भीमाशंकर प्रवास तथा वहां के रात्री विश्राम की खट्टी मीठी यादें मन में संजोए अब हम अपने अगले गंतव्य त्र्यंबकेश्वर की यात्रा प्रारंभ करने की गरज़ से सुबह करीब नौ बजे बस स्टेंड पर आ गए, चुंकि भीमाशंकर से नाशिक के लिये सीधी बस नहीं मिलती है अत: हमें मंचर नामक जगह से नाशिक की बस पकड़नी थी, हम लोग लगभग दो घंटे में मंचर पहुंच गए।
मंचर में करीब आधे घंटे के इंतज़ार के बाद हमें नाशिक के लिये बस मिल गई और शाम चार बजे हम लोग नाशिक पहुंच गए। भीमाशंकर से निकलते समय घना कोहरा जरुर था लेकिन बारीश नहीं हो रही थी, पर अब नाशिक पहुंचते पहुंचते बारीश शुरु हो गई थी। बारीश की हल्की फ़ुहारों के बीच ही हम नाशिक के बस स्टेंड पर उतरे और हमें त्र्यंबकेश्वर के लिये तैयार खड़ी बस मिल गई। बस में सवार होकर बारीश का आनंद लेते हुए हम कब त्र्यंबकेश्वर पहुंच गए पता ही नहीं चला।
करीब दो साल पहले अपनी शेगांव यात्रा के दौरान गजानन महाराज सेवा संस्थान ट्रस्ट के यात्री निवास में ठहरने का मौका मिला था, और हम लोग इस ट्रस्ट तथा यात्री निवास की व्यवस्था, साफ़ सफ़ाई, उचित मुल्य पर भोजन तथा रियायती शुल्क से इतना प्रभावित हुए थे की आज भी याद करते हैं. उसी दौरान पता चला था की श्री गजानन ट्रस्ट के यात्री निवास शेगांव के अलावा तीन अन्य स्थानों पर भी हैं- ओंकारेश्वर, त्र्यंबकेश्वर तथा पंढरपुर।
ओंकारेश्वर के गजानन संस्थान गेस्ट हाउस में भी हम लोग दो बार रह चुके हैं और जब भी ओंकारेश्वर जाते हैं वहीं ठहरते हैं और आप सभी पाठकों को भी सलाह देना चाहुंगा की यदि आप शेगांव, ओंकारेश्वर, त्र्यंबकेश्वर या पंढरपुर जा रहे हैं तो गजानन महाराज संस्थान में ही रुकें और मुझे पुरा विश्वास है की उनकी सेवायें खासकर स्वच्छता आपको अभीभूत कर देंगीं।
चुंकि हमें मालुम था की त्र्यंबकेश्वर में भी गजानन महाराज ट्रस्ट का यात्री निवास है तो फ़िर किसी और विकल्प के बारे में सोचने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी, लेकिन यहां एक बात और बता देना चाहुंगा की इन संस्थानों में एडवांस बुकिंग नहीं होती आप जब वहां पहुंचते हैं उस समय यदि कमरा उपलब्ध हो तो मिल जाता है।
बस वाले ने हमें हमारे निवेदन पर श्री गजानन संस्थान के सामने ही उतार दिया, बस से उतर कर हम सीधे संस्थान के स्वागत कक्ष पर पहुंचे, वहां पहुंच कर मैने देखा की कुछ ज्यादा ही भीड़ थी, पुछने पर पता चला की एक भी रूम खाली नहीं है, और जो भीड़ वहां जमा थी वह वेटिंग वालों की थी. यह जानकर हम सभी बड़े मायुस हो गए और अपना सामान लेकर औटो स्टेंड पर आ गए और एक औटो वाले से किसी गेस्ट हाउस या होटल ले चलने को कहा।
औटो वाले ने हमें तीन चार गेस्ट हाउस दिखाए लेकिन कहीं भी रूम खाली नहीं थे, और अगर थे भी तो भाव अनाप शनाप. मैनें औटो वाले से पुछा की भाई आज ऐसी क्या बात है सारे होटेल, धर्मशालाएं फ़ूल क्यों हैं, तो उसने बताया सर, कल नाग पंचमी है और त्र्यंबकेश्वर में काल सर्प योग की पूजा करवाने भारत भर से श्रद्धालु नाग पंचमी से एक दिन पहले त्र्यंबकेश्वर पहुंच जाते हैं, और अगर अगले दस पंद्रह मे आपने रूम नहीं लिया तो आप परेशानी में पड़ जाओगे, उसका इतना कहना था की बस अगले गेस्ट हाउस में ग्यारह सौ रुपये में एक डबल बेड रूम हमने पसंद कर लिया।
दिन भर हो गया था महाराष्ट्र एस. टी. की बसों में सफ़र करते हुए अत: कमरे में सामान रखकर तथा कुछ देर आराम करके हमने बारी बारी से स्नान किया, अब हम थोड़ा रिलेक्स महसुस कर रहे थे. हमारा प्लान था की रात मे भी एक बार ज्योतिर्लिंग दर्शन कर लेंगे और सुबह अभिषेक करके निकल जाएंगे.
मैने सोचा की मंदिर के लिये निकलने से पहले सुबह के अभिषेक के लिये एक बार किसी पंडित जी से बात कर ली जाए, गेस्ट हाउस से ही एक पंडित जी का नंबर मिल गया, मैने बात की तो उन्होनें बताया की कल सुबह अभिषेक तो दूर की बात है दर्शन भी मिलना भी मुश्किल है, यह सुनकर हमने सुबह दर्शन पूजन की आस छोड़ दी और सोचा की रात को ही दर्शन कर लेते हैं और सुबह जल्दी ही शिर्डी के लिये निकल जायेंगे.
मंदिर चुंकि गेस्ट हाउस से करीब ही था अत: हमलोग पैदल ही मंदिर की ओर चल दिए, मंदिर पहुंच कर देखा तो पाया की बहुत लंबी कतार लगी थी, खैर हम भी बिना ज्यादा सोचे विचारे उस लाईन में लग गए, क्योंकी और कोई चारा नहीं था, अब यहां तक आए हैं तो दर्शन तो करना ही था. करीब तीन घंटे के इंतज़ार के बाद हम गर्भग्रह तक पहुंच कर दर्शन कर पाए, लेकिन मन में ये संतुष्टी थी की चलो दर्शन हो गए, मनोरथ सिद्ध हुआ।
शिव जी के बारह ज्योतिर्लिगों में श्री त्र्यंबकेश्वर को दसवां स्थान दिया गया है. यह महाराष्ट्र में नासिक शहर से 35 किलोमीटर दूर गौतमी नदी के तट पर स्थित है। मंदिर के अंदर एक छोटे से गङ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और शिव देवों का प्रतिक माना जाता हैं।त्र्यंबकेश्वर की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इस ज्योतिर्लिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही विराजित हैं. काले पत्थरों से बना ये मंदिर देखने में बेहद सुंदर नज़र आता है. इस मंदिर में काल सर्प योग की पुजा कराई जाती है, जिसके लिये देश भर से श्रद्धालु यहां एकत्र होते हैं।
नासिक से त्र्यंबकेश्वर मंदिर तक का सफर 35 किलोमीटर का है। यहां हर सोमवार के दिन भगवान त्र्यंबकेश्वर की पालकी निकाली जाती है, मंदिर की नक्काशी बेहद सुंदर है।
त्र्यंबकेश्वर नाशिक से काफी नजदीक है, नाशिक पूरे देश से रेल, सड़क और वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है. आप नासिक पहुंचकर वहां से त्र्यंबकेश्वर के लिए बस, ऑटो या टैक्सी ले सकते हैं।
दर्शन के बाद हम वापस पैदल ही लौटते हुए रास्ते में एक रेस्टारेंट में रात का खाना खाया और गेस्ट हाउस आकर सो गए. सुबह कोई जल्दी नहीं थी उठने की अत: आराम से बेफ़िक्र होकर सो गए, और करीब आठ बजे जब अपने आप नींद खुली तो उठे और नहा धोकर तैयार होकर गेस्ट हाउस चेक आउट किया और अपना समान लेकर बस स्टाप पर आ गए।
आज हमें बस द्वारा ही त्र्यंबकेश्वर से शिर्डी जाना था. त्र्यंबकेश्वर से शिर्डी लगभग 110 किलोमीटर की दुरी पर है. त्र्यंबकेश्वर से डायरेक्ट शिर्डी के लिये भी बस, जीप, वेन आदी वाहन मिलते हैं तथा नाशिक से वाहन बदल कर भी जाया जा सकता है, हमें भी शिर्डी जाना था अत: हम किसी डायरेक्ट वाहन की तलाश में थे, एस. टी. स्टेंड पर पता चला की डायरेक्ट शिर्डी की बस एक घंटे बाद आएगी, इसी बिच एक वेन वाले ने हमसे कहा की 180 रु. में चार घंटे में शिर्डी छोड़ दुंगा और हम लोग उसकी वेन में बैठ गए।
यहां पर हमारे साथ एक त्रासदी हुई, हुआ युं की वेन वाले को हमारे अलावा और तीन चार सवारी चहिये थी जो इस समय उसके पास उपलब्ध नहीं थी अत: वह हमें एक चाय की दुकान के सामने वेन में बैठाकर सवारी ढुंढने चला गया, वैसे हम लोग चाय नहीं पीते लेकिन ठंडा मौसम होने तथा इन्तज़ार का समय काटने के उद्देश्य से कविता और मैने उसी पास की दुकान से एक एक कप चाय ले ली और चुस्कियां लेने लगे, बच्चे बोर हो रहे थे अत: संस्कृति (मेरी बेटी) ने टाईम पास करने के लिये मुझसे कैमरा मांगा, मैने उसे दे दिया।
इन्तज़ार करते हुए करीब आधा घंटा हो गया था लेकिन वो वेन वाला नहीं आया. कुछ देर और इंतज़ार करने के बाद हमने निर्णय लिया की यहां इन्तज़ार करने से अच्छा है नाशिक चला जाय और एक झटके में उठकर हम बाहर आ गए, जैसे ही हम वेन से उतरे हमें नाशिक की ओर जाती हुई बस दिखाई दी मैने हाथ दिया, बस रुकी और हम सब उसमें बैठ गए।
कुछ दस मिनट चलने के बाद मैने जेब टटोला तो मुझे कैमरा नहीं मिला, मुझे याद आया की कैमरा मैनें गुड़ीया को दिया था. जब मैनें उससे कैमरे के बारे में पुछा तो उसके होश गुम हो गये, बोली पापा कैमरा तो शायद मुझसे वेन में ही छुट गया……….ओह माई गॉड, अब तो हम सबकी हालत देखने लायक थी. बस वाले को मैने टिकट के पैसे भी दे दिये थे और अब हम त्र्यंबकेश्वर से करीब दस किलोमीटर दुर आ चुके थे, फिर भी मैने तुरंत निर्णय लिया और बस वाले को बस रोकने के लिये कहा, बस रुकी और हम सब सामान सहित एक पेट्रोल पंप के पास उतर गए।
एक उम्मीद मेरे दिल में थी कैमरा मिलने की और उसी उम्मीद के सहारे मैनें बस रुकवाई थी. अब क्या किया जाए, इसी उहापोह में हम खड़े थे, हमें परेशान देख एक चौबीस पच्चीस साल के युवक जो नाशिक जा रहा था, ने अपनी कार हमारे पास रोकी और पुछा क्या हुआ? आप लोग यहां क्यों उतर गये, शायद उसने हमें बस से उतरते हुए देख लिया था. मैने अपनी परेशानी उसे बता दी, उसने तुरंत कहा की परिवार को पेट्रोल पंप पर बैठाइये और आप मेरे साथ कार में बैठीये, उसने मुझे बैठाया और कार त्र्यंबकेश्वर की ओर दौड़ा दी. कुछ ही देर में हम उसी जगह पर पहुंच गए जहां वेन खड़ी थी, लेकीन अब वहां वेन नहीं थी यह देखते ही मैं परेशान हो उठा, कैमरा मिलने की अंतिम उम्मीद पर पानी फ़िर चुका था।
निराशा की उस घड़ी में मुझे पता नहीं क्यों ऐसा लगा की मुझे एक बार चाय की दुकान वाले से बात करनी चाहिये, और मैं उसके पास बदहवास सा पहुंचा और पुछा “भैया वो वेन जो यहां खड़ी थी वो चली गई क्या, उसने कहा…हां चली गई, क्यों क्या हुआ आपको कैमरा चाहिए? मैने कहा हां, लेकिन आपको कैसे मालुम, उसने अपनी जेब से मेरा कैमरा निकाला और मेरी तरफ़ बढा दिया और बताया की आप लोग जब बस में बैठ चुके थे तो मेरा ध्यान खाली वेन की सिट पर पड़े कैमरे पर गया और मैने उसे उठा कर अपने पास रख लिया, यह सोचकर की अगर आप इसे वापस ढुंढने आयेंगे तो यहीं पर आयेंगे।
मैं उस चाय वाले की ईमानदारी का कायल हो गया। उसे ढेर सारा धन्यवाद दिया, वहीं पास में उसकी बच्ची खेल रही थी, उसे 100 का नोट पकड़ाया और खुशी खुशी अपने पहले मददगार की कार में आकर बैठ गया। मुझे कैमरा मिल गया यह जानकर उस कार वाले युवक को भी बहुत खुशी हुई। मुझे उस दिन इस बात का पुख्ता प्रमाण मिल गया की दुनिया में आज भी ईंसानियत और ईमानदारी दोनों जिंदा हैं। आखिर भोले बाबा हमें अपने दरबार से परेशान और दुखी होकर थोड़े ही जाने देने वाले थे। कार वाले ने मुझे अपने परिवार के पास छोड़ा, और हम सबने मिल कर उस भले मानुस का शुक्रिया अदा किया, वरना आजकल कौन किसी की बेमतलब मदद करता है।
कुछ ही देर में हमें शिर्डी के लिये डाइरेक्ट बस भी मिल गई और दोपहर करीब तीन बजे हम लोग शिर्डी पहुंच गए। हमारे पास शिर्डी के लिये वक्त बहुत कम था क्योंकि इस समय तीन बज रहे थे और आज ही रात नौ बजे वाली वोल्वो में हमारी शिर्डी से इन्दौर के लिये बुकिंग थी।
यात्रा से करीब एक महिने पहले मैं गूगल पर शिर्डी के बारे में खोज रहा था तभी मुझे पता चला की आजकल साईंबाबा संस्थान की आफ़िशियल वेबसाईट पर 100 रु. प्रतिव्यक्ती की दर से भुगतान करने पर दर्शन की भी बुकिंग हो जाती है। इसकी पर्ची दिखाने पर शिर्डी मंदिर के गेट नंबर 3 से डाइरेक्ट ईंट्री मिल जाती है और कैसी भी भीड़ की स्थिती में मात्र पौन घंटे (45 मिनट) में दर्शन हो जाते हैं. यह एक बहुत ही अच्छी सुविधा है, जिसका लाभ सभी को उठाना चाहिये, क्योंकि विकेंड्स पर शिर्डी मंदिर में दर्शन के लिये कम से कम चार घंटे कतार में खड़ा रहना पड़ सकता है।
मैने वी.आई.पी. दर्शन के तीन ओनलाईन टिकिट ले लिये थे, अत: उम्मीद थी की दर्शन आसानी से हो जायेंगे. शिर्डी में बिताए जाने वाले इन तीन चार घंटों के लिये मैने उसी वेबसाईट से संस्थान के भक्त निवास में एक रूम भी बुक करवा लिया था मात्र 125 रु. में।
शिर्डी पहुंचते ही हम लोग सबसे पहले औटो लेकर भक्त निवास पहुंचे, मैनें सोचा था 125 रु. का कमरा कैसा होगा? लेकिन जैसे ही कमरा खोला मुझे ताज्जुब हुआ, इतना सुंदर, साफ़ सुथरा लंबा चौड़ा, सर्वसुविधायुक्त कमरा मात्र 125 रु. में ? घोर आश्चर्य लेकिन सत्य. इन दोनों सुविधाओं का लाभ उठाने के लिये क्लिक करें …..https://www.shrisaibabasansthan.org/index.html
कमरे में सामान रखकर, नहा धोकर अब हम तैयार थे साईं बाबा के दर्शन के लिये. भक्त निवास से समाधी मंदिर कि दुरी लगभग एक किलोमीटर है. समय की कमी को देखते हुए हमने इस एक किलोमीटर के लिये भी औटो लेना ही उचित समझा. कुछ ही देर में हम मंदिर के सामने थे. बाबा को अर्पण करने के लिये कुछ फ़ुल वगैरह लेने के बाद हम गेट नंबर 3 की ओर बढ चले. गेट पर हमने अपने ओनलाईन लिए हुए दर्शन के टिकिट दिखाए तो हमें वी.आई.पी. लाईन में लगा दिया गया और फ़िर तो आधे घंटे में हम बाबा के सामने थे। शनिवार के अतिव्यस्त तथा भारी भीड़ भाड़ वाले दिन भी हमें आधे घंटे में दर्शन हो गए…कमाल के थे वो टिकिट भी….
छ: बजे तक हम समाधी मंदिर के अलावा द्वारकामाई (वह मस्जिद जहां साईं बाबा का अधिकतर समय व्यतीत होता था), चावड़ी तथा साई बाबा के द्वारा उपयोग की गई वस्तुओं के संग्रहालय के भी दर्शन कर चुके थे, पहले भी दो चार बार शिर्डी दर्शन किये थे लेकिन जितने आराम तथा विस्तार से आज किये वैसे दर्शन पहले कभी नहीं हुए, वो भी इतने कम समय में।
चुंकि हमारी बस नौ बजे थी अत: हमारे पास अभी भी तीन घंटॆ बचे थे, तो हमने सोचा की आज संस्थान के भोजनालय (साईं प्रसादालय) में ही भोजन किया जाय, कई बार पहले भी सोचा था लेकिन हो नहीं पाया था। समाधी मंदिर के गेट के पास ही शिर्डी संस्थान की नि:शुल्क बस खड़ी दिखाई दे गई और हम उसमें सवार हो गए और कुछ दस मिनट में ही बस ने हमें साईं प्रसादालय छोड़ दिया. यहां कुछ आठ या दस रु. में स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था है, भीड़ का दबाव अत्यधीक होने से यहां समय थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन साईं बाबा की रसोई के खाने की बात ही कुछ और है.
आजकल शिर्डी साईं संसथान के द्वारा सील बंद लड्डु के प्रसाद का विक्रय भी किया जाता है, दस रु. के एक पैकेट में तीन बड़े साईज़ के तथा स्वादिष्ट लड्डु दिये जाते हैं, प्रसादलय से लौटते समय हम एक बार फिर समाधी मंदिर में गये और मैं ये लड्डु लेने के लिये लाईन में लग गया तथा लड्डु के तीन चार पैकेट ले आया।
मंदिर के अच्छे से दर्शन करने, भोजन ग्रहण करने के बाद अब हम लोग औटो लेकर भक्त निवास चल दिये, सामान वगैरह पैक करके, रूम चेक आउट करके हम हंस ट्रेवल्स के ओफ़िस पहुंचे जहां हमारी इन्दौर के लिये बस तैयार खड़ी थी, बस में बड़ी अच्छी नींद आई और सुबह छ: बजे हम इन्दौर पहुंच गये, वहां से अपनी कार लेकर कुछ ही देर में घर पहुंच गए….
और इस तरह हमारी ये यात्रा भी ढेर सारी न भुलने वाली यादों के साथ सम्पन्न हुई……..फ़िर मिलते हैं ऐसी ही किसी सुहानी यात्रा की कहानी के साथ……..
सभी साथियों को बीती हुई दिवाली तथा आनेवाले नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें……
Mukes Bhai – Even though my name has Jha in it but you are indeed a Jhujhaaroo personality. I would have done a naman from outside at Trambkshwar but I guess to each his own, it is a matter of faith and there is no one right way here. Many thanks for the detailed account of it.
Regarding Camera, If I am not mistaken then this is the 2nd time, you were close to losing your camera. Happy to finally read that you got it back.
Great tips about Shirdi. Wishing you and your loved ones ‘Seasons’s Greetings’.
Thank you very much Nandan for your encouraging comment. Please mere naam ka “H” mujhe loutaa dijiye ……LOL.
You are right, once in Murudeshwar (Karnataka) while bathing at beach my camera got drenched in a wave and could never repaired, then I sold it at a service centre at Mumbai and bought this new one.
Happy diwali to you too…
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Very informative and nice descripton good photos, Thanks for it
Sharma ji Namaskaar….. A long time ? Thanks for your sweet words.
Mukesh Ji , Namaskar . Ek bahut hi gyanvardhak post ke liye dhanyawad. More than your posts I like your unflinching faith , devotion and unquestionable spirit.
Professor saab, Thank you very much for your encouraging comment.
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good post. the honesty of that tea vendor is exemplary in the current scenario of our highly populous country.
You are right absolutely sir, even I was astonished while getting camera from him……….
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Om namah shivayy mukesh ji.. bahut hi sundar darshan karvaye aapne. aurr photosss to superbbb heeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee…….. aapka lekh padh kar laga jese humne bhi dono jyotirlingo aur shirdi ke sai baab ke darshan kar liye ho.
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Mukesh ji Omkareshwar me gajanan maharaj Sansthan kis jagah pa he. vaha se omkareshwar mandir kitni duri par he. kripya hame bataye. vaha par room ka rent kitna he. jay shree krishna
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Next month I also have to go Shirdi and this post will definitely help me.
Really you were lucky that you got your camera otherwise it was the big loss for you and for us also because how could we see these brilliant photos.
Thanks for sharing the series, it will be really helpful for the person to take the decision at the moment if anyone find himself in this circumstances.
Saurabh,
Thank you very much for your sweet words.
Pratap Chauhan, Lucknow
Very very knowledgeable post by you,
Thank you Pratap ji for your kind words. Keep on visiting Ghumakkar.com.
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Thanks Vidyut Ji for your kind words.
Hi Mukesh,
I was there last year at Trimbakeshwar. The setting was equally pretty – rains and hills covered in mist. And there was a mile long queue. I bowed and said my prayers at the gate and came back to Nasik.
Enjoying the Jyotirling journey with you!
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Mukesh ji
Hope you may have a slight memory of me. Last year I had talked you on phone to get some help for Mallikarjun Jyotilling and Tirupathi temple. I have been now all these places. Our journey to Mallikarjuna and Tirupathi was nice one. I too have been to Triambkeshwar, Nasik twice, Ghrishneshwar, Bhima Shanker and other Jyotirligas except that of Kedar Nath. You description reminded me all the things well. I too have been posting these travelogues on the blog : http://www.iyatta.blogspot.com . You can visit the blog to have a look.
The description and photographs posted by you are praiseworthy.
Hari Shanker Rarhi
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