने देखा कि वहाँ आम बात है| किसी रिटायर्ड सरकारी अफसर का घर था जो कि उसने होटल में बदल दिया था| ये एक अच्छा व्यापार है बीकानेर में जहां यात्रियों, खासकर, विदेशी डालर यूरो वाले, की संख्या ज़्यादा है और लोकल लोगों के लिए ये पैसा कमाने का अच्छा ज़रिया है| होटल बहुत सस्ता तो नहीं था, करीब १५०० रुपये प्रति रात डबल बेड के लिए (घुसलखाने के साथ) लेकिन ठीक-ठाक था, सफाई ठीक थी और ऊपर एक रेस्तारेंट भी था जहां से नजारा काफी अच्छा था| लेकिन जिस बात ने हमारा पहुँचते ही मूड आफ किया वो ये थी कि स्टाफ विदेशी लोगों में ज़्यादा मशगूल थे और भारतीय ग्राहकों को नज़रंदाज़ कर रहे थे| इस बात को लेकर हमारी थोड़ी कहा-सुनी हुई और फिर स्टाफ का रवैया एक दम बदल गया| रात को खाना खा-पीकर हम बिस्तरों में घुस गए क्योंकि अगले दिन कई सारी जगह देखने जाना था|
हमारे बगल वाला होटल, ऐसे ही कई सारे होटल यहाँ चल रहे हैं
अगले दिन सुबह उठ कर पहले तो छत वाले रेस्तरां पर आलू के पराठों और आमलेट का नाश्ता किया गया जो कि दिसंबर के महीने में मस्त लग रहे थे| उसके बाद हम पहले गए बीकानेर पर्यटक गृह जहां पर हमको बीकानेर में देखने की जगहें और रेगिस्तान और ऊँट की सवारी के बारे में जानकारी मिली|
जूनागढ़ किला
एक राजस्थानी रेस्तरां में खाना खाने के बाद हम पहले गए बीकानेर किले की तरफ जिसको कि जूनागढ़ का किला भी कहा जाता है|
जूनागढ़ महल का पूरा दृश्य (जोड़ा हुआ)
इस किले को पहले चिंतामणि किला भी कहा जाता था| लेकिन बाद में बीसवीं शताब्दी में इसको जूनागढ़ या पुराना किला कहा जाने लगा जब यहाँ के बाशिंदे लालगढ़ में शिफ्ट हो गए| इस किले को राजा जय सिंह के प्रधानमंत्री कर्ण चंद की देख रेख में बनाया गया था और इसका निर्माण सन १५९४ में पूरा हुआ| इस किले पर मुगलों ने कई आक्रमण किये लेकिन हर बार उनको मुंह की खानी पड़ी| किले के इतिहास के बारे में यहाँ पढ़ा जा सकता है| यहाँ कई सारे हिस्से हैं देखने लायक: करण महल, फूल महल, अनूप महल, चंद्र महल, गंगा महल, बादल महल और किले का म्यूज़ियम| महल के कई हिस्से इटालियन संगमरमर से बने हुए हैं और यहाँ मुग़ल स्थामत्य कला का प्रभाव देखा जा सकता है|
ये किला काफी बड़ा है और इसको देखने में लगभग आधा दिन लग जाता है| नीचे किले की कुछ तस्वीरें हैं|
सज़ा देने का एक तरीका (खुदा न खास्ता किसी को ऐसा पर बैठाया जाए तो क्या होगा?)
दीवार पर बनी हुई कुछ प्रतिमा जैसी चीज़
रेगिस्तान यात्राऔर ऊँट की सवारी
किला देखने के तुरंत बाद हम थोड़ा फ्रेश होकर चले रेगिस्तान की तरफ जो कि बीकानेर से करीब एक घंटे की दूरी पर है| पहले हाइवे से हम देशनोक (NH-89) की तरह चले फिर बीच में पलाना से दायें मुड़ लिए जहां से रेगिस्तान करीब २० किमी की दूरी पर था| हम पहुंचे बढ़ईसर जो कि एक छोटा सा गाँव है जहां के आबादी बहुत कम रही होगी| जगह एक दम रेगिस्तान, शायद इक्का दुक्का पेड़, मिट्टी और पत्थर के मकान और रेत ही रेत| हम अब रेगिस्तान में थे| वहाँ हमको कुछ स्थानीय लोगों की मदद से कुछ ऊंटों का इतजाम हो गया| स्थानीय लोग बहुत ही सरल स्वभाव के और अच्छे थे| फिर हम गाड़ी खड़ी करके पैदल रेगिस्तान में गए जहां शाम का समय हो रहा था, वहाँ ऊँट की सवारी की गयी और फिर रेत में खेला गया| नीचे हैं कुछ तस्वीरें इस समय की|
बालू में रहने वाले एक और महाशय
बालू में खेलने के बाद जब अन्धेरा हो गया, तब हम गाँव के सरपंच के घर गए जहां उनहोंने हमको खालिस देसी घी और लहसुन-मिर्च की चटनी के साथ चूल्हे पर पकी बाजरे की रोटियां खिलाईं जिनका स्वाद बहुत ही अच्छा था| लोग बहुत ही अच्छे थे, बहुत सरल और बिना किसी लालच के| वहां से निकलते निकलते रात हो गयी और हम वापस पहुँच गए अपने होटल, जहां हम जल्द ही सोने चले गए क्योंकि अगले दिन चूहे वाले मंदिर और ऊँट पालन केंद्र जाना था|
अगले दिन हम सुबह निकले देशनोक की तरफ जहां है प्रसिद्ध करणी माता का मंदिर, जो कि माता के नाम से कम पर चूहों की वजह से ज़्यादा जाना जाता है| करणी माता चारण जाति की एक महिला साधू थीं और जो कि दुर्गा के अवतार के नाम से पूजी जाती हैं| मंदिर के अंदर हज़ारों चूहे हैं जो कि साधकों द्वारा लाये हुए प्रसाद पर जीवित रहते हैं, और सही में देखा जाए तो काफी तंदरुस्त भी हैं| इन चूहों को काफी पवित्र माना जाता है और उनको करणी माता और उनके रिश्तेदारों से जुड़ा हुआ माना जाता है|
ऊँट पालन केंद्र
देशनोक से लौटने के बाद हम बीकानेर से पहले एक मोड़ से, जिससे जयपुर की तरफ जाते हैं, दायें मुड़ गए जहां पर अपने में ही एक अनोखा ऊँट पालन केंद्र है, जिसका नाम है राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र जो कि शायद विश्व में अकेला ऊंट के ऊपर शोध करने वाला केंद्र है और भारतीय कृषि शोध एवं शिक्षा कौंसिल द्वारा खोला गया है| यहाँ ऊँट की विभिन्न प्रजातियों और उनके रहन, सहन, खाने, पीने और ब्रीडिंग पर शोध किया जाता है| केंद्र में कई सारे ऊँट और उनके बच्चे भी रहते हैं जिनपर पर्यटक सवारी भी कर सकते हैं और उनको देख भी सकते हैं| केंद्र में एक दुकान भी है जहां ऊँट का दूध और उससे बनी चीजें मिलती हैं, और साथ साथ ऊँट की खाल से बने हुए जूते और टोपियां भी मिलाती हैं| केंद्र में ऊँट के ऊपर एक छोटा सा एक म्यूज़ियम भी है जहां ऊँट से जुड़ी हुई काफी जानकारियाँ मिल जाती हैं|
ऊँट अनुसंधान केंद्र से लौटते हुए शाम हो गयी थी और फिर हम सीधे अपने होटल गए जहां भोजन किया गया और सुबह जयपुर प्रस्थान की तैयारी|
और काफी तस्वीरें यहाँ पर हैं|
आगे की यात्रा का वृत्तांत अगले भाग में|
kya baat hai…aapka lekhan va aapke chitra ati uttam hai tatha itne utshahvardhak hai jo kisi ko bhi bikaner ghumne ki prerna dene ke liye paryapta hai…….
dhanyavaad….
great narration and good photos.
?? ???? ???, ??? ? ???
?? ?? ???? ?????? ?? ?? ???????? ???????
>>>>”????? ??? ??? ?? ????? ??????? ?? ??? ?? ???? ?? ?? ?? ?? ????? ?????? ????? ??? ??????? ????? ??”
?? ?? ?? ?????? ?? ??????? ?? ??? ??, ?????? ??? ??? ?? ?????.
???? ???? ??????? ?? ??? ?? ??????? ????????? ???? ????? ?????
???? ???,
???? ???? ???? ?? ??????? ????? ????? ??? ? ???. ????? ?????? ????? ???? ?? ?????? ?????????, ?? ?? ?? ???? ??. ?? ????? ???? ???? ?? ??? ???? ?? ???? ???? ???. ????? ????? ?? ????, ????? ?? ???? ?? ???? ?? ????? ?? ????? ?? ???? ??? ???? ? ???.
???????.
????? ???? ????? ?? ????