जैसा कि मैने अपनी बद्रीनाथ यात्रा मे इस बात का जिक्र भी किया था कि भगवान अपने भक्तो को स्वयम् ही दर्शन देने के लिये बुला लेते हैं. मै तो समझता हूँ जिसने भी यह कहा है सच ही कहा है. यहाँ मै ऐसी ही एक घटना के बारे मे लिख रहा हूँ.
करीब 3-4 वर्ष पहले की बात है मै अपने एक chartered accountant मित्र जो कि राजस्थान से हैं, उनसे राजस्थान के चुरू जिले मे बिदासर् के बारे मे जानकारी चाह रहा था , मुझे वहां पर कुछ काम था और अनजान जगह पर जाने से पहले जानकारी इकट्ठी कर लेना चाहता था. इसलिए मैने सोंचा शायद उन्हे कुछ जानकारी हो. पूछने पर पता लगा कि उन्हे भी कोई विशेष जानकारी तो नही थी पर बताने लगे कि चुरू डिस्ट्रिक्ट मे ही एक जगह सालासर है. जहां पर हनुमान जी का बहुत ही प्रतिष्ठित, प्रसिद्ध मंदिर है. वह भी वहां हो कर आये थे . लोग बहुत दूर -दूर से बालाजी हनुमान जी के दर्शन के लिये आते हैं, बोले अगर बीदासर जाओ तो सालासर भी दर्शन के लिये चले जाना. हमारे यह मित्र काफी धार्मिक विचारो के हैं और जब कभी भी आडिट के लिये जाते हैं तो अगर उस जगह के आस-पास कोई विशेष धार्मिक स्थल या मंदिर होता है तो वहां अवश्य जाते हैं. पता लगा, बीदासर से सलासर करीब 35 किलोमीटर दूर है. मन मे विचार आया कौन जायेगा इतनी दूर. एक तो बीदासर तक पहुंचना ही टेढ़ी खीर हो रहा है और हमारे व्यास जी मुझे 35 किलोमीटर दूर हनुमान जी के दर्शन करने के लिये जाने को कह रहे हैं. उनसे तो नही कहा कि नही जा सकूंगा पर मन ही मन सोंचा कौन जायेगा. काम भी इतना अत्यावश्यक नही था जाने का प्रोग्राम नही बन सका. समय गुजरता गया, अचानक कुछ दिन पहले हमारे एक बहुत पुराने मित्र पण्डित नन्द किशोर शर्मा से मुलाकात हुई. 30 वर्ष पहले हम दोनो एक ही कम्पनी मे सर्विस किया करते थे. मुझे यह तो मालूम था कि यह राजस्थान के रहने वाले है पर राजस्थान मे किस जगह के, इस बारे मे ना तो मैने पहले कभी पूछा था और ना ही उन्होने बताया. काफी अर्से बाद मुलाकात हुई थी ढेरो बाते होने लगी. बातो ही बातो मे मैने उन्हे अपने बीदासर के काम के बारे मे बताया. कहने लगे अरे तुम्हे मालूम नही , वहीं पर तो मेरा गॉँव है. गॉँव के मकान मे अब तो कोई रहता नही है पर मेरी ससुराल सालासर मे है , शादी-बरातो मे तो जाना-आना लगा ही रहता है. जब कभी जाऊंगा तो बता दूंगा , साथ चले चलना या अलग से सालासर पहुंच जाना, अब मुझे अपने मित्र व्यास जी की बात याद आई, मैने पूछा सुना है वहां हनुमान जी का प्रसिध मंदिर है तब वह हंस कर बोले वहीं तो हम जाते हैं. मैने कहा मतलब, तब बताने लगे कि मंदिर के पुजारी जी की कन्या उन्हे ब्याही हुई है. मै चकित हो कर बोला इसके मतलब मुझे तो तुम विशेष दर्शन करवा दोगे. कहने लगे क्यो नही, तुम आओ तो सही.
अब देखे कि कहाँ तो मै सालासर जाने की सोंच भी नही रहा था पर अब पहले मुझे वहीं जाना पड रहा था.
तीन महीने पहले की बात है, शर्मा जी का फोन आ गया कि ससुराल मे शादी है , सपरिवार वहां
जा रहे हैं. मुझसे बोले दो दिन बाद पहुंच जाओ तब तक शादी निपट जायेगी फिर दोनो साथ चले चलेंगे.
तीन महीने पहले गर्मी तो उत्तर भारत मे अपने चरम सीमा पर पड रही थी. इस गर्मी मे राजस्थान जाने की कभी कल्पना भी नही की थी. पर क्या करे काम तो काम ही होता है,
जाना तो था ही. मैने उनसे पूछा कोई A.C. बस जाती है, कहने लगे अरे रात का सफर है कोई ज्यादा दिक्कत नही होगी. मैने का ना मै इतनी गर्मी मे साधारण बस से नही जाऊंगा, तब उन्होने एक-दो ट्रॅवेल एजेंट के नाम फोन नंबर दिये कहने लगे इनसे पता कर लो. ट्रॅवेल एजेंट से बात करने पर पता लगा , श्री नाथ जी ट्रॅवेल की बीकानेर जाने वाली A.C. बस है पर वह सालासर होकर तो नही जाती है, पर वह लक्ष्मनगढ उतार देगी. लक्ष्मन गढ से सालासर 30-35 किलोमीटर दूर है. मैने सोंचा चलो कम से कम 30-35 किलोमीटर का सफर ही साधारण बस से करना पड़ेगा , अधिकतर सफर तो आराम से कट जायेगा.
पता लगा रात मे 8.30 बजे बस पुरानी दिल्ली से जायेगी. मैने अपनी पत्नी से पूछा कि चलोगी, इतना अच्छा मौका मिल रहा है, पर उन्होने राजस्थान की गर्मी का हवाला दे कर मना कर दिया. एक दिन पहले ही टिकट बुक करा ली . गर्मियो मे A.C ट्रेन हो या बस इनमे जल्दी जगह नही मिलती है.इस रास्ते पर ज्यादातर प्राइवेट टूर आपरेटर की बसे चलती हैं. उनकी बसे काफी आरामदेह होती हैं.इनमे से कुछ फुल स्लीपर बस हैं. और कुछ की सेमी- स्लीपर बसे हैं. बैठने के लिये नीचे 2×1 की आरामदेह सीटे होती हैं, और उसके उपर स्लीपर होता है.
रात करीब 10.30 , 11.00 बजे के बीच बस जब गुड़गाँव पहुंची , देख कर लग ही नही रहा था कि हम उत्तर भारत के किसी शहर मे हैं. उँची – उँची बिल्डिंगो मे चमकती हुई लाइटे तो हांग कांग , सिंगापुर का आभास दिला रही थी. मुझे लगता है, उत्तर भारत मे गुड़गाँव ने जितनी तरक्की की है वैसी किसी भी शहर ने नही की.
बस ने सुबह 5 बजे से कुछ पहले ही लक्ष्मनगढ के टी पॉइंट पर उतार दिया. यहाँ से एक रास्ता सालासर को जाता था. नुक्कड पर चार – पांच छोटी – छोटी दुकाने चाय – पानी की थी जिनमे
लाइटे जल रही थी बाकी दूर-दूर तक गहरा अंधकार छाया हुआ था. 2-3 लोग और भी सालासर जाने के लिये बस का इंतजार कर रहे थे. मै भी वहीं बैठ कर बस का इंतजार करने लगा पर सालासर जाने वाली बस का दूर-दूर तक कोई पता नही था. धीरे-धीरे रात की कालिमा छटने लगी, वातावरण मे हल्की सी रोशनी फैलने लगी. इस समय हवा भी मंद- मंद चलने लगी. मौसम खुशनुमा लग रहा था. रात की सफर की थकान भूल कर इस खुशनुमा मौसम का आनंद लेने लगा. राजस्थान मे पहली बार सूर्योदय सड़क के किनारे बैठे हुए देख रहा था. यहाँ पर दूर तक रेतीले मिट्टी के मैदान और झाड़ी दार पेड़ दिख रहे थे. काफी इंतजार के बाद भी बस नही आई तभी एक ट्रक आकर रुका. कुछ लोग दौड़ कर उसके पास पहुंचे पर उसने सबको मना कर केवल एक आदमी को बैठ जाने दिया. मैने कहा मुझे भी सालासर छोड़ दो . उसने मुझे भी बैठा लिया. ट्रक मे बैठने के बाद थोड़ा सा डर भी लगा कि इस ड्राइवर ने खाली मुझे ही बैठाया है अगर यह दूसरा आदमी इसी से मिला हुआ हो तब क्या करेंगे. खैर कई बार इस तरह के विचार ऐसे मौके पर आ ही जाते हैं.
ट्रक वाले ने हम दोनो को सालासर के अंदर ना जा कर बाहरी रास्ते पर उतार दिया और केवल 20 – 20 रुपये हम लोगो से लिये. दूसरे सज्जन जो कि पहले भी यहाँ आ चुके थे , उन्हे मंदिर जाने का रास्ता मालूम था. वह भी दर्शन करने के लिये आये थे. मै भी उनके साथ हो लिया. यहाँ ठहरने के बारे मे मैने पूछा तो बताने लगे यहाँ होटेल- धर्मशाला बहुत हैं पर मै तो यहाँ पर मंदिर के साथ मे सीकर धर्मशाला है उसी मे ठहरता हूँ. बताने लगे आपको एसी रूम 300 रुपये मे उसमे मिल जायेगा. मैने कहा ठीक है मै आपके साथ ही चल रहा हूँ मुझे भी उसमे दिलवा देना. रास्ते मे एक बड़ा सा होटेल पड़ा, मैने उनसे रुक कर इंतजार करने के लिये कहा , अंदर होटेल मे जा कर रूम किराये के बारे मे पता किया. होटेल वाले ने बताया 1000 रुपये मे एसी रूम है अभी 7 बजे हैं और 12 बजे के बाद दूसरे दिन का किराया लग जायेगा. मै तुरंत बाहर आ कर बोला चलिये इस होटेल से धर्मशाला ही ठीक रहेगा. हाँलाकि मेरे मित्र ने भी मुझे यही सलाह दी थी कि यहाँ बहुत अच्छी- अच्छी धर्मशालाये बनी हुई हैं. होटेल के चक्कर मे मत पड़ना.
सीकर धर्मशाला काफी बड़ी तीन मंजिला बनी हुई है, कमरे भी साफ – सुथरे थे. मैने केयर टेकर से एक एसी रूम देने के लिये कहा, पूछने लगा कितने लोग हैं. मेरे अकेला कहने पर पहले तो थोड़ा सा झिझका पर कुछ सोंच कर रूम की चाबी मुझे दे दी इसी बीच मैने उसे बता भी दिया कि पुजारी जी के यहाँ आया हूँ. साफ – सुथरा रूम था और उसमे 6-7 लोगो के सोने की व्यस्था थी. नहा धो कर अपने मित्र का इंतजार करने लगा, पता लगा शादी की भाग-दौड़ मे रात देर से सोए थे इसलिये अभी सो रहे हैं.
करीब 11 बजे हमारे मित्र मुझे दर्शन कराने के लिये आये, मंदिर के प्रांगण मे कुछ एक मंदिर और भी हैं पहले मुझे वहां दर्शन के लिये ले गये,
मंदिर के प्रांगण मे मंदिर के संस्थापक हनुमान जी के भक्त पुजारी मोहनदास जी की समाधि
मंदिर के प्रांगण मे एक मंदिर
वहीं पर मंदिर के साथ मे ही धुनी जल रही है उसकी परिक्रमा करने के बाद मुझे बालाजी हनुमान जी के दर्शन के लिये ले गये. यह एक भव्य मंदिर है.मंदिर के अंदर की दीवारे, खंबे, मेहराब , दरवाजे आदि सभी चाँदी से ढकी हुई हैं. जिन पर हनुमान जी एवं सीता राम आदि बने हुए हैं. आम तौर पर सभी दर्शनार्थियो के लिये करीब 20 फिट दूर से हनुमान जी के दर्शन करने की व्यवस्था है. गर्भ ग्रह की आगे करीब 8 फिट का चबूतरा है जहां पर हर समय 3-4 पुजारी खड़े रहते हैं. इसके बाद करीब 4 फिट का गलियारा है यहाँ से विशिष्ट लोगो के दर्शन की व्यस्था है. इसके आगे 8 फिट का एक चबूतरा है यहाँ पर लोगो को मंदिर के अन्य पुजारी पूजा करवाते हैं. और इस चबूतरे के पीछे से लोग बालाजी हनुमान जी के दर्शन करते हैं. मंदिर का परिक्रमा स्थल जो कि चार फिट चौड़ा है की दीवारे भी चाँदी की बड़ी –बड़ी प्लेटो से जिनमे हनुमान जी , राम , सीता लक्ष्मन आदि बने हुए हैं से ढकी हुई हैं. मंदिर मे हनुमान जी की विग्रह ज्यादा बड़ी नही है पर आकर्षित कर लेती है. मुझे तो अपने मित्र के साथ होने के करण विशिष्ट लोगो की जगह पर खड़े होकर दर्शन करने का मौका मिला. मै थोड़ी देर तक अपलक हनुमान जी की प्रतिमा को निहारता रहा, बहुत ही आकर्षक लग रही थी. इस समय हमारे मित्र के स्वासुर जी मंदिर मे ही थे. मैने उन्हे प्रणाम किया. उनके इशारा करने पर अन्य छोटे पुजारी हनुमान जी का प्रसाद आदि देने लगे. हाँलाकि मै भी हनुमान जी को चढ़ाने के लिये नारियल, प्रसाद लेकर गया था परंतु जितना मै लेकर गया था उससे ज्यादा वापस लेकर आ गया.
दर्शन के लिये जाते हुए सामने हनुमान जी का मंदिर
मेरे मित्र बताने लगे कि मंदिर मे लगभग 600 कर्मचारी सेवारत हैं. मंदिर मे लोग ज्योति जलाने के लिये इतना शुद्ध घी दान कर जाते हैं कि उसे आस- पास के मंदिरो मे भेज दिया जाता है. उस घी को पुजारी लोग अपने घर मे इस्तेमाल मे नही लेते हैं. मंदिर की आपनी गौशाला है. जहां करीब 2500 गाय रहती है. इस गौशाला मे कोई भी अपनी बीमार, बूढ़ी , दूध ना दे रही हो , गाय को छोड़ सकता
मंदिर के प्रांगण की फोटो
मंदिर के साथ मे ही धुनी जल रही है
यहाँ मंदिर मे फोटो खीचना मना था. फोटो खीचने की कोशिश कर रहा था तभी प्रसाद बांटने बाले ने मुझे
फोटो खीचते देख जोर आवाज लगाई ऐ कैमरा , यहाँ फोटो खीचना मना है.
दोपहर हो गयी थी, सीकर धर्मशाला मे ही खाने की व्यवस्था थी. 30 रुपये की थाली थी. खाना वगैर प्याज-लहसुन का बना हुआ था. साधारण पर स्वादिष्ट था. कई लोग जो कि दूसरी जगह ठहरे हुए थे वह भी यहाँ पर खाना खाने के लिये आ रहे थे.
बस अड्डा मंदिर से थोड़ी सी ही दूरी पर है , यहाँ पर साइकल रिक्शा नही चलते है. हम पैदल टहलते हुए बस अड्डा पहुंच गये. मुझे बीदासर जाना था. मेरे मित्र का गॉँव भी बीदासर से थोड़ा पहले पड़ता है. बोले मुझे तो गॉँव मे थोड़ा सा काम है तो लौटते समय, रास्ते मे अपने गॉँव पर उतर जाऊंगा तुम वापस यहाँ आ जाना. मैने पूछा कितनी देर का काम है कहने लगे बस यह पेपर एक रिश्तेदार को देना है. मैने कहा फिर तो मै भी साथ चलता हूँ इस बहाने तुम्हारे गॉँव को देख लूँगा. रास्ते मे हरे-भरे पेड़ तो एक-दो जगह पर ही नजर आये वर्ना तो हर तरफ रेतीले मिट्टी के मैदान और उनके बीच झाडनुमा पेड़ थे. पेडो मे इतनी कम पत्तियाँ थी कि पेडो की छाया तो नाम मात्र को जमीन पर पड रही थी और इस चिलचिलाती गर्मी मे ठंडक की आस मे पशु उनके नीचे खड़े थे. बीदासर से थोड़ा पहले सड़क के किनारे हिरनो को घास चरते हुए देख कर आचरज हुआ. पूछने पर पता लगा यह इलाका हिरणो के लिये संरच्छित है, यहाँ पर उगने वाली घास की जड मे एक तरह की दाल पैदा होती है जो कि बहुत ही पौष्टिक होती है. पहले बहुत लोग उस दाल को खरीदने के लिये यहाँ पर आते थे. पर अब सरकार ने इस घास को उखाड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया है. अन्यथा हिरन के खाने के लिये कुछ नही बचता. मैने पूछा इस तरह से खुले मे घूमते हुए हिरणो को कोई डर तो नही. बताया कि यहाँ पर कोई भी इन हिरणो का शिकार या हानि नही पहुंचता है.
बीदासर से लौटते समय हम छापर गाँव उतर गये . मैने पूछा कितना चलना पड़ेगा, बोले करीब 2-3 किलोमीटर सड़क से अंदर की तरफ है. मै मन ही मन सोंच रहा था कि खेतो के बीच से , मिट्टी की पगडंडी से होते इनके यहाँ पहुचना होगा. पर करीब एक- दो किलोमीटर चलने के बाद भी खेत नजर नही आये. काफी बड़ी पक्की सड़क थी और सड़क के दोनो तरफ पक्के सीमेंट के अच्छे – अच्छे मकान बने हुए थे. मैने फिर पूछा अभी कितनी दूर तुम्हारा गॉँव है , वह बोले यह गाँव ही तो चल रहा है. मैने आश्चर्यचकित होकर कहा अगर यह गाँव है तो शहर कैसा होता है,
अरे भई यहाँ इतनी साफ- सुथरी सड़क और मकान देख कर कौन इसे गाँव कहेगा. ऐसी साफ- सुथरी तो दिल्ली की गलियाँ भी नही है. दिल्ली की AUTHORISED D.D.A. की कालोनी के पास भी गंदगी के ढेर और टूटी फूटी सड़के मिल जायेंगी . पर यहाँ तो ऐसा कुछ भी नही है. चलते -चलते मैने देखा कि यहाँ पर हर घर के बाहर, बाहरी दीवार पर बिजली के मीटर लगे हुए थे. जहन मे सवाल उठा, शायद बिजली की चोरी को रोकने के लिये सरकार ने यहाँ पर मीटर बाहर लगाये होंगे. मैने तुरंत यह बात अपने मित्र से कही तो वह बताने लगे ऐसा नही है. हमारे राजस्थान मे पर्दा प्रथा है. आदमी लोग दिन मे काम करने चले जाते हैं , पीछे से बिजली की रीडिंग लेने वालो के लिये कोई भी स्त्री घर के दरवाजे नही खोलती हैं, इस कारण से यहाँ पर मीटर सभी के घर के बाहर लगे हुए हैं. मैने कहा दिल्ली , NCR मे लगा के देखो , अगले ही दिन सारे मीटर गायब मिलेंगे. एक और बात कोई भी मीटर टूटा-फूटा नही था. नहीं तो यहाँ के बच्चे ही पत्थर मार कर तोड देंगे.
छापर गाँव
हर घर के बाहर, बाहरी दीवार पर बिजली के मीटर लगे हुए
वैसे तो यह इतनी विशिष्ट यात्रा नही थी पर कुछ ना होकर भी ऐसा बहुत कुछ था जिसके कारण मै लिखने के लिये विवश हुआ. आप लोगो को कैसी लगी …………..
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I am from Bhatinda, Punjab and many people from there go to Salasar on pilgrimage. First they go to Sri Ganganagar and then in the desert to this place. I was always tempted to visit there but unfortunately I never made it.
Your’s is the only post on Salasar and it tell about that place.
Thanks. Pl. keep up with good work.
Dear Mr. Praveen
Its nice to know you are well aware about salasar balaji hanuman. I saw there few Panjabi and sardar family were staying in dharmshala to visit mandir. Last week I again visited there and saw few young boys at 5 A.M. going for darshan of balaji. My friend told me on Saturday, Tuesday and on purnima, here are huge rush of devotee of balaji hanuman and que reach about 2 to 3 kilomitar.
Very engaging narrative, Rastogi jee, about your pilgrimage to Salasar. It is said that everything happens for a reason and there are no co-incidences in life. The events during the run up to your trip seem to corroborate this fact. Thanks for making us aware of this holy place of which few people have heard of, other than Rajasthanis.
The temple itself seems to be of recent origin and I am sure there must be some fascinating stories about it like who built it, why he built it and the reason for his samadhi being inside the temple complex. Your story would have been even better had included these details.
Dear Mr. Narayan
I agree with you everything happens for a reason and there are no co-incidences in life.
after your nice comments i search in google mentioning salasar balaji hanuman and found lot of web page about salasar balaji and lot of infomation available there. see below few link.
http://in.jagran.yahoo.com/dharm/?page=article&articleid=4851&category=11
http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/660/4/135
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%B0_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80
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dear Ritesh
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jai hanuman…
churu is well connected via rails frm jaipur too…by meter gauge…
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dear Mukesh
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dear deependra
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