महेश्वर किला – पत्थर की दीवारों में कैद यादें………..भाग 3 (समापन किश्त)

इस श्रंखला के पिछले भाग में मैंने आपको जानकारी दी थी की किस तरह से हम महेश्वर में अहिल्या घाट पर कुछ देर रूककर नर्मदा में बोटिंग के लिए गए तथा जलस्तर अधिक होने के कारण नर्मदा के बीच टापू पर बने सुन्दर शिव मंदिर में दर्शन नहीं कर पाए. नर्मदा माँ का रौद्र रूप देखा था उस दिन हमने, माँ नर्मदा की बड़ी बड़ी लहरों की वजह से हमारी नाव बुरी तरह से हिचकोले खा रही थी तथा हमें डर लग रहा था लेकिन नाव चालक ने हमें आश्वासन दिया की हमें सुरक्षित किनारे तक ले जाने की उसकी जिम्मेदारी है और फिर हम सारी चिंता, डर छोड़कर बोटिंग का आनंद लेने लगे. पिछले भाग में मैंने माँ नर्मदा का परिचय देने का भी एक छोटा सा प्रयास किया था………………..अब आगे.

बोटिंग तथा शिवम् को घोड़े की सैर कराने के बाद हमने एक छोटी दूकान से कुछ चने एवं ककड़ी खरीदी तथा उन्हें खाते हुए अब आगे बढ़ रहे थे किले में प्रवेश के लिए. घाट के पास से ही किले में प्रवेश करने के लिए एक चौड़ा घेरा लिए बहुत सारी सीढियाँ बनी हुई हैं जिन्हें आपने पिछली पोस्ट्स में किले के चित्रों के साथ देखा ही होगा. इन सीढियों पर चढ़ते हुए हम किले में प्रवेश कर गए. यह किला जितना सुन्दर बाहर  से है उससे भी ज्यादा सुन्दर तथा आकर्षक यह अन्दर से लगता है. इतनी सुन्दर कारीगरी, इतनी सुन्दर शिल्पकारी, इतना सुन्दर एवं मजबूत निर्माण की आज भी यह किला नया जैसा लगता है.
अन्दर जाकर एक तरफ राज राजेश्वर शिव मंदिर है तथा दूसरी तरफ एक अन्य स्मारक है. कुल मिला कर एक बड़ा ही सुन्दर दृश्य उपस्थित होता है. और कहीं जाने के मन ही नहीं होता है तथा ऐसा लगता है की घंटों एक ही जगह खड़े होकर इस किले की नक्काशी तथा कारीगरी, झरोखों, दरवाज़ों एवं दीवारों को बस देखते ही रहें. कुछ देर स्तब्ध होकर चारों और देखने के बाद अब हम राज राजेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए चल दिए.

किले में प्रवेश से पहले (ऊपर दिखाई देता राज राजेश्वर मंदिर का शिखर)

किले का प्रवेश द्वार – कोई टूट फुट नहीं, कोई क्षरण नहीं आज भी बिलकुल नया दिखाई देता है.

कहते हैं की देवी अहिल्या बाई ने अपने एकमात्र पुत्र मालिराव को उनके ख़राब आचरण से परेशान होकर हाथियों के पैरों में कुचलवा दिया था – इसी जन श्रुति को दर्शा रहा यह शिल्प

प्राचीन राज राजेश्वर मंदिर जिसमें देवी अहिल्या बाई नित्य प्रतिदीन पूजा करती थीं.

राजवाड़ा की और जानेवाला द्वार

किले के अन्दर सुन्दर निर्माण तथा नक्काशी

राज राजेश्वर मंदिर तथा दायें हाथ पर रेवा सोसाइटी की और जानेवाली सीढियाँ

थोडा विश्राम हो जाये….

राज राजेश्वर मंदिर का प्रवेश द्वार

किले के ऊपर सुन्दर झरोंखे

किले की एक दिवार

किले के ऊपर से…………….

राज राजेश्वर मंदिर के बाद किले में और अन्दर जाने पर रेवा सोसाइटी (महेश्वरी साड़ी के हस्तशिल्प के निर्माण तथा विपणन के लिए जिम्मेदार संस्था) का ऑफिस तथा थोड़े अन्दर की ओर एक कार्य शाला स्थित है जहाँ महेश्वरी हस्तशिल्प में पारंगत महिलाएं रेवा सोसाइटी के अधीन महेश्वरी साड़ियों तथा कपडे का हाथ करघों (हैण्ड लूम्स) की सहायता से निर्माण करती हैं. उल्लेखनीय है की यहाँ पर निर्मित महेश्वरी साड़ियाँ देशभर में प्रसिद्द हैं.

महेश्वरी साड़ियाँ – 

देवी अहिल्या बाई की राजधानी बनने के बाद महेश्वर ने विकास के कई अध्याय देखे. एक छोटे से गाँव से इंदौर स्टेट की राजधानी बनने के बाद अब महेश्वर को बड़ी तेजी से विकसित किया जा रहा था. सामाजिक, धार्मिक भौतिक तथा सांस्कृतिक विकास के साथ ही साथ देवी अहिल्या बाई ने अपनी राजधानी को औद्योगिक रूप से समृद्ध करने के उद्देश्य से अपने यहाँ वस्त्र निर्माण प्रारंभ करने की योजना बनाई. उस समय पुरे देश में वस्त्र निर्माण तथा हथकरघा में हैदराबादी बुनकरों का कोई जवाब नहीं था. अतः देवी अहिल्या बाई ने हैदराबाद के बुनकरों को अपने यहाँ महेश्वर में आकर बसने के लिए आमंत्रित किया तथा अपना बुनकरी का पुश्तैनी कार्य यहीं महेश्वर में रहकर करने के आग्रह किया. अंततः देवी अहिल्या के प्रयासों से हैदराबाद से कुछ बुनकर महेश्वर आकर बस गए तथा यहीं अपना कपडा बुनने का कार्य करने लगे. इन बुनकरों के हाथ में जैसे जादू था, वे इतना सुन्दर कपडा बुनते थे की लोग दांतों तले  ऊँगली दबा लेते थे.

इन बुनकरों को प्रोत्साहित करने के लिए देवी अहिल्या बाई इनके द्वारा निर्मित वस्त्रों का एक बड़ा हिस्सा स्वयं खरीद लेती थी जिससे इन बुनकरों को लगातार रोजगार मिलता रहता था. इस तरह ख़रीदे वस्त्र महारानी अहिल्या बाई स्वयं के लिए, अपने रिश्तेदारों के लिए तथा दूर दूर से उन्हें मिलने आने वाले मेहमानों तथा आगंतुकों को भेंट देने में उपयोग करती थीं. इस तरह से कुछ ही वर्षों में महेश्वर में निर्मित इन वस्त्रों खासकर साड़ियों की ख्याति पुरे भारतवर्ष में फैलने लगी, तथा अब महेश्वरी साड़ी अपने नाम से बहुत दूर दूर तक मशहूर हो गई थी.
इन बुनकरों से देवी अहिल्या बाई का विशेष आग्रह होता था की वे इन साड़ियों पर तथा अन्य वस्त्रों पर महेश्वर किले की दीवारों पर बनाई गई डिजाइनें बनाएं. और ये बुनकर ऐसा ही करते, आज भी महेश्वरी साड़ियों की बौर्डर पर आपको महेश्वर किले की दीवारों के शिल्प वाली डिजाइनें मिल जायेंगीं.
देवी अहिल्या बाई चली गईं, राज रजवाड़े चले गए, सब कुछ बदल गया लेकिन जिस तरह आज भी महेश्वर का किला अपनी पूरी शानो शौकत से नर्मदा नदी के किनारे खड़ा है उसी तरह महेश्वर की वे प्रसिद्द साड़ियाँ आज भी अपने उसी स्वरुप उसी निर्माण पद्धति, उसी सामग्री तथा उसी रंग रूप एवं डिजाइन में निर्मित होती है तथा महेश्वर के अलावा देश के अन्य कई हिस्सों में महेश्वरी साड़ी के नाम से बहुतायत में बिकती हैं.
महेश्वरी साड़ियों की परंपरा को जीवित रखने के लिए तथा इस कला के विकास के लिए इंदौर राज्य के अंतिम शासक महाराजा यशवंतराव होलकर के इकलौते पुत्र युवराज रिचर्ड ने रेवा सोसाइटी नामक  एक संस्था तथा ट्रस्ट का निर्माण किया तथा आज भी उनकी देख रेख में महेश्वर के किले में ही महेश्वरी साड़ियों का निर्माण होता है, बनाने वाले कारीगर भी उन्ही बुनकरों के वंशज हैं जो देवी अहिल्या बाई के समय हुआ करते थे, तथा जिन्हें देवी अहिल्याबाई ने हैदराबाद से आमंत्रित किया था.


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महेश्वरी साड़ियाँ

महेश्वरी हस्त शिल्प (अपने निर्माण के चरणों में)

रेवा सोसाइटी के अन्दर पर्यटकों के लिए प्रवेश निषेध हैं लेकिन जाली की खिडकियों से महिलाओं को महेश्वरी साड़ियाँ बुनते देखा जा सकता है. बड़ी ही अद्भुत कला है यह, महिलायें अपने काम में इतनी माहिर हैं की उनका यह हस्त कौशल देखते ही बनता है, कुछ देर इस द्रश्य को अपलक निहारने के बाद हम लोग सीढियों पर आगे की ओर बढे.

किले के अन्दर प्रवेश के बाद राज राजेश्वर मंदिर एवं रेवा सोसाइटी के बाद आता है एक बड़ा हॉल जहाँ एक ओर देवी अहिल्या बाई का राजदरबार है तथा उनकी राजगद्दी है जिसपर उनकी सुन्दर प्रतिमा रखी गई है, यह द्रश्य इतना सजीव लगता है की ऐसा प्रतीत होता है की देवी अहिल्या बाई सचमुच अपनी राजगद्दी पर बैठकर आज भी महेश्वर का शासन चला रही हैं. आज भी यह स्थान सजीव राजदरबार की तरह लगता है.

राजवाड़ा का प्रवेश द्वार

हॉल में दूसरी ओर होलकर राजवंश के शासकों के द्वारा उपयोग में लाये गए अस्त्र शस्त्रों की एक छोटी सी प्रदर्शनी लगी है यहीं पर एक सुन्दर सी पालकी भी रखी है जिसमें बैठकर देवी अहिल्या बाई नगर भ्रमण के लिए जाती थीं. इन सब चीजों को देखने से ऐसा लगता है जैसे हम सचमुच ढाई सौ साल पुराने देवी अहिल्या के शासन काल में विचरण कर रहे हैं. किले में स्थित एक छोटे से मंदिर से आज भी दशहरे के उत्सव की शुरुआत की जाती है जैसे वर्षों पहले यहाँ होलकर शासनकाल में हुआ करता था. किले से ढलवां रास्ते से निचे जाते ही शहर बसा हुआ है.

देवी अहिल्या बाई का दरबार तथा राज गद्दी

देवी अहिल्या बाई का दरबार तथा राज गद्दी………..यहीं उनकी असली बैठक थी

देवी अहिल्या बाई की पालकी जिसमें बैठकर वे नगर भ्रमण के लिए जाया करती थीं

महेश्वर के मंदिर दर्शनीय हैं. हर मंदिर के छज्जे, अहाते में सुन्दर नक्काशी की गई है. कालेश्वर, राजराजेश्वर, विट्ठलश्वर और अहिल्येश्वर मंदिर विशेष रूप से दर्शनीय हैं.

देवी अहिल्या का सजीव राजदरबार तथा राजगद्दी के दर्शन करने के बाद हम आगे बढे, अगला दर्शनीय स्थल है देवी अहिल्या का पूजास्थल जहाँ पर अनेकों धातु के तथा पत्थर के अलग अलग आकार के शिवलिंग, कई सारे देवी देवताओं की प्रतिमाएं, और एक सोने का बड़ा सा झुला जो यहाँ का मुख्य आकर्षण है जिसपर भगवान् कृष्ण को बैठाकर मां अहिल्या झुला दिया करती थीं. इन सारी प्रतिमाओं तथा शिवलिंगों को एक कक्ष में संगृहीत करके रखा गया है, इस कक्ष में प्रवेश पूर्णतः निषेध है तथा इस छोटे कक्ष के लिए एक सुरक्षा  गार्ड हमेशा तैनात  रहता है क्योंकि यहाँ  कई मूल्यवान धातुओं की प्रतिमाएं रखी गई हैं.

पूजा घर – इन्हीं मूर्तियों की देवी अहिल्या बाई पूजा किया करती थीं.

अब तक मैंने आपको अपनी इंदौर की कुछ पोस्ट्स तथा महेश्वर की इस सिरीज़ में देवी अहिल्या बाई के बारे में बहुत कुछ जानकारी दी. इतनी महान शासिका, इंदौर राज्य की महारानी, परम तथा समर्पित शिव भक्त आदि………इतना कुछ जानने के बाद थोड़ी सी उत्सुकता होती है उनके निजी जीवन को महसूस करने की….वे कहाँ तथा किस तरह रहती होंगी? उनका घर कैसा होगा? उनकी रोज़मर्रा की इस्तेमाल की वस्तुएं कैसी होंगी? आइये आपकी इस गुत्थी को भी हल करती हूँ. मैंने अपनी पिछली पोस्ट में बताया था की कुछ सालों के बाद अपनी राजधानी इंदौर से महेश्वर में शिफ्ट करने के बाद देवी अहिल्या बाई अपने अंत तक महेश्वर में ही रहीं तथा महेश्वर किले के सबसे उपरी हिस्से में उनका अपना निजी निवास स्थान था.

क्या आप उनके निजी आवास में रहना चाहते हैं? यह हो सकता है, जी हाँ मैं सच कह रह रही हूँ आप भी देवी अहिल्या बाई के स्वयं के घर में जहाँ वे वर्षों तक रही, रह सकते हैं. कैसे? आइये मैं आपको बताती हूँ.

देवी अहिल्या बाई के पूजा घर से कुछ कदमों की दुरी पर ही स्थित है एक लकड़ी का द्वार जिसके अन्दर है एक आलिशान महल जो कभी होलकर राजवंश के शासकों का निजी आवास हुआ करता था लेकिन आजकल इस महल को एक हेरिटेज होटल का रूप दे दिया गया है और इस होटल में एक अच्छे तीन सितारा होटल के समकक्ष सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं. लगभग छः हज़ार से सात हज़ार प्रतिदीन के हिसाब से भुगतान करके यहाँ रहा जा सकता है. इस होटल का नाम है – होटल अहिल्या फोर्ट, होटल की वेबसाईट देखने के लिए आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं  http://www.ahilyafort.com/ . यह होटल इस किले की सबसे उपरी इमारत पर स्थित है, और इस होटल के मालिक हैं प्रिन्स रिचर्ड होलकर तथा वे ही इस होटल की देख रेख तथा प्रबंधन का काम देखते हैं.

किले की सबसे उपरी मंजिल पर स्थित होटल अहिल्या फोर्ट जो कभी देवी अहिल्या बाई का निजी निवास स्थान हुआ करता था – इस निजी आवास को आजकल होलकर राजवंश के वर्तमान वारिस प्रिन्स रिचर्ड होलकर ने एक हेरिटेज होटल में तब्दील कर दिया है तथा वे स्वयं भी यहीं रहते हैं.

प्रिन्स रिचर्ड होलकर, इंदौर राज्य के अंतिम शासक महाराजा यशवंतराव होलकर “द्वितीय” के एकमात्र सुपुत्र  हैं. दरअसल महाराजा यशवंत राव की दो महारानियाँ थीं, एक भारतीय थीं महारानी संयोगिता राजे तथा दूसरी महारानी अमेरिका की थीं मार्गरेट. महारानी संयोगिता राजे होलकर से महाराजा यशवंत राव की एक पुत्री है महारानी उषा राजे (वर्तमान नाम उषा मल्होत्रा) जो की वर्तमान में मुंबई में अपने पति श्री सतीश मल्होत्रा के साथ मुंबई में रहती हैं.

अमेरिकन महारानी से महाराजा यशवंत राव के एक पुत्र हैं प्रिन्स रिचर्ड होलकर जो पूर्व इंदौर राज्य की राजधानी महेश्वर में ही अभी भी महेश्वर के किले में निवास करते हैं तथा होटल अहिल्या फोर्ट का काम काज देखते हैं. रिचर्ड होलकर की पत्नी भी अमेरिका की हैं तथा उनके एक पुत्र प्रिन्स यशवंत तथा प्रिंसेस सबरीना अमेरिका में ही रहते हैं.

किले के ऊपर जो सफ़ेद भवन दिखाई दे रहा हैं न, वही कल का देवी अहिल्या का निवास तथा आज का होटल अहिल्या फोर्ट है.

होटल अहिल्या फोर्ट की गैलरी जहां से नर्मदा तथा इसके घाट स्पष्ट दिखाई देते हैं.

देवी अहिल्या बाई का घर / होटल अहिल्या फोर्ट अन्दर से…

होटल अहिल्या फोर्ट का रेस्टारेंट

प्रिन्स रिचर्ड होलकर

रिचर्ड के पिता तथा इंदौर राज्य के अंतिम महाराजा – यशवंत राव होलकर “द्वितीय”

विदेशी तथा अहिंदू माँ के पुत्र होने की वजह से रिचर्ड को इंदौर राज्य का उत्तराधिकारी नहीं बनाया गया तथा उन्हें महाराजा होने का पद तथा उपाधियाँ नहीं प्रदान की जा सकीं. वर्तमान में इंदौर राज्य की उत्तराधिकारी महारानी हैं महारानी उषाराजे होलकर जिनके बारे में मैं पहले ही जानकारी दे चुकी हूँ.

महेश्वर का हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री (बॉलीवुड) सम्बन्ध:   

महेश्वर का हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री से बहुत गहरा सम्बन्ध है. महेश्वर के घाट तथा नर्मदा तट की सुन्दरता को अब तक कई बार बॉलीवुड की फिल्मों में फिल्माया जा चूका है. यहाँ पर कुछ तमिल फिल्मों की तथा गानों की शूटिंग भी हो चुकी है. सबसे पहले जिक्र करना चाहूंगी सचिन तथा साधना सिंह अभिनीत फिल्म “तुलसी” की. यह पूरी की पूरी फिल्म महेश्वर के घाटों तथा आसपास के परिवेश में फिल्माई गई है तथा अपने समय की एक हिट फिल्म थी. फिल्म अशोका में भी महेश्वर को फिल्माया गया है. १९६० की एक प्रसिद्द पौराणिक फिल्म महाशिवरात्रि की शूटिंग भी यहीं हुई थी तथा इस फिल्म में कई स्थानीय लोगों को भी अदाकारी का मौका दिया गया था. हेमा मालिनी निर्मित ज़ी टीवी के सीरियल झांसी की रानी की शूटिंग भी महेश्वर में ही हुई थी और हेमा मालिनी अपने सीरियल के लिए यहाँ से ढेर सारी महेश्वरी साड़ियाँ भी खरीद कर ले गई थीं. 1985 में बनी एक और पौराणिक फिल्म आदि शंकराचार्य की भी पूरी शूटिंग यहीं संपन्न हुई थी.

शायद ये सब फ़िल्में आपलोगों को याद होगी या नहीं मुझे नहीं पता है लेकिन एक बात दावे के साथ कह सकती हूँ की अभी 2011 में बनी धर्मेन्द्र , सनी देओल और बोबी देओल की सुपर हिट फिल्म “यमला पगला दीवाना” की 50 मिनट की शूटिंग महेश्वर के विभिन्न स्थलों जैसे बाज़ार चौक, राजवाडा, अहिल्याबाई छतरी, अहिल्या घाट तथा अन्य स्थानों पर संपन्न की गई. यह महेश्वर का दुर्भाग्य ही रहा की फिल्म की लगभग आधी शूटिंग महेश्वर में हुई और करीब एक महीने तक फिल्म की पूरी टीम यहाँ होटल अहिल्या फोर्ट में रुकी लेकिन फिल्म में इस जगह को “वाराणसी” के रूप में दिखाया गया है. सच है हमेशा छोटा गरीब एवं मजबूर व्यक्ति ही छला जाता है.

थोड़ी सी खरीदारी

महेश्वर की इस जानकारी के बाद अब लौटती हूँ अपनी घुमक्कड़ी की ओर- महेश्वर के सुन्दर घाट, नर्मदा नदी, महेश्वर किला, किले के अन्दर देवी अहिल्या के दरबार, होटल अहिल्या फोर्ट तथा पूजा घर आदि देखने के बाद हम वापस किले के निचे उसी रास्ते से उतर कर आ गए तथा कुछ ही देर में हम घाट पर थे.

घुमने फिरने में काफी एनर्जी ख़त्म हो गई थी अतः अपने आप को चार्ज करने के हिसाब से हमने घाट पर ही स्थित एक दूकान से कुछ भुट्टे लिए तथा उन्हें खाते हुए धीरे धीरे घाट पार करके कार पार्किंग की ओर चल दिए.
पार्किंग से अपनी कार लेने के बाद हम अपने घर की ओर वापसी के मार्ग पर अग्रसर हो गए. शाम के कुछ छः बजे थे और हमें अपने घर पहुँचने में लगभग आठ बजनेवाले थे अतः घर जाकर खाना बनाने का तो कोई सवाल ही नहीं था, सो हमने सोचा की खाना रास्ते ही किसी होटल पर खाते हुए चलेंगे. मुकेश जी ने सुझाव दिया की क्यों न आज किसी रोड साईड ढाबे पर बिलकुल देसी स्टाईल में खाट पर बैठ कर खाना खाया जाए, बस फिर क्या था हम सब एकमत हो गए और ऐसे ही किसी ढाबे की तलाश में  बहार देखने लगे.
अब तक अँधेरा हो गया था, कुछ 50 किलोमीटर चलने के बाद हमें रोड़ के किनारे नीरज जाट जी का ढाबा दिखाई दिया. बस फिर क्या था, खाने के लिए नीरज जाट जी के ढाबे से अच्छी जगह क्या हो सकती थी सो हमने अपनी गाडी वहीँ रोक दी और नीचे उतर गए, लज़ीज़ खाने की तलाश में.
आपको विश्वास नहीं हो रहा की हमने नीरज जाट के ढाबे पर खाना खाया? चलिए आप खुद ही देख लीजिये यह फोटो, अपनी आँखों से देख कर विश्वास कीजियेगा.

नीरज जाट का ढाबा – विश्वास नहीं होता? खुद ही पढ़ लीजिये

नीरज जाट के ढाबे पर देसी स्टाइल में स्वादिष्ट खाने का आनंद

ढाबे पर स्वादिष्ट भोजन के बाद अब हमारा घर करीब 25-30 किलोमीटर और रह गया था और लगभग आठ बजे हम ख़ुशी ख़ुशी मन में महेश्वर की इस यादगार ट्रिप की ढेरों यादे संजोये अपने घर आ गए.

आइये अब मैं आपको महेश्वर पर्यटन के बारे में कुछ और जानकारी देने का प्रयास करती हूँ.

वायु सेवा: महेश्वर के लिए निकटतम हवाई अड्डा इंदौर 91 किलोमीटर की दुरी पर है तथा मुंबई, दिल्ली, भोपाल तथा ग्वालियर से सीधी विमान सेवा से जुड़ा हुआ है.

रेल सेवा: महेश्वर के लिए बडवाह (39 किलोमीटर) निकटतम रेलवे स्टेशन है. पश्चिमी रेलवे के बडवाह, खंडवा, इंदौर से भी यहाँ तक पहुंचा जा सकता है.

सड़क मार्ग: बडवाह, खंडवा, इंदौर, धार और धामनोद से महेश्वर के लिए बस सेवा उपलब्ध है.

जुलाई से लेकर मार्च तक का समय महेश्वर पर्यटन के लिए उपयुक्त है. ठहराने के लिए यहाँ कई गेस्ट हाउस, रेस्ट हाउस तथा धर्मशालाएं हैं.

 

महेश्वर की तीन भागों वाली इस श्रंखला का अब समापन करती हूँ. फिर मिलेंगे जल्दी ही किसी और टूर की ताज़ा कहानी के साथ तब तक के लिए बाय बाय………..

 

45 Comments

  • JATDEVTA says:

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  • Hemant Kumar Kewlani says:

    I proposed to visit Indore, Ujjain and near about. Can you pl mail your mobile/phone for guidence, whenever We will visit. Thanks

  • rajesh priya says:

    sabse pahle meri dher saari badhai sweekare,kyunki aapne anya lekhako ki tarah bahut jyada intezar nahi karwaya,aur jald hi post kar dia. padhkar bahut khushi hui ,balki padhne se jyada fort ke photo dekhne se hui.maine pichhli baar hi likha tha ki we kaise kalakar honge jo uswaqt kisi IIT ya HARWARD university me nahi padhe aur itna bhavya aur majboot(jiasa dekh kar hi lag raha hai,aur aapne bhi likha hai koi tut foot nahi) sundar aaj bhi naya sa dikhne wala fort bana dia.jo bunkar aaye the o koun si CAD ki padhai kie the jo aaj bhi dunia me mashoor saari bana rahe hain. fort to jivan me ekbaar dekhne layak hai hi.mouka mila to jaroor dekhunga. devi ahilya bai ke baare me bahut kam jaankari thi jo aapne badha di.unke family ke baare bata kar. niraj jat ke yahan ka khane ka photo dekh kar munh me paani aa gaya.bahut khub aise hi jald se fir kuchh jankaari dijiye.

    • Kavita Bhalse says:

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  • rajesh priya says:

    ek baat jo likhna bhul gaya, jaisa ki aapne bataya yahan film ki shooting hui hai,main batana chahunga ki tulsi movie me ek kalakar the INDER THKUR,unki tragic death 1985 me kanishka plain blast me ho gaee thi,ye film unki death ke just baad release hui thi.rahi baat yamla pagla ki to jaisa naam hi hai film ka usase kya ummeed ki ja sakti hai,aur usase maheshwar ki mahatta kam nahi ho jaati.

    • Kavita Bhalse says:

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  • Mahesh Semwal says:

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    • SilentSoul says:

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  • s r holkar says:

    kavita ji; ‘bhut hi sundar’ maheshwer kile aur devi Ahilya bai ke bare main Itni sari jankari ke sath-sathunke pariwar se bhi avgat karaya .ganpati gi ki kirpa Aap ke pariwar per sda bani rahe.dhanywad.

    • Kavita Bhalse says:

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  • Surinder Sharma says:

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    • Kavita Bhalse says:

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    • Kavita Bhalse says:

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  • Out of Mumbai ,

    Commenting only after seeing pics. Beautiful place and thanks for taking us there. will read later.

  • Baldev swami says:

    Dear kavita jee,
    Very well written, again you break all the records of presentation, What a photographs of fort, Darbar of Ahilya bai, palki of ahilya bai, and your photographs in front of fort , so amazing,
    You have written so well, so request for your next post at the earliest. Please visit HImachal in future,

    Thanks and regards,

    Baldev swami

    • Kavita Bhalse says:

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  • Ritesh Gupta says:

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    • Kavita Bhalse says:

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  • D.L.Narayan says:

    Kavita jee,

    At the outset, I should apologise for the late response. You have written a beautiful series on Maheshwar, the little known capital of Malwa during the reign of Rani Ahilyabai Holkar. The pictures of the ghats on the Narmada river and of the forts and temples have come out very well. The title of this installment, “Memories trapped in stone walls” is very poetic and one of the best titles on ghumakkar.

    Through your posts, we have come to know a lot about one of India’s greatest queens. She had done a lot for the emancipation of women and for Hindu renaissance after the collapse of the Mughal dynasty. It felt great to see her palaces and temples. I was not aware of the fact that the weavers of Maheshwar are originally from my home state. However, it is sad to know that the descendants of Maharani Ahalyabai will soon disappear in the American melting pot and there is nobody to carry forward the glorious heritage after Richard Holkar.

    Thanks, once again, for writing this series and reminding us of the great Queen Ahilyabai.

  • Vibha says:

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    • Kavita Bhalse says:

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  • dr o p tiwari says:

    kavitaji namskarm.

    aapne prattuttar diya dhanyavadm

    aap maheshwar tirth me narmda ke kinahare tak pahuche aur aaplogo ne vaha snan nahi kiya aaccha nahi kiya j ankar accha nahi laga.

    tirth me snan ke liye hi jaya jata ha.hindu manyata me tirth snan ka bada mahtv diya ha.

    baccho ko sanskar dene ke liye bhi aap ko karna chahiye tha.

    aapne indore ka nam likha ,aabhar……..

    yadi sambhav to aagami dino me indore me dol gyaras aur anant chaturdshi ka parv bahut hi dhum dham sa
    manaya jata ha.
    khub sundar zakiya rat bha niklti ha.

    aap chahe to khargon sa indore aakar ananat chardashi ka anand la sakte ha aur ek accha aalekh–post–bhi aapki ban jayegi ,anant chatrdashi ko indore me rat nahi hoti essa mana jata ha.
    .khargone sa yadi indore me koi kam ho vah bhi ho jayega.

    yadi aapko suvidha aur anukoolta ho to aap log kar sakege.

    ya 2-3 din mill me bhi zakiya dekhi ja sakti ha.

    pariwar sahit aapko shubh kamnaye.

    dr.o.p. tiwari indore m.p.

  • Kavita Bhalse says:

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    • dr o p tiwari says:

      namskar

      agle varsh ka sabhi log pratikha karege.
      ghata billod to indore hi ha.
      mera aagrah tha ki malwa aur shayad nimar me SANJA ya SANZA par bahut sundar chitra gobar sa diwaro par banaye jate ha aur pooja prathana aur sundar sundar geet chote bacche,ladkiya gati ha.aap ke ghar ke aaspas ya pas ke kisi gav me aap thode prayas sa ek sundar aalekh-post- ban sakti ha.samay kam ha prayas kijiye.
      malwa nimar ka jo bhi log dhekhege bahut prasnna hoge.
      dhanyadm

      dr.o.p. tiwari
      indore m.p.

  • Mukesh Bhalse says:

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    • dr o p tiwari says:

      MUKESH JI

      NAMSKAR
      OMKARESHWAR UJJAIN INDORE DEKH KAR FIR AAP KO KUCH LIKHNE KA PRAYAS KARUNGA.

      PADHARE KABHI,GANGWAL KE PAS HI NIWAS HA.
      ACCIDENT KA KARAN ABHI GHAR PAR HI RAHTA HU, AT: KABHI BHI PADHARE SWAGATM HA…………………..

      BAHUT SHUBHKAMNAYE

      DR O.P. TIWARI
      INDORE M P

      • Mukesh Bhalse says:

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        • dr o p tiwari says:

          mukeSH ji

          mai aapko mobile par msg kar raha hu.

          chot ke karan kan me taklif ha at: bat sun nahi pauga.

          aapne kisi purane mitra ki tarah jabab diya, bahut aaccha laga.

          aapka bahut bahut SWAGATM ha

          dr o.p. tiwari
          indore

  • Nandan Jha says:

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    • Kavita Bhalse says:

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  • AKHILESH YADAV says:

    Kavita Ji,
    aapne Maheshwar ke bare me jo bhi jankari mujhe bahut aacha laga kyuki jankari bahut saf saf di he khas kar photo ke madhyam se unme jo ek photo jisme hathiyo dwara saja di gayi he us ke bare me mene apni dadi se suna tha wo kehati thi ki devi ahilya bai ne apne bete ko galat kaam karne par hathiyo se kuchlwa diya kabhi jaye to dekhan photo bhi bani he lekin me 2 se 3 bar gaya lekin dekh nahi paya lekin aaj aapke madhyam se mene dekh li wo photo me maheshwar se 40km dur khargone se hu lekin jo me waha dund raha tha wo aapke madhyam se mil dhanyawad

    thanks

  • mohsin khan says:

    Itni achhi jankari dene k liye….. thank you

  • KULDIP SINGH YADAV "NIRALA" says:

    Respected Kavita Jee (Hindustani History writer),
    i have visited the Maheshwar Fort Yesterday on 24/09/2016 Sunday and found very great History place temple and Mother river Holy Narmada , taken a dip to and worshiped
    i read a detailed History with Photograph written by you, its realy very good maximum information about fort, queen, and king and way of administration of kingdom with in the name almighty GOD .
    God bless you with more writing power in future too
    thanks a lot
    kuldip singh yadav Nirala
    26/09/2016 monday

  • KULDIP SINGH YADAV "NIRALA" says:

    Respected Kavita Jee (Hindustani History writer),
    i have visited the Maheshwar Fort Yesterday on 24/09/2016 Sunday and found very great History palace temple and Mother river Holy Narmada , taken a dip to and worshiped
    i read a detailed History with Photograph written by you, its realy very good maximum information about fort, queen, and king and way of administration of kingdom with in the name almighty GOD .
    God bless you with more writing power in future too
    thanks a lot
    kuldip singh yadav Nirala
    26/09/2016 Monday

  • Jerry Moon says:

    Kavitaji me MAHESHWAR ke pass vale ganv me hi rehta hu itna sb kuch to mujhe bhi pata he lkn is sb ki history aap dusro ko bata rahi he iske liye dhanyvad lkn aap ne old history nahi batayi jo sahastrabahu ki he jinhone apni bhujao se Ma NARMADA ko rokne ki kosis ki thi or ye jagah maheshwar se pass hi jis ganv ka name Jalkoti he…..jyada to mujhe bhi nhi pata lkn aage aap jab bhi MAHESHWAR aao to iski jankari jarur lena or hame batana…dhanyvad

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