लेह – खर्दुंग ला – हुन्डर (नुब्रा वैली) – लेह – भाग5

आज हमे लेह से आगे “खर्दुंग ला” जाना था। लद्दाख जाना का मतलब दुनिया के सबसे ऊँचे दर्रो को पार करके जाना। जिसमे लिखित रूप से “खर्दुंग ला” सबसे ऊँचा है। इसकी ऊंचाई 5602 मीटर (18379 फीट) है। जो भी लेह-लद्दाख जाता है वो “खर्दुंग ला जरूर जाता है। वहां पहुँच कर “जीत” का एहसास होता है मानो आप भी दुनिया के गिने-चुने लोगों में से हो जो यहाँ तक पहुँच पाए। ज्यादा-तर लोग यहीं से वापस लौट जाते हैं। लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ क्यूँकि हम लोगों को तो “खर्दुंग ला” से भी आगे “हुन्डर” जाना था और शाम तक फिर वापस भी आना था। जहाँ लेह-खर्दुंग ला-लेह 80km है वहीँ हमे आज लेह-हुन्डर-लेह के सफ़र मे 254km तय करना था। मोबाइल का अलार्म बजते ही सब उठ गए। अभी अँधेरा ही था हम लोग सुबह 05:30 बजे निकल गए थे। 12-सितम्बर को जब लेह पहुँचे थे तभी गाड़ी का टैंक फुल करवा लिया था। लेह से आगे जाने के लिए परमिट की कॉपी के अलावा हमारे पास सिर्फ कैमरे थे। हमने और कुछ भी सामान साथ नहीं लिया। हम अब “खर्दुंग ला” की ओर बढ़ चले। यहाँ से सारे रास्ते हमे ऊपर ही चढ़ते रहे। हल्का सा उजाला होने लग गया था। इस समय ठंड भी बहुत थी। आज पहली बार अंकल ने भी पूरे बाजू की स्वेटर पहन ली थी।

“खर्दुंग ला” से पहले आर्मी की चेक पोस्ट है उसका नाम “साउथ पुल्लू” है, और “खर्दुंग ला” के बाद भी एक चेक पोस्ट आती है उसका नाम “नार्थ पुल्लू” है।

साउथ पुल्लू

साउथ पुल्लू



“खर्दुंग ला” तक जाने के लिए परमिट की ज़रुरत नहीं है लेकिन इससे आगे जाने के लिए “Inner-Line Permit” परमिट लेना होता है। “नार्थ पुल्लू” मे इसकी चेकिंग होती है। हम “साउथ पुल्लू” पहुँच गए थे। यहाँ पर एक चाय की दुकान है, उसी के पास गाड़ी रोक कर चाय और बिस्कुट लिया गया। दुकान के अंदर कुछ मिनट आग भी सेकी गयी। “खर्दुंग ला” जाते वक्त यहाँ से “काराकोरम” (karakoram) रेंज भी दिखाई देती है। सूरज उगने के बाद तो बर्फ से ढके पहाड़ो का नज़ारा देखने लायक होता है।

“काराकोरम” (karakoram) रेंज।

“काराकोरम” (karakoram) रेंज।

यहाँ से आगे का रास्ता बहुत ही खराब था। रास्ते मे पत्थर, पहाड़ से रिसता हुआ पानी, जमी हुई चिकनी बर्फ। दो-तीन बार सामने से आती हुई गाड़ी को जगह देने के लिए गाड़ी रोक कर पीछे भी करनी पड़ी थी।

“खर्दुंग ला” की ओर जाते हुए…..संकरी पथरीली सड़क।

“खर्दुंग ला” की ओर जाते हुए…..संकरी पथरीली सड़क।

अब हरी का दिल तेजी से धड़कने लग गया था। इस बार मैं मज़ाक नहीं कर रहा, सही मे हरी घबरा गया था। वो इंग्लिश मे बोला “टेल हिम टु ड्राइव केयरफुली” Or “आस्क हिम टु स्टॉप एंड यू ड्राइव”। उसकी ये बात सुनकर हम हंसने लगे। इस बार अंकल की छटी इंद्री जाग गई और बोले कि “हरी तू बहुत घबराता है, मनोज भी तो पहली बार आया है वो तो चुप-चाप बैठा है”। अब अंकल को क्या पता की मनोज तो इतना घबराया हुआ था कि मुह से एक शब्द भी नहीं बोल पा रहा था। लेकिन अंकल अपनी चाल मे ही गाड़ी चलाते रहे और हरी भी “खर्दुंग ला” तक इंग्लिश मे कुछ ना कुछ बडबडाता ही रहा। सही बोलूँ तो राहुल और मेरा अच्छा एन्जोयमेंट होता रहा। हम “खर्दुंग ला” टॉप पहुँच गए। हरी ने जल्दी गाड़ी से नीचे उतरने की शिफारिश की और चैन की साँस भरी। अब जाकर बेचारा मुस्कराया था।

“खर्दुंग ला” टॉप पर अंकल फुल बाजू की स्वेटर मे।

“खर्दुंग ला” टॉप पर अंकल फुल बाजू की स्वेटर मे।

“खर्दुंग ला” पर Col. Chewang Rinchen की वीरता का प्रमाण। खुद ही पढ़ लीजिए। आपका सर भी गर्व से ऊँचा हो जाएगा। ऐसे वीर योद्धा सिर्फ भारत-वर्ष मे ही जन्म लेते है।

“खर्दुंग ला” पर Col. Chewang Rinchen की वीरता का प्रमाण। खुद ही पढ़ लीजिए। आपका सर भी गर्व से ऊँचा हो जाएगा। ऐसे वीर योद्धा सिर्फ भारत-वर्ष मे ही जन्म लेते है।


हम लोग सुबह लेह से जल्दी निकल आए थे तो कोई खास परेशानी नहीं हुई। लेकिन वहाँ पर तैनात फ़ौजी के मुताबिक अक्सर पर्यटन की वजह से “खर्दुंग ला” मे ट्रैफिक जाम हो जाता है। यहाँ पर आर्मी की एक “डिस्पेंसरी” (Dispensary) भी है। इतनी ऊँचाई पर आने की वजह से पर्यटक की तबीयत बिगड़ सकती है इसी को ध्यान मे रखते हुए यहाँ पर चेक-उप, दवाई, ऑक्सीजन जैसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। चाय-पानी की एक कैंटीन भी है। हमने कुछ देर पहले ही “साउथ पुल्लू” मे हल्का सा नाश्ता किया था तो अब “खर्दुंग” से आगे निकलना ही ठीक समझा।

“खर्दुंग ला” पर एक फोटो मेरा भी।

“खर्दुंग ला” पर एक फोटो मेरा भी।

“खर्दुंग ला” पर लगा हुआ यह नक्शा।

“खर्दुंग ला” पर लगा हुआ यह नक्शा।

अब हम यहाँ से आगे चल दिए। 15km नीचे उतरने बाद “नार्थ पुल्लू” आ गया। यहाँ तक भी रास्ता बहुत करब था। अगर आपके पास “Inner-Line Permit” नहीं है तो यहाँ से आगे नहीं जा सकते। आपको वापस भेज दिया जाएगा। यहाँ पर कतार मे 5-6 गाड़ियाँ खड़ी थी, एक सभ्य नागरिक होने के नाते हम भी चुप-चाप कतार मे लग गए। मिलिट्री जोन मे पहुँच कर तो अच्छे-से-अच्छा टेढ़ा आदमी भी सीधा हो जाता है। यहाँ सिर्फ फ़ौज का डंडा चलता है। हमारा नंबर आने मे टाइम था परमिट अंकल को पकड़ा कर हम गाड़ी से नीचे उतर गए। इस जगह का माहौल देखते ही बनता था। 2-3 चाय-पानी की दुकाने थी। इन्ही दुकानों के बाद चेक पोस्ट थी। ये जगह चेक पोस्ट न होकर एक छोटे आर्मी के बेस कैंप जैसी लग रही थी।

“नार्थ पुल्लू” बेस कैंप।

“नार्थ पुल्लू” बेस कैंप।

यहीं पर कैंप के दूसरी तरफ घास का मैदान सा था। यहाँ पर बर्फ पिघलने की वजह से एक छोटी सी जल-धारा भी थी और यहीं कुछ याक (Yak) घास चर रहे थे। ये सब देखते ही मैं और राहुल उस ओर चल पड़े। अपने हनीमून पर मैं 2007 मे मनाली गया था। उस वक़्त एक पालतू याक के साथ एक फोटो खिंचवाया था। लेकिन खुले मैदान मे घास चरते हुए याक देखूँगा ये कल्पना भी नहीं की थी।

घास चरते हुए याक।

घास चरते हुए याक।


जल-धारा, या यूँ कह लो आधा पानी और आधी बर्फ।

जल-धारा, या यूँ कह लो आधा पानी और आधी बर्फ।

“नार्थ पुल्लू” मे पंजीकरण कराने के बाद हम आगे निकल पड़े। अब ड्राईवर सीट पर मैं था। अंकल ने हरी को टोन कसते हुए कहा अब तो रोड भी अच्छी हो गई है। यहाँ से आगे का रास्ता एक दम मस्त था। गाड़ी ऐसे चल रही थी मानो जैसे ब्रेड के ऊपर अमूल का मक्खन लगा हुआ हो। एक भी धचका नहीं लग रहा था। 2-3km आगे ही अपने फ़ौजी भाईयों की एक छोटी से टुकड़ी दिखाई दी। उन्होंने ठंड से निपटने के सारे साजो सामान पहने हुए थे। जैसे की टोपी, गॉगल्स, जैकेट, स्नो बूट्स। एकाएक सड़क से हटकर ये सब पहाड़ की ओर चल दिए और चढ़ने लगे। मेरा अंदाज़ा सही था “नार्थ पुल्लू” चेक-पोस्ट होने के साथ-साथ एक छोटा आर्मी का बेस कैंप भी था। “खर्दुंग ला” से “सियाचिन” बेस कैंप की दूरी मात्र 164km ही है। “सियाचिन” दुनिया का सबसे ऊँचा युद्ध छेत्र है। वहाँ के वातावरण के अनुकूल ढालने के लिए यह एक अभ्यास का हिस्सा लग रहा था। इनकी ड्रेस का कलर जैसे पहाड़ में कहीं घुल-मिल(Camouflage) गया था और थोड़ी दूर चढ़ने के बाद ये हमारी नज़र से ओझल हो गए।

हमारे देश के रक्षक।

हमारे देश के रक्षक।

अभी 50km और आगे जाना था। रास्ते मे बहुत सी जगह रुकने का मन हुआ पर अब ट्रैफिक लगातार चल रहा था तो रुकना ठीक नहीं समझा। हम “हुन्डर” की तरफ बढ़ रहे थे। रास्ते मई लगे हुए साइन बोर्ड का इशारा देख कर गाड़ी को बाएँ ओर मोड़ दिया। अब एक शानदार और नाक की तरह सीधी सड़क थी। गाड़ी के पंख लग गए थे और वो चिड़िया की तरह उड़ रही थी। इस सड़क के दोनों ओर रेत दिखाई दी, हम गाड़ी को रोक कर रेत मे उतर गए।

“हुन्डर” की ओर जाती सड़क।

“हुन्डर” की ओर जाती सड़क।

फोटो मे बाएँ ओर “हुन्डर” जाती हुई सड़क और दाएँ और “पनामिक” है। ये दोनों जगह Nubra Valley मे ही हैं।

फोटो मे बाएँ ओर “हुन्डर” जाती हुई सड़क और दाएँ और “पनामिक” है। ये दोनों जगह Nubra Valley मे ही हैं।


हम अब “Diskit” पहुँच गए थे। यहाँ पर हमारी दाएँ ओर एक पेट्रोल पंप था। उजाड़ सी जगह मे बना हुआ था, मशीनें भी बाबा आदम के ज़माने की थी। इन मशीनों को हाथ से घुमाने वाले लीवर से स्टार्ट किया जाता था। जन मैं छोटा था तब ये मशीनें देखी थी। पूछने पर पता चला की तेल भी ख़त्म था ट्रक आने वाला था। हमने तो वैसे ही पूछ लिया था कोई अनाड़ी ही होगा जो इस पेट्रोल पंप के भरोसे यहाँ तक आएगा।
Diskit मे पेट्रोल पंप।

Diskit मे पेट्रोल पंप।

“Diskit” मे एक “monastery” भी है। हम समय की कमी होने की वजह से “Diskit Monastery” को देखने नहीं जा पाए थे। यहाँ पर बुद्धा (Buddha) का 32 मीटर ऊँचा स्टेचू है। ये दूर से भी बहुत सुंदर लगता है।

Diskit Gompa

Diskit Gompa

“Diskit” से 8km आगे “हुन्डर” आ जाता है। “हुन्डर” एक गाँव हैं, यहाँ पर लोगों ने छोटी-मोटी खेती करी हुई थी, फलों के बाग भी दिख रहे थे। इसके साथ-साथ ठंडा रेगिस्तान भी था। एक ही जगह मे इतनी अलग-अलग चीजें देख कर हैरानी हो रही थी। यहाँ से आगे जाने का रास्ता बंद था। यहाँ पर भी मिलिट्री की मौजूदगी थी। सिर्फ आर्मी को ही आगे जाने की अनुमती रही होगी। हमे एक फ़ौजी ने बताया था कि यहाँ से पाकिस्तान का बॉर्डर बहुत पास है। यहीं पर आर्मी की CSD कैंटीन थी। CSD कैंटीन मे फ़ौजियों को और उनके परिवार के लोगों को सस्ता सामान मिलता है। हम Civilians CSD कैंटीन से सामान नहीं खरीद सकते। कैंटीन मे किचन देख हम अंदर घुस गए और जम कर नाश्ता किया।

CSD कैंटीन के बाहर हरी और मैं नाश्ता पचाने की कोशिश करते हुए।

CSD कैंटीन के बाहर हरी और मैं नाश्ता पचाने की कोशिश करते हुए।

यहाँ से पैदल आगे निकल पड़े, अंकल भी हमारे साथ ही थे। “हुन्डर” मे पानी, रेगिस्तान, हरियाली, कच्ची मिट्टी के पहाड़, बर्फ़ के पहाड़, ऊंट, भेड़, बकरी, भोटिया कुत्ते सब कुछ एक ही जगह मे था। ये जगह एक अजूबे से कम नहीं थी और थकान मिटने के लिए परफेक्ट पिकनिक स्पॉट जैसी थी। यहाँ पर हमने खूब मस्ती की थी। आज भी याद करते ही दिल गार्डन-गार्डन हो जाता है। तभी अंकल ने देखा की कुछ लोगों ने नदी के गाड़ी धो रहे हैं। अंकल बोले मैं भी गाड़ी धो लेता हूँ तुम लोग वापसी में वहीँ पर मिलना। हमे तो रेत के टीलों तक जाना था। ठंडे रेगिस्तान को देखने के लिए सब लोग उत्सुक थे। तभी हमे ऊंट दिखाई दिए। ऊंट तो आप सभी लोगों ने देखे होंगे, ऊंट की पीठ पर एक उभार होता है जिसे इंग्लिश हम्प (Hump) कहते हैं। लेकिन पूरे देश मे सिर्फ इसी जगह दो हम्प वाले ऊंट होते है। टेलीविज़न मे तो कई बार देखा था लेकिन आज ये मेरी आँखों के सामने था, देख कर आश्चर्य हुआ।

ये फ़ोटो “नीरज जाट” के लिए। उन्होंने लद्दाख के एक पोस्ट मे डबल हम्प वाले ऊंट के बारे मे पुछा था।

ये फ़ोटो “नीरज जाट” के लिए। उन्होंने लद्दाख के एक पोस्ट मे डबल हम्प वाले ऊंट के बारे मे पुछा था।

हम लोग रेत के टीलों की तरफ जाने लगे। तभी कुछ लड़के हमारे पास आए और बोले “सर ऊंट की सवारी” करनी है। पहले तो हमने साफ़ मना कर दिया। लेकिन उन लोगों के पूछने के बाद मन मे सवारी करने की इच्छा जाग गई। ऊपर से ये एक लाइफ-टाइम अनुभव था। और हम जैसे पर्यटकों की वजह से वहां के लोगों की रोज़ी-रोटी चलती है। हम चारों सवारी के लिए तैयार हो गए। एक ऊंट 200 रूपए के हिसाब से हमने चार ऊंट ले लिए। ऊंट पर चढ़ने और उतरने समय थोडा सावधान रहना होता है। मैंने पहली बार ऊंट की सवारी की थी और किस्मत देखिये वो भी डबल हम्प वाले ऊंट पर। ऊंट चालक को बता दिया था कि हमे रेत के टीलों की तरफ ले चलो।

ऊंट की सवारी करते हुए।

ऊंट की सवारी करते हुए।

रेट का टीला।

रेट का टीला।

ये फोटो मनोज के कैमरे से।

ये फोटो मनोज के कैमरे से।

घास,पानी,रेत,कच्चे पहाड़, बर्फ के पहाड़। सब एक साथ।

घास,पानी,रेत,कच्चे पहाड़, बर्फ के पहाड़। सब एक साथ।

कोई मेरे दाँत साफ़ कर दो प्लीज।

कोई मेरे दाँत साफ़ कर दो प्लीज।

इसी भेड़ की ऊन से विश्व प्रसिद्ध पश्मीना शाल बनती है। और ऊन निकालने के बाद “मटन रोगन जोश”।

इसी भेड़ की ऊन से विश्व प्रसिद्ध पश्मीना शाल बनती है। और ऊन निकालने के बाद “मटन रोगन जोश”।

इस जगह पर थोड़ी गर्मी लग रही थी। रेत भी गर्म हो चुकी थी। अब हमने वापस चलने का फैसला किया। तभी राहुल ने कहा बहता पानी देख कर नहाने का मन कर रहा है। मैंने कहा जिसका मन हो नहा लो, तबीयत ख़राब हो जाने के दर से मैंने मना कर दिया। सच्चाई बताऊँ तो एक्स्ट्रा “under wear” नहीं था। राहुल और हरी तो पानी मे कूद चुके थे। दोनों ने मुझे समझाने की बहुत कोशिश करी पर मैं नहीं माना। थोड़ी देर के बाद राहुल बाहर आया और बोला चल नहीं तो कपडे समेत ही पानी मे धकेल दूँगा। उसने कहा “under wear” की टेंशन मत ले उसको सुखाने का तरीका मैं बता दूंगा। सुखाने का तरीका पूछे बिना उसकी बात मान कर मैं भी पानी मे जा कूदा। मनोज की तबीयत थोड़ी ढीली थी तो उसके साथ किसी ने जबरदस्ती नहीं की।

नाहते हुए।

नाहते हुए।

जम कर नाहने और छोटे बच्चों की तरह खूब मस्ती की। कुछ देर सीधे और कुछ देर उलटे और लो जी सूख गया “under wear”। राहुल ने सही कहा था। खड़े होकर घास-फूस झाड़ी और कपड़े पहन कर तैयार हो गए। वापस जाने का मन नहीं कर रहा था। एक बार तो सोचा कि आज रात यहीं कैंप कर लेते हैं। अगर कैंप करते तो आगे के प्लान के मुताबिक एक दिन एक्स्ट्रा लगने वाला था, जिससे हरी और मनोज को दिक्कत हो सकती थी। नाईट कैंप का आईडिया ड्राप कर दिया और अंकल की बताई हुई जगह की ओर चल दिए। पहुँच कर देखा तो अंकल ने Xylo को नया जैसा चमका दिया था।

चमकती हुई Xylo.

चमकती हुई Xylo.

अब भूख भी लग चुकी थी, करीब एक बजे हम लोग “हुन्डर” से निकले थे। गाड़ी को “Diskit” मे रोक कर भोजन करने का सोचा क्यूँकि यहाँ से आगे लेह तक कुछ नहीं मिलने वाला था। अच्छा नॉन-वेज खाए हुए चार-पांच दिन हो गए थे तो अंकल के लिए दाल-सब्जी और अपने लिए मटन, चिकन, चावल और रोटी का आर्डर दे दिया गया। प्लान के मुताबिक हमें “पनामिक” भी जाना था। जा तो सकते थे पर आज वापस लौटने मे देरी हो जाती। इस वजह से “पनामिक” जाना रद्द कर दिया।

“Diskit” मेन रोड पर “Grand Canyon Restaurant”. यहीं रुक कर भोजन किया था।

“Diskit” मेन रोड पर “Grand Canyon Restaurant”. यहीं रुक कर भोजन किया था।

भर पेट भोजन करने के बाद हम लोग वापस लेह के लिए निकल पड़े। इस वक़्त बहुत गाड़ियाँ लेह की ओर जा रही थी। सब अँधेरा होने से पहले पहुँचना चाहते थे। “नार्थ पुल्लू” से पहले आर्मी की बहुत बड़ी “Convoy” हमारे आगे चल रही थी। लेह मे आर्मी का बहुत बेस है। ये सब लगता है वहीँ जा रहे थे। “Convoy” इतनी बड़ी थी की वो हमे चाह कर भी आगे निकलने के लिए साइड नहीं दे सकते थे क्यूँकि सामने से भी ट्रैफिक आ रहा था। एक बड़े से मोड़ के पास “Convoy” रुक गई तब जाकर कहीं हम आगे निकल पाए थे।

आर्मी की “Convoy”

आर्मी की “Convoy”

जवानों को सलाम करके और “खर्दुंग ला” को पार करने के बाद हम लेह की ओर चल दिए। अभी पिक्चर बाकि है दोस्तों, कृपया अगले पोस्ट का इंतजार करें…………

16 Comments

  • Ankit says:

    Nice travelog Anoop. I also planned to visit ladakh by bike in the middle of June. What is there in Panamic for tourists? Just like Hunder is having sand dunes.

    • asg says:

      Hello Ankit. Panamik is the last village in the Nubra Valley. Beyond this no civilian is allowed. Panamik is famous for the hot water springs.

  • Surinder Sharma says:

    Very Interesting and Photos so good. Camel ride, yak, goat all are so beautiful. will wait for Picture abhi baki hai.

    Thanks and regards

  • Enjoying your posts …………………..

  • Saurabh Gupta says:

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  • wow.. glued to your post..
    waiting for next part..

  • SilentSoul says:

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  • Nandan Jha says:

    That must have been a long ride Anoop. Last summers, Rishi Raj (https://www.ghumakkar.com/author/rrgwrites/) took us to Hundar and they stopped their for the night. I guess 250 odd Kms at that terrain must take a large part of day-light.

    Loved the pictures, the narration and your ability to go beyond the obvious while writing about human interactions. Hope Hari felt better on the way back. :-) Thank you ASG.

    • asg says:

      Thanks for your comments Nandan. Doing the round trip in the same day makes one really tired. Specially those not driving and sitting ideal all the way.

      Honestly, I was enjoying the drive in the terrain.

  • JATDEVTA says:

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